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॥ श्री चन्द्रप्रभ स्वामिने नमः ।।
POOJATRA
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अहिंसा परमो धर्मः
श्री वर्धमान जैन मंडल, चेन्नई द्वारा संचालित श्री वर्धमान कुंवर जैन संस्कार वाटिका
(संस्थापक सदस्य : श्री तमिलनाड जैन महामंडल)।
संस्कार वाटिका Estd.:2006
Estd.:1991
... Ek Summer et Holiday Camp
( JAIN TATVA DARSHAN)
पाठ्यक्रम-1
संकलन व प्रकाशक श्री वर्धमान जैन मंडल, चेन्नई
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एक ज्ञान ज्योत जो बनी
अमर ज्योत
जन्म दिवस 14-2-1913
स्वर्गवास 27-11-2005
myh loY
पंडित भूषण पंडितवर्य श्री कुंवरजीभाई दोसी जन्म : गुजरात के भावनगर जिले के जैसर गाँव में हुआ था। * सम्यग्ज्ञान प्रदान : भावनगर, महेसाणा, पालिताणा, बैंगलोर, मद्रास। * प.पू. पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. का आपश्री पर विशेष उपकार। * श्री संघ द्वारा पंडित भूषण की पदवी से सुशोभित। * अहमदाबाद में वर्ष 2003 के सर्वश्रेष्ठ पंडितवर्य की पदवी से सम्मानित। * प्रायः सभी आचार्य भगवंतों, साधु -साध्वीयों से विशेष अनुमोदनीय। * धर्मनगरी चेन्नई पर सतत् 45 वर्ष तक सम्यग् ज्ञान का फैलाव। * तत्त्वज्ञान, ज्योतिष, संस्कृत, व्याकरण के विशिष्ट ज्ञाता। * पूरे भारत भर में बड़ी संख्या में अंजनशलाकाएँ एवं प्रतिष्ठाओं के महान् विधिकारक। * अनुष्ठान एवं महापूजन को पूरी तन्मयता से करने वाले ऐसे अद्भुत श्रद्धावान्। * स्मरण शक्ति के अनमोल धारक। * तकरीबन 100 छात्र-छात्राओं को संयम मार्ग की ओर अग्रसर कराने वाले। * कई साधु-साध्वीयों को धार्मिक अभ्यास कराने वाले। * आपश्री द्वारा मंत्रों का स्पष्ट उच्चारण एवं विधि में शुद्धता को विशेष प्रधानता। * तीर्थ यात्रा के प्रेरणा स्त्रोत।
दुनिया से भले गये पंडितजी आप, हमारे दिल से न जा पायेंगे। आप की लगाई इन ज्ञान परब पर, जब-जब ज्ञान जल पीने जायेगे
तब बेशक गुरुवर आप हमें बहुत याद आयेंगे..
वि.सं.२०७१ ई.स्. 2015 सप्तम आवृत्ति 3000 (कुल प्रतिया 28000) मूल्य रू.70/सर्व अधिकार : श्रमण प्रधान श्री संघ के आधीन साधु-साध्वीजी भगवंतो को और ज्ञानभंडारो को भेंट स्वरूप मिलेगी।
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।। श्री चन्द्रप्रभस्वामिने नमः ।।
तमान कुवर
संस्कार वाटिका
सस्कार वाटिका
श्री वर्धमान कुंवर जैन संस्कार वाटिका
....Ek Summer T Holiday Camp
A
जैन तत्त्व दर्शन JAIN TATVA DARSHAN
पाठ्यक्रम 1
MO
* दिव्याशीष * "पंडित भूषण' श्री कुंवरजीभाई दोशी
* संकलन व प्रकाशक *
श्री वर्धमान जैन मडल 33, रोशी रामन स्ट्रीट, चेन्नई - 600 079. फोन : 044-2529 0018 / 2536 6201 / 2559 6070 / 2546 5721
Website : jainsanskarvatika.com E-mail : svjm1991@gmail.com
यह पुस्तक बच्चों को ज्यादा उपयोगी बने, इस हेतु आपके सुधार एवं सुझाव प्रकाशक के पते पर अवश्य भेंजे।
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० संस्कार वाटिका
* अंधकार से प्रकाश की ओर
............. एक कदम
अज्ञान अंधकार है, ज्ञान प्रकाश है, अज्ञान रूपी अंधकार हमें वस्तु की सच्ची पहचान नहीं होने देता। अंधकार में हाथ में आये हुए हीरे को कोई कांच का टुकडा मानकर फेंक दे तो भी नुकसान है और अंधकार में हाथ में आये चमकते कांच के टुकडे को कोई हीरा मानकर तिजोरी में सुरक्षित रखे तो भी नुकसान हैं।
ज्ञान सच्चा वह है जो आत्मा में विवेक को जन्म देता है। क्या करना, क्या नहीं करना, क्या बोलना, क्या नहीं बोलना, क्या विचार करना, क्या विचार नहीं करना, क्या छोडना, क्या नहीं छोडना, यह विवेक को पैदा करने वाला सम्यग ज्ञान है। संक्षिप्त में कहें तो हेय, ज्ञेय, उपादेय का बोध कराने वाला ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। वही सम्यग ज्ञान है।
संसार के कई जीव बालक की तरह अज्ञानी है, जिनके पास भक्ष्य-अभक्ष्य, पेय-अपेय, श्राव्य-अश्राव्य और करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं होने के कारण वे जीव करने योग्य कई कार्य नहीं करते और नहीं करने योग्य कई कार्य वे हंसते-हंसते करके पाप कर्म बांधते हैं।
बालकों का जीवन ब्लोटिंग पेपर की तरह होता है। मां-बाप या शिक्षक जो संस्कार उसमें डालने के लिए मेहनत करते हैं वे ही संस्कार उसमें विकसित होते हैं।
बालकों को उनकी ग्रहण शक्ति के अनुसार आज जो जैन दर्शन के सूत्रज्ञान-अर्थज्ञान और तत्त्वज्ञान की जानकारी दी जाय, तो आज का बालक भविष्य में हजारों के लिए सफल मार्गदर्शक बन र सकता है।
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बालकों को मात्र सूत्र कंठस्थ कराने से उनका विकास नहीं होगा, उसके साथ सूत्रों के अर्थ, सूत्रों के रहस्य, सूत्र के भावार्थ, सूत्रों का प्रेक्टिकल उपयोग, आदि बातें उन्हें सिखाने पर ही बच्चों में धर्मक्रिया के प्रति रूचि पैदा हो सकती है।
धर्मस्थान और धर्म क्रिया के प्रति बच्चों का आकर्षण उसी ज्ञान दान से संभव होगा। इसी उद्देश्य के साथ वि.सं. 2062 (14 अप्रेल 2006 ) में 375 बच्चों के साथ चेन्नई महानगर के साहुकारपेट में "श्री वर्धमान जैन मंडल" ने संस्कार वाटिका के रूप में जिस बीज को बोया था, वह बीज आज वटवृक्ष के सदृश्य लहरा रहा है। आज हर बच्चा यहां आकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है।
पंडित भूषण पंडितवर्य श्री कुंवरजीभाई दोसी,
जिनका हमारे मंडल पर असीम उपकार है उनके स्वर्गवास के पश्चात मंडल के अग्रगण्य सदस्यों की एक तमन्ना थी कि जिस सद्ज्ञान की ज्योत को पंडितजी ने जगाई है, वह निरंतर जलती रहे, उसके प्रकाश में आने वाला हर मानव स्व व पर का कल्याण कर सके।
इसी उद्देश्य के साथ आजकल की बाल पीढी को जैन धर्म की प्राथमिकी से वासित करने के लिए सर्वप्रथम श्री वर्धमान कुंवर जैन संस्कार वाटिका की नींव डाली गयी। वाटिका बच्चों को आज सम्यग्ज्ञान दान कर उनमें श्रद्धा उत्पन्न करने की उपकारी भूमिका निभा रही हैं। आज यह संस्कार वाटिका चेन्नई महानगर से प्रारंभ होकर भारत में ही नहीं अपितु विश्व के कोने-कोने में अपने पांव पसार कर सम्यग् ज्ञान दान का उत्तम दायित्व निभा रही है।
जैन बच्चों को जैनाचार संपन्न और जैन तत्त्वज्ञान में पारंगत बनाने के साथ-साथ उनमें सद् श्रद्धा का बीजारोपण करने का आवश्यक प्रयास वाटिका द्वारा नियुक्त श्रद्धा से वासित हृदय वाले अध्यापक व अध्यापिकागणों द्वारा निष्ठापूर्वक इस वाटिका के माध्यम से
किया जा रहा है ।
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संस्कार वाटिका में बाल वर्ग से युवा वर्ग तक के समस्त विद्यार्थियों को स्वयं के कक्षानुसार। जिनशासन के तत्त्वों को समझने और समझाने के साथ उनके हृदय में श्रद्धा दृढ हो ऐसे शुद्ध उद्देश्य से "जैन तत्त्व दर्शन (भाग 1 से 9 तक)" प्रकाशित करने का इस वाटिका ने पुरूषार्थ किया है। इन अभ्यास पुस्तिकाओं द्वारा "जैन तत्त्व दर्शन (भाग 1 से 9), कलाकृत्ति (भाग 1-3), दो प्रतिक्रमण, पांच प्रतिक्रमण, पर्युषण आराधना'' पुस्तक आदि के माध्यम से अभ्यार्थीयों को सहजता अनुभव
होगी।
इन पुस्तकों के संकलन एवं प्रकाशन में चेन्नई महानगर में चातुर्मास हेतु पधारे, पूज्य गुरु भगवंतों से समय-समय पर आवश्यक एवं उपयोगी निर्देश निरंतर मिलते रहे हैं। संस्कार वाटिका की प्रगति के लिए अत्यंत लाभकारी निर्देश भी उनसे मिलते रहे हैं। हमारे प्रबल पुण्योदय से इस पाठ्यक्रम के प्रकाशन एवं संकलन में विविध समुदाय के आचार्य भगवंत, मुनि भगवंत, अध्यापक, अध्यापिका, लाभार्थी परिवार, श्रुत ज्ञान पिपासु आदि का पुस्तक मुद्रण में अमूल्य सहयोग मिला तदर्थ धन्यवाद । आपका सुन्दर सहकार अविस्मरणीय रहेगा। मंडल को विविध गुरु भगवंतों का सफल मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद
प. पू. पंन्यास श्री अजयसागरजी म.सा. प. पू. पंन्यास श्री उदयप्रभविजयजी म.सा.
प. पू. मुनिराज श्री युगप्रभविजयजी म.सा. ___ प.पू. मुनिराज श्री अभ्युदयप्रभविजयजी म.सा.
नम्र विनंती :
समस्त आचार्य भगवंत, मुनि भगवंत, पाठशाला के अध्यापक-अध्यापिकाओं एवं श्रुत ज्ञान पिपासुओं से नम्र विनंती है कि इन पाठ्यक्रमों के उत्थान हेतु कोई भी विषय या सुझाव अगर आपके पास हो तो हमें अवश्य लिखकर भेजें ताकि हम इसे और भी सुंदर बना सकें।
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इस पुस्तक के मुद्रक जगावत प्रिन्टर्स धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने समय पर पुस्तकों को प्रकाशित करने में सहयोग दिया।
इस पुस्तक को नौ विभागों में तैयार करने में विविध पुस्तकों का आधार लिया है, एवं नामी-अनामी । चित्रकारों के चित्र लिये गये है। अत: उन पुस्तकों के लेखक, संपादक, प्रकाशकों के हम सदा ऋणी रहेंगे... इस पुस्तक में कोई भूल-त्रुटि हो तो सुज्ञ वाचकगण सुधार लेंवे । इस पुस्तक के
भेजिये आपके लाल को, सच्चे जैन हम बनायेंगे। दुनिया पूजेगी उनको, इतना महान बनायेंगे।।
जिनशासन सेवानुरागी श्री वर्धमान जैन मंडल साहुकारपेट, चेन्नई-79.
2) 3)
पुस्तक में प्रकाशित विषय निम्न पुस्तकों में से लिए गये है :
:: उपयुक्त ग्रंथ की सूची :: 1) धर्मबिंदु
2) योगबिंदु
3) जीव विचार 4) नवतत्त्व
5) लघुसंग्रहणी
6) चैत्यवंदन भाष्य 7) गुरुवंदन भाष्य
8) श्राद्धविधि प्रकरण 9) प्रथम कर्मग्रंथ
:: उपयुक्त पुस्तक की सची:: 1) गृहस्थ धर्म
पू. आचार्य श्रीमद् विजय केसरसूरीश्वरजी म.सा. बाल पोथी
पू. आचार्य श्रीमद् विजय भुवनभानूसूरीश्वरजी म.सा. तत्त्वज्ञान प्रवेशिका
पू. आचार्य श्रीमद् विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. 4) बच्चों की सुवास
पू. आचार्य श्रीमद् विजय भद्रगुप्तसूरीश्वरजी म.सा. 15) कहीं मुरझा न जाए
पू. आचार्य श्रीमद् विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. 6) रात्रि भोजन महापाप
पू. आचार्य श्रीमद् विजय राजयशसूरीश्वरजी म.सा. 7) पाप की मजा-नरक की सजा
पू. आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकरसूरीश्वरजी म.सा. 8) चलो जिनालय चले
पू. आचार्य श्रीमद् विजय हेमरत्नसूरीश्वरजी म.सा. 9) रीसर्च ऑफ डाईनिंग टेबल
पू. आचार्य श्रीमद् विजय हेमरत्नसूरीश्वरजी म.सा. 10) जैन तत्त्वज्ञान चित्रावली प्रकाश
पू. आचार्य श्रीमद् विजय जयसुंदरसूरीश्वरजी म.सा. 11) अपनी सची भूगोल
पू. पंन्यास श्री अभयसागरजी म.सा. 12) सूत्रोना रहस्यो
पू. पंन्यास श्री मेघदर्शन विजयजी म.सा. 13) गुड बॉय
पू. पंन्यास श्री वैराग्यरत्न विजयजी म.सा. 14) हेम संस्कार सौरभ
पू. पंन्यास श्री उदयप्रभविजयजी म.सा. 15) आवश्यक क्रिया साधना
पू. मुनिराज श्री रम्यदर्शन विजयजी म.सा. 16) गुरू राजेन्द्र विद्या संस्कार वाटिका पू. साध्वीजी श्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा. 17) पच्चीस बोल
पू. महाश्रमणी श्री विजयश्री आर्या
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(1) तीर्थंकर परिचय
A. श्री 24 तीर्थंकर के नाम, वर्ण व चित्र 7
B. आओ सीखे स्वर
10
C. आओ सीखे व्यंजन
11
D. ALPHABETS
15
(2) काव्य संग्रह
A. प्रार्थना
B. प्रभु स्तुतियाँ
C. श्री पार्श्वनाथ जिन चैत्यवंदन
D. श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन
E. श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति
(3) जिन पूजा विधि
A. आरती
B. मंगल दीवो
(4) ज्ञान
A. पांच ज्ञान के नाम
(5) नवपद
अनुक्रमणिका
A. नवपद के नाम
(6) नाद,
घोष
(7) मेरे गुरू (8) दिनचर्या
(9) भोजन विवेक
(10) माता-पिता का उपकार
(11) जीवदया उ (12) विनय - विवेक
-जयणा
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19
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(13) सम्यग् ज्ञान
A. आठ कर्म के नाम
B. नव तत्त्व के नाम
C. वन्दना करो
D. सुबह उठते ही
E. क्या करोगे ?
F. इतना फेंक दो
दर्शन
G. प्रभु
(14) जैन भूगोल
(15) सूत्र एवं विधि
A. सूत्र विभाग
1. पंच परमेष्ठि नमस्कार सूत्र
2. पंचिंदिय सूत्र
3. रखमासमण सूत्र
4. इच्छकार सूत्र 5. अब्भुट्टिओ सूत्र
B. पच्चक्खाण
1. नवकारसी
c. गुरूवंदन विधि
(16) कहानी विभाग
A. वर्धमानकुमार B. हाथी की करूणा
C. श्री अमर कुमार
(17) प्रश्नोत्तरी
(18) सामान्य ज्ञान
A. POEMS
B. GAMES - सदाचार
C. चित्रावली
D. आज की मजा, नरक की सजा
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(1) तीर्थंकर परिचय
A. श्री 24 तीर्थंकर भगवान के नाम, वर्ण व चित्र
000
1. श्री ऋषभदेवजी कंचन वर्ण
4. श्री अभिनन्दनस्वामीजी कंचन वर्ण
2. श्री अजितनाथजी कंचन वर्ण
5. श्री सुमतिनाथजी कंचन वर्ण
7. श्री सुपार्श्वनाथजी कंचन वर्ण
3. श्री संभवनाथजी कंचन वर्ण
6. श्री पद्मप्रभस्वामीजी लाल वर्ण
1500
300
8. श्री चन्द्रप्रभस्वामीजी
सफेद वर्ण
7
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श्री 24 तीर्थंकर भगवान के नाम, वर्ण व चित्र
Gooadaa
doodoo
9. श्री सुविधिनाथजी
सफेद वर्ण
10. श्री शीतलनाथजी
कंचन वर्ण
11. श्री श्रेयांसनाथजी
कंचन वर्ण
Goooooo
oooo
00000000
12. श्री वासुपूज्यस्वामीजी
लाल वर्ण
13. श्री विमलनाथजी
कंचन वर्ण
14. श्री अनन्तनाथजी
कंचन वर्ण
COO doo
15. श्री धर्मनाथजी
कंचन वर्ण
16. श्री शांतिनाथजी
कंचन वर्ण
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श्री 24 तीर्थंकर भगवान के नाम, वर्ण व चित्र
17. श्री कुंथुनाथजी कंचन वर्ण
20. श्री मुनिसुव्रतस्वामीजी काला वर्ण
18. श्री अरनाथजी कंचन वर्ण
GOO
23. श्री पार्श्वनाथजी नीला वर्ण
600
21. श्री नमिनाथजी कंचन वर्ण
19. श्री मल्लिनाथजी नीला वर्ण
22. श्री नेमिनाथजी काला वर्ण
24. श्री महावीरस्वामीजी कंचन वर्ण
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B. आओ सीखे स्वर
अरिहंत
आचार्य
इन्द्र
ईश्वर
उपाध्याय
| ऊनी कामली
ऋषभदेव
| एकेन्द्रिय जीव
| ऐरावत हाथी
| ओघा
औषधि
अंजनशलाका
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________________
C. आओ सीखे व्यंजन
च
कलश
चामर
JAIPTER.
CHIMITRA
Gagg090
Minitiative
090000000
खमासमण
উন্ন
गणधर
जीवदया।
घंट
झालर
अडग
अञ्जनशलाका
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________________
नवकारसी
पोरसी बियासणा
एकासणा उपवास
आयंबिल
टी.वी. त्याग
तपस्या
ठवणी
थाल
डंडासन
| दर्पण
ढोलक
धूपदानी
ण
नैवेद्य
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________________
प
पात्रा
फ
फल पूजा
ब
बरास
२१
भगवान
म
मन्दिर
य
यंत्र
र
रथ यात्रा
ल
लवण समुद्र
व
वज्र
श
शंख
410
ईप
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1. पृथ्वीकाय 2. अप्काय 3. तेउकाय 4. वाउकाय 5. वनस्पतिकाय 6. सकाय
षट्काय जीव
क्षमा
| समवसरण
त्रिशला माता
हरिभद्रसूरि
| ज्ञान
प्यारे प्रभु,
आपको मैं अपने दिल में
बैठा देख रहा हूँ
-आपका लाडला
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________________
D. ALPHABETS
Ashtapad Tirth
Forgiveness
BIG
Bahubali
Goutam Swamy
Chandraprabha Swamy
Help
Dev Darshan
Indriya
Evening prayer
Jinalaya
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Kumbh
Pathashala
Leshya
Queen Trishala
Moksha
Rishabh
नमो अरिहंताणं
Navkar Mantra
Saadhu
Pavapuri
OOM
Tirth
| 16
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________________
Upashraya
Xylography
Mandan
Yugamandhar Swami
Worship
Zalar
Dear God, You come in my Dreams and show me the way
-Your Child
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। (2) काव्य संग्रह
DOO ||
A. प्रार्थना मैं जैन हूँ, माता-पिता का विनय हमेशा करूं, उनका कहना मानकर, उनके हृदय को खुश करूं ।।1।।
मैं जैन हूँ, करू रोज पूजा प्रभु की, भक्ति भाव से, नवकारशी और चौविहार, कायम करू उल्लास से ।।2।।
मैं जैन हूँ, जिनवाणी से, मेरे हृदय-मन को भरूं, नई-नई गाथा रोज करके, सूत्रों को मैं याद करूं ।।3।। ___ मैं जैन हूँ, कागज पर थूकू नहीं और चलु नहीं, खाने की वस्तु को कभी, मैं कागज पर रखें नहीं ।।4।।
मैं जैन हूँ, नवरात्रि, गणपति में कभी जाऊँ नहीं, फोडु नहीं पटाखे, फूटते हुए भी देखुं नहीं ।।5।। मैं जैन हूँ, मौज शौक के लिए धर्म को छोडूंगा नहीं, सरकस, सिनेमा, विडियो, टी.वी., मैं देखूगा कभी नहीं ।।6।।
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B. प्रभु स्तुतियाँ दर्शनं देव देवस्य, दर्शनं पाप नाशनं ।।
दर्शनं स्वर्ग सोपानं, दर्शनं मोक्ष साधनं ।।। 'सरस शांति सुधारस सागरं, शुचितरं गुणरत्न महागरं। भविकपंकज बोध दिवाकर, प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरम् ।।
प्रभु दरिसण सुख संपदा, प्रभु दरिशन नवनिध । प्रभु दरिशनथी पामिए, सकल पदारथ सिद्ध ।।।
C. श्री पार्श्वनाथ जिन चैत्यवंदन आश पूरे प्रभु पासजी, तोडे भवपास, वामा माता जनमीया, अहि लंछन जास।। 1 ।। अश्वसेन सुत सुखकरूं, नव हाथनी काया, काशी देश वाराणसी पुण्ये प्रभु आया ।। 2 || एकसो वरस, आउखु ए, पाली पासकुमार, पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार ।। 3 ||
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D. श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन हे प्रभु पार्श्व चिंतामणी मेरो, मिल गयो हीरो, मिट गयो फेरो ,नाम जपु नित्य तेरो प्रीत बनी अब, प्रभुजी सुं प्यारी, जैसे चंद चकोरो आनंदघन प्रभु चरण शरण है, दीयो मोहे मुक्ति को डेरो
हे प्रभु पार्श्व. ।। 1 ।। हे प्रभु पार्श्व. ।। 2 ।। हे प्रभु पार्श्व. ।। 3 ।।
E. श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति
भीडभंजन पास प्रभु समरो, अरिहंत अनंतनुं ध्यान धरो, जिन आगम अमृत पान करो, शासन देवी सवि विघ्न हरो ।।
(3) जिन पूजा विधि
A. आरती जय जय आरती आदि जिणंदा, नाभिराया मरु देवी को नंदा।। पहेली आरती पूजा कीजे, नर भव पामीने लाहो लीजे ।। दूसरी आरती दीन दयाला, धुलेवा मंडप मा जग अजुवाला।। तीसरी आरती त्रिभुवन देवा, सुर नर इन्द्र करे थोरी सेवा ।। चौथी आरती चउगती चूरे, मन वांछित फल शिवसुख पूरे।। पंचमी आरती पुण्य उपाया, मूलचंदे ऋषभ गुण गाया।। जय जय आरती....
B. मंगल दीवो दीवो रे दीवो प्रभु मंगलिक दीवो, आरती उतारण बहु चिरंजीवो ।।1।। सोहामणुं घेर पर्व दीवाली, अम्बर खेले अमराबाली ।।2।। दीपाल भणे एणे कुल अजुवाली, भावे भगते विघन निवारी ।।3।। दीपाल भणे एणे ए कलि काले, आरती उतारी राजा कुमारपाले ।।4।। अम घर मंगलिक, तुम घर मंगलिक, मंगलिक चतुर्विध संघ ने हो जो ||5|| chit
दीवो रे दीवो --------
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(4) ज्ञान A. पांच ज्ञान के नाम
01) मतिज्ञान
2) श्रुतज्ञान
3)अवधिज्ञान
Read
4)मनः पर्यवज्ञान
5) केवलज्ञान
नमो सिद्धार्ण
नमो तवस्स
नमो दसणस्स
मीअरिहता
नमो लोए सव्व साहूणं
नमो आयरियाणं
) नवपद A. नवपद के नाम 1) अरिहंत 6) दर्शन 2) सिद्ध 7) ज्ञान 3) आचार्य 8) चारित्र 4) उपाध्याय 9) तप 5) साधु
Hell
tentat
Jathuntepen
वन्दे
वीरम्
(6) नाद, घोष वन्दे
- वीरम् त्रिशला नंदन वीर की - जय बोलो महावीर की आज नो दिवस केवो छे - सोना थी पण मोघो छे एक दो तीन चार - जैन धर्म की जय जयकार जैनं जयति
- शासनम् गुरूजी अमारो अन्तर्नाद - अमने आपो आशीर्वाद एक धक्का और दो - संसार को छोड दो दीक्षार्थी
- अमर बनो तपस्वी बोलो बिरादर जोर से - जैनं जयति शासनम्
- अमर बनो
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(7) मेरे गुरू गलत वाक्य
सही वाक्य 1. म. साहेब झाडू निकालते हैं। - म.साहेब डंडासन से काजा निकालते हैं। 2. म. साहेब कपडा धोते हैं। - म. साहेब काप निकालते हैं। 3. म. साहेब पानी ढोलते हैं। - म.साहेब पानी परठते हैं। 4. म.साहेब गादी पर सोते हैं। - म.साहेब संथारा करते हैं। 5. म.साहेब खाना लेने जाते हैं। - म.साहेब गोचरी वहोरने जाते हैं। 6. म.साहेब खाना खाते हैं।
- म.साहेब गोचरी वापरते हैं। 7. अंकल, अंकल आपका नाम क्या है? - म.साहेब आपका शुभनाम क्या है ?
(8) दिनचर्या
1. सुबह उठकर 24 भगवान का स्मरण करके 8 कर्मों के क्षय के लिए 8 नवकार गिनें। 2. बाद में माता-पिता व बडों को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। 3. स्नान कर जिनपूजा, गुरुवंदन एवं पाठशाला के लिए जाना चाहिए। 4. पूजा करने के बाद नवकारसी का पच्चक्खाण पालना चाहिए। 5. उसके बाद स्कूल, दुकान, ऑफिस, घर का कामकाज आदि करना चाहिए। 6. शाम को सूर्यास्त के पहले खाना खाकर रात्री भोजन का त्याग करना चाहिए। 7. शाम को आरती के लिए जिनमन्दिर जाना चाहिए। 8. उसके बाद धार्मिक अध्ययन हेतु पाठशाला जाना चाहिए। 9. सोते समय माता-पिता व बड़ों को प्रणाम कर 7 भय दूर करने के लिए 7 नवकार गिनकर सोना चाहिए।
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अभक्ष्य आलू
POTATO
दूषित प्याज
ONION
दुःख भरे बैंगन
BRINJAL
(9) भोजन विवेक इतना नहीं खाना आलू नहीं खाना प्याज नहीं खाना बैंगन नहीं खाना अदरक नहीं खाना मूली नहीं खाना शक्करकंद नहीं खाना रतालू नहीं खाना शहद नहीं खाना मक्खन नहीं खाना अण्डे तो खाना ही नहीं, यह सब खाने से मन बिगड़ता है। यह सब खाने से पाप लगता है। गंदे विचार आते हैं, गंदे काम होते हैं, दुर्गति में जाना पड़ता है। और कुछ भी खाने को नहीं मिले तो भूखे रह जाना, एकाध चीज कम खाना, परन्तु ये सारी चीजें तो खाना ही नहीं।
मलिन मूली
RADDISH
गंदे गाजर गीली अदरख
CARROT GINGER मदवर्धक मक्खन-शहद
BUTTER - HONEY
दुर्गति से बचो।
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(10) माता-पिता का उपकार
1. जैन धर्म में जन्म दे कर हमारी माता ने हम पर सबसे बड़ा उपकार किया है। 2. छोटे थे तब माँ ने अपना दूध पिलाकर हमें बडा किया। 3. माता-पिता ने हमें बैठना, खाना, पीना, पढ़ना लिखना सिखाकर हमें समाज
में रहने योग्य बनाया। 4. हमें अच्छे संस्कार देकर सुदेव, सुगुरु व सुधर्म की पहचान करवाई। 5. तबीयत ठीक न होने पर या बुखार आने पर पूरी रात जागकर हमारी देखभाल की। 6. अच्छे कपड़े नये खिलौने व खूब सारी चीजें लाकर हमारी इच्छा पूरी करते हैं। 7. सुरक्षित जीवन देने वाले माता-पिता का दिल न दुखाकर उनकी बात हमेशा माननी
चाहिए।
(11) जीवदया-जयणा
1. चलते समय नीचे देखकर चलना चाहिए जिससे कीड़ी-मकौड़े की हिंसा न हो। 2. हमें अपने हाथों से गाय-कुत्तें व पक्षियों को खाना देना चाहिए। 3. किसी भी पशु-पक्षियों को पत्थर से नहीं मारना। 4. पीने का एवं घर में उपयोग करने का पानी हर रोज छानकर लेना चाहिए। 5. बीसलेरी, पेकेट का पानी अणगल (नहीं छाना हुआ) होने के कारण, वो भी छानकर
पीना चाहिए। 6.स्नान करते समय आधी बाल्टी या कम से कम पानी उपयोग में लेना चाहिए। 7.गीजर के पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए।
(12) विनय - विवेक
1. साधु भगवंत, माता-पिता व बड़ों की बात हमेशा सुननी एवं माननी चाहिए। 2. हमें कभी भी क्रोधित होकर उनके सामने नहीं बोलना चाहिए। 3. मंदिर में, उपाश्रय में, दर्शन, पूजा, वंदन वगैरह सब क्रिया विनय और बहुमान पूर्वव
करनी चाहिए। 4. धार्मिक पाठशाला व स्कूल में अपने टीचर का कभी भी अपमान व मस्ती नहीं करन ____ चाहिए। उनकी बात माननी चाहिए। 5. घर में और बाहर विवेक पूर्वक, मर्यादा पूर्वक खाना-पीना व बातचीत करनी चाहिए। 6. जब टीचर पढानें आते हैं, तब खडे होकर प्रणाम कहना चाहिए।
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(13) सम्यग् ज्ञान
A. आठ कर्म के नाम 1. ज्ञानावरणीय कर्म
2. दर्शनावरणीय कर्म
3. वेदनीय कर्म
4. मोहनीय कर्म
5. आयुष्य कम
6. नाम कर्म
7. गोत्र कर्म
8. अंतराय कर्म
B. नौ तत्त्व के नाम
1 (जीव-१)
(आश्रव-५)
(अजीव २)
(कर्मबंध ८)
1. जीव 7. निर्जरा
(आश्रय-५)
3 (पुण्य-३ पाप-४)
2. अजीव
8. बंध
C. वन्दना करो
(स) 6
3. पुण्य
9. मोक्ष
भगवान को वंदना करो
भगवान से प्यार करो
6
7
6. नाम कमी
(निर्जरा-७). 7
गुरुजी को वंदना करो गुरु - आज्ञा का पालन करो पिताजी को नमस्कार करो पिताजी के उपकारों को याद करो माता को नमस्कार करो माता के उपकारों को याद करो
(निर्जराक)
1. ज्ञानावरणीय
जीव
आयुष्य कम
आत्मा
4. पाप 5. आश्रव
Call
PREY
6. संवर
वीय कर्म
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D. सुबह उठते ही
सबेरे उठते ही किसे याद करोगे ?
उठते ही 'श्री नवकार' को याद करना । उसके बाद बिछौने में से बाहर पैर रखना। नवकार में कौन-कौन आते हैं ?
अरिहंत आते हैं।
सिद्ध आते हैं।
आचार्य आते हैं।
उपाध्याय आते हैं। साधु आते हैं।
इन्हें वंदना करनी चाहिए
इनसे प्यार करना चाहिए ... ।
नवकार जप से क्या लाभ होता है ?
अपने सारे दुःख मिटे
जनम-जनम के पाप कटे,
सद्गुण के अंकुर प्रगटे, सुख का फिर सागर उमटे ।
वस्त्र पुण्य
अरिहंत
सिद्ध
-आचार्य
E. क्या करोगे ?
उपाध्याय
ACR
किसी जीव को मारना मत ।
कभी झूठ बोलना मत।
कभी चोरी करना मत ।
साधु
दुःखियों पर दया करना ।
पर उपकार करना।
पुण्य का खजाना भरना ।
गाली नहीं बोलना ।
हर कोई चीज नहीं खाना । हर कोई चीज नहीं पीना ।
भूखे को अन्न देना । प्यासे को पानी देना ।
नंगे को कपड़े देना ।
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E. इतना फेंक दो
मान
क्रोध का कचरा फेंक दो। मान की गन्दगी फेंक दो। माया की मूर्खता फेंक दो। लोभ का लालच फेंक दो। रोजाना बाहर फेंको।
क्रोध
LIARA
माया
लोभ
क्षमा से क्रोध जाता है। नम्रता से मान जाता है। सरलता से माया जाती है। दान से लोभ जाता है।
नम्रता
क्रोध से वैर बढ़ता है। क्षमा से वैर घटता है। मान से विनय घटता है। नम्रता गुणवान बनाती है।
क्षमा
दान
माया अशान्त बनाती है। सरलता शान्ति देती है। लोभ से पाप बढ़ता है। दान से पाप घटता है।
सरलता
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G. प्रभु दर्शन भगवान यानी भगवान !
भगवान परम हितकारी भगवान को कभी नहीं भूलना चाहिए भगवान परम सुखकारी भगवान को रोज याद करना चाहिए। दर्शन करते समय... रोज सुबह मन्दिर जाना चाहिए
भगवान के उपकारों को याद करना रोज शाम को मन्दिर जाना चाहिए भगवान के गुणों को याद करना भगवान के दर्शन करना
भगवान के जीवन को याद करना भगवान की पूजा करना
भगवान की शक्ति को याद करना भगवान को फल चढ़ाना
भगवान के दर्शन, पाप का भगवान को नैवेद्य चढ़ाना
निकन्दन निकालता है। मधुर स्वरों से प्रार्थना करनी चाहिए भगवान के दर्शन, आत्मा की भगवान की मूर्ति को मन में बसाना चाहिए गन्दगी को दूर करता है। भगवान परम उपकारी
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(14) जैन भूगोल
* अपनी दुनियाँ * अपनी दुनिया का नाम चौदह राजलोक है दुनिया से बाहर सब अलोक है,
दुनिया में क्या क्या है ? मुनष्य है, पशु है, पक्षी है, देव है, नारक है
दुनियाँ 3 विभागो में बटी हुई है 1. उर्ध्वलोक (ऊपर काभाग) 2. मध्यलोक 3. अधोलोक (नीचे का भाग)
दुनियाँ का आकार कैसा है ? तुम खडे रहो, दोनों पैर चौडे करो, दोनों हाथों को कमर पर टिका दो, बस दुनियाँ का यही आकार है, इसे तुम देख सकते हो। सबसे ऊपर मोक्ष है, उससे ऊपर कुछ भी नहीं।
देव गति
मनुष्य गति
दुनियाँ में चार गति है ! देव गति, मनुष्य गति, तिर्यंच गति, नरक गति
नियंचगांत
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( 15 ) A. सूत्र विभाग 1. पंच परमेष्ठि नमस्कार सूत्र
(PANCHA PARAMESHTHI NAMASKAR SOOTRA)
नमो अरिहंताणं
NAMO ARIHANTANAM
नमो सिद्धाणं
NAMO SIDDHANAM
नमो आयरियाणं
NAMO AAYARIYANAM
नमो उवज्झायाणं
NAMO UVAJZAYANAM
नमो लोए सव्वसाहूणं
NAMO LO-A SAVVA SAHOONAM
एसो पंच नमक्कारो
ESO PANCHA NAMUKKARO
सव्व पावप्पणासणो
SAVVA PAVAP PANASANO
मंगलाणं च सव्वेसिं
MANGALANAM CHA SAVVESIM
पढमं हवई मंगलं
PADHAMAM HAVAI MANGALAM
नवकार नवपद चित्र
नमो चारितस्स
नमो तवस्स
नमो लोए सलसाहण
जंगलणं च राही
नमो सिद्धाण
पणासणी ★ मंगलाण
नमो अरिहंताणं)
नमो
उवज्झायाण
नमो दंसणस्स
मुकारी
नमो
आयरियाण
नमो नाणस्स
जर
ड
भावार्थ: इस सूत्र से अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है। इस मंत्र से सभी पाप और विघ्न नष्ट हो जाते है। यह मंत्र सभी मंगलों में प्रथम मंगल है।
EXPLANATION: Navakar is a Maha Mantra. The salutations are offered here to the Panchaparameshthis: Arihant, Siddha, Acharya, Upadhyaya and saadhu. By doing this, all our sins and miseries disappear.
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D
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पंचिंदिय संवरणो,
PANCHINDIYA SAMVARANO
तह नवविह बम्भचेर गुत्तिधरो,
TAHA NAVA VIHA BAMBHACHERA GUTTIDHARO
चउविह कसाय मुक्को,
EHAUVIHA KASAYA MUKKO
2. पंचिंदिय सूत्र
(PANCHINDIYA SOOTRA)
इअ अट्ठारस गुणेहिं संजुत्तो
EAH ATTHARASA GUNEHIM SANJUTTO
पंच महव्वय जुत्तो,
PANCHA MAHAVVAYA JUTTO
पंच विहायार पालण समत्थो,
PANCHA VIHAYARA PALANA SAMATTHO
पंच समिओ तिगुत्तो,
PANCHA SAMIO TI GUTTO,
छत्तीस गुणो गुरू मज्झ
CHHATTEESA GUNO GURU MAJZA
स्थापना मुद्रा
भावार्थ: इस सूत्र में श्री आचार्य महाराज (गुरु) के छत्तीस गुणों का वर्णन है । कोई भी धार्मिक क्रिया करते समय स्थापनाचार्यजी की स्थापना करने के लिय यह सूत्र बोला जाता है।
1000
(सामायिक पारते समय ) उत्थापन मुद्रा
EXPLANATION: In this sootra, are Shown, the thirty six virtues of the reverned acharya maharaja and this is recited at the times of doing the establishment of the acharya. one who possesses these thirty six virtues of the acharya maharaja and one who is awarded the designation of acharya is called acharya
eel
ele
2000
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3. खमासमण सूत्र
(KHAMASAMANA SOOTRA) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं, ICHCHHAMI KHAMASAMANO ! VANDIUM जावणिज्जाए, निसीहिआए, JAVANIJJAE NISEEHIAAE मत्थएण वंदामि MATTHAENA VANDAMI
भावार्थ: यह सूत्र जिनेश्वर प्रभु और क्षमा-श्रमण(साधु) को वंदन करते समय बोला जाता है। EXPLANATION: By this sootra salutations are made to the deva and the guru. Deva means jineshwara bhagwana and guru means jaina monks who never keep any money and woman with them
4. इच्छकार सूत्र
(ICHCHHAKAR SOOTRA) इच्छकार सुहराइ ? (सुहदेवसि ?) ICHCHHAKAR ! SUHARAI ? (SUHADEVASI ?) सुखतप? शरीर निराबाध ? SUKHA-TAPA ? SHARIRA NIRABADHA ? सुख संजम जात्रा निर्वहो छोजी ? SUKH SANJAMA JATRA NIRVAHO CHHOJEE ? स्वामी ! शाता छे जी ? SWAMEE ! SHATA CHHE JEE ?
भात पाणीनो लाभ देजो जी || BHATA PANEENO LAABHA DEJO JI || भावार्थ: इस सूत्र से गुरु महाराज को सर्व प्रकार से भक्ति पुर्वक सुख-शाता पूछी जाती है। प्रातः 12.00 तक सुहराई एवं 12.00 के बाद सुहदेवसि पद बोलना चाहिए। EXPLANATION : By this sootra 'shata'- well being is asked to guru maharaja. The word 'suharai' is used till noon and the word 'suhadevasi' is used in the afternoon. Both these words are not used at the same time,
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5. अब्भुट्टिओ सूत्र
(ABBHUTTHIO SOOTRA) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !
ICHCHHAKARENA SANDISAHA BHAGAVAN!
अब्भुट्ठिओमि, ABBHUTTHIOMI अन्भिन्तर राइअं (देवसिअं) खामेउं ? ABBHINTARA RAIAM (DEVASIAM) KHAMEUM ? इच्छं, खाममि राइअं (देवसिअं) ! ICHCHHAM, KHAMEMI RAIAM (DEVASIAM) ? जं किंचि अपत्तिअं, परपत्तिअं, JAM KINCHI APATTIYAM, PARAPATTIYAM, भत्ते, पाणे, विणए, वेयावच्चे, BHATTE, PANE, VINAE, VEYAVACHCHE, आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे, ALAVE, SANLAVE, UCHCHASANE, SAMASANE, अन्तरभासाए, उवरिभासाए, ANTARABHASAE, UVARIBHASAE जं किंचि मज्झ विणय-परिहीणं, JAM KINCHI MAJZA VINAYAPARIHEENAM सुहुमं वा, बायरं वा SUHUMAM VA, BAYARAM VA तुब्भे जाणह, अहं न जाणामि TUBBHE JANAHA, AHAM NA JANAMI, तस्स मिच्छामि दक्कडं TASSA MICHCHHAMI DUKKADAM
भावार्थ: इस सूत्र से गुरु महाराज के प्रति हुए अविनय के लिए क्षमा मांगी जाती है। EXPLANATION: By this sootra, we beg pardon of the guru maharaja for the Known or Unknown crimes done or commited by us
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B. पच्चक्खाण
नवकारसी
उग्गए सूरे, नमक्कार सहिअं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि वत्तिआगारेणं वोसिरइ।
C. गुरू वंदन विधि
गुरु भगवंत जब अपने आसन पर बैठे हुए हो, तभी वंदन करना चाहिए। पहलेदोखमासमण देना ।
"इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि" ।
(दो खमासमण के बाद खड़े रहकर हाथ जोडकर बोले )
'इच्छकार सुहराइ ? (सुहदेवसि?) सुखतप ? शरीर निराबाध? सुखसंजम जात्रा निर्वहोछोजी ? स्वामी ! शाता छेजी ? भात पाणीनो लाभ देजोजी ।"
(अगर गुरु महाराज पदवी धारी हो तो ही एक खमासमण फिर से देना, बाद में खडे हो कर बोले)
“इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अब्भुट्टिओमि अब्भिंतर राइअं (देवसिअं ) खामेउं ? इच्छं, खामेमि राइअं (देवसिअं) ।
(बाद में घुटने जमीन पर टेककर दाहीने हाथ सीधा सामने जमीन पर रखना और बाए हाथ को मुँह पर रखकर सिर झुकाकर नीचे का सूत्र बोले)
जं किंचि अपत्तिअं - परपत्तिअं, भत्ते-पाणे, विणए-वेयावच्चे, आलावे-संलावे, उच्चासणे-समासणे, अंतरभासाए-उवरिभासाए जं किंचि मज्झ विणयपरिहीणं, सुहुमं वा बायरं वा, तुब्भेजाणह अहं न जाणामि, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥”
बाद में एक खमासमण देकर यथाशक्ति पच्चक्खाण लेना ।
“इच्छकारी भगवन् पसाय करी पच्चक्खाण देजो जी ? फिर एक खमासमण देना ।
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(16). कहानी विभाग A. वर्धमान कुमार - VARDHAMAN (MAHAVIRA) AND THE MONSTER
एक बडा पीपल का वृक्ष था । एक दिन जब राजकुमार वर्धमान अपने बाल मित्रों के संग वहाँ खेल रहे थे, तभी उन्होने वहाँ पर एक काले नाग को देखा, उस नाग की आँखे पीले रंग की थी और वह फूत्कार कर रहा था।
उनके मित्र घबरा गये। कुछ अकेले भागने लगे और बाकी वृक्ष पर चढ गये। केवल वर्धमान कुमार शांत रहे। वह नाग के समीप गये। कुमार ने सर्प को धीरे से उठाकर बिना कोई चोट पहुँचाये उसे दूर रख दिया। सब बच्चे भय से मुक्त हो गये। वर्धमान कुमार ने अपने मित्रों को डरपोक नहीं अपितुनीडर बनने को कहा।
There was a big Banyan Tree. One day, while Prince Vardhaman and his young friends were playing there, they saw a black snake. The snake had yellow eyes, and it was hissing. His friends got scared. Some started to run away, while others climbed up the banyan tree. Only Vardhaman remained calm. He went near the snake. He gently picked up the snake
and placed it far away without hurting it. All of his friends were relieved.
Vardhaman told them that they should be brave, and not fearful.
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फिर राजकुमार वर्धमान पकड़ा पकडी का खेल
अपने मित्रों के संग खेलने लगे ।
जो बच्चा जीत जाता वह हारने वाले की पीठ पर चढता था।
One afternoon Prince Vardhaman
Was Playing a Catch and ride game with his friends.
The Person who won would get to ride on the back of the loser.
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O
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उसी समय एक नया बच्चा साथ में खेलने लगा ।
यह नया बालक आसानी से पकड़ा जा रहा था और लगभग सारे बच्चे इस नये बालक की पीठ पर चढे । राजकुमार वर्धमान ने भी इसे पकडा । वर्धमान भी पीठ पर चढे ।
A new Child joined their game.
This child was easy to catch, and he lost every time. Almost every child got to ride on his back.
Prince Vardhaman also caught the new child. Vardhaman also rode on his back.
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कुछ मिनट बाद जब वर्धमान पीठ पर सवार थे तभी यह नया बालक अपने शरीर को
बडा और ऊँचा करने लगा। पहले तो वर्धमान के मित्र उत्सुकता से देख रहे थे। लेकिन जब उस बालक का चेहरा खौफनाक बनने लगा तब बाकी के बच्चे घबराकर भागने लगे, कुछ वृक्ष पर चढे और कुछ अपने माता-पिता की ओर भागने लगे।
(A few Minutes later) While Vardhaman was on his back,
The child started to grow bigger and taller. At First, Vardhaman's friends watched this with curiosity.
Later when the child's face began to turn weird,
the children got scared and started to run away in panic. Some children climbed up the trees while others ran to their parents.
PIC
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जब यह प्रक्रिया चल रही थी,
तब वर्धमान शांत एवं नीडर रहे।
वह राक्षस अपने शरीर को बढाता ही गया। तब वर्धमान ने उस राक्षस के सिर पर एक मुष्ठी से प्रहार किया। राक्षस ने दर्द के मारे वर्धमान को गिराने कि कोशिश की, लेकिन वह निष्फल रहा।
During all of this, Vardhaman remained calm and brave
The monster kept growing very tall So Vardhaman hit the monster in the head with his fist.
The monster tried to throw Vardhaman off his back to avoid the pain, but he could not succeed.
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आखिर वह राक्षस हार मानकर क्षमा याचना करने लगा।
1 वर्धमान ने उसे क्षमा प्रदान की। राक्षस फिर वर्धमान को महावीर के नाम से बुलाने लगा।
4 (महावीर यानी नीडर, साहसी) तत्पश्चात् राजकुमार वर्धमान महावीर के नाम से प्रख्यात हुए।
Ultimately the monster gave up and asked for forgiveness.
Vardhaman forgave the monster. The Monster called him “Mahavira",
Which means Strong one. Since then, Prince Vardhaman was called Mahavira.
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IB. हाथी की करुणा - THE COMPASSION OF THE ELEPHANT
एक समय की बात है, जंगल में एक हाथी अन्य जानवरों के
संग रहता था।
Once upon a time, there lived
an elephant in a forest
among many other animals.
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एक दिन जंगल में दावानल छिड गया ।
सब जानवर अपने आप को बचाने के लिए उसी हाथी के द्वारा बनाये गये सुरक्षित स्थान की ओर दौडने लगे।
जल्द ही वह जगह जानवरों से खचाखच भर गयी । Once a big wild fire broke out in a forest. To save themselves,
all the animals, including the elephant, ran to a safe area, made by that same elephant Soon, the area got very crowded with the animals.
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एडी में खुजली होने के कारण हाथी ने अपना एक पैर उपर उठाया। तब एक खरगोश ने उस रिक्त स्थान में छलांग लगा दी। जब हाथी अपना पैर जमीन पर रखने जा रहा था, तब उसने उस स्थान में खरगोश को देखा। अपने पैर से बेचारा खरगोश मर जाएगा यह सोचकर उसने अपना पैर नीचे ही नहीं रखा। दावानल तीन दिन तक सुलगता रहा, और हाथी ने भी तीन दिन अपने पैर को ऊपर ही रखा.
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The elephant raised his leg to scratch his foot.
A Rabbit quickly jumped into this space. When the elephant went to put his foot down, he felt something.
He noticed the rabbit sitting there. To avoid crushing and hurting the rabbit, he held his leg up. The fire lasted for three days. Throughout the three days the elephant kept his leg up.
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जब दावानल शांत हुआ और वह खरगोश वहाँ से हटा तब हाथी प्रसन्न हुआ की उसने खरगोश की जान बचायी। फिर हाथी ने अपना पैर नीचे रखने की कोशिश की,
पर वह एकदम अकड गया था,
और फिर वह नीचे गिरा और वही उसकी मृत्यु हो गयी ।
When the fire stopped, all the animals and the rabbit left. The elephant felt happy that he saved the rabbit's life. Then, the elephant tried to put down his foot, but he could not, because his body had become stiff. Instead, he fell down and died.
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tuittTRICT
इसी दया और करूणा के फल स्वरूप यह हाथी के जीवन ने श्रेणिक राजा के यहाँ
राजकुमार मेघकुमार होकर नया जन्म लिया।
As a result of his compassion and kindness
the elephant was born As Prince Meghkumar in his next life.
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C. श्री अमर कुमार
राजगृही नगरी के श्रेणिक राजा जब धर्मी न थे, तब वे चित्रशाला के लिए एक सुंदर मकान का निर्माण करवा रहे थे। कोई कारण से उसका दरवाजा बनवाते और टूट जाता था। बार-बार ऐसा होने से महाराजा ने वहाँ के पंडितों और ज्योतिषियों को बुलवाकर इसके बारे में राय मांगी।
ब्राह्मण पंडित ने कोई बत्तीस लक्षण वाले बालक की बलि
चढ़ाने की राय दी, इसलिए बत्तीस लक्षण वाले बालक की खोज प्रारंभ हुई।
ऐसा बालक लाना कहाँ से ? इसके बारे में राजा ने ढिंढोरा पिटवाया की, जो कोई, बालक बलि के लिए देगा, उसे बालक के वजन जितनी सुवर्णमुद्राए दी जायेगी ।
इसी राजगृही नगर में ऋषभदास नामक एक ब्राह्मण रहता था। भद्रा नामक उसकी स्त्री थी। उनके चार पुत्र थे। कोई खास आमदनी या आय न होने से दरिद्रता भुगत रहे थे। उन्होंने चारों में से एक बेटा राजा को बलि के लिए सौंपने का विचार किया, जिससे सुवर्णमुद्राएँ प्राप्त होने के कारण कंगालपन दूर हो सके।
इन चार पुत्रों में एक अमरकुमार माँ को अप्रिय था। एक बार जंगल में लकड़ी काटने गया था तब उसे जैन मुनि ने नवकार मंत्र सिखाया था। उसने माँ-बाप को बहुत प्रार्थना की- "पैसे के लिए मुझे मरवाओ मत।" ऐसे आक्रंद के साथ चाचा, मामा आदि सगे-सम्बन्धियों को खूब विनतियाँ की, लेकिन उसकी बात किसी ने न मानी। बचाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। इसलिये राजा ने उसके वजन जितनी सुवर्णमुद्राएँ देकर अमरकुमार को कब्जे में ले लिया ।
अमरकुमार ने राजा से बहुत याचना करके बचाने के लिए कहा। राजा को दया तो खूब आई, लेकिन इसमें कुछ भी मैं गलत नहीं कर रहा हूँ - यूं मन को मनाया। सुवर्णमुद्राएँ देकर बालक खरीदा है, कसूर तो उसके माता-पिता का है जिन्होंने धन के खातिर बालक को बेचा है। मैं बालक को होम में डालूंगा तो वह मेरा गुनाह नहीं है - ऐसा सोचकर अंत में सामने आसन पर बैठे पण्डितों की ओर देखा ।
पंडितों ने कहा, "अब बालक के सामने मत देखो। जो काम करना है वह जल्दी करो । बालक को होम की अग्निज्वालाओं में होम दो।' अमरकुमार को शुद्ध जल से नहलाकर, केसर चन्दन उसके शरीर पर लगाकर, फूल मालाएँ पहनाकर अग्निज्वाला में होम दिया।
उस समय अमरकुमार ने जो नवकार मंत्र सीखा था, उसी को आधार समझकर उसका ध्यान धरने लगा।
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नवपद का ध्यान करते-करते अग्निज्वालाएँ बुझ गई, देवों ने आकर उसे सिंहासन पर बिठाया और देवों ने राजा को उल्टा गिरा दिया। राजा के मुँह से खून बहने लगा।
ऐसा चमत्कार देखकर राज्यसभा और ब्राह्मण पंडितों वगैरह ने अमरकुमार को महात्मा समझकर उसके चरणों की पूजा करने लगे और राजा को होश में लाने की विनती की। अमरकुमार ने नवकार मंत्र से पानी मंत्रित करके राजा पर छिड़का । राजा होश में आ गया।
श्रेणिक महाराज ने खड़े होकर कुमार की सिद्धि को देखकर अपना राज्य देने के लिए कहा। अमरकुमार ने कहा, मुझे राज्य की कुछ जरूरत नहीं है। मुझे तो संयम ग्रहण करके साधु बनना है।
लोगों ने अमरकुमार का जयजयकार किया। धर्म ध्यान में लीन होते ही अमरकुमार को जाति स्मरण ज्ञान अर्जित हुआ और पंचमुष्टि से लोच करके, संयम ग्रहण किया और गाँव के बाहर श्मशान में जाकर काउस्सग्ग (ध्यान) लगाकर खड़े रहे।
___माता-पिता ने यह बात सुनकर मन में सोचा, "राजा आकर स्वर्णमुद्राएँ वापिस ले लेंगे।' इसलिए धन आपस में बाँट लिया और कुछ धरती में गाड़ दिया।
अमरकुमार की माँ को पूर्वभव के बैर के कारण रात्रि में नींद न आने से
शस्त्र लेकर ध्यानस्थ खड़े अमरकुमार के पास पहुंची और अमरकुमार की नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं
हत्या कर दी। नसी आयपियाण
शुक्लध्यान में रहकर अमरकुमार काल अनुसार बारहवें देवलोक में अवतरित हुए, वहाँ बाईस सागरोपम आयुष्य भोगकर महाविदेह में जन्म लेकर केवलज्ञान पायेंगे।
अमर की हत्या करके माता हर्षोन्मत्त होती हुई चली जा रही थी, रास्ते
में शेरनी मिली। शेरनी भद्रा माता को चीर-फाड कर खा गई। वह मरकर छट्ठी नरक पहुँची, उसे बाईस सागरोपम आयुष्य भुगतना बाकी है।
बच्चे अमर को अग्नि में चला।
नमो उवज्झायमा नमो लोए सव्व साहूणं
एसो पच नमुकारो सब पाचप्पणासणी मंगलाण सम्वनि पदम हवड़मगलं
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(नीचे)
(17) प्रश्नोत्तरी प्रश्न1 : रिक्त स्थानों की पूर्ति किजिए 1. श्री विमलनाथ स्वामीजी का वर्ण ............. है।
(कंचन) 2. श्री पार्श्वनाथ भगवान की माता का नाम ............... है।
(वामामाता) 3. सुबह उठकर हमें ....... कर्मों के क्षय के लिए ....... नवकार गिननी चाहिये। (8,8) 4. चलते समय .............. देखकर चलना चाहिए। 5. दया करने से हाथी मरकर ............. बना।
(मेघकुमार) 6. नवपद में अरिहंत के गुण ............. है।
(12) 7. राजगृही नगरी के राजा ............ है।
(श्रेणिक) 8. कर्म ............... प्रकार के है।
(8) 9. शाम को .............. के लिए जिनमन्दिर जाना चाहिए। (प्रभु दर्शन एवं आरती) 10. जैनम् जयति. ............ ।
(शासनम्) प्रश्न 2 : सही या गलत, चुनकर जवाब लिखिए।
(गलत)
(सही)
1. दूसरे भगवान का नाम श्री संभवनाथजी है। 2. आ से आचार्य भगवंत होते है। 3. हमें माता-पिता का विनय करना चाहिए। 4. हमें नवरात्रि में जाना चाहिए। 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान का आयुष्य सौ वर्ष का था। 6. अवधिज्ञान यह नवपद का नाम है। 7. हमें रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए। 8. हमें कंदमूल नहीं खाना चाहिए। 9. हमें गुरुजी को प्रणाम करना चाहिए। 10. तत्व नौ होते है।
प्रश्न 3 : जोड़े मिलाओ। 1. वेदनीय कर्म
नवपद 2. दर्शन
ज्ञान का भेद 3. श्री मुनिसुव्रतस्वामी कर्म का भेद 4. श्रुतज्ञान 5. वन्दे
काला
(सही) (गलत) (सही) (गलत) (सही) (सही) (सही) (सही)
(कर्म का भेद)
(नवपद)
(काला) (ज्ञान के भेद)
(वीरम्)
वीरम्
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प्रश्न 4. एक वाक्य में उत्तर बोलिए । 1. पद कितने होते है?
(नौ) 2. हमें सुबह उठकर कम से कम किसका पच्चक्खाण करना चाहिए? (नवकारसी) 3. महाराज साहेब डंडासन से क्या निकालते है ?
(काजा) 4. धार्मिक अध्ययन हेतु कहाँ जाना चाहिए? (गुरु भगवंत के पास एवं पाठशाला) 5. अभक्ष्य खाने से कहाँ जाना पडता है ?
(दुर्गति में) 6. तत्व के कितने भेद है ?
(9) 7. कर्म के कितने भेद है ?
(8) 8. सुबह उठते ही किसे याद करना चाहिए?
(नवकार) 9. प्यासे को क्या देना चाहिए ?
(पानी) 10. खमासमणा देते समय कौन-सा सूत्र बोलना चाहिए ?
(खमासमण सूत्र) प्रश्न 5 सही जवाब चुनकर उत्तर लिखिए 1. अमरकुमार मरकर कौन से देवलोक में गया? (पहले देवलोक, चौथा देवलोक, बारहवाँ देवलोक)
(बारहवाँ व्वलोक) 2. तप का समावेश किसमें होता है ? (नवपद, आठकर्म, ज्ञान के भेद) (नवपद) 3. मेघकुमार पिछले जन्म में कौन था ? (सिंह, हाथी, घोडा)
(हाथी) 4. हमें क्या नहीं खाना चाहिए ? (सेब, आलू, केला)
(आलू) 5. तीर्थंकर भगवान कितने है ? (10,24,25)
(24)
વારે પ્રમુ,
आप कितने अच्छे हो, प्लीज!! मुझे भी अच्छा बना देना
- आपका लाडला
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(18) HTTP
A. POEMS
1. A For O my Adinath !
Be with me in every path, Never forget naughty son, You are father Super one.
2. Sri Ajitnath is your name,
What to say for your fame? You are winner best of all, I am missing every ball.
PRAYER OF TIRTHANKARAS b
3. Save me Sambhavnath dada!
Show me true way O dada ! How to walk on blakish night? Give me your super light. 4. That one is my Golden day,
Abhinandan Swamy I pray, Tell me O God where you stay,
How to come you show me way. 5. You are in my every thought,
Let me lead life as you taught, Sumatinath give wisdom nice,
So that I fall never twice. 6. I like you most supreme dad,
Your face is rosy red, Padmaprabha swami, so high. you can forget how can I ?
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B. GAME - सदाचार क्या हमें पानी छानकर पीना चाहिए । क्या हमें पानी बिना छानकर पीना चाहिए
Mहाँ हाँ हाँ
ना ना ना
क्या हमें दिन में भोजन करना चाहिए।
क्या हमें रात में भोजन करना चाहिए
Mहाँ हाँ हाँ
X
ना ना ना
क्या हमें शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए
___ क्या हमें तामसी (जंक फूड) भोजन करना चाहिए (बटर, ब्रेड, पेप्सी, पानीपुरी, भेल आईस्क्रीम, केक, चॉकलेट, पीजा, बर्गर)
Mहाँ हाँ हाँ
र ना ना ना
क्या हमें हरी सब्जियाँ खानी चाहिए
क्या हमें कंदमूल वगैरह खाने चाहिए
Mहाँ हाँ हाँ
र ना ना ना
क्या हमें नियमित समय पर उठना और सोना चाहिए
| क्या हमें अनियमित समय पर उठना और सोना चाहिए
Mहाँ हाँ हाँ
ना ना ना
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C. चित्रावली
दर्शन
प० *
चारित्र
ज्ञान
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D. आज की मजा, नरक की सजा
रात्रिभोजन करनेवाले और उसका फल
हरे भरे वृक्षों की डाली तोडने वाले और उसका फल
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परस्पर मारा-मारी करने वाले और उसका फल
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माता-पिता के सामने बोलने वाले और उसका फल
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manibhadravinod@gmail.com Pin : 6000079. T: 044-4501 8401
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________________ धार्मिक पाठशाला में आने से..... 1) सुदेव, सुगुरू, सुधर्म की पहचान होती है। 2) भावगर्भित पवित्र सूत्रों के अध्ययन व मनन से मन निर्मल व जीवन पवित्र बनता है और जिनाज्ञा की उपासना होती है। 3) कम से कम, पढाई करने के समय पर्यंत मन, वचन व काया सद्विचार, स द्वाणी तथा सद्वर्तन में प्रवृत्त बनते हैं। पाठशाला में संस्कारी जनों का संसर्ग मिलने से सद्गुणों की प्राप्ति होती है "जैसा संग वैसा रंग"। सविधि व शुद्ध अनुष्ठान करने की तालीम मिलती है। भक्ष्याभक्ष्य आदि का ज्ञान मिलने से अनेक पापों से बचाव होता है। कर्म सिद्धान्त की जानकारी मिलने से जीवन में प्रत्येक परिस्थिति में समभाव टिका रहता है और दोषारोपण करने की आदत मिट जाती है। महापुरुषों की आदर्श जीवनियों का परिचय पाने से सत्त्वगुण की प्राप्ति तथा प्रतिकुल परिस्थितिओं में दुर्ध्यान का अभाव रह सकता है। विनय, विवेक, अनुशासन, नियमितता, सहनशीलता, गंभीरता आदि गुणों से जीवन खिल उठता है। 6) बच्चा आपका, हमारा एवं संघ का अमूल्य धन है। उसे सुसंस्कारी बनाने हेतु धार्मिक पाठशाला अवश्य भेजे।