Book Title: 24 Tirthankar Darshan Chaityavandan Stuti aur Thoy
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf
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श्री पार्श्वनाथ भगवान
चैत्यवंदन जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन-स्वामी; अष्ट-कर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामी प्रभु नामे आनंद-कंद, सुख संपत्ति लहीये; प्रभु नामे भव भव तणां, पातक सवि दहीये ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी ए, जपीए पारस नाम: विष अमृत थइ परिणमे, लहीए अविचल ठाम
स्तवन आई बसो भगवान मेरे मन आई, में निर्गुणी इतना मांगत हुं, होवे मेरो कल्याण मेरे मन की तुम सब जाणो, क्या करूं आपसे ब्यान; विश्वहितैषी दीन दयालु, रखीये मुजपर ध्यान. भोगाधीन होवत मन मेलु, बिसरी तुम गुणगान; वहांसे छुडाओ हृदये आयी, अरिभंजनक भगवान आप कृपासे तर गये केई, रह गया मैं दर्दवान । निगाह रखके निर्मल कीजीए, धनवंतरी भगवान. श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, दीजिए तुम गुणगान इनही सहारे चिद्धन सेवा, बनूंगा आप समान.
स्तुति शंखेश्वर पासजी पूजीए, नर भवनो लाहो लीजिए. मन वांछित पूरण सुर-तरु, जय वामासुत अलवसरु.
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