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श्री संभवनाथ भगवान
चैत्यवंदन संभवजिनने सेवतां, संभवती निज ऋद्धि; क्षायिक नव लब्धि मळे, थती आत्मनी शुद्धि घातीकर्मना नाशथी, अर्हन पदवी पाम्या; आधि व्याधि उपाधिने, तुज ध्यानारा वाम्या. आतमा ते परमातमा ए, व्यक्तिभावे करवा; संभवजिन उपयोगथी, क्षण क्षण दिलमां स्मरवा
सभव०१
संभव०२
स्तवन संभव जिनवर विनति, अवधारो गुणज्ञाता रे; खामी नहीं मुज खिजमते, कदीय होशो फळदाता रे. कर जोडी ऊभो रहुं, रात दिवस तुम ध्याने रे; जो मनमां आणो नहि, तो शुं कहीए छानो रे.. खोट खजाने को नहीं, दीजीए वांछित दानो रे; करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानो रे. काळ लब्धि मुज मति गणो, भाव लब्धि तुम हाथे रे; लडथडतुं पण गजबच्चुं, गाजे गयवर साथे रे. देशो तो तुम ही भलुं, बीजा तो नवि जाचुं रे; वाचक यश कहे सांईशुं, फळशे ए मुज साचुं रे.
संभव०३
संभव०४
संभव०५
स्तुति संभव सुखदाता, जेह जगमां विख्याता, षट् जीवना त्राता, आपता सुखशाता; माता ने भ्राता, केवलज्ञान ज्ञाता, दुःख दोहग वाता, जास नामे पलाता.
* ONAKOROKHORODAMAKORANGAROKARANORUM
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