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पांत्रीश बोलनो थोकडो
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शीखामणना बोलोनो संग्रह.
उपावी प्रसिझकर्ता श्रावक नीमसिंह माणेक जैनपुस्तक वेचनार तथा प्रसिद्ध करनार. मांझवी, शाकगसी, मुंबइ.
आवृत्ति पांचमी. संवत् १९७१ शने १९१५.
Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya.
sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay.
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Published by Bhanji Maya for Bhimsi Maneck,
225-231, Mandvi, Sackgalli, Bombay.
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जाहेर खबर.
पांव चरित्र - ( श्री पांच पांव तथा नेमीश्वर जगवान ने श्री कृष्णादिकनुं सविस्तर गुजराती जाषान्तर. ) - श्रा ग्रंथमां श्री नेमीश्वर जगवान, वलजय वासुदेव जे श्रीकृष्ण, प्रतिविष्णु जे जरासंध पांडव, कौरव, जीष्म पितामह, कर्ण, द्रोणाचार्य ने कृपाचार्यादिक अनेक वीर पुरुषोनां चरित्रो आव गयेलां बे तेमज जिनधर्माजिलापी शुरूऊ श्रद्धावान सम्यकद्रष्ट | विवेकी सनोना मनने आनंद उत्पन्न करनारी कथार्ज वैराग्य, नीति तथा सत्य प्रतिज्ञा प्रमुखनो बोध करे वे. या ग्रंथ पहेलां गुजराती अक्षरमां उपायेलो इतो, ते खपी जवाथी हमणां शास्त्री अकरम पाव्यो वे, अने तेनी साथे मन रंजन करे तेवां रंगीन आशरे १०० चित्रो पण नाख्यां बे. हंसराज वठराजनो रास - शीलादि माहात्म्यरूप.
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चंदनमल्या गिरीनो रास तथा शालिन शाहनो रास-शीलादि माहात्म्यरूप.
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॥ अथ ॥
॥श्रीपांत्रीश बोलनो थोकडो तथा
शिखामणना बोलो प्रारंजः॥ १ पहेले बोले नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्य गति अने देवतानी गति, ए चार गति जाणवी॥
२ बीजे बोले एकेजिय जाति, बैंपिय जाति, तेंजिय जाति, चौरिंजिय जाति अने पंचेंजिय जाति, ए पांच जाति जाणवी ॥
३ त्रीजे बोले पृथ्वी काय,अप्काय,तेनकाय, वायुकाय,वनस्पतिकाय अने त्रसकाय,ए उ काय जाणवी।
४ चोथे बोले श्रोत्रेजिय, चकुरिंजिय, घ्राणेंजिय, रसेंजिय श्रने स्पर्शेजिय, ए पांच इडिय जाणवी ॥
५ पांचमे बोले थाहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इंजियपर्याप्ति, श्वासोडासपर्याप्ति, नाषापर्याप्तिअने मनःपर्याप्ति, ए पर्याप्ति जाणवी.
६ बबोले पांच प्रिय तथा मनोबल, वचनबल, अने कायबल, ए त्रण बल, एवं आठ, अने नवमो श्वासोवास तथा दश, आयु, ए दश प्राण जाणवा।
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(२) ७ सातमे बोले औदारिकशरीर, वैक्रियशरीर, आहारकशरीर, तैजसशरीर अने कार्मणशरीर, ए पांच शरीर जाणवां ॥
बाग्मे बोले सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग, मिश्रमनोयोग अने व्यवहारमनोयोग, ए मनना चार योग, तथा सत्यवचनयोग, असत्यवचनयोग, मिश्रवचनयोग अने व्यवहारवचनयोग, ए चार वचनना योग तथा औदारिक काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग, वैक्रिय काययोग, वैक्रिय मिश्रकाययोग, थाहारक काययोग, थाहारक मिश्रकाययोग अने कार्मण काययोग, ए सात कायना योग, एवं सर्व मली पन्नर योग जाणवा ॥ _ए नवमे बोले मतिज्ञान, श्रुतझान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान अने केवलज्ञान, एवं पांच ज्ञान, तथा मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विनंगझान, एवं त्रण अज्ञान, तथा चक्षुर्दर्शन, अचकुर्दर्शन, अवधिदर्शन भने केवलदर्शन, एवं चार दर्शन मली बार उपयोग॥
१० दशमेबोले ज्ञानावरणीय कर्म, दर्शनावरणीय कर्म, वेदनीय कर्म, मोहनीय कर्म, आयुः कर्म, नाम कर्म,गोत्र कर्म अने अंतराय कर्म, ए श्राप कर्म।
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(३)
११ श्रगीयारमे बोले मिथ्यात्व गुणगणुं, साखादन गुणगएं, मिश्र गुणगणुं, अबतिसम्यग्दृष्टि गुणगणुं, देशविरति गुणगणुं,प्रमत्तगुणगणुं,अप्रमत्त गुएगणुं,निवृत्तिबादर गुणगणुं,अनिवृत्तिबादर गुणगएं, सूनसंपराय गुणगणुं, उपशांतमोह गुणगणुं वीणमोह गुणगणुं, सयोगीकेवली गुणगणुं श्रने अयोगीकेवली गुणाएं, एवं चौद गुणगणां ॥
१५ बारमे बोले जीवशब्द,अजीवशब्द अने मिश्रशब्द, ए त्रण विषय श्रोत्रजियना डे, तथा कालो, नीलो, पीलो,रातोअने धोलो, ए पांच विषय चा. रिंजियना , तथा सुरनिगंध अने पुरजिगंध, ए बे विषय घ्राणेंजियना , तथा कमवो,कषायेलो,खाटो, मीगे अने तीखो, ए पांच विषय रसेंजियना डे, तथा सुंवालो, खरखरो, हलवो, नारे, शीत, उष्ण, लूखो अने चोपड्यो, ए श्राप विषय स्पर्शेजियना ने. एवं सर्व मली पांचे इंजियना त्रेवीश विषय जाणवा ॥
१३ तेरमे बोले जीवने अजीव करी जाणे ते मिथ्यात्व, अजीवने जीव करी जाणे ते मिथ्यात्व, धर्मने अधर्म करी जाणे ते मिथ्यात्व, अधर्मने धर्म करी जाणे ते मिथ्यात्व, साधुने असाधु करी सहदे
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(४) ते मिथ्यात्व,असाधुने साधु करी सदहे ते मिथ्यात्व, संवरनाव सेवनरूप मोक्षमार्ग, तेने उन्मार्ग करी सदहे ते मिथ्यात्व, विषयादि सेवनरूप उन्मार्ग, तेने मोक्षमार्ग करी सहहे ते मिथ्यात्व, वायरा आदिक रूपी पदार्थने अरूपी करी सदहे ते मिथ्यात्व, मोक्षादिक अरूपी पदार्थने रूपी करी सद्दहे ते मिथ्यात्व. ए दश प्रकारनां मिथ्यात्व जाणवां॥
१४ चौदमे बोले नव तत्त्वना जाणपणा विषे एकसो ने पन्नर बोल धारवा, ते कहे बे..
प्रथम जीवतत्वना चौद बोल कहे जे. एक सूक्ष्म एकेजिय, बीजा बादर एकेंजिय, त्रीजाबेंजिय, चोथा तेंजिय, पांचमा चौरिंजिय, बहा असन्नीपंचेंजिय अने सातमा सन्नीपंचेंजिय, ए सात जातिना जीव बे, तेने एक पर्याप्ता अने बीजा अपर्याप्ता, एम बे बेनेदे करतां चौद नेद जीवना थाय दे॥
॥बीजा अजीवतत्वना चौद बोल कहे . धर्मास्तिकायनो खंध, देश अने प्रदेश, ए त्रण नेद तथा अधर्मास्तिकायनो खंध, देश भने प्रदेश, ए त्रण नेद तथा आकाशास्तिकायनो खंध, देश अने प्रदेश; ए त्रण नेद अने काल अव्यनो एकज नेद.
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(५) एवं दश नेद अरूपी श्रजीवनाथाय. तेनी साथे पुजलना खंध, देश, प्रदेश अने परमाणु ए चार नेद रूपी बे, ते मेलवतां चौद नेद अजीवना थाय ॥
॥पुण्य नव प्रकारेबंधाय बे,ते नवनेद लखीए बीए. अन्नपुग्ने, पणपुले, शेणपुणे, सेणपुले,वबपुले,मनपुणे, वयपुमे, कायपुमे अने नमस्कारपुरे एवं नव ॥
॥पाप अढार प्रकारेबंधाय ,ते लखीए बीए.प्रा. णातिपात, मृषावाद, श्रदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोल, राग, ष, कलह, अन्याख्यान, पैशुन्य, रति अरति, परपरिवाद, माया मृषावाद, मिथ्यात्वशल्य. एवं अढार नेद थया । - ॥धाश्रव वीश प्रकारे कहे . १ मिथ्यात्वाश्रव,५ अव्रताश्रव, ३प्रमादाश्रव, ४ कषायाश्रव,५ योगाश्रव, ६ हिंसा करवी ते प्राणातिपाताश्रव, ७ मृषावादाश्रव, चोरी करवी ते अदत्तादानाव, ए कुशीलाश्रव, १० परिग्रह राखवो ते परिग्रहाश्रव, १९श्रोत्रंजियने मोकली राखे ते श्रोत्रंपियाश्रव, १५ चरिंजियने मोकली राखे ते चतुरिंजियाश्रव, १३ घ्राणेंजियने मोकली राखे ते घ्राणेंजियाब, १४ रसेंजियने मोकली राखे ते रसेंजियाश्रव, २५ स्पर्शेनि
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यने मोकली राखे ते स्पर्शे जियाश्रव, तेमज मन श्रादिक त्रणने मोकलां राखे ते १६ मनाश्रव, १७ वचः नाश्रव थने १० कायाश्रव, १ए नंमोपकरण सेवा मूकवानीअजयणा करे तेनंमोपकरणाश्रव,श्ण्सुचिकुसंग सेवन करे ते कुसंगाश्रव. एवं वीश नेद थया ॥.
॥हवे संवरना वीश नेद कहे . १समकित संवर, २ व्रतपच्चरकाण संवर, ३अप्रमाद संवर,४ अकषाय संवर, ५ अयोग संवर, ६ प्राणातिपात संवर, ७ मृषावाद न बोले ते संवर, अदत्त न लीए ते संवर, ए मैथुन न सेवे ते संवर, १० परिग्रह न राखे ते संवर, १९श्रोत्रेजियने वश करे ते संवर, १५ चतुरिंजियने वश करे ते संवर, १३ घाणेजियने वश करे ते संवर, १५ रसेजियने वश करे ते संवर,१५स्पर्शेजियने वश करे ते संवर, १६ मन वश करे ते मनः संवर, १७ वचन वश करे ते वचन संवर, १७ काय वश करे ते काय संवर, १ए नंडोपकरणनी अजयणा न करे ते संवर, २० सुचि कुसंग न सेवे ते संवर ॥
निर्जराना बार नेद कहे . १ अनशन तप, २ ऊणोदरी तप, ३ वृत्तिसंक्षेप तप, ४ रसत्याग तप, ५ कायक्वेश तप, ६ संलीनता तप, प्रायश्चित्त
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तप, G विनय तप, ए वैयोवृत्य तप, १० सजाय तप, ११ ध्यान तप, १५ कायोत्सर्ग तप, एवं बार ॥
॥बंधतत्त्वना चार नेद कहे . प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुनागबंध अने प्रदेशबंध, एवं चार थया॥
॥मोदतत्त्वना चार नेद कहे जे. एक ज्ञान, बीजुं दर्शन, त्रीजुं चारित्र अने चोथु तप. ए नव सत्वना जाणपणा आश्रयी एकलो ने पन्नर बोल कह्मा ॥ . १५ पन्नरमे बोले अव्यात्मा, कषायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा अने वीर्यात्मा, ए आठ प्रकारना आत्मा कह्या ॥
१६ सोलमे बोले १ असुरकुमार, ५ नागकुमार, ३ सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार,६छीपकुमार, ७ दिशाकुमार, ७ उदधिकुमार, ए स्तनित. कुमार, १० वायुकुमार, ए दश जुवनपतिनां दश दमक तथा सात नारकीर्नु एकदमक, तथा पृथ्वीकाय, अपूकाय, तेउकाय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय, ए पांच स्थावरनां पांच दमक, तथा बैंख्यि, तेंजिय श्रने चौरिंजिय ए त्रण विकलेंजियनां त्रण दरक,एवं उंगणीश थयां अने वीशमुं तिर्यंच पंचेंजिगर्नु, एकवीशमुं मनुष्य, बावीशमुं व्यंतरिक देवोर्नु,
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( 2 )
त्रेवी रामं ज्योतिषी देवोनुं ने चोवीशमं वैमानिक देवोनुं, एवं चोवीश दंकक जाणवां ॥
१७ सत्तर मे बोले कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या छाने शुक्कलेश्या, ए बलेश्या जाणवी ॥
१० ढारमे बोले मिथ्यादृष्टि, सम मिथ्या एटले मिश्रदृष्टि ने सम्यक्त्वदृष्टि, ए त्रण दृष्टि जाणवी ॥ १० अंगणी शमे बोले यार्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान ने शुक्लध्यान, ए चार ध्यान जाणवां ॥
२० वीशमे बोले धर्मास्तिकायादि ब द्रव्य बे, तेने श्रीश बोले उलखीए, ते कड़े बे. तिहां प्रथम धर्मास्तिकाय द्रव्य, ते द्रव्य थकी एक द्रव्य, क्षेत्र थकी चौद राजलोक प्रमाण, काल थकी यदि अंत रहित, नाव थकी रूपी, गुण थकी जीव पुगलने चालवानी सहाय आपनार, ए पांच बोले धर्मास्तिकायने उलखीए ॥
॥ धर्मास्तिकाय पण द्रव्य थकी एक द्रव्य, क्षेत्र थकी चौद राजलोक प्रमाण, काल थकी अनादि अनंत, जाव की रूपी अने गुण थकी स्थिर रहेनारने सहाय अपनार, ए पांच बोले उलखीए ॥ ॥ श्राकाशास्तिकाय द्रव्य थकी एक द्रव्य, क्षेत्र
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थकी लोकालोक प्रमाण, काल थकी अनादिअनंत, नाव थकी श्ररूपी अने गुण थकी अवकाश प्रापनार, ए पांच बोले उलखीए ॥
काल अव्य प्रव्य थकी एक अव्य,क्षेत्र थकी अढीहीप प्रमाण,काल थकीअनादि अनंतनाव थकीरूपी, गुण थकी वर्त्तनालदण, ए पांच बोले उलखीए. ॥पुजलास्तिकाय प्रव्य अव्य थकी अनंतांजव्य,देत्र थकी चौद राजलोक प्रमाण,काल थकी अनादि अनं. त, नाव थकी रूपी अने गुण थकी पूरण गलन,समण, पमण, विध्वंसन लक्षण, ए पांच बोले उलखीए ॥ ॥जीवास्तिकायप्रव्य अव्य थकी अनंतां अव्य, क्षेत्र थकी चौद राजलोक प्रमाण, काल थकी अनादि अनंत, नाव थकी अरूपी अने गुण थकी चेतनगुणलक्षण, ए पांच बोले लखीए.एवं सर्व मली त्रीश बोल थया.
२१ एकवीशमे बोले एक जीवराशि अने बीजो अजीवराशि, ए बे राशि जाणवा ॥ - श्वावीशमे बोले श्रावकनां बार व्रत कहे . तिहां पहेले व्रते त्रस जीवने हणे नहीं अने स्थावर जीवनी मर्यादा करे, बीजे बते पांच मोटका जूठ बोले नहीं, त्रीजे व्रते मोटकी चोरी करे नहीं, चोथे व्रते परस्त्री
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(१०) नो त्याग करे अने पोतानी स्त्रीनी मर्यादा करे, पांचमे व्रतेपरिग्रहनी मर्यादा करे,हे व्रते दिशानी मर्यादा करे,सातमेव्रतेपन्नर कर्मादाननीमर्यादा करे, श्रावमे व्रते अनर्थ दमनी मर्यादा करे,नवमे व्रते सामायिक करे,दशमे व्रते देशावकाशिक करे,अगीयारमे व्रते पो. सह उपवास करे, वारमे व्रते साधु मुनिराजने सूजतां शुक श्राहार पाणी थापे, एवं बार व्रत जाणवां ॥
२३ त्रेवीशमे बोले साधुनां पांच महाव्रत कहे जे. साधुजी मने,वचने,कायाए करी को जीवने सर्वप्रकारे पोते हणे नहीं, हणावे नहीं अने हणताने रुडं जाणे नहीं,ते प्रथम प्राणातिपातविरमणव्रत जाणवू.
॥साधु महाराज मने, वचने, कायाए करी सर्व प्रकारे पोते जूतुं बोले नहीं, बीजाने जूतुं बोलावे नहीं श्रने जूतुं बोलताने रुठं जाणे नहीं, ते बीजें मृषावाद विरमणवत जाणवू ॥
॥साधुजी मने, वचने, कायाए करी सर्व प्रकारे पोते चोरी करे नहीं, बीजा पासे करावे नहीं आने करत प्रत्ये अनुमोदे नहीं, ते त्रीजुं अदत्तादान विरमणव्रत जाण ॥
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(११) ॥ साधुजी मने, वचने, कायाए करी सर्व प्रकारे मैथुन पोते करे नहीं, बीजा पासे करावे नहीं अने करताने रुडं जाणे नहीं, ते चोथु ब्रह्मचर्यव्रत ॥
॥साधुजी मने, वचने, कायाए करी सर्वथा पोते परिग्रह राखे नहीं, बीजाने रखावे नहीं अने राखताने रुडं जाणे नहीं, ते पांचमुं परिग्रहविरमणव्रत ॥
॥ हवे ए पांच महाव्रतना नांगा कहे २ ॥ ॥पहेला प्राणातिपातविरमणव्रतना जांगा
एक्याशी थाय, ते कहे ॥ ए पृथ्वीकायने हणे नहीं, हणावे नहीं अने हणताने रुडं जाणे नहीं, तेना मन, वचन अने काया, ए त्रण योगे करी नांगा थया.. ए अपकायने हणे नहीं, हणावे नहीं श्रने हणता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाए करी. ए तेउकायने हणे नहीं, हणावे नहीं अने हणता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन थने कायाए करी. ए वायुकायने हणे नहीं, हणावे नहीं आने दणता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए वनस्पतिकायने हणे नहीं, हणावे नहीं, हाता. ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी.
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ए बेजियने हणे नहीं, हणावे नहीं अने हणताने रु९ जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए तेंजियने हणे नहीं, हणावे नहीं अने हणताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए चौरिंजियने हणे नहीं, हणावे नहीं अने हणताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए पंचेंजियने हणे नहीं, हणावे नहीं अने हणताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ॥ बीजा मृषावादविरमणव्रतना नांगा
बत्रीश थाय ते कहे ॥ ए क्रोधना आवेशथी असत्य बोले नहीं, बोलावे नहीं, बोलताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन,कायाथी. ए हास्यथी जूतुं बोले नहीं,बोलावे नहीं अने बोलता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए जयथी जूतुं बोले नहीं, बोलावे नहीं, बोलताने
रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाए करी. ए लोनश्री जूतुं बोले नहीं, बोलावे नहीं, बोलताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी.
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(१३) ॥त्रीजा अदत्तादानविरमणव्रतना चोपन
जांगा थाय बे, ते कहे ॥ ए अल्प चोरी करे नहीं, करावे नहीं अने करताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए घणी चोरी करे नहीं, करावे नहीं थने करता.
ने रुडुंजाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए नानी चोरी करे नहीं, करावे नहीं अने करताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए मोटी चोरी करे नहीं, करावे नहीं अने करताने
रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए सचित्त वस्तुनी चोरी करे नहीं, करावे नहीं, करताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाए करी. ए श्रचित्त वस्तुनी चोरी करे नहीं, करावे नहीं, करताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाए करी. ॥ चोथा मैथुन विरमणव्रतना नांगा सत्तावीश
थाय, ते कहे ॥ ए देवतानी स्त्रीने जोगवे नहीं, जोगवावे नहीं, जोगवताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाए करी. एमनुष्यनी स्त्रीने जोगवे नहीं,जोगवावे नहीं अने नोगवताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाथी.
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(१४) ए तिर्यंचनी स्त्रीने जोगवे नहीं, जोगवावे नहीं अने जोगवताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाधी. ॥ पांचमा परिग्रह विरमणव्रतना चोपन जांगा
थाय, ते कहे ॥ ए अल्पपरिग्रह राखेनहीं, रखावे नहीं अने राखता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए घणो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए नानो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाथी. ए मोटोपरिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाथी. ए सचित्त वस्तुनो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन भने कायाथी. ए अचित्त वस्तुनो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं थ.
ने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाश्री. ॥ एम ए पांचे महाव्रतना मती २५२ नांगा थया ॥ २४ चोवीशमे बोले व्रतना नांगा गणपचास कहे. तिहां प्रथम एक करण ने एक योगथी नव नांगा था
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(१५) य, ते कई बे.१मने करी करूं नहीं,श्वचने करी कर नहीं, ३ कायाए करी करुं नहीं, ४ मने करी करा, नहीं, ५ वचने करी करावं नहीं, ६ कायाए करी कराq नहीं, ७ मने करी अनुमोठं नहीं, ७ वचने करी अनुमोठं नहीं, ए कायाए करी अनुमोउं नहीं.
॥ हवे एक करण ने बे योगथी नव नांगा थाय, ते कहे बे. १ मने करी वचने करी करूं नहीं, श्मने करी कायाए करी करूं नहीं, ३ वचने करी कायाए करी करूं नहीं,४मने करी वचने करी करावु नहीं, ५ मने करी कायाए करी करावुनहीं, ६ वचने करी कायाए करी करावू नहीं, जमने करी वचने करी अनुमोउँ नहीं, उमने करी कायाए करी अनुमोडुनहीं, ए वचने करी कायाए करी अनुमोउं नहीं ॥
॥ हवे एक करण ने त्रण योगथीत्रण चांगा थाय, ते कहे . १मने, वचने अने कायाए करी करूं नहीं, श्मने, वचने अने कायाए करी करावु नहीं,३ मने, वचने अने कायाए करी अनुमोउं नहीं ॥
॥ हवे बे करण अने एक योगथी नव नांगा थाय, ते कहे . १मने करी करूं नहीं, करावू नहीं, श्वचने करी करूं नहीं, करावं नहीं, ३ कायाए करी करूं
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(१६) नहीं, कराकुं नहीं,४मने करी करुनहीं,अनुमोडुनहीं, ५ वचने करी करूं नहीं,अनुमोई नहीं,६ कायाए करी करुं नहीं, अनुमोठं नहीं, जमने करी करावू नहीं,अनुमोउं नहीं, वचने करी करावु नहीं, अनुमोडं नही,ए कायाए करी करावू नहीं, अनुमोउं नहीं।
॥हवेबेकरण अने बे योगथी नव नांगा थाय,तेकहे .१ करुं नहीं, करावु नहीं,मने करी, वचने करी. २ करूं नहीं, करावू नहीं, मने करी, कायाए करी. ३ करूं नहीं, करावें नहीं, वचने करी, कायाए करी. ४ करुं नहीं, अनुमोउं नहीं, मने करी, वचने करी. ५ करुं नहीं, अनुमोठं नहीं,मने करी, कायाए करी. ६ करूं नहीं, अनुमोउं नहीं, वचने करी,कायाए करी. ७ करावुनहीं, अनुमोई नहीं, मने करी, वचने करी.
करावू नहीं, अनुमोऽनहीं,मने करी,कायाए करी. एकरावू नहीं,अनुमोउं नहीं,वचने करी,कायाए करी.
॥हवे बे करण अनेत्रण योगयीत्रण नांगा थाय, ते कहे . १करुं नहीं, करावु नहीं, मने करी, वचने करी, कायाए करी. २ करुं नहीं, अनुमोउं नहीं,मने करी, वचने करी, कायाए करी.३ करावें नहीं, अनुमोडं नहीं, मने करी, वचने करी, कायाए करी।
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(१७)
॥ हवे त्रण करण अने एक योगथी त्रण जांगा थाय, ते कहे . १ करूं नहीं, करावं नहीं, अनुमोई नहीं, मने करी.२ करूं नहीं, करावु नहीं, अनुमोठं नहीं, वचने करी.३ करुनहीं, कराएँ नहीं, अनुमोठं नहीं, कायाए करी॥
॥ हवे त्रण करण अने बे योगथी त्रण नांगा थाय, ते कहे . १ करुं नहीं, करा, नहीं, अनुमोडं नहीं, मने करी, वचने करी.२ करुं नहीं, करावुनहीं, अनुमोठं नहीं, मने करी, कायाए करी. ३ करूं नहीं, करावुनहीं,अनुमोठं नहीं,वचने करी, कायाए करी॥
॥ हवे त्रण करण अने त्रण योगश्री एक नांगो थाय, ते कहे . १ मने करी, वचने करी, कायाए करी करूं नहीं, करा, नहीं अने अनुमोउं नहीं ॥
॥सरवाले एक करण ने एक योगथी नव,एक करण ने बे योगथी नव,एक करण नेत्रण योगथी त्रण,तथा बे करण ने एक योगथी नव, बे करण ने बे योगथी नव, बे करण नेत्रण योगथी त्रण तथा त्रण करण ने एक योगथी त्रण, त्रण करण ने बे योगथी त्रण अने त्रण करण नेत्रण योगथी एक, एवं ४ए नांगा थया । - २५ पचीशमे बोले पांच चारित्रनां नाम कहे .
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(१७) १ सामायिक चारित्र, बीजु जेदोपस्थापनीय चारित्र, त्रीजुं परिहार विशुछि चारित्र, चोधुं सूक्ष्मसंपराय चारित्र अने पांचमुं यथाख्यात चारित्र. एवं पांच ॥
२६वीशमे बोले नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, जुसूत्रनय, शब्दनय, समनिरूढनय अने ए. वंनूतनय, ए सात नय जाणना ॥
२७ सत्तावीशमे बोले नामनिदेप, स्थापनानिकेप, व्यनिक्षेप अने जावनिदेप, ए चार निक्षेपा जाणवा ॥
अहावीशमे बोले उपशमसमकित, क्षयोपशमसम कित,दायिकसम कित, साखादनसमकित अने वेदकसम कित, ए पांच समकित जाणवां ॥
ए उंगणत्रीशमे बोले शृंगाररस, वीररस, करुपारस, हास्यरस, रौधरस, जयानकरस, अनुतरस, बिनत्सरस अने शांतरस, ए नव रस जाणवा ॥
३० त्रीशमे बोले १ वमनी पीयु, पीपलनी पीपु, ३ जंबरनां फल, ४ पिंपरीनी पींपु, ५ कलुबरनां फल, ६ मधु, ७ माखण, ७ मांस, ए मदिरा, १० हिम, ११ विष ते अफीण, सोमल प्रमुख, १२ करहा ते रोयमा, १३ सर्व जातनी काची माटी,१४ रात्रिजोजन,
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(१ए) २५ बहुबीजानुं फल, १६ अनंतकाय कंदमूल फल, १७ बोला- अथाएं, १० काचां गोरसमां करेला की, रए वेगण रींगणां, २० जेनुं नाम न जाणतां होए एवां अजाएयां फल फूल, २१ तुबफल ते चणीयां बोर तथा कुंअली वस्तु, अत्यंत काचां फल, तथा पीखूमां, पीचू प्रमुख, २५ चलित रस ते सडेबुं अन्नादिक, जेनो काल पूरो थयाथी स्वाद बदल्यो होय, रस चलित थ गयो होय ते, ए बावीश अजय वर्जवा योग्य . तेनां ते नाम जाणवां ॥
३१ एकत्रीशमे बोले एक व्यानुयोग, बीजो गणितानुयोग, त्रीजो चरणकरणानुयोग अने चोथो धर्मकथानुयोग, ए चार अनुयोग जाणवा ॥ ____३५ बत्रीशमे बोले एक देवतत्व, बीजुं गुरुतत्व अने त्रीजुं धर्मतत्व, ए त्रण तत्व जाणवां ॥ ___३३ तेत्रीशमे बोले काल, स्वनाव, नियत, पूर्वकृत कर्म थने पुरुषकार ते उद्यम,ए पांच समवाय जाणवा. ___३४ चोत्रीशमे बोले एक क्रियावादीना एकसो एंशी नेद,बीजाश्रक्रियावादीना चोराशी नेद,त्रीजा बिनयवादीना बत्रीश नेद अने चोथा अज्ञानवादीना सडस नेद,ए रीते चार प्रकारना पाखंमी डे.
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(२०) तेना सर्व मली त्रणसें ने त्रेस नेद श्रीसूयगमांग सूत्रथी जाणवा ॥
३५ पांत्रीशमे बोले श्रावकना एकवीश गुण कही देखाडे . १ कुछ मतिवालो न होय, पण गंजीर होय,पंचेंजिय स्पष्ट होय, रूपवंत होय एटलां अंगोपांग संपूर्ण होय, ३ सौम्य प्रकृतिवालो होय,स्वजावे अपापकर्मी होय,४ सर्वदा सदाचारी होय माटे सर्व लोकने वहज होय, प्रशंसा करवा योग्य होय, ५संक्लिष्ट परिणामथी रहित होय, क्रूर चित्तवालो न होय, ६ श्ह लोक परलोकना अपायथी एटले कष्टथी बीतो रहे, तथा अपयशथी बीतो रहे, अशठ होय, परने उगे नहीं, दाक्षिण्यवालो होय, परनी प्रार्थना नंग करे नहीं, एस्वकुलादिकनी लजावालो होय, अकार्य वर्जक होय, १० दयावंत होय, ११सौम्य हष्टिवालो होय,१५ गुणी जीवोनो पक्षपाती होय, १३ नली धर्मकथानो उपदेश करनार होय, १४ सुशीलादि एवा अनुकूल परिवार युक्त होय, १५ उमा विचारवालो दीर्घदर्शी होय, १६ पक्षपातरहितपणे गुण दोष विशेषनोजाण होय, १७ वृक्ष पुरुषोजे परिणत मतिवाला, तेने सेवनारो, तेना
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(१) अनुयायीपणे चालनारो होय, १७ गुणाधिक पुरुषनो विनय करनारो होय, १ए कस्या गुणनो जाण होय, २० निलोजी थको पोतानी मेले परोपकार करे,१ खब्धलद ते धर्मानुष्ठान व्यवहारनो लदा जेने प्राप्त थयो होय, ए एकवीश गुण जेमां होय, ते प्राणीधमरूप रत्न पामवानी योग्यतावंत कवाय.ए एकवीश गुण श्रावकना जाणवा॥इति पांत्रीश बोल समाप्त ॥
॥अथ शिखामणना १ए बोल ॥ १ को पण शुभ कार्य करतां विलंब न करवो. २ मतलब विना लवारो न करवो. ३ ज्ञानी थश्ने गर्व करवो नहीं. ४ बनतां सुधी दमा अवश्य धारण करवी. ५ घरनुं गुह्य कोश्ने कहेवू नहीं.. ६ स्त्री तथा पुत्रनी कुवात कोने कहेवी नहीं. मित्रथी कांड पण अंतर राखवो नहीं.
कुमित्रनो विश्वास न करवो. ए प्रेम राखनारी स्त्रीनो पण विश्वास न करवो १० को पण कार्य करवू ते विचारीने करवं. ११ मात,पिता,गुरु तथा मोटा पुरुषनोविनय करवो. १५ स्त्रीने गुह्यनी बात कहेवी नहीं
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( ५२) १३ पेट नरायाथी नोजननो संतोष करवो. १४ विद्या नणवामां संतोष न करवो. १५ दान देतां कलावू नहीं. १६ तपस्या करवामां पावं हन्तुं नहीं. १७ ग्रहण करेली प्रतिज्ञानो नंग करवो नहीं. १७ अन्यायथी अव्य उपार्जन करवू नहीं. रए शरीर बल विचार्या विना युद्ध करवू नहीं, २० फुःखना समये धैर्य तजवू नहीं. १ माग कार्यर्थ २२ बगलानी पेरे इंजियो गोपवी राखवी. २३ कुकडानी पेठे प्रजाते सहुथी वहे उठवू. २४ अंगथी प्रमाद घर करवो. २५ निजा चेततां करवी. श्वचिंतवेबु कार्य पार पाड्या विना कोने कहेवू नहीं. श्सासरे चतुराश्धारण करवी अने मूर्खा तजवी. शव गुण सेवामा प्रयत्न करवो. शए नीच नरथी पण उत्तम विद्या देवी. ३० सरखा साथे प्रीति करवी. ३१ क्लेशने स्थानके मौनपणुं धारण करवं. ३२ मोटा साथे वैर करवू नहीं.
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(२३) ३३ खेवडदेवममां, नोजनमां, विद्या जणवामां, व्यापारमा भने वैद्य बागल लाज करवी नहीं. ३५ क्वेशस्थानके उठे रहेतुं नहीं... ३५ अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कुमारी अने शा__ स्वनां पुस्तक एटलांने पग लगामवो नहीं.. ३६ घी, तेल, दही,ध प्रमुख उघामां मूकवां नहीं. ३७ वैद्य, अग्निहोत्री, राजा, नदी, व्यापारी वा__णीयो ए पांच ज्यां न होय, त्यां वसवू नहीं. ३० नीचथी विवाद करवा ३ए जे थकी जीवने जोखम थाय ते धन पण वर्जवं. ४० शत्रुनी उपर पण निर्दय थq नहीं. ४१ मूर्ख, कायर, अनिमानी, अन्यायी अने पुष्ट ___ एटलाने खामी करवा नहीं. ४२ मूर्खने हितोपदेश देवो नहीं. ४३ परस्त्रीने सर्वदा कर्जवी. ४३ इंजियो सर्वथा वश राखवी. ४५ मूर्ख मित्र करवो नहीं. ५६ लोनीने अव्यथी वश करवो.
ती शक्तिए परनी आशा नंग करवी नहीं. ४ गुण विना मात्र थामंबरथी रीज नहीं.
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( २४ )
४० राजा रीके तोपण विश्वास करवो नहीं. ५० एक अक्षर शिखवनारने पण गुरु करी मानवो. २१ पाणी गलीने तथा जोइने पीवुं. २२ प्राणांते पण सत्य बोलवुं वर्जवुं नहीं. ५३ पोताना अवगुण शोधी काढवा.
५४ राजानी स्त्री, गुरुनी स्त्री, मित्रनी स्त्री, सासु छाने पोतानी माता, ए पांचे माता जाणवी. ५५ कार्य तथा सत्कार विना कोइने घेर जतुं नहीं. २६ वचननुं दारिद्र्य राखवुंज नहीं.
५७ लेख, पुस्तकाने स्त्री, एत्रण को इने पत्रां नहीं.
५० यावक जोइने खरच करवो. ० हरएक विद्या मुखपाठे राखवी. ६० स्वामी प्रसन्न यये गर्वित यतुं नहीं. ६१ करियाएं जोया वगर हाथो मेलववो नहीं. ६२ शस्त्र बांधनार तथा ब्राह्मण प्रमुखने धीरखं नहीं ६३ नट, वटलेल, वेश्या, जुगारीने उधारे श्राप नहीं. ६४गुप्तधन देवुं तो दुशीयारी थी पक्को बंदोबस्त करवो. ६५ बे चार साक्षी राख्या विना धन थाप नहीं. ६६ उधार लावेलुं धन मुदत पहेलांज आप.
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(२५) ६७ घरमा पैसा उतां देवं करवु नहीं. ६७ देवं होय तो ते आपवाना उद्यममा रहे. ६ए प्रीतिवंत साथे प्रायः लेवमदेवम करवी नहीं. ७० चोरेली वस्तु जो मफत मले तोपण लेवी नहीं. ३१ कुराचारीने जागीदार करवो नहीं. ७२ लांघण करवी नहीं. ७३ खात्रीदारने कितीदार करवो. ७४ श्राप्युं ली, होय ते लखवामां आलस्य न करवू. ३५. नवा नवा गुमास्ता मेता करवा नही. ७६ शातिमां नम्रता राखवी. स्त्रीने मिष्ट वचनथी बोलाववी.
शत्रुने पेटमा पेसी वश करवो. उए मित्र पासे पण सादी विना थापण मूकवी नहीं. G एकाद बे मोटानी उलखाण अवश्य करवी. ७१ बनतां सुधी कोश्नी सादी जरवी नहीं. ७२ परदेशमा केफी वस्तु सेवन करवी नहीं. ३ उत्सव मूकी, गुरु अने पितार्नु अपमान करी, बोकरांने रोवरावी, हत्या करी, तैयार थयेवू जोजन निबंबी, रुदन सांजली, मैथुन सेवी, उलटी करी, समीप श्रावेखं पर्व अवगुणी,पू.
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(२६) धनुं जोजन करी, एटलां वानां करीश्रात्महितैषीए परदेश ज नहीं. ४ जे घरमां कोई माणस न होय ते घरमां न जq. न्य कारण विना पोताना व्यनी श्राशा न करवी. ६ परदेशमा थामंबर धारण करवो. ७ कोश्नी वात कोइने कदेवी नहीं.
माता पितानी आज्ञा लोपवी नहीं. पए माता पितानी सेवा चाकरी मन राखी करवी. ए गुरु श्रने माता पिताना दररोज पग दाबवा. एर माता पिता श्रागल जूतुं बोल नहीं. एर माता पिताना धर्मादिना मनोरथ पूर्ण करवा. ए३ मोटा नाश्ने पिता सरखो जाणवो. एव जाश्नी उर्दशा पूर करवी, कुमार्गथी निवारवो. एए रोगमां, सुष्कालमां, शत्रुना नयमां अने राज
छारमा, एटले स्थानके नाश्नी सहायता करवी. एद कोइ पण उत्तम कार्यमा जाश्ने नूलवो नहीं. ए नाटक, कौतुक, घणा जनोमांस्त्रीने जोवा जवा ... देवी नहीं. ए स्त्री पासे सारी रीते सेवा कराववी. एए स्त्रीने रात्रे बहार जवा देवी नहीं.
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(२७) १०० स्त्री रीसाइ होय तो तरत मनाव। लेवी. १०१ स्त्रीने घरना काममां अव्य आपी व ववी. १०२ उत्सवना दिवसे सगांसंबंधीने जूली जवां नहीं. १०३ पुःख पामतां एवांसगां संबंधीउने सहाय करो. २०४ सगां साये कदापि विरोध करवो नहीं. १०५ जे घरमां एकली स्त्री होय ते घरमांजवू नहीं. १०६ धर्मना काममां सगांउने जोमवां. १०७ बगासु खातां, कता, उंडकार खातां अने ह
सतां, एटले ठेकाणे मुख दाब नहीं. १०० धुं तथा चितुं सुq नहीं. १०ए जमता बींक श्रावे तो तरत पाणी पावं. ११० उन्ने उने पीसाब करवो नहीं. १९१ उन्ने उन्ने पाणी पीयूँ नहीं. २९५ सुती वखते गती पर हाथ राखवो नहीं. १९३ कन्या सारा कुलमां श्रापवी, कुःखी कुलमां
न यापवी. ११५ कन्यानुं अव्य लेवू नहीं. ११५कन्यानो वर कन्याना वयथी वधारे वयनो करवो. १९६ रोगी, वृक्ष, मूर्ख, दरिबी, वैरागी, क्रोधी अने
नानी वयनो, एटलाने कन्या श्रापवी नहीं.
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११७ मोटो पुरुष घेर श्रावे तो उजा थइ सन्मान देवु. ११० दोस्तदारी मित्राचारी पंडितो साथे राखवी. ११ नवां नवां शास्त्र वांचवानो अभ्यास जाथु करवो. १२० कक्को पण ग्रंथ जपतां अधूरो मूकवो नहीं. १२१ पोताना मुखथी पोतानी प्रशंसा करवी नहीं. १२२ बता पराक्रमे निरुद्यमी यतुं नहीं. १२३ कपटीना नंबरनो विश्वास न करवो. १२४ गइ वस्तुनो शोक न करवो.
१२५ शत्रु होय तेना पण मरणसमये स्मशाने जतुं. १५६ शूरवीर थइने निर्बलने दुःख देवुं नहीं. १२७ अति कष्टे पण श्रात्मघात करवो नहीं. १२० हास्य करवा कोनुं मर्म प्रकाश नहीं, १२० हास्य करतां कोइ उपर क्रोध करवो नहीं. १३० वे जण विचार करता होय त्यां जवुं नहीं. १३१ पंच नाकारो करे ते काम कर नहीं. १३२ मातुं काम करी हर्ष पामवो नहीं. १३३ तपस्या करी क्षमा धारण करवी. १३४ जणेलुं शास्त्र नित्य प्रत्ये संचारतां रहेवुं. १३५ पुरुषे रात्रि दर्पण जोतुं नहीं. १३६शयन, मैथुन, निद्रा, आदार, ए संध्यासमये वर्जव.
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(0) १३७ रोटलो आपवो पण जेटलो श्रापवो नहीं. १३० सर्वनी साथे उलखाण पिठाण राखवी. १३ए जोजन कस्याने एक प्रहर पूर्ण न थयो हाय
एटलामां फरी नोजन करवू नहीं, तेमज जो. जन कस्या पली बे प्रहर थाय के फरी जमी लेवू
परंतु बे प्रहरथी उपरांत नूख्या रहेवू नहीं. १४० स्त्रीनां वखाण तेना मरण पड़ी करवां. १४१ राजा,देव अने गुरुनी पासे खाली हाथे जवू नहीं १४२ निर्लज स्त्री साथे हास्य न करवू. १४३ शुल कार्यमां कालविलंब न करवो. १४४ तमकेथी श्रावी तरत पाणी पी नहीं. १४५ अर्ड रात्रे उच्च खरे गुह्यनी वातो कहेवी नहीं. १४६ नोजननी वच्चे अने अंतमां जल पी. १४७ अजीर्ण थाय तो एक बे टंक जोजन वर्जवं. १४७ हर्षना समयमां शोकनी वात त्यजवी. १४ए कोई क्रोधना श्रावेशथी निष्ठुर वचन आपणने
श्रावी कहे तोपण न्यायमार्ग मूकवो नहीं. १५० माता, पिता, गुरु, शेठ, खामी अने राजा,
एटलाना अवगुण बोलवा नहीं.
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(३०)
२५१ मूर्ख, उष्ट, अनाचारी, मलिन, धर्मनी निंदा ___ करनारो, कुशी ली, लोजी श्रने चोर, एट
लानो संग क्यारे पण करवो नहीं. १५२ अजाएया माणसनी कीर्ति करवी नहीं. १५३ अजाण्या माणसने पोताना घरमा राखवू नहीं. १५४ अजाण्या कुल साथे सगाई करवी नहीं. १५५ अजाण्या माणसने चाकर राखवो नहीं. १५६ पोताथी मोटा माणस उपर कोप न करवो. १५७ मोटा माणस साथे क्लेश करवो नहीं. १५७ गुणवान् माणस साथे वाद न करवो. १५ए दारिद्य श्राव्ये आगली कमाश्नी श्छा राखे
ते मूर्ख. १६० पोताना गुणनां वखाण करे ते मूर्ख. १६१ माथे देवू करीने धर्म करे ते मूर्ख. १६२ उधारे धन पापीने मागे नहीं ते मूर्ख. १६३ खजन साथे विरोध करे अने पारका लोक ___ साथे प्रीति करे ते मूर्ख जाणवो. १६४ न्यायमार्गे धन उपार्जन करवू. १६५ देशविरुष्क कार्य न कर. १६६ राजाना वैरीनी संगति न करवी.
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(३१) १६७ घणा माणसो साथे विरोध न करवो. १६० जला पामोशीनी पासे रहेg. १६ए पोतानो धर्म मूकवो नहीं. १७० पोताना श्राश्रये रह्यो होय तेनु हित करवू, १७१ खोटा लेख लखवा नहीं. १७२ देव गुरुने विषे नक्ति राखवी. १७३ दीन अने अतिथिनी बनती सेवा करवी. १७४ जे लाग्यमां दशे ते मलशे एवो नरोसो रा___खीने उद्यम मूकी थापवो नहीं. १७५ चोरीनी वस्तु खेवी नहीं. १७६ सारी नरसी वस्तु नेली करी वेचवी नहीं. १७७ श्रापदानुं वर्जन करवा राजानो श्राश्रय खेवो. २७७ तपस्वीने, कविने, वैद्यने, मर्मना जाणने, रसोई
करनारने, मंत्रवादीने अने पोताना पूजनीयने,
एटलाने कोपाववा नहीं. १७ए नीचनी सेवा आचरवी नहीं. १७० विश्वासघात करवो नहीं. १७१ सर्व वस्तुनो नाश यतो होय तोपण पोतानी
वाचा अवश्य पालवी. र धर्मशास्त्रना जाण पासे बेस.
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(३२) १७३ कोश्नी निंदा करवी नहीं. २४ मार्गे चालतां तंबोल न खावां. १५ आखी सोपारी दांते करी नांगवी नहीं. १६ पोते वात कही पोतेज हसे, जेमतेम बोले, ह ___ लोक परलोक विरुष काम करे, ए मूर्खनां चिह्न जे. १७७ उपवना स्थानके रहे नहीं. १७ आवक जोश्ने खरच करवो. १७ए अव्यानुसारे वस्त्रादिक पहेरवां. १एन लोक निंदा करे ते काम करवू नहीं. १९१ खोटां तोलां, खोटां मापां राखवां नहीं. रए घरेणां राख्या विना व्याजे नाणुं श्राप, नहीं.
समाप्त.
Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya
sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay.
Published by Bhanji Maya for Bhimsi Maneck,
225-231, Mandvi, Sackgalli, Bombay.
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अजयकुमारनो रास-बुझिके गुणोकी चमत्कारी रीते कृतीवाले एक मोटे राज्यके महामंत्रीकी कथा हे.
०-५-० हरिश्चंड राजा अने तारामती राणीनो रास-सत्य वचन माहात्म्यरूप.
०-५-० मंगलकलश कुमारनो रास-पुण्यफल माहात्म्यरूप ए विवेकी पुरुषy चरित्र. ___०-५-० __ शत्रुजय तीर्थमाला, रास, नकारादिकनो संग्रह ग्रंथ-श्रा पुस्तक समस्त जैनी जानने कार्तिक तथा चैत्री प्रर्णिमादिक दिवसोमां तथा श्री शत्रंजय यात्रा जती वखत अवश्य पासे राखवा योग्य तथा शत्रुजयना पटमंडप आगल वांचवा माटे बे. ०-५-०
रत्नचूम व्यवहारीश्रानो रास-संसारसमुश्री मुक्त थवाना दृष्टांतरूप तथा सामान्य प्रकारे उत्पतिक्यादि बुद्धि प्रमुखy रूप दर्शावनारो ग्रंथ. -४
परदेशी राजानो रास-परनवादिक नहीं मान. नारा नास्तिक जनोने पीयूष सम उपदेशरूप तथा देवव्यना उपनोगथी थती हानि तथा वृदोश्री थता शुनाशुन फल तथा निदानु खावाथी थता अवगुणो विषेनां दृष्टांतो.
0-४-०
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________________ उत्तमचरित्र कुमारनोरास-वस्त्रदान फल माहान म्यरूप महा प्रतापी पुरुषर्नु ढालबंध चरित्र.-४-g( शेउकयवन्ना शाहनो रास-सौ नाग्यवृकि.-४fd रात्रिनोज़न परिहारक रास-रात्रिनोजनना पहि हारथी उत्पन्न थयेला शुन्न फलने दर्शावनारी तथा सुदृष्टी जनोने रात्रिनोजन निषेध निमित्त दृष्टांतरूप झान आपनारो.ग्रंथ. -3- , धर्मबुफि मंत्री तथा पापबुझि राजानो रासधर्मश्री थतां शुन्न फलो तथा पापथ थतां अनिष्ट फलोर्नु विवेचन करनारो तथा धर्ममा प्रवृति अने पापमां निवृत्ति करावनारो ग्रंथ तथा सजनना दोहा वगेरे. 0-3-0 व्यापारी रास तया उपदेश रास-श्रा ग्रंथ व्यापार करवा नीकलेला जीवरूप शेठीयाना रूपथी चोराशी लाख योनिरूप बंदरो बदलवा वगेरे विषयथी वैराग्यदर्शक पदवाक्यना प्रबंधमय तथा उपदेशमय वाक्यथी जरपुर अंतःकरणने असर करे तेवो रसाल शिक्षारूप ले. 0-2-0 Jain Educationa International FOलमानाNSTARya