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________________ ૨૧ इसप्रकारके लिये हुए भिका भिन्न चार ठान्य उपलब्ध हए है। और इन प्रस्तुत ग्रान्थो की प्रतियों मे ठान्थका स्याहनामोल्लेख नहीं मिलता। इन ठान्योमें अनेक स्थलो पर न्यायाचार्य श्रीमद्यशोविजयजी महाराजने स्वयं स्वहस्तसे परिमार्जन तथा परिवर्धन कियाडे ,क्या आपके | न्यायाचार्ययकृतशत ग्रन्थस्य मस्मार्पितम्' इस उल्लेखकी प्रतीति करानेवाली कृतितो नही है? तत: वान्य निर्णयलसवाधनियानिवधनावडेदककोगनिदर्शनीयाचारित्याहा। अनामविपरीमज्ञानोबरमत्यसप्रतिविशेषरधनस्यहेतुत्वेनायं पुरुषया माकारकणादवोधसामन्याञ्चयं पुरुषज्ञत्यादिमानसंपनिपनिबंधकतान कल्पतेरनिवाबनारशसामग्रीदमायोइंदवावहिचविशेष्यकपरुषवाभाव प्रकारकुयोग्यनाजामसारस्पावश्यकतारमहनविशेषदर्शनकप्रकारका विरहेनापरुषडयारिमानसवारणसमवारपरुषलादिया पवनाजानस विचनदभावस्थाप्यवनाज्ञानरूपपनिबंधकामनायं पुरुषायादीमानसस्पेस त्यात विशेषत्रीमाहेतुत्वमनेचसंशयात्मक योग्यताजानबनिसामयीकामा
SR No.009888
Book TitleYashovijayji Swahast Likhit Kruti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size55 MB
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