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________________ २० • शिरोमणि ग्रन्थोपरि जयरामी टीका. श्री यशोविजयोपाध्याये मरिवापितेयंन्नतिः[आदिपृष्ठ] तैरेव स्वहस्ताक्षरै परिमार्जिता श्रीगणेशायनमः। सकलया तक तकतक्रत्रिमहोपा श्रीश्री विजय शिघातील दिडा शाविशिष्पतिश्री जी विजय गलति श्री नदि त्योनमो नमः॥ यो शिवाय दि टं। गूढः ज्ञानघनाता (वयतेना। हनः । (धतिदरमा शारी जयराम गूढार्थ देशोन नंगा गिरा। रोहिशेषां वदो इंटेमंद यांच्छा दिन दिनाम्मा सिहं कित रानिक विदितंय कल्पक काहादिगृह विमोहनंकृतधियां तत्पातये कल्य तां ॥ २ गंधारले विप्रविघाताय विहितं शिष्टाचार परिशशंगलं शि माचिकायेाराः श्रानृणाम मतो मंगल निभानिजिं मित्यादि ॥ मायम वैशिष्टया मनेन मः ॥ सचोक ईः मृष्टिस्थिति प्रलयं गत विशेषणमा ॥ ॐमिति ॥ मुतिमं झिशिवात्मना ॥ ऊन मकारमा शिवबोधक शिरोम जिय रामीटीका
SR No.009888
Book TitleYashovijayji Swahast Likhit Kruti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size55 MB
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