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च्यवन
जन्म
आदिमं पृथिवीनाथ-मादिमं निष्परिग्रहम्. आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभ - स्वामिनं स्तुमः . . ३.
श्री ऋषभदेव भगवान
: आषाढ कृष्णा ४ (अयोध्या)
: चैत्र कृष्णा ८ (अयोध्या)
: चैत्र कृष्णा ८ (अयोध्या-विनीतानगरी)
दीक्षा
केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा ११ (पुरिमताल)
निर्वाण
: माघ कृष्णा १३ (अष्टापद पर्वत)
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श्री ऋषभदेव भगवान
चैत्यवंदन आदिदेव अलवेसरु, विनीतानो राय; नाभिराया कुल मंडणो, मरुदेवा माय. पांचसें धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल; चोरासी लख पूर्व-, जस आयु विशाल. वृषभ लंछन जिन वृषभ-धरुए, उत्तम गुणमणी खाण; तस पद पद्म सेवन थकी, लहीए अविचल ठाण.
माता.१
माता.२
स्तवन माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति; मारुं मन लोभापुंजी, के मारुं चित्त-चोराणुं जी. करुणा-नागर करुणा-सागर, काया-कंचन-वान; धोरी-लंछन पाउले कांई,धनुष पांचसें मान. त्रिगडे बेसी धर्म कहंता, सुणे पर्षदा बार; । योजन गामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार. ऊर्वशी रूडी अपसराने, रामा छे मनरंग; पाये नेपूर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ. तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुं जग-तारणहार; तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अडवडिया आधार. तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव; सुर-नर-किन्नर-वासुदेवा, करता तुज पद सेव. 'श्री सिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद; कीर्ति करे माणेक मुनि ताहरी, टालो भव-भय फंद
माता.३
माता.४
माता.५
माता.६
स्तुति आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया; मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया. जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया; केवल सिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया.१।
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अर्हन्त-मजितं विश्व-कमलाकर-भास्करम्. अम्लान-केवलादर्श-संक्रान्त-जगतं स्तुवे..४.
श्री अजीतनाथ भगवान च्यवन : वैशाख सुद १३
(अयोध्या) जन्म : माघ शुक्ला ८
(अयोध्या) दीक्षा : माघ शुक्ला ९
(अयोध्या-विनीतानगरी) केवलज्ञान : पौष शुक्ला ११
(अयोध्या) निर्वाण : चैत्र शुक्ला ५
(सम्मेतशिखर)
२ | १ ४ | ३ | ५ | १ | ४ | २ | ३ | ५
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श्री अजितनाथ भगवान
चैत्यवंदन
अजित अजित पद आपता, भव्यजीवने जेह; पुरुषार्थने भाखता, हेतु मुख्य छे तेह.. जड- परिणामी यत्नथी, जड साथे छे बन्ध; शुद्धात्मिक परिणामना, पुरुषार्थे नहि बन्ध. पुरुषार्थ शिरोमणि ए, सहजयोग शिरदार; शुद्धातम उपयोग छे, अजित निर्धार.
२
स्तवन प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदशुं, प्रभु पाखे क्षण एके मन न सुहाय जो; ध्याननी ताली रे लागी नेहशुं, जलद घटा जिम शिव सुत वाहन दाय जो. नेह घेलुं मन मारूं रे प्रभु अलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुज जो; मारे तो आधार रे साहिब रावलो, अंतरगतनी प्रभु आगल कहुं गुंज जो. साहेब ते साचो रे जगमां जाणीए, सेवकनां जे सहजे सुधारे काज जो; एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, बिरुद तमारुं तारण तरण जहाज जो. तारकता तुज मांहे रे श्रवणे सांभली, ते भणी हुं आव्यो छं दीनदयाल जो; तुज करुणानी लहेरे रे मुज कारज सरे, शुं घणुं कहीए जाण आगल कृपाल जो. प्रीत ४. करुणा दृष्टि कीधी रे सेवक उपरे, भव भव भावट भांगी भक्ति प्रसंग जो; मन वांछित फलीयां रे तुज आलंबने, कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो.
प्रीत. ३.
प्रीत. १.
प्रीत. २.
प्रीत. ५.
स्तुति
विजया सुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणंदो, शीतलताए चंदो, धीरताए गिरींदो; मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरिंदो लहो परमाणंदो, सेवतां सुख कंदो. १
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विश्व भव्य-जनाराम-कुल्या-तुल्या जयन्ति ताः. देशना-समये वाचः, श्रीसंभव-जगत्पतेः.. ५
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श्री संभवनाथ भगवान च्यवन : फाल्गुन शुक्ला ८
(श्रावस्ती) जन्म मार्गशीर्ष शुक्ला १४
(श्रावस्ती) दीक्षा : मार्गशीर्ष शुक्ला १५
(श्रावस्ती) केवलज्ञान : कार्तीक कृष्णा ५
(श्रावस्ती) निर्वाण चैत्र शुक्ला ५
(सम्मेतशिखर)
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श्री संभवनाथ भगवान
चैत्यवंदन संभवजिनने सेवतां, संभवती निज ऋद्धि; क्षायिक नव लब्धि मळे, थती आत्मनी शुद्धि घातीकर्मना नाशथी, अर्हन पदवी पाम्या; आधि व्याधि उपाधिने, तुज ध्यानारा वाम्या. आतमा ते परमातमा ए, व्यक्तिभावे करवा; संभवजिन उपयोगथी, क्षण क्षण दिलमां स्मरवा
सभव०१
संभव०२
स्तवन संभव जिनवर विनति, अवधारो गुणज्ञाता रे; खामी नहीं मुज खिजमते, कदीय होशो फळदाता रे. कर जोडी ऊभो रहुं, रात दिवस तुम ध्याने रे; जो मनमां आणो नहि, तो शुं कहीए छानो रे.. खोट खजाने को नहीं, दीजीए वांछित दानो रे; करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानो रे. काळ लब्धि मुज मति गणो, भाव लब्धि तुम हाथे रे; लडथडतुं पण गजबच्चुं, गाजे गयवर साथे रे. देशो तो तुम ही भलुं, बीजा तो नवि जाचुं रे; वाचक यश कहे सांईशुं, फळशे ए मुज साचुं रे.
संभव०३
संभव०४
संभव०५
स्तुति संभव सुखदाता, जेह जगमां विख्याता, षट् जीवना त्राता, आपता सुखशाता; माता ने भ्राता, केवलज्ञान ज्ञाता, दुःख दोहग वाता, जास नामे पलाता.
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च्यवन
जन्म
दीक्षा
अनेकान्त-मताम्भोधि-समुल्लासन-चन्द्रमाः. दद्यादमन्द-मानन्दं, भगवा- नभिनन्दनः .. ६.
श्री अभिनंदन स्वामी
: वैशाख शुक्ला ४ (अयोध्या)
: माघ शुक्ला २ (अयोध्या)
: माघ शुक्ला १२ (अयोध्या)
केवलज्ञान : पौष शुक्ला १४ (अयोध्या)
निर्वाण
: वैशाख शुक्ला ८ (सम्मेतशिखर)
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श्री अभिनंदनस्वामि भगवान
चैत्यवंदन नंदन संवर रायना, चोथा अभिनंदन, कपि लंछन वंदन करो, भवदुःख निकंदन. सिद्धारथा जस मावडी, सिद्धारथ जिन ताय, साडा त्रणशें धनुषमान, सुंदर जस काय. विनीतावासी वंदीए ए, आयु लख पचास, पूरव तस पद पद्मने, नमतां शिवपुर वास
स्तवन श्री अभिनंदनस्वामी हमारा अभिनंदन स्वामि हमारा, प्रभु भव दुःख भंजनहारा; ये दुनिया दुःख की धारा, प्रभु इनसे करो निस्तारा. अभि.१ हुंकुमति कुटिल भरमायो, दुरनीति करी दुःख पायो; अब शरण लीयो है तारो, मजे भवजल पार उतारो..। अभि .२ प्रभु शीख हैये नवि धारी, दुर्गतिमां दुःख लीयो भारी; इन कर्मो की गति न्यारी, करे बेर बेर खुवारी... अभि.३ तुमे करुणावंत कहावो, जगतारक बिरुद धरावो, मेरी अरजीनो एक दावो, इन दुःख से क्युं न छुडावो..अभि.४ मे विरथा जनम गुमायो, नहीं तन धन स्नेह निवार्यो; अब पारस प्रसंग पामी, नहीं वीरविजय कुं खामी..... अभि.५
स्तुति
आत्मानंद प्रगट करी अभिनंदे जेह, अभिनंदन छे आतमा गुणपर्याय गेह; आतम अभिनंदन थतो अभिनंदन ध्याई,ध्यान समाधि एकता लीनता पद पाई.१
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धुसत्किरीट-शाणाग्रो-त्तेजिताघ्रि-नखावलिः. भगवान सुमतिस्वामी, तनोत्व-भिमतानि वा..७.
श्री समतिनाथ भगवान च्यवन : श्रावण शुक्ला २
(अयोध्या) जन्म -: वैशाख शक्ला ८
(अयोध्या) दीक्षा P: वैशाख शुक्ला ९
(अयोध्या) केवलज्ञान : चैत्र शुक्ला ११
(अयोध्या) निर्वाण : चैत्र शुक्ला ९
(सम्मेतशिखर)
| १ | २|३| ५ | ४
२ १३ | ५ | ४ | १३ | २५४ | ३ | १२ | ५ | ४ २ ३ | १ | ५ | ४
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श्री सुमतिनाथ भगवान
चैत्यवंदन सुमतिनाथ सुहंकरूं, कोसल्ला जस नयरी, मेघराय मंगला तणो, नंदन जितवयरी. क्रौंच लंछन जिनराजियो, त्रणशें धनुषनी देह, चाळीश लाख पूरवतणुं, आयु अति गुणगेह. सुमति गुणे करी जे भर्या ए, तर्या संसार अगाध तस पदपद्म सेवा थकी, लहो सुख अव्याबाध.
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सोभागी०१
सोभागी०२
स्तवन सुमतिनाथ गुणशुं मिलीजी, वाधे मुज मन प्रीति, तेल बिंदु जिम विस्तरेजी, जलमांहे भली रीति, सोभागी जिन शुं लाग्यो अविहड रंग सज्जनशुं जे प्रीतडीजी, छानी ते न रखाय; परिमल कस्तुरी तणोजी, महीमांहे महकाय. आंगळीए नवि मेरु ढंकाये, छाबडीए रवि तेज; अंजलीमां जिम गंग न माये, मुज मन तिम प्रभु हेज. हुओ छीपे नहीं अधर अरुण जिम, खातां पान सुरंग; पीवत भर भर प्रभु गुण प्याला, तिम मुज प्रेम अभंग. ढांकी ईक्षु पराळशुंजी, न रहे लही विस्तार; 'वाचक यश' कहे प्रभु तणोजी, तिम मुज प्रेम प्रकार.
सोभागी०३
सोभागी०४
सोभागी०५
6 स्तुति सन्मति धारे दुर्मति, त्यागी जे नरनारी,सुमति प्रभु भक्तो खरा, नीतिरीति धारी; सुमति ग्रही शुद्ध भावथी, आत्मभावे रमंता,निश्चयनय सुमति प्रभु, आपोआप नमंता. १
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च्यवन
जन्म
दीक्षा
पद्मप्रभ-प्रभोर्देह-भासः पुष्णन्तु वः श्रियम्. अन्तरङ्गारि-मथने, कोपाटोपादि-वारुणाः..८.
श्री पद्मप्रभ स्वामी
: माघ कृष्णा ६ (कौशाम्बी)
: कार्तिक कृष्णा १२ (कौशाम्बी)
: कार्तिक कृष्णा १३ (कौशाम्बी)
केवलज्ञान : चैत्र शुक्ला १५ (कौशाम्बी)
निर्वाण
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: मार्गशीर्ष कृष्णा ११ (सम्मेतशिखर)
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श्री पद्मप्रभस्वामि भगवान
चैत्यवंदन
नवधा भक्तिथी खरी, पद्मप्रभुनी सेवा; सेवामां मेवा रह्या, आप बने जिनदेवा. नवधा भक्तिमां प्रभु, प्रगटपणे परखाता, आठ कर्म पडदा हठे, स्वयं प्रभु समजाता. पद्मप्रभुने ध्यावतां ए, पूर्ण समाधि थाय; हृदय पद्ममां प्रकटता, आत्मप्रभुजी जणाय.
स्तवन
पद्म प्रभु प्राण से प्यारा, छुडावो कर्म की धारा. कर्म-फंद तोडवा धोरी, प्रभुजी से अरज है मोरी. लघु वय एक थे जीया, मुक्ति में वास तुम किया. न जानी पीड थे मोरी, प्रभु अब खेंच ले दोरी. विषय सुख मानी मोरे मन में, गयो सब काल गफलत में. नरक दु:ख वेदना भारी, निकलवा ना रही बारी. परवश दीनता कीनी, पाप की पोट सिर लीनी. भक्ति नहीं जाणी तुम केरी, रह्यो निश दिन दुःख घेरी. इण विध विनती मोरी, करूं में दोय कर जोरी. आतम आनंद मुज दीजो, वीर नुं काम सब कीजो.
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पद्म.१.
पद्म.२.
पद्म.३.
पद्म.४.
पद्म.५.
स्तुति
पद्मप्रभुने देखतां देखवानुं न बाकी, पद्मप्रभुने ध्यावतां बने आतम साखी; पद्मप्रभुमय थई जातां, कोई कर्म न लागे. देह छतां मुक्ति मळे, जीत डंको वागे. १
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GINGINEERINGhanाजासारखा
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श्रीसुषार्थ जिनेन्द्राय, महेन्द्र-महिता ये. नमश्चतुर्वर्ण-सङ्घ-गगनाभोग-भास्वते..९.
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श्री सुपार्श्वनाथ भगवान च्यवन : भाद्रपद कृष्णा १२
(बनारस) जन्म : ज्येष्ठ शुक्ला १२
(बनारस) दीक्षा : ज्येष्ठ शुक्ला १३
(बनारस) केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा ३
(बनारस) निर्वाण : फाल्गुन कृष्णा ७
(सम्मेतशिखर)
| ५ | १ | २ | ४
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श्री सुपार्श्वनाथ भगवान
चैत्यवंदन
सुपार्श्वनाथ छे सातमा, तीर्थंकर जिनराजा; पासे प्रभु सुपार्श्व तो, आतम जगनो राजा. आतममां प्रभु पास छे, बाहिर मूर्खा शोधे; अंतरमां प्रभु ध्यानथी, ज्ञानी भक्तो बोधे. द्रव्यभावथी वंदीए ए, ध्याईजे प्रभु पास; एकवार पाम्या पछी, टळे नहीं विश्वास.
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२
३
स्तवन
अहा सुंदर शी छबी तारी रे, श्री सुपार्श्व जिणंद मनोहारी.... तुज चोत्रिस अतिशय छाजे रे, गुण पांत्रीश वाणी ए गाजे रे, तुज अद्भुत कांति सारी रे....
प्रभु आंखडी कामणगारी, अति हर्षने उपजावनारी
संसारने छेदनकारी रे...
प्रभु मायामां मनडु लाग्युं, मारुं भवनुं दुखडु भांग्युं रे, हुं भक्ति करुं नित्य ताहरी रे....
हुं विषय रसमांही राच्यो, आठे मदमांही माच्यो रे प्रभु आव्यो शरण ल्यो उगारी रे....
तुज पदकज सेवा पामी, विजय गुलाब सवि दुख वामी रे, मणीविजयने आनंद भारी रे....
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स्तुति
सुपास जिन वाणी, सांभळे जेह प्राणी, हृदये पहेंचाणी, ते तर्या भव्य प्राणी; पांत्रीश गुण खाणी, सूत्रमां जे गुंथाणी, षट् द्रव्यशुं जाणी, कर्म पीले ज्युं घाणी.
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चन्द्रप्रभ-प्रभोश्चन्द्र-मरीचि-निचयोज्ज्वला. मूर्तिमूर्त्त-सितध्यान-निर्मितेव श्रियेस्तु वः..१०.
च्यवन
श्री चन्द्रप्रभ स्वामी : चैत्र कृष्णा ५
(चंद्रपुरी) जन्म
- पौष कृष्णा १२
(चंद्रपुरी) दीक्षा पौष कृष्णा १३
(चंद्रपुरी) केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा ७
(चंद्रपुरी) निर्वाण भाद्रपद कृष्णा ७
(सम्मेतशिखर)
|३| २ | ५ | १ | ४
२ | ५ | ३ | १ | ४ ५। २ | ३ | १
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श्री चंद्रप्रभस्वामि भगवान
चैत्यवंदन अनंत चंद्रनी ज्योतिथी, अनंत ज्ञानथी ज्योत; चंद्रप्रभु प्रणमुं स्तवं, करता जग उद्योत 'असंख्य चंद्रो भानुओ, इन्द्रो जेने ध्यायः परब्रह्म चंद्रप्रभु, जगमां सत्य सुहाय. शुद्धप्रेमथी वंदतां ए, असंख्यचंद्रनो नाथ, 'बुद्धिसागर आतमा, टाळे पुद्गल साथ.
स्तवन 'देखण दे रे सखि मने देखण दे, चन्द्रप्रभु मुखचंद उपशम रसनो कंद सखि०, सेवे सुरनर इंद गत कलिमल दुःख दंद, सखि मुने देखण दे। सुहम निगोदे न देखियो सखि०, बादर अतिहि विशेष। पुढवी आउ न पेखियो सखि०, तेउ वाउ न लेश वनस्पति अति घण दीहा सखि०, दीठो नहींय दीदार बि-ति-चउरिदि जललिहा सखि०, गतसन्नि पण धार सुर-तिरि-निरय निवासमां सखि०, मनुज अनारज साथ अपज्जत्ता प्रतिभासमां सखि०, चतुर न चढीयो हाथ एम अनेक थल जाणिये सखि०, दरिसण विणु जिनदेव। आगमथी मति आणीये सखि०, कीजे निर्मल सेव। निर्मल साधु भगति लही सखि०, योग-अवंचक होय किरिया-अवंचक तिम सही सखि०, फळ-अवंचक जोय प्रेरक अवसर जिनवरु सखि०, मोहनीय क्षय थाय कामितपूरक सुरतरु सखि०, आनंदघन प्रभुपाय
सखि० सखि० सखि०१ सखि० सखि०२ सखि० सखि०३ सखि० सखि०४ सखि० सखि०५ सखि सखि०६ सखि० सखि०७
स्तुति चंद्रप्रभु विभु उपदेशे, जैनधर्म ते साचो; नय सापेक्षाए खरो, तेमां भव्यो राचो आत्मज्ञान ने ध्यानथी, करो आत्मनी शुद्धि, शुद्धातम चंद्रप्रभु, थातां आनंद ऋद्धि. १
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करामलकवद्विश्वं, कलयन केवल-श्रिया. अचिन्त्य-माहात्म्य-निधिः, सुविधिर्बोधयेस्तु वः..११.
जन्म
श्री सुविधिनाथ भगवान च्यवन : फाल्गुन कृष्णा ९
(काकंदी) : मार्गशीर्ष कृष्णा ५
(काकंदी) दीक्षा : मार्गशीर्ष कृष्णा ६
(काकंदी) केवलज्ञान : कार्तिक शुक्ला ३
(काकंदी) निर्वाण : मार्गशीर्ष कृष्णा ६
(सम्मेतशिखर)
२१४५३ १/४ | २५३
२४ १५३
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श्री सुविधिनाथ भगवान
चैत्यवंदन
सुविधिनाथ सुविधि दिये, आत्मशुद्धि हेत; श्रावक साधु धर्म बे, तेना सहु संकेत. द्रव्य-भाव व्यवहारने, निश्चय सुविधि बेश; जैनधर्मनी जाणतां, करतां रहे न क्लेश. शुद्धातम परिणाममां ए, सर्व सुविधि समाय; आतम सुविधिनाथ थै, चिदानंदमय थाय..
स्तवन
में कीनो नहीं, तुम बिन ओरशुं राग.
दिन दिन वान चढत गुन तेरो, ज्युं कंचन परभाग. ओरन में हैं कषाय की कलिमा, सो क्युं सेवा लाग. राजहंस तुं मान सरोवर, और अशुचि रुचि काग. विषय भुजंगम गरुड तु कहिये, और विषय विषनाग. और देव जल छिल्लर सरिखे, तुं तो समुद्र अथाग. तुं सुरतरु जग वंछित पूरण, और तो सूके साग. तुं पुरुषोत्तम तुं ही निरंजन, तुं शंकर वडभाग. तुं ब्रह्मा तुं बुद्ध महाबल, तुं ही ज देव वीतराग. सुविधिनाथ तुम गुन फुलनको, मेरो दिल है बाग. जस कहे भ्रमर रसिक होइ तामें, लीजे भक्ति पराग.
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नरदेव भाव देवो, जेहनी सारे सेवो, जेह देवाधिदेवो, सार जगमां ज्युं मेवो; जोतां जग एहवो, देव दीठो न तेहवो, 'सुविधि' जिन जेहवो, मोक्ष दे ततखेवो.
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सत्त्वानां परमानंद - कन्दोभेद - नवाम्बुदः. स्याद्वादामृत-नि:स्यन्दी, शीतलः पातु वो जिनः..१२
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श्री शीतलनाथ भगवान च्यवन : वैशाख कृष्णा ६
(भदिलपुर) जन्म : माघ कृष्णा १२
(भदिलपुर) दीक्षा : माघ कृष्णा १२
(भदिलपुर) केवलज्ञान : पौष कष्णा १४
(भदिलपुर) निर्वाण : वैशाख कृष्णा २
(सम्मेतशिखर)
| २ | १ | ५ | ४ | ३ |
१ | ५ | २ | ४ | ३ ५ | १२ | ४ | ३
२ | ५ | १ | ४ | ३ | ५ | २ | १ | ४ | ३|
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श्री शीतलनाथ भगवान
चैत्यवंदन नंदा दृढरथ नंदनो, शीतल शीतलनाथ; राजा भद्दिलपुर तणो, चलवे शिवपुर साथ. लाख पूरवनुं आउखु, नेवू धनुष प्रमाण; काया माया टालीने, लह्या पंचम नाण. 'श्रीवत्स लंछन सुंदरुं ए, पद पर्दो रहे जास; ते जिननी सेवा थकी, लहिये लील विलास.
स्तवन शीतलजिन! मोहे प्यारा साहिबा! शीतलजिन! मोहे प्यारा. भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिउ के जिउ हमारा...। ज्योति शुं ज्योत मिलत जब ध्यावे, होवत नहि तब न्यारा, बांधी मुठी खुले भव माया, मिटे महाभ्रम भारा. तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा, तुमही नजीक नजीक है सबहि, ऋद्धि अनंत अपारा विषय लगन की अगन बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा, भई मगनता तुम गुण रस की, कुण कंचन कुण दारा... शीतलता गुण होड करत तुम, चंदन कांही बिचारा? नाम ही तुमचा ताप हरत है, वाकुं घसत घसारा... करहु कष्ट जन बहुत हमारे, नाम तिहारो आधारा, जस कहे जनम-मरण भय भांगो, तुम नामे भवपारा...
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स्तुति शीतल प्रभु शीतल करे, भजे शीतलभावे; शम शीतलता धारतां, सहुं संताप जावे; रागद्वेष निवारीने आप, शीतल थावो; आतमने शीतल करो, सत्य निश्चय लावो. १
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भव - रोगात - जन्तूना - मगदंकार - दर्शन:. निःश्रेयस-श्रीरमणः, श्रेयांस: श्रेयसेस्तु वः..१३.
श्री श्रेयांसनाथ भगवान च्यवन : ज्येष्ठ कृष्णा ६
(सिंहपुरी) जन्म : फाल्गुन कृष्णा १२
(सिंहपुरी) दीक्षा : फाल्गुन कृष्णा १३
(सिंहपुरी) केवलज्ञान : माघ कृष्णा ३
(सिंहपुरी) निर्वाण : श्रावण कृष्णा ३
(सम्मेतशिखर)
४ | १ ५ | २ | ३ १ | ५ | ४ | २ ३
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श्री श्रेयांसनाथ भगवान
चैत्यवंदन
सर्व भाव श्रेयो वर्या, श्री श्रेयांस जिनंद; आत्मशीतलता धारीने, टाळ्या मोहना फंद. उपशम क्षयोपशम अने, क्षायीक भावे जेह; सत्य श्रेयने पामतो, स्वयं श्रेयांस ज तेह. श्री श्रेयांस प्रभु समो ए निज आतमने करवा; वंदो ध्यावो भविजना, धरो न जडनी परवा.
स्तवन
श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी, आतमरामी नामी रे; अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुगति गति गामी रे. सयल संसारी इन्द्रियरामी, मुनिगण आतमरामी रे; मुख्यपणे जे आतमरामी, ते केवळ निःकामी रे. निज स्वरूप जे किरिया साधे, तेह अध्यातम लहिये रे; जे किरिया करी चउगति साधे, ते न अध्यातम कहिये रे. नाम अध्यातम ठवण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम छंडो रे; भाव अध्यातम निज गुण साधे, तो तेहशुं रढ मंडो रे. शब्द अध्यातम अर्थ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे; शब्द अध्यातम भजना जाणी, हान ग्रहण मति धरजो रे. अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाण लबासी रे; वस्तुगते जे वस्तु प्रकाशे, 'आनंदघन' मतवासी रे.
२
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श्री० २
श्री० ३
श्री० ४
श्री० ५
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स्तुति
विष्णु जस मात, जेहना विष्णु तात; प्रभुना अवदात, तीन भुवने विख्यात; सुरपति संघात, जास निकटे आयात; करी कर्मनो घात, पामीया मोक्ष शात. १
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विश्वोपकारकी - भूत - तीर्थकृत्कर्म - निर्मितिः. सुरासुर-नरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः..१४.
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श्री वासुपूज्य स्वामी च्यवन : ज्येष्ठ शुक्ला ६
(चंपापुरी) जन्म फाल्गुन कृष्णा १४
(चंपापुरी) दीक्षा फाल्गुन कृष्णा ३०
(चंपापुरी) केवलज्ञान : माघ शुक्ला २
(चंपापुरी) निर्वाण : आषाढ़ शुक्ला १४
(चंपापुरी)
| २ | ४ | ५ | १ | ३ |
४ | २ | ५ | १ ३ २ | ५ | ४ | १ | ३ ५ | २ | ४ | १ ४ | ५ | २ | १ | ३
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श्री वासुपूज्यस्वामि भगवान
चैत्यवंदन वासव वंदित वासुपूज्य, चंपापुरी ठाम; वसुपूज्य कुल चंद्रमा, माता जया नाम. महिष लंछन जिम बारमा, सित्तेर धनुष प्रमाण; काया आयु वरस वली, बहोंतेर लाख वखाण. संघ चतुर्विध थापीने ए, जिन उत्तम महाराय; तस मुख पद्म वचन सुणी, परमानंदी थाय.
३
स्तवन स्वामी! तुमे कांई कामण कीर्छ, चित्तडु अमाकं चोरी लीधुं; साहिबा वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य जिणंदा. अमे पण तुम शुं कामण करशुं, भक्ते ग्रही मनघरमां धरशुं, साहिबा०१ मनघरमां धरीया घर शोभा, देखत नित रहे थिर शोभा; मन वैकुंठ अकुंठित भगते, योगी भाखे अनुभव युक्ते.
साहिबा०२ क्लेश वासित मन संसार, क्लेश रहित मन ते भवपार; जो विशुद्ध मन घर तुमे आया, प्रभु तो अमे नवनिधि-ऋद्धि पाया. साहिबा० ३। सात राज अलगा जई बेठा, पण भगते अम मनमा पेठा; अलगाने वलग्या जे रहे, ते भाणा खडखड दुःख सहे. साहिबा०४ ध्याता ध्येय ध्यान गुण एके, भेद छेद करशुं हवे टेके; क्षीरनीर परे तुम शुं मिळशें, 'वाचक यश' कहे हेजे हलशुं. साहिबा०५
स्तुति आतम वासुपूज्य छे, करो आविर्भावे, निश्चय नयदृष्टिबळे, ब्रह्मभावना दावे; वासुपूज्यना ध्यानथी, वासुपूज्यजी थावो, ध्यान समाधि एकता, लीनताथी सुहावो. १
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विमल-स्वामिनो वाचः, कतक-क्षोद-सोदरा:. जयन्ति त्रिजगच्चेतो-जल-नैर्मल्य-हेतवः..१५.
श्री विमलनाथ भगवान च्यवन : वैशाख शुक्ला १२
(कंपिलपुर) जन्म : माघ शुक्ला ३
(कंपिलपुर) दीक्षा
: माघ शुक्ला ४
(कंपिलपुर) केवलज्ञान : पौषध शुक्ला ६
(कंपिलपुर) निर्वाण : आषाढ़ कृष्णा ७
(सम्मेतशिखर)
३ | १४ | ५२ | १ | ४ | ३ | ५ | २
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| ३ | ४ | १ | ५ २ | ४ | ३ | १ | ५ | २ |
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श्री विमलनाथ भगवान
चैत्यवंदन
आत्मिक सिद्धि आठ जे, आठ वसुना भोगी; आत्मवसु प्रगटावीने, निर्मल थया अयोगी. करी विमल निज आतमा, थया विमल जिनराज; प्रभु पेठे निज विमलता, करवी ए छे काज.. आत्मविमलता जे करे ए, स्वयं विमल ते थाय; विमल प्रभु आलंबने, विमलपणुं प्रगटाय.
स्तवन
मुज अवगुण मत देखो.
राग दशाथी तुं रहे न्यारो, हुं मन रागे वालुं.
द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुं चालुं. मोह लेश फरस्यो नहि तुंही, मोह लगन मुज प्यारी.
तुं अकलंकी कलंकित हुं तो, ए पण रहेणी न्यारी. तुं हि निरागी भाव-पद साधे, हुं आशा-संग विलुद्धो. तुं निश्चल हुं चल, तुं सूद्धो हुं आचरणे ऊंधो.
तुज स्वभावथी अवला मारा, चरित्र सकल जग जाण्या. एहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्या. प्रेम नवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे. कान्ति कहे भवरान उतरतां, तो वेला नवि लागे.
१
२
३
प्रभुजी.
प्रभु.१.
प्रभु.२.
प्रभु.३.
प्रभु.४.
प्रभु.५.
स्तुति
विमल जिन जुहारो, पाप संताप वारो, श्यामांब मल्हारो, विश्व कीर्ति विफारो, योजन विस्तारो, जास वाणी प्रसारो, गुणगण आधारो, पुण्यना ए प्रकारो.
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स्वयम्भू - रमण - स्पर्द्धि - करुणारस - वारिणा. अनन्त-जिदनन्तां वः, प्रयच्छतु सुख-श्रियम्..१६
श्री अनंतनाथ भगवान च्यवन : श्रावण कृष्णा ७
(अयोध्या) जन्म : वैशाख कृष्णा १३
(अयोध्या) दीक्षा वैशाख कृष्णा १४
(अयोध्या) केवलज्ञान : वैशाख कृष्णा १४
(अयोध्या) निर्वाण चैत्र शुक्ला ५
(सम्मेतशिखर)
| १ ३ | ५ | ४ | २
३ | १ ५ | ४ | २ | १ | ५ ३ | ४ | २ | ५ | १ ३ | ४ | २ |३| ५१४२
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श्री अनंतनाथ भगवान
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चैत्यवंदन विमलात्मा करीने प्रभु, थया अनंत जिनेश; अनंत ज्योतिर्मय विभु, नहीं राग ने द्वेष. अनंत जीवन ज्ञानमय, आनंद सहज स्वभावे; द्रव्य क्षेत्र ने कालथी, भावथी सत्य सुहावे. अनंत रत्नत्रयी वर्या ए, अनंत जिनवर देव; बुद्धिसागर भावथी. करवी भक्ति सेव
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धार.१.
धार.२.
धार.३.
स्तवन धार तलवारनी सोहिली दोहिली, चउदमा जिन तणी चरण सेवा धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा. एक कहे सेविये विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे. फल अनेकांत किरिया करी बापडा, रडवडे चार गतिमांहि लेखे. गच्छना भेद बहु नयण निहालतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे. उदर भरणादि निज काज करतां थकां, मोह नडिया कलिकाल राजे. वचन निरपेक्ष व्यवहार झूठो कह्यो, वचन सापेक्ष व्यवहार साचो. वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फल, सांभली आदरी कांइ राचो. देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे, किम रहे शुद्ध श्रद्धा न आणो. शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया करी,छार पर लींपणुंतेह जाणो. पाप नहिं कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जग सूत्र सरिखो. सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेहनुं शुद्ध चारित्र परिखो. एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमां नित्य ध्यावे... ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत आनंदघन राज पावे.
धार.४.
धार.५.
धार.६.
धार.७.
स्तुति अनंत आतम द्रव्यथी, क्षेत्र काल ने भावे; जाणे अंत न थाय छे, आठ कर्म अभावे; - द्रव्य क्षेत्र काल भावथी, अनंत कर्मनो आवे; अनंतनाथ जणावता, ब्रह्म अंत न थावे. १
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च्यवन
जन्म
श्री धर्मनाथ भगवान
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कल्पद्रुम-सधर्माण-मिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम्. चतुर्धा धर्म-देष्टारं, धर्मनाथ-मुपास्महे..१७.
: वैशाख शुक्ला ६ (रत्नपुरी)
: माघ शुक्ला ३ (रत्नपुरी)
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दीक्षा
: माघ शुक्ला १३ (रत्नपुरी)
केवलज्ञान : पौष शुक्ला १५ (रत्नपुरी)
निर्वाण
: ज्येष्ठ शुक्ला ५ (सम्मेतशिखर)
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३ २
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३ २
२
३
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श्री धर्मनाथ भगवान
चैत्यवंदन भानुनंदन धर्मनाथ, सुव्रता भली मात; वज्र लंछन वज्री नमे, त्रण भुवन विख्यात. १ दश लाख वरसनु आउखुं, वपु धनुष पिस्तालीस; रत्नपुरीनो राजीयो, जगमां जास जगीस. २ धर्म मारग जिनवर कहे ए, उत्तम जन आधार; । तिणे तुज पाद पद्मतणी, सेवा करुं निरधार. ३।
स्तवन धर्म जिनेश्वर! गाउं रंगशुं, भंग म पडशो हो प्रीत जिनेश्वर! बीजो मनमंदिर आणुं नहि, ए अम कुलवट रीत जिनेश्वर! धर्म०१ धर्म धर्म करतो जग सहु फिरे, धर्म न जाणे हो मर्म जिने० धर्म जिनेश्वर चरण ग्रयां पछी, कोई न बांधे हो कर्म जिने धर्म०२ प्रवचन अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान जिने । हृदय नयण निहाळे जगधणी, महिमा मेरु समान जिने० दोडत दोडत दोडत दोडियो, जेती मननी रे दोड जिने । प्रेम प्रतीत विचारो ढूंकडी,गुरुगम लेजो रे जोड जिने । धर्म०४ एक पखी किम प्रीति परवडे, उभय मिल्या हुए संध जिने । हं रागी हुं मोहे फंदियो, तुं नीरागी निरबंध जिने । परम निधान प्रगट मुख आगळे, जगत उल्लंघी हो जाय जिने० ज्योति विना जुओ जगदीशनी, अंधोअंध पलाय जिने० धर्म०६ निर्मळ गुण मणि रोहण भूधरा, मुनिजन मानस हंस जिने० धन्य ते नगरी, धन्य वेला घडी, मात पिता कुलवंश जिने० धर्म० ७ मनमधुकर वर कर जोडी कहे, पदकज निकट निवास जिने । घननामी आनंदघन सांभळो, ए सेवक अरदास जिने० । धर्म०८
स्तुति धरम धमर धोरी, कर्मना पास तोरी; केवल श्री जोरी, जेह चोरे न चोरी; दर्शन मद छोरी, जाय भाग्या सटोरी; नमे सुरनर कोरी, ते वरे सिद्धि गोरी
धर्म०३
धर्म०५
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וציוד יוד וידאו ואודיו אור וירא ליווי
सुधासोदर-वाग्ज्योत्स्ना-निर्मलीकृत-दिङ्मुख:. मृगलक्ष्मा तमःशान्त्य, शान्तिनाथ-जिनोस्तु वः..१८.
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| ४ | ३ | ५ | १ | २ |
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श्री शांतिनाथ भगवान च्यवन : भाद्रपद कृष्णा ७
(हस्तिनापुर) जन्म : ज्येष्ठ कृष्णा १३
(हस्तिनापुर) दीक्षा : ज्येष्ठ कृष्णा १४
(हस्तिनापुर) केवलज्ञान : पौष शुक्ला ९
(हस्तिनापुर) निर्वाण : ज्येष्ठ कृष्णा १३
(सम्मेतशिखर)
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३ | ४ | १ | २ |
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श्री शांतिनाथ भगवान
चैत्यवंदन
दर्शन ज्ञान चारित्रथी, साची शांति थावे; शांतिनाथ शांति वर्या, रत्नत्रयी स्वभावे. तिरोभाव निज शांतिनो, अविर्भाव जे थाय; शुद्धातम शांति प्रभु, स्वयं मुक्तिपद पाय. बाह्य शांतिनो अंत छे ए, आतम शांति अनंत ; अनुभवे जे आत्ममां, प्रभुपद पामे संत.
स्तवन
हम मगन भये प्रभु ध्यान में,
बिसर गई दुविधा तन-मन की, अचिरा सुत गुणगान में. हरिहर ब्रह्मा पुरन्दर की ऋद्धि, आवत नहीं कोउ मान में; चिदानन्द की मोज मची है, समता रस के पान में. इतने दिन तुम नाहीं पिछान्यो, मेरो जन्म गमायो अजान में; अब तो अधिकारी होई बैठे, प्रभु गुण अखय खजान में. गयी दीनता अब सब ही हमारी, प्रभु तुझ समकित दान में; प्रभु गुण अनुभव रस के आगे, आवत नहीं कोई मान में. जिनहीं पाया तिनही छिपाया, न कहे कोउ के कान में; ताली लागी जब अनुभव की, तब समझे कोइ सान में. प्रभु गुण अनुभव चन्द्रहास ज्यूं, सो तो न रहे म्यान में; वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लिओ हे मेदान में.
१
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स्तुति
शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे; सुमित्रने घेर पारणुं, भव पार उतारे. विचरंता अवनीतले, तप उग्र विहारे; ज्ञान ध्यान एक तानथी, तिर्यंचने तारे. १
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श्रीकुन्थुनाथो भगवान्, सनाथो-तिशयर्द्धिभिः. सुरासुर-नृनाथाना-मेकनाथोस्तु वः श्रिये..१९.
जन्म
श्री कुंथुनाथ भगवान च्यवन : श्रावण कृष्णा ९
(हस्तिनापुर) वैशाख कृष्णा १४
(हस्तिनापुर) दीक्षा
वैशाख कृष्णा ५
(हस्तिनापुर) केवलज्ञान चैत्र शुक्ला ३
(हस्तिनापुर) निर्वाण : वैशाख कृष्णा १
(सम्मेतशिखर)
| २ | ३ | ४ | ५ | १ | ३ | २ | ४ ५ १ | २ | ४ | ३ ५ १ | ४ | २ | ३ | ५ | १ | ३ | ४ | २ | ५ | १
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श्री कुंथुनाथ भगवान
चैत्यवंदन शुद्ध स्वभावे शांतिने, पाम्या कुंथु जिनंद; कुंथुनाथ निज आतमा, समजे नहि मतिमन्द मननी गति कुंठित थतां, वैकुंठ मुक्ति पासे; क्रोधादिक दूरे करी, वर्ते हर्षोल्लासे.. बाहिर दृष्टि त्यागथी, आतमदृष्टियोगे; कुंथुनाथ ध्यावो सदा, निजना निज उपयोगे.
स्तवन मनडुं किम ही न बाजे हो कुंथुजिन, मनडुं किम ही न बाजे; जिम जिम जतन करीए राखुं, तिम तिम अळगुं भाजे.
हो.कुंथु०१ रजनी वासर वसती उज्जड, गयण पायाले जाय; साप खाय ने मुखड़े थोथु, एह उखाणो न्याय हो.
हो.कुंथु०२ मुक्तितणा अभिलाषी तपीया, ज्ञान ने ध्यान अभ्यासे; वयरीडु कांई एह चिंते, नांखे अवळे पासे हो.
हो .कुंथु०३ आगम आगमधरने हाथे, नावे किण विध आंकू किहां कणे जो हठ करी हटकुं, तो व्याल तणी परे वांकुं हो;
हो.कुंथु०४ जो ठग कहुं तो ठगतो न देखु, शाहुकार पण नाहि; सर्व माहे ने सहुथी अलगुं, ए अचरिज मनमांहि हो.
हो कुंथु०५ जे जे कहुं ते कान न धारे, आप मते रहे कालो; सुरनर पंडित जन समजावे, समजे न मारो सालो हो.
हो .कुंथु०६ में जाण्यु ए लिंग नपुंसक, सकल मरदने ठेले; बीजी वाते समरथ छे नर, एहने कोई न झेले हो.
हो.कुंथु०७ मन साध्युं तेणे सघ© साध्यु, एह वात नहीं खोटी; एम कहे साध्यं ते नवि मार्नु, एहि ज वात छे मोटी.
हो.कुंथु०८ मनडुं दुराराध्य तें वश आण्यु, ते आगमथी मति आणुं, आनंदघन प्रभु! माहरु आणो, तो साचुं करी जाणुं.
हो कुंथु०९
स्तुति कुंथुनाथमय थै ने भव्यो, कुंथुनाथ आराधोजी; आतमरूपे थै ने आतम, सिद्धिपदने साधोजी; आसक्तिवण कर्मो करतां, आतम नहीं बंधायजी; करे क्रिया पण अक्रिय पोते, उपयोगे प्रभु थायजी.
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अरनाथस्तु भगवाँ-श्चतुर्थार-नभोरविः. चतुर्थ-पुरुषार्थ-श्रीविलासं वितनोतु वः..२०.
५५
श्री अरनाथ भगवान च्यवन : फाल्गुन शुक्ला २
(हस्तिनापुर) जन्म : मार्गशीर्ष शुक्ला १०
(हस्तिनापुर) दीक्षा : मार्गशीर्ष शुक्ला ११
(हस्तिनापुर) केवलज्ञान : कार्तिक शुक्ला १२
(हस्तिनापुर) निर्वाण मार्गशीर्ष शुक्ला १०
(सम्मेतशिखर)
२३ | ३ | २ ५४ २ ५ ५। २ ३४ ३५२४
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श्री अरनाथ भगवान
चैत्यवंदन
रागद्वेषारि हणी, थया अरिहंत जेह. अर जिनेश्वर वंदतां, कर्म रहे नहीं रेह. आतमना उपयोगथी, रागद्वेष न होय; सर्वकार्य करतां थकां, कर्म बंध नहीं जोय. आत्मज्ञान प्रकाशथी ए, मिथ्यातम पलटाय; बुद्धिसागर आत्ममां, सहु शक्ति प्रगटाय.
स्तवन
अरनाथकुं सदा मोरी वंदना रे, मेरे नाथकुं सदा मोरी वंदना. जग उपकारी घन ज्यों वरसे,
वाणी शीतल चंदना.
रूपे रंभा राणी श्री देवी,
भूप सुदर्शन नंदना.
भाव भगति शुं अहनिश सेवे,
दुरित हरे भव फंदना.
छ खंड साधी भीति द्वेधा कीधी,
दुर्जय शत्रु निकंदना.
'न्यायसागर' प्रभु सेवा- मेवा, मागे परमानंदना.
१
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अर० १
अर० २
अर० ३
अर० ४
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स्तुति
कर्म करो पण कर्मथी, रहो निर्लेप भव्यो, जिन थातां परमार्थनां, थातां कर्तव्यो; जैन दशामां कर्मने, करो स्वाधिकारे, अर जिनवर एम भाखता, शक्ति प्रगटे छे त्यारे. १
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च्यवन
सुरासुर - नराधीश - मयूर - नव - वारिदम्. कर्मदून्मूलने हस्ति-मल्लं मल्लि-मभिष्टुमः..२१.
जन्म
: फाल्गुन शुक्ला ४ (मिथिला)
: मार्गशीर्ष शुक्ला ११ (मिथिला)
दीक्षा
: मार्गशीर्ष शुक्ला ११ (मिथिला)
केवलज्ञान : मार्गशीर्ष शुक्ला ११ (मिथिला)
निर्वाण
: फाल्गुन शुक्ला १२ (सम्मेतशिखर)
श्री मल्लिनाथ भगवान
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श्री मल्लिनाथ भगवान
चैत्यवंदन मल्ल बनी भवरणविषे, जीत्या राग ने द्वेष ; मल्लि प्रभु तेथी थया, टाळ्या सर्वे क्लेश. | रागद्वेष न जेहने, परमातम ते जाणः । देह छतां वैदेही ते, केवली छे भगवान्. मल्लिनाथ प्रभु ध्याईने ए, भावमल्लता पामी; । कर्म करो प्रारब्धथी, बनी अंतर निष्कामी.
स्तवन मल्लिजिन सहज स्वरूपर्नु, वर्णन कहो केम थायरे; वैखरी वर्णन | करे, कंइ परामांही परखायरे.
मल्लि०१ परमब्रह्म पुरुषोत्तम, अनंगी अनाशी सदायरे; । विमल परम वितरागता, अक्षय अचल महारायरे,
मल्लि०२ निर्भयदेशना वासी जे, अजर अमर गुणखाणरे; 'सहज स्वतंत्र आनन्दमां, भोगवो शिव निर्वाणरे.
मल्लि०३ चेतन असंख्यप्रदेशमां, वीर्य अनंत प्रदेशरे; छती शुं सार्मथ्य भावथी, वापरो समये निःक्लेशरे.
मल्लि०४ त्रिभुवनमुकुट शिरोमणि, परम महोदय धर्मरे; 'जगगुरु परमबंधु विभु, सादि-अनन्त सुशर्मरे.
मल्लि०५ अलख अगोचर दिनमणि, अविचल पुरुष पुराणरे; सत्य एक देव! तुं जगधणी, धारुं हुं शिर तुज आणरे.
मल्लि०६ 'मल्लिजिन शुद्ध आलंबने, सेवक जिनपणुं पायरे; बुद्धिसागर रस रंगमां, भेटिया चिद्घनरायरे. ।
मल्लि०७
स्तुति मल्लिनाथ घट जेहना, सर्व मल्लने जीत; आतममल्ल जे जाणतो, शुद्धधर्म प्रतीते, हारे न जगमां कोईथी, कोई तेने न मारे; मोहशत्रुने मारतो, तेने देव छे व्हारे. १।
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जगन्महा-मोहनिद्रा-प्रत्यूष-समयोपमम. मुनिसुव्रत-नाथस्य, देशना-वचनं स्तुमः..२२.
श्री मुनिसुव्रत स्वामी च्यवन : श्रावण शुक्ला १५
(राजगृही) जन्म
: ज्येष्ठ कृष्णा ८
(राजगृही) दीक्षा : फाल्गुन शुक्ला १२
(राजगृही) केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा १२
(राजगृही) निर्वाण : ज्येष्ठ कृष्णा ९
(सम्मेतशिखर)
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श्री मुनिसुव्रतस्वामि भगवान
चैत्यवंदन मुनिसुव्रत जिन वीशमा, कच्छपनुं लंछन, पद्मा माता जेहनी सुमित्र नृप नंदन. राजगृही नयरी धणी, वीश धनुष शरीर, कर्म निकाचित रेणु व्रज, उद्दाम समीर. त्रीस हजार वरसतणुं ए, पाली आयु उदार, पद्मविजय कहे शिव लह्या, शाश्वत सुख निरधार.
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स्तवन मुनिसुव्रत जिन वंदतां, अति उल्लसित तन मन थाय रे, वदन अनोपम निरखतां, मारां भव भवनां दुःख जाय रे; मारां भव भवनां दुःख जाय, जगतगुरु जागतो सुखकंद रे; सुखकंद अमंद आनंद, परमगुरु दीपतो सुखकंद रे. निशदिन सुतां जागतां, हैडाथी न रहे दूर रे।। जब उपकार संभारीए, तव उपजे आनंदपूर रे. प्रभु उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न माय रे; गुण गुण अनुबंधी हुआ, ते तो अक्षयभाव कहाय रे. अक्षय पद दीए प्रेम जे, प्रभुनुं ते अनुभवरूप रे; । अक्षर-स्वर-गोचर नहि, ए तो अकल अमाय अरूप रे. अक्षर थोडा गुण घणा, सज्जनना ते न लिखाय रे; वाचकयश कहे प्रेमथी, पण मनमाहे परखाय रे.
स्तुति मुनिसुव्रत नामे, जे भवि चित्त कामे ; सवि संपत्ति पामे, स्वर्गनां सुख जामे; दुर्गति दुःख वामे, नवि पडे मोह भामे; सवि कर्म विरामे, जई वसे सिद्धि धामे.
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בוליוודה והרזיה ודאי ובוודאי וראנו ודאי וודאי
घनघनलबाधित
लुठन्तो नमतां मूर्ध्नि, निर्मलीकार-कारणम्. वारिप्लवा इव नमः, पान्तु पाद-नखांशवः..२३.
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श्री नमिनाथ स्वामी च्यवन : अश्विन शुक्ला १५
(मिथिला) जन्म : श्रावण कृष्णा ८
(मिथिला) दीक्षा : आषाढ़ कृष्णा ९
(मिथिला) केवलज्ञान : मार्गशीर्ष शुक्ला ११
(मिथिला) निर्वाण : वैशाख कृष्णा १०
(सम्मेतशिखर)
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श्री नमिनाथ भगवान
चैत्यवंदन आतममां प्रणमी प्रभु, थया नमि जिनराज; नमवू उपशम क्षायिके, क्षयोपशमे सुखकाज. नम्या न जे ते भव भम्या, नमी लह्या गुणवृंद; नमि प्रभुजीए भाखियुं, सेवा छे सुख कंद. | आतममां प्रणमी रही ए, स्वयं नमी घट जोवे; ध्यानसमाधि योगथी, आत्मशक्ति नहीं खोवे. |
स्तवन 'श्री नमिनाथने चरणे नमतां, मनगमतां सुख लहीए रे; भव-जंगलमा भमतां रहीए, कर्म निकाचित दहीए रे. श्री. १ समकित शिवपुरमांहि पहोंचाडे, समकित धरम आधार रे; श्री जिनवरनी पूजा करीए, ए समकितनो सार रे. श्री. २ जे समकितथी होय उपरांठा, तेना सुख जाये नाठा रे; । जे कहे जिनपूजा नवि कीजे, तेहगें नाम न लीजे रे. श्री. ३ वप्राराणीनो सुत पूजो, जिम संसारे न धूजो रे; भवजलतारक कष्ट निवारक, नहि कोई एहवो दूजो रे. श्री. ४ कीर्तिविजय उवज्झायनो सेवक, विनय कहे प्रभु सेवो रे; । त्रण तत्त्व मनमांहि धारी, वंदो अरिहंतदेवो रे. श्री.
स्तुति नमि जिनेश्वर सेवा भक्ति, जगनी सेवा भक्तिजी, निज आतमनी सेवा भक्ति, एक स्वरूपे शक्तिजी; नाम रूपथी भिन्न निजातम, धारी प्रभु जे ध्यावेजी, प्रारब्धे कर्मनो भोगी, तो पण भोगी न थावेजी.१।
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यदुवंश - समुद्रेन्दुः, कर्मकक्ष - हुताशनः. अरिष्ट-नेमि-भगवान्, भूयाद्वो-रिष्ट-नाशनः..२४
श्री नेमिनाथ स्वामी च्यवन : कार्तिक कृष्णा १२
(शौरीपुर) जन्म : श्रावण शुक्ला ५
(शौरीपुर) दीक्षा : श्रावण शुक्ला ६
(शौरीपुर) केवलज्ञान : आश्विन कृष्णा ०))
(गिरनार-सहस्राम्रवन) निर्वाण : आषाढ़ शुक्ला ८
(गिरनार)
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श्री नेमिनाथ भगवान
चैत्यवंदन नेमिनाथ बावीसमा, शिवादेवी माय; । 'समुद्र विजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय. दश धनुषनी देहडी, आयु वर्ष हजार; शंख लंछन धर स्वामीजी, तजी राजुल नार. 'सौरीपुरी नयरी भली ए, ब्रह्मचारी भगवान; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठान
स्तवन निरख्यो नेमि जिणंदने अरिहंताजी, राजीमती को त्याग भगवंताजी, ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो अरि., अनुक्रमे थया वीतराग भग. चामर चक्र सिंहासन अरि., पादपीठ संयुक्त भग.. छत्र चाले आकाशमां अरि., देव दुंदुभि वर उत्त भग. सहस जोयण ध्वज सोहतो अरि., प्रभु आगल चालंत भग., कनक कमल नव उपरे अरि., विचरे पाय ठवंत भग. चार मुखे दीये देशना अरि.,त्रण गढ झाक-झमाल भग.; 'केश रोम श्मश्रु नखा अरि., वाधे नहीं कोइ काल भग. कांटा पण ऊंधा होय अरि.,पंच विषय अनुकूल भग., षट् ऋतु समकाले फले अरि., वायु नहिं प्रतिकूल भग. पाणी सुगंध सुर कुसुमनी अरि., वृष्टि होय सुरसाल भग.; पंखी दीये सुप्रदक्षिणा अरि., वृक्ष नमे असराल भग. जिन उत्तम पद पद्मनी अरि., सेव करे सुर कोडी भग.; चार निकायना जघन्यथी अरि., चैत्य वृक्ष तेम जोडी भग.
स्तुति द्रव्य भावथी नेमि सरखा, बळिया जैनो थावेजी; जैनधर्म प्रसरावे जगमां, शुभपरिणामना दावेजी; शुभ ते धर्म प्रशस्य कषायो, करतां पुण्यने बांधेजी; शुद्ध परिणामे वर्ततां, मुक्ति क्षणमां साधेजी.
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च्यवन
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श्री पार्श्वनाथ भगवान
कमठे धरणेन्द्रे च, स्वोचितं कर्म कुर्वति. प्रभुस्तुल्य-मनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेस्तु वः .. २५.
: चैत्र कृष्णा ४ (काशी-बनारस)
: पौष कृष्णा १० (काशी-बनारस)
: पौष कृष्णा ११ (काशी-बनारस)
दीक्षा
केवलज्ञान : चैत्र कृष्णा ४ (भेलुपुर-काशी)
निर्वाण
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: श्रावण शुक्ला ८ (सम्मेतशिखर)
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श्री पार्श्वनाथ भगवान
चैत्यवंदन जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन-स्वामी; अष्ट-कर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामी प्रभु नामे आनंद-कंद, सुख संपत्ति लहीये; प्रभु नामे भव भव तणां, पातक सवि दहीये ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी ए, जपीए पारस नाम: विष अमृत थइ परिणमे, लहीए अविचल ठाम
स्तवन आई बसो भगवान मेरे मन आई, में निर्गुणी इतना मांगत हुं, होवे मेरो कल्याण मेरे मन की तुम सब जाणो, क्या करूं आपसे ब्यान; विश्वहितैषी दीन दयालु, रखीये मुजपर ध्यान. भोगाधीन होवत मन मेलु, बिसरी तुम गुणगान; वहांसे छुडाओ हृदये आयी, अरिभंजनक भगवान आप कृपासे तर गये केई, रह गया मैं दर्दवान । निगाह रखके निर्मल कीजीए, धनवंतरी भगवान. श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, दीजिए तुम गुणगान इनही सहारे चिद्धन सेवा, बनूंगा आप समान.
स्तुति शंखेश्वर पासजी पूजीए, नर भवनो लाहो लीजिए. मन वांछित पूरण सुर-तरु, जय वामासुत अलवसरु.
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श्रीमते वीरनाथाय, सनाथायाद्भुत-श्रिया. महानन्द-सरोराज-मरालायार्हते नमः..२६.
श्री महावीरस्वामी च्यवन - आषाढ़ शुक्ला ६ (ब्रह्माणकुंड) जन्म - चैत्र शुक्ला १३ (क्षत्रियकुंड) दीक्षा - मार्गशीर्ष कृष्णा १० (क्षत्रियकुंड) केवलज्ञान - वैशाख शुक्ला १० (ऋजुवालुका नदी का तट) निर्वाण - कार्तिक (अश्विन) कृष्णा ३० (पावापुरी)
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श्री महावीरस्वामि भगवान
. चैत्यवंदन प्रभु महावीर जगधणी, परमेश्वर जिनराज; श्रद्धा भक्ति ज्ञानथी, सार्या सेवक काज. काल स्वभाव ने नियति, कर्म ने उद्यम जाण; " पंच कारणे कार्यनी, सिद्धि कथी प्रमाण. २ पुरुषार्थ तेमां कह्यो, कार्य सिद्धि करनार; शुद्धात्मा महावीर जिन, वंदु वार हजार. महावीरने ध्यावतां ए, महावीर आपोआप; 'बुद्धिसागर वीरनी, साची अंतर छाप. |
स्तवन व्हाला त्रिशलानंदन, वीरजिनेश्वर तारजो रे; जाणी बाल तमारो, विनतडी अवधारजो रे।
व्हाला०१ रमतगमतमां जीवन गाळु, कामक्रोधथी मनडुं बाळु प्यारा! करूणामृत सिंचनथी, ताप निवारजो रे
व्हाला०२ ज्ञान विना हृदये अंधारूं, करशे तुम विण कोण आजवाळु?; ' सुखकर! कामक्रोध विषयादिक, अरि संहारजो रे व्हाला०३ भक्ति करूं भावे शिर साटे, वळवा मोक्ष नगरनी वाटे; । बाळक कहीने मुजने, तुज अंके बेसाडजो रे
व्हाला०४ प्रेम विना लुखी छे भक्ति, गुण पर्याय विना जेम व्यक्ति; प्रभुजी दीनदयाळु, अशुभ वृत्ति संहारजो रे
व्हाला०५ शरण एक तारूं छे साचुं, निशदिन तुज भक्तिथी राचुं । प्रेमे बुद्धिसागर, बाळकने उगारजो रे
व्हाला०६
स्तुति वीर प्रभुमय जीवन धारो, सर्व जाति शक्तिथी; दोषो टाळी सद्गुण लेशो, बनशो महावीर व्यक्तिथी; स्वप्ने पण हिम्मत नहि हारो, कार्योनी सिद्धि करो; वीर प्रभु उपदेशे कांई, अशक्य नहि निश्चय धरो.
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________________ श्री सम्मेतशिखरजी महातीर्थ -