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मई २०११
नथी. मध्यकालीन समयमां गुजरातीमां रचायेल 'वसन्तविलास' पण अज्ञातकर्तृत्ववाळी कृति छे. आ प्रकारनी असंख्य कृतिओना कर्तृत्वनो प्रश्न आजे पण उकेली शकायो नथी. आ ज रीते केटलाक कर्ताओ कृतिमां कर्ता तरीके पोतानुं नाम दर्शावे छे, परंतु नाम सिवाय अन्य कोई माहिती आपता नथी. परिणामे समाननामधारी कर्ताओनी कृतिओनुं सूचिकरण करतां कया कर्ताना नामे आ कृति नोंधवी ते अक मोटो प्रश्न बनी रहे छे. कर्ता पोताना मातापिता, जन्मस्थळ, समय, पोताना गुरु के आश्रयदाता राजा वगेरेनो उल्लेख करे तो ते कर्ताने सरळताथी अन्य समाननामधारी कर्ताओथी अलग तारवी शकाय. प्राचीन भारतीय सर्जकोमां आ प्रकारना औतिहासिक अभिगमना अभावना कारणे केटलाक पाश्चात्त्य अने भारतीय विद्वानो ' भारतीयोमां औतिहासिक दृष्टिनो अभाव छे' तेवां म्हेणां मारतां खचकाता नथी. आ सम्बन्धी Theodor Aufrecht से ‘Catalogus Catalogorum'ना प्रथम खण्डमां नोंध्युं छे के Lack of interest in historical truth in India is so great, that difficulties meet the enquirer at every stage.
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४.२ आरोपित कृतित्व :
अर्थात् attributed authorship से पण ओक मोटी समस्या छे उदा. तरीके महर्षि वेदव्यासना नामे असंख्य कृतिओनुं कर्तृत्व आरोपित छे. आ बधी कृतिओनो साचो कर्ता कोण ? अन्यना नामे पोतानी कृति चढाववा पाछळनी घेलछा पाछळ बे मुख्य कारणो जवाबदार छे : प्रथम तो प्रसिद्ध कर्ताना नामे पोतानी कृति प्रसिद्धि पामशे अने बीजुं न्योछावर भावना.
४. ३ भाषा अने लिपिनी वैविध्यता :
भारतीय हस्तप्रतो अनेकविध भाषाओ अने लिपिओमां लखायेली छे. आ बधी हस्तप्रतो भाषाना सीमाडाओ बहारना संग्रहोमां पण संगृहीत होवाथी परप्रान्तीय भाषाज्ञान के लिपिज्ञानना अभावे आ प्रकारनी हस्तप्रतो सूचि थया वगर पडी रहे छे. सूचिकार बधी ज भाषाओ के लिपिओ न पण जाणतो होय त्यारे स्वाभाविक छे के आ प्रकारनी हस्तप्रतोनुं सूचिकरण करवुं कठिन बने छे. उदा. तरीके पाटणना हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिरमां दक्षिण भारतीय लिपिओनी केटलीक प्रतोनी सूचि थई शकी नथी.