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C. श्री अमर कुमार
राजगृही नगरी के श्रेणिक राजा जब धर्मी न थे, तब वे चित्रशाला के लिए एक सुंदर मकान का निर्माण करवा रहे थे। कोई कारण से उसका दरवाजा बनवाते और टूट जाता था। बार-बार ऐसा होने से महाराजा ने वहाँ के पंडितों और ज्योतिषियों को बुलवाकर इसके बारे में राय मांगी।
ब्राह्मण पंडित ने कोई बत्तीस लक्षण वाले बालक की बलि
चढ़ाने की राय दी, इसलिए बत्तीस लक्षण वाले बालक की खोज प्रारंभ हुई।
ऐसा बालक लाना कहाँ से ? इसके बारे में राजा ने ढिंढोरा पिटवाया की, जो कोई, बालक बलि के लिए देगा, उसे बालक के वजन जितनी सुवर्णमुद्राए दी जायेगी ।
इसी राजगृही नगर में ऋषभदास नामक एक ब्राह्मण रहता था। भद्रा नामक उसकी स्त्री थी। उनके चार पुत्र थे। कोई खास आमदनी या आय न होने से दरिद्रता भुगत रहे थे। उन्होंने चारों में से एक बेटा राजा को बलि के लिए सौंपने का विचार किया, जिससे सुवर्णमुद्राएँ प्राप्त होने के कारण कंगालपन दूर हो सके।
इन चार पुत्रों में एक अमरकुमार माँ को अप्रिय था। एक बार जंगल में लकड़ी काटने गया था तब उसे जैन मुनि ने नवकार मंत्र सिखाया था। उसने माँ-बाप को बहुत प्रार्थना की- "पैसे के लिए मुझे मरवाओ मत।" ऐसे आक्रंद के साथ चाचा, मामा आदि सगे-सम्बन्धियों को खूब विनतियाँ की, लेकिन उसकी बात किसी ने न मानी। बचाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। इसलिये राजा ने उसके वजन जितनी सुवर्णमुद्राएँ देकर अमरकुमार को कब्जे में ले लिया ।
अमरकुमार ने राजा से बहुत याचना करके बचाने के लिए कहा। राजा को दया तो खूब आई, लेकिन इसमें कुछ भी मैं गलत नहीं कर रहा हूँ - यूं मन को मनाया। सुवर्णमुद्राएँ देकर बालक खरीदा है, कसूर तो उसके माता-पिता का है जिन्होंने धन के खातिर बालक को बेचा है। मैं बालक को होम में डालूंगा तो वह मेरा गुनाह नहीं है - ऐसा सोचकर अंत में सामने आसन पर बैठे पण्डितों की ओर देखा ।
पंडितों ने कहा, "अब बालक के सामने मत देखो। जो काम करना है वह जल्दी करो । बालक को होम की अग्निज्वालाओं में होम दो।' अमरकुमार को शुद्ध जल से नहलाकर, केसर चन्दन उसके शरीर पर लगाकर, फूल मालाएँ पहनाकर अग्निज्वाला में होम दिया।
उस समय अमरकुमार ने जो नवकार मंत्र सीखा था, उसी को आधार समझकर उसका ध्यान धरने लगा।
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