Book Title: Bhartiya Hastpratona Suchipatro Aetihasik Pariprekshyama Vivechanatmaka Abhyas
Author(s): Manibhai Prajapati
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ ११७ भारतीय हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो : जैतिहासिक परिप्रेक्ष्यमा विवेचनात्मक अभ्यास मणिभाई प्रजापति १. प्रस्तावना : प्राचीन-मध्यकालीन हस्तप्रतोनी संख्यानी दृष्टिले भारतनी विश्वना सौथी समृद्ध देशोमां गणना करवामां आवे छे. आ हस्तप्रतो भारतनी सांस्कृतिक धरोहर छे, के जेमां प्राचीन-मध्यकालीन युगमां भारते साहित्य, धर्म-दर्शन, विज्ञान, कला वगेरे क्षेत्रे मेळवेल सिद्धिओनुं दर्शन थाय छे. बिस्वास अने प्रजापतिना सर्वेक्षण अनुसार भारतमां ५० लाखथी अधिक हस्तप्रतो प्राप्त छे. आ पैकी अंदाजित ६७% संस्कृत, प्राकृत, पालि, २५% आधुनिक भारतीय भाषाओनी अने ८% अरेबिक, पर्शियन वगेरे हस्तप्रतो छे. आ बधी हस्तप्रतो ज्ञानविश्वना विविध विषयोमां भारतनी विविध प्राचीन अने आधुनिक भाषाओ जेम के संस्कृत, प्राकृत, पालि, हिन्दी, बंगाळी, गुजराती, उडिया, मराठी, कन्नड, तमिल, मलयालम, तेलुगु, पंजाबी, काश्मिरी, उर्दू वगेरेमां अने विविध लिपिओमां उदा. तरीके देवनागरी, शारदा, बंगाळी, ग्रन्थ, गुरुमुखी, गुजराती, कन्नड, मलयालम वगेरेमां अने विविध माध्यमोमां जेम के भोजपत्र, ताडपत्र, कागळ, कापड वगेरे उपर लखायेली छे. आ बधी हस्तप्रतो विविध प्रकारनी सार्वजनिक, सरकारी, सामाजिक-धार्मिक संस्थाओ अने अंगत मालिकीना संग्रहोमां संगृहीत छे. भारतीय हस्तप्रतो भारत उपरान्त विदेशोनां विविध प्रकारनां ग्रन्थालयोमां पण संगृहीत छे. आ पैकी अंदाजित ६०,००० जेटली हस्तप्रतो युरोप अने अमेरिकामां अने १,५०,००० जेटली हस्तप्रतो पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाळ, श्रीलंका, तिबेट, चीन, जापान वगेरे देशोमां संग्रहायेली छे. २. हस्तप्रत सूचिकरणनी विभावना : सामान्यतः सूचिकरण (Cataloguing)नो मूळभूत हेतु कोई ओक ग्रन्थालयमां कोई ओक कर्ता के कोई ओक शीर्षक के कोई अक विषय हेठळनुं पुस्तक प्राप्य छे के केम ते जाणवानो रह्यो छे. हस्तप्रत संग्रह कक्षमां Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ अनुसन्धान-५५ उपभोक्ताने प्रवेशनी अनुमति आपवामां आवती न होवाथी रुबरुमां आवनाराओओ तेमज दूरना उपभोक्ताओओ इच्छित हस्तप्रतनी पसंदगी करवा माटे सूचिपत्रनो आधार लेवानो होवाथी विविध प्रकारना उपभोक्ताओनी मांग संतोषी शके ते रीते तैयार करवू जरुरी बनी रहे छे. मुद्रित पुस्तकनी तुलनामे हस्तप्रतनी केटलीक आगवी खासियतो छे के जे कोई हस्तप्रतनी शोध माटे महत्त्वपूर्ण घटक तरीकेनी भूमिका अदा करता होवाथी हस्तप्रतोनुं सूचिकरण करतां प्रत्येक घटकने ध्याने लेवो जरूरी बनी रहे छे. कोई अंक हस्तप्रतना कर्ता, शीर्षक के विषय उपरान्त टीकाकार, भाषा, हस्तप्रत लेखन- माध्यम, हस्तप्रतनुं माप, लेखन-समय, पूर्ण के अपूर्ण, हस्तप्रतनी स्थिति, लिपि, लिपिकर्ता, आदि-अन्त अने प्रशस्ति वगेरे बाबतोनो हस्तप्रतना सूचिकरणमा समावेश करवो जोइओ. Ricci अने Wilsonओ हस्तप्रत सूचिकरणना हेतुओ दर्शावतां Frezje To "To provide descriptions complete enough to identify each manuscript for all time, avoiding thereby all possible confusion with others copies of the same text, and providing adequate data for serch if the manuscript be lost or stolen.”R संक्षेपमा प्रत्येक हस्तप्रतनी आगवी विशेषताओने ध्याने लेतां सूचिकारे ओक ज कर्तानी एक ज कृतिनी अकथी वधु नकलोनू सूचिकरण करतां प्रत्येक नकल ओक बीजाथी अलग रीते ओळखी शकाय ते रीते हस्तप्रत सम्बन्धी विविध विगतोनो समावेश करी तेनी नोंध करवी जोइओ. मुद्रित पुस्तकना किस्सामां कोई ओक ज कर्तानी कोई ओक कृतिनी कोई अक आवृत्तिनी बधी नकलो समान होय छे, परन्तु हस्तप्रतना किस्सामां आ बाबत शक्य नथी. ओक ज कृतिनी नकलो लिपि, लेखनकला, लिपिकार, लेखनसमय, लेखन-माध्यम, सचित्रता, क्षेपक, होशियामां नोंधो, हस्तप्रतना स्थानान्तरणोनो इतिहास, लहियानी प्रशस्ति वगेरेनी द्रष्टिो ओक बीजाथी स्वाभाविक रीते ज भिन्न होय छे, जे ध्याने लेवू रह्यु. __सामान्यतः हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो (Catalogue) कृति ओळखनाराओने ध्याने लइने तैयार करवामां आवे छे. अर्थात् कृति खोळनाराओनी जरूरियातो पूरी पाडे तेवां होय छे. परंतु ते ध्याने लेवू रह्यु के हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ चित्रकारो, चित्रकलाना इतिहासकारो, लिपिवेत्ताओ, लेखनकलाना माध्यममां रस धरावनाराओ वगेरेने पण खपमा लागी शके छे. आ बधाओनी जरूरियातो संतोषे ते रीते तैयार करवां जोइओ. अर्थात् हस्तप्रतना सूचिपत्रमां कोई हस्तप्रतमां चित्रो आपवामां आव्यां होय तो तेमां वापरवामां आवेला रंगो, चित्रनुं माप, चित्रनो विषय, चित्रकार, नाम, लिपिकलानी द्रष्टिले हस्तप्रत महत्त्वपूर्ण होय तो तेनी नोंध, अकथी वधु लहियाओ द्वारा लखवामां आवी होय तो तेनी विगतो, बांधणी वगेरे बाबतोनी नोंध करवी जोइओ२. ३. हस्तप्रत सूचिकरण अने सूचिपत्रोनो उद्भव अने विकास : भारतीय अने वैश्विक परिप्रेक्ष्यमां : सूचिपत्रोनो उद्भव तपासतां पूर्वे भारतमां लेखनकलानो विकास अने ग्रन्थालयोनी स्थापना क्यारथी शरु थई ते तरफ दृष्टिपात करवो जरूरी बनी रहे छे. भारतमा सिन्धु संस्कृति ई.स.पूर्वे ३२००-२८००ना समयगाळामां विकसी हशे तेम मानवामां आवे छे. आ समयगाळा दरम्यान लेखनकळानो विकास केटला अंशे थयो हशे ते अंगे आज सुधी खास आधारो प्राप्त थया नथी. चित्रात्मक लेखननी छापो के मुद्राओ प्राप्त थई छे, जे ४१७ जेटलां चिह्नो धरावे छे.४ आ लिपि पण उकेली शकाई नथी. बीजी बाजु ई.स.पूर्वे पांचमी शताब्दी अने त्यारबाद रचायेला विविध ग्रन्थो जेमके अष्टाध्यायी, कौटिल्य अर्थशास्त्र, ललितविस्तर, विनयपिटक वगेरेमा लेखनकला अने प्रचलित लिपिओ विशेना उल्लेखो जोवा मळे छे. भारतमा प्रवर्तमान समयमा प्राचीनतम ज्ञात लेखनकलानो नमूनो अटले अशोकना शिलालेखो (ई.स.पूर्वे २७३-२३२). जोके आ शिलालेखो पूर्वे भारतमा प्रचलित लेखनकलाना केटलाक अवशेषो प्राप्त थया छे, जेमके ई.स.पूर्वे ४८७-४८३नो पिप्रहवामांथी माटीना वासण उपरनो अभिलेख, ई.स.पूर्वे ४थी सदीनो ओरान सिक्को तथा सोहगौर (जि. गोरखपुर)- ताम्रपत्र. प्रो. घोषालकर शास्त्री वगेरे विद्वानो भारतमां लेखनकळानो उद्भव ईस.पूर्व ८मी शताब्दी माने छे. भारतमां लेखनकलानो विकास खूब मोडो थवा पाछळनां मुख्य कारणो पैकी मुखस्थ शिक्षण प्रणाली, धर्मग्रन्थोनुं लेखन न करवानी प्रथा वगेरे कारणो जवाबदार गणावी शकाय. ज्यारे इजिप्तनी संस्कृतिमां ई.स.पूर्व १८०० के ते पूर्वेना लेखनकळाना नमूनाओ प्राप्त छे.५ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० अनुसन्धान- ५५ लेखनकलाना प्रारम्भ अंगे कोई आधारभूत माहिती प्राप्त नथी तेवा संजोगोमां पहेलुं पुस्तक कयुं लखायुं हशे अने त्यारबाद प्रथम ग्रन्थालय क्यां शरु करवामां आव्युं हशे ते सम्बन्धी आपणी पासे कोई ज माहिती आजे उपलब्ध नथी. ग्रन्थालय के ग्रन्थालयो शरु थया पछी पण ते ग्रन्थालयोनां सूचिपत्रो ( Catalogues ) केवा स्वरूपमां तैयार करवामां आव्यां हशे ते पण अक शोधनो विषय बनी रहे छे. कारण के प्राचीनतम ज्ञात उपलब्ध सूचिपत्र ओ कोई अज्ञात सूचिकर्ता द्वारा सम्पादित "बृहटिप्पनिकानामप्राचीनजैनग्रन्थसूचि" छे के जेनो रचनाकाळ ई.स. १३८३ छे. आ सूचिपत्रमां वर्णित ६५३ हस्तप्रतो विषयानुसार गोठववामां आवी छे अने प्रत्येक कृतिना कर्ता, लेखक, लेखनसमय अने पत्रसंख्या सम्बन्धी माहिती आपवामां आवी छे. आ सूचिपत्र पण कोई ओक भण्डारनी प्रतोनुं नथी. परंतु तेमां पाटण, खंभात अने भरुचना भण्डारोनी प्रतोनी माहिती आपवामां आवी छे. आ सूचिपत्रनुं सम्पादन मुनि जिनविजयजी द्वारा करवामां आव्युं छे, जे 'जैन साहित्य संशोधक ना पुस्तक १ अंक २मां मुद्रित करवामां आव्युं छे. आ ज सूचिपत्रनुं स्वतन्त्र पुनः मुद्रण ताजेतरमां ज मुनि प्रद्युम्नविजयजीओ कराव्युं छे. प्राचीन भारतमां तक्षशीला, वलभी, नालंदा, विक्रमशीला वगेरे विश्वविद्यालयो अने तेनां ग्रन्थालयो सम्बन्धी भारतीय अने विदेशी स्रोतोमां उल्लेखो जोवा मळे छे. परंतु, आ ग्रन्थालयोनां सूचिपत्रो के तेना व्यवस्थापन सम्बन्धी कोई ज माहिती प्राप्त नथी. भारत हस्तप्रतोनी दृष्टि सौथी धनिक देश, परन्तु हस्तप्रतविद्या विशे ओक पण स्वतन्त्र ग्रन्थ रचायो होय तेवुं जाणमां नथी. हा, लहियाओनी पुष्पिकाओमां हस्तप्रत संरक्षण सम्बन्धी केटलीक माहिती आपवामां आवी छे अने केटलाक टीकाकारो ने पाठसम्पादन विशे थोडीक चर्चाओ करी छे. उदा. तरीके महाभारतना टीकाकार नीलकण्ठ चतुर्धरे पोतानी भावदीप टीकाना प्रारम्भमां ज आ सम्बन्धी ठीक ठीक चर्चा करी छे. आ उपरान्त आनन्दतीर्थे 'महाभारततात्पर्यनिर्णय' मां, निरुक्तव्याख्याकार देवराज वगेरेअ आ सम्बन्धी प्रसंगोचित उल्लेखो कर्या छे. ६ जो के लेख, दस्तावेज वगेरे लखवा सम्बन्धी ग्रन्थो 'लेखपद्धति' (संपा. सी. डी. दलाल, गायकवाड ओरिओन्टल सिरिझ) अने 'लेखपंचाशिका' ग्रन्थो प्राप्त छे. सूचिपत्रो अने सूचिकरण सम्बन्धी ग्रन्थोनी प्राप्तिनो अभाव तेमज ते सम्बन्धी उल्लेखोनो अभाव ध्याने लेतां सहज प्रश्न उद्भवे के प्राचीन भारतमां आ कलानो विकास Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ १२१ थयो हशे के केम ? कारण के १४मी सदी बादनी पण जे सूचिओ उपलब्ध छे ते सरळ यादीओ समान छे. उदा. तरीके १७मी सदीना बनारसना पण्डित सर्वविद्यानिधान कविन्द्राचार्य, सूचिपत्र (संपा. आर.ओ.शास्त्री, गा.ओ.सि. १७, १९२१), मुनि पुण्यविजयजीओ शोधेल जेसलमेरना ज्ञानभण्डारनी ई.स. १७५२नी टीप-सूचि, डॉ. के.वी.शर्मा (अडियार) अ तेमना लेख 'Manuscripts Repositories in Kerala' मां मध्यकालीन समयनां हस्तप्रतोनां केटलांक सूचिपत्रो केराला युनिवसिटी मेन्युस्क्रिप्ट्स लाईब्रेरीमा उपलब्ध छे तेनी विगतो साथे चर्चा करी छे. भारतमां पाचीन-मध्ययुगीन समयनां नहिवत मात्रामां प्राप्त सूचिपत्रोना आधारे मल्लिनाथी सूत्र 'नाऽमूलं लिख्यते किञ्चित्'ने ध्याने लई नोंधq रद्यु के भारते आ समय दरम्यान हस्तप्रतोना सूचिकरण क्षेत्रे कोइ नोंधपात्र प्रगति करी नहीं होय तेम प्रतीत थाय छे. आम छतां, प्रस्तुत विषय सन्दर्भे मुनि भगवन्त पुण्यविजयजी महाराज साहेबनो आशावाद द्रष्टव्य बनी रहे छे : "प्राचीन समयमां ज्ञानभण्डारोनी टीपो ओटले के पुस्तकनी यादी केवा रूपमां थती हशे ओ जाणवा- आपणी पासे खास कशुं ज साधन नथी; तेम छतां लगभग बसो-त्रणसो वर्ष पहेलांनी जे प्राचीन टीपो जोवामां आवी छे ओ उपरथी अटलुं अनुमान थई शके छे के आजकाल जेवी विशद टीपो थाय छे - अर्थात् अमां जेम दाबडानो नंबर, प्रतनो नंबर, ग्रन्थनाम, पत्रसंख्या, भाषा, कर्ता, रचनासंवत, लेखनसंवत, विषय, ग्रन्थनी लंबाई-पहोळाई वगेरेनी माहिती आपवामां आवे छे - तेवी नहोती ज थती. ओ टीपोमां मात्र दाबडो, प्रतनो नंबर, ग्रन्थनाम, पत्रसंख्या अने कोई कोई वार ग्रन्थकारनुं नाम अटलुं ज नोंधवामां आवतुं. अहीं ओक वात स्पष्ट करवी उचित जणाय छे के आजकाल जेवी विशद टीपो थाय छे तेवी टीपो जूना जमानामां नहि ज थती होय अथवा आ जातनो कोईने सर्वथा ख्याल सरखोये नहि होय अम मानवाने कशुं ज कारण नथी."७ आपणे सौ जाणीओ छीओ के भारत विश्वनी प्राचीनतम ५ संस्कृतिओ पैकीनो अक देश छे. अन्य प्राचीन संस्कृतिओमां अने त्यारबाद युरोपमा प्रस्तुत विषय सन्दर्भे थयेल विकास अने उपलब्ध प्रमाणोना आधारे भारतमा सूचिकरण Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ अनुसन्धान-५५ क्षेत्रे नहिवत प्रगति सन्दर्भे आगळ उपर नोंधेल विधान करवा बाध्य थर्बु पडे छे. उदा. तरीके विश्वनुं ई.स. पूर्वे २०००- प्राचीनतम ज्ञात सूचिपत्र Nipper मांथी मळी आव्युं छे. आ सूचिपत्र ईंटो उपर उत्कीर्ण छे, के जेमां ६२ कृतिओनी यादी आपवामां आवी छे. आ पैकी २४ कृतिओ साहित्यनी छे. ईजिप्तमां Nineveh शहेरमांथी ई.स.पूर्वे ६५० आसपासना समयनी माटीनी ईंटो उपर उत्कीर्ण केटलीक सचिओ मळी आवेल छे, जेमां शीर्षक, कतिनी ईंटोनी संख्या, लहियानुं नाम, राजानी मुद्रा, प्रशस्ति वगेरे सम्बन्धी माहिती वर्णवेल छे. ईजिप्तना EDFUना मन्दिरनी दिवालो उपर ई.स.पूर्वे ३००-२००मां उत्कीर्ण सूचिपत्र मळी आव्युं छे. एलेक्झान्ड्रिया लाईब्रेरीना विख्यात सूचिकार Callimachus (250B.C.) द्वारा १२० ग्रन्थोमां प्रमुख विषयोमां विभाजित विस्तृत सूचिपत्र तैयार करवामां आव्युं हतुं तेना आजे केटलाक अवशेषो ज उपलब्ध छे. युरोपमां ५ थी १५मी सदी दरम्यान धार्मिक मठो शिक्षणनां केन्द्रो उपरान्त हस्तप्रतोना उत्पादन अने संरक्षणनां केन्द्रो हतां. केटलांक मठोनां उपलब्ध सूचिपत्रो पैकी १०मी सदीनुं Carolingian Monastery, Lorsch नुं सूचिपत्र आजे प्राप्य छे के जे 'Not only the most comprehensive but also the most detailed catalog' गणवामां आवे छे.१० आ सूचिपत्रमा ६०० हस्तप्रतोने प्रमुख विषयो हेठळ विभाजित करीने प्रत्येक कृतिनुं शीर्षक, अज्ञात शीर्षकवाळी कृतिना प्रारम्भना शब्दो, पूर्ण के अपूर्ण वगेरे झीणी झीणी विगतो ध्यानथी नोंधवामां आवी छे. Theodor Gottlieb द्वारा ९मी सदीनां २४, १०मी सदीनां १७, ११मी सदीनां ३० अने १२मी सदीनां ६२ सूचिपत्रोनी यादी तैयार करवामां आवी छे.११ आम, आ बधां उपलब्ध प्रमाणोना आधारे स्पष्ट प्रतीत थाय छे के आ बधा देशोओ लेखनकला अने सूचिकला क्षेत्रे भारतनी तुलनाओ घणो सारो विकास साध्यो हतो. ४. हस्तप्रतोना सूचिकरणनी समस्याओ : ४.१ अज्ञातकर्तृत्व अने समाननामधारी कर्ताओनी रचनाओ : ___ संस्कृत-प्राकृत-पालिमां रचायेला आर्षग्रन्थो अने अन्य केटलीक साहित्यिक कृतिओ अज्ञात-कर्तृत्ववाळी जोवा मळे छे. विश्वविख्यात तत्त्वचिन्तक डॉ. राधाकृष्णने नोंध्युं छे के भगवद्गीतानो लेखक कोण छे ते अमे जाणता Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ नथी. मध्यकालीन समयमां गुजरातीमां रचायेल 'वसन्तविलास' पण अज्ञातकर्तृत्ववाळी कृति छे. आ प्रकारनी असंख्य कृतिओना कर्तृत्वनो प्रश्न आजे पण उकेली शकायो नथी. आ ज रीते केटलाक कर्ताओ कृतिमां कर्ता तरीके पोतानुं नाम दर्शावे छे, परंतु नाम सिवाय अन्य कोई माहिती आपता नथी. परिणामे समाननामधारी कर्ताओनी कृतिओनुं सूचिकरण करतां कया कर्ताना नामे आ कृति नोंधवी ते अक मोटो प्रश्न बनी रहे छे. कर्ता पोताना मातापिता, जन्मस्थळ, समय, पोताना गुरु के आश्रयदाता राजा वगेरेनो उल्लेख करे तो ते कर्ताने सरळताथी अन्य समाननामधारी कर्ताओथी अलग तारवी शकाय. प्राचीन भारतीय सर्जकोमां आ प्रकारना औतिहासिक अभिगमना अभावना कारणे केटलाक पाश्चात्त्य अने भारतीय विद्वानो ' भारतीयोमां औतिहासिक दृष्टिनो अभाव छे' तेवां म्हेणां मारतां खचकाता नथी. आ सम्बन्धी Theodor Aufrecht से ‘Catalogus Catalogorum'ना प्रथम खण्डमां नोंध्युं छे के Lack of interest in historical truth in India is so great, that difficulties meet the enquirer at every stage. १२३ ४.२ आरोपित कृतित्व : अर्थात् attributed authorship से पण ओक मोटी समस्या छे उदा. तरीके महर्षि वेदव्यासना नामे असंख्य कृतिओनुं कर्तृत्व आरोपित छे. आ बधी कृतिओनो साचो कर्ता कोण ? अन्यना नामे पोतानी कृति चढाववा पाछळनी घेलछा पाछळ बे मुख्य कारणो जवाबदार छे : प्रथम तो प्रसिद्ध कर्ताना नामे पोतानी कृति प्रसिद्धि पामशे अने बीजुं न्योछावर भावना. ४. ३ भाषा अने लिपिनी वैविध्यता : भारतीय हस्तप्रतो अनेकविध भाषाओ अने लिपिओमां लखायेली छे. आ बधी हस्तप्रतो भाषाना सीमाडाओ बहारना संग्रहोमां पण संगृहीत होवाथी परप्रान्तीय भाषाज्ञान के लिपिज्ञानना अभावे आ प्रकारनी हस्तप्रतो सूचि थया वगर पडी रहे छे. सूचिकार बधी ज भाषाओ के लिपिओ न पण जाणतो होय त्यारे स्वाभाविक छे के आ प्रकारनी हस्तप्रतोनुं सूचिकरण करवुं कठिन बने छे. उदा. तरीके पाटणना हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिरमां दक्षिण भारतीय लिपिओनी केटलीक प्रतोनी सूचि थई शकी नथी. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ अनुसन्धान- ५५ ४.४ गुटका अने मिश्र कृतिओ : घणीवार ओक ज पोथीमां सळंग अनेक कर्तानी नानी मोटी रचनाओ लखवामां आवती होय छे. आवा किस्सामां हस्तप्रतनुं ध्यानथी निरीक्षण कर्या सिवाय फक्त प्रारम्भनी कृतिनुं सूचिकरण करीने अन्य पानां छोडी देवामां आवे तो अनेक कृतिओ सूचि थया विनानी पडी रहे ते शक्यता नकारी शकाय नहीं. परिणामे सूचिकारे हस्तप्रतना रचनाविधानथी परिचित रहेवुं जोइओ. 'गुटका' मां अकथी अधिक कर्ताओनी ओकथी अधिक कृतिओ होय छे. ‘गुटका' सिवायनी अन्य हस्तप्रतोमां पण कवचित ओक के ओकथी वधु कर्ताओनी कृतिओनुं लेखन थयेलुं जोवा मळे छे. ४.५ ग्रन्थनाम पृष्ठनो अभाव : मुद्रित पुस्तकी जेम हस्तप्रतना किस्सामां ग्रन्थनाम पृष्ठनो अभाव होय छे. परिणामे कृतिनुं शीर्षक, कर्ता, लेखन वगेरेनी माहिती हस्तप्रतमांथी शोधीने लखवानी रहे छे. सामान्य रीते ग्रन्थान्तेनी प्रशस्तिमां आ प्रकारनी विगतो आपवामां आवे छे. क्वचित ग्रन्थारम्भे पण आ माहितीनो निर्देश करवामां आवे छे. अर्थात् मुद्रित पुस्तकमां आ माहिती तैयार मळी रहे छे, ज्यारे हस्तप्रतना किस्सामा सूचिकरण माटे जरूरी विगतो शोधवानी रहे छे. ४.६ शीर्षकनो अभाव अने समाननामधारी कृतिओ अथवा ओक कृतिनां अनेकनाम : क्वचित घणी हस्तप्रतोमां तेना शीर्षकनो निर्देश जोवा मळतो नथी, तो क्वचित समाननामधारी कृतिओनी बहुलता के ओक कृतिनां अनेकनामोनी समस्या सूचिकरण माटे प्रश्नो पेदा करे छे. उदाहरण तरीके ब्रह्मसूत्र विविध नामोथी ओळखाय छे, जेमके वेदान्तसूत्र, व्याससूत्र, ब्रह्ममीमांसा, शारीरिक मीमांसा, उत्तरमीमांसा वगेरे. ४. ७ क्षेपको : कर्तानी मूळ कृतिओमां अन्यो द्वारा करवामां आवतां उमेरणो interpolation - थी मूळ पाठ शोधवो कठिन कार्य बनी जाय छे. उदा. तरीके महाभारत, पुराणो वगेरे कोई अक कर्ताना कृतित्ववाळी रचनाओ रही ज नथी. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ १२५ ४.८ लेखनशैली : सूचिकार हस्तप्रत-लेखनशैलीथी अनभिज्ञ होय तो पण अनेकविध समस्याओ पेदा करी शके छे. उदा. तरीके हस्तप्रत लखवानी पद्धतिओ जेम के द्विपाठ, त्रिपाठ, पंचपाठ वगेरे. अटले के मूळ पाठ कयो अने टीका कई छे तेनो भेद पारखतां आवडवू जोइओ. क्वचित पृष्ठ संख्या आंकडामां न दर्शावतां संज्ञात्मक अक्षरोमां दर्शाववामां आवे छे. उदा. तरीके स्व ०=१०, स्ति o=२०, ओक o=४०, स्व ० ०=१००, स्व स्व ल=११५, अक ० ०=४०० वगेरे. ध्याने लेवू के आ अक्षरांको सीधी लीटीमां नही परंतु उपर नीचे लखवामां आवे छे. ग्रन्थनी समाप्ति थये 'भले मीडां' अने अन्य चिह्नोनो प्रयोग, ग्रन्थारम्भनां चिह्नो, लेखनवर्ष के रचनावर्ष दर्शाववा शब्दांकोनो प्रयोग वगेरेथी सूचिकार सुपरिचित होवो जोईओ. अन्यथा सूचि भूल भरेली बनी रहे छे. आगमप्रभाकर मुनि पुण्यविजयजीओ 'भारतीय जैन श्रमणसंस्कृति अने लेखनकळा'मां लेखनशैली विशे विगते समजूति आपी छे. अहीं नोंधेल उदाहरणो प्रस्तुत ग्रन्थना आधारे आपेलां छे. उदा. तरीके बोस्टन म्युझियममां संगृहीत अक प्रतमां 'चंद्रगजरसधरा' शब्दांकोना माध्यमथी वि.सं. १६८१नो निर्देश करवामां आव्यो छे. ४.९ छूटां पानां : प्रायः हस्तप्रतोनी बांधणी करवामां आवती न होवाथी ते छूटां पान स्वरूपे जोवा मळे छे. परिणामे कवचित केटलांक पान ओक-बीजामां भळी जवाथी के छूटां पडी जवाथी मूळ कृति साथे मेळ बेसाडवामां प्रश्नो पेदा थाय छे. घणां भण्डारोमां आवां छूटां पाननी समस्या जोवा मळे छे. ४.१० सूचिकार माटे आवश्यक साधनिक स्रोतोनो अभाव : सूचिकरण माटे विविध प्रकारना सन्दर्भग्रन्थो जेमके विश्वकोशो, वाङ्मयसूचिओ, शब्दकोशो, लेखककोश, निर्देशिकाओ, विवरणात्मक सूचिपत्रो वगेरे अनिवार्य बनी रहे छे. जेनो उपयोग ओछो थतो जोवा मळे छे. संस्कृत हस्तप्रतोना सूचिकरण माटे 'New Catalogus Catalogorum' अेक महत्त्वपूर्ण आधार स्रोत छे. परंतु ते पूरेपूरो तैयार थयो नथी, तेमज बीजी मोटी समस्या ओ के मोटा ग्रन्थालयोमां पण तेना केटला खण्डो उपलब्ध हशे ते शोधq Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ अनुसन्धान-५५ रह्यं. आ उपरान्त अंग्रेजी लेखको माटे मेयर्स अन्ड मेयर्सना लेखककोश जेवो संस्कृतना लेखको माटेना Comprehensive and exhaustive कोशनो अभाव छे. ५. भारतीय हस्तप्रतोनुं सर्वेक्षण अने सूचिपत्रो : औतिहासिक परिप्रेक्ष्यमां विश्लेषण : भारतमां पोर्टगीझ पादरीओओ सौ प्रथम गोवामां ई.स. १५५६मां प्रिन्टींग प्रेसनी स्थापना करी हती. परंतु प्रायः १८मी सदी सुधी तेनो खास प्रभाव जोवा मळतो नथी. गुजराती भाषानुं प्रथम ज्ञात पुस्तक छेक १८०८मां प्रगट थयुं हतुं. हस्तप्रतोना सर्वेक्षण अने सूचिपत्रोना प्रकाशन प्रवृत्तिने नीचे दर्शाव्या मुजब मुख्य ४ तबक्काओमां वहेंची शकाय. १. प्रारम्भिककाळ (१७३९ थी १८६८) २. सुवर्णयुग (१८६९ थी १९००) ३. राष्ट्रीय जागृतिकाळ (१९०१ थी १९४७) ४. स्वातन्त्र्योत्तरकाळ (१९४७ थी आज दिन सुधी) ५.१ प्रारम्भिककाळ (१७३९ थी १८६८) भारतमां प्राचीन समयथी राजा-महाराजाओ, धार्मिक संस्थाओ, विद्यालयो अने पण्डितवर्ग पोतपोताना अंगत हस्तप्रत संग्रहो धरावता हता अने तेनी सामान्य सूचिओ पण तैयार करवामां आवती हती, जेनां प्रमाणो आजे पण उपलब्ध छे. प्रस्तुत अभ्यासमां मात्र प्रकाशित हस्तप्रत सूचिपत्रो अने अहेवालोने ध्यानमां लेवामां आव्यां छे. २८७ भारतीय हस्तप्रतो वर्णवतुं प्रथम सूचिपत्र पेरिसमांथी १७३९मां प्रगट थयुं हतुं, जे आ अभ्यासतुं प्रारम्भ बिन्दु छे. आ समयगाळानी सौथी मोटी अँतिहासिक घटना भारतमा प्रारम्भमां ईस्ट इन्डिया कंपनी, अने त्यारबाद इंग्लेन्डनी राणी, शासन स्थपायु. परिणामे राजकीय अने अन्य परिवर्तनो उपरान्त प्रस्तुत अभ्यास साथे प्रत्यक्ष या परोक्ष रीते प्रभावक परिबळ ते पाश्चात्त्य ढबे अंग्रेजी शिक्षण प्रणालीनो प्रारम्भ थवो. ब्रिटिश सनदी अधिकारीओओ भारतीय भाषा-साहित्यमां रस लइने तेनो सघन अभ्यास करी पाश्चात्त्य विद्याजगतने भारतीय विद्यानी समृद्धिनो परिचय कराव्यो. बंगाळानी सुप्रिम कोर्टना न्यायाधीश अने प्रखर पौर्वात्यविद सर विलियम Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ १२७ जोन्सओ ई.स. १७८४मां ओशियाटिक सोसायटीनी कलकत्तामा स्थापना करीने भारतीय विद्याना अभ्यास अने हस्तप्रतोना संग्रह माटे ओक नवी दिशा ज खोली आपी. अने तेमणे ज 'शाकुन्तल'नो १७८९मां अंग्रेजी अनुवाद आपीने संस्कृत साहित्यना अभ्यासनो पायो नाख्यो. आ ज कोर्टना न्यायाधिश सर रोबर्ट चेम्बर्स के जे 'a distinguished scholar of great and versatile culture' तरीके ख्यातिप्राप्त हता तेमना द्वारा ८०० जेटली हस्तप्रतो अकठी करवामां आवी हती, जेनुं सूचिपत्र P. Rosan द्वारा तैयार थयु. आ हस्तप्रतो बादमां बर्लिन स्टेट लाईब्रेरी द्वारा खरीदवामां आवी हती. ८००० जेटली हस्तप्रतो, नकशा, अभिलेखो वगेरेनो सौथी मोटो संग्रह मद्रास प्रेसेडेन्सीना सर्वेयर जनरल Colin Mackenzie (१७९६-१८०६) द्वारा करवामां आव्यो हतो, आ पैकीनी मोटा भागनी हस्तप्रतो वगेरे इन्डिया ओफिस लाईब्रेरी अन्ड रेकर्डस, लंडन अने थोडीक मद्रास युनिवर्सिटीमां संगृहीत छे. सर विलियम जोन्स द्वारा पण ५९ हस्तप्रतोनो संग्रह करवामां आव्यो हतो. जेम्स फ्रेशर द्वारा १७३०-४० दरम्यान गुजरातना प्रवास दरम्यान १६५ अरेबिक, पशियन, संस्कृत वगेरेनी हस्तप्रतो खरीदवामां आवी हती, जेनी सरळ यादी तेमणे पोतानी कृति History of Nadir Shah (1742) मां प्रगट करी हती. सम्भवतः भारतमांथी युरोपमां लइ जवामां आवेलो आ प्रथम हस्तप्रत संग्रह हशे तेम मानवामां आवे छे. समग्रतया आ समयगाळा दरम्यान ४६ सूचिपत्रो (५१ खण्डो) प्रगट थयां हतां. आ पैकी भारतमाथी ११ (१५ खण्डो) अने विदेशोमांथी ३५ (३६ खण्डो) सूचिपत्रो प्रगट थयां हतां. आ समयगाळानुं सौथी वधु नोंधपात्र अने शास्त्रीय सूचिपत्र बलिननी इम्पिरियल लाईब्रेरीनी १४०३ संस्कृत-प्राकृत हस्तप्रतोनुं सूचिपत्र A. Weber (१८५३) द्वारा सम्पादित करवामां आव्युं हतुं, जे हस्तप्रतोना भौतिक वर्णन उपरान्त, आदि-अन्त, टिप्पण, केटलीक कृतिओना विस्तृत उताराओ अने ९ सूचिओ सहित तैयार करवामां आवेलुं छे. केटलांक उत्तम सूचिपत्रो पैकी- आ ओक छे. आ ज प्रकारचें बीजुं ओक उत्तम सूचिपत्र Theodor Aufrecht (1859) द्वारा Bodleian Library (Oxford University)नुं तैयार करवामां आव्युं हतुं. भारतमांथी प्रगट थयेलां सूचिपत्रो पैकी सौथी प्रथम मेकेन्झी संग्रहनी १५६८ हस्तप्रतोतुं वर्गीकृत सूचिपत्र H.H. Wilsonओ तैयार Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ अनुसन्धान- ५५ करेल जे १८२८मां कलकत्ताथी प्रगट थयुं हतुं. आ ज संग्रहनी १६० तमिलतेलुगु हस्तप्रतोनुं William Taylorनुं सूचिपत्र १८३५मां मद्रासमांथी बे खण्डोमां प्रगट थयुं हतुं. त्यार बाद अशियाटिक सोसायटी द्वारा ३००० संस्कृत अने १०७ आधुनिक भारतीय भाषाओनी हस्तप्रतोनुं संक्षेपमां वर्णन करतुं वर्गीकृत अने कोठाओमां विभाजित सूचिपत्र १८३८मां प्रकाशित करवामां आव्युं. आ 'सूचिपुस्तकम्' मां फोर्ट विलियम कॉलेज, अशियाटिक सोसायटी अने काशी संस्कृत विद्यामन्दिरनी हस्तप्रतो समाविष्ट छे. आ सूचिपत्रमां कोई प्रकारनी सूचि (Index) आपवामां आवी नथी ते तेनी मोटी मर्यादा छे. अन्य ओक महत्त्वपूर्ण सूचिपत्र विस्तृत नोंध अने सूचिओ सहितनुं GOML, Madras नुं ५५१५ हस्तप्रतो वर्णवतुं १८५७ - ६२ दरम्यान ३ खण्डोमां प्रकाशित करवामां आव्युं हतुं. ५. २ सुवर्णयुग (१८६९ थी १९०० ) अंग्रेजोनुं भारतमां सांस्कृतिक क्षेत्रे सौथी मोटुं मूल्यवान प्रदान भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभागनी स्थापना करी कला - स्थापत्योना संरक्षणनुं अने भारतीय हस्तप्रतोना सर्वेक्षणनुं काम हाथ धरी वेर - विखेर हस्तप्रतोना संग्रह, सर्वेक्षण अने सूचिपत्रो/अहेवालो तैयार करवा क्षेत्रे रह्युं छे. लाहोर दरबारना पूर्व मुख्य पडित राधाकृष्णना हस्तप्रतोना सर्वेक्षण अने सूचिकरण सम्बन्धी सूचनने ध्यान लई तत्कालीन गवर्नर जनरले आ प्रस्तावनो ता. ३ नवेम्बर, १८६८ना रोज स्वीकार करीने आ हेतुसर रु. २४००० /- अने Mr. Stokes (Secretary of Legislative Council) से तैयार करेल हस्तप्रतोना संग्रह अने सूचिकरणनी योजना मंजुर करी हती. आम छतां Mr. Stokes मन्तव्य धरावता हता के सूचित केलोग इंग्लेन्डमां ज संतोषकारक रीते सम्पादित थई शके कारण के “no native scholar possessed of the requisite learning, accuracy and persistent energy” अने वधुमां, “no European scholar in India possessed of the requisite time, or who might not be more usefully employed in making original researches.”१२ ३२ वर्षनो आ समयगाळो ओक सुवर्णयुग समान अटला माटे गणवामां आवे छे के समग्र भारतवर्षमां संस्कृत-प्राकृत भाषा साहित्यना पाश्चात्त्य तथा भारतीय प्रतिभासम्पन्न - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ विद्वानो आ प्रवृत्तिमां जोडाया अने देशना खूणे खूणेथी फरी फरीने खानगी अने संस्थागत संग्रहो रुबरुमां तपासीने अहेवालो तैयार कर्या. तेमना अभ्यासप्रवास दरम्यान प्राप्त थयेल महत्त्वपूर्ण हस्तप्रतोनी विगतो अकठी करी, जे ते प्रेसिडेन्सीओ माटे हस्तप्रतोनी खरीदी करी, कवचित सूचनात्मक तो कवचित विस्तृत सूचिपत्रो तैयार कर्यां. १२९ आ समयगाळा दरम्यान प्रगट थयेल सूचिपत्रो / अहेवालो पैकी बंगाळ प्रेसिडेन्सीना राजा राजेन्द्रलाल मित्राओ २४० खानगी के संस्थागत संग्रहो रुबरुमां तपासीने ४२६५ संस्कृत हस्तप्रतो वर्णवतुं ११ खण्डोनुं सूचिपत्र Notices of Sanskrit Manuscripts ( १८७० - १८९५) तैयार कर्यु. आ पैकीना पाछळना २ खण्डो तेमना अवसान बाद महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्रीओ सम्पादित करेला छे. हस्तप्रतोना सूचिकरण क्षेत्रनुं आ अक सीमास्तम्भ समान सूचिपत्र छे. आ उपरान्त मित्राजीओ अन्य महत्त्वपूर्ण सूचिपत्रो पैकी बिकानेरना महाराजाना अंगत संग्रहनी १५४७ हस्तप्रतोनुं १८८० मां तथा अशियाटिक सोसायटीनुं १८७७मां तैयार कर्यां हतां. बंगाळ उपरान्त पंजाबनुं काशीनाथ कुन्ते (१८७८८२), नोर्थ-वेस्ट प्रोविन्सिस (१८७४ - ८६, ४४०० हस्तप्रतो), अवधनुं जहोन नेसफिल्ड (१८७५–७९), अने कोलिन ब्राउनिंग (१८७२ - ९३, ५२०० हस्तप्रतो), मैसूर अने कूर्गनुं लेविस राइस (१८८४, २९४४ हस्तप्रतो), दक्षिण भारतनां खानगी संग्रहोनुं गुस्ताव ऑपर्ट (१८८०-८५, १८७०७ हस्तप्रतो) अने सेन्ट्रल प्रोविन्सनुं अफ. कीलहोर्न (१८७४, ३८०० हस्तप्रतो ) अने बोम्बे प्रेसिडेन्सीनुं ज्योर्ज बुहलर, अफ. कीलहोर्न, पीटर पीटरसन (१८८२ - ९८), प्रो. भण्डारकर (१८७९-९१), काथवटे (१८९१ - ९५) वगेरे द्वारा सर्वेक्षण हाथ धरवामां आव्युं. नोंधवुं घटे के मुंबई सरकारे प्रस्तुत योजना पूर्वे १८६६ थी डॉ. ज्योर्ज बुहलर अने डॉ. मार्टिन हग द्वारा संस्कृत हस्तप्रतोनुं सर्वेक्षण अने प्राप्तिनुं कार्य शरु कर्तुं हतुं. अन्य प्रेसिडेन्सीओनी तुलनाओ बोम्बे प्रेसिडेन्सीनुं कार्य वधु व्यापक अने गहन रह्युं छे. भण्डारकर ओरिओन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, पूनानो विद्वत संग्रह आ सर्वेक्षणने आभारी छे. डॉ. बुहलरओ गुजरात उपरान्त बोम्बे प्रेसिडेन्सी उपरान्त राजपुताना, लाहोर, दिल्ही, बनारस, उज्जैन, काश्मीर वगेरे प्रदेशोमां हस्तप्रत खोज - प्रवास कर्या हता. डॉ. बुहलरना अहेवालो has Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० अनुसन्धान- ५५ become almost a classic with Sanskritists, and has served as model for subsequent work in the field of the recovery of Sanskrit manuscripts and the presentation of the results in proper light.' गणवामां आव्या हता. १३ १० वर्ष बाद भारतना समग्र सर्वेक्षण कार्यनी समीक्षा करवामां आवी त्यारे बोम्बे प्रेसिडेन्सीना कार्यने 'most satisfactory' ‘highest satisfaction at what had already been effected, especially by Dr. Buhler and Dr. Keilhorn of Bombay.' तरीके नवाजवामां आवेल. ज्यारे समग्र भारतीय स्तरनां सर्वेक्षण परिणामोने 'such as to warrant the prosecution of the search १४ तरीके ओळखावेल. मुंबइ सरकार द्वारा खरीदवामां आवेली हस्तप्रतो पाश्चात्त्य अने भारतीय विद्वानो जेमके Prof. Whitney (New Haven ), Prof. Foucaux (Paris), Rajendralal Mitra (Calcutta) वगेरेने तेमना उपयोग अर्थे पण पूरी पाडवामां आवी हती. अर्थात् हस्तप्रतोनो मात्र संग्रह न करतां तेनो उपयोग थाय तेवो अभिगम अपनाववामां आव्यो. आ उपरान्त त्रिवेन्द्रमना महाराजानी पेलेस लाईब्रेरी, तांजोर संग्रह, बनारस संस्कृत कॉलेज, महाराजा अलवरनो संग्रह, गवर्मेन्ट लाईब्रेरी, मद्रास वगेरेनां सूचिपत्रो तैयार करवामां आव्यां. आ बधां सर्वेक्षणोथी घणी बधी अलभ्य कृतिओ प्रकाशमां आवी. परिणामस्वरूपे पाश्चात्त्य विद्वानो भारतीय साहित्यनी उपलब्धिओथी प्रभावित थया अने भारतीयविद्यानो सघन अभ्यास करवा प्रेराया. आ समयगाळा दरम्यान प्रकाशित कुल १५४ सूचिपत्रो पैकी ८३ विदेशोमांथी अने ७१ भारतमांथी प्रगट करवामां आव्यां हतां विदेशोमां प्रकाशित सूचिपत्रो पैकी इन्डिया ऑफिस लाइब्रेरी एन्ड रेकर्डस, लंडनना प्रथम खण्डना ६ भाग १८८७ थी १८९९ दरम्यान प्रगट थया, जेनुं सम्पादन Julius Eggeling द्वारा करवामां आव्युं हतुं. प्रत्येक हस्तप्रतना कर्ता, शीर्षक, टीकाकार वगेरे भौतिक माहिती उपरान्त हस्तप्रतना पाठना केटलाक अंशो, आदि-अन्त अने विवेचनात्मक नोंध धरावतुं आ सूचिपत्र हस्तप्रतोनी प्राचीनता, अलभ्यता तथा शास्त्रीय सूचिकरणनी दृष्टि अति मूल्यवान अने नमूनेदार छे. Theodor Aufrecht द्वारा ३० वर्षनी महेनतना अन्ते ९८ सूचिपत्रोना आधारे तैयार करवामां आवेल 'Catalogus Catalogorum : An Alphabeti Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ cal Register of Sanskrit Works and Authors, (Vol. I 1891, Vol. II 1896 and Vol. III 1903) अ हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो अने भारतीयविद्या क्षेत्रनी ओक शकवर्ती घटना छे. आ केटलोगना माध्यमथी कई कृति भारत के भारत बहार संगृहीत छे ते उजागर थयुं. आ केटलोग भारतीय साहित्यनो आयनो बनी रह्युं अने खूब ज उपयोगी पुरवार थयुं. ५. ३ राष्ट्रीय जागृतिकाळ (१९०१ थी १९४७) साहित्य, समाज, राजकारण वगेरे क्षेत्रे आ काळ भारतमां राष्ट्रीय चेतनानी जागृतिना समय तरीके अभिधानित करवामां आवे छे. आ समय दरम्यान राष्ट्रिय स्वातन्त्र्यनी चळवळे जोर पकडतां अंग्रेजोओ अन्ततः १९४७नी १५मी ओगस्टे भारतने आझादी आपवी पडी. राष्ट्रीय शाळाओनी स्थापनानी जेम ज भारतना विविध प्रदेशोमां भारतीयविद्यानां संशोधन संस्थाओनी स्थापना करवामां आवी. आ संस्थाओओ संशोधन प्रवृत्तिओने वेग आपवा उपरान्त हस्तप्रतसंग्रह माटे पण विशेष ध्यान आप्युं, तेमज वर्णनात्मक सूचिपत्रोनां प्रकाशनो पण कराव्यां संस्कृत - प्राकृत - पालि उपरान्त आधुनिक भारतीय भाषाओनी हस्तप्रतोनां सूचिपत्रोनुं प्रकाशन पण करवामां आव्युं. भारतीयविद्या संस्थाओ पैकी भण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, पूना (१९१९), प्राच्यविद्या मन्दिर, वडोदरा (१९२७) सिंधिया ओरिओन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट (उज्जैन) वगेरे उल्लेखनीय छे. वडोदराना महाराजा सर सयाजीराव गायकवाडे श्री आर.ओ. शास्त्रीनी निमणूक हस्तप्रतोनी खरीदी करवा माटे करतां तेणे देशमांथी फरी फरीने १०००० जेटली प्रतो प्राच्यविद्या मन्दिर माटे अकठी करी हती. श्री शास्त्रीओ हस्तप्रतोनी प्राप्ति सन्दर्भे ओक डायरी तैयार करी हती, जे हालमां मद्रास युनिवर्सिटीना संस्कृत विभागमां सचवायेली छे. आ समयगाळामां कुल २५६ (५५९ खण्डो) सूचिपत्रो प्रगट थयां हतां. भारतीय विद्वानो पैकी हरप्रसाद शास्त्री, गोपीनाथ कविराज, कुप्पुस्वामी शास्त्री, अस. के. बेलवलकर, हीरालाल कापडिया, अस. ओम. कत्रे, पी.पी. सुब्रह्मण्य शास्त्री, पी.पी. अस शास्त्री, मणिन्द्र मोहन बसु, मोतीलाल मेनारीया वगेरे अने पाश्चात्त्य विद्वानो पैकी A.B. Keith, James Blumhardt, J. D. Pearson वगेरेओ सूचिपत्रोना सम्पादनमां नोंधपात्र फाळो आप्यो छे आ बधां सूचिपत्रो विद्वानो द्वारा सम्पादित १३१ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ अनुसन्धान-५५ थयां होवाथी विद्वत प्रस्तावनाओ तथा कृतिओना विस्तृत वर्णननी दृष्टिले खास ध्यानपात्र बनी रहे छे. Theodor Aufrechtना केटलोगोरमनी उपयोगिताथी प्रभावित थईने पंजाब युनिवसिटीना तत्कालीन कुलपति A.C. Woolner (१९३०)ना सूचनने ध्याने लइ 'New Catalogus Catalogorum' तैयार करवानुं कार्य मद्रास युनिवसिटीना संस्कृत विभागे शरु कयें, परंतु तेना फळ १९४९थी मळवां शरु थयां. आ हेतुसर संस्कृत विभागे प्रथम तबक्के सूचिपत्रो ओकठां करवानुं शरु कर्यु. जे संस्थाओनां सूचिपत्रो प्रकाशित न हता त्यांनी हाथयादीओ अकठी करी. ५.४ स्वातन्त्र्योत्तरकाळ (१९४७ थी आजदिन सुधी) __ आझादी बाद डॉ. राधाकृष्णनना चेरमेन पदे युनिवर्सिटी एज्युकेशन कमिशन (१९४९), डॉ. सुनीतिकुमार चेटरजीना चेरमेन पदे संस्कृत कमिशन (१९५६) अने युजीसीओ डॉ. राघवनना चेरमेन पदे मेन्युस्क्रिप्ट कमिटि (१९५९)नी रचना करी हती. आ कमिशन-कमिटिओओ संस्कृत हस्तप्रतोना संग्रह, संरक्षण, सम्पादन, प्रकाशन तथा सूचिपत्रो प्रकाशन करवा माटे नोंधपात्र भलामणो करी हती. भारत सरकारे पुनः प्रो. के.ओ.अन. शास्त्रीना चेरमेन पदे इन्डोलोजी कमिटि (१९६०)नी रचना करी. आ इन्डोलोजी कमिटिओ हस्तप्रतोना सम्पादन, प्रकाशन अंगे भलामणो करवा उपरान्त सूचिपत्रो कया स्वरूपे तैयार करी प्रकाशित करवां ते अंगे पण महत्त्वपूर्ण भलामणो करी हती. हस्तप्रतोना प्रकाशन माटे अनुदान मेळवती संस्थाओ पोतानां सूचिपत्रो आ साथे नीचे दर्शाव्या मुजब तैयार करवानुं भारत सरकारे ठरावतां १९६१ पछीनां बधां ज सूचिपत्रो प्रायः समान धोरणे प्रकाशित करवामां आवे छे : 1. Serial no. and subject 2. Library accession or Collection number, if any 3. Time of work 4. Name of author 5. Name of commentator 6. Material or Substance 7. Script 8. Size, number of folios or leaves; Lines per page and no. of letters per line 9. Extent 10. Conditation and age, and 11. Additional particulars. आ उपरान्त जे ते संग्रहनी अलभ्य हस्तप्रतोनी सूचनाओ कोलम १मां 'E' संज्ञा वापरीने दर्शाववी. 'E' संज्ञावाळी अलभ्य अने महत्त्वपूर्ण हस्तप्रतोनां आदि-अन्त-प्रशस्ति तथा कृतिना केटलाक अंशो परिशिष्टमां दर्शाववा. आ उपरान्त सूचिपत्रमा वणित हस्तप्रतोनी Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ शीर्षक, कर्ता अने अन्य महत्त्वपूर्ण सूचिओ तैयार करीने आपवी. भारतीय भाषाओना आदि - अन्त वगेरे जे ते भाषानी लिपिमां नोंधवा, परन्तु संस्कृत हस्तप्रतोना आदि-अन्त वगेरे देवनागरी लिपिमां नोंधवा. १५ १३३ १९४७ थी १९९० सुधी भारतीय हस्तप्रतोनां कुल ३९२ सूचिपत्रो अने तेना कुल ८४८ खण्डो प्रकाशित थया छे. ओक अंदाज अनुसार १९९१ थी २०११ सुधी अंदाजित ५०० जेटला खण्डो प्रकाशित थया हशे . आ सूचिपत्रो अने १९४७ पूर्वेनां सूचिपत्रो वच्चे मुख्य तफावत से जोवा मळे छे के जे केटलाक अपवादो बाद करतां विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावनानो अभाव तथा महत्त्वनी हस्तप्रतो के अप्रकाशित कृतिओ विशे कवचित ज उल्लेखो जोवा मळे छे. जर्मनीना विविध ग्रन्थालयोमां संगृहीत पौर्वात्य हस्तप्रतोना विवरणात्मक अने विस्तृत सूचिपत्रोना प्रकाशननो प्रोजेक्ट १९६२ थी चाली रह्यो छे, जेना ३२ खण्डो प्रकाशित थई चूक्या छे, तथा ब्रिटिश लाईब्रेरी अने इन्डिया ऑफिस लाईब्रेरीना संग्रहनी भारतीय भाषाओनां १५ थी अधिक विवरणात्मक सूचिपत्रो आ समयगाळामां प्रकाशित थयां छे. आ कार्यकाळ दरम्यान जेमणे पाटण, जेसलमेर, खंभात, एल.डी. इन्डोलोजी वगेरेनां सूचिपत्रो तैयार कर्या तेवा प्रखर जैनाचार्य आगम प्रभाकर मुनि पुण्यविजयजी अने प्राच्यविद्याविद् मुनि जिनविजयजीनुं हस्तप्रतोनां सूचिपत्रोना सम्पादन उपरान्त महत्त्वपूर्ण कृतिओना सम्पादन - प्रकाशन क्षेत्रे यशस्वी योगदान रह्युं छे. ओक अन्य मुनि भगवन्त श्रीपद्मसागरजीने पण याद करवा रह्या के जेमणे श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर अन्तर्गत आचार्य श्री कैलाशसागरजी जैन ज्ञानमन्दिरमां बे लाख जेटली हस्तप्रतो अकठी करी अने ८ खण्डोमां अंदाजित ३५००० जेटली हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो प्रगट कर्यां छे. राजस्था प्राच्यविद्या मन्दिर, जोधपुर, वेंकटेश्वर ओरिओन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, तिरूपति, बी. एल. इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डोलोजी, दिल्ही, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नवी दिल्ही, केन्द्रिय संस्कृत विद्यापीठो वगेरे जेवी मोटी विद्वत संस्थाओनी स्थापना आ समयमां थइ अने आ संस्थाओनां सूचिपत्रोना प्रकाशननुं कार्य पण नोंधपात्र रह्युं छे. आ समयनी सौथी मोटी औतिहासिक घटना ए के जेनुं बीज १८६८मां रोपायुं हतुं ते 'नेशनल मिशन फॉर मेन्युस्क्रिप्टस' (२००३) अने इन्दिरा गांधी नेशनल सेन्टर फॉर Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ अनुसन्धान- ५५ आर्ट्स (१९८६)नी नवी दिल्हीमां भारत सरकार द्वारा स्थापना करवामां आवी. आ बने संस्थाओ आ विषयक्षेत्रना उज्ज्वळ भविष्य अर्थे कार्यरत छे. अनओमओम ओ टूंका गाळामां ज प्रथम तबक्कानी हस्तप्रत सर्वेक्षणनी कामगीरी पूर्ण करी अने हवे हस्तप्रतोनां विस्तृत विवरणो मेळववानुं शरु कर्तुं छे. आ उपरान्त मोटी उपलब्धि ओ के ओनलाइन द्वारा १० लाख हस्तप्रतोनुं विवरण सुलभ करी आप्युं अने हस्तप्रतोना संरक्षण, सम्पादन- प्रकाशन, सूचिकरण, डिजिटलाईझेशन वगेरे सम्बन्धी प्रवृत्तिओ सुपेरे सम्पन्न करवा कृतनिश्चयी छे. ६. हस्तप्रत सूचिपत्रोना प्रकार : प्रस्तुत शोधपत्रमां प्रारम्भमां हस्तप्रत सूचिपत्रोना उद्भव अने विकासना विविध तबक्काओनी विस्तृत चर्चा करतां तेना नीचे दर्शाव्या मुजबना प्रकारो उपसी आवे छे. ६. १ हस्तप्रतोनी हस्तसूचि ( Handlist of Manuscripts) हस्तप्रतोनी अमुद्रित यादी. आ ओक सरळ शीर्षक सूचि छे. हस्तप्रतोनी नोंधणीना क्रमानुसार यादी. 'Catalogus Catalogorum' के ‘New Catalogus Catalogorum' तैयार करवा माटे जे संग्रहोनां सूचिपत्रो प्रकाशित न हतां तेवा संग्रहोनी हस्तसूचिओ मेळवीने तेनो उपयोग करवामां आव्यो हतो. आ प्रकारनी सूचिओमां प्रायः कृतिनुं शीर्षक अथवा कृति अने तेना कर्ताना नामनो उल्लेख करवामां आवे छे. ६. २ हस्तप्रत खोज अहेवाल (Manuscript Search Reports ) कोइ ओक प्रदेशना खानगी के संस्थागत संग्रहोमां कई कई हस्तप्रतो संगृहीत छे तेनी सरळ यादी. कवचित महत्त्वपूर्ण हस्तप्रतोनुं विस्तृत वर्णन, कया संग्रहमां हस्तप्रतो प्राप्य छे तेनी विगत, सरकार माटे जो कोई हस्तप्रतो खरीदवामां आवी होय तो तेनी यादी, खोज - प्रवास अने तेनां संस्मरणो वगेरे सम्बन्धी माहितीनो खोज अहेवालमां समावेश करवामां आवे छे. ब्रिटिश शासन दरम्यान १८६८मां हस्तप्रत सर्वेक्षणनी योजना अमलीकृत करवामां आवी हती त्यारे आ प्रकारना सरकारी अहेवालो १८६८ थी १९०० सुधी घणी मोटी संख्यामां प्रकाशित थया छे. आ प्रकारना अहेवालोमां हस्तप्रतोना वर्णननी क्यांय ओकरूपता जोवा मळती नथी. अर्थात क्यांक अति विस्तृत तो क्यांक Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ १३५ सूचनात्मक माहिती नोंधवामां आवी छे. उदा. तरीके राजा राजेन्द्रलाल मित्राओ तैयार करेल अहेवाल Notices of Sanskrit Manuscripts (११ खण्ड) वर्णनात्मक सूचिकरणनो उत्तम नमूनो पूरो पाडे छे, ज्यारे तेमनो ज ओक अन्य अहेवाल A report on on Sanskrit mss. in native libraries (1875) के जेमां ढाका, बर्दवान, नडिया, हुगली अने २४ परगणाना जिल्लाओना सर्वेक्षणनो समावेश करवामां आव्यो छे, तेमां सरकार माटे खरीदवामां आवेल ६५६ हस्तप्रतोनी सरळ वर्गीकृत यादी तथा हस्तप्रतविद्या अने खोज अहेवाल सम्बन्धी संक्षेपमा माहिती आपवामां आवी छे. हस्तप्रतोना वर्णननी दृष्टिले आ बंने अहेवालो वच्चे मोटी खाई छे. आ बधा खोज अहेवालोनं जैतिहासिक महत्त्व ओ छे के कोई हस्तप्रत ओक समये अमुक संग्रहमां अस्तित्वमा हती, ते हवे छे के स्थानान्तरित थइ गइ ? आ नष्टप्राय थइ गइ ? उदा. तरीके पीटर पीटरसनना अहेवालमां पाटणमां फोफळियाना पाडाना भण्डारनी हस्तप्रतोनुं वर्णन करवामां आव्युं छे. आ अहेवालमा उल्लिखित पैकीनी केटलीक हस्तप्रतो आजे प्राप्य नथी. आ प्रकारनी स्थिति घणी जग्याओ जोवा मळे छे. ६.३. सरळ सूचि (Simple List) हस्तप्रतने ओळखवा माटे आवश्यक विगतो जेम के कर्ता, शीर्षक, टीकाकार, लिपि, लहियानुं नाम, लेखन समय वगेरेनो समावेश न करतां फक्त शीर्षक सूचि के कृतिना कर्ताना नाम साथेनी विषयोना वर्णानुक्रममां के नोंधणी क्रमानुसारनी सूचि. उदा. तरीके (१) Selective list of Sanskrit Manuscripts in Ahmednager College Library. In : Ahmednager College Library Quarterly 1952, p. 13-20 (2). List of Pali Manuscripts in the Copenhagen Royal Library. JPTS. 1883 p. 147-149. ६.४ वर्णानुक्रम सूचि ( Alphabetical Catalogue) हस्तप्रतोनां शीर्षकोना वर्णानुक्रममां तैयार करवामां आवेली सूचि. आ प्रकारनी सूचिमां प्रत्येक हस्तप्रतनी मुख्य मुख्य विगतो जेमां शीर्षक, कर्ता, टीकाकार, लिपि, समय, पूर्ण के अपूर्ण, फोलियो संख्या वगेरे कोठाओमां विभाजित करीने आपवामां आवे छे. उदा. तरीके (1) An Alphabetical Index of Sanskrit Manuscripts in the Government Oriental Manu Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-५५ script Library, Madras. 3 Vols. 1938-1942. कवचित कर्ताओना वर्णानुक्रममां पण सूचिओ तैयार करवामां आवे छे. आ प्रकारनी सूचिओमां जे ते कर्ताना नामनी साथे तेनी कृतिओनी यादी आपवामां आवे छे. उदा. cetats Author Index of Tamil Manuscripts in the GOML, Madras 1936. ६.५ सामान्य सूचनात्मक सूचिपत्र (General Informative Catalogue) सामान्यतः प्रमुख विषयो हेठळ विभाजित करीने शीर्षकना वर्णानुक्रममां अथवा नोंधणी क्रमांक अनुसार प्रत्येक हस्तप्रतनी केटलीक मुख्य विगतो कोठाओमां विभाजित करीने आपवामां आवे छे. अन्त भागमा सामान्यतः कोई सूचि पण आपवामां आवती नथी. उदा. तरीके १. श्री फार्बस गुजराती सभाना हस्तलिखित ग्रन्थोनी नामावलि/सम्पा. अंबालाल बुलाखीराम जानी १९५६. आ सूचिपत्रमां कोई सूचि पण आपी नथी. २. श्रीजैनग्रन्थावली (१९०९). ६.६ कोठागत वर्णनात्मक सूचिपत्र (Descriptive Catalogue in Tabular Form) १९६१ थी प्रगट थतां सूचिपत्रो आगळ उपर हस्तप्रतोना सर्वेक्षण अने सूचिपत्रो अन्तर्गत स्वतन्त्र्योत्तरकाळमां दर्शाव्या अनुसार भारत सरकारनी योजना अनुसार प्रगट करवामां आवी रह्यां छे. ओरिओन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, मैसूरनां १९७८ थी प्रगट थतां सूचिपत्रो आ प्रकारर्नु उत्तम उदाहरण छे. केटलीक संस्थाओनां सूचिपत्रोमां कोठामां वर्गीकृत माहिती उपरान्तनी बधी ज माहिती पूरी पाडवा तरफ खास ध्यान आपवामां आवतुं नथी. उदा. तरीके Descriptive Catalogue of Manuscripts in L. D. Institute of Indology Vol. 5 and 6 मां पसंदगीनी प्रतोना आदि-अन्त आपवामां आव्या नथी. घणां सूचिपत्रोमां क्वचित मात्र शीर्षक सूचि तो क्वचित मात्र कर्ता सूचि आपवामां आवेली छे. ६.७ विवरणात्मक सूचिपत्र (Descriptive Catalogue) प्रत्येक हस्तप्रतनी उपरना प्रकारमां दर्शाव्या अनुसारनी भौतिक माहिती उपरान्त हस्तप्रतोनो आदि-अन्त-प्रशस्ति, कृतिना महत्त्वपूर्ण अंशो, कर्ता विशे Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ नोंध, कृति प्रकाशित के अप्रकाशित, वैविध्य सूचिओ वगेरे सम्बन्धी विस्तृत माहिती वर्णनात्मक स्वरूपमां आपवामां आवे छे. उदा. तरीके India Office Library के जर्मन स्टेट लाईब्रेरीनुं अ. वेबर (१८५३) द्वारा तैयार करेल केटलोग आ प्रकारनां उत्तम उदाहरणो छे. युरोपनां बधां ज सूचिपत्रो तथा ओशियाटिक सोसायटी, भण्डारकर इन्स्टिट्यूट, पूना, प्राच्यविद्या मन्दिर, वडोदरा वगेरेनां सूचिपत्रो आ प्रकारनां उदाहरणो छे. सूचिपत्रना अन्तमां विविध सूचिओ पण आपवामां आवे छे. १३७ ६.८ संघसूचि (General Register of works and Authors) कोई क कृति के कर्तानी कृतिओनी हस्तप्रतो क्यां क्यां (अंगत के संस्थागत संग्रहोमां) संगृहीत छे तेनी माहिती दर्शावतुं सूचिपत्र ते संघसूचि. सौ प्रथम Theodor Aufrecht नुं Catalogus Catalogorum (1891-1903) आपणने मळे छे. त्यारबाद के . का. शास्त्री सम्पादित गुजराती हाथप्रतोनी संकलित सूचि (१९३९), ओच. वेलणकर कृत जिनरत्नकोश (१९४४), वी. राघवन वगेरे द्वारा संपा. New Catalogus Catalogorum (1949 - ....), Catalogus Catalogrorum of Bengali Manuscripts (1978) वगेरे आ प्रकारनां उत्तम उदाहरणो छे. कोई कृतिनी चिकित्सक आवृति तैयार करवा माटे ते कृति क्यां क्यां संगृहीत छे ते जाणवा माटेनो आ ओक उत्तम स्रोत छे. साथे साथे तेनी प्रकाशित आवृत्तिओनी माहिती पूरी पाडवामां आवती होवाथी संशोधको माटे आ ओक महत्त्वपूर्ण स्रोत बनी रहे छे. आ प्रकारनी सूचिमां कृति अने कर्ताना वर्णानुक्रममां अधिकरणो गोठववामां आवे छे तेमज कृति के कर्ता विशे आवश्यकतानुसार माहिती पण आपवामां आवे छे. ७. उपलब्ध सूचिपत्रोनी वास्तविकताओ : ७.१ हस्तप्रत सूचिकरण माटेनी नियमावलि के चोक्कस मार्गदर्शन के सूचिपत्रो विविध प्रकारना उपभोक्ताओने उपयोगी थई शके तेवी दुरंदेशितापूर्ण दृष्टिना अभावना कारणे जे ते समयनी परिस्थिति अने आवश्यकताने ध्याने लई सूचिपत्रो अस्तित्वमां आव्यां छे. आ विचार साथे सुसंगत तेमज भारतीय अने विदेशीओ द्वारा तैयार करवामां आवेलां सूचिपत्रो वच्चे मोटा तफावतना सम्भवित कारण सम्बन्धी जर्मन पौर्वात्यविद् K. L. Janert नुं सुचिन्तनीय Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ अनुसन्धान-५५ अवलोकन ध्यानार्ह बनी रहे छ : “Since there has never been a continuous development in Cataloguing the manuscript collections with all the complex problems that they offer catalogues compiled at one and the same period often present the greatest variety of individual attitude and methods... The reason for the extreme variety between catalogues as in the basic assumptions of even contemporary editors can certainly be in part explained by the peculiar nature of the problem. In India, for example, the different manuscript collections could be catalogued only by means of team-work organized by one or two principal or compilers. With regard to the relatively smaller European collections, on the other hand, successive scholars were frequently expected to master a collection anew, so that the end-product rarely reflected the personal transmission and continuity of technical experiences previously acquired."१६ ७.२ भारत सरकारे १९६१मां हस्तप्रतोना सूचिकरण माटे अपनावेल नीतिनो चुस्त रीते अमल जोवा मळतो नथी. अटले के कोठागत माहिती सिवाय अलभ्य, महत्त्वपूर्ण के अप्रकाशित हस्तप्रतो माटे आदि-अन्त-प्रशस्ति, कृतिना केटलाक अंशो, टीकात्मक नोंध के वैविध्यपूर्ण सूचिओनो समावेश बहु ओछो जोवा मळे छे. ७.३ सूचिपत्रमा हस्तप्रतना पूर्व व्यक्ति के संस्था मालिक सम्बन्धी विगतोनो प्रायः अभाव होय छे अर्थात् हस्तप्रतना स्थानान्तरणनो यथासम्भव इतिहास दर्शाववो जोइओ. ७.४ सूचिकारो समक्ष सूचिपत्रोनो मुख्य उपभोक्तावर्ग कृतिना खोजकर्ताओ के जेमने फक्त कृतिमां रस छे ते रह्यो छे. आ प्रकारना उपभोक्ताओ कृति शोधवा माटे जे जे आलम्बनोनो सहारो ले ते आधारे सूचिओ बनावी छे. आ सूचिओमां चित्रकार, चित्रकलाना इतिहासकार, लिपिविदने खपमा लागे तेवी रीते हस्तप्रतोनां विवरण आपवामां आव्यां नथी. आ ओक सौथी मोटी उणप छे. ७.५ सूचिपत्रोनुं महत्त्व ध्याने लेतां भारतीयविद्यानी संस्थाओ, संस्कृत युनिवर्सिटीओ, देशनी प्रमुख युनिवर्सिटीओनां ग्रन्थालयो, राष्ट्रीय ग्रन्थालय वगेरेमां भारतीय हस्तप्रतोनां बधां ज सूचिपत्रो संगृहीत होवां जोइओ. परन्तु आजे Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ देशमां अक पण ग्रन्थालय नथी के जेमां कुल प्रकाशित सूचिपत्रोनां ६०% सूचिपत्र प्राप्य होय. सूचिपत्रोनी दृष्टि समग्र देशमां Central Secretariat Library, New Delhi सौथी वधु समृद्ध संग्रह धरावे छे. ओक ग्रन्थालयी तरीके अनुभव्युं छे के अध्यापको सूचि खरीदीमां भाग्ये ज रस दर्शावे छे. १९४७ पूर्वे भारतीयविद्याना प्रतिभासम्पन्न विद्वानोओ सूचिओ तैयार करी हती, ज्यारे स्वतन्त्रता बाद मुनि पुण्यविजयजी, मुनि जिनविजयजी, मुनि जंबुविजयजी जेवा थोडाक अपवादो बाद करतां प्रायः व्यवसायी सूचिकारोओ सूचिओ बनावी छे. संस्थाओना वडाओ प्रत्यक्ष रीते आ कार्यथी प्रायः अळगा रह्या छे. आम छतां, वास्तविक सूचिकर्ताओनां नाम सूचिपत्रोनां शीर्षकपृष्ठ उपर भाग्ये ज जोवा मळे छे. ७.६ १३९ ७.७ पाश्चात्त्य पौर्वात्यविदोनुं हस्तप्रत सर्वेक्षण, सम्पादन अने सूचिनिर्माणमां घणुं मोटुं प्रदान रह्युं छे. ८. भारतीय हस्तप्रतोनां सूचिपत्रो : आंकडाकीय परिप्रेक्ष्यमां : केन्द्रिय सचिवालय ग्रन्थालय, नवी दिल्हीमां मारा कार्यकाळ (१९७९१९९१) दरम्यान आ लेखक अने ग्रन्थालयना तत्कालीन डायरेक्टर श्री एस.सी.बिस्वास द्वारा भारतीय हस्तप्रतोना वाङ्मयसूचिगत सर्वेक्षणनो प्रोजेक्ट INTACH ना आर्थिक सहयोगथी वर्ष १९८४ थी १९९० दरम्यान हाथ धरवामां आव्यो हतो. आ प्रोजेक्टना उपक्रमे अमारा द्वारा “ Bibliographic Survey of Indian Manuscript Catalogues : Being a Union List of Manuscript Catalogues " तैयार करवामां आव्युं, जेनुं प्रकाशन Eastern Book Linkers, New Delhi द्वारा १९९८मां करवामां आव्युं हतुं. आ प्रोजेक्ट अन्वये अमे ६९ थी अधिक भारतीयविद्या संस्थाओ, युनिवर्सिटीओ, राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठो, राष्ट्रिय ग्रन्थालय वगेरेनां ग्रन्थालयोनी रुबरु मुलाकात लइने भारतीय हस्तप्रतोनां केटलोग्सनी सटिप्पण ( annotated) वाडमयसूचि अने संघसूचि तैयार करी. प्रस्तुत सूचिना आधारे भारतीय हस्तप्रतोनां सूचिपत्रोनी रसप्रद आंकडाकीय विगतो नीचे मुजब छे. → प्रथम ज्ञात प्रकाशित सूचिपत्रना वर्ष १७३९ थी १९९० सुधी प्रकाशित भारतीय हस्तप्रतोनां सूचिपत्रोनी कुल संख्या : ८४८ (कुल खण्ड १७०८) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० [D] अप्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या : २५६ कुल मुद्रित पृष्ठ संख्या : अंदाजिक ३.५० लाख → ८४८ प्रकाशित सूचिपत्रो पैकी विदेशोमां प्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या : ३२५ → विदेशोमां प्रकाशित सूचिपत्रो पैकी भारतमां अनुपलब्ध : ८८ → प्रकाशित सूचिपत्रो पैकी जर्नल्समां प्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या : ११० → विविध ग्रन्थमाळाओ (Series) हेठळ प्रकाशित सूचिपत्रोना खण्डो : ८७ प्रस्तुत वाडमयसूचिमां समाविष्ट ११०४ सूचिपत्रो पैकी जेमनी प्रत्यक्ष चकासणी थई शकी नथी तेवां अर्थात् अन्य स्रोतोना आधारे नोंधेल सूचिपत्रोनी संख्या : १८७ अनुसन्धान- ५५ → New Catalogus Catalogorum तैयार करवा माटे उपयोगमां लेवामां आवेल सूचिपत्रोनी संख्या : प्रकाशित सूचिपत्रो अप्रकाशित हस्तसूचिओ : २३० १६८ ३९८ → सौथी वधु हस्तप्रतोनां विवरणात्मक सूचिपत्रो प्रकाशित करनार केटलीक संस्थाओ : — राजस्थान प्राच्य विद्यामन्दिर, जोधपुर सूचिकरण करेल संस्कृत - प्राकृत हस्तप्रतो ५३००० प्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या २४ सूचिकरण करेल हिन्दी, राजस्थानी २५००० प्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या १३ वगेरे ३७ ७८००० ओरिओन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, मैसूर सूचिकरण करेल संस्कृत हस्तप्रतो ५२३१९ प्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या १७ सरस्वती भण्डार, सम्पूर्णानन्द संस्कृत युनिवर्सिटी, बनारस सूचिकरण करेल संस्कृत हस्तप्रतो ४६६९१ प्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या १२ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई २०११ १४१ - गवर्मेन्ट ओरिओन्टल लाईब्रेरी, मद्रास सूचिकरण करेल संस्कृत, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड, मराठी अने उडिया हस्तप्रतोनी संख्या : ४६३७२ हस्तप्रतोनां प्रकाशित सूचिपत्रोनी संख्या : १४९ । भारतीय हस्तप्रतोनुं ज्ञात प्राचीनतम मुद्रित सूचिपत्र Catalogus codicum manuscriptorum Bibliothecase regiae. Tomus primus, secundus, tertius, quartus. Paris : Typographia regia, 1739-1744. (Tome 1 : Appendix prior pp. 434-448 : Codices indici with short discriptions of 287 mss. by Stephan Fourmont). । भारतीय हस्तप्रतोनुं प्राचीनतम ज्ञात अमुद्रित सूचिपत्र Brhattippanikanamapracinajainagranthasuci. In : Jaina Sahitya Samsodhaka Parisista, 1(2), 1-16. Classified list of 653 mss., with date and number of folios. । कालक्रम प्रमाणे सूचिपत्रोनुं विभाजन वर्ष शीर्षक कुल खण्डो वर्ष १७३९ थी १८६८ ४६ ५१ वर्ष १८६९ थी १९०० १५३ वर्ष १९०१ थी १९४७ २५६ ५५९ वर्ष १९४७ थी १९९० ८४८ २५० ३९२ ८४८ १७०८ । भाषा प्रमाणे विभाजन : ११०४ सूचिपत्रोमां वर्णित हस्तप्रतोनी भाषावार संख्या - संस्कृत, प्राकृत हस्तप्रतो : ८२९६५३ - पालि : २०५० - आधुनिक भारतीय भाषाओनी हस्तप्रतो : २२१०२० Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ अनुसन्धान-५५ (हिन्दी, राजस्थानी वगेरे ८७४१२, तमिल ३९६६६, गुजराती १६१२१, कन्नड १३८१८, मलयालम ११८१५, उर्दू, हिन्दुस्तानी १००२९, मराठी ६५५२, बंगाळी ४९१५, तेलुगु ९२१६, असमिया ७७८, सिंधि ३१, पंजाबी ४१०७, उडिया १८२६ अने कश्मीरी १२) - तिबेटन-१३६४, सिंहाली-१३१७, अरबी-७७८, पशियन-१४७२२, अंग्रेजी-७, बमि-४४, तुर्की-२०. सन्दर्भसूचि 1. Biswas, S.C. and M. K. Prajapati 'Preface', Bibliographic Survey of Indian Manuscript Catalogues, New Delhi : Eastern Book Linkers, 1998. 2. Quoted by Dorothy K. Coveney, 'The Cataloguing of Literary Manu scripts.' The Journal of Documentation VI (3), Sept. 1950 : 125-139. 3. Covney, Dorothy K. 'The Cataloguing of Literary Manuscripts' The Journal of Documentation. VI (3), Sept. 1950 : 125-139. 4. राही, ईश्वरचन्द, लेखनकलाका इतिहास, खण्ड-१ : १९८३, ७४. 5. Jackson, Sidney L. Libraries and Librarianship in the West, 1972. 2. 6. Sarma, K. V. 'New Lights on Manuscriptology. Ed. Siniruddha Dash. Adyar, Chennai : SSESRC, 2077. 233-234. 7. पुण्यविजयजी मुनि. भारतीय जैन श्रमणसंस्कृति अने लेखनकला. अमदावाद : श्रुतरत्नाकर, २०१० (पुनःमुद्रण). १०१ 8. Singh, S. P. Library Cataloguing and Classification. New Delhi : Omega, 2008.1 9. Hanson Eugene R. and Jay E. Daily. 'Catalogs and Cataloguing : History'. Encyclopedia of Library and Information Sciences. 3rd Ed. 2010.820. 10. Quated by Beth M. Russell. "Cataloguing in Medieval Libraries.' En cyclopedia of Library and Information Sciences Vol. 69 Ed. Allen Kent. New York : Marcel Dekkar, 2001. 29. 11. Quoted by Eugene R. Hanson and Jay E. Daily. Ref. 9.821 12. Belvalkar, S. K. 'Foreword.' Descriptive Catalogue of the Government Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मई 2011 143 Collections of Manuscripts Deposited at the Deccan College, Poona, Vol. I Bombay: Government of Bombay, 1917. XIII-XIV. 13. Ibid. 17 14. Ibid. 19 15. Raghavan, V. Manuscripts, Catalgoues, Editions, Madras : Bharati Vijayam Press [Printer), 1963. 99-102 16. Janert, K. L. 'Intoduction', An Annotated Bibliography of the Catalgoues of Indian Manuscripts, Part I, Wiesbaden : Franz Steiner Verglag, 1963.9-10 (राष्ट्रीय हस्तप्रत मिशन, नवी दिल्हीना उपक्रमे संस्कृत सेवा समिति द्वारा श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर अने संस्कृत अने भारतीय विद्या विभाग, हेमचन्द्राचार्य उत्तर गुजरात युनिवर्सिटी, पाटणना सहयोगमां ता. 29 मार्च, २०११ना रोज आयोजित 'तत्त्वबोध व्याख्यान' माळा हेठळ आपेल वक्तव्य.) डायरेक्टर ऑफ पब्लिकेशन कडी सर्व विश्वविद्यालय, गांधीनगर आवरणचित्र-परिचय 400 वर्ष पुराणा काष्ठ-चित्रपटना एक अंशनी आ छबी छे. आ चित्रमा शालिभद्र अने धन्नाजीना जीवनप्रसङ्गोनुं आलेखन थयुं छे. सम्भवतः राजस्थानी शैली चित्राङ्कन छे. एक स्थाने कचरापट्टीमां तूटीफूटी हालतमां पडेल आ काष्ठफलक, हाल तीथल (वलसाड)ना 'श्रीआदिनाथ जैन कलामन्दिर'मां प्रस्थापित छे.