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________________ हताश्चेनक्रिय माग र परीक्षणी मे गुराव ने तानसा धारण गुणात वगाहमा नविका लादिव शादे का दिल विद्या ने पिं एकत्रीवायादित्यायेन कतिपयो तर गुल होने पति चारि ॥ सापेक्षमा लोपिसम्पदा मायामन्तात्तो वागमे सत्रविविहारे कम को इलाही! वर लकर विकु । उस्तो तो तत्र हि ६ मा गुरु व कर्म शोधलं प्रतिपादित किंच जेजे जिए हिलाना सोनेवता हा उदाइत्यादिन बना हिलो चिमदिधर्मदगुणेन माक्षिकाला खिलधर्मर्यादा वा वित तर मे वधर्म गुरु त्वथा विकरलीयारपात देवसहमति समाहारकरोति। तदेव नालेयं विजयपाली संविग्गा परिकयां लाइव लिया एायनागुरुतत्रपि मोएका गुलविहाणे विजा६ मा कहां। तावदिहोइबोला से साकधारकरो जाए ६वमलेला क्रियगुरू नावे मोतिया विसापयण हार्दिकु गुरुगाइया । जमतं चाला पाइप मिलक लहाने उन हतार विनामादिधुरो यो हाट द लघु माग्गरकशित होई.:२८ चितापर्यंत निश्वित्वा गुरोराज्ञाया सदासय नमूलं चारित्रफल में रुततमः गुर्वज्ञः चरित्र उनपे व परम पा६क्त मेम यतिका मामलकेतले मध्यात्मप्रति धक कर्म मालिका वादूति निर्मा उभयलिंक क्रोधादिकालका कति पाक लेकर ददतमानसोपचा ततः किं स्यादित्याह विवादले त्रिज्ञानानंद घने मात्र जावे पावित भएप
SR No.009888
Book TitleYashovijayji Swahast Likhit Kruti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size55 MB
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