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(१४) ए तिर्यंचनी स्त्रीने जोगवे नहीं, जोगवावे नहीं अने जोगवताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाधी. ॥ पांचमा परिग्रह विरमणव्रतना चोपन जांगा
थाय, ते कहे ॥ ए अल्पपरिग्रह राखेनहीं, रखावे नहीं अने राखता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए घणो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखता
ने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाए करी. ए नानो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाथी. ए मोटोपरिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन अने कायाथी. ए सचित्त वस्तुनो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं अने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन भने कायाथी. ए अचित्त वस्तुनो परिग्रह राखे नहीं, रखावे नहीं थ.
ने राखताने रुडं जाणे नहीं, मन, वचन, कायाश्री. ॥ एम ए पांचे महाव्रतना मती २५२ नांगा थया ॥ २४ चोवीशमे बोले व्रतना नांगा गणपचास कहे. तिहां प्रथम एक करण ने एक योगथी नव नांगा था
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