Book Title: Yashovijayji Swahast Likhit Kruti Sangraha
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
Catalog link: https://jainqq.org/explore/009888/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “અહો શ્રુતજ્ઞાન” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૩૪ ન્યાયવિશારદ્ ઉપા. યશોવિજયજી સ્વહસ્તલિખિત કૃતિ સંગ્રહ :દ્રવ્ય સહાયક : પૂજ્ય આચાર્ય શ્રી નીતિસૂરિજી સમુદાયના પૂજ્ય સાધ્વિજી શ્રી વિશ્વપૂર્ણાશ્રીજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી લલિતવિશ્વ આરાધના ભવન, સાબરમતી, અમદાવાદના આરાધક શ્રાવિકાઓની જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી : સંયોજક : શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-380005 (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543 ઈ.સ. ૨૦૧૨ સંવત ૨૦૬૮ Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અહો શ્રુતજ્ઞાનમ્ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર - સંવત ૨૦૬૫ (ઈ. ૨૦૦૯) – સેટ નં-૧ પ્રાયઃ જીર્ણ અપ્રાપ્ય પુસ્તકોને સ્કેન કરાવીને ડી.વી.ડી. બનાવી તેની યાદી. या पुस्तको वेबसाइट परथी पए। डाउनलोड झरी शडाशे. પુસ્તકનું નામ કર્તા-ટીકાકાર-સંપાદક ક્રમાંક શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર સંયોજક – શાહ બાબુલાલ સરેમલ શાહ વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન हीराउन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमहावाह - 04. (मो.) ९४२५५८५८०४ (ख) २२१३२५४3 ( भेल) ahoshrut.bs@gmail.com 020 021 022 023 024 025 001 002 003 004 005 006 007 008 शिल्प स्मृति वास्तु विद्यायाम् शिल्परत्नम् भाग-१ 009 010 शिल्परत्नम् भाग-२ प्रासादतिलक 011 012 काश्यशिल्पम् 013 प्रासादमञ्जरी 014 राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र 015 शिल्पदीपक 016 017 018 019 श्री नंदीसूत्र अवचूरी | श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी श्री अर्हद्गीता-भगवद्गीता श्री अर्हच्चूडामणि सारसटीकः श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं श्री मानतुङ्गशास्त्रम् अपराजित पृच्छा वास्तुसार दीपार्णव उत्तरार्ध જિનપ્રાસાદ માર્તણ્ડ जैन ग्रंथावली હીરકલશ જૈન જ્યોતિષ न्यायप्रवेशः भाग - १ | दीपार्णव पूर्वार्ध अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग-१ अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग-२ प्राकृत व्याकरण भाषांतर सह पू. विक्रमसूरिजी म.सा. पू. जिनदासगणि चूर्णीकार पू. मेघविजयजी गणि म.सा. पू. भद्रबाहुस्वामी म.सा. पू. पद्मसागरजी गणि म.सा. पू. मानतुंगविजयजी म. सा. श्री बी. भट्टाचार्य | श्री नंदलाल चुनिलाल सोमपुरा श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री | श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री विनायक गणेश आपटे श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री नारायण भारती गोंसाई श्री गंगाधरजी प्रणीत श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री प्रभाशंकर ओघडभाई શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फ्रन्स શ્રી હિમ્મતરામ મહાશંકર જાની | श्री आनंदशंकर बी. ध्रुव श्री प्रभाशंकर ओघडभाई पू. मुनिचंद्रसूरिजी म. सा. श्री एच. आर. कापडीआ श्री बेचरदास जीवराज दोशी પૃષ્ઠ 238 286 84 18 48 54 810 850 322 280 162 302 156 352 120 88 110 498 502 454 226 640 452 500 454 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188 214 414 192 824 288 520 578 278 2521 324 302 038. 196 190 26 | તત્ત્વોપર્ણસિંહઃ श्री जयराशी भट्ट, बी. भट्टाचार्य | 027 | વિતવાલા | श्री सुदर्शनाचार्य शास्त्री 028 જીરાવ श्री प्रभाशंकर ओघडभाई | 02 | વેવાસ્તુ પ્રમાર श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 030 शिल्परत्नाकर श्री नर्मदाशंकर शास्त्री 031 प्रासाद मंडन पं. भगवानदास जैन 032 | શ્રી સિદ્ધહેમ વૃત્તિ વૃદન્યાસ અધ્યાય- પૂ. ભવિષ્યસૂરિની મ.સા. 033 | શ્રી સિદ્ધહેમ વૃહદ્રવૃત્તિ વૃદન્યાસ અધ્યાય-ર પૂ. ભાવસૂરિની મ.સા. श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-३ 034 | (8). પૂ. ભાવસૂરિની મ.સા. | श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-3 (२) 035 | (૩) પૂ. ભાવળ્યસૂરિ મ.સા. 036 | શ્રી સિદ્ધહેમ વૃ૬૬વૃત્તિ વૃદન્યાસ મધ્યાય-૧ | પૂ. ભવિષ્યસૂરિની મ.સા. | 037 વાસ્તુનિઘંટુ પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા તિલકમશ્નરી ભાગ-૧ | પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 039 | તિલકમશ્નરી ભાગ-૨ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 040 તિલકમશ્નરી ભાગ-૩ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 041 સખસન્ધાન મહાકાવ્યમ પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી 042 સપ્તભડીમિમાંસા પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી 043 ન્યાયાવતાર સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ 044 વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક | શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 04s | સામાન્યનિર્યુક્તિ ગુઢાર્થતત્કાલીક શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 046 | સપ્તભીનયપ્રદીપ બાલબોધિની વિવૃત્તિ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટકા શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી 048 | નયોપદેશ ભાગ-૧ તરકિણીતરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 049 નયોપદેશ ભાગ-૨ તરષિણીકરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 050 ન્યાયસમુચ્ચય પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 051 સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 052 દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ પૂ. દર્શનવિજયજી 053 | બૃહદ્ ધારણા યંત્ર પૂ. દર્શનવિજયજી 054 | જ્યોતિર્મહોદય સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી 202. 480 228 _60 218 190 138 047 296 210 274 286 216 532 113 112 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર 160 164 સંયોજક – શાહ બાબુલાલ સરેમલ શાહ વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન हीशन सोसायटी, रामनार, साबरमती, महावा६-०५. (मो.) ८४२७५८५८०४ (यो) २२१३ २५४3 (5-मेल) ahoshrut.bs@gmail.com मही श्रुतज्ञानम् jथ द्धार - संवत २०५६ (. २०१०)- सेट नं-२ પ્રાયઃ જીર્ણ અપ્રાપ્ય પુસ્તકોને સ્કેન કરાવીને ડી.વી.ડી. બનાવી તેની યાદી. या पुस्ता वेबसाईट ५२थी up SIGनती री शाशे. ક્રમ પુસ્તકનું નામ ભાષા त्त-21511२-संपES પૃષ્ઠ | 055 | श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहद्न्यास अध्याय-६ सं पू. लावण्यसूरिजी म.सा. 296 056 | विविध तीर्थ कल्प पू. जिनविजयजी म.सा. 057 लारतीय श्रम संस्कृति सनेमन ४. पू. पूण्यविजयजी म.सा. 058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः श्री धर्मदत्तसरि 202 059 व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका श्री धर्मदत्तसूरि 48 0608न संगीत रागमाला श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी 306 | 061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश) श्री रसिकलाल एच. कापडीआ 322 062 | व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय |सं श्री सदर्शनाचार्य 668 063 | चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी पु. मेघविजयजी गणि 516 064 | विवेक विलास सं/. | श्री दामोदर गोविंदाचार्य 268 065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध सं पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा. 456 066 | सन्मतितत्त्वसोपानम | सं पू. लब्धिसूरिजी म.सा. 420 ઉપદેશમાલા દોઘટ્ટી ટીકા ગુર્જરીનુવાદ | गु४. पू. हेमसागरसूरिजी म.सा. 638 068 मोहराजापराजयम् | सं पू. चतुरविजयजी म.सा. 192 069 | क्रियाकोश सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया | कालिकाचार्यकथासंग्रह सं/. | श्री अंबालाल प्रेमचंद 406 071 | सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका सं. श्री वामाचरण भट्टाचार्य 072 जन्मसमुद्रजातक सं/हिं श्री भगवानदास जैन 128 073 | मेघमहोदय वर्षप्रबोध सं/हिं श्री भगवानदास जैन 532 0748 सामुदिनां यथो ४४. श्री हिम्मतराम महाशंकर जानी | 376 428 070 308 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ જૈન ચિત્ર કલ્પવ્રૂમ ભાગ-૧ જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રમ ભાગ-૨ 075 076 077 संगीत नाटय उपावली 078 ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પસ્થાપત્ય શિલ્પ ચિન્તામણિ ભાગ-૧ 079 080 बृह६ शिल्प शास्त्र भाग-१ 081 बृह६ शिल्पशास्त्र भाग - २ 082 बृह६ शिल्प शास्त्र लाग-3 083 खायुर्वेहना अनुभूत प्रयोगो लाग-१ 084 ल्याए 5125 085 विश्वलोचन कोश 086 કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 0875था रत्न झेश लाग-2 088 हस्तसञ्जीवनम હસ્તસગ્રીવનમ્ 089 090 એન્દ્રચતુર્વિંશતિકા સમ્મતિ તર્ક મહાર્ણવવતારિકા शुभ. शुभ. गुभ. शुभ. गुभ. शुभ. शुभ. ४. शुभ. गुभ. सं./हिं शुभ गुठ सं. सं. सं. श्री साराभाई नवाब श्री साराभाई नवाब श्री विद्या साराभाई नवाब श्री साराभाई नवाब श्री मनसुखलाल भुदरमल श्री जगन्नाथ अंबाराम श्री जगन्नाथ अंबाराम श्री जगन्नाथ अंबाराम पू. कान्तिसागरजी श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री श्री नंदलाल शर्मा श्री बेचरदास जीवराज दोशी श्री बेचरदास जीवराज दोशी पू. मेघविजयजीगणि पू. यशोविजयजी, पू. पुण्यविजय आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 374 238 194 192 254 260 238 260 114 910 436 336 230 322 114 560 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार पृष्ठ 272 240 254 282 118 466 342 362 134 70 हिन्दी | मुन्शाराम 316 224 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार-संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची।यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। | क्रम | पुस्तक नाम कर्ता/ टीकाकार भाषा | संपादक / प्रकाशक 91 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१ वादिदेवसूरिजी | मोतीलाल लाघाजी पुना | 92 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी | मोतीलाल लाघाजी पुना 93 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-३ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 94 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-४ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 95 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-५ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 96 | पवित्र कल्पसूत्र पुण्यविजयजी साराभाई नवाब 97 | समराङ्गण सूत्रधार भाग-१ भोजदेव | टी. गणपति शास्त्री 98 | समराङ्गण सूत्रधार भाग-२ भोजदेव | टी. गणपति शास्त्री 99 | भुवनदीपक पद्मप्रभसूरिजी सं. वेंकटेश प्रेस 100 | गाथासहस्त्री समयसुंदरजी सुखलालजी 101 | भारतीय प्राचीन लिपीमाला गौरीशंकर ओझा मुन्शीराम मनोहरराम 102 | शब्दरत्नाकर साधुसुन्दरजी सं. हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सुबोधवाणी प्रकाश न्यायविजयजी सं./गु | हेमचंद्राचार्य जैन सभा | 104 | लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर ओरीएन्ट इन्स्टीट्युट बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३ माणिक्यसागरसूरिजी आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मति तर्क प्रकरण भाग-१,२,३ | सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी 107 | सन्मति तर्क प्रकरण भाग-४,५ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण एसियाटीक सोसायटी | 109 | जैन लेख संग्रह भाग-१ पुरणचंद्र नाहर सं./हि पुरणचंद्र नाहर 110 | जैन लेख संग्रह भाग-२ पुरणचंद्र नाहर सं./हि | पुरणचंद्र नाहर 111 | जैन लेख संग्रह भाग-३ पुरणचंद्र नाहर सं./हि । पुरणचंद्र नाहर 112 | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१ कांतिविजयजी सं./हि | जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार 113 | जैन प्रतिमा लेख संग्रह दौलतसिंह लोढा | अरविन्द धामणिया | 114 | राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह विशालविजयजी सं./गु | यशोविजयजी ग्रंथमाळा 115 | प्राचिन लेख संग्रह-१ विजयधर्मसूरिजी सं./गु | यशोविजयजी ग्रंथमाळा | 116 | बीकानेर जैन लेख संग्रह अगरचंद नाहटा सं./हि | नाहटा ब्रधर्स 117 | प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१ जिनविजयजी सं./हि | जैन आत्मानंद सभा 118| प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ जिनविजयजी सं./हि | जैन आत्मानंद सभा | 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१ गिरजाशंकर शास्त्री | फार्बस गुजराती सभा 120 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२ गिरजाशंकर शास्त्री सं./गु | फार्बस गुजराती सभा | 121 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ गिरजाशंकर शास्त्री फार्बस गुजराती सभा 122 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-१ पी. पीटरसन रॉयल एशियाटीक जर्नल | 123 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-४ | पी. पीटरसन रॉयल एशियाटीक जर्नल 124 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-५ | पी. पीटरसन रॉयल एशियाटीक जर्नल | 125 | कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत इन्स्क्रीप्शन्स पी. पीटरसन भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपा. 126 | विजयदेव माहात्म्यम् जिनविजयजी जैन सत्य संशोधक 612 307 250 514 454 354 337 354 372 142 336 सं./हि 364 218 656 122 764 404 404 540 274 414 400 320 148 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक – शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543-ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेटावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद- 05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार- संवत २०६८ (ई. 2012) सेट नं.-४ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। पुस्तक नाम कर्त्ता / संपादक प्रकाशक साराभाई नवाब साराभाई नवाब साराभाई नवाब साराभाई नवाब हीरालाल हंसराज पी. पीटरसन कुंवरजी आणंदजी शील खंड ब्रह्मदेव क्रम 127 महाप्रभाविक नवस्मरण 128 जैन चित्र कल्पलता 129 जैन धर्मनो प्राचीन इतिहास भाग - २ 130 ओपरेशन इन सर्च ओफ सं. मेन्यु. भाग-६ 131 जैन गणित विचार १ २ 132 | दैवज्ञ कामधेनु (प्राचिन ज्योतिष ग्रंथ) 133 करण प्रकाश 134 | न्यायविशारद महो. यशोविजयजी स्वहस्तलिखित कृति संग्रह यशोदेवसूरिजी 135 भौगोलिक कोश- १ डाह्याभाई पीतांबरदास 136 भौगोलिक कोश-२ डाह्याभाई पीतांबरदास 137 जैन साहित्य संशोधक वर्ष १ अंक- १, २ जिनविजयजी 138 जैन साहित्य संशोधक वर्ष १ अंक-३, ४ २ 139 जैन साहित्य संशोधक वर्ष २ अंक- १, 140 जैन साहित्य संशोधक वर्ष २ अंक - ३, ४ 141 जैन साहित्य संशोधक वर्ष ३ अंक- १, 142 जैन साहित्य संशोधक वर्ष ३ अंक- ३, ४ 143 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग - १ २ 144 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-२ 145 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-३ 146 भास्वति 147 जैन सिद्धांत कौमुदी (अर्धमागधी व्याकरण) 148 | मंत्रराज गुणकल्प महोदधि 149 फक्कीका रत्नमंजूषा - १. २ 150 अनुभूत सिद्ध विशायंत्र (छ कल्प संग्रह) 151 सारावलि 152 ज्योतिष सिद्धांत संग्रह 153 ज्ञान प्रदीपिका तथा सामुद्रिक शास्त्रम् नूतन संकलन आ. चंद्रसागरसूरिजी ज्ञानभंडार - उज्जैन श्री गुजराती श्वे. मू. जैन संघ - हस्तप्रत भंडार - कलकत्ता जिनविजयजी जिनविजयजी जिनविजयजी जिनविजयजी जिनविजयजी सोमविजयजी सोमविजयजी सोमविजयजी शतानंद मारछता रत्नचंद्र स्वामी जयदयाल शर्मा कनकलाल ठाकूर मेघविजयजी कल्याण वर्धन विश्वेश्वरप्रसाद द्विवेदी रामव्यास पान्डेय हस्तप्रत सूचीपत्र हस्तप्रत सूचीपत्र भाषा गुज. गुज. गुज. अंग्रेजी गुज. सं. सं./अं. गुज. गुज. गुज. हिन्दी हिन्दी हिन्दी हिन्दी हिन्दी हिन्दी गुज. गुज. गुज. सं./हि प्रा./सं. हिन्दी सं. सं./ गुज सं. सं. सं. हिन्दी हिन्दी हीरालाल हंसराज एशियाटीक सोसायटी जैन धर्म प्रसारक सभा ब्रज. बी. दास बनारस सुधाकर द्विवेदि यशोभारती प्रकाशन गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना शाह बाबुलाल सवचंद शाह बाबुलाल सवचंद शाह बाबुलाल सवचंद एच. बी. गुप्ता एन्ड सन्स बनारस भैरोदान सेठीया जयदयाल शर्मा हरिकृष्ण निबंध महावीर ग्रंथमाळा पांडुरंग जीवाजी व्रीजभूषणदास जैन सिद्धांत भवन बनारस श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार पृष्ठ 754 84 194 171 90 310 276 69 100 136 266 244 274 168 282 182 384 376 387 174 320 286 272 142 260 232 160 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्याय विशारद न्यायाचायमहोपाध्याय । यशोविजयजी स्वहस्तलिखित कृतिसंग्रह तथा ● अन्य प्रकीर्णक संग्रह, लेखन समयः १७-१८ शताब्दी. संपादक, पू. मुनिवर श्री यशोविजयजी महाराज, वि.सं. २०१७ प्रका.यशो भारती जैन प्रकाशन समिति मु. वडोदर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अनुक्रमणिकाआदि - कमांक ग्रन्थनाम पृष्ठांक आदि पृष्ठ | अन्तिम पृष्ठ मूलप्रति क्यां छ? १ आत्मख्याति प्रकरण मुनिश्रीदयाविमलजीनो भंडार, देवसानो पाडो, अमदाबाद. प्रमेयमाला पगथीयाना उपाश्रयनो जैन ज्ञानभंडार, अमदावाद. ३ वादमाला वादमाला भापारहस्य प्रकरण नयरहस्य प्रकरण तिङन्वयोक्ति अपर पृष्ठ मुनिश्रीपुण्यविजयजी ८ गुरुत्वविनिश्चय स्वोपज्ञटीका अन्त्य भाग मुनिश्रीदयाविमलजी भंडार, देवसानो पाडो, अमदावाद, अस्पृशद्गतिवाद अपर पृष्ठ मुनिश्रीपुण्यविजयजी १० निशाभुक्ति प्रकरण मुनिश्रीदयाविमलजीनो भंडार देवसानो पाडो, अमदावाद. ११ स्याद्वादरहस्य (वीतरागस्तोत्र अष्टमप्रकाशस्य लघवृत्ति) १२ स्याद्वादरहस्य (वीतरागस्तोत्र अष्टमप्रकाशस्यबृहद्वत्ति) १३ वैराग्यरति मुनिश्रीमहेन्द्रविमलजीनो भंडार देवसानो, पाडो अमदावाद. डेलाना उपाश्रयनो भंडार, अमदावाद. मुनिश्रीपुण्यविजयजीनो संग्रह अपर पृष्ठ १४ आर्षभीयचरित्र महाकाव्य १५ आलोकहेतुतावादप्रकरणनें मंगलाचरण (षड्दर्शनसमुच्चयलिखित प्रतिना अन्तमां) namGSASSPARSACASSENGCDPASCH Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलप्रति क्यां छ? पृष्ठांक आदि पृष्ठ - अन्तिम पृष्ठ कमांक प्रन्यनाम १३-१४ सम्पूर्ण । सम्पूर्ण मुनिश्रीपुण्यविजयजीनो संग्रह १६ महो. श्रीयशोविजयजीलिखितपत्र १७ जम्बूस्वामी रास સનર મી ના १८ सम्यक्त्वचोपाई मध्य पृष्ठ महाप्रा४५६i १९ श्रद्धानजल्पपट्टक आदि पृष्ठ | अन्तिम पृष्ठ माययापना મપિ'ના પવિત્ર હસ્તા २० दशार्णभद्रराजर्षि स्वाध्याय म. २१ नयचक्र टीका मुनिश्री महेन्द्रविमलजी ज्ञानभंडार देवसानो पाडो, अमदावाद. આ સં" १५. २२ शिरोमणिग्रन्थोपरि जयरामी टीका आदि पृष्ठ | द्वितीय पृष्ठ २३ अज्ञातनामा कृतिओ मुनिधीयशोविजयजी संग्रह २४ ऐन्द्रस्तुति मुनिश्रीपुण्यविजयजी संग्रह २५ पातंजलयोग शास्त्र २६ तर्कभाषा ૬ ઉપા २७ श्रीयशोविजयजीगणिकृत ग्रन्थनामसूची २८ शाश्वतप्रासादप्रतिमामान स्तोत्र ८० २९ न्यायरत्न प्रकरण ३० न्यायसिद्धान्तमञ्जरीटीका आदि पृष्ठ अन्त्य पृष्ठ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | વિનr: // प्रतिओनो परिचय संपादकीय निवेदन ___ अने સંપા. મુનિશ્રી યશોવિજયજી સત્તરમી સદીના પૂર્વાર્ધ પછી જન્મેલા, જૈન શાસનના પરમપ્રભાવક, સમર્થ તત્વચિન્તક, અસાધારણ કેટના તાર્કિક વિદ્વાન, ન્યાયવિશારદ ન્યાયાચાર્ય મહોપાધ્યાય શ્રીમદ યશોવિજયજી મહારાજશ્રીની સ્વલિખિત હસ્તપ્રતે જેમ જેમ ઉપલબ્ધ થતી ગઈ અને જેમ જેમ એ મહાપ્રભાવક વિદ્વાન્ મહર્ષિનાં પવિત્ર હસ્તાક્ષરોનાં દર્શન થતાં ગયાં, તેમ તેમ એક વિચાર ઉદભળ્યું કે એ બહુમૂલ્ય હસ્તાક્ષરોનાં દર્શન સુલભ બનાવી શકાય તો કેવું સારું ! આ વિચારણામાંથી આ હસ્તાક્ષરોની પ્રતિકૃતિઓના સંપુટ પ્રગટ કરવાની ચીજનાને જન્મ થશે અને ઉપાધ્યાયના હાથે લખાએલી છે ડીક પ્રતિઓની પ્રતિકૃતિઓના સંપુટરૂપે એ યેજના આજે બહાર પડે છે, એ ખરેખર આનંદ અને ગૌરવના પ્રસંગ છે. એમાં યે ઉપાધ્યાયજીના પ્રત્યે સવિશેષ ગુણાનુરાગ ધરાવનાર મહાનુભાવોને તો સવિશેષ આનંદ થશે, એમાં કેઇ શક નથી. ખરેખર ! આવા મહર્ષિના પવિત્ર હસ્તાક્ષનું દર્શન-વંદન થવું, એ જીવનને એક અદભુત અને અણમોલ ૯હાવે છે. અમારા આ એક ન્હાનકડા છતાં અનોખા પ્રકારના પ્રયાસથી જૈન સાહિત્યસંપત્તિમાં એક બહુમૂલ્ય પ્રકારને ઉમેરે થશે. આ સંપુટમાં નિત પ્રકારની (ફોટો સ્ટેટ ) પ્રતિકૃતિઓ-છબીઓ આપવામાં આવી છે. ૧ ઉપાધ્યાયશ્રીજીએ રચેલા ગ્રંથની ખુદ પિતે જ લખેલી કૃતિઓ તથા ખુદ પિતે જ રચેલી, લહિયાએ અપૂર્ણ મૂકેલી અને અંતે પતે પૂરી કરેલી કૃતિઓ. | [ આ કૃતિઓ ચિત્ર નં. ૧ થી લઈને ચિત્ર નં. ૧૭ સુધીની છે. એમાં ૧૦, ૧૧ નંબર ન લેવા. ] ૨ અન્ય જૈન ગ્રંથકારે બનાવેલી, પણ સ્વહસ્તે લખેલી કૃતિઓ. [ આ કૃતિ ચિત્ર નં. ૧૮-૧૯ છે.] ૩ અન્ય રચેલી, અન્ય વ્યક્તિએ લખેલી, પરંતુ સ્વહસ્તથી પરિભાજિત, પરિવર્ધિત કે સંધિત કરેલી ( નામી-અનામી ) કૃતિઓ. [ આવી કૃતિઓ ચિત્ર નં. ૨૦-૨૧, માં છે.] ૪ મહોપાધ્યાયજીએ રચેલી પણ અન્ય લેખકે લખેલી, પણ એ પ્રતિના અંતમાં સ્વહસ્તાક્ષરીય કાદિકથી વિભૂષિત કરેલી. [ આ માટે ચિત્ર નં. ૨૨ માં - પાનું જુએ. ] પ અન્ય કર્તાની, અન્ય લેખક કે લહિયાની પણ ઉપાધ્યાયજીની માલીકીનું સૂચન કરતી. [ જુઓ ચિત્ર નં. ૨૨ ] ૬ ઉપાધ્યાયજીનાં જીવન-કવન સાથે કંઈક એતિહાસિક સબંધ ધરાવતી. [ જુઓ ચિ. નં. ૧૨ મા, ૨૨ ૬, ર૩] ૭ મહોપાધ્યાયજીના ગુરુદેવ શ્રી નવિજ્યજી મહારાજે સ્વહસ્તે લખેલી કૃતિઓ. [ જુએ ચિ. નં. ૨૪ . અને આ j ૮ અજૈન ગ્રંથ ઉપર ઉપાધ્યાયજીએ રચેલી, અને બીજાએ લખેલી ટીકાવાળી કૃતિઓ [ જુઓ ચિત્ર નં. ૨૫ ] ૯ અન્ય જૈન વિદ્વાને રચેલા ગ્રન્થ ઉપર ઉપાધ્યાયજીએ રચેલી અને ઉપાધ્યાયજીએ જ સ્વયં લખેલી એવી કૃતિઓ. | [ જૂઓ ચિત્ર નં. ૧૦, ૧૧ X ] Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧ રન્તમાં આપેલા ઐતિહાસિક મહત્વ ધરાવતા સમય (સંવત્', સ્થળ (ગામ) ના ઉ૯લે ખવાઇલ કૃતિઓ. મે | ૨. ન'. {e, ૧૭, ૧૮, ૧૯, ૨૨, ૪, ૨૪ ડ મેં આ કુતિએ પ્રગટ કરવાના ગુણ ઉદ્દેશ છે : (૧) તેઓ શ્રીના હસ્તાક્ષરનું પવિત્ર દર્શન થાય. (૨) અદ્યાવધિ વિહરતા ફર. ય કૃતિ એ કઈ કેર્ડ અને કેટલી પ્રાપ્ત થઈ છે. તેની વિપુલતાનો ખ્યાલ આવે અને (૩) કુતિએનાં આદિ-અન્તનાં મંગલાચરણ અને પ્રશસ્તિઓમાં જે કંઈ ગાંભીય. માર્મિકતા કે વિશેષતા હોય તેનું જાણું પાગ” થાય, અહિંયા જે ગંધ પણ મળે, તે તે ગ્રંથનાં અને ગત્તિ પૃઇ પ્રતિબિંબિત કરીને આપેલાં છે. દાખલા તરીકે -બરમાાતિ છા, વFTET, VTVT , ઉંવીર¢R, SEff, qવામી 17 ઈત્યાદિ. જે ગ્રન્થને આદિ ભાગ હતું, પણ ગ્રન્થ ખંડિત કે અપૂણ મલવાથી અન્તિમ ભાગ ન હતું, તેનું માત્ર આફિgrટ જ આપેલ છે, અન્તિમ નથી આપ્યું': જેમકે – gવમાન આદિ. પણ એ માં વામજ81, ઉતારવવોff, ગરગૃાાતિવા, નિરાત્રિ રળ, આવ મીયરત્ર, આ કૃતિએ અપવાદરૂપ છે. એટલે કે આ કુતિએ અપૂર્ણ કે ખંડિત હોવા છતાં તેને અન્તિમ ભાગ સકારણ આપવો પડ્યો છે. વળી જે ગ્રન્થનો આદિભાગ અન્ય લેખકનો લખેલે હોય પણ કોઈ કારણસર અન્તિમભાગ તેઓશ્રીએ જ પૂરો કર્યો હોય તેવી કૃતિ પણ આ માં આપી છે. જેમકે-રવરચિત Teતરdવનિ,NR. જે કૃતિનું માત્ર એક જ પાનું મળ્યુ હતું. તેને યદ્યપિ આ દિ ભાગ તે આપવાના હોય જ. પણ સકારણ તેના પાછલા ભાગને – પૃદથી સ બ ધીને આપ્યો છે. આપેલી પ્રતિકૃતિમામાં. કોઈ કોઈ એવી પણ છે કે, જેના અક્ષરે ખુદ ઉપાધ્યાયશ્રી જીના હશે કે કેમ ? એ સદેહ થઈ આવે. અરે ! એક જ કુતિમાં પરિચિત અને અપરિચિત, એમ બન્ને પ્રકારના અક્ષરે છે. તો શું તે કૃતિને અમુક ભાગ અન્યના હાથે પણ લખાયેલ હશે ખરે? અથવા કુલનના કે અન્ય ઉતાવળનાં કારણે અક્ષરે માં ભિન્નતા આવી હશે ખરી ? અને નિર્ણય તે તેનું ઊંડુ માર્મિક સંશોધન અને સંતુલન કરવા માં આવે ત્યારે જ સમજાય. આ બાબતમાં તદવિ કંઈક પ્રયત્ન કરે તેવી વિનમ્ર વિનંતી. | પ્રતિકૃતિએનાં મથાળે કૃતિનું નામ, કર્તાનું નામ, આપ્યું છે, તેમજ પ્રથમ પત્રદર્શક અrfag૭, છેલ્લાં પાનાનું સૂચક અતિ વૃrs, અને પહેલાં પાનાની પાછળની બાજુ માટે અ૫૨98, એવા શબ્દો પણ, મથાળે કે નીચે મૂક્યા છે. આ સંપુટના ૨૫ પૃષટ્કામાં ૩૦ ગ્રન્થ-પત્રાદિ વગેરેની લગભગ ૫૦ થી અધિક કૃતિઓ આપવામાં આવી છે. એ કૃતિઓનાં નામે મૂલ કુતિ કયાં છે ? ઇત્યાદિ હકીકત સંપુટની ચૂકેલી સૂચીમાં આપી છે, તેમાંથી જોઈ લેવી. | ઉપાધ્યાયજી ભગવાનના હસ્તાક્ષની અતિવિરલ અને અમૂલ્ય જે હસ્તપ્રતા મલી છે, તેની માલી કી રાજનગર અમદાવાદના દેવસાપાડા, | ડહેલા અને પગથીઆ (સવેગી)નાં નામથી ઓળાતા ઉપાશ્રયેના જ્ઞાનભંડારની, તેમજ પ્રખર સંશોધક પૂ. મુનિવર શ્રીપુણ્યવિજયજી મહારાજશ્રીની છે. આ બધી પ્રતિએ મેળવી આપવાનું સૌભાગ્ય ઉપાધ્યાયજી પ્રત્યે અસાધારણુ ભક્તિભાવ ધરાવનાર અને મારા કાર્ય પ્રત્યે હ'મેશા સહાનુભૂતિ રાખનાર સદાનંદી, ઉદારતા, પ્રખર સંશોધક, આગમપ્રભાકર વિદ્વદવય મિત્રમુનિવર પૂજ્યશ્રીપુણ્યવિજયજી મહારાજના ફાળે જાય છે.. આટલું પ્રાસ્તાવિક વિવેચન કર્યા બાદ સંપુટગત પ્રતિકૃતિઓ જેના ઉપરથી લેવામાં આવી છે, તે મૂલ પ્રતિઓને પરિચય આપણે જોઈએ. અહી” આ પરિચય બાહ્ય દેહને મર્યાદિત રીતે જ આપવાને છે. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिओनो विशिष्ट परिचय { stતાના FTIકો સ્વહસ્તાક્ષરી મૂલપ્રતિ એાના કા ગાળ ૧૬, ૧૭ અને ૧૮ સકાના છે અને તે અમદાવાદી સાહેબખાની ' નામથી ઓળખાતા - કાગળે બહુધા જાડા વાપર્યા છે. કાગળની આજની પરિભાષામાં ૩પ થી ૪પ રતલી વજનના કહી શકાય. કર આ કાગળાને તમે બેવડા વાળી દો તો એકા એક બટકશે નહિ કે તૂટશે નહિ. ૨૫૦-૩૦૦ વરસ જેટલા જ ના થવા છતાં સંડવા નથી પામ્યા એજ એની વિશેષતા છે. જ્યારે આજના મુદ્રણને કાગળ પ૦-૬૦ વરસે જરૂર “ સડી જવાને, કારણ કે આજની કાગળ બનાવવાની પદ્ધતિ જ એવી છે. એ ખરું છે કે આજના કાગળની સફાઇ અને ઉજજવળતા પ્રાચીન કાગળમાં નથી હોતી. - વર્ષો પુરાણું થવા થી પલટેલા રંગને કારણે તેની કાયાએ પીળાશપણું ધારણ કર્યું છે. २ स्याहो લખવામાં માત્ર કાળી સ્યાહીને જ ઉપયોગ થયો છે. સ્યાહી ખૂબ જ કાળી છે. ઉતાવળના કારણે સિદ્ધહસ્ત લહી આ ની જેમ શાહીને પ્રવાહ એક સરખે ન રહેતાં આ છે પાતળા થયા કરે છે. ક્યાંક ક્યાંક પાછો ઘટ્ટ બનતો જાય છે. તેઓશ્રીને ડરાવીને કે ચીપીને લખવાની ફુરસદ હતી જ ક્યાં ? કલમ આ પણ જૂની અને જાણીતી અસલી બરૂ-કાંઠા ની જ વાપરેલી છે. લખતા કલમ જાડી રહી, પાતલી રહી કે કૂચ બની ગઈ, એની રાહ જોઈ નથી કે પરવા કરી નથી. અને ખરેખરા વિદ્વાને માટે તે લખાણની સુઘડતા કરતાં તેને ધારાબદ્ધ અંકિત કરવાનું કાર્ય વધુ મહત્વનું હોય છે. એ આથી સમજી શકાય છે. ४ आकार કૃતિઓ આકાર માં લંબચોરસ પ્રકારની જ મલી છે અને મોટે ભાગે લગભગ સરખી સાઈઝના માપવાળી છે. ५ माप પહોળાઈમાં ૩ ઇંચથી લઈને ૪ ઇંચ સુધીની અને લંબાઈમાં ૯ ઇંચથી લઈને ૧૦ ઇંચ સુધીની છે. ६ स्थिति સ્વહસ્તાક્ષરી પ્રતાની સ્થિતિ એકંદરે સંગીન કહી શકાય. કાગળ કે સ્યાહીના દોષને કારણે કે પ્રતિ જીણું પ્રાયઃ બની જાય તે સ્વાભાવિક છે. ७ पंक्तिसंख्या સામાન્ય રીતે પાના દીઠ ૧૪ થી માંડીને રર સુધીની પંકિતએ લખાએલી છે, ક્યારેક તો ર૯ સુધી પહોંચી ગયાનું જોવાય છે. ૮ વંન્નિષોની જar સામાન્ય રીતે પંક્તિઓની લંબાઈ...ઈચથી લઈને...સુધીની છે. અને પહોળાઈ... દોરાથી લઈને......સુધીની છે. ९ पंक्तिसौष्ठव વગર રેખાએ લખેલી હોવા છતાં બધા એકધારી સીધી લીટીઓ લખાએલી છે. કયાંક ક્યાંક હળવા વળાંક લે છે. અને જરાક સર્પાકાર કે ધનુષાકાર પણ બની જાય છે. १० लिपि લિપિ મહારાષ્ટ્ર દેવનાગરી છે. ११ भाषा પ્રાકૃત, સંસ્કૃત, પ્રાચીન ગુજરાતી અને હીદી છે. १२ विषय દશન, ન્યાય, તક, વ્યાકરણ, આચાર, વેગ, સ્યાદવાદ, ધર્મશાસ્ત્ર, તત્વજ્ઞાન, ચરિત્ર, રાસ, કાવ્ય, વાદવિવાદ, ચર્ચા, સ્તુતિ આદિ છે. १३ पर्णता-अपूर्णता આ સંપુટમાં આપેલી કૃતિઓમાં તેર કૃતિઓ પૂર્ણ અને સાત અપૂર્ણ છે. # માટેજ જૈન સંઘને મારી નમ્ર સૂચના છે કે છેલ્લા ૫૦ વરસમાં પાઠાંતર, પાઠભેદ, શબ્દસૂચી આદિ પરિશિષ્ટ સાથે છપાએલા તમામ પ્રથાને પ્રતાકારે કે કુલેસકેપ સાઈઝની બુકના પેશીયલ ઉ*ચી જાતના દેશી કાગળે (જેમાં તેજાબ-એસીડ ન આવતા હોય તેવાં) બનાવરાવી તેના ઉપર લડીઆઓ પાસે હસ્તલેખનથી લખાવા જોઇએ. કારણ કે ટકાઉ કાગળ પર ટકાઉ સ્યાહીથી લખાએલા સ ૨00-500 વરસ સુધી ટકી શકશે, અને પ્રજા મુદ્રિત ગળે સડી ગયા હશે ત્યારે ભાવિ પ્રજા આવી હરતલિખિત કૃતિઓ જોઇને, સાશ્રય આશીર્વાદ વરસાવશે. | [ ૫ વહન Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૦ અન્તમાં આપેલા ઐતિહાસિક મહત્વ ધરાવતા સમય (સંવત્ સ્થળ (ગામ) ના ઉલ્લેખવાળી કૃતિઓ. જએ ચિ. નં. ૧૦, ૧૭, ૧૮, ૧૯, ૨૨, ૪, ૨૪ ૬ | આ કૃતિએ પ્રગટ કરવાના ત્રણ ઉદ્દેશેા છેઃ (૧) તેઓશ્રીના હસ્તાક્ષરાનુ પવિત્ર દર્શન થાય. (૨) અદ્યાવધિ સ્વહસ્તાક્ષરીય કૃતિઓ ઇ કઇ અને કેટલી પ્રાપ્ત થઇ છે, તેની વિપુલતાને ખ્યાલ આવે અને (૩) કૃતિઓનાં આદિ-અન્તનાં મંગલાચરણા અને પ્રશસ્તિઓમાં જે કઇ ગાંભીય, માર્મિકતા કે વિશેષતા હોય તેનુ' જાણપણું થાય, અહિંયા જે ગ્ર'થ પૂર્ણ મળ્યા, તે તે ગ્રંથનાં આવિ અને અન્તિમ પૃષ્ઠો પ્રતિબિંબિત કરીને આપેલાં છે. દાખલા તરીકેડ-બ્રામસ્થાતિપ્રયા, ચાયમાા, માવચ, નવરત્સ્ય, સ્વાસ્થ, વ્રુત્તિ, ગમ્વસ્વામીરાસ ઇત્યાદિ. જે ગ્રન્થને। આદિ ભાગ હતા, પણ ગ્રન્થ ખડિત કે અપૂર્ણ મલવાથી અન્તિમ ભાગ ન હતા, તેનું માત્ર પ્રાયિવૃજ આપેલ છે, અન્તિમ નથી આપ્યું; જેમકે –પ્રમેયમાાં આદિ. પણ એમાં વાવમાયા, તિન્વયોત્તિ, અસ્પૃશાતિયાય, નિમુદ્રિયળ, બાર્વીય ત્રિ, આ કૃતિઓ અપવાદરૂપ છે. એટલે કે આ કૃતિએ અપૂણ' કે ખડિત હાવા છતાં તેને અન્તિમ ભાગ સકારણ આપવા પડ્યો છે. વળી જે ગ્રન્થને આદિભાગ અન્ય લેખકના લખેલે હોય પણ કોઇ કારણસર અન્તિમભાગ તેઓશ્રીએ જ પૂરા કર્યા હોય; તેવી કૃતિ પણ આમાં આપી છે. જેમકે-સ્વરચિત પુસ્તયવિનિશ્ચય, જે કૃતિનું માત્ર એક જ પાનું મળ્યું હતું, તેને યદ્યપિ આદિ ભાગ તે આપવાના હોય જ. પણ સકારણ તેના પાછલા ભાગને અવરપૃષ્ટથી સધીને આપ્યા છે. આપેલી પ્રતિકૃતિઓમાં, કોઇ કોઇ એવી પણ છે કે, જેના અક્ષરો ખુદ ઉપાધ્યાયશ્રીજીના હશે કે કેમ? એવા સ ંદેહ થઇ આવે. અરે! એક જ કૃતિમાં પરિચિત અને અપરિચિત, એમ બન્ને પ્રકારના અક્ષરે છે, તે શું તે કૃતિના અમુક ભાગ અન્યના હાથે પણ લખાયેલ હશે ખરા ? અથવા કલમના કે અન્ય ઉતાવળનાં કારણે અક્ષરામાં ભિન્નતા આવી હશે ખરી ? આના નિર્ણય તે તેનુ ઊંડું માર્મિક સંશોધન અને સ ંતુલન કરવામાં આવે ત્યારે જ સમજાય. આ બાબતમાં તદવા કંઇક પ્રયત્ન કરે તેવી વિનમ્ર વિન ંતી. પ્રતિકૃતિઓનાં મથાળે કૃતિનું નામ, કર્તાનું નામ, આપ્યું છે, તેમજ પ્રથમ પત્રદર્શક આવૃિષ્ટ, છેલ્લાં પાનાનું સૂચક અન્તિમવૃષ્ટ, અને પહેલાં પાનાની પાછળની બાજુ માટે અપૃષ્ઠ, એવા શબ્દો પણ, મથાળે કે નીચે મૂકયા છે. આ સંપુટના ૨૫ પૃષ્ઠોમાં ૩૦ ગ્રન્થા-પત્રાદિ વગેરેની લગભગ ૫૦ થી અધિક કૃતિએ આપવામાં આવી છે. એ કૃતિઓનાં નામે મૂલ કૃતિ કયાં છે ? ઇત્યાદિ હકીકત સ`પુટની મૂકેલી સૂચીમાં આપી છે, તેમાંથી જોઇ લેવી. ઉપાધ્યાયજી ભગવાનના હસ્તાક્ષરાની અતિવિરલ અને અમૂલ્ય જે હસ્તપ્રતો મલી છે, તેની માલીકી રાજનગર અમદાવાદના દેવસાપાડા, ડહેલા અને પગથીઆ (સવેગી)નાં નામથી ઓળાતા ઉપાશ્રયેાના જ્ઞાનભઠારાની, તેમજ પ્રખર સ`શેાધક પૂ. મુનિવર શ્રીપુણ્યવિજયજી મહારાજશ્રીની છે. આ બધી પ્રતિએ મેળવી આપવાનું સૌભાગ્ય ઉપાધ્યાયજી પ્રત્યે અસાધારણ ભક્તિભાવ ધરાવનાર અને મારાં કાર્ય પ્રત્યે હંમેશા સહાનુભૂતિ રાખનાર સદાનંદી, ઉદારચેતા, પ્રખર શેાધક, આગમપ્રભાકર વિદ્વદ` મિત્રમુનિવર પૃર્ત્યશ્રીપુણ્યવિજયજી મહારાજના ફાળે જાય છે. આટલુ પ્રાસ્તાવિક વિવેચન કર્યા બાદ સ’પુટગત પ્રતિકૃતિઓ જેના ઉપરથી લેવામાં આવી છે, તે મૂલ પ્રતિના પરિચય આપણે જોઈએ. અહી આ પરિચય બાહ્ય દેહના મર્યાદિત રીતે જ આપવાના છે. ૪ ] Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ शुद्धि अशुद्धि થાપિ મોટા ભાગની કતિ કે શુદ્ધ છે, તથાપિ વિષ્ટ ગણાતા દારા નિક વિષ યેાની કૃનિ અંબા નાં કેટલાંક સ્થળામાં ઉતાવળ કલમ ચલાયાના કારણે અક્ષરે મને શબ્દોની સી કી તાને લીધે મા લે ને એવું વિચિત્ર ની Mય છે કે મને બવીમા માટે પણ મૂલ શબ્દો કે અક્ષરા શું હશે ? એ નક્કી કરવાનું કોય* અતિ વિકટ બની નથ છે, १५ अक्षरसंख्या પ્રતિ પંક્તિમાં અક્ષર સંખ્યા ૩૬ થી લઈને ૫૬ સુધીની છે, નાનામાં નાના લગભગ ‘મગ'ના દાણા જેવડા ન મેટામાં મોટા 'ચાણ 'ના દાણા જેવડા મથારા છે, १७ अक्षरमरोह અક્ષરા ગેળ કે સીધા નથી પણ ક'ઈક વળાંકવાળા અને ઇટાલિયન (ઈટેલિક) અકારની જેમ જરા ત્રાંસમાં લખાએલા છે. ૧૮ grરિશ જે શરી? પ્રશસ્તિવાની પ્રતિ એ ઓછી અને તે વિનાની વધુ છે. યામી અને નિરyહી જીવન ગાળતા જૈન સાધુ ની ખાસીયત મુજબ ઉપાધ્યાયશ્રીજીએ પણુ માહિતી પણ પ્રશરિત લખવા તરફ પૂરતું લક્ષ મા યુ' નથી, १९ पृष्ठसंख्या એક પાનાથી લઈને ૭૯ પાના સુધીની છે. २० लेखन संवत સ્વહસ્તની માત્ર સાત કુતિએ 'વતવાળી છે. लेखन संबत कोना अक्षर? ઉપાધ્યાયજી નાર १ शार्णभद्रस्वाध्याय २ स्याद्वादरहस्यलघुक्ति ३ नयचक ४ श्रद्धानजल्पपटक लेखन स्थळ સુરત ( ગુજ, ) આંતરાલી ( , ) પાટણુ ( 55 ) ૧૩૦૧ ૧૭૧૦ નયવિજયજી ૧૯૬૫ ५ तर्कभाषा ६ शाश्वतप्रतिमामानस्तोत्र ७ ज्यायरत्नप्रकरण ૧૦૧ વિઘા પુર (ગુજ.) આ પ્રમાણે અહિ’ પ્રતિ એની વિસ્તૃત માહિતી પૂરી થાય છે. રીસનદીપ ઉપાધ્યાય જી એક ત્યાગી જૈન સાધુ હતા. જૈન સાધુ એટલે જ્ઞાનાપાસના જેટલું જ ક્રિયા કાડની સાધનાને મહત્વ આપનાર, એથી જેમને પ્રભાતકાળથી લઈને રાતના શયન-સમય સુધી નિશ્ચિત સમયે અનેક પ્રકારની દૃનિ ક–રાત્રિક ક્રિયાઓ માટે સમય ફરજિયાત આપવાના હોય, વળી સામાજિક કે સાંધિક જવાબદારીઓ અદા કરવાની હોય અને એ સાથે સાથે સંખ્યાબ'ધ ગ્રન્થનું વાચન કરવાનું હોય, અને તે ય માત્ર સામાન્ય ક્રેટિના જ નહિ, પણ ઉચ્ચ-ઉચ્ચતર-ઉચ્ચતમ કોટિના પણ હોય કે જેમાં આગમિક, તાકિક, અને દાર્શનિક પ્રકારને ગણાવી શકાય; એટલે કે જે વિષયે પ્રજ્ઞા અને પ્રતિભાને થકાવી દે. સાદા કહેવાતા શબ્દોમાં કહીએ તો ભેજક્તનું પુરે પુરૂ દહી' કરી નાંખે તેવા. પુનઃ અતિ શુષ્ક ગણાતા તક, ન્યાય અને દર્શન આગમિકવાદોનાં વાચન બાદ તે તે શાસ્ત્ર-સિદ્ધાંતોનું' ચિંતન મનનું અને પછી મંથન કરવાનું હોય. પછી જેન દર્શનના સનાતન સિદ્ધાંત સાથે બુદ્ધિતુલાથી સંતુલન કરવાનું હોય ત્યાં જયાં સં'તુલનના મેળ ન લાગે ત્યાં ત્યાં પાછુ તક', દલીલથી સ ચાટે નિર સન કરવાનું હોય, એટલું જ કરી બેસી રહીને તેઓશ્રીને માત્ર સવ આનદને જ લૂટવાને ન હતા, પણું પોતાના આનંદ માં અન્યને પણું સહભાગી બનાવવાને ઉદાત્ત ભાવ પણ બેઠેા હતા. એટલે સત્યનું' જે નવનીત તારવ્યું, તેને પોતાની વિશિષ્ટ કૅટિની બૌદ્ધિક પ્રતિભા અને સાર્વજનિક પ્રક્રિયાથી સુ યાહ્ય અને સુપાચ્ચું બનાવીને, પુનઃ ગ્રન્થ સ્વરૂપે સે જન કરીને, વય' લખીને પીરસવાનું હતું. અને તે ય ભાષાની સ પૂર્ણ શુ કંતા જાળવીને, ત્યારે તે મનમાં એક જ તરંગ વારંવાર ઉઠયા કરે કે આવી પરિસ્થિતિ વચ્ચે તેઓ શ્રી એ શી રીતે સમય કાઢ્યો હશે ? Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ raidigiste આપણે તે આનો બીજો કોઈ જવાબ ન આપી શકીએ ! જવાબ એક જ હોઈ શકે કે મુખ્યત્વે તેઓશ્રીના અસાધારણ કોટિના પ્રવસમાય જ આમાં કારણ હતા એમાં પણ જ્યારે પૃ. શ્રી મલ્લવાદિષ્ટના નથ= ગ્રન્થ ઉપરથી નકલ કરવાને તેઓશ્રીના અદમ્ય ઉત્સાહ અને અવિરત પ્રયત્ન જોઈએ છીએ, ત્યારે તે તેઓશ્રીની સર્વોત્તમ કોટિની શ્રુતભક્તિ આગળ સહસા મસ્તક કી પડે છે અને વૈખરી ‘ધન્ય ધન્ય’ બેલી ઉઠે છે. નયચગ્રન્થ એટલે દાર્શનિકવાદોને સાગર. ભારતીય દાનિક વાઙમય અને જૈન સાહિત્ય-સંસ્કૃતિના મુગટમણ જેવા, ૧૮ હજાર શ્વેાકમાન જેવડા, આ મહાકાય શાસ્ત્રગ્રન્થની નકલ, સાત જૈન મુનિઓએ એક સાથે બેસીને વાળન વૃતિો પ્રથ: ' આ પંક્તિના સ્વકૃત ઉલ્લેખથી પંદર દિવસમાં જ પૂરી કરી. અને એ આદશ'ની સંપૂર્ણ નકલ ૩૦૯ પાનામાં પૂર્ણ થવા પામી. એમાં ઉપાધ્યાયજી ભગવતના ફાળે ૭૩, પાનાં લખવાનાં આવ્યાં, જેનું શ્વેાકમાન ૪૬૦૦ થી ૪૮૦૦ નું થાય છે. પંદર દિવસો વચ્ચે તેની ફાળવણી જો કરીએ તા. લખવાની સરેરાસ રાજના ત્રણસો શ્લોકની આવે. નિત્યક્રિયાઓને જાળવીને રોજના ૩૦૦ શ્લોકા લખી શકે ત્યારે સિદ્ધહસ્ત અને ઝડપી લહિયાની જેમ તેઓશ્રીને લખવાને પણ હાવરા કેવે હશે ? તેનો ખ્યાલ આવી શકશે ! અરે! વિશેષ વાત તેા વળી એ છે કે સ્વકૃતગ્રન્થો તા લખે, પણ અન્યકૃત જૈન-અજૈન ગ્રન્થાની પણ તેએ શ્રીના જ હસ્તાક્ષરની કૃતિ મળે ત્યારે કોણ સાશ્ચમના ન બને ! ખરેખર! ઉપાધ્યાયજી ભગવત પ્રખર અભ્યાસક, અદભુત સર્જક અને કુશળ લેખક પણ હતા. આમ ત્રણેય શક્તિના ત્રિવેણી સંગમ પ્રાપ્ત કરવાનુ વિલક્ષણ સૌભાગ્ય કાઈ વિરલ વ્યક્તિને જ લલાટે લખાએલુ હોય છે. કેાઈને સહજ રીતે એવા પ્રશ્ન થાય કે અહી’આ આપેલી પ્રતિકૃતિએ સ્વહસ્તાક્ષરની જ છે એને પુરાવા શું? તે પુરાવાનાં અનેક પ્રામાણિક કારણેા રજૂ કરી શકાય એમ છે. સફૂટગત કૃતિઓ કે તેની મૂલ પ્રશસ્તિઓથી પણ ઘણા ખરા ખ્યાલ આવી શકે તેવુ છે. પણ એની ચર્ચા કરવાનું આ સ્થાન નથી, એટલે તેને જતુ કરીએ. બાકી પુણ્યાત્મા મુનિવર શ્રી પુણ્યવિજયજી મહારાજે તથા મેં તેની પાકી અજમાયશ કરેલી છે. એટલે શકાને કાઈ સ્થાન જ નથી. કેટલીક કૃતિઓ કાચા ખરડા રૂપે હે।વાથી તે ઉપરથી પણ સ્પષ્ટ ખ્યાલ મલી શકે છે. પણ સાથે સાથે એક સ્પષ્ટતા કરી લઉં કે, આ સ’પૂટમાં કાઈ કાઈ કૃતિઓ કે પુક્તિઓના હસ્તાક્ષરો એવા પણ છે કે જે પૂર્વાપર પુરા મળતા આવતા નથી. કેટલાક ન્યુનાધિક પણે મળતા આવે તેવા છે, તે તેનુ કારણ શુ? તેનુ વાસ્તવિક કારણ તે શેાધવું બાકી છે. પણ એના સ્થૂલ જવાબ એ હોઈ શકે કે, ઉમરના ભેદ્દે, કાં લેખનકલાના અભ્યાસની પ્રગતિનાં પરિણામે અક્ષરાનાં માપ, વળાંક કે મરેઠમાં ભેદો સર્જાતા હોય છે, અને હસ્તાક્ષર નિષ્ણાતેાથી તે એ વાત જાણીતી છે કે એક જ વ્યક્તિના હાથે લખાએલા અક્ષરોમાં એવી વિવિધતા હાય છે કે એને પારખવાનું કાય દુધટ બની જાય છે. અગાઉ જણાવ્યુ' તેમ, ઉપાધ્યાયજી અતિવ્યવસાયી પુરુષ છતાં સમગ્ર લખાણની દૃષ્ટિએ જોઈએ તો, નિઃસ કોચપણે આપણે તેમને સિદ્ધહસ્ત (લડિયા) તરીકે બિરદાવી શકીએ, કારણ કે લગભગ મેોટા ભાગની પ્રતિઓનાં લખાણના પ્રવાહ ગંગાના અવિરત ધસમસતા ધીર, ગંભીર પ્રવાહની જેમ એકધારા વહેતા દેખાય છે. અને એથી આપણી નજરને પણ તે જકડી રાખતા હોય છે. અલબત્ત સૌન્દર્યની દૃષ્ટિએ મૂલ્યાંકન કરીએ તે પ્રસ્તુત લેખનને સર્વોત્તમ કોટીનુ' ન કહી શકીએ, પણ મધ્યમ કેાટીનું તે જરૂર કહી શકીએ. તેઓશ્રીના હાથની લઢણ અને શૈલી જોતાં જરુર કહી શકાય કે તેઓશ્રીને સર્જન અલ્પ કરવાનું હોત, તે તે ચીપી ચીપી લખીને, કલમને મઠારી મઠારી, સુંદર અને નમૂનેદાર અક્ષરા લખી શક્ત, પણ આવા અનેાખા, મહાસર્જક સતા સૌન્દર્યની સાથે સગપણ કયાં બાંધવા બેસે ! તે તેમને પાલવે કયાંથી? વળી આ સર્જન પાછું કેવું ? એકાદ અક્ષર કે શબ્દ ન્યૂનાધિક લખાઈ જાય, કાના માત્ર રહી જાય કે તેના તફાવત પડી જાય, તે અસંગતિમાં ભારે મથામણા ઊભી થઈ જાય એવું. વળી સંખ્યા બન્ધ ગ્રન્થાનાં ઉદ્ધરણા ટાંકવાના, સ્વપર ગ્રન્થાનું અવલે કન ચિંતન-મનન ઇત્યાદિ કાર્ય પાછુ કરવાનું. એટલે આવા વ્યવસાયી પુરુષો હમેશાં કા વેગીજ હોય. આવાં કારણે તેઓશ્રી પાસેથી સર્વોત્તમ કોટિના લેખની આશા રાખવી એ મને લાગે છે કે વધુ પડતી છે. આમ છતાં કહેવું જોઈએ કે, હસ્ત અને મનનાં સ્વાભાવિક સ્થય અને ધ્યેયને જરા પણ ગુમાવ્યા વિના અચૂકપણે લખ્યું છે. એવુ તેઆશ્રીની પ્રતાના આભિમુખ્ય સદર્શનથી ચાક્કસ સમાયુ છે. આજ કારણે સ્યાદવાદરહસ્યલઘુવૃત્તિ આદિ વૃત્તિઓ પ્રથમાદરૂપે કાચી જ લખેલી મળી. અને તેમાં કરેલા સુધારા વધારાથી તે એટલી બધી [૭ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TENERE ચિત્રવિચિત્ર બની ગઈ છે કે પ્રતની નકલ કરનારનું ભેજે જ ગાયબ થઈ જાય ને સશેાધકનું તે પૂછેજ મા ! ખાસ' મૂળનું હિમાલયના માહ મહિનાના જેવું હીજ કરી નાખે ! અમુક આપવાહિક સ્થળે બાદ કરીએ તે પ્રતિ એામાં ચેકચૂક, છેકછાક કે અક્ષરની ગરબડી કયાંય માલમ નથી પડતી. કવચિત્ અકાર કે શઇનુ નાધિક પા' બની ગયું છે તે વાત સાચી, પણ તે ઉતાવળથી લખવાનાં કારણેજ થયુ છે. તેઓ શ્રી ની કલમ ઠીકડીક વેગીલી હતી. બર-કલમને કેસ પણ ઠીક ઠીક કાઢી લેતા હતા. લખતા લખતા દારૂ’ ક થવા આવ્યું હોય, છતાં અ૮૫ સમયમાં વધુ લ વાના લાભ માં, લખવા નું જેટલુ ખેં'ચાય તેટલુ ખે'યુ છે. અને મરૂની ધારના જેટલા ક સ કઢાય એટલે એકી સાથે કાઢી લેવા પ્રયતન સેન્યા છે. જેથી અક્ષરો કયાંક કયાંક ખરડા એલા, તેમજ અાછી પાતળી સ્યાહીવાળા થવા પામ્યાં છે, અરે ! એમની સજનની ધૂન અને સમયના ચાવ કરવાની તાલાવેલી કેવી હતી, તેનું પ્રતિબિમ્બ પ્રસ્તુત પ્રતિએામાં જ જોવા મળે છે. સામાન્ય રીતે દરેક લેખક પ્રતિનાં લખાણની બન્ને બાજુ એ એક એક લીંટી મારે. અને બે લીટીઓ મારી શકાય તે બેવડી મારે, અને દેવાનાં સાધનથી સીધી દેરીને પાનાંની શાળા અને ઉઠાવ લાવે, પરંતુ આ પુરુષને તે શાભા શણગાર માટે સમય જ કયાં હતા ! તેની પડી પણ શું હોય ? એટલે લીટી એકવડી મારી છે. અને તેય પટ્ટી વિના હાથથી જ મારી દીધી છે. અને ઉતાવળ તે કેવી ? કે લી‘ટીએ અધેજ સીધી ન મળે; કે ન તે પૂરી દોરેલી મળે ! – તે સરખા માપની હાય ! અરે ઘણા સ્થળે તે લીટી મારવાના શ્રમ કે સમય જ લીધા નથી. આવી તે હતી તેઓશ્રીની સર્જનની મસ્તધૂન અને પ્રચંડ તાલાવેલી ! ! | ઉપાધ્યાયજીના ‘' વગેરે અમુક અમુક વર્ણાક્ષરે લેખનમાં ખાસ વિશિષ્ટતા ધરાવે છે. એ વિશિષ્ટતા કયા વની કેવી રીતે છે ? તે તો તેના ખાસ ઑકપ્રીન્ટદ્વારાજ બતાવી શકાય, મારી ઉમેદ હતી કે ઉપાધ્યાયજીના ખુદના હરતાક્ષરો ની જે ૩થી લઈને ૬ સુધીના સ્વર વ્યંજનાની, કેટલાક સંયુકત અા રાની લિપિ તૈયાર કરી, મુદ્રિત કરાવી આ સ’yટના આરંભમાં જ આપવી, પણ સમયસર તૈયાર થઈ શકી નથી. એટલે હવે તે વાત તે ભાવિ ઉપર રહી. આ સં'પટ માં આપેલા છેaf_તિ અને જાગંજરથોmaiા આ બંને પ્રતિકૃતિઓના અન્તમાં ઉપાધ્યાય જી એ પતે એક લેક લખ્યા છે. જેમાં પ્રતિએ લખાવામાં મદદગાર બનનાર સતાના ખંભાતવાસી રનમેધજીના પુત્ર જયતસી ભક્તને અમર બનાવી દીધા છે, સજનયજ્ઞ ઉપરાંત લેખનયરને માંડનારા ઉપાધ્યાયજીને શ્રતજ્ઞાનભક્તિનું કેવું’ ‘ ઘેલુ લાગ્યુ હતું કે, પોતાના ગ્રન્થ તો લખ્યા, પરંતુ તેમાં સહાયક અન્ય જૈન કે અજૈન ગ્રન્થ કારેના મહત્વના ગ્રન્થને પણ બીજા લેખકની અપેક્ષા રાખ્યા સિવાય સ્વહસ્તે જ લખ્યા. વળી અન્ય લેખકે લોલા ગ્રન્થને પરિમાર્જન પણ કર્યા. ધન્ય હો ! એ અપ્રમત્ત પુરુષાથી", સ્વાશ્રયી, ઉદારતા સાધુપુંગવને ! એમના હસ્તાક્ષરની ત્રણેક પ્રતિએાના ફાટા દાખલ નથી કરી શકાય. ભવિષ્ય માં તૈયાર થયે સંસ્થા ખબર આપે ત્યારે મંગાવવા ધ્યાન રાખવું. આ સંપૂટમાં પૃ. ઉપાધ્યાયજ ના સ્વનામધન્ય ગુરુદેવ શ્રી નય વિજયુ જી મહારાજના હસ્તાક્ષરોની પણ પ્રતિકૃત્તિ છે. જેન શ્રમણ વગમાં ગુરુ, શિષ્ય વચ્ચેની સ્નેહ શ‘ખલાના એકેડા પરસ્પર કેવા જેડા એલા હોવા જોઈએ, તેનુ' ઉદાત્ત અને જવલંત ઉદાહરણ પૃ. ઉપાધ્યાયજી અને તેઓશ્રીના ગુરુદેવ પૂરું પાડે છે. અને તેની ઝાંખી આપણને આ 'પટમાં જોવા મળે છે. ગુરુ શ્રી નવિજયજીએ ભાવિકાળની ક્ષિતિજમાં વેધ ક દથિી એક નજર નાખી તે તેમને દર્શન લાગ્યુ કે મારો હદયવહલભ ‘યશવિજય’ ભાવિકાળ માં જૈનશાસન અને જેનધ મ ના મહાપ્રભાવક, તેમજ જૈન વાફેમના અસાધારણ વિદ્વાન થશે. એટલે પોતાના પ્યારા શિષ્યને સર્વદર્શન સાહિત્યનું જ્ઞાન પ્રા ત કરાવવા, દૂર દૂર રહેલા કાશીના વિદ્યા ધામમાં લઈ જાય છે. આપત્તિઓ વેઠીને પણ અનેક રીતે સહાયક બને છે. અને અસાધારણ કાટિના દિગ્ગજ પંડિત બનાવે છે. એ ઉપકારી ગુરુવરના ઉપકારનાં મૂલ્ય કદીએ અ' કાશે ખરાં? એટલું જ નહીં પણ શિષ્યના અભ્યાસમાં અને ગ્રન્થ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પી. 대한화학회 જન કાર્યોમાં ઉપયેગી સાહિત્યકૃતિઓની નકલ મુદ્ ગુરુશ્રી જાતે જ કરી આપીને કેવા સહાયક બન્યા છે તેનુ' આ એક આદર્શ અને પ્રેરક દષ્ટાંત છે. ધન્ય હો એ મહામના શિષ્ય વત્સલ ગુરુદેવને ! આવી ગુરુકૃપા પણ તેને જ પ્રાપ્ત થાય છે કે જે શિષ્યા પરમ ગુરુભક્ત હોય, પરમ આજ્ઞાંકિત હોય અને જેઓએ ગુરુશ્રી પ્રત્યેના સમર્પિત’ ભાવની જયોત જલતી રાખી હાય! ગુરુભક્તતા કે સમર્પિત ભાવ તા ઉપાધ્યાયશ્રીજીને કેવા હતા, તે તે તેઓશ્રીના સાહિત્યક્ષેત્રથી પરિચિત જનથી અાણ નથી. ઉપાધ્યશ્રીજીની ન્હાની કે વ્હોટી (પ્રાયઃ) ભાગ્યે જ કોઈ કૃતિ મળશે કે જેમાં ગુરુશ્રીના નામેાલ્લેખ કરવાનુ તેએશ્રી ચૂક્યા હોય ! પ્રથમ ગુરુનામ પછી જ પોતાનું નામ હોય. ત્રણજ કડીના સ્તવન જેવી ન્હાનકડી કૃતિમાં પણ પ્રથમ માથે ગુરુનામ લખીને કે રાખીને, તેની છત્ર છાયા નીચે જ સ્વનામ મૂકવામાં જ પોતાનુ ગૌરવ અને શોભા માની છે. સ્વનામ આગળ લઘુતા દર્શીક શિષ્ય-સેવક ઇત્યાદિ વિશેષણા દ્વારા ગુરુની ગુરુતા અને શિષ્યની લઘુતાના સદગુણાનું દર્શન કરાવ્યુ છે. આજના યુગમાં ગુરુ શિષ્યો, માટે ને એમાંય શિષ્યા માટે તે ખાસ-ધડો લેવા જેવી આ ભારે પ્રેરક ઘટના છે. આનાથી ગુરુ શિષ્યની ખેલડી વચ્ચે કેવા નિળ અને દૃઢ રસ્નેહ પ્રવર્તતા હશે તેને ખ્યાલ મળી રહે છે. આ બધું વિનય અને વાત્સલ્યના કહીએ તે તે ખરેખર ઉચિત જ છે. શકય બનાવ્યું, એમ મહે।પાધ્યાયજી ભગવાનની સમ્યક્ જ્ઞાન અને ચારિત્રની ઉત્કટ આરાધના, સદા અપ્રમત્તતા અને આધ્યાત્મિક સાધનાના જેટલા ગુણનુવાદ કરીએ તેટલા ઓછા છે. આ ચિત્ર સપૂટમાંથી એમના આવા અમર વ્યક્તિત્વનાં થોડાં પણ દન થશે તે। આ પ્રયાસ સકુલ થયે લેખાશે. હવે આ ક્ષેત્રની એક અન્ય ભાવના વ્યક્ત કરૂ કે, છેલ્લા એક હજાર વર્ષ પૈકીની જૈન શ્રીસ'ઘની સુપ્રસિદ્ધ, ગણનાપાત્ર કે નામાંકિત વ્યક્તિએ પૈકી જેના જેના હસ્તાક્ષરો પ્રાપ્ત થયા હોય તેને એકત્રિત કરીને જે તેને આવે! સપૂટ હાર પાડવામાં આવે તેા મહાપુરુષોનાં કિમતી હસ્તધૂનનાં મહામૂલાં દર્શનને પવિત્ર લાભ સહુને મળે અને અક્ષર ઉપરથી જીવનદર્શન કરાવનારા નિષ્ણાતો માટે તે મહામૂલે આદાન-પ્રદાન ધર્મ જ ખારાક થઈ પડે. ધારવા કરતાં નિવેદન લાંબુ થઈ ગયું. પણ તેની ક્ષમા યાચી લઉં છું. આશા છે કે પવિત્ર હસ્તાક્ષરનાં ચાહકો, સંગ્રહ શેખીન સદગૃહસ્થે શ્રીમાન, વિદ્યાપ્રેમીઆ અને આપણા જ્ઞાનભંડારના કાર્યવાહક મહાનુભાવા; આ ચિત્રસ’પૂટને પોતાને ત્યાં વસાવીને આ અભિનવ પ્રયાસને પ્રોત્સાહન આપશે અને જ્ઞાનભક્તિના સહભાગી બનશે. ઘણી મેોટી સંખ્યામાં ઉપાધ્યાયશ્રીજીની કૃતિઓ આપણને મલી છે માટે એમની અનેક અસાધારણ વિશેષતા એમાં આ પણ એક અસાધારણ વિશેષતાજ લેખાવી જોઇએ. આવા મહિ એની સપત્તિએ કેવળ જૈનોની જ નહિ પણ વિશ્વસમગ્રની હોય છે. માટે આપણી એ મહામૂલી સ ંપત્તિનુ વધુ સપત્તિ મેળવવા ભાગ્યશાલી ચીવટપૂર્વક જતન થવુ ઘટે, અને અંતમાં અણખેડાએલા જ્ઞાન ભંડારોમાંથી આવીને આવી બનીએ એજ મનઃકામના ૪/ રીજગડ, વાલકેશ્વર મુખ ૬. વિ. સ. ૨૦૧૬ વીર સ. ૨૪૮૮ जैनंजयति शासनम् ॥ તા. કે. * પુ. ઉપાધ્યાયજીએ સ્વહસ્તે લખેલી ન્યા. . જયરામ ભટ્ટાચાર્ય કૃત અન્યથા સ્થાનવાદ અને રહસ્ય પ્રથા અતિ “ન્યાયસિદ્ધાર્થ” અને યમિનન્ય નામના ખે ગ્રંથો, તે ઉપરાંત પૂ. ઉપાધ્યાયછે અને તેઓશ્રીના ગુદેવશ્રીએ મુનિ યરોવિજય ભેગા મળીને લખેલી સિદ્ધસેનીયા ચિતિgત્તત્રાશય નામની પ્રતિમા પણ મલી છે. ને હજુ પણ મળવા સંભવ છે. *એ તેા એક જાણીતી વાત છે કે હસ્તાક્ષર)એ પણ શક્તિ છે. એને પણ પોતાની એક સ્વતંત્ર ભાષા છે. અને ઍનું સ્વતંત્ર કિસ્મત પણ છે, તે લખનારના ગુણ-દેષ સાંકેતિક (Kond) ભાષામાં વ્યકત કરતા હેવાથી તેના નિષ્ણાતા તેના ઉકેલોને વૈઘરી વાણીમાં વ્યકત કરે છે, અને એથી જ હસ્તાકારો ઉપર ગુણદોષની ચર્ચા કરીને લાદેશને વ્યકત કરતાં 'ગ્લીશ ગુજરાતી વગેરે ભાષામાં અનેક પુસ્તક પણ લખાયાં છે. [e Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સંપુટના વિહ’ગાવલેકને ઉપરથી ઉપાધ્યાય શ્રી જી અગે ઉપસતું' ચિત્ર પ્રાત:રમણીય પૂજય પાદ ન્યાયવશા૨૮ ન્યાયાચા યુ" મહાપાધ્યાયે શ્રીમદ્ યાવિજયજી મહારાજ વિક્રમના સત્તરમી સદીના ઉત્તરાર્ધમાં અને અઢારમી સદીના પૂર્વાર્ધા માં પી લે અને પ્રતા 'પન્ન મહાન જયોતિધર થઈ ગયા, મહાપાધ્યાયે જી મહારાજ જેવા જ્ઞાનના માર્ગ વ હતા તેવાજ ચારિત્રની ખાણ હતા. તેમનું વિવિધ વિષયનું જ્ઞાન નથ પણ મ મેં શાહી અને વ્યાપક હતું, અને એમનું ચાત્રિ ૨ ટીક સમુ’ નિમબા હતું. ગઈ નમાં ગહન શાસ્ત્રીય અને દાર્શનિક વિષયનુ' મમરપી" અવગાહન કરવું અને એવા તમામ વિષયોને આરમસાનું કરીને મૌલિક સાહિત્ય સર્જન દ્વારા એનુ' નવનીત જિજ્ઞાસુ એ અને અમારી એને સુલભ બનાવવું', એ એમને માટે સાવ સહેલી વાત હતી. આ વરનું જ એ બતાવે છે કે તે એ કેટલા અપ્રમત્ત તથા જ્ઞાન અને ક્રિયાના આરા ધન માં કે ટલા જાગૃત હતા, આમાની સતત જાગૃતિ વગર આવી મેધા અને આવી જીવનશુદ્ધિ શક્ય જ ન બને, એમ કહી શકીએ કે મહાપાધ્યાય જી મહારાજ આમજાગૃતિના એક જીવંત અાદશ હતા. - આગ માના તે ઉંડા મમગ્ન હતા જ, સાથે સાથે નળ્ય ન્યાય સહિત જેન અને જેનેતર દશને ના પણ સમર્થ જ્ઞાતા હતા, અને પોતાની નાનપિપાસાને સંતોષવા તેઓ એ છેક વિદ્યાધામ કાશી સુધી વિહાર કર્યો હતો, અને ત્યાં વર્ષો સુધી ઉ‘ડી જ્ઞાનોપાસના કરીને બ્રાહ્મણ વિદ્વાનોનાં આદર અને પ્રોતિ સંપાદન કર્યા હતા. પણ અમુક વિષયનું સંવં૫" જ્ઞાન મેળવવું એ એક વાત છે, અને શાસ્ત્રીય, તાવિક કે દાર્શનિક ગહન વિષાને લઈને સં’રકત કે પ્રાકૃત જેવી ભાષાઓમાં સંજન કરવું' એ સાવ જુદી વાત છે. પાંડિત્યની સાથેસાથ સાહિત્ય સર્જનની વિરલ પ્રતિભાનું વરદાન માર્યું હોય તો જ એ બની શકે , મહાપાધ્યાયજી મહારાજની વિવિધ વિષયોને સ્પર્શતી અસંખ્ય નાની મોટી કૃતિઓનું અવલોકન કર્યા પછી કાઈન પણ એમ લાગ્યા વગર નહીં રહે કે તેઓ આવી વિરલ સંજનપ્રતિભાના સ્વામી હતા. અને એમની એ પ્રતિભાના લીધે તેઓશ્રીનું નામ અમર અને ચિમરણીય બની ગયું છે. અને એમની આવી અસાધારણુ સજ ક પ્રતિભાને લાલ કેવળ સંરકત કે પ્રાકૃત ભાષા એની કૃતિઓ દ્વારા વિદ્વાનોને જ મથે છે એમ નહી', પશુ વાક ભાષા (ગુજરાતી-રાજસ્થાની ) માં સં'ય બંધ ગદ્ય અને પદ્યાત્મ ક હે દય'ગમ કૃતિઓનું સર્જન કરીને સામાન્ય જનસમૃદ્ધ ઉપર “પશુ એમ જે ઉપકાર કર્યો છે તે પણ કદિ વીસરી શકાય એવું નથી. એમની આ લા ક ભાષાની રચના એ જોતાં એ વાત સ્પષ્ટ રીતે જણાઈ આવે છે કે, દરેક દરેક વિષયના જ્ઞાનને એમ કે ટલી અદભુત રીતે પચાવી લીધું હતું ! જે વિદ્યાના કે વિચાર કે હજી પણ એમ માનતા હોય કે અમુક વિષય તા અમુક ભાષા (સ’ કૃત, પ્રાકૃત જેવી શાસ્ત્રીય ભાષા)માં જ યથાર્થ રીતે નિરૂપી શકાય, તેઓને મહાપા ધ્યાયજીની કૃતિએ જાણે એલાન આપે છે કે છે કે ઇ પશુ વિષય બુદ્ધિ માં રમમાણ થઈ ગયા હોય તે, એના નિરૂ પણ માટે ભાષા તે આપ મેળે ચાલી આવે છે; પછી એને અ કે તે ભાષાનું' કેાઈ બંધન નડતું નથી, | વળી, એમ પાછુ લાગે છે કે, મહા પા થાયછેને સાહિત્ય સર્જનને વેગ અદમ્ય હતા. એક વાર એક વિષયનું નિરૂપણ અંતરમાં સાકાર થયું, એટલે પછી એ વેળી લી કલમ દ્વારા ભાષાના આ કા ર ધ રીને જ રહેતું. એવે વખતે પછી તેઓ ન તો લહિયાની રાહ જોવા જૈભતા કે ન તો લેખન સામગ્રીના સારા-એક ટાપગ્યા માં કાપાકૅપ કે રતા, પછી તે કોઈ લહિયે મળે તે ઠીક, નહી તે સ્વયે કાગળ કલમ અને સાહી લઈને લખવા બેસી જતા અને પેાતાના અંતરમાં વૃધવાના જ્ઞાનના પૂરને બથરથ કર્યા પછી સંતેષ પામતા, પર્વતમાં ઉભરાતાં મેધનાં જળ કદિ કેાઈથી ખીજી ''છાયાં છે *મૂ ર ! એ તે પૂર કે મહાપૃર રૂપે નદીમાં કે મહા નદીમાં વહી નીકળે ત્યારે જ શાંત થાય છે. એકવાર એક ગ્રંથ રચવાના વિચાર આવ્યું, પછી પ્રમાદ કરશે કે નિરર્થ કે સમય વિતાવે ઉપાધ્યાય જી મહારાજના રવભાવમાં જ ન હતું. તેથી જ એમના પોતાના હાથે જે લખાયેલી એ મની સંખ્યાબંધ તિઓ આપણા જ્ઞાન ભ‘કાકૅમાંથી સમય સમયે ઉપલધ થતી રહી છે, અને હજી પણ ઉપલબ્ધ થતી જાય છે રમવા માટે વિદ્વાન અને તે પુરતક લખવા બેસે, નણે આપણી ક૯૫નાને આ નવી નવાઈની વાત લાગે છે. પશુ એ નવાઈની વાત જ મહોપાધ્યાયજીની અસાધાર, વિજ્ઞાની., મહત્તાની અને સાહિત્ય સર્જનની અદભુત પ્રતિભાની mણે સાક્ષી આપે છે. ૧૦ || Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અને આટલું જ શા માટે ? મહોપાધ્યાયજીએ પોતાના હાથેથી કેવળ પોતાની કૃતિએ જ લખી છે, એવું પણ નથી; બીજા વિદ્ધાનેએ રચેલી કૃતિઓની જ એમણે પોતાના હાથે નકલ કરી હોય એવા પણ દાખલા મળી આવ્યા છે. આ બતાવે છે કે એમની જ્ઞાન સાધના કેટલી જાગ્રત હતી અને એમની જિજ્ઞાસા કેટલી ઉતકટ હતી. એમ કહી શકાય કે જ્ઞાન સાધનાની બાબતમાં તેઓ કેદની પણ પરાધીનતા સ્વીકારવા તૈયાર ન હતા. જરૂરી સગવડ અને સહાય મળી તો ઠીક, નહીં તે આપણે પોતાનો પુરુષાર્થ કયાં આઘે ગયે છે ? ‘માજં તુ વૌદઉં એ ઉક્તિ એ મણે ચરિતાર્થ કરી બતાવી હતી. - આ રીતે મહોપાધ્યાયજીના હાથે લખાયેલી એમની પોતાની કૃતિઓ, તેમજ અન્ય વિદ્વાનની કૃતિઓ અત્યાર સુધીમાં સારી એવી સંખ્યામાં મળી આવી છે અને હજી પણ મળતી જાય છે; એ ભારે ખુશનસીબીની તેમજ ઐતિહાસિક મહત્વની બીના છે. ભૂતકાળમાં બીજા પણ કેટલાક વિદ્વાન એવા થઈ ગયા છે કે જેમના હાથે લખાએલી પ્રતે ઉપલબ્ધ થાય છે, પણ કોઈ પણ વિદ્વાને પોતાના હાથે લખેલી પ્રતો આટલી મેટી સંખ્યામાં મળતી હોય તો તે મહોપાધ્યાયનીજ, આ પ્રમાણે ઉપસાવેલા આછા ચિત્રની આછી ઝાંખી પૂરી થાય છે. દૃ તિ 3 ન્ ! (OID(0); KULD R/IIIIIIII ) /DIVITS) ST) (101) DONUN DUCTS DETESS')[S) ડિકોદિલથી G ( - Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मरख्याति प्रकरण. महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित. स्वहस्तोऽयं महोपाध्यायपादानाम्। आदिपा] अ रेष्ठ लेम्दावारतबाघीरभानं ग्रामव्यतिकरात्मच्चिर्यशविजयवाचका नमः egonामानावद्वानेछाद्याश्रमाविमादिमेमोशनलवाटेमवैवाभाविकानोपरफाव लवामापरिमाणवेतिविप्रतिपत्रितत्रविनवेदयामिकादयशवनमामोप्रामनाविन मुउसुमधामकालमनःपूर्वममोगलानोसत्रिकाचर9मिलेग्राममनोविज्ञागकामराव तापत्रमामऽयारवानदानीमथ्यानिकषातरीमान:ममोगलापनयनमनःकामाग सत्रदामसमवतामविशेषगुणालेनदेनजमावात्रायटोपशवामनामनाउतमानाशरावबदनस्वा मिलामममवताविछोरालोसादगावतदात्मानमवविद्यामर मात्रामास्वामीराबडोदेकमांतरीयाममपिसीममनायोमोसमाऊषांतीमालम सादगारनवतदाममनवेवियोमशुजवाववित्रंक्तिदानविनाविममाम कारणत्वानाममशिगनवायतकालम्बएवकार्मकारल-ज्ञानामा नवाबवलकामम्बलबकार्यकारलजाबमांपतोमहागौरकतहरीरपरिमाटाव नमछमामासतएवासमवामेन नानादीवजन्मेमोगमापारमममममायनक38 एमापारमनदाउनलोतानातुसादायातदानामुमोगकषयापारम्माकरनिरमत्कार 33.भारतमनःमभोगविशेषलेनेवमामामतोदेवाप्पुक्करवाजामाविलुत्वत्वकत्रमत:मंयोगवितो मातादमानाबजनीमोलकतमानदापन्नेफनतकार्मकारलजावकमनागौरव:परिहरमिहिनेतनदास लाशय कमवायमंबंधनतन्त्रलवियोवलकिन नामावनिनाबाराविदोषमंबंधेरामविपशुरा नवनिनप्रतिबिंबवतान:मयोगलेनकामानिमाले श्रामवियोणगुणत्वबालेतरसम्वेता मयनगमकवाविलंबिनुशिषBणलबालोजातिविशेषावानबोक्रयासमापिनमाविसनिकमानकामेतावद अलसम्म ४ लिनवमानातनदानी मोगरूपयाकरउउनकावति Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमेयमाला. मटोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित. स्वहस्ताक्षर [आदि पृष्ठ] ... आ । autou श्रीएकसामाजही ऐणितलावीरठलार्वन्दात्रयncianavकारामतमालकिन दिशाकावित्रिमंगामादनातकनिनामनिनिकापिमालोनियवासयुधयेाजावपातळ51जयतपारधानातकासालयवत/31वलतिरकालिमहादिनससमविनियोगजनकपतमापारविवार सम्मानिससक सत्रादितिकविक्षन्ननोद्रिातंतरंगोविमोगातनालसमतापनेस्वकपमतस्वलक्सय विलियागहउलेमाभिहितानानाववियोधविनियोगापोस्तानाविसतिसतम्मतवलेलाबारावकला चितामानानम्वत्लापतोतवाभिमानवस्वलतानमनतमेउविनिमोगमलामा शारिश्रमायनताश्रीजसपातत्रि रपहलातानबम्बलविशलेनेचमाधमत्वशतिवामंबलाम्सदानासमेदिनिमालेनिशपालानानदिपुरकायस्वला मदान काननरामतीताननप्रतिहासिकमा प्रतिपदाकादिवानजनिकषककिनिम्मलकानदिमagrat नमारस्वत्वारमामानंककसिावधेशाधनाननयमगतीमत्रोमोगवादाबाबक्षःकामयामसुजता लादावादका टिकतानादेतत्रसामक्रिममा कणिकर्षिालाकोदोजनामादिदेवगितलमण्यस्वदमावत अक्षरमगठवलमलामन्चानुगतनदारमात्रातमिक्षिशक्षाविषमाग सकशिवपलादतघाहा दिचापहरिहरगतमबहारादतिरिक्तदरिलपदाकिमतीमासदितीनेयामिकाप्रदायामाममलनयष्चित्रियोग, विषयलाताधाविनिमेगोपायविषमलंगाधनस्वफपरिविषमनाया:कमादेपछतरनिकमारस्वतलावप्रमाक्रमादिकपलनागपिपलालावधमगातावमबतिरेकैलपशेजविनिमोगामीतर निमशास्त्राविकातडसायविषमलकममधे मननयोगमोपलंखलातकुमामानांक्रमबिहादीनाकिमावताविरवेपितबिमलावरोवज्ञाननिस्तावित विषमत्वानाबमका बाविकातादत्वादन्तत्रापितभिषमतापलादिकत्रादिसलमवारप्रसंगादिक्रमशुपामविमपलासोरसताकिवस्मतिरकन्य क्रमश्राहिमोगामंदिवसमाहवतंतत्रनगरकामतिरेकरकेविनियोगाकमाजिविक्रमनयुक्ततिक्रमजिवितायोमता। विक्रमादकमानसातमासात्सदातत्रितियोगितामबेटकविमितालारलेटवतततिरककलविवाषितावनिमोगामान निश्रमदनयोग्पतालेदासुपगदोबाजावाटिटिवीलावलपमलिक्लिप्मास्वाकक्ताशास्वादिकलविशेष्ादानची यन्दिनाहानपिचक्त्रमंगाक्तदानेवशास्त्रमनपरवनाददासादिकपमस्वलाप्रती तावत्रतीतपतपरखनाददातादिका जैन लान भंडार-संवेगीनो उपाश्रय, Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वादमाला-[२] महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित - स्वहस्ताक्षर आदिपृत] notानरः॥श्रेलिबलवत्वादिविनावादमानाdिaaiयो.क्लियमितत्र बनकणविदिमाता सामान्पतिोषावसातामामामातुनिषत्पपासाकारहनुर्वस्वशाजनतिरवद्धना चित्राशकनानाविशेषकैकत्वप्रकारकपनीताटातपततिकतामामहेवरेकप्रदेशकनानापयाममल्लिविदा मककलत्रकारकप्रतीत्तावताटातपातासाप्तादेबरसेaविविधप्पनुनिन्सपायाकारणकारणात रणवर्वम्लेशाजर्वतिरवश्वकविशेपकानेकलाकारकपनीतातादापनविज्ञाषाहरिता मोदकावरीष्मका नेकलत्रकारकबोधदितनाविलापमंशवादकसामान्मनादम्मामला तावनकविशयकत्वास्पेवालवादगतमेतदितिवाविशेषग्रहणानिसरवनमापराममा चिमतभाशलापमंशवादकमामात्मतादाम्पापनमकीनाकानिदेकत्वम्पातिर तवनदानद्वधानेकविनापरत्वाऋतिरिकक्षित्वमानाजावातायनविशममारणि थाम्ममंत्तनम्दतेनविरोधनमेम्पलगत्वप्रतीतितत्वमूतवाद्यौरविनविधीत्वपमुजयमाता मापनसमावरिलोवरिल निवळतोपदर्शिततन्त्रतत्राप्पकतानविनसत्वादिमनधनावरण बताएकाबन्धनविरोध निबंधांतरणविज्ञाबुत्रसूहत्वात ननुयादप्तामा रणविशिवतरप्रसटत्वातावदितामामविज्ञाबाजपस्सनम तदा कृवसामान्पकबनविदालेक्सनम्पादितिचन्नवन-मसत्साप्राधस्तबागकामा लेनम्पादितचन्नकैवलम्पतम्मानिस्तषाप्पकानझाबितिवृत्तामान वाषावावामित्वनिस्मादप्मादेवानएंसामाशिबवानवसनाप्पसकिदवरत्वकदवाइतिसरात शत्वमनहारापरमानाभिकारणलमात्रौनतमुपपादन शहरमहसमरमानन्दकनाहजनवर साततपयश्पितक्षिकालापानमापदतादालयातिपटलापमानाधिकरणब्यापटिकदा दसवमनहारतसंगतिविलाननामा प्रत्रनमातात्यविधीपेनाप्रसेकंनरन्तकदेवत्वमेनातानमतामयन सुत्वावरत्वासमत्वानिववनसत्वादिप्रकार:सज्ञापितंगा:प्रवारप्रनंतनत्मिकबस्तनमप्रसपारज्ञानना तानिकनमित्नामुपगतापमाऊलीनावलवसमवायविषम नेत्यादिप्रतीसपपादनेएकसावित्मादित्र तातिप्रसंगान्त्रनामाभिननकासपगटेपिनिमारतापकत्रातलंमोरम्पलावप्रयोगात्रसकारताउदा विनियमात्राथकवादितिनगरकारकत्वादातनिधित्वायत्रमम्पनराकीजलात्रापितधात्मकतन्त्रमा बदाममा निकषपहेत्वात ध्यत्मप्याऊपारिलंग हिचकोलार कविशिमालवावगाहनामानियतशरीरोपादानाबबेदकलेगामितिमतवाय बालश्मीवारातरइतकारत्वादिनियादिमलाकोश्वशरीरवदिमजमानादपिशरीरकसम्मकमलानालामपौलिक त्यानबजमातीचमारणाघ्रतिश्परिणामियरोतरवकलरममावनात्परिणामिनभवनम्पादतए बौदारिकादिवासी रमवामिनःकमलअवशेषिकमुपादानवमीमतेवशरीरलंगशरीरांतरकत्वमाप्यमनवम्बामगादिननेत्रबजाकर स्मानीमायातक्माममनवायाममतानचमिबरी रत्वम्योपाचे बातमीपशिजिरितिशवनायंत्रसामकर्म शीरमाबजारन्यामनस्लवादेववतमपरिमाजिदकतामाःपावसावनतरमसाधनमााकलापलाया। एकात्रानिकारतवराशदिकिंसानिमाकोसकमंधकासेनेनेनिनेमकिंक्शविशेषावा करणतानाबान. समतलनामातरणकमलनापगमप्रसंगोमलवाकागादिनम्मराटि चारिरित्यापमानामताभवाकार तामगहउकत्वतहानवमानमारमकानयुगपदेनाछोटोत्पाटप्रमेशकरलालानरमाप्रसास्वाधकत्वाकरामदासानाय मन्मकारणपरनाकारतानिमतिकारणमात्रकृमतदातन्मात्रजमलेशशंदेरनादिदिकोरियादिनानानमतान ससानादिनतिनियनाकारत्वादेवटाविबंरीरादेपकरणसहितकनिमीत्वनकजसलवामा मुममियमूत्रपनतदानपत्रारदिपरिणामनियामकवविशीभविनमततेदाप्रवियुकालाशिकाममायावा। बिनमधलानियमामातर्विश्वदात मा०प्र. 39 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वादमाला' मोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित्ता.स्वहस्ताक्षराआदिपृष्ठ] एरित्रमालिनतनवासर्वत्तरहिनावालानामुपकाशमवादमाजामिनहातयात्राबाट मानधात्रानाको विवादलनाध्यापित सभाानवानानावधा:प्रधयाहमुनिमलमपिस्टोदारासरलतकलीनाभिवशाविकारावहानामपिकमिहयूम मालाामभावाजा-रुकंवपागमामानामाशाजापा नवनिममौक्तिके: पवादास्वत्स्वाद स्वत्व हादजपलय विनियोजनकम्मापारविशेषमनिस्सस्वामिविरुषकमनादिकारतत्रयायाधून पागातवाचावलकमनापतेः स्वमसमम.चम्ममदिनियोगहइत्वममेदार्जितमिविवाभासायटविटी वयोगकपाया: प्र मायतमतम्मलेलावादावकलचन्ताशज्ञानलेवनलेवनामिः मनस्वबजानोवतार |विरामाका गावहिपरकीमानकोबानामताहिजचमा द्वारकाधनतामा जमतमातविरपेकलाबनवलविधवक्षनाथनर्वस्वला-नदानासमदमोविनफ मानामाजमतातावरपकल मायनकलापानापतीहिजचयदिनिमित्वप्रतिशहादाहिरिशेषस्तदवनिस्वलज्ञानभवन ताजातामानाजावादानशंकोजानतळयाजावाश्ववर लापपविपितवावकलेन्स्वाहत्वापानी ISEथानत्रयहाटमापरिशहा1/ 2जनिक/कमंकनकपत्वाकमन्वन्दपaकादहमास्वत्वारममाथा "कनकनावनामसाधनारननग्राभगनासामोरावसाशाबंधासामाग्रामातीपादाबनेकातिकत्वालाहरूमा साक्रममाकरकमकोःकाम- काजमनास्वमितिसमएबस्वलेमानाहदासबरवतमा चाउगतमवहारमात्रााक्षःशशगमनावषममममसाभमशक्यतादादाभापहरहन महारादातारकाहारलपदावफलवीरासादितिनमायिककंप्रदायानभासविनयधीवनियामायणमलता। विनियोant नमसपामविलमबंद्यावेषमतामयवस्वरूपलपूर्वकमारुतरंचविक्रमादेवलाप्रसवप्रयागाहाक्रमादिस्वरुप पवलाजावत्रसंगात। नवयभतिरकेवमनिमागासवनियमाशास्त्राक्तिपायविषयमकाम सातारलान5.ानीय प्रतियहादीनोमिलनावरबापतश्चिमलेरिमेक इनारमहाविवतमिलाउने पातही लादतंकवापिहा६षयतासलाविकमाविलअवतारमंगानाहरूमापायरिIजमामोरमताधि भवानयोगाऽमलवानेश्वयमततारपूरकराहरकत्रयुमावनिमगाम तक कि उनकमा तापापनाविमादक मनिवसालभस्मासयत प्रतियोगितावरकविशावतानादयताप्त मतावातमागासजानवमरनमरपादामुपगमे।सजावादितिलावत्युषामालारमामबाबंध: वयतटपगापिस्वलाजावत्रमा विनिमोगमारपरतान544 वमरक्रीनविकारही लादतीन उस्वमतरका-अंधेरवानयागाउMY मुक्तकमजगितामोपमायक्रमादक मानबह Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कादमा बनिनजन्मतनवेदकातड्मविषमकतामतापलंगारनादकाबजेदेनरमागमत्सुदावचित्र संमोगचितामयोः ना साझालारापसार तदवद्धिनरनिकनाकुपवाचिन्नेत्रहितदखिन्नरशंगमलेनहे उजायस्वालापकलायसवगत त्यगुणवानुषतान्त्रिसेनकलवघर:जयोगत्तादिनाहेलानकक्तकामतारजदकतमत्वविश्वकादियुपत्त आयकमाचापवावर मगमहलमावYममाविकारापिपरादेवकुमलगाताएवनपरमोटापात्र बारएममकतामहलमोशक्हेवताभापासवानकनानुपायजिन्नसमागमलेगौरवात्सदकत्ल समयाममतरमबंधनातहततरमविषयकवानुषत्वाववितितमःमाशलेनहोशिसारवादकादिष मकमयागादिवसकापपादेनायतरवान्त्रिसंमोदनवग्यरकपाविषयकबरपक्षपाक्ष्नामक्कुयोगलेन धन्यवादयुक्तास्तवमदिनमक तलमयस्वालातिनप्रतितन्नट्मकुममगलनहउपिमदिनिकलावस्था मपारमारिलायन्सति समोरासुमाग्मायानदाअगसन्त्रिकमवायोनजातनमनाउपत्वाबहिनीमा गत्वनहत्वकल्पमतेलाघवात्रहिततम्याक्तिमोगदशामातापिटलमवेतम्मकमचिन्नमसनतनाउक्तक्शिणहउताकामत स्तित्वावधामातापिकावरमारियादीनांकरमरमात्मानुराधामसमवेतनालेणे-घ्राहक्मयतस्तभागत्वहत्वाचा २५कत्वबस्योगहताभिरिदिलानमारकामंमागमछकामकाजेटकमधीवक्यलमन वैतसम्म नरमादनाकुषचत्राशेमक्किचाराततकिलोकिकलरनवमताविषअवसदकमलावरमयाऽयमदनसलमान पिदावनिक ना. બે થીમ મા શ્રી દયા વિમળ, |ી ફિોમ્ય પંકા સૌભાગ્ય વિનt/10 ને જ્ઞાન ભંડાર, 3. . . 0 [अन्तिम पृष्ठ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y भापारहस्य प्रकरण.महोपाध्याय श्रीयशाविजयविरचित [आदिपा] स्वहस्तो ऽयं न्यायविशारदपादानाम्। chpb दवाएंदनतंत्रज्ञानसत्यगिनिनेनवानाधारहस्यवं विद्यणोनिययामतिरखनुनिःश्रेयसाकिनांनाषावि अधिरवपमादेमावासनि नियन्त्यास्तधानवात्रयोश्ववारि गवातमवपरमनिःश्रेयसहेतुवदिनिनवनविन नताकशालस्यमोनमात्रादेववारगतिसिलासर्वधातानमवदारोछेदा निभातस्मात्यधिकारिचावतक्तं वयविनत्रिअसलावउगबऊविहंश्रयालतो जविलासचीनचेववययुतयगनोलिपसुतावारगुप्त सवारगुन्नवानिमाना तदिदमाहीतगाधापातनिकायोलिकार:ग्राहजस्जासमाषस्सदासोतामागंकायत यायनिषश्मापामवियुवाएपऊपमालास्मदासानवविविशुचाउमुचिरंनाषमालस्पानिधर्मदाना दिनागुलवतदिदमुक्रवमलविनतीक्रसलावडेगयंबविहंदियायतोदिवसपित्तासभाणतहाक्लिययुतयंक पन्नोत्रिततोनाषाविषधरहम्पपदाकितनमाविकीपिताशातरशतयुधांतर्गतयभारहससाक्षादरहस्मादिसा जातीयप्रकरणमिदमारसतेतस्पनेयमादिगाधा पलभियपासजणि जासरहस्मसमासउनु सेनाऊ सुविहि-यावरण दिनाहिंउवलहतियनापारहस्पसमासतमझेपताक्षसन्ययाश्सनप्रतिक्षासा नतर्धिनीझिमणामवानफनिकाक्ति प्रवाकंपार्वजिनेजर्मनिरागादिशनितिजिनार-मामापकवलिनस्तेविश्वप्राधान्पाजनंपार्षधासाजिरवपार्वजनअनेनवसमुचितेचदेवताना मस्कारसंगलेचनचविशवास्परिचालितालवतिनीधाचारपरिपालनंतखतःश्योजनसुरकः खानावयारन्तरवानवापूर्वजनकतयातस्पफलतअिंप्रदविनविनाइपफलेजन बिनापाना बासतिप्रतिबंधक हेसुमहरादपिफलामुत्सनेत्मिानपकवाघ्रिसस्पवभंगलफलप्रकलनावे Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहायते नादर्शनानाति तथा कलावनपलिवानमुनयाचदा गुण कालावत: वतियाक्कविहिका करणादपासवानाराषपुडा बनाश्रतानादानापास्तरनाकामनाएत्रास चापाकोभसवयोनलिसायवनुनिनातालकविताएगाने प्रकाशनाला नारिवाधियत) साधम्मपरापस्सअपनगरिशिअम परमहलसाहिमिथबकरेइजागान्त रणविमुधर्मगरिनछपरायणस्परिसक्तस्पतथाऽमालयापरमप्रनिनिधिप्रातिप्रा. पॉराजयकवावंजामवचारवरियतस्माइनसतधामसरणाव-वितंच स्त क्षलासरावंतवारिउवणेसाषमालम्यूहलजाबावरणारत्र निशिनिस 'लरोकिभित्ताह चरित्रलाही स्वक्नुिहलत केवलकालबिसेलेसिजोगगर सेउपा असर पायरेकमुरकर चरित्र घ्यामोहमा विवाप्रिनिमय कर्म सपिच ततस्तर कवतासाचारमोरिवचिनावमनयोकर्षापूर्वकोटीपावदितत्पशेली योगेश्योगत्रय 'निरोधकरणेत सर्व वरनामा भय म्यताहशामहरिनुनमक लगारिकपुरमा पत्रकार लगातेत प्रचालिसातक्षमा रयंप्राप्रातिपदेवसिफाफिक्कलमुत्कार हतग्रंथाचमा गमाह तस्नायुहानाम्याचरित करमहाविलिझातदोसपाहिज। गोमतरमाउनहतानकारि नगलतेएतद् कालाररम्ममय जियथा २५रागलो विपद तथा सम्परोनारिन ननन नानोपानातकोतकिंगुरबपरित्या उकएकलएबोलायमविवारपाल रिलमतपत्ता नियात्राकार अपने उपायोनिनियमः कसने वाला रंक सामादिनिका मारत कमतिरसारिलमे विशेष्यायाचपतितम किस प्रतिशतमा यातना सिमास्वामकावतमहकानाकर्णनापBिA3फलटेनले महिनाकनाश-RPURलीताराहेगुलरलदेवेोजातिविशेगावनिमत्रपत्रमाजातिय 17 कल्पनामावलमतगणानपानामा विझिरेरलतमात328jायरमेकमेव राजपाककय तुलनातप्रितिमनदाज मंसदमनाया साथ सामरा रसरूनियापतरदामोमिनुपसायपतीला तसतविक"""सामागोनिसार कुवलयामहिमश्रीदार विजयसपालमानतिजकत्रीयभनतिर राससवारजन्य पुरातात. इवनिमाकमाना२तपदमनाका तसा जम पारनरविन कपालमनोजयतनगजीवांबितदाताहराहगिरासररलविजयासहसर एजाजालातनतक्रमनवायांतराविनतमऊ. नर६लाय 4..निमन्त्रय जाप्रदायक सन्शरवाडभजीतवियत्रासाला गयाचा सनमानयाद विजयत्रज्ञाध्य विद्यालयालोयसतमानपतावामानातसुधामोदरःसाथसामानशासमनाक रहमद६-तलाकरमतत्तय वापिशनारामानम्यारालंतजबीज.रागमोविलीमा गावाममायावदयेतावनीयावासमानादिनला असतामिल माती भी ..मता विजायमानाचा दिनमपलानीपमान अिन्तिमपृष्ठ] Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयरहस्य प्रकरण. महापाध्याय श्री शोविजयविरचित स्वहस्ताऽयं न्याया चायपादानाम आट् नपदार्थानमःश्रेलिनतंत्रत्वावितलापादशिनापरोक्ललयेबमोरिहरसेनयगोवरात्र ततवरवायााहीतदितरावाप्रतिक्षेपामध्यवसायविशेषानमन्त्रीमपामधिलताशात्रटिकापत्वान्तबा लियानिवारगयंत्रललवस्त्ववाग्राहातापवंचतत्पदेनकिन प्रतिवविधषिश्चिातनीदामाप्रवनवस्वाना हिस्वपित्रायलमानमेवतियतापतिकवानिासनगात्मकामालापदाधमततापवतायैकद तिच्यामिवारपायाभवप्नायपदापादियालिरसाद्यअतिदपिल्पसायादिप्रसनत्रमालतियाशिवास्पामविश पदं नया:प्रापकानाधकाननिकाशिमिकापललका बजकाश्त्सनधतिरमितजापत्रित्रत्रापकत्वनमाला सिवन्त्रप्रतियोगितियोगितावापन्ननानाथमिकतरथममात्रकारकत्वमादकत्वतधाविधपतिपविजनकल कित्वानिवर्तमानाशाचितवामित्रायकत्वानितिकलाग्राहिकयावस्त्वंशकापकत्वा उपजकलंत्रा lalaज्ञयापामापेक्षामाचनियाहिलामजकत्ववक्षाधामनम्व विषमभवमचापकत्वावंचपदावति पादयन्नपिजामकारस्तत्वतालचन्मेवमातवायद्यवनमानाममनसायकसताकिचताउवएमोमो लाममित्मानमजन्मोपदेशोनमपदापचारासतधाप्पततंत्रातरया:स्वतंत्राबाचोदकपकग्रादिलोनिको श्राविताउलयचापिभियात्वमितिचन्नप्रमालाक्षनितेषाजमविकल्पाचविषमप्राधात्मकपस्वतं ऋतायाश्यनिध्यात्यायोजकत्वातागोलमुरमत्वमान्य नदीघत्वमारिवाने/ककक्म त्वाराप्रपंक्ति दानमत्रलिंगेहतम्पत्त। अतएननिकमित्रचनाप्रवनायफपाणमेतषावित्रनिनित्यमप्पात्रांकनामांसात्वी जावाजीवात्मकत्वमगुलापयिामकलबउत्रिविषयत्वचामिकायावकत्वभनयकाळातलमार कत्वमित्वत्रित्ववववत्वषटत्वाभवसायानामिवपर्यायविधिनात्यूचगर्थयाहिलामतिज्ञानादीनानाखेका नाभित्रालनिमतविषयवित्तागशालिनांवपक्षादीना भिववानिगमायावसामानामविकनानाथीबाहित्विा Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जावाजावात्मकतंगलापमालकल-वनवतिविममत्वनाक्तिकामावकत्वमम्मम्मकाऊtone कलाबत्वत्रित्व-नवश्वंनत्वषट लाभवमामानामिन वर्मामविश्वधिनात्याधयामिलिवानादाता मामलनिमतविषमविलागलिनाप्रपक्षादीना भिववानिगमायावसामानामविकसनानामहाला रल मयरस तेयकेपितेसोममंदारमपत्रनपुकरजाकिनोनशविणायेचारवारविदतदेकरक्षिकालाध्मारकण्वतितो।राहत्या/ प्रकरवानेता प्रवचनसम्पागदलितमुक्ततारागषविरहताततोलकत्सालाप्राप्ति/ वीनमरामकरण प्राकलंचमहोपाध्यायश्रीकामालाविज़मलिविब्यूरममितमामाजविजयालिशियमवंतिमीनीतविजमाण जातिलकपमितीनयबिजमालिचरणोतिठापतिमशाविजमेन-६०० १११११ || ગી શિષ્પ પારાજ સો ! ' 3. 18नी ५१. विभाग Eku भा. अिन्तिमपृष्ठ] Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिङ-न्वयोक्ति-महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित. [आदिपृष्ठ स्वहस्तेोऽयं न्यायविशारद न्यायाचार्य उपाध्याय श्रीयशोविजय भगवत्यादा नाम्। शरदबलासतिपादपजसुमकवापतवीर वदामिनयाशक्षिकानामविनोदायनिक्योक्ति विधीपारफळयासत्रयोकनधान्यापारफव्यापारमाध्मलनानिधायमानाक्रियागत नसुतमामत्वकियांवरतुवापस कतानपतनिक-मानवपनापाकाका-कातरिम दाक्रियाराकाहानीकार्दनिअमनजोपारकर चासंतापलयलवादिवशीलातायातकारकान्तायामासाकवाहतदादानिवबुधिविलाशाक्यता वेदकोश माननीयतामाता मकवापनुविभननवमानास्वभावधतिमा फिरविणतयारवाताई बुनकर्मक रमाकामुकरकिर्पोमांकारामबाप पारसंगमाराककिप्रलमयोःकरीकर्ममा याबमाप्रामोपात्तत्वान्नधाबारलाईभरलाकारकना प्रसारमातजनक कोमिहिरवैन याथिकानामाश्माता रमाया:प्रश्चातायएवावयापारमाहानरमात्रकारकोप्रघमातमम्जमापारवाई तापितंदमुविजदेवातालकाजतीलादावरकामोरारत्माताधानन्यादितरराविशत्वजठिकाकार पालावाताआशधरप्रवेशमायेनपदात्रीपरिवहिपत्तिविशषवात्वसमस्त्रमन्त्राभूतम्मायीमादितरमा नालााशिवधवठघामिलटिगोर एवंवटि विशेमणवात्सायमेवानमिलान प्रतित्रलय केन्ना कोतमात्राममितिमायापारमाताजावायाजत्रामममितिमीमांसकतंक्रयताप्रलयात्राकम्पमिमा याम:मनातलमारिचयपत्रीनवेतिनानाधनजयाबासादौखाममात्रीत्वसवत्राममापन्नेचा शारदानापत्रिकर्मिविशेअनादित्रावामुमुत्सनओभरतएक्चर:कमलमिलादीविषपदापतनानांबा कमातनिराकानउवामानाकारकावासतानछेदकप्रकारकोखलनायता दिमाग कनफलमात्रा अवधलयामोगमनवारितिप्रयोगापतिःमंयोगाश्रमलामागारमावितलावातम्माविश्यकत्रशक्तिका मनगौरवमपिनारमातामंत्राममेम्मपवाशादिशामममजेदान्तयारममावत्राममापशिचाचपोकी कतीसत्रमा परिवेकवाक्यताविरोध:प्रथमांजमामभवनक्रयाविशनपविकतिपत्नौन्तिीमापनेत्रित्र तिदत्वयोक्ति- मोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । तिङन्वयोक्ति-मटोपाध्यायश्रीयशोविजयविरचित. स्वहस्ते।ऽयं न्यायविशारद न्यायाचार्य उपाध्याय श्रीयशोविजय भगवत्यादानाम्। महावापादत्रशंगावधानावका कारकबाषेत्रनमातरजमानाकारा मिनिमापिकनिनादरणीय मिलारनाजाधकप्रकारकनारयजमानस्यतिविनात्वावक्लिायमतमा कारणमितिकार्यकारललावामानावनात्रकार कबोप्रावधात्वचनावपारिवह:१३92मविपनातिलवतीमायूनुरोधादिचपवतीसत्रकाम्यमकामाका कलाकातनायतश्लोकात्रमकामादितितिककासाबनेतिबाधाकातडादीनामापारफलमोराश्रमाचमयों तंकत्वादेवान्नादिमानमोगलाममाताधकादिलिपधमाकेदावयाघटानशतीमत्राभिटालिनानुभकानाशा गियापारभिबोध:सवमापार प्रतियोगिवविवियनाम्गमग्रीसमवकरमतवतरमोसतांनापतितपसमेन व्ह विमतीनिमोनापति देवनाजावातीनतीमादीवविदनाभित्राश्रयावानवायलोवर्तमायामापार निबाधःचाहतमानमवसादरीलायमित्मसनथापिकमडमणिमेपरपावतीपत्रक यापाक3काबारबोधनियतत्कघसक्तपमधानोशुदिविशेषविषमतायवेटकलाववादिता धाककापूनायिकानम्वीकारण्नाक्रमापारमारिक्तरसालानासामाभावमापास्काउविरामाधम गुलनिवविमलानामवीकारवादनाचय:स्सात्रत्त माचरमयापारफलमानीमन्नत्वातदितरेषांतपत्र लगनाजावानजातस्वीकारेवगुणीतौरवमयःसमूहाक्रमळनाना मात्रकमिशानदक्मेितिमपदिसतह साईनाममूहमउलवानोकिविशवपटनमतपत्रापिघावित्राममकानालामापारतिनामस्वीकारे कमालपटोनरपतीत्रमाणापपनि प्रतियोगित्वविवियनावामागीममतामंतगापारम्पकपालाड लिलावधग्मटोनतप्रियोगावपाविश्वोतमाविनायकमप्रतियोगीवाशनाकामवीरवानी? कम्माजावाजपयापार-सहनक्रियालेदालिदापतिःप्रतियोगित्वीयवासनक्विाणविरामकावविभि महाविहादविविक्रमलेशिजतमानाममानया:क्रियमोरपिकत्मनमा लेदरनीकारक्रमानेदोदापत्रिरे नजामातीतीसाहानेवायलेकाचारजामपकाशमापारेमागाजावादेककटकानामोककी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुत्तत्वविनिश्चयरवोपजीका सह.महोपाध्याय श्रीयशो विजयविरचित लेखकेन अपूर्ण मुक्तः स्वयंपूर्णीकृतो अन्त्य भागः। जानकांवधिादिकोटीरामानंप्रतिमवकानोकोशकंवाएकोशशमानaatanusian GGतियश्चगायावारमाशिपयान्नानबाताaविचमवारयाताशझोत्यसनापकारazan स्वरूपनाएतमम्ययमास्मितंकतामाररणनगवत्यायाक्काल्याएतवान्नाकादानामन्यवरायाकक्षal नाभिधतानव्याएयायाशाश्वरलाकादिबदिताव्यनिघालतAaनावरहातावश्यच विकल्पंनाएकंप्रमान्यन्नावविपशचनापशनवरतरतविरवाचामन्यनाविषयानरम यशक्तिोमाटिकाविषतिनाaurangaविषयावनागमाणिधमाmraiनिधमानाaaaनित्य तानीयबादनापायशवकरमाशुवत्रमननारालीकामामात्मनांचक्लिष्टकविवर्षकश्मशान्या यद्यमावतलियंसम्मुयायमारगार एमिंथमटारसानाणियावामुरण्याबायाश्यार Jaaणियंतापमचन्नऊतविम्याग व प्यारमा इटरंएसावादनानाणियसागर पायामशाइल्पावधिकसमविया (रके मागविलियममाराएगानग्गामायण रवतामागसमप्रकायराइंयएपमि a यारणामगिरव्यसहकारिताबासामागल नसणंच्यचंमारविरदिनबाह्यरुयम्यानचाछि। तायंतावास्वतत्तणंजाधमाविमाशामंयमाब लवनिमतामविपरतिकारणाएतेषोमागस्मिारित्वमेवममधमतिमगायमारियोनिविता:विना पा/कारवतनिश्चित ६मार्गकघनगुणामागठिसारिलनिर्दियाशिवामपक्षमागविनाश्व नामा कधकत्वंनवताइसनेमाकघनगुनाहनुनावोचितपादिकालोव ने विकासेनतधाकार :पंचाशकादोश्रतिपादितइतिशेष:-२६.बायकवघानी विहारिगामाधाना कविता ठिकाणाहनयेषामवियचायोगउकल्वरलमनागमसिमसाहनिमिष्यावर प्रक्रियाग बयाणालाहविकलतमाकारविषयवाचनानामितपत्रयम्बामाकरणकलगाकरतिज्ञापत्र नमोरंडमानचानावित्र..कूवानिएफलमकामानितंतदासकन.निश्चमाधमनकरणाचब (कविकलामा चकरयादव.यशमा-हत्याकायामाहाकतततिारामतत्वनि१z:जनताaaian Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हताश्चेनक्रिय माग र परीक्षणी मे गुराव ने तानसा धारण गुणात वगाहमा नविका लादिव शादे का दिल विद्या ने पिं एकत्रीवायादित्यायेन कतिपयो तर गुल होने पति चारि ॥ सापेक्षमा लोपिसम्पदा मायामन्तात्तो वागमे सत्रविविहारे कम को इलाही! वर लकर विकु । उस्तो तो तत्र हि ६ मा गुरु व कर्म शोधलं प्रतिपादित किंच जेजे जिए हिलाना सोनेवता हा उदाइत्यादिन बना हिलो चिमदिधर्मदगुणेन माक्षिकाला खिलधर्मर्यादा वा वित तर मे वधर्म गुरु त्वथा विकरलीयारपात देवसहमति समाहारकरोति। तदेव नालेयं विजयपाली संविग्गा परिकयां लाइव लिया एायनागुरुतत्रपि मोएका गुलविहाणे विजा६ मा कहां। तावदिहोइबोला से साकधारकरो जाए ६वमलेला क्रियगुरू नावे मोतिया विसापयण हार्दिकु गुरुगाइया । जमतं चाला पाइप मिलक लहाने उन हतार विनामादिधुरो यो हाट द लघु माग्गरकशित होई.:२८ चितापर्यंत निश्वित्वा गुरोराज्ञाया सदासय नमूलं चारित्रफल में रुततमः गुर्वज्ञः चरित्र उनपे व परम पा६क्त मेम यतिका मामलकेतले मध्यात्मप्रति धक कर्म मालिका वादूति निर्मा उभयलिंक क्रोधादिकालका कति पाक लेकर ददतमानसोपचा ततः किं स्यादित्याह विवादले त्रिज्ञानानंद घने मात्र जावे पावित भएप Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामावलंबिलेनोपलमतिaatraपिकाबनिकरतगतानिारत्मात्रीतवधावातहदामधुन भयनानिमन:स्वगाववातिात्विादोजाव: 1613ामस्वतावस्मयोगिनमतादात्विकमुखमवाधयतिमा ममहावाबत्रामवजापानपरमारमशसकेपरिनामजकमामताकमायादिमानमरवबीजब्रिदाया विवाघ्रयत्नमासुरवप्रकटजन गतिरोकावयवतमात्मन्यलोकविमात्मपरिज्ञाननि R6.अतोनाम:मवारतान:माधुरिति रिशस्वी मात्रात्रा। -विपतीसहानुहुवित्री १५माकपादकरएनालघापियमानानांकिगामामार्माविकपमहिनाममुरवसनीमिय लचस्वज्ञायमतानिनः15वतितम्माताकयामलापतायतमातान. कहानमनपररममावाटेचाहीवेगमवायरका पाकपमतमासा माजावतमाको. .. जवनBAरकानहरूमहादानामत PH31,700कामावमाविरज्ञ.मकवाहनावादाजहान कनकलादरहरामाहाकाल तितिहातापायहाएकामाजामदास संतसहितमितिकाव.Narतक्किंज्ञामात्रएवमतोममतावांकामा मात्रकारिजेदेनोविले पदेशमाहता विगतमा.वाराित्रणामुनिगाज्ञानपूविक किमानमा विसपा विकलज्ञानवामधाशकसामन्त्री मोऽधिकारावावमात्मघापनदोकमवश्वदान.10 दप्तमहामहापामायभीकमालशिन मोतिमणि पावतपंप्राजाविजयगणितीच/नपत्रिीनविजमगणि Bhaचनराकलापमापविजयसिहदरेलपमतमशोजिमेननतामांवोपतमरुतसविनियमनवाजिविवरल-मात्राइलचागंग: 0 सामन्यवयमीतावेजमनाता: मन्नाशमाानाजंटेसनमानमा साताभावालामम्मरमापयविजयजातसादानेमामविशारदेचतो: महादमा110 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'अस्पृशदातेवाद' महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित. स्वहस्तोऽयं न्यायविशारद पादानाम् आदिपृष्ठ] , माजतिमतात्यहात्ततेामिछातानदिमतिःमुमधमा।इत्परकतमपंपकिनावार पक्रमः॥२॥दकेचिदतिमालमतयांतरालप्रदेवापनि विनाकममुपरिसागप्रवामानव तिनंचम्ममाणामिविगमनमामयम्भवातामेवानिमतिमन्मतेमकोक्तांचसिध्यतोगतरम्भशनासन यपाश्वप्रदेशाम्पोनेनमामयतिषाकामप्पटवाविदग्धमाकलयामोपतएवमुपतिनोफ्तनप्रवे सोनमयाधातनायतनप्रदेशमनारबकत्वनियमोपंगमममयबाऊसासाममयांतरामना कियाघातावनियमानुपगमेविकहलायेवादिलातालिकदेवापशानेनवनिरिक्षेत्रावगाडी पपादनमतासापगमश्संग:वविकसिमेनापनमयस्थिलांतरानिकप्रदेशमधोनंदेकर लवायपरम्पततिजाकनायतधामनितदानातावतोदकम्पवकरणप्रत्रगानमा नयाजावावगाटस्तावत्यवाचनात्यक्तिंव्यायतनगंगावमहामंदी प्रमाणाईOTAमरणंग्रविमादणंउगतासागरोस्क्लेमिसनिपज्ञापनामाबले बयहम्पालावावियदस्तेनैकेनसमयनाराममयाताश्वतरामचनिनेत्पर्धा वपतिपनपतसुकंतवतियावत्दाकारापहाधिदावगादत्तावतएवषदेना गाहमानाविवकिताबममयादमन्ममयातरम्मवान्गत्वातघाचा-मावेश्पकार जीवावगाडातावशिओएगादाएछुगंगच्छश्नवंकेवितिळांचममयनेऊतितामाको Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'अस्पृशदातवाद' महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित. स्वहस्तोऽयं न्यायविशारद पाटानाम प्राम) रोप्पादरिममेटिविन्नोसमयपएसंतस्काफुसमागा एणसमसणमिशअहसागारोवन्नो मोइत्पादित निवचनममृतमपिनियामममत्पन्नम्पस्चाविषय्यपरममुतश्पामनावतामवत्र शानामाईमुगादनयातरालिकप्रदेशप्सनिस्पसमुपपत. नवशिवितेत्रावचिन्नप्रदेश बननाप्पस्टरताव्याघातःप्रातरालिकप्रदेशामनिवान्नाविक्पात् तदिदमुके चा दिवेतालेम्प्रीमताशांतिपूरिया प्रकुरामामार्गन्निप्राविरितिनीयमधयधा मर्वानाकाशम्नमस्त्रातिपित्रेयावतजावावगाटस्तावतएवम्यातिन्चततोनिस्मिक मेकममिप्रशमितिअत्रदिस्वावगाहाविरक्तप्रदेवमाशाननेवास्त्व मुपपादितश्चमवा वश्यकबाजुराडिफ्लोनतिएजादानवगादातानतियाएवणाहणाएउहजुगंगा प्रवकअफमाणगताबिसमयणफुसतिअहवाननुमगाटाजेनफुसतिहमाव गबमाणातानएचप्रागस्यपण्यकुममापोगळतात्पत्रविक्तालेदाध्यारबाजतंगध्याय पनिायघाक्रमंसिफ्रूित्रप्रदेशातरोलिना-प्रशासनिामनविकरूपाताचप्राप कयाऽस्ट्रमन्नाप्राविपरेउपयङनारुतातरफ्लेचप्रधानावनतिविशनाचेगीण मुरयत्वासायारमानापतिरष्टचरीनामाइतिघेदवाहप्रस्तावाप्रपकवण्यम्सना वादस्पदण्यामाश्चतिमचनिहरकोत्सादिविशेषावरपकाशिता एवमाभयान नेदमटरर्वत्वात होत अभाविपतिको स्वावगाहातिरिक्तनत प्रदेशानभवन वायत्वासाव्यारवानापनपतनप्रवासनामवक्तालेदार Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आदिपृतु] भूक्तिप्रकरण'महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित्त स्वहरतोऽयं न्यायाचार्यपादानाम् । पछारें प्रेलिनतंठ त्या नानारतत्वादिशिनीलेवडष्टत्वनियाजक्तविकाव्यातायस्कपणेऽष्टत्व (मसम्मकोछज्यते।यघाहिंसाषावादिकंत्राममनिषत्वाक्पेलेवापान नम्मदाषलेनियमनारोषातरानुषमिवश्याजकतनानिरालाजनमापागम नावाचावारुपलेवबोउतम्पोषलरोमातरानुकाःपालकशन एनयूड अागरात्रीमत्रतज्ञऊंघुपरकारलिकाविणजावोत्पतिरततड्ञिानुवारवाया। जो नावराळामतदपात प्रष्टया-नुकताऊवारकेराघरानमात्रिपजीवात्मतत्पण शुभमस्वामिनभाज्यायपाकमिकत्वात्यायधामस्पतियाकिविझलमामरावज्ञानजी वापताम्बारावरात्राच्या प्रोग:नवनिमत्तलायकवाउत्पाजमानतात्याहापुराबा कामानमतलाकवरात्रि55.वाचकजीवानांइदशमलागुहिनदनचहिसाधा जवमुझाव्याततनविषयाटेवावेजावरीलरत्यानासवतायत्यामतत्वामहनाव तिकात्यारावारकल्यनयानोटिवादपराजसत्पयामशाहमादियघाना। नंप्रदायनात्ममतात तोदेवानांत्रिम तथाजवाघनिःक:पुनदेधिोराभिमानन निवेत एकात्यात जमादिदानरहितस्पवायरपरिहानामात्सवहारेला सोनक्तंकित दोपहिएतमुककालानिकातरपनिवत्तारतमात्र) नालावितकादिया नमनगरमेवचरस्पानामाहौचयविधिमाजकातदायकाम Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानादिकलाप्रामुकेषवितानवागनुकजीवानोदशति पतनीजावोपमापक निजकत्याहारस्यानावादितिप्रतिवादमाजीनामुशवन्त मजिजावांतरोपमतमानप रामपतनावमंचाताप्रत्ययेविनेबमानजीवमफूमिपेनबारपानानअपवानिन्नयन माउत्सद्यमानमावसहमपन्याकारयतामएवानाघचघभिनिगझिनोरता विवित्रमंनवस्तत्रविधनप्रायश्चितप्रकारशापतिःप्रन्य कहानिःप्राणमयेप्राणा विरहितत्वदरनिवितदये धरनायोतिनताद्वारातविषण्मूलायोविशवातात्पवहे। तारनामाविशतधाचैकोशोदशकमू"विहायधविश्वन उदनादिसामुकंप्रयत। छाप्यागनुकाऊँचादप-पनकादयशमछात्रविशुरुकालेऽईशावविकिवयेनिमत्यरुज्ञानोतिबियन कानपश्पेनिपावरात्रोनबुजविमलरपतंगत्वातजामिलादीदिनालबाविषमदामदमाही शिबिममाहाताधकरणलपराचारनांचाएत्विातजमानमालगणविरा हयातीतारातानजोतंभात बारातोप्यरोपापानिवायादियाएमूलगुणाजमोजणविराहणजनतिताराताएननोनयमिता तथा Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्यावाद रहस्य [श्री. हेमचंद्राचार्यकृत वीतरागस्तोत्र'मटमप्रकाशवृत्ति] [आदिपृप्त] महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित,स्वहस्ताक्षर. विशनx प्रससरसाहादरहस्संहारसयुकिकं निस्वयमावेशापनिवार पर्यागालामुनियमापतानाश स्पा -पूरयामादतिवादिन्द भद्दलघमासादिवानावासपरकोनाताननियमानवतानातकपरनवाजयममावेश सकलयुवकर AVाएकार फारमंत्रमारणकरणतोया अफवानास्ताकनिमयपस्वियासाचनावंत्रणापाबाचाटा नापरेषाजपितस्वनामूलनेबकोनाचीश्रीहमारे विवृतिमतिरसालानाजीतनामिाहादानवेजकुवादिऊनकमत भन्नजगa:शु'नमोक्नमविभीनमिश्रीदेमहरयायवावविधतामवस्थापनकाशनगवलक्तानुमुपकमनसत स्मतिअवमानकातील तिनविप्रतिपतिएकोतनिसवकोयमिक किंतुनिसचमनिसवनवा नित्मक निसरनन्। पनिशरवसादिकानामपितकाचायवांनिपतपरमनप्रशिनिसमवहारविममवनेनतमापयामासबसपदार्वचनी नसतयमतसंप्रेतिपालसोत्पादययश्रीवात्मकम्पतियारबारfaazाविछयाएकोननित्यनित्पवाजिन्नानसोजतनावाचवा दसतानातवमानानास्पानपत्तनपत्पज्ञांकरवटिकलयीवबादिनवाटेनापिघानधतिकभित्रतातिप्रमा तालित्रातीमावायनुपदिझनीतत्ववोषणाबच्चदेन विद्यमानमवविशव्यस्मयसिम्पानदाल पालीवविजोषतावविभवेनानि यावशेषणानावमेव विषयाककने निधोष्पननधान्चयवाचकाजावातानुलदका। प्रतिक्षणंघरस्पविनावासादिसनिदवेनभिज्ञतानवृताशकणगरसदोषानावरवादीयरेवइषिताकाश्तुमंत्रविद्धन्नकिंचिष्मा, वधिमा निमोगिनाकनपाजावपात्पनाजाववनियमानत्रायुक्तनीतविशेमणानाछिन्नविशेष्यानावविषमचमितितत्रुघटदसवमत्र निमोगिना निरिक्रतिवपित्रात विशेषलायतमाचासत्तीकार्यस्पावरबिपतिस्तसत्रधावामुपगमाबानन्वनविपान पदान परिक्याविनादाद प्रयोगादिनाश्तापरिश्चतिवेनप्रतियोत्तरकालीनालाबादप्तासमाउन्नरत्रवानास्पादितन'घटनर सस्प मात्मलेनोर्मधमाजावादात्मादरकांतनिसवंस्पारितिवधमत्रतियोगिवति मात्रनिया गिचनाकानबापायादिमांसुर्विशेषा यात्मवनात्मनोनिसबंतझावामयन्त्रावटचनघटम्पनुन तिननुनझावनमयनमिकलदानद्नाकपंनिसच्चमात्मवादिनमादानवेन्मएचगानारविंदमोदरनिचन्नधेमप्रतियोगितानववेदकपक्चरसेवनद्धचानचैवकंच्यीवाहिमच्चनघटसनिमा लसादितिवायफार्ममापिप्रती निबलेनावर कवस्वीकारावधमप्रतिमाहताबवेदकंयमावलेरकंनर्मचचरसवात स्वाहाप्रबकपानाशाकपालादिसमवेतनाशप्रतिकारणचायग्नघर मचाकस्मिक निवन्नकारणवपर्यायानीलिवलेन विशिष्पविमानानाभवकसनादिनिदिशतवाऽसतागमाययिाणामपिनिन्पानामेवमतामागंकवादयघापर्यायवतापनि पचापन्नो नित्पत्रमशहानेअघपटचादेरेबकपाजादिजन्मतावदकसायटचस्पचकपाजारनिचात्रामदोषानिननकपाल बनियान्नाजाबप्रतियोगितामा SSR250 1629 Calc 26. Anaeth tulkan Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नदम्पत्ती लादि, तो हापि द्रव्ये सर्वदा स्थायिनि परिणामो पालेर परिणाम दो प्रती बिनादेव नविरुमा वितिज्ञाव: तिओग श्री स्पा दादो पनि पनि सक्मिक्तित्र वारे पिया। मुत्समदधिरेत्रकशनमनैयाधिक प्रक्रियाः किं वित्रदिवारी पर मायादिनां तत्रान्मरको नया देविनयप्राज्ञाः प्रमापदि ॥ मयंती वरोराचीन जगत्वाद्योत्मानोदयः यस्य श्री मद के घर प्रतिहत प्रसूती मंतिनीने त्राता मिहीकीतः सितामान बोहरा र भूषि जमादि मेनमुक् सेजखिनामस्तोय ते नमो मतः तशा या नदि शीवाद दिल्ली पतेः पर्षद बस्तान नकै वादिनिवमन्त्र बंधावर श्री विजयादिदेवमुकः प्रयोतते मात्र नम विषणं मुनिजन क्रमाक मामुपाजतो तुमेयाम तिनिति तावत्पलममत नाटक तपादि मुना मानो जम्मा' तत्पहा तरुण विष्णु रविदायी ह होता कीर्तन तस्मात् सुदारता । वन क्लकपना लखनादि कुंजाः कातरा 19 मायोज राति कामना र काम बंद क झूलन जे नयघपिवाड नाकिनमतिषां जजनेतरा श्री महाचकपुरावा व श्री हरीश श्री काल विराजमानविजया वष्पाजयश्रीमत: श्रीहिमस्त लिनां दधतः साक्षानुशासनो धिया श्री ज्ञान विजय विबुधा तेषां शिष्योत्तमाः अवस्तेषां शिष्या विबुधाः श्रीजीतविजयनामान: राजतित बात श्रीनय विज्ञाता विबुधाःस्माबाद र प अमित त्यागेज सब्जियानिधगलिना शिष्लनवीनतम् ॥ श्री इतिश्रीपाद रहम्घः झवल 1 वर्षे गलितं विजयेनातपाततिय 11 तर प्रकरलमेत तर्कशास्त्राणि प्रभात्लमतपरीक्षा दी ज्ञादसोय निर्बतनोतु ॥ श्री ॥ स्वैर मि दानुरुतरा एवमनागति। परमित्रकला गुणनायो श्री 3 दादरहस्य यंघः सम्मान्ध [अन्तिम पृष्ठ ] 199 Beeg18 To His les cou colele hyl) Vale tata 119 1 h " १३ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ कलिकालसर्वश्री हेमचंद्राचार्यकृत वीतरागस्तोत्र हा प्रकाशस्य बृहद्वतिः [आदिभाग] स्वहस्तोऽयं न्यायाचार्यपादानाम्। एदासकलवाचकऊसालंकारदारमहोपाध्यायश्रीकमाणविजयगणिशिष्णमुरमरित श्रीलालविलयगणिशिष्णमुरबपडितश्रीतोविजयगायनष्ठितश्रीनयविउमापिगुफमोनमः। होकारस्फारमंत्रस्मरणकरणतायाःफरंतिस्वयानस्वछाएताश्की सकतमरवकारक इदिनेषणम्पावाबाटानोपरेषांबलपितरवनोन्मूजननकक्षावावोत्रीहमसूरविरतिम तिरसानासनालातनाशदादविलकवादकतकसत्तमसम्बनेलगताइनयाजावर भभिमीलाषाश्रीहमसरयायधावस्थिताषयवस्थापनाराजगवंतस्तातुनुपक्रमेतामच मतअत्रसञ्चभकोतमित्यनवनिचित्रलिपतिएकान्तनित्यत्वकोटयत्रसित किंनिसव मनिपतनवाऽनिसनिपनिनवेसादिरूपानचैवमपितझावाययवरूपंनित्यचेपरम शिवपयवहारविषयवनेवतस्पापन्यासादासत्वस्पपदार्धतेनालयमतसंप्रतिपन्नास उत्पादअषधीयात्मकस्मेतियारयानेजस्वमतावष्ट जनजाजत परमतेधर्मितावच्छेदकानिएकान्न नित्यनित्यवासेजिन्नतिटावेलतनाशे घटादिपायाकंनकारादिहतानासर्वधानाहा मानिस नियनउरोधक्षघटादीनामनिसचबकवादिनामविवादावापरमारनावमाकाशदीनांचराधिानि त्यस्मुनटघियादिश्यम्पसबघाऽनित्सवमाताहपरमत निगमएनवप्रत्यक्षविरुन कंत्याववादिनवनापिघटानष्टशतिकाश्चमपतिप्रसुतहमनमवहत्यिंडस्तत्कंजयीववाटि Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'वैराग्यरति 'महोपाध्याय श्री यशोविजयविरचित. स्वहस्तोऽयं महोपाध्याय पादानाम् । [आदिपृष्ठ] ঈ आ नितपदा त्वाती करानुपम नक्ता रामपामौक्तिकश्रु क्तिं परा पर नियुक्तिं वैराग्य नावत्तावन टूटतामा कारण मित्रास प्रधानुसंधानमति २ इतिय तिवृष राज्यतर जावसं वेश्वरितैः प्रशम चमत्कार करें। १६ तिमा उमाशा तत्रारोरोज विनाधर्म प्रदान विधियानी पारखाव व क्रियाकारिता पुरे टपर्यंत जन्म प्रतिबखस्तु चित्रगतादिक मतदेव लक षोमसकलकले टमाटाकार परिवाद्यतमले ६ इष्टवियोगा प्रिय प्रयोग निम्नारुरूप दिस्ती विषय सख्ती ननुकाननजा म्पू क शाल विकल्प नरडरेग्ऽरोदी निरवधि काम मनोरथ रघप्रारोपितमार्गको स्तं त्वतो विगत विभयकदशन: प्ररम्होदरः पापः विपरीतमतिस्तत्वात त्वयनादिलो नुना मर्मक पर्वक मिलाना वा तू पौरुषः कोतः विषयानुरामा सज्ञानतोऽनघः ११ती वनाइ लितागोभ लित भोला विनर घरातीतिः १२ विषयकाशाचा नजन्मनामगे हे प्रालाको पास १३ कुकपाका तस्तनुं तत्वात्तिमुपार्जरमंती गण. १४ तदनादरितोना 5ःखशोक निर्म हो माता तिलपितिको विगतिर ११५उन्मादमिध्यात्वं कलाको त्रिकका जनताक इन राति खाय विशमघर्ष चतर्षः क्रोधःकनक घाती ज्ञान नेत्ररोगोहादेव १७ कार जिम कुन् सत्कायो साहहरो जलोदराः प्रमादजः शक्ताऽश्रारिति विमाना तिरुपहत इतिसर्वस्वालयदि मलाई महाश्वारामा अवामा परि रोमनांचा पात्र हा मःमरामा प्रति जनता विल विमान २२ दि मदतीचिन्हांको याम्मामतदाताको यस काशिष्ठांना २३ नामदेव मानमानेपः मेला तिला तैः प्रहरं यमार126 एवम ध्यायति नपुनरवाना ति किमपि पिकदनलेश जग वेत्ति २५ कमी करना कधनादिकेोपिकोनात्मानमन्यदेश ललनां निजललनी मानी निजमंदिरं विमानीयन स्नयामः तस्वनगर विदेशागत परिजन २७ महतोला तिनं मानिनः प्रभिमातिने हदये स्वगयतिजगलभरो जलराजा २० तस्करले शत्रुष्टः शृणोति विज्ञप्ति नोश्रमसत्रिपातः पतिपरवल अकील करते न वाहताना गारवमधिकारा चिकिरन ३० महानुगम्यमाने जनन मारत तिन पति जयति धनगर्वहतामृतकल्पः महापुष्पा र कोज्ञानादि रत्नविकलाना मंदिर पिलोकः २ ल एकदा शक्रादपि कमनुजानः ममेतिनिपादपि पात्रात मिक्त तमिलचितलाला चित्र नियनि प्रति नम हंदि क Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्यभीय चरित्र महाकाव्य पध. महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचित्त स्वरस्ताहार (?) [आदिपृष्ठ] १२ अ ऐनमः श्रीअिभायमा अतस्वितेयाकामलालयोयना पोषविश्वेषनासनोचिताम: प्रमाप्तीअरुषोन्नमवचिदिश्वर माउसमातिनंदनः || सएवदेवः किलतिन्त्रनामसर्दि विच्यलोकस्समपाश्यतेऽरिवः मकरधक्तस्पफलाप्पाणवतःसहायतामचतिवासना जटाशा तदागमासपजीवाड़ीवन परेपिगतिघनाघनाश्वतदीयदृष्टशपियूमिमेदा तवचित्रास्पादयसंपदीदाता|अगत्यो घस्तउपसमझाता निरामीवधा वनीतानमावरचात विनावावेदान्यम्प्रदामहोदयाचा मत्य योजना कत्यघोपिसामाधनोविधिताय रिश्दनाघनायो पिजलाइयो किन नचिंत नीयचरितमहात्मनामधासुधाऊंगणमुरापगायछमन्वतिचलियबुधा। विनलावादितमपादोया सलमत्यनुतमतिनातितवान्जाबकोचाकति स्व वीशरासनेनैवविारात्यधीयास्त्राक्सिमोधीसत्तोसाधन: तापवायततातदिग या देवतास्वानिवका निपदा। सदाशयोजिम तोकिः प्रदेशाध कतारसयदा बनवलमान्सरतेसादिमः सदासुपरति सिताघनाझरी विलाप्रपूलनिमरावतामिवनवाताहतस्ताकया।राविनाता Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाणिनिरपिम्बूपुरवंदी:की जितसकउपाकिउवाकाकिनाकरशमाऊऊंगरविप्रजाउगरप्रतिकार: नाश्वत्वदचिपालटान्दाराहावयामादिशत्यपदिबाऊबीवोउदोषियीरमा रिमायभावमेघविनिमौसमुनंदानंदनासनपनामरिभूतनामवरदाहित शेवाविमाविवद नकुटलज१६पालितानचिननमिपाउविधुना कमतामी नेपोधिनतशिलोतीपिको ऊवलयनतदार निमनापरधागे यशचशिपवरचितिला विकलादिवशविरघर जमविश्वमिनिरधागापरवराशिकमुपयाविनकरौनियउषः माकरोकिएनएम ईतेविषपरिकऽपरवेषापरासाइविमघाघुरोधःफेनिलवसरात्रनिगम प्रमिकावेरनमध्यदापलवादियुटीसहनोहरिताविनिमविनितवयोनिःरश्ताद मीवासीस.रंदतवरतारकनेवायत्रनीविनातामा म गरभितानांकनदे पमानवातवमसिमितिविजराजाकहानतगवाहमालसामिनावदनलमुदीपपाउराध गराजकाजीततीतस्वीरीत्रास्फटिकमावनामाप्रामाति/घकपत्पनमारमा कामिनीवदतपूर्णविक्षेम प्रेमबेवपरवसंपYIभिनटर प्रमुबवपरवसंप भिमसुरदरासऊलतानपुरंदरसुकाई बडविनमतका कोमयेदमदमा श उपदमरूयहाभामतादिदातनम का ब्रह्मवत्याकउतार-चनियुकिरतमिलाया।5। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड्दर्शनसमुच्चयलिस्वितनत्यन्ते स्वहस्ताक्षरेणलिखितं 'आलोकोतुतावाद प्रकरणस्य मंगलाचरणमात्रम्। जैमनीयमतस्पापिसंपायनिवेदिता एवमास्तिकवादानीरतसंझपकतनयायकमतान्यजेदवैशेषिक: महानमन्यतमतेतषी पंचवास्तिकवादिनःशापदर्शनयरव्याउयतितन्म तेकिल लोकायितमतयाकग्रते तेनतन्मतम्॥वलाका यितावसिव नास्तिजीवाननितिधमधिनिविद्यते तकलंपुष्पपापयाः। तथाचत मतो।एतावानेबलोकायावानिशियगावरानस्कियर्पपश्यदेमतिबजक्रताः।शपिबवावर लोचनयदतीतेवरगानितन्नते॥हिलीफगतनवन्तममुयमात्रमिकलेवर॥३॥धाजजतथा जीवा युतचतुष्टयोमाधारामिरतेमानवाजमेवहिष्ठाटछानिनमहत्यातथापरीणतेामदशक्तिः सुगिज्यायनविदामापातस्माइश्वपरित्सागाद्यदरष्टपवनलोकस्थत हिमूढत्वचावाका प्रतिनि साधाज्ञनिशियायाप्रीतियतेजनेनिरर्धामाभतेतेपोधमाकामापरीनहालोकायतमता वाक्षयायनिवतिः।अभिधेयतालयालक्षापलियानुनुहलताइतिषरदर्शनमसूत्रधार कारस्मरणजबन्लेषन्यायविशारदः आलोकलेउतावादं विशदकतेतरी १ इहतावच्छेकुरोदिसयोगे Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमधशोविजयपत्र श्रीमधशोविजयपन-चालु गभर्यमामायंसुचिंतनलिकामा दास्वस्ति प्रिमो नाकतीनो समु ऊंनस्वई नगदधिकत्तावाममा त्रा माविमोजिने कामवासनाशिनिपाल जाञ्चमामाइनल मंदाचिदानंदमयस्ताव वंशावचितकाबियन स्वस्ति १२१ ममाप्मायक कातिको संरक्षिी माताजामुद्दामकामसार तोपानमसंदै श्रीमचमेनाबयप यात्रामसुमारामनवाबुवाहासुत्राम एजाजीपातपंप्राणिमासमन्त्री देव सेमपात्रोकः।। २. स्वस्तित्रियाताम। वजन अपनागरवर्णन: चिरकाले यमानयामाग्वनाममनोकृतज्ञतक। मुमाले। परिशिवितालकलाउनेोषा सुस्पधनियंकताबमा तालिवातीला दिवोसोमियतेघर्घरवाप्रमाज मासानास्वस्ति प्रमागहमुदारदही यकवाारलाभरपोरमौतत:ताजीया १.महरिवं मितेहैं। मसातग्नेह चोपत्राविततोर्षिक: म्मित महेयभावापा-मोनोश्रमहा मतिपत्राश्चिमतिट तना: शकमान स्वाभियसनुपातायातमहामा इस्चामाघटोझवपराजयातायतारेषु सानामनामनामशरणमसाबा..प्रमानिस रला निदातेवाधरममायकतरवपदा यौनजरेसमासादउनसमा धुः किमिमावेधातिनि। अविसंगत हिमापासलीधरतसमस्तपा7.1-1रंध पाउनकासासफाटेकवेशनामदेवलक्ष्यते राघरनारासविधतेतमाचल चाका यत्रागंगासागरमगामापाएक-मेकान कति। तिमधलतमातात:काम मामासादफतरंगता तारखें: यत्का मितदानद सामागोजीमान कानावचनातिगादानाने सुदामाधवत्पाजनोवतामा विश्व तापकनिवितमयमाक मुजत्रिपुरपचित्रामुक्कांतिः परमा पवित्रा j4/दौऽतिरंनिजोयालोति गरिमामिनी कातिरिौत्रकारिपाजिगर गरामामामामामा:पताइवागायबर सोवउपसानेवांसमरामाश्या मेधारितविकासम्पटिक तीन नेत्रतरकारीवाल विगतमागाहमयुवयंम काममा समतावकवसाधारण निसछापरयुगजमुच्चे:पाचवपतिः टान्यनावित्सलावलबिन:तेस्त्र: यु क्तबीयता जिनमदीयापदा शिमोनुनम: शतमर्म ननस्तापर पजायतवरलदीन:स्मिाउंज सामपि प्रासादाबदेवापुत्रिवप्रियाधिया। नावकाशात समतोलजनेकतामा निष्पतिरा:निहावित्रालाहाललकार पिपम्पित्रिका वा मासतासी 10ोरियस्त्रिय:ोलीनवलंबित प्रमयु:स्व मारे।यदात्मत्वाता विला पंतेजाउनादोषावधितो वीराचा राजमानेनं अयपाध्यमाञ्चक स्व.7:11 घनश्योगकाानमत्रामार फलेयूपता परमतता राजनां रविः/१२) साहसाऊर्वतेयुममदानीबानपानासारमा उपाध्यममादिनस्सारसीनाक्सकवि जियनियकामाकविधभिनयंत्र राजितायत्रनेपवर्जनोतामीपत्रावतक माजतएवमतगमततोयातिस विराजतनावग्नगावकराने ती 10वाडयाताजीमहातंयन मचरितारोलोकस्तोरणहरह बचत:धानिरतानाजीती चनावरितिरि:ोजागतिनमननादत पी.करवीदाराश्रियपात्रो जसजाहीलविकामिनाकामा-मजकविपाव याकमानत्वगुणधिक.उसमाजा तणे हामबाद/11+ H दन:शेषतनाजाययमानित://मन: संजयानपात्रोपमपाहामामामधले सरोवरेकमाकापाशनिालोमलायतायधेय मिसपाबतमिलाई लत्पनिम्बरलैव रमतोमेकामावनिमादध/15/मन मत्रका कतिपमाज्ञिग्विानमिदंपलामि नंदनेवाश्राकामश्विनंदजासत्तजन सेवाविशारदा सबितायनामच छातापदी सन्तानको:/9वंदाकसुर मुक्किामाजिशयातमरावासा/उसकाका राया1241लाकालाक्रमममहापामेव कोरलाछुत्रपितानेदीयांनी जगदी पिाधःशिवप्रियायः निर्मितनासायासातमकरतोलमा करोत्सेवापानीकिलानपिन लासयनिता ..जमातम्मानिसशामगा मेंगोजये नंदाश्रीरामानंदमहेवासी जाना-मानंदलाजदरको मोचक दवोदा२पवित्रवित्रावस्त्रसंचासितंसह कहावरेजमनोनालगंजमामः बनीप्रवर्गल बयरवा पदागिता Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ` श्रीमद्यशोविजयपत्र- चालु मात्र नवरात्रै अमतेम फ़्रा) तमादिदिजन्य: शिर यारो रामघा पर्युषणानि | वातत्रापिपटल दोघा श्री पावनं 1391 मुरमानां । तप-मपारदर्शनं द्विषादिकां रखा नां । महाधीर निदर्शनं ३६सा धर्मिक जनानां च वासकर विधुवादी ता ना घादिवर्गपावां बांधिक सम 1291 दमादिस्फुराधर्म संस्फाति प्रशिश्रियाश्रयते वजिने प्राणां। श्री नवतिः॥२८॥ परम्॥ यःकत्र सिंधु' त्रातांतूनां नोधि ॐ नावंदर बिनि। हम तुम दराज मामला का श्री जोति प्रदेशो मवानलः । बट त्रिंवा बटूत्रिंशाला ढांत गुरुं श्रमोश सूनाराम सुदृष्टि खनर्देशनाल उत्त्रांकित तो उत्साधिता का। मिध्यामति भुवोषयः। शु दीवारधिः क्रेापात्रा बेदाय सो सुवः ॥ क्षारा मत्वायश्चित्रमुत्ला जोनिधेः पयः । उपेक्ष ते समयः सा जाता एव : 14, र्जितं गर्जितमे। वल वा वी चिलाउ जोनिधेर्येन गुर्जगतोऽधिकः 1 यम कुलिश चित्र पुत्राः पर्वताः। उत्त्राननि धौ पेये उमाशिपतनु । जातमा देश नातं समुपारमह / तिघ सिद्धांत नतिजा मां मोहं सइवरवेलति गुरौ दोषानते तत्रखेतिकाइवा तितो) जांगुलीनाधितिष्ठति | पराविउ मे नंन 9 सवं तिरिरा मोहविषस्वांतकांतशतिर धासित नीति यता १ रामसुधी कुल्मा ऊनीति विपिनुषः दि शनाया केरा नाशाय । असुरोर्गुलशालिनः समजा । तते यय-श पयप उल्फे नायितुमेतम्प रकाबतुकः शत्रुमा पोकेश वंशपवर्णनं समुद्रवद मुरगाध श्रसते नमः | ३ मोहि वंदे शिश्रियता दृष्टांताना प्र मानमहोतरः | १४ कुवालोक ૧૪ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मधोविजयपत्र पाई। 4-मस्तानारधारासपा सविल:पायला दसलाते। नामितीमहाकालपाछाय माया। अश्वावोबादारला नीवपयोराशयतस्तारकाईकागण न) यांसमा यातापायसनकरिबर 119 हदयंतानगंजीव लावण्यपा वनं। गर्मिनोत्तिावाला यम्मकि विरममायनासामुक्तंयुक्रमिदंयमित ज्ञानातानविनिरमातिमातिम बायोगातेनिचिलाउलाययाम. पानाउलाध्यताविताय कामापन्निपजलमाश्रिता लापतिहदेवमामाकत्व.इधर लंकेरि मोविषिकैरिवार में दोदितनतामामामामारकास्वतंत्र प्रतिमाममोरमाननाजिममता राखं बगदर्शनाराप्रकारकनिमोराय: प्रतापत्रमावाली नीम्फारगो:23 अमूहशालार्यमारहवमानवाविति लावादिममा यकदिदिप्रमादिता श्रीपाद प्रतिक्वेिसवा२४ घातत्र कालाबजमादि तारतमा विवधुतारम विवधा प्रससक पर्यावर्मा जम राजपाल विविजा मंतंक विराजिव शुगल परेनियासपदलोक्ता माधवा प्रखरामरममता 30 तारकाईनी मेसिनेतनम नजविजयात्रा दिनुका तक्दिर-अंइकासधागपयाजीश विजयनगो हबविजयमंतका प्राणाया४विजमारमा विजयमलकाकाघागराया. लक्ज मा जगायोविजयपतकापाय वैविजमारलगायापदापनमं. विनोदेतापरादातरघोरिवलदेवदह विलहदिनियामकलितमिहाज्ञान होतंअंदानपावकदज्ञानातनयां अतिशतरवलजादतान ज्ञानक्रिया क्रमा वाकवालदमदा भाज्यचरसजायायवाई वात्मते उपवाहमा पछातियप रिपतोद्ययावकलतरामा लालतिरंग Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧પ मारास. महोपाध्यायश्रीयशोविजयविरचित. स्वहस्तो ऽयं श्रीन्याय विशारदपादानाम्।। आदिपृष्ठ] |10दगारद सारदयाकरोत्रायोयननमरंगातटीमुकऊपरि जापकरतउपमारतक भावाकरिकमतमाशाखासमवशवाजातननाबऊकवितुकदरसरण दयावaajारताचतिंमुआना कदविवातालबदवक परमजयनारdिayीवकर सांसावित्रवनसंgaरित्रासानिलवालिसुवासिकल Miावत्रसतपालकमलविऊनमताकतसुकमानसारतिस्तक | तभीनय विऊयविखुधवjानामपरमबतातेदूनीवनिमानिाभलाकार मामय/नालयन-जालदेसीभातनवरmasॐरकाणमाकिरजमुत्रमा जिहामनिवनवीratदेवानानरचनाविधुनमाला 744वक्रमकेवलाकाधामसालिकरबदमनजजामानिनुकस मुकिवच प्रकसामानिकदादेवीसुविधुतमालामा सामानिकtaladटेवीमतदानमालामा मदिनिca87 गुजराईवरमकेवजीजेदूनामदादोममरमुदिवानाटाहर 90नमा1424gaएकिमनाशस्वामीकहन्धुरिमबहारीजगुत्ततिसुत सादरकरकलिनदासासमायसन्मायरित्रलेदचावरमयुगमानुसदायक जनितनश्रतेप्रहलादलाऊजेखरमायाजातीका/ टमजतबाहिर ताजातरदायोमासुधमाकोमासारतापपोत तिनवीनवकारउदारधापनधिप मार निलिखितममवतारविहरवईयामामविकासकिरिश्माबेधुनमाला/मुरsdk Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामाक्वनोनवािडीबारबरमानन्तन.मा..कवार2194तमा समालीकाानिऊपादधार गरारणियखकरकप्रतिपदाममपजी 3 Daठिोहझनदनभित्रा) पक्षियोह-शमशलिकाकीको दोहगुए। पदयाभासद जीबीरविवत्रिीयोमन्दिरम्तेषनवस्वामिपन्छिापामदय१रकाम्मरकजेठूरक मठककाजाहोऽसमाविबाश- मायावन्तविजाइजी लाताव- यदिबर नपाहिजयोतिनिळाजी०एस्कमुक भावी जेउगढीबजगुरुगुणं गातोमयसानिdिaaiशबालाजीरावानाम्तनाचामृगतामृगामी जीएपपातकणसमलहमेगनमालजा कालाअरबमदतविककाटा Sanीनालीचीkaamzाशुनिंरक्षलकामवालीजारमोशal णण्णश्री हठरा6िaकाजश्रीनिऊमदेवकरामरपटभर विजमना२शजी ४कमीकलाकाबिजमबरवामहीयसीमाप्रारहीशजी हाममीनीवविजमा * परिहाराज तामनकामीजीतनिऊश्रीमविजयटकलागाजावाज हनीमजंकूmemयाटप.नंदतनयनिउकुपतिरमामातलीएकोजीनभरोहरहिवाभाम्रान-परमाशेजानानाताननमादियाकदिवजानवप्रा निसमसामाउनविनासर-मादयडिनवाणीज140 २० परत५ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्यकत्व चोपाई, मटोपाध्याय श्रीयश विजयविरचित, स्वहस्ताहार.(?[मध्यपृष्ठ काकानलामीमजमिएएगानन्तरतमताएलादेवाईअनित्रकाशिवलेषा दोघावणुता लिहाशिमोगप्पश्पदनालिन्टऽवदोवामान-मवारी जहाजमतीसमोरतेटले उपवनामारहरकतउपवारविरोमिंधाकर सर्वशत्रुनयमवजोग मनमवारच गंमोग-वका प्रतापूरतिनुश्कानंतगुणनेटवसरमुरकटनाविनंतानंतरजवनशमनंतपरमिता जीवपरसवारिक घाइजन्मतास्कघुक्तिमानानेघाजेसिबगोदभनेत्रमित तोलिना समाजमहालि बिजलाधमाकानिमापकतaalaaविशिदिबाघमा क्रियाविगिता तमिमामहीकॐ दीनेशचघटनऊरयोगनियोधकरीनगवतहाननिजामभवगादलहतमा कविलाऊपरिजश्वभाविकानमालाकमाएकतिहानिमनत पयमाकरभिलएकत कानशिलतामाकसुत्मकमानश्नहावाकएकालक्रमादिनचमनादिर्कमपतिहदोविवादजवं तणमयोगमावतजाकममोगप्रोकतावममदैवतेतुरक्रिश्नाने || मोटायोगमतक्रिमानोउमझयोगविधिवादीगत:नाशिकमरिनाजा कान्स्व भिवागाउपाय, सभाहम्परततदाकाउयायकाजरदार वातावरणविदेश कसोतोममोपहिलो संकेत उपविण्यएजोपहिलालझा। तोयामानावयाप मदेवाविणवा स्त्रिलिजरहवा दपवाचरिलिमकासाभाबकानाजादिविले जेदन नेहवाजवितमता विमलेन Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलाकर एक मानाउलामात्रयविक्रय मज्ञानजामविनयविवेककरानावमातमतaa हालकासमतिमांकजतेपिनलमात्र रकरणामारोजीमारिएज्ञानमसायो एजaदधारोजी२५ निवानर जाकरमा रिचालघुकदिकामाजिउ६ज्ञावमचारवासापराकतिमाजिापलिरह. ताप्रणिभारिजातननमावतलजापानयविनयविबुधयकवकवाववजयबोलरजा 134निभासमकची पर भारत ।। मिन्तिमपृष्ठ] Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रद्धानजल्यपट्टकश्रीमद्यशोविजयोपाध्याय.स्वहस्तलिखित. [वि.सं. १७३८] आदिभाग] 18वत ७२प्वपीनापजनगुरेमहापाध्या यश्रीयंत विजयगणिनिहानजल्पपहकोनि रमतेरामस्तपरिणतसमवाययाम्प पर साकनेगुरुगनवायप्रमुरफिल निशम्पएं सा-चवीपलिजन्सरनाममात्रनेवलन नहीं नरजमाझिपारततरज्ञानादिरूपकहि र कुन चासकरूपारनेतनाएयरएका गयंचन रामविला.मायत्रमाणविदह गुरुनगुगायुक्तकालाचितमूलमुरक्षित वापरुपकारापकताछकरनमानमा गवो यतः गुरुयुएशकाइ दबारल्युग उन्नति नन्गुएभिन्नतिणनिचरउपह र नियरसमासूरायुजाणिमये पयाया सापमहकनामाकाजरियानमप्युरिया२ जरणविसकाउसम्मनिगलाजिलमा तासमंजामिहाजनण्याएर नघागतानिनाशिनाऽगातानि क्रियामनार गनलिनिप्रनावितामहापाषकलबियत उप शामालायालयअगायछीनजगीयछन जियवहानगरमासमति ३. मीनातन.चिन्यवीपणानगर जूपियनिसकहनना निवदिकरहासागर मायाजावादीनहाइपकपातीनदाहजि. संपरप्रवचनप्ररूपेर.४पदयागुरुगा। छना नयाविना पकाकीमनिननषमानरबि व पानइलाकमलनानादिरा नातानाशनारनावसकायमाडभिव नसावरबरगतामनिमित्यररवामरणावाद एआहारामजगायमुरन्यवहारनकात इतकानाधनाकामय्यानरमपुरवनका चवर लगाताधिकामदानिशीमादिकना मप्रकाशधावांवरतमानवाघापुक महाशास्त्रवाचौहनामलवह वादणादवराव 'नन्दपरमावतापनीकंगदारमार Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -श्रद्धानजल्यपट्टकश्रीमधोविजयोपाध्याय.स्वहस्तलिखित. [वि.सं.१७३८ [अन्तिम पृष्ठ] सरतनिश्रापकदशमसिमकरहितमा पाबा जमार्टिलिंगाचार ज्ञानमात्र ज्ञाननदाम लिनविषमानहीकयावतनदानवकमा मुसा वासवदारादिकमरंकया हवालेबाट मस्वरणप्रशमस्तदनादानासानलबहन नगुणवतपसट्दरतदनरंमागफलेवर यूक्तपंचाशकनसिबऊमागणे जम्मम्मा, माणाऽफिलावामियराएपविर सुसुन्न नऊमाणा५ एलपचुनालनास्वामागुरुगगीतानीम पप्रवननेजानातिनाव। ॥श्री Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रद्धानजल्पपट्टकश्रीमधविजयोपाध्याय.स्वहस्तलिखित. [विसं. १७३८] [अन्तिम पृष्ठ] सरतइनिश्रापऍकदलसवसिमक्कर दिनमा एावा जमार्टिलिंगाचार ज्ञानमात्रईज्ञानतदाम लिनवषमाउहीक्रयावानी तेवऊमारसा वासवदारादिकग्रवकद्यापहवानबार अम्वर प्रशमस्तेदनाक्षानासासलहर ने नगुणवतपणुसट्दरतदनरमाफलेवर यूमुक्तपंचाशकतबिऊमागणे उम्मग्लु माणाऽनिहफलाझाकिव्यशविर मुकुन्नछनऊमाणा५ एनल पांचवालनास्वामीगुरुगगीतानीम पकप्रक्वेबजालिवाइतिताव. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૮ दशार्णभद्र राजर्षि स्वाध्याय. श्रीमेधमुनिवर विरचित. भामा गुज- पथ. ए इयं प्रतिः वि.सं. १६६९ वर्षे सुरतबंदिरे गणिजस विजयेन लिश्वित्ता स्वहस्ता हारी। Intश्रीनिनसासनतासनप्रगटलाकरताणामहिमलिविवरवितिलकसमानाक्रमिनिहरा पडतावावरतीरातत्रिगडंरचित्रविलनशिरकोटीरारेत्रिaaaशिरकोटीविराजिनातित्रिवनराया| चविदेशनिकायसेaसगतिपणभियायाaaaaयालपरसमनिंदरखातरायाविनविजामवन्त्रा योरायपायुानिमसुरतरुमanशतवदेशासंबोनमधमदिनमाजालसायरतरवायाया सफरीयाजागसुरसुरमणिमुरगविमरतरुत्राना aaपानिनाजीवडश्रीनिराजाश्रीजिनराजावट निकाजिदयमयरधसिणगासिनियराणीशाची स माणसवासावसाशिघरिघरितारामंगल मालाक्रलयगरराशनपताकाशोसिवा अर ।सरीसमतावाशाईजगयरुवंतिण परिवदिवानिििनकोविदनिसासन ब हुयरिंगानिप्रीजिनदोलतदेवीहरिहरखमा लाजिसमऐराणचडिराजारानिातलतालरबा मलिशवीणातानमानलयमोहशवरागबब सामाइगानिHिaaमोशागबत्रीसदनारकनाचविविधानादिरुपिडाणीगाइरसादिनिता जापाRanरिचरंगसेनालेraaaचायोचवसंघसमेraaaaसंघसमेतिबाल्याचारनिनवंय कानिाaapदताasiपपद्धतोमागविनंतीश्रीजिनकेरीनराकरीकरण कातिङणलाकमिलजोतावितोलिकरतापकापातबमादेसिकरइपरावणदेवानरदेवराणीमि laगजरुयशशलायककागजायणसशऊपरिबाराषसोदश्सरवरूखदवसलवससारासारदवसला Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशार्णभद्र राजर्षि स्वाध्याय. श्रीमेघमुनिवरविरचित. भाषा. गुज-पथ. [अन्तिमपृष्ठ] इथं प्रतिः वि.सं. १६६९ वर्षे सुरतबंदिरे गणिजसविजयेन लिरिवत्ता स्वहस्ताहारी। सुरवरवाविपुकरणीअवतार वाविश्यश्नवसरकमलसमधनुरुपअपार कमलकमलपुलावपांमडीकालिकाप्रामार पन्बरबबामबिलांनाटकनावविविधानाद वविवश्वाजाईडाणीमदित तवमानादरनाटकर देवादेवीवंद माक्षमपतिक्रहिअंबरलतलवाहक जवदमपुरनयरिवारवंदनासु उरायायमामनमोहरवानिरवीएम मक्रमिऋगिारवामिकाडाजाया एबीपकमिहिमानीन्मयत्तणिजयंधि एक्वनकिमऊरक्कम दीकालेश्यायला गाउजगिदामश्र तवदशातिहराध्दीच्यागदावारपामि तवमबइप्रणमिगुणधुणिमनिवामि धनरएराज कषिएदनाप्रतिताधरी केवलमिरिवश्विघनधाताकम दूरी रीमावकर्ममावशिवमलिवावमकवालयदया। युश्रीवारमामणिमालाकारी विजगतिलकरनिगा सु जगरामम्हारविजयमूरिराजरजसप्रतापमहामामात्र माऊमताकिाशिकलाई श्रीवारमामणिमादि ब के रोजमयमाहाजगिबाज पंक्रितामहमुनामर नामिंसुरवसंसदलेरगाज निदशानिराज मिश्नाय श्रीनयविजयगणिशिष्यग जसविजय शिवितासंबन१६६श्वाधरतिबंदिर ज्ञानविजय सुनिपटना कल्याणाममु श्री: श्रीः श्रीः Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशाणभद्रराजर्मिस्वाध्याय, श्रीमेघमुनिवरविरचित. भा. गुज-पथ. अन्तिमपृष्ठ] इयं प्रतिः वि.सं. १६६९ वर्षे सुरतबंदिरे गणिजसविलयन लिरिक्ता स्वहस्ताहारी। सुरवरवाविपुकरणीअवतार वादियश्नवसरकालसुमधमुरुपअपार कमलकमलपुलावपापडीकर्मिकाप्रामार पिन्दरबत्रीमबिलांनाटकनावविविधानाद वचिबमजावडाणीमदित तवमानादरनाटकर देवादेवीवंद मामयतिकहिअंबरनृतलाक जवदमपुरनयरिवारवंदना उरासायमीमनमोहरवानिरवीत्रणमा मकक्रिहिगारवमिताडाजारामा एडारनामहिमानीन्मयत्तणिश्यघि एवचनकिमक्कदाकालेश्यायला गारु उजगिदमश्रू तवदहशाण तहराइदीच्यायदावारपामि तवमवइप्रणामिंगणघाणिमनिंबोनिया कविण्दनाप्रतिताधरी केवलमिरिवरिनघनघाताकम दूरी रीमावकमावशिवमलिवाघमालपदया यु श्रीवारमामणिमालाकारी बिजगविलकमुनिगा यु जगरामदार विजयमूरिराजरजमप्रतायमदीमामन्त्रि माऊमतीकिाशिकजाजरीवारमामणिमादि ब के रोजमयताहाऊगिवाज पंकितामदमुनामर नाभिमुश्वसंपदजरगाज निदशानिराज सिवाय पं.श्रीनयविजयगणिशिष्यग जसविजय। | निस्चितासंबन१६६श्वाघमरतिबंदिर ज्ञान विजय मनिषनाच कल्याणममु श्री: श्री: श्रीः Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिंहवादिगणितमा श्रमणकृत नयचक्रटीका.महोपाध्याय- आदिपृष्ठ] श्रीमद्यशोविजय स्वहस्ताक्षरप्रतिकृति । मयचकना "नामा रकमहादजयसूरवरदिपायाश्यायमीकल्यापादारपितालातविजय पभित्रीजीतविजमगामातीवितहीनयविजयमामुकापात:11शिवरपरकाराबविजयदेवीका समयचकम्पादशीवायोविरजम्पवितनोमिशनमःजयलिनयनकाशतानियोलविवनकविको वीमन कादिरनिरचमननानविवस्वानालालपीतमहाभधार्धन्यबकारमशास्त्रविक्रपाणिडम्मरमसाम पानमानद सुगीनोपपतिकदिनयजनावरहाभि -नानुमारिनयबुकावमारिसुमंगलाबामनराव पश्यमालासपम्हाराभादनमाहामाबरतिनिसादिामाश्रोतिमानमतिवाव्याकिदिकस्तानी काबा क.पाप्ममवतत्वान्सपिरमवाटिक्सातत्कजैनेनशामनेनमाप्मतःनिवेदव्यादेशानदयमा एक परमालूगनरसमाचारपनामदेवानाविकापुरमकते.पन्चालविधवएकादानासायानिकिमहारका ५५तार अन्य..योगकवकाभणदारीमदिनमंत्रमतायपोक्रारकवियाम्मेठमपजाया।व्यापकमा विral.एजन्नतातावप्रेतहवश्वातघागतिपत्रमा पर्तनालहोदधिमकिशाकशपेकजानानाम मनाधिकपारजविकैकपोमवारीशक्षिरितक्तमतमपभमाशीमतपरिमाणमालकालात गामार काचनमानदजेदारामपाड़मॉलीपरमारततरविामानावात्ममतस्तन्नमात्रातीतिमापासुभाताएवमत्पत्म्मिमुग्य' ममतामययोरनिभानात्मययाविहारविनिमयफलयोरलावारिदोषामुनिवरितणमायादेक-पाश्रीयते बामातावत्पकपरिसमानरमानारामालानावानामसंकीलकपलनसतिप्रतिलिजाबहिगाविस्कनिदपेचर नावडमहतानाशलेकमेकमेवमतदािदेवात्मरमितिचाउनेझामनातम्पतसमक्षगपव्यय परकपन-मन बाबादमध्यापानिमाविककमेनatचमनरेशप्यनतमेतदपियनकाजजाबादारविक्षेषितत्वाका वितत्वाबायमोकारवालमेगापिपिफगदतागपुरिमपूज्वमादियंभपानमियामलेगमेऽवत्रपण दापक्रमिनारवतीनतेरसतेमादि-प्रसपाजवयीशमहाविाहपञ्चमणादिमामकारक Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयनाल पातासालस्तिममाायश्मिवामिनदोषानदायते मल७.१०वर्षपोसवसिदि टीका श्रीपवननगरपिं.सायशविजयनानिबिताउनबनाउदकानलबोरेपोसहरखकेला विशषताकोनलिरिवतंशास्त्रायन्मेनप्रतिपालमपटश्किटियालरी सभासुरवाशिनलिखितशास्त्रीयन्ननतिकलमेशच-याविजयगजिनाबानिया भादमिरवनाराज्यपाविजयदेवमलीकानसम्ममाहजिमनाविधकटमानव श्रीमविजयापरबागपंताशुलिन:दिखावमाजाविनमागलमेनीना मानवविजमनुनमामानमरम्मकनिविग्नेमानिसहरनिवजग्गभिरक्रमा निमाविमायधभमा-ममेनाडावपतिमानामादमारमारिनाराजगहमीदानाने जन्मिानमारायसिनेम्युमरहानकिननरमंडरनेवालहोजानिक समरामप्पपरीकेनरितामाकणमृतपराजमनिरिपरित्रभिर अत्रिश.. अन्तिम पृष्ठ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० • शिरोमणि ग्रन्थोपरि जयरामी टीका. श्री यशोविजयोपाध्याये मरिवापितेयंन्नतिः[आदिपृष्ठ] तैरेव स्वहस्ताक्षरै परिमार्जिता श्रीगणेशायनमः। सकलया तक तकतक्रत्रिमहोपा श्रीश्री विजय शिघातील दिडा शाविशिष्पतिश्री जी विजय गलति श्री नदि त्योनमो नमः॥ यो शिवाय दि टं। गूढः ज्ञानघनाता (वयतेना। हनः । (धतिदरमा शारी जयराम गूढार्थ देशोन नंगा गिरा। रोहिशेषां वदो इंटेमंद यांच्छा दिन दिनाम्मा सिहं कित रानिक विदितंय कल्पक काहादिगृह विमोहनंकृतधियां तत्पातये कल्य तां ॥ २ गंधारले विप्रविघाताय विहितं शिष्टाचार परिशशंगलं शि माचिकायेाराः श्रानृणाम मतो मंगल निभानिजिं मित्यादि ॥ मायम वैशिष्टया मनेन मः ॥ सचोक ईः मृष्टिस्थिति प्रलयं गत विशेषणमा ॥ ॐमिति ॥ मुतिमं झिशिवात्मना ॥ ऊन मकारमा शिवबोधक शिरोम जिय रामीटीका Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारंजकताarचरकताAE.चन्या-3च्यतिमानिनियरवनतमसाकर नावनतानिनामपिरतातx यमनमानररुत्वाकाक्नावकरयामापरया:प्यायलापलामाकादायमा विवादाननवनीतत्वायनायक ERAमयासारगुलजातीमत्वाम्पवरनपदेवावरतावादकत्वादिति वादातarazामाधावादास्पाण्याझछायागीताला कामांवासामिप्रातस्माम सामावालहीतादातसहायोस्वागपूयादवविधामिनिमण्टोक्तायनास्तापर्यशादोत्मक नामामारेककालीनललावातूयाघलिछमात्मादाeaamदानावरस्टाAsaतमानतीaarनि anायासहावाददवानतिरेखवलोहारकासोनमतमामात्मा नामाकृयाध्यासातलमातापायाधीकारी.मारप्रतिशतस्पटारसाएशानियागी गावाgalagतनिशिास्तविण्यादि कछATAPकाकाशास्वीकारावासाकाज्ञा त्यात DREAमरकसयोगमासातवसवान दरियादिवइयान्नवदारसंयोगमात्रसापतन निदेशकवासावाहाशामुक्कलश्टयनन्दीशरसंयो गमा सातmaaशरवानसोवन महितचितावादासुधारकहतिदेविससा छाच सर्दस्तानिवितोपछामासानछान्न। समापमानातावादनासरवादिसाम वाटिकारपताटदयोगादनित्यमावनितास्माणि REnginादिपसहकायलावातसुदायिफनानाथसंसवानयतास्पत्पादिगानीमामालावात ननकार्यमामानास्पतिनिवासादायनलचालदिएम्मदायरनपदोपदिकमिवारे ज्ञानादिकमपाताालावादिकाछतीरामनादास्यादिमिवहिनचालवादिनारकज्ञानसाहायशि विरितिवन्नाइदानायोगाद्यासानसुषुप्ता विवरवशानामुत्यादा स्वायसरडार सादिमाधमताडामा मावाशनलायक Aध्याज्ञानवासतासावानाटावामुकदमासूखेडयातदस्यमोनेटासताना यामिदस्मात्मचावलावनाप्रपदबावामतयात्मपटगानारणा:hanात्रमानवावरानुरव्यवाचकाजानतरणा याxi.६ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૧ इसप्रकारके लिये हुए भिका भिन्न चार ठान्य उपलब्ध हए है। और इन प्रस्तुत ग्रान्थो की प्रतियों मे ठान्थका स्याहनामोल्लेख नहीं मिलता। इन ठान्योमें अनेक स्थलो पर न्यायाचार्य श्रीमद्यशोविजयजी महाराजने स्वयं स्वहस्तसे परिमार्जन तथा परिवर्धन कियाडे ,क्या आपके | न्यायाचार्ययकृतशत ग्रन्थस्य मस्मार्पितम्' इस उल्लेखकी प्रतीति करानेवाली कृतितो नही है? तत: वान्य निर्णयलसवाधनियानिवधनावडेदककोगनिदर्शनीयाचारित्याहा। अनामविपरीमज्ञानोबरमत्यसप्रतिविशेषरधनस्यहेतुत्वेनायं पुरुषया माकारकणादवोधसामन्याञ्चयं पुरुषज्ञत्यादिमानसंपनिपनिबंधकतान कल्पतेरनिवाबनारशसामग्रीदमायोइंदवावहिचविशेष्यकपरुषवाभाव प्रकारकुयोग्यनाजामसारस्पावश्यकतारमहनविशेषदर्शनकप्रकारका विरहेनापरुषडयारिमानसवारणसमवारपरुषलादिया पवनाजानस विचनदभावस्थाप्यवनाज्ञानरूपपनिबंधकामनायं पुरुषायादीमानसस्पेस त्यात विशेषत्रीमाहेतुत्वमनेचसंशयात्मक योग्यताजानबनिसामयीकामा Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यातनकानावरककोदो विपरीनजानाउरवादियाणाम्जाविण गम पिस्पडनाया आवर्मप्रवेशःप्रक्री गौरखमेवमप्यविचितकरीनिवाधवा पविशेषनाम नारवाशनकार्यकारलगावकामविपरीतकारकाने दिनदग्निीषदनिका तिरितिवामंचाकमविपरीतना नावाचासत्ताराजिनप्रतिचाकणावपरततानाहावत्वतदिनाहत्वामानाशकलस्साकषादितिरीनता नाजावतंसती बदकालमाकाततमाताशकारणविरहणवाकमादिविपरीज्ञानकालतज्ञापनपत्रावविशमवहाना पर्वतोवझवानियेताहनिर्नयदशायामाभपिपवीताचाबछेदेनवनिमना मालीलपर्वतोवर .. उहपतित्वाधिनविभीष्णतानिपतत्वनिवरोचनीतपर्वतोमान्तवात संशयर पिशुपतत्वावचिन्नाव वाष्पता पिलवकिप्रकारतानपत्वातीपप्रतिकत्वमंगादिति चौताराप्रकारतापर नरंकल्पनीयमिनिकनाचममनेचविशेषदर्शनादिकमनिवेश्यपनिर्वधकनायोस्वस्य । नीयत्वाअथवाजौकिक प्रत्यत्तस्थलेविशेषदर्शनादिहेतुर्विमयापिनोस्पेघनेनोलो। किकपत्यज्ञसामगोपनिपनिर्वधकत्तायांभवमनाविशेषदर्शनंएवउपनातभावसामग्यान विशेषरीनविपरीतलानाभावयोःस्थपनिर्वधावताहयनाशंकनीयंतस्पास्वभाव नोडलनयाइछाविशिष्टयेनेव विरोचिनाइकासाचे विशेषदर्शनासाचासत्ययोरकिंचित्र के लायनियमविपनादिकमविवेकाधिक तामाकमनीयतड्प विश्वकवठेकामा विशवोमनकापुतारावसायावतोसमोर Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ऐन्द्र स्तुतिचतुविशातका मलमात्र, महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचिता. [अन्तिमपृष्ठ] “स्तम्भतीर्थ” इति पधं श्रीयशोविजयपाद लिश्वितम्। सध्यानदृष्टास्वयंमंगलेनबतासकलकलशतारमाराजितापापहानेकलालास्थिताहिपके मरालेरहस्यागमेशाइनिश्रीवईमातस्ततिः॥२वायम्पासनगुरबोऽवजातविजयवाना रुष्टशनायाचामतेमनयानयादिविजयाज्ञानवियापदा क्षेत्रीयस्पचीसमापनविन योजातःसुधामोदर मोयन्यायविशारदःस्मतनुतेविकस्तुतारईतां॥शरुवास्तुतिसूजमि.. मोयवापिशुनाशयान्मयाशले तेनममनन्सबाजेरागविलायतीशा सूर्याचेस 4 मोयावडदये जनस्त्रले तावन्तंदवयंभोवाध्यमामोविचकाणः॥३॥इति श्रेयः स्तनापुररत्नमेघनानंदनोनयमातिना ततिलिमाप्रतापक) बायुसुकधारलालिवाण ३१ मा Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमयशोविजयोपाध्यायकृत पातंजलयोगशास्त्र विवरणलेश. अन्तिमपट “स्तम्भतीथे इति पधं महोपाध्याय। लखितम्। सनल बोगम श्रीपातंजलयोगशास्वनोबश्ववनकैवल्यपारश्यतुः अयंपातंजलस्पायकिंचितवनमयांकित त्रितिःप्राज्ञ दोकाय यनोविजयवावकै श्री भारत कल्याणमदः कल्माणदिनेदिन स्तनापुररत्नमेघनानंदनाजयसमातिनाफनाधतिमानापसाम्लायंकमुकतंया रललिवना Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'तर्कभाषा केशवमिश्रकृत. शीमयशोविजये।पाध्याय सत्कप्रति. ले.सं.१६६५ अन्तिम पृष्ठ । नियिपिलकणस्पतिरकिहितोषयोनियाज्यव्यायसनवनिष्णवावेनतिनजपचन्याधिकाधनबाहितिव्याशियोप्पयामिछापिकाव्याहत्य नावात सोयाधिकश्चाबाययामालकणस्यपखवस्यगावसानादिमंयोजकनयाव्यानिर्मामासिवाययायालणंम्पत्रावालय ग्याएवमसनवा पिमरूपाभिवण्यघामोलकणस्पिकवाफवास्यविधिनिषायामारणयुक्तस्यशष्टस्पश्चर्यानरंजकल्पयानिशमनेबलमायघानवकवलायंदेव बन्ननिवाचनमामिषायेगयुक्रस्पार्यानरमाशंकरकविषयनिानास्पनक्कंबलासंतिदरियामानविनमपिसनाव्यानाकुनामावतिसववा दावलवादिनयाजायनामऊरनरंजानिःसवाकर्षसमादिदेतजविहरनियानहकाध्यनेोतवाव्याघनदष्टानगतधामणसाकाव्याकक्षम स्या पादानसकर्पसमाजानिधयवाशादानित्यशकसकचातापदिल्फ क्तिकाश्चादवमानायदिननकवेनहेलनायव निन्यास्यावानदान निधनामदेववादासावयवाधिस्थानापकर्षसमाउदेशनमा निधर्मणप्रयाशनअध्यापकम्पधर्ममावस्यापादानमयकर्षसमजाति सायद्यानवा स्मिवयोगेकश्विदेवमादायदिशतकाचनमाया वाटा नित्यनस्यामानानवदेवनायटवदेवशपिथावणानस्पात अविविशेषामहिया छावणइतिापराजयनियमातीतबनना विकासालोतरातिनामतामाविरोमदिलदाबविधम TAमरलियालदवकासन्तायविवक्षितार्यातायतामनदानन्सनेविश वहितादिविदन्यधिकं तदधिकासिघनादपश्चोऽसिमानापकतना मानिसबंधार्यवचनमर्यानराजनरापरिकार्जरपनिमापिरानिमतस्यार्घस्परनिकस्नस्यवयमेवा-पसायाकारोमनाउनासानाबा विरोध हात्यनसपयुक्तानाबाक्यानाप्रतिपादनादेवामिपादनामनियोजनानांवलकमानांदोषायाएनावोववाक्यात्यनिमिावशाखाप्रतिधार करावमिाथाविरवितानपरिमापासमाशानांचवमसघायाधिारसब मोमाध्यायश्रीयश्रीकल्याणविजय: गणिविनेयपंडितश्रीश्रीनयविनयशनिशध्यगनसविजयानामियंपतिसंव१६६५३॥श्रीर॥शुलेना हारम ATT Ouindi SalthPL Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपा. श्रीयशा विजयजी गणिकृत ग्रन्थ नाम सूची [वि.सं. २०६५] इयं सूची: महिमा प्रभरि सत्का [] आदिभाग ] ||श्रीः || ॥१७६७ वर्षका ती दि२ दिने । पत्तनमध्ये। पूर्तिमा पक्षताश्री महिमा रिस का मामानी रिया ॥ उपाध्याय श्री यशोविजयंंघाः ॥ १५००० १ स्पाघादकल्पलता २ धर्मपरी कायंघ सह६०० ३ वैराग्य कला लता६ ७००० ४ नयोपदेशप्रकरणसूत्रशिकाप्रकरणसूत्रवृत्ति ६ ज्ञान बिडकर एसूत्र 9 उपदेशरहस्य प्रकरणी का विश्व वातसमावारीटीका ए ज्ञानसास्थात्रिंशाष्टक प्रकरए १प अध्यात्मोपनिषत्प्रकरण ११ व्यापारासटनाल १३ सीमंधरस्वामिवीन तीस्तवन बाप १३ वृ६सीमंधर वीनतीस्तवन बाएं १४ सम्पऋचुपईएसटबाल १५ श्रध्यात्ममतपरीक्षा बालावबोध् १६ मत परीक्षावृत्ति १७ डनस्तर्कलाषा प्रकरण १६ मार्गपरि६ प्रकरण पत्रश्५४ पत्र ३ पत्र १२१७ पत्रप् पत्र २०६ पत्र ३५ पत्र ४६ पत्र २६ पत्र ३१ पत्रप पत्र ५० प पत्रपर पत्र५० पत्र ३८ पत्र [4] 扫 पत्र १० • १ अध्यात्मिक प्रम पत्र १५ २० धर्मपरीक्षा ना वो जकेतला इक मैं पत्र २१ प्रतिमाशतकवृत्ति ६००० २२ गुसत करणवृत्ति २३ यति दिनचर्याश्कर ए २४ तचावाला व बोध पत्र १०४ पत्र १४४ पत्र१२ पत्र ३५ वीर स्वसूत्र टीका ग्रंघ १२००० २६ नयामृततरंगिणी टीका पत्रन्छ ३०० सिद्धांतमंजरी टीका अष्टसह श्री टीका काव्यप्रकाला टीका ॐ ध्यातासार पत्र३५ तघार्थक Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपा. श्रीयशाविजयजीगणिकृत ग्रन्थनामसूची [वि.सं. २०६४] इयं सूची:महिमा प्रभर रिसत्का अन्तिमपृष्ठ अंजकारखूमामणिटाका कर्मप्रतिटीका १२014 कूपदृष्टोतविद्यादाकरण वेदातनिहाय अनिकांतयवस्था तवालोक विवरण ज्ञानाव ताषारहस्य तिनसुति शासनसुनिवत् देवमपिराक्षा ११ आनंदघनबाबासाटबालापत्र ४ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર૪ शाश्वत प्रासाद-प्रतिमा मान स्तोत्र [ले.सं. १६६८] न्या. वि., न्या. आ. श्री. यशोविजयेोपाध्याय गुरु श्रीनय विजयजी. स्वहस्ताक्षर. अ [ अन्तिम पृष्ठ ] धुनमा स्कार सुमी विचारमान १९४८ आरव हि। हा शक्ल मि तो नागा नववा ॥ दिग्गय गिरी सुचना दासी का रंग सदासा मित्र रिमदा नई सक्त रिसयदी हावा॥ २६ ॐड मुर्तिमय सिमा वीमागचं लाख । इक्कारमस्य सत्ते रिजमा दस दरात रुख ॥। १७ वह विच्याहवीसा का स्वयच दीह विद्वान समय चालीसा दादा विविद्दि सिसालमा सोहम्म | साएद विनय सा एववता मम या गुणामद्दि कोन कायदा असा बासी आ सास शंका डि तिरसयाका डिबिंबत वाणसुतिस गाका डिस! बावन्ना काडिच उन वइलरका । तिरियो । १९ एवं तिकड जिलवा बंद | मि||20 सही लरका गुणन वामान वा मदस लेरक लिंग तिरित्र्यं ।। २१ चचचत्र सहस संगस्य सहावमाणि बिंबाणि २ एनरसा का डिस या दुचता का मिश्रमनल का यात्री ममदस सिता बिबादिमा मि॥३३ सिरित रद निवश्यमुदानाव दिया। देविंद शिंदधुत्र्यदि उत्तवित्र्या सिहिगुह।। ३६ इति धनप्रसादप्रतिमामान स्त्रीलिखित वाचक कल्याण विनयविजया तिना मंद १६६६ बाप बंद श्रीविजयना कल्याणम Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोपाध्याय शशधरविचित न्यायरत्नप्रकरण. ले. सं. 2502. विधायुरोपकण्ठे [अन्तिम पृष्ठ 2 उपा. श्री.यशोविजयजी पर श्रीनय विजय स्वहस्ताक्षर म्नविनित्यज्ञानादिकमपावरेस्चीऊत्ता तिसर्वमवदात!! ॥इतिश्रीमहोपाध्यायश राधरविरचित्तन्यायरनमकरसपूर्ण श्रुतंतूयात् ॥कल्याणमस्तुप ॥२ श्रीमाताायनमाहानामंत्ररूपे विबुधजनहितेदेविदेवेश वंदेवाव्यातकपित कलिमलेहा रनीटारगौरोतामेतामाहासेतवतय हरणतरवेतरवाहाहाकारना देमनमन मिसदाचारदे देविअष्टिीरामवताराधरगगनमुनिशशि १००शावाशिनमासेशुक्लपक्षेवामी वासरेसोमवारे।लिरिक्तश्रीविद्यायु रोएकंठस्याहपुरेयाद स्याहश्रीमहम्मुदसुर वाणुदतबऊमाननपागाधिराजम कलतहारक शिरोमणि सहारका प्राविजयदेवसूरीश्वरचरणा रविंदयुगल सवालिसमानगणनयविजयेन।शु लयाल्लेरवकपाग्योायाबापुस्तकेदृष्ट।। १५ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૫ 20 जानकीनाथ शर्माकृत्त सिद्धान्तमारी-शब्दखंड टीका [आदिभाग] । महापाध्याय श्रीयशोविजयविरचित्त। एगानमातार्यव्यपदेशापवालनयस्याबादमीमासया विषएपलिकानविश्रुतकघामामाएपमीकता मेदव्यपनादनायसुधियामेकाच्वानामपि श्रीवारणपडस्वरवकटिशावधनिःपाखवा अपमान निरुपणा नंतर शिष्यावधानायशनिरुपएंगपत्तिजानति वयादिनाघवाष्टोमगलानिरा लिधरनन्नवाकमएच नियामकाऽन्यघानिरुपणस्यसंपदायविरुपचनानिसाधनत्वज्ञानादचासलवादिनिबोध'योपभाननिकापि तममाष्टोलिरुप्पतत्तियाजनयात्तर्यनाचिनाघवान निरुपितापमानानंत्तर्यस्यापिमाननिरुपए। मत्तरदाहित्वपर्यवमित्तस्पाइनिरुपपललास्तनमानाघेका व्ययाचपदासाअपमानवानरुप एण्यासंघसाध्यत्तयोपस्चितया-मिसाध्यसभलिव्यादारहेनकानुमानलत्यदनुहबममावस्यसंगानवमत्रबोथ्य अनाडमानेव्यात्रिश्यसाध्यत्वरुपाययन्निष्टस्चाधिकरणकगनिसप्रतियागित्वरूपसिम्ताबामकवाकर प्रतिपादितलतिबाधकेविनातन्त्रस्यजन्मन्जवतालसामान्यठवीपष्टव्या निरुपण्यासंगनिनिरुपणापौवाया यानयामकत्तिननिरुप्यनिष्टसंगत्युलिभानायह पारपर्यतस्या निरुप्यनिष्ठत्वान्नासँगतानिधान मितिरिक द्रव्याख्यातनवादस्यापप्ताननिकमा जिज्ञासानितिशा निष्टलकगालकिताभस्प निफपएमालछच्या तुडघा शिष्यत्वतघाचायमाननिरुपा जिज्ञासानिवृतिशएनिष्टालिन्त्रनिरुपएाविषयानातिनाक्याच्या दिवसरसगत्पष्ट्रिाधनिरुपणमिनितदायातरमणीयंत्रनिबंधक जिज्ञासायामस्यस्वरूपसतएवायवक्तचादत एवतन्मात्रस्पक संशतिवमित्यारीकायाकबलस्पत्तस्यनकर्धस्वरमविनकजिज्ञासा निनावश्यक क्स्पलवसरसँगतित्वयक्तिमदवत्यनिया मघाचाचसरस्वसंगतित्वतघाममाकर शिबाधिताचेवा Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडे यशोविजय मिद्धांतमंतरीय नियमो ऽवाल इत्यादाउत्तर पदार्थ प्रामन्पान्त्रषत्वयुक्तमेवमेव या घटना श्रीपादा घटामिन्त्राश्रयोऽस्त्रित्वाऽ उश्रावतिबाधस्यानविकत्वात्रस्यविशेष्यतैव श्रदसीत्यादाचमुष्ट मित्र लक्ष मुकाद नदिइ सामानाधिकरण्यान पुरुष व्यवस्था सेव्यंजनयेत्यादा या षयेति विशेष्यानुरोधादेकवचन मतव तटीका पत्र २४ वर्तन्य ने केनल वियत्पादिकं सपा 2 मिनाक्याकरण एका वयं नमः ततो नया विशेष्यत्वे श्रीः निवाक्याश्रात्मविद्यत्याचारो पिनल विरुयत्वादात्रो घणत्वेनापि नियामकः समभिव्याहार विशेषादिः [अन्तिमपृष्ठ ] २४ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायसिद्धान्त रहस्य' आपृष्ठ] मडोपाध्याय श्री.यशोविजयजी वस्तापर. पर घाय ननुकिंनासंशयावंनहिनावसंरेलीन्पनुलवनियोजातिविशेषावारूषत्वाप्निाशंकर राशिका सच 7 पगमावनापिनन्नदनावोनयप्रकारकज्ञानत्वंनतलघटवंगणंचपटानाववादित्तालिमूहलंब चारि सनलतपट नतियानानाप्मकधर्मिकतननावोजयप्रकारकज्ञात्वविलिन्नप्रमिताव विकधानिकतत्तदलावोनल ae नवमहासंबनतिलान:नवसामानधमिनावोकतन्त्रलावोजयत्रकारकज्ञानत्वंतिितवाच्यंतर जाननि लंधरवर घराजवचावन्पादियमन्त्रयेनियात्रा समययमवोटियावाएवानश्वनरूपत्वात नवम जाव यंत नयमकानुजयमश्रियरूपत्वेतऽत्मनिरवकस्मात जीवनियतनिश्चययो कार्यग्रहलावतत्र घर नोवविशिनुप्रितिवनकावादितिवायघटनावापुरमापतित्वग्रहशायावसमुच्चयो त्पनिमांजवाताव्याप्पतित्वयविशिलाको योनतलावादिनिश्चयुमतविशिबुधादिप्रति बधकत्वात विशेहपतावकसमानाधिकरल्पनयासालावंतचाप्यत्वानियमजिपमा योनिमेशकाचारविष्पनावळेवसामानाधिकरएपनावशिवडावप्रति नागापामपिविशेष्यतायामानाधिकरएपवतजावाजममन्वयशंजवा वजे एक याप्येतत्रित्वयहाजावायामापावाष्पतायामानाधिकरएपनेवतत्र प्रतएवाधापतित्वयकालावऽशायामपिकताव कयामानात तयानावशायामविपकतावकमामानाधिकरण्येनमाध्यतजावोजमर पानमितिःशवशक्तिमत्रप्रावःविशपतावन्नेकावरनंत प्लान कारपवकिायमजयपानामात.यावविराजमावावराध्यता वामतावान माहिरकैधर्मितावळेप्कतलानाछजयकोटिंकंप्रमठमंशयःननितात Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायसिद्धान्त रहस्य' [ओमपृष्ठ] महोपाध्याय श्री. यशोविजयजी वहस्ताक्षर वारः समाप्तः कांस्यान्यकत्रतामा व्याप्यत्वविशिष्टमेवंभे विशेष्यत्वावकाना नियामक मत्रका तावबेक मेवधटकं नानुभवत्वं विशेषणत्व विशेष्यत्वावद्वेकना नियामक संबंधन कार्यकारणनावनेदादिनिवाच्नशाम तिपर्वतः पर्वतवादित्यादिग्व क्रिममा रुपवत्वमापत्वविशिष्टमनवायसंबधेन पर्वतल प्रकाशक पर्वतज्ञान विनापिन क्रिमरमादृतित्व विशिष्ट समवायसंबधनपर्वतत्वन्तो बाधज्ञानमहकाराचार शवकिव्याप्यत्यविशिष्टसमा यमबंधन पर्वतत्ववतोनु मिन्यापत्रेरितिवेन्द्रनारापाषाया लघुत्वे नि एवमुत्वा नादृशपरिधानादिना बाधादिमत्का राध्यापकुनानोदक धर्मयुक्तासामनुमित्फ्गमे कर्मबंधेन व्यापकतावच्छेदकवतो बाधमदि ज्ञाना द परमंबंध मापकना बच्छेदक जानुभितो विधेय विकथंप्रेतधालिखन सिहादत एवबाधादिम दा विनुभिमपगमेध्ये कर्मबंधेनकना ताक्छेदकम्पानुमितोमरुप्रकारतयाजानमपि वेषणतावच्छेदकतानियामक संबधेन त्रत्त्वमेव कोदक नया मानापमान का चित्राता टुकमा त्यरुतानकछेदकधर्म प्रकारेणक वन्द्वेदकवृतिबास दिज्ञानापर संबंधेनपत्र नाफपेयतेत धामात्यापित्वविशिष्टम्पवि नत्रयेकार्यताकोदकमतोनकाय्पनुपपत्निमिति प्राऊः शिव्यताकोदकप्रकारक ज्ञानकारणलदि શ્રી ભાવણ્યવિજયજી જૈન જ્ઞાનભ’ડાર है. अदिसानी રાધનપુર. THE + २६ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनामात उस्य-मडपाध्यायभायशोविजय स्वहस्ताक्षर [अन्तिमाया सनादच्छानबदकत्लेकिनरमात यादवपादानकुत्रतिकारणलवहाराजावात्रतेकपकारलता ज्ञानादमात्रनुमितिकारमनदाराजावाद जाननादिनापिनत्वमनिमलिसवामज्ञानत्वकाचत्वाद नाकाकारणावमादामतानादिनाजनितिकारामबहारमतवाारसंमतलात नवतननादा मितत्वातान्त्रप्रतिकरएनमवदाnaaAतवामनरामवनदेवपिक्रमाच्१११वान्नवतइत्या तक परामरातुमितत्वावशित्रप्रतिकारलमवहारापवईवरित्वात्तवातनामकरण तावदकम परामवावाप्रमेकमपिसवादरवन्वतम्रतमारणावादनानुमिततावाबत्रत्रात तात्यादिनानुत्वइयत्वकतत्वामचमोवाटमादापतितिगमनारिहापत्राला त्या दिनाप कारणत्वानुमाननऊतरकार्यकारणावापानबरामविजातिस्वीकारेपी अात्यादिकमादाय जिमनाविरतिवायकमनीययक्ती माविमागविगिमनाविरहस्साझामवार परामर्शत्वेनरेनुतवलकोडिबेवानीमा जाविघटनापिचनकमा नादमामकफूमादिक परामा शेयपरामर्शत्वावधित्रकारताप्रतियोकिकाताया.अतुमितिमात्रएवमलारामतानंनापत्तीत रलविणणतनापत्रावपि तवाउने पिनाहिमा विरितियघातलाकला लोवसंगमयंतित दमत् परलिजातिस्वीकारपिसाजानेवाकामतेरशादोवात्रविनियमनाविरमरितमा नजातानाना नानादिकेप. त्पनुमिति रोलर श्री 16