Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुयगडांग सूत्र ॥श्री आगम-गुण-मञ्जूषा॥ ॥श्री.मागम-गुण-४५।।। 11 Sri Agama Guna Manjusa 11 (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS555555555555555555555555555 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 555555555555555555555555555QUOTE | ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय | ११ अंगसूत्र के जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यत: धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको शत्रुजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती 5 कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। है। श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान में विद्यमान है । १८० श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त मुख्य विषय रहा है। करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी मे भी है । कुलमिला के इसके २०० श्लोक है। संग्रहग्रंथ है । एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया मे उपलब्ध है। धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र (भगवती सूत्र) :- यह सबसे बडा सूत्र है, इसमे ४२ १२ उपांग सूत्र शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ मे प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है । इस मे चंपानगरी किया है। प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुइ है। चारो अनुयोगो कि बाते का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। श्री राजप्रश्नीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है। २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। १७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको Gorak45555555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा G555555555555555555555555555555ory OG5555555555555555555555555555555555555555555555553535959595959OLICE Gan Education Interna rnww.iainelibrary.orp) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३) श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है। जीव और अजीव के बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताई है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पन्नवणासूत्र के ही पदार्थ है। यह आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४) श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है। इसमे ३६ पदो का वर्णन है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। ५) ६) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, २२०० श्लोक है। ७) श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है । ६ आरे के स्वरूप बताया है । ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। ९) ८) श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे गये उसका वर्णन है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्मकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है। चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। १२) श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली परचक भी कहते है। दश प्रकीर्णक सूत्र १) श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है । २) श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना और मृत्युसुधार ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार ( १ ) भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है । ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन है । इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। ७) श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने में समजाया गया है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित अन्य बातों का वर्णन है। १०) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। MO६५६६५६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ श्री आगमगुणमंजूषा H Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KGRO १०C) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबंधित बड़े ग्रंथो का सार है। उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। छह छेद सूत्र (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है। अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि से करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। चार मूल सूत्र १) श्री दशवैकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए र तिवाक्या व, विवित्तचरिया नाम से दी हैं। इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। २) श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। International 2010 03. 乐乐乐乐乐乐出乐城 ३) श्री निर्युक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ निर्युक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं। पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताई हैं । ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं । ४) श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बड़े सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रातः एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ श्री आगमगुणमंजूषा I २) श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गई है। अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पडती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम् ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********** IV Six Cheda-sūtras ********** (2) Nisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-sutra, YU MUNU AM VIÀO QUN ********¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶ (1) Vyavahara-sutra, (3) Mahānisitha-sutra, (5) Daśāśruta-skandha-sūtra and (6) Bṛhatkalpa-sūtra. These Chedasûtras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. V Four Malasitras (1) Daśavaikalika-sutra: It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Cūlikäs called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthulabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahāvideha region and received four Culikās. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra: It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Pifaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. (4) Avasyaka-sutra: It is the most useful Agama for all the four groups 2010 03 of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are (1) Samayika, (2) Caturvimśatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kayotsarga and (6) Paccakhāṇa. VI Two Culikäs (1) Nandi-sütra: It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirthankaras and 11 Gaṇadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Ślokas. (2) Anuyogadvara-sutra: Though it comes last in the serial order of the 45 Agamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 Ślokas. ¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶__¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TORS%%%%%%%%%%%%%%% mrtual stau历勇%%%%%%步步步步步勇勇55520图 આગમ ૨ દ્રવ્યોનુયોગ પ્રધાન સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર - ૨ અન્યનામ : સૂયગડ, સૂતગડ, સૂત્તકડ. શ્રુતસ્કંધ --- અધ્યયન ----- --------- ૨૩ ઉદ્દેશક --- પદ - - - - - - ૩૬,૦૦૦ SEC%%%%%%%%%%%%%%% - ૨૧૦૦ શ્લોક પ્રમાણ ઉપલબ્ધ પાઠ ---- ગદ્યસૂત્ર - - - - - - પદ્ય - - - - - - - - - - - - - - - ૮૫ - - - - - - ૧૭૧૯ પ્રથમ વ્યુતરકંધ અધ્યયન ---- ૧૬ ઉદ્દેશક ----- ગદ્યસૂત્ર ---- પદ્યસૂત્ર ---- ૬૩૧ દ્વિતીય મુતરકંધ અધ્યયન ---- ૭ ઉદ્દેશક ----- ગળસૂત્ર ---- ૮૧ પઘસૂત્ર ---- ૮૮ %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% પ્રથમ શ્રુતસ્કન્ધઃ (૧) અધ્યયન સમય પહેલા ઉદ્દેશકમાં પરિગ્રહના સર્વથા ત્યાગથી મુક્તિ, બંધન તોડવા માટેની પ્રેરણા, હિંસાથી વૈરની વૃદ્ધિ, આત્માદ્વૈતવાદ, દેહાત્મવાદ, અકારક વાદ, આત્મષષ્ઠવાદ, અકલવાદ અને વાદીઓના નિષ્ફળ જીવનની વાતો જણાવી છે. બીજા ઉદ્દેશકમાં નિયતિવાદ, અજ્ઞાનવાદ્ધ, જ્ઞાનવાદ અને ક્રિયાવાદનીવાતો જણાવી છે. ત્રીજા ઉદ્દેશકમાં આધાકર્મ આહારનો નિષેધ, વિ. મુનિપણાના આચારની સારી સમજણ આપી છે. જગત્કર્તુત્વવાદ, વૈરાશિકવાદ, અનુષ્ઠાનવાઇની વાતો છે. ચોથા ઉદ્દેશકમાં પરિગ્રહધારી શ્રમણોથી દૂર રહેવું અને અહિંસા, કષાયજય, પાંચ સમિતિ, પાંચ સંવરની વાતો જણાવી છે. C ICE F શ્રી માગમગુમખૂણા - 5 FF Mk¥ÉÉHF Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ છ૭%ષક “સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ FિF FFFFFF% RCA蛋蛋乐乐玩玩乐乐蛋蛋乐乐乐美乐乐乐玩玩乐乐听听听听听国乐乐乐明明乐乐乐明明玩玩玩乐乐乐乐乐格式 (૨) અધ્યયન: વેતાલીય (૧૦) અધ્યયન : સમાધિ પહેલા ઉદ્દેશકમાં માનવભવની દુર્લભતા, આયુષ્યની અનિત્યતા જણાવી અંતે આના એક ઉદ્દેશકમાં ધર્મશ્રવણની પ્રેરણા અને અંતે જન્મમરણની આશાને મોહવિજયની વાત કરી છે. જનાર તેમજ સમભાવ રાખનાર મુક્ત થાય છે તે વાત જણાવી છે. બીજા ઉદ્દેશકમાં નિંદાનો નિષેધ, પરિગ્રહનો નિષેધ, મદનો નિષેધ, મમત્વનો નિષેધ (૧૧) અધ્યયન : માર્ગ જણાવી અંતે મુક્તિમાર્ગની વાત જણાવી છે. આના એક ઉદ્દેરાકમાં મોક્ષમાર્ગ માટે પ્રશ્ન અને અંતે જીવનપર્યત શુદ્ધ આહાર ત્રીજા ઉદ્દેશકમાં સંવર અને નિર્જરાથી મુક્તિ, સ્તુતિપૂજાનો નિષેધ જણાવી અંતે લેવાનો ઉપદેશ છે. ભગવાનની અને એના અનુયાયીઓની સમાન પ્રરૂપણાની વાત કહી છે. (૧૨) અધ્યયન : સમવસરણ. (૩) અધ્યયન : ઉપસર્ગ આના એક ઉદ્દેશકમાં ચાર વાદ (૧) અજ્ઞાનવાદી, (૨) વિનયવાદી, (૩) પહેલા ઉદ્દેશકમાં પ્રતિકૂળ ઉપસર્ગ, અપ્રિયવાદી અને (૪) શૂન્યતાવાદીની વાત જણાવી અંતે અનાસક્ત રહેવાનો ઉપદેશ છે. બીજા ઉદ્દેરાકમાં અનુકૂળ ઉપસર્ગ, (૧૩) અધ્યયન : યથાતથ્ય ત્રીજા ઉદ્દેશકમાં પરવાદિ વચનોની વિસ્તૃત વાત અને આના એક ઉદ્દેશકમાં શીલ અને અશીલનું રહસ્ય અને અંતે હિંસા અને માયાના ચોથા ઉદ્દેશકમાં યથાવસ્થિત અર્થપ્રરૂપણાની વાત કહી છે, ત્યાગની વાત જણાવી છે. કે (૪) અધ્યયન : ચીપરિશા (૧૪) અધ્યયન : ગ્રંથ આ અધ્યયનના બંને ઉદ્દેશકોમાં સ્ત્રી પરીષહનું વિસ્તૃત વર્ણન કર્યું છે. આના એક ઉદ્દેરાકમાં અપરિગ્રહ, બ્રહ્મચર્ય, આજ્ઞાપાલન અને અપ્રમાદનો ઉપદેશ (૫) અધ્યયન : નરકવિભક્તિ આપી અંતે સૂત્રનું શુદ્ધ ઉચ્ચારણ તેમજ યથાર્થ અર્થ કરવાવાળા તપસ્વીને ભાવસમાધિ * પહેલા ઉદ્દેશકમાં નરકની વેદના અને બીજા ઉદ્દેશકમાં પાપી જીવો ચાર ગતિમાં પ્રાપ્ત થાય છે તે જણાવ્યું છે. ભ્રમણ કરે છે તે વાત જણાવી છે. (૧૫) અધ્યયન : આદાન (૬) અધ્યયન : વીરસ્તુતિ આના એક ઉદ્દેશકમાં દર્શનાવરણીયના ક્ષયથી ત્રિકાળજ્ઞાન અને અંતે રત્નત્રયીની ને તેના એક ઉદ્દેશકમાં ભગવાન મહાવીરના ગુણાનુવાદ અને ઉપમાયુક્ત વિસ્તૃત વર્ણન આરાધનાથી ભવભ્રમણના અટકવાની વાત જણાવી છે. (૧૬)અધ્યયન : ગાથા (૭) અધ્યયન : સુશીલ પરિભાષા આના એક ઉદ્દેશકમાં અણગારના ચાર પર્યાય- (૧) માહણ, (૨) શ્રમણ તેના એક ઉદ્રાકમાં હિંસક માણસ જે જીવોની હત્યા કરે છે એ જીવયોનિમાં ઉત્પન્ન (૩) ભિક્ષુ અને (૪) નિર્ચન્ય ની વ્યાખ્યાઓ કરી છે. થઈને વેદના ભોગવે છે. તે વાત જણાવી છે. અંતે રાગદ્વેષથી નિવૃત્ત થઈ ઉપસર્ગ સહન કરી દ્વિતીય શ્રુતસ્કંધ મોક્ષપ્રાપ્તિની વાત જણાવી છે. (૧)અધ્યયન : પુંડરીક (૮) અધ્યયન : વીર્ય આના એક ઉદ્દેશકમાં પુષ્કરિણી (વાવ) માં અનેક કમળોના મધ્યમાં પદ્મવર * આના એક ઉદ્દેશકમાં વીર્યના બે ભેદો- બાલવીર્ય અને પંડિતવીર્યની વાત પંડરીક (કમળ) ના દષ્ટાંતથી કર્મ-જીવ-વિષય-ધર્મ વગેરે સમજાવીને અંતે શ્રમણના જણાવી છે. ૧૪ (ચૌદ) પર્યાયો બતાવ્યા છે. (૯) અધ્યયન : ધર્મ (૨) અધ્યયન : ઢિયાસ્થાન આના એક ઉદ્દેશકમાંધર્મના સ્વરૂપની પૃચ્છા, ઉપદેશ અને અંતે મોક્ષપર્યંત કષાયના આના એક ઉદ્દેશકમાં બે પ્રકારના સ્થાન (૧) ધર્મસ્થાન અને અધર્મસ્થાન તેમજ ત્યાગની વાત જણાવી છે. (૨) ઉપરાંત સ્થાન અને અનુપરાંત સ્થાન, ૧૩ (તેર) કિયાસ્થાનની વાત જણાવી BO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明%2C O k E F હૈ માગમમનૂપા - ૬ ૬ ૬ ૬ * * * * * * F = C "C) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LOAD%%%%%%%%% %%%%%%% Amyrtual outuld hhhhhhhhh55%%%%%% છે અંતે ૧૨ (બાર) ક્રિયાસ્થાન સેવનારાઓનું ભવભ્રમણ અને તેરમું ક્રિયા સ્થાન સેવનારની સિદ્ધિગતિની વાત જણાવી છે. (૩)અધ્યયન : આહાર પરિજ્ઞા આના એક ઉદ્દેશકમાં ચાર પ્રકારના બીજ- વનસ્પતિઓની ઉત્પત્તિઓનું કારણ અને અંતે સર્વ પ્રાણભૂત જીવ અને સત્ત્વના જ્ઞાતા મુનિ ગુણોના ધારક બને છે એ વાત જણાવી છે. (૪) અધ્યયન : પ્રત્યાખ્યાન આના એક ઉદ્દેશકમાં અપ્રત્યાખ્યાની આત્મા દ્વારા હંમેશાં પાપકર્મોનું ઉપાર્જન થાય છે તે જણાવી અંતે છ-કાય જીવોની હિંસાથી વિરક્ત મુનિ એકાંત પંડિત છે એમ જણાવે છે. (૫) અધ્યયન : આચારસૂત આના એક ઉદ્દેશમાં અનાચારનું સેવન ન કરવાનો ઉપદેશ આપી અંતે મોક્ષપર્યંત ધર્મની આરાધનાની વાત કહી છે. (૬) અધ્યયન : આર્તકીય આના એક ઉદ્દેશકમાં ગોશાલક અને આદ્રકુમારના સંવરની વાત જણાવી છે. (૭) અધ્યયન : નાલંદીય આના એક ઉદ્દેરાકમાં રાજગૃહી નગરીનું ઉપનગર નાલંદા છે તેમાં ગાથાપતિના ધાર્મિક જીવનનું વર્ણન કરી પાર્થાપત્ય પેઢાલપુત્ર તથા ગૌતમનો સવાંદ છે. અંતે ભગવાન મહાવીર સ્વામી પાસે પેઢાલપુત્ર પંચ મહાવ્રત સ્વીકાર કરે છે. તે સાથે આ અંગ પૂર્ણ થાય CF%EF MMMMMMMMMMEાં શ્રા મા મનમંજૂષા • ૭ , Fકકકકકકકક્કÉÉÉÉખ ખES Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1605555555555555555 (२) मयगडो पढमो सुयक्सधो १ अन्अयण समयो - (लहेसक-१ [१] 55555555555559 NO55555555555555555555555555555555555555555555555552 ) सिरि उसहदेव सामिस्स णमो। सिरि गोडी- जिराउला-सव्वोदय पासणाहाणं णमो । णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महइ महावीरवद्धमाणसामिस्स ।सिरि म गोयम-सोहम्माई सव्व गणहराणं णमो । सिरि सुजुरु-देवाणं णमो || पंचमगणहरभयवंसिरिसुहम्मसामिविरइयं बिइयमंगं सूयगडंगसुत्तं मम ॥ पढमो सुयक्खंधो पढम अज्झयणं समयो' पढमो उद्देसओ ।।एफ॥१.बुज्झिन तिउट्टेज्जा बंधणं परिजाणिया। किमाह बंधणं वीरे? किं वा जाणं प्रतिउट्टई ? ||१|| २. चित्तमंतमचितं वा परिगिज्झ किसामवि । अन्नं वा अणुजाणाति एवं दुक्खा ण मुच्चइ ।।२।। ३. सयं तिवायए पाणे अदुवा अण्णेहिं घायए। हणंतं में वाऽणुजाणाइ वेरं वड्डेति अप्पणो ।।३।। ४. जस्सिंकुले समुप्पन्ने जेहिं वा संवसे णरे। ममाती लुप्पती बाले अन्नमन्नेहिं मुच्छिए।।४।। ५. वित्तं सोयरिया चेव सव्वमेतं 卐न ताणए । संखाए जीवियं चेव कम्मणा उतिउति ॥५॥६. एए गंथे विउक्कम्म एगे समण-माहणा। अयाणंता विउस्सिता सत्ता कामेहि माणवा ।।६।। ७. संति पंच महब्भूया इहमेगेसिमाहिया । पुढवी आऊ तेऊ वाऊ आगासपंचमा ।।७।। ८. एते पंच महब्भूया तेब्भो एगो त्ति आहिया। अह एसिं विणासे उ विणासो होइ देहिणो ||८||९.जहा य पुढवीथूभे एगेनाणा हि दीसइ । एवं भो ! कसिणे लोए एके विज्जा णु वत्तए।।९।। १०. एवमेगे त्ति जंपंति मंदा आरंभणिस्सिया। एगे किच्चा सयं पावं म तिव्वं दक्खं नियच्छइ॥१०॥११. पत्तेयं कसिणे आया जे बाला जे य पंडिता। संति पेच्चा ण ते संति णत्थि सत्तोवपातिया ||११||१२. णत्थि पुण्णे व पावे वा णत्थि के लोए इतो परे। सरीरस्स विणासेणं विणासो होति देहिणो॥१२॥ १३. कुव्वं च कारवं चेव सव्वं कुव्वं ण विज्जति । एवं अकारओ अप्पा एवं ते उपगब्भिया ।।१३॥ म १४.जे ते उवाइणो एवं लोए तेसिंकुओ सिया। तमातो ते तमं जंति मंदा आरंभनिस्सिया ||१४||१५. संति पंच महब्भूता इहमेगेसि आहिता । आयछट्ठा पुणेगाऽऽहु आया लोगे य सासते॥१५||१६. दुहओ ते ण विणस्संति नो य उप्पज्जए असं । सव्वे वि सव्वहा भावा नियतीभावमागता ||१६|| १७. पंच खंधे वयंतेगे बाला उ प्रखणजोगिणो। अन्नो अणन्नो णेवाऽऽहु हेउयं च अहेउयं ॥१७॥१८. पुढवी आऊ तेऊ यतहा वाऊ य एकओ। चत्तारि धाउणो रूवं एवमाहंसु जाणगा ||१८||१९. 9 अगारमावसंता वि आरण्णा वा वि पव्वगा। इमं दरिसणमावन्ना सव्वक्खा विमुच्चती ।१९।२०. ते णावि संधि णच्चा णं न ते धम्मविऊ जणा। जे ते उवाइणो एवं पण ते ओहंतराऽऽहिता॥२०॥२१. ते णावि संधिं णच्चा णं न ते धम्मविऊ जणा। जे ते उ वाइणो एवं ण ते संसारपारगा।२१||२२. ते णावि संधिं णच्चा णं न ते धम्मविऊ जणा। जे ते उवाइणो एवं ण ते गब्भस्स पारगा ।।२२।। २३. ते णावि संधिं णच्चा णं न ते धम्मविऊ जणा। जे ते उ वाइणो एवं न ते जम्मस्स पारगा ।।२३।। ॥ २४. ते णावि संधिं णच्चा णं न ते धम्मविऊ जणा । जे ते उ वाइणो एवं न ते दुक्खस्स पारगा॥२४॥ २५. ते णावि संधि णच्चा णं न ते धम्मविऊ जणा। जे ते उ वादिणो एवं न ते मारस्स पारगा ||२५|| २६. णाणाविहाइं दुक्खाइं अणुभवंति पुणो पुणो । संसारचक्कवालम्मि वाहि-मच्चु-जराकुले ।।२६।। २७. उच्चावयाणि गच्छंता गब्भमेस्संतऽणंतसो। नायपुत्ते महावीरे एवमाह जिणोत्तमे ॥२७॥ त्ति बेमि||★★★| पढमज्झयणे पढमो उद्देसओ।। बिइओ उद्देसओ ' *२८. आघायं पुण एगेसिं उववन्ना पुढो जिया । वेदयंति सुहं दुक्खं अदुवा लुप्पंति ठाणओ॥१॥२९. न तं सयंकडं दुक्खं कओ अन्नकडं च णं । सुहं वा जइ वा ई दुक्खं सेहियं वा असेहियं ॥२॥ ३०. न सयं कडं ण अन्नेहिं वेदयंति पुढो जिया । संगतियं तं तहा तेसिं इहमेगेसिमाहियं ।।३।। ३१. एवमेताइं जपंता बाला ॐ पंडियमाणिणो । णियया-ऽणिययं संतं अजाणंता अबुद्धिया ।४।। ३२. एवमेगे उपासत्था ते भुज्जो विप्पगब्भिया । एवं पुवट्ठिता संता ण ते दुक्खविमोक्खया।।५।। +३३. जविणो मिगा जहा संता परिताणेण वज्जिता । असंकियाइं संकंति संकियाइं असंकिणो ।।६।। ३४.परिताणियाणि संकंता पासिताणि असंकिणो। अण्णाणभयसंविग्गा संपलिति तहिं तहिं||७||३५. अहतं पवेज वज्झं अहे वज्झस्स वा वए। मुंचेज पयपासाओ तं तु मंदे ण देहती ||८||३६. अहियप्पाऽहियपण्णाणे विसमंतेणुवागते । से बद्धे पयपासेहिं तत्थ घायं नियच्छति ।।९|| ३७. एवं तु समणा एगे मिच्छद्दिट्ठी अणारिया। असंकिताई संकंति संकिताई असंकिणो॥१०॥ ३८. धम्मपण्णवणा जा सा तं तु संकंति मूढगा। आरंभाई न संकंति अवियत्ता अकोविया |११|| ३९. सव्वप्पगं विउक्कस्सं सव्वं णूमं विहूणिया । अप्पत्तियं 1 अकम्मंसे एयमट्ट मिगे चुए।।१२।। ४०.जे एतं णाभिजाणंति मिच्छद्दिट्ठी अणारिया। मिगा वा पासबद्धा ते घायमसंतऽणंतसो ||१३||४१.माहणा समणा एगे सव्वेक दणाणं सयं वदे | सव्वलोगे वि जे पाणा न ते जाणं ति किं चणं ॥१४॥ ४२. मिलक्खु अमिलक्खुस्स जहा वुत्ताणुभासती । ण हेउं से g乐乐$$$$$$$5听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听QNCE સૌજન્ય प.प. साध्वीश्रीजीरभद्राश्री म.सा. नाशिध्या जा.ज.प. सा.श्री. निर्मलगाश्री म.सा.नाशि.जा.. ५.सा.श्री. श्योतिप्रभाश्री મ.સા.ની પ્રેરણાથી શ્રી. અંતરિક્ષતીર્થ ચાતુર્માસની અનુમોદનાર્થે શ્રી અંતરિક્ષ પાર્શ્વનાથ મહાજન સંસ્થાન (શીરપૂર) જી. અકોલા. फफफ फफ9555555 श्री आगमगणमजूषा ५५555555555555555555555555 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGR95555555555555# (श सूयगडो पढमो सुयसंघो १ अन्झयणं समयो -(उद्देसक-२.३.४) श E D IO विजाणाति भासियं तऽणुभासती ॥१५।। ४३. एवमण्णाणिया नाणं वयंता विसयं सयं । णिच्छयत्थं ण जाणंति मिलक्खू व अबोहिए ।।१६।। ४४. अण्णाणियाण वीमंसा अण्णाणे नो नियच्छती । अप्पणो य परं णालं कुतो अण्णेऽणुसासिउं? ॥१७॥ ४५. वणे मूढे जधा जंतू मूढणेताणुगामिए। दुहओ वि अकोविता तिव्वं सोय णियच्छति ।।१८।। ४६. अंधो अंधं पहं णितो दूरमद्धाण गच्छती। आवज्जे उप्पधं जंतु अदुवा पंथाणुगामिए ।।१९।। ४७. एवमेगे नियायट्ठी धम्ममाराहगा वयं । अदुवा अधम्ममावज्जे ण ते सव्वज्जुयं वए।।२०।। ४८. एवमेगे वितक्काहिं णो अण्णं पज्जुवासिया । अप्पणो य वितक्काहिं अयमंजू हि दुम्मती॥२१॥ ४९. एवं तक्काए साहता धम्मा-ऽधम्मे अकोविया । दुक्खं ते नाइतुटुंति सउणी पंजरं जहा ॥२२।। ५०. सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वई । जे उ तत्थ विउस्संति संसारं ते विउस्सिया ॥२३॥ ५१. अहावरं पुरक्खायं किरियावाइदरिसणं । कम्मचिंतापणट्ठाणं संसारपरिवड्ढणं ।।२४।। ५२. जाणं काएण(s)णाउट्टी अबुहो जं च हिंसती। पुट्ठो वेदेति परं अवियत्तं खु सावजं ॥२५॥ ५३. संतिमे तओ आयाणा जेहिं कीरति पावगं । अभिकम्माय पेसाय मणसा अणुजाणिया ॥२६।। ५४. एए उ तओ आयाणा जेहिं कीरति पावगं । एवं भावविसोहीए णेव्वाणमभिगच्छती ॥२७॥ ५५. पुत्तं पिता समारंभ आहारट्ठमसंजए। भुंजमाणो य मेधावी कम्मुणा नोवलिप्पति ॥२८॥ ५६. मणसा जे पउस्संति चित्तं तेसिं न विज्जती । अणवज्ज अतह तेसिंण ते संवुडचारिणो |२९|| ५७. इच्चेयाहिं दिट्ठीहिं सातागारवणिस्सिता । सरणं ति मण्णमाणा सेवंती पावगं जणा ॥३०॥ ५८. जहा आसाविणिं णावं जातिअंधो दुरूहिया । इच्छेज्जा पारमागंतुं अंतरा य विसीयति ॥३१॥ ५९. एवं तु समणा एगे मिच्छद्दिट्ठी अणारिया । संसारपारकंखी ते संसारं अणुपरियट्टति॥३२|| त्ति बेमि★★★| बितिओ उद्देसओ सम्मत्तो॥ तइयो उद्देसओ★★★६०. जं किंचि वि पूतिकडं सड्डीमागंतुमीहियं । सहस्संतरियं भुंजे दुपक्खं चेव सेवती ॥१॥ ६१. तमेव अविजाणंता विसमंमि अकोविया । मच्छा वेसालिया चेव उदगस्सऽभियागमे ।।२।। ६२. उदगस्सऽप्पभावेणं सुक्कंमि घातमिति उ। ढंकेहि य कंकेहि य आमिसत्थेहिं ते दुही ॥३॥ ६३. एवं तु समणा एगे वट्टमाणसुहेसिणो । मच्छा वेसालिया चेव घातमेसंतऽणंतसो ||४|| ६४. इणमन्नं तु अण्णाणं इहमेगेसिमाहियं । देवउत्ते अयं लोगे बंभउते त्ति आवरे ।।५।। ६५. ईसरेण कडे लोए पहाणाति तहावरे। जीवा-ऽजीवसमाउत्ते सुह-दुक्खसमन्निए ।।६।। ६६. सयंभुणा कडे लोए इति वुत्तं महेसिणा । मारेण संथुता माया तेण लोए असासते॥७॥६७. माहणा समणा एगे आह अंडकडे जगे। असो तत्तमकासी य अयाणंता मुसं वदे ।।८।। ६८. सएहिं परियाएहिं लोयं बूया कडे ति या। तत्तं ते ण विजाणंतीण विणासि कयाइ वि ॥९॥ ६९. अमणुण्णसमुप्पादं दुक्खमेव विजाणिया । समुप्पादमयाणंता किह नाहिति संवरं ॥१०॥ ७०. सुद्धे अपावए आया इहमेगेसि आहितं । पुणो कीडा-पदोसेणं से तत्थ अवरज्झति॥११॥ ७१. इह संवुडे मुणी जाते पच्छा होति अपावए। वियर्ड व जहा भुज्जो नीरयं सरयं तहा ॥१२॥ ७२. एताणुवीति मेधावि बंभचेरे ण ते वसे। पुढो पावाउया सव्वे अक्खायारो सयं सयं ।।१३।। ७३. सते सते उवट्ठाणे सिद्धिमेवण अन्नहा। अहो वि होति वसवत्ती सव्वकामसमप्पिए॥१४॥ ७४. सिद्धा य ते अरोगा य इहमेगेसि आहितं । सिद्धिमेव पुराकाउं सासए गढिया णरा ॥१५।। ७५. असंवुडा अणादीयं भमिहिति पुणो पुणो । कप्पकालमुवनंति ठाणा आसुर-किब्बिसिय ॥१६|| त्ति बेमि।★★★॥ ततिओ उद्देसओ सम्मत्तो ॥ चउत्थो उद्देसओ ★ ★ ★ ७६. एते जिता भो ! न सरणं बाला पंडितमाणिणो। हेच्चा णं पुव्वसंजोगं सिया किच्चोवदेसगा॥१॥ ७७. तं च भिक्खू परिण्णाय विज्ज तेसुण मुच्छए। अणुक्कसे अप्पलीणे मज्झेण मुणि जावते ॥२॥ ७८. सपरिग्गहा य सारंभा इहमेगेसि आहियं । अपरिग्गहे अणारंभे भिक्खू ताणं परिव्वते ॥३॥ ७९. कडेसु घासमेसेज्जा विऊ दत्तेसणं चरे। अगिद्धो विप्पमुक्को य ओमाणं परिवज्जते ।।४।। ८०.लोगवायं निसामेज्जा इहमेगेसि आहितं । विवरीतपण्णसंभूतं अण्णण्णबुतिताणुयं ।।५।। ८१. अणंते णितिए लोए सासते ण विणस्सति । अंतवं णितिए लोए इति धीरोऽतिपासति ।।६।। ८२. अपरिमाणं विजाणाति इहमेगेसि आहितं । सव्वत्थ सपरिमाणं इति धीरोऽतिपासति ||७|| ८३. जे केति तसा पाणा चिटुंतऽदुव थावरा । परियाए अत्थि से अंजू तेण ते तस-थावरा ||८|| ८४. उरालं जगओ जोयं विपरीयासं पलेति य । सव्वे अकंतदुक्खा य अतो सव्वे अहिसिया।।९।। ८५. एतं खुणाणिणो सारं जं न हिंसति किंचणं । अहिंसासमयं चैव इत्तावंतं विजाणिया ॥१०॥ ८६. वुसिए य विगयगेही य आयाणं सारक्खए। चरिया-ऽऽसण-सेज्जासु भत्तपाणे य अंतसो॥११॥ ८७. एतेहिं तिहिं ठाणेहिं संजते सततं मुणी। उक्कसं जलणं णूम मज्झत्थं च विगिंचए ॥१२॥ ८८. समिते उ HerchFFFFFF5555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा : ५६ 555555555555555 5 57OR 明明明明明明明明明乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听步步圳明判听听听听听听听听听听听听听听听听听听感 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %%OTOS %%%%%%%%%%%%%%%%%% %% SPORO55555555555555 (२) सूबगडो प.सु.१ अ.समयो उ-४/२.अ. वेयालियं उ-१-२ [३] 555$$$$$$ $2 8 सदा साहू पंचसंवरसंवुडे। सितेहिं असिते भिक्खू आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ॥१३॥त्ति बेमि| ★ ★ ★|| पढमं अज्झयणं सम्मत्तं ।।* * * २ बिइयमज्झयणं 'वेयालियं' पढमो उद्देसओ ८९. संबुज्झह किं न बुज्झह, संबोही खलु पेच्च दुल्लभा । णो हूवणमंति रातिओ, णो सुलभं पुणरावि जीवियं ।।१।।९०. डहरा वुड्डा य पासहा, गब्भत्था वि चयंति माणवा । सेणे जह वट्टयं हरे. एवं आउखयम्मि तुट्टती॥२॥९१. माताहिं पिताहिं लुप्पति, णो सुलभा सुगई विपेच्चओ। एयाइं भयाइं देहिया, आरंभा विरमेज्ज सुव्वते ॥३।। ९२. जमिणं जगती पुढो जगा, कम्मेहिं लुप्पंति पाणिणो। सयमेव कडेहिं गाहती, णो तस्सा मुच्चे अपुट्ठवं ।।४।। ९३. देवा गंधव्व-रक्खसा, असुरा भूमिचरा सिरीसिवा । राया नर-सेट्ठि-माहणा, ठाणा ते वि चयंति दुक्खिया।।५।। ९४. कामेहि य संथवेहि य, गिद्धा कम्मसहा कालेण जंतवो। ताले जह बंधणच्चुते, एवं आउखयम्मि तुट्टती ॥६॥ ९५. जे यावि बहुस्सुए सिया, धम्मिए माहणे भिक्खुए सिया। अभिनूमकडेहिं मुच्छिए, तिव्वं से कम्मेहिं किच्चती ॥७॥ ९६. अह पास विवेगमुट्ठिए, अवितिण्णे इह भासती धुवं । णाहिसि आरं कतो परं, वेहासे कम्मेहिं किच्चती ।।८।। ९७. जइ वि य णिगिणे किसे चरे, जइ वि य भुंजिय मासमंतसो । जे इह मायाइ मिज्जती, आगंता गब्भायऽणंतसो ।।९।। ९८. पुरिसोरम पावकम्मुणा, पलियंतं मणुयाण जीवियं । सन्ना इह काममुच्छिया, मोहं जंति नरा असंवुडा ॥१०॥९९. जययं विहराहि जोगवं, अणुपाणा पंथा दुरुत्तरा। अणुसासणमेव पक्कमे, वीरेहिं सम्मं पवेदियं ||११|| १००. विरया वीरा समुट्ठिया, कोहाकातरियादिपीसणा । पाणे ण हणंति सव्वसो, पावातो विरयाऽभिनिव्वुडा ।।१२।। १०१. ण वि ता अहमेव लुप्पए, लुप्पंती लोगंसि पाणिणो। एवं सहिएऽधिपासते, अणिहे से पुट्ठोऽधियासए॥१३॥ १०२. धुणिया कुलियं व लेववं, कसए देहमणासणादिहिं । अविहिंसामेव पव्वए, 3 अणुधम्मो मुणिणा पवेदितो॥१४॥ १०३. सउणी जह पंसुगुंडिया, विधुणिय धंसयती सियं रयं । एवं दविओवहाणवं, कम्मं खवति तवस्सि माहणे ॥१५॥ १०४. उद्वितमणगारमेसणं, समणं ठाणठितं तवस्सिणं । डहरा वुड्डा य पत्थए, अवि सुस्से ण य तं लभे जणा ।।१६।। १०५. जइ कालुणियाणि कासिया, जइ रोवंति व पुत्तकारणा। दवियं भिक्खुं समुट्ठितं, णो लब्भंति ण संठवित्तए।|१७|| १०६. जइ वि य कामेहि लाविया, जइ णेज्जाहिण बंधिउं घरं । जति जीवित णावकंखए, णो लब्भंति ण संठवित्तए॥१८॥ १०७. सेहंति य णं ममाइणो, माय पिया य सुता य भारिया। पासाहि ण पासओ तुम, लोय परं पि जहाहि पोसणे॥१९॥१०८. अन्ने अन्नेहिं मुच्छिता, मोहं जंति नरा असंवुडा। विसमं विसमेहिं गाहिया, ते पावेहिं पुणो पगब्भिता ||२०|| १०९. तम्हा दवि इक्ख पंडिए, पावाओ विरतेऽभिनिव्वुडे ऊ । पणया वीरा महाविहि, सिद्धिपहं णेयाउयं धुवं ॥२१|| ११०. वेतालियमग्गमागओ, मण वयसा काएण संवुडो । चेच्चा वित्तं च णायओ, आरंभं च सुसंवुडे चरेज्जासि ॥२२॥त्ति बेमि। * * * ॥ वेतालियस्स पढमो उद्देसओ समत्तो।। बिइओ उद्देसओ★★★१११. तय सं व जहाति से रयं इति संखाय मुणी ण मज्जती। गोतण्णतरेण माहणे, अडऽसेओ अन्नेसि इंखिणी ॥१॥ ११२. जो परिभवती परं जणं, संसारे परियत्तती महं । अदु इंखिणिया उ पाविया, इति प्र संखाय मुणी ण मज्जती ॥२॥११३. जे यावि अणायगे सिया, जे विय पेसगपेसए सिया। जे मोणपदं उवट्ठिए, णो लज्जे समयं सया चरे||३॥ ११४. सम अन्नयरम्मि संजमे, संसुद्धे समणे परिव्वए। जे आवकहा समाहिए, दविए कालमकासि पंडिए॥४॥११५. दूरं अणुपस्सिया मुणी, तीतं धम्ममणागयं तहा। पुढे फरुसेहिं माहणे, अवि हण्णू समयंसि रीयति ।।५।। ११६. पण्णसमत्ते सदा जए, समिया धम्ममुदाहरे मुणी । सुहुमे उ सदा अलूसए, णो कुज्झे णो माणि माहणे ॥६॥ ११७. बहुजणणमणम्मि संवुडे, सव्वदे॒हिं णरे अणिस्सिते । हरए व सया अणाविले, धम्मं पादुरकासि कासवं ।।७।। ११८. बहवे पाणा पुढो सिया, पत्तेयं समयं उवेहिया। जे मोणपदं उवद्विते, विरतिं तत्थ अकासि पंडिते ॥८॥११९. धम्मस्स य पारए मुणी, आरंभस्स य अंतए ठिए। सोयंति य णं ममाइणो, नो य लभंति णियं परिग्गहं ॥९॥ १२०. इहलोग दहावहं विऊ, परलोगे य दुहं दुहावहं । विद्धंसणधम्ममेव तं, इति विज्ज कोऽगारमावसे ॥१०|| १२१. महयं पलिगोव जाणिया, जा वि य वंदण-पूयणा इहं । सुहुमे सल्ले दुरुद्धरे, विदुमं ता पजहेज्ज संथवं ।।११।। १२२. एगे चरे ठाणमासणे, सयणे एगे समाहिए सिया। भिक्खू उवधाणवीरिए, वइगुत्ते अज्झप्पसंवुडे ।।१२।। १२३. णो पीहे णावऽवंगुणे, दारं सुन्नघरस्स संजते। पुट्ठोण उदाहरे वयिं, न समुच्छे नोय संथरे तणं ।।१३।। १२४. जत्थऽत्थमिए अणाउले, सम-विसमाणि मुणीऽहियासए। चरगा अदुवा वि भेरवा, अदुवा तत्थ सिरीसिवा सिया ॥१४|| १२५. तिरिया मणुया य दिव्वगा, उवसग्गा तिविहाऽघियासिया। 84555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ५७555555555555555555555555555OOK %%%%%% %%%%% TAG95555555555555 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सूयगडो प.सु. २- अ. वेयालिय उ-२-३ [8] 所 लोमादीयं पि ण हरिसे, सुन्नागारगते महामुनी ||१५|| १२६. णो आवऽभिकंखे जीवियं, जो वि य पूयणपत्थए सिया । अब्भत्थमुवेति भेरवा, सुन्नागारगयस्स भिक्खुणो ॥१६॥ १२७. उवणीततरस्स ताइणो, भयमाणस्स विवित्तमासणं । सामाइयमाहु तस्स जं, जो अप्पाण भए ण दंस ॥ १७ ॥ १२८. उसिणोदगतत्तभोइणो, धम्मट्ठियस्स मुणिस्स ह्रीमतो । संसग्गि असाहु रायिहिं, असमाही उ तहागयस्स वि || १८ || १२९. अहिगरणकडस्स भिक्खुणो, वयमाणस्स पसज्झ दारुणं । अड्डे परिहायती बहू, अहिगरणं न करेज्न पंडिए ||१९|| १३०. सीओदगपडिदुगुंछिणो, अपडिण्णस्स लवावसक्किणो । सामाइयमाहु तस्स जं, जो गिहिमत्तेऽसणं न भुंजती ||२०|| १३१. न य संखयमाहु जीवियं, तह वि य बालजणे पगब्भती । बाले पावेहिं मिज्जती, इति संखाय मुणी ण मज्जती ||२१|| १३२. छंदेण पलेतिमा पया, बहुमाया मोहेण पाउडा । वियडेण पलेति माहणे, सीउण्हं वयसाऽहियासते ||२२|| १३३. कुजए अपराजिए जहा अक्खेहिं कुसलेहिं दिव्वयं | कडमेव गहाय णो कलिं, नो तेयं नो चेव दावरं ||२३|| १३४. एवं लोगंमि ताइणा, बुइएऽयं धम्मे अणुत्तरे । तं गिण्ह हितं ति उत्तमं, कडमिव सेसऽवहाय पंडिए ॥ २४ ॥ १३५. उत्तर या आहिया, गामधम्मा ति मे अणुस्सुतं । जंसी विरता समुट्ठिता, कासवस्स अणुधम्मचारिणो ||२५|| १३६. जे एय चरंति आहियं, नातेणं महता महेसिणा । ते उट्ठित ते समुट्ठिता, अन्नोन्नं सारेति धम्मओ ||२६|| १३७. मा पेह पुरा पणामए, अभिकंखे उवहिं धुणित्तए। जे दूवणतेहि णो णया, ते जाणंति समाहिमाहियं ||२७|| १३८. णो काहिए होज्ज संजए, पासणिए ण य संपसारए। णच्चा धम्मं अणुत्तरं, कयकिरिए य ण यावि मामए ॥। २८।। १३९. छण्णं च पसंस णो करे, न य उक्कास पगास माहणे । तेसिं सुविवेगमाहिते, पणया जेहिं सुझोसितं धुयं ||२९|| १४०. अणिहे सहिए सुसंवुडे, धम्मट्ठी उवहाणवीरिए। विहरेज्ज समाहितिदिए, आयहियं खु दुहेण लब्भई ||३०|| १४१. ण हि णून पुरा अणुस्सुतं, अदुवा तं तह णो समुट्ठियं । मुणिणा सामाइयाहितं, णाएणं जगसव्वदंसिणां ॥ ३१ ॥ १४२. एवं मत्ता महंतरं, धम्ममिणं सहिता बहू जणा । गुरुणो छंदाणुवत्तगा, विरता तिन्न महोघमाहितं ||३२|| ति बेमि | ★★★ ॥ बितिओ उद्देसओ सम्मत्तो ॥ ★ ★★तइओ उद्देसओ ★★★१४३. संवुडकम्मस्स भिक्खुणो, जं दुक्खं पुढं अबोहिए। तं संजमओऽवचिज्जइ, मरणं हेच्च वयंति पंडिता ॥१॥ १४४. जे विण्णवणाहिऽज्झोसिया, संतिण्णेहि समं वियाहिया । तम्हा उड्डुं ति पासहा, अद्दक्खू कामाई रोगवं ||२|| १४५. अग्गं वणिएहिं आहियं, धारेंती राईणिया इहं । एवं परमा महव्वया, अक्खाया उ सराइभोयणा ॥ ३ ॥ १४६. जे इह सायाणुगा णरा, अज्झोववन्ना कामेसु मुच्छिया । किवणेण समं पगब्भिया, न वि जाणंति समाहिमाहियं ।।४।। १४७. वाहेण जहा व विच्छते, अबले होइ गवं पचोइए। से यंतसो अप्पथामए, नातिवहति अबले विसीयति ॥ ५ ॥ १४८. एवं कामेसणं विदू, अज्ज सुए पयहेज्ज संथवं । कामी कामे ण कामए, लद्धे वा वि अलद्ध कन्हुई ||६|| १४९. मा पच्छ असाहुया भवे, अच्चेही अणुसास अप्पगं । अहियं च असाहु सोयती, से थी परिदेवती बहुं ||७|| १५०. इह जीवियमेव पासहा, तरुणए वाससयाउ तुट्टती । इत्तरवासे व बुज्झहा, गिद्धनरा कामेसु मुच्छिया ॥८॥ १५१. जे इह आरंभनिस्सिया, आयदंड एगंतलूसगा । गंता ते पावलोगयं, चिररायं आसुरियं दिसं ॥ ९ ॥ १५२. ण य संखयमाहु जीवियं, तह वि य बालजणे पगब्भती । पच्चुप्पन्नेण कारितं, के द परलोगमागते ।।१०।। १५३. अद्दक्खुव दक्खुवाहितं, सद्दहसू अद्दक्खुदंसणा । हंदि हु सुनिरुद्धदंसणे, मोहणिएण कडेण कम्मुणा ॥ ११॥ १५४. दुक्खी मोहे पुणो पुणो, निव्विंदेज्ज सिलोग-पूयणं । एवं सहितेऽहिपासए, आयतुलं पाणेहिं संजते ||१२|| १५५. गारं पि य आवसे नरे, अणुपुव्वं पाणेहिं संजए । समया सव्वत्थ सुव्वए, देवाणं गच्छे स लोगतं ||१३|| १५६. सोच्चा भगवाणुसासणं, सच्चे तत्थ करेहुवक्कमं । सव्वत्थऽवणीयमच्छरे, उंछं भिक्खु विसुद्धमाहरे ॥ १४ ॥ १५७. सव्वं गच्चा अहिए, धम्मट्ठी उवहाणवीरिए । गुत्ते जुत्ते सदा जए आय-परे परमाययट्ठिए || १५ | १५८. वित्तं पसवो य णातयो, तं बाले सरणं ति मण्णती । एते मम तेसु वी अहं, नो ताणं सरणं च विज्जइ ॥ १६ ॥ १५९. अब्भागमितम्मि वा दुहे, अहवोवक्कमिए भवंतए । एगस्स गती य आगती, विदुमं ता सरणं न मन्नती ||१७|| १६०. सव्वे सयकम्मकप्पिया, अव्वत्तेण दुहेण पाणिणो । हिंडंति भयाउला सढा, जाति-जरा-मरणेहऽभिद्दुता ||१८|| १६१. इणमेव खणं वियाणिया, गो बोहिं च आहितं । एवं सहिएऽहिपासए, आह जिणे इणमेव सेसगा ||१९|| १६२. अभविंसु पुरा वि भिक्खवो, आएसा वि भविंसु सुव्वता । एताई गुणाई आहु ते, कासवस्स अणुधम्मचारिणो ||२०|| १६३. तिविहेण वि पाणि मा हणे, आयहिते अणियाण संबुडे । एवं सिद्धा अणंतगा, संपति जे य अणागयाऽवरे ।। २१ ।। १६४. श्री आगमगुणमंजूषा - ५८ फफफफ ९ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROTRO555555555555555 (२) सूयगडो प.सु.२. अपयालयः3/3 उपसापरिण्णा उ.१. २ ५) 5555555555$$$SFOTO C %%%%%%%%%%%2 %%% %%% एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे अरहा णायपुत्ते भगवं वेसालीए वियाहिए ||२२|| त्ति इति कम्मवियालमुत्तमं जिणवरेण सुदेसियं सया। जे आचरंति आहियं खवितरया वइहिति ते सिवं गति॥२३|| ति बेमि। ★★★||ततिओ उद्देसओ। बितियं वेतालियं सम्मत्तं★★★।३ तइयं अज्झयणं 'उवसग्गपरिण्णा' पढमो उद्देसओ १६५. सूरं मन्नति अप्पाणं जाव जेतं न पस्सति । जुझंतं दढधम्माणं सिसुपाले व महारहं ।।१।।१६६. पयाता सूरा रणसीसे संगामम्मि उवट्ठिते । माता पुत्तं ण याणाइ जेतेण परिविच्छए ।।२।। १६७. एवं सेहे वि अप्पुढे भिक्खाचरियाअकोविए। सूरं मन्नति अप्पाणं जाव लूहं न सेवई ||३|| १६८. जदा हेमंतमासम्मि सीतं फुसति सवातगं । तत्थ मंदा विसीयंति रज्जहीणा व खत्तिया ॥४॥ १६९. पुढे गिम्हाभितावेणं विमणे सुप्पिवासिए। तत्थ मंदा विसीयंति मच्छा अपोदए जहा ॥५॥ १७०. सदा दत्तेसणा दुक्खं जायणा दुप्पणोल्लिया। कम्मत्ता दुब्भगा चेव इच्चाहंसु पुढो जणा||६|| १७१. एते सद्दे अचायंता गामेसु नगरेसुवा। तत्थ मंदा विसीयंति संगामंसि व भीरुणो॥७॥ १७२. अप्पेगे झुझियं भिक्खुं सुणी दसति लूसए। तत्थ मंदा विसीयंति तेजपुट्ठा व पाणिणो ।।८।।१७३. अप्पेगे पडिभासंति पाडिपंथियमागता । पडियारगया एते जे एते एवजीविणो॥९॥ १७४. अप्पेगे वई झुंजंति निगिणा पिंडोलगाहमा । मुंडा कंडूविणटुंगा उजल्ला असमाहिया ॥१०॥ १७५. एवं विप्पडिवण्णेगे अप्पणा तु अजाणगा। तमाओ ते तमं जंति मंदा मोहेण पाउडा ॥११|| १७६. पुट्ठो य दंस-मसएहिं तणफासमचाइया । न मे दिढे परे लोए जइ परं मरणं सिया॥१२॥ १७७. संतत्ता केसलोएणं बंभचेरपराजिया । तत्थ मंदा विसीयंति मच्छा पविट्ठा व केयणे ।।१३।। १७८. आतदंडसमायारा मिच्छासंठियभावणा | हरिसप्पदोसमावण्णा केयि लूसंतिऽणारिया ॥१४॥ १७९. अप्पेगे पलियंतंसि चारि चोरो त्ति सुव्वयं । बंधंति भिक्खुयं बाला कसायवयणेहि य ।।१५।। १८०. तत्थ दंडेण संवीते मुट्ठिणा अदु फलेण वा । णातीणं सरती बाले इत्थी वा कुद्धगामिणी ॥१६॥ १८१. एते भो कसिणा फासा फरुसा दुरहियासया। हत्थी वा सरसंवीता कीवाऽवस गता गिहं ।।१७।। ति बेमि । ★ ★ ★तृतीयस्य प्रथमोद्देशकः॥★★ * बिइओ उद्देसओ १८२. अहिमे सुहमा संगा भिक्खूणं जे दुरुत्तरा । जत्थ एगे विसीयंति ण चयंति जवित्तए ॥१॥ १८३. अप्पेगे णायओ दिस्स रोयंति परिवारिया। पोसणे तात पुट्ठोऽसि कस्स तात चयासि णे।।२।। १८४. पिता ते थेरओ तात ससा ते खुड्डिया इमा। भायरो ते सगा तात सोयरा किं चयासिणे।।३।। १८५. मातरं पितरं पोस एवं लोगो भविस्सइ । एयं खु लोइयं ताय जे पोसे पिउ-मातरं ।।४॥ १८६. उत्तरा महुरुल्लावा पुत्ता ते तात खुड्डगा । भारिया ते णवा तात मा से अण्णं जणं गमे ।।५।। १८७. एहि ताय घरं जामो मा तं कम्म सहा वयं । बीयं पि तात पासामो जामु ताव सयं गिहं ।।६।। १८८. गंतुं तात पुणाऽऽगच्छे ण तेणऽसमणो सिया। अकामगं परक्कम्म को ते वारेउमरहति ||७|| १८९. जं किंचि अणगं तात तं पि सव्वं समीकतं । हिरण्णं ववहारादी तं पि दासामु ते वयं ||८|| १९०. इच्चेव णं सुसेहति कालुणिया समुट्ठिया। विबद्धो नातिसंगेहिं ततोऽगारं पधावति ।।९।। १९१. जहा रुक्खं वणे जायं मालुया पडिबंधति । एवं णं पडिबंधंति णातओ असमाहिणा ॥१०॥ १९२. विबद्धोणातिसंगेहिं हत्थी वा वि नवग्गहे । पिट्ठतो परिसप्पंति सूतीगो व्व अदूरगा॥११||१९३. एते संगा मणुस्साणं पाताला व अतारिमा । कीवा जत्थ य कीसंति नातिसंगेहिं मुच्छिता ॥१२।। १९४. तं च भिक्खू परिणाय सव्वे संगा महासवा । जीवितं नाहिकंखेज्जा सोच्चा धम्ममणुत्तरं ॥१३॥ १९५. अहिमे संति आवट्टा कासवेण पवेदिता । बुद्धा जत्थावसप्पंति सीयंति अबुहा जहिं ॥१४॥ १९६. रायाणो रायमच्चा य माहणा अदुव खत्तिया । निमंतयंति भोगेहिं भिक्खुयं साहुजीविणं ॥१५॥ १९७. हत्थऽस्स-रह-जाणेहिं विहारगमणेहि य । भुंज भोगे इमे सग्घे महरिसी पूजयामु तं ॥१६॥ १९८. वत्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य। भुंजाहिमाइं भोगाई आउसो पूजयामुतं ।।१७।। १९९. जो तुमे नियमो चिण्णो भिक्खुभावम्मि सुव्वता । अगारमावसंतस्स सव्वो संविज्जए तहा॥१८॥२००. चिरं दूइज्जमाणस्स दोसो दाणिं कुतो तव । इच्चेवणं निमंतेति नीवारेण व सूयरं ।।१९।। २०१. चोदिता भिक्खुचज्जाए अचयंता जवित्तए । तत्थ मंदा विसीयंति उज्जाणंसि व दुब्बला ॥२०॥ २०२. अचयंता व लूहेण उवहाणेण तज्जिता । तत्थ मंदा विसीयंति उज्जाणंसि जरग्गवा ||२१|| २०३. म एवं निमंतणं लद्धं मुच्छिया गिद्ध इत्थीसु । अज्झोववण्णा कामेहिं चोइज्जता गिहं गय ||२२|| त्ति बेमि ।★★★|| उवसग्गपरिणाए बितिओ उद्देसओ सम्मत्तो||★★★तइओ उद्देसओ २०४. जहा संगामकालम्मि पिट्टतो भीरु पेहति । वलयं गहणं नूमं को जाणेइ पराजयं ||१| २०५. मुहत्ताणं मुहत्तस्स More555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - 555555555555555555555555 $555555555555%%%%%% Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फुफुफुफुफुफुफु (२) सूयगडा प. सु. ३- अ. उपसत्र परिण्णा उ-३-४ / ४ अ इत्यथोपरिण्णा [६] मुहुत्तो होति तारिसो । पराजियाऽवसप्पामो इति भीरु उवेहति ||२|| २०६. एवं तु समणा एगे अबलं नच्चाण अप्पगं । अणागतं भयं दिस्सा अवकप्पंतिमं सुयं ॥३॥ २०७. को जाणति विओवातं इत्थीओ उदगाओ वा । चोइज्जंता पवक्खामो न णे अत्थि पकप्पितं ॥ ४ ॥ २०८. इच्चेवं पडिलेहंति वलाइ पडिलेहिणो । वितिगिंछसमावण्णा पंथ व अकोविया ||५|| २०९. जे उ संगामकालम्मि नाता सूरपुरंगमा । ण ते पिट्ठमुवेहंति किं परं मरणं सिया || ६ || २१०. एवं समुट्ठिए भिक्खू वोसिज्जाऽगारबंधणं । आरंभं तिरियं कट्टु अत्तत्ताए परिव्वए ||७|| २११. तमेगे परिभासंति भिक्खुयं साहुजीविणं । जे ते उ परिभासंति अंतए ते समाहिए ॥ ८॥ २१२. संबद्धसमकप्पा हु अन्नमन्नेसु मुच्छिता । पिंडवायं गिलाणस्स जं सारेह दलाह य ॥ ९ ॥ २१३. एवं तुब्भे सरागत्था अन्नमन्नमणुव्वसा । नट्ठसप्पहसब्भावा संसारस्स अपारगा ॥ १० ॥ २१४. अह ते परिभासेज्जा भिक्खू मोक्खविसारए। एवं तुब्भे पभासेंता दुपक्खं चेव सेवहा || ११ || २१५. तुब्भे भुंजह पाएसु गिलाणाभिहडं ति य । तं च बीओदगं भोच्चा तमुद्देसादिजं कडं ||१२|| २१६. लित्ता तिव्वाभितावेण उज्जया असमाहिया । नातिकंडुइतं सेयं अरुयस्सावरज्झती ||१३|| २१७. तत्तेण अणुसट्टा ते अपडिण्णेण जाणया । ण एस णियए मग्गे असमिक्खा वई किती || १४ || २१८. एरिसा जावई एसा अग्गे वेणु व्व करिसिता । गिहिणं अभिहडं सेयं भुंजितुं न तु भिक्खुणं ||१५|| २१९. धम्मपण्णवणा जा सा सारंभाण विसोहिया । न तु एताहिं दिट्ठिहिं पुव्वमासि पकप्पियं ||१६|| २२०. सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं अचयंता वित्तए । ततो वायं णिकिच्चा ते भुज्जो वि पगब्भिता ||१७|| २२१. रागदोसाभिभूतप्पा मिच्छत्तेण अभिद्दुत्ता। अक्कोसे सरणं जंति टंकणा इव पव्वयं ॥ १८ ॥ २२२. बहुगुणप्पगप्पाईं कुज्ना अत्तसमाहिए । जेणऽण्णो ण विरुज्झेज्जा तेण तं तं समायरे ||१९|| २२३. इमं च धम्ममादाय कासवेण पवेइयं । कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिते ॥ २० ॥ २२४. संखाय पेसलं धम्मं दिट्टिमं परिनिव्वुडे । उवसग्गे नियामित्ता आमोक्खाए परिव्वज्जासि ॥ २१ ॥ त्ति बेमि | ★★ ★ ॥ ततिओ उद्देसओ समत्तो ॥ चउत्थो उद्देसओ★★★२२५. आहंसु महापुरिसा पुव्विं तत्ततवोधणा । उदएण सिद्धिमावण्णा तत्थ मंदे विसीयती ॥१॥ २२६. अभुंजिया णमी वेदेही रामगुत्ते य भुंजिया । बाहुए उदगं भोच्या तहा तारागणे रिसी || २ || २२७. आसिले देविले चेव दीवायण महारिसी । पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य || ३ || २२८. एते पुव्वं महापुरिसा आहिता इह संमता। भोच्चा बीओदगं सिद्धा इति मेतमणुस्सुतं ॥४॥ २२९. तत्थ मंदा विसीयंति वाहछिन्ना व गद्दभा । पिट्टतो परिसप्पति पीढसप्पी व संभमे ||५|| २३०. इहमेगे उ भासंति सातं सातेण विज्जती । जे तत्थ आरियं मग्गं परमं च समाहियं ||६|| २३१. मा एयं अवमन्नंता अप्पेणं लुंपहा बहुं । एतस्स अमोक्खाए अयहारि व्व जूरहा ||७|| २३२. पाणाइवाए वट्टंता मुसावाए असंजता । अदिन्नादाणे य परिग्गहे ॥८॥ २३३. एवमेगे तु पासत्था पण्णवेंति अणारिया । इत्थीवसं गता बाला जिणसासणपरम्मुहा ||९|| २३४. जहा गंडं पिलागं वा परिपीलेज्ज मुहुत्त । एवं विण्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कुतो सिया ॥ १०॥ २३५. जहा मंधादए नाम थिमितं भुंजती दगं । एवं विण्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कुतो सिया ।। ११।। २३६. जहा विहंगमा पिंगा थिमितं भुंजती दगं । एवं विण्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कुतो सिया ॥ १२ ॥ २३७. एवमेगे उ पासत्था मिच्छादिट्ठी अणारिया । अज्झोववन्ना कामेहिं पूणा इव तरुण || १३ || २३८. अणागयमपस्संता पच्चुप्पन्नगवेसगा। ते पच्छा परितप्पंति झीणे आउम्मि जोव्वणे ||१४|| २३९. जेहिं काले परक्कंतं न पच्छा परितप्पए । ते धीरा बंधणुम्मुक्का नावकखंति जीवियं ॥ १५ ॥ २४० . जहा नदी वेयरणी दुत्तरा इह सम्मता । एवं लोगंसि नारीओ दुत्तरा अमतीमता ।। १६ ।। २४१. नारीण संजोगा पूणा पिट्ठतो कता । सव्वमेयं निराकिच्या ते ठिता सुसमाहिए || १७ || २४२. एते ओघं तरिस्संति समुहं व ववहारिणो । जत्थ पाणावणा कच्ची सम्मुणा || १८|| २४३. तं च भिक्खू परिण्णाय सुव्वते समिते चरे। मुसावायं विवज्जेज्जाऽदिण्णादाणाइ वोसिरे ||१९|| २४४. उड्डमहे तिरियं वा जे केई तस-थावरा । सव्वत्थ विरतिं कुज्जा संति नेव्वाणमाहितं ॥२०॥ २४५. इमं च धम्ममादाय कासवेण पवेदितं । कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिते ॥२१॥ २४६. संखाय पेसलं धम्मं दिट्ठिमं परिनिव्वुडे । उवसग्गे नियामित्ता आमोक्खाए परिव्वज्जासि ||२२|| त्ति बेमि । ★★★ ॥ उवसग्गपरिण्णा तइयं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ४ चउत्थं अज्झयणं 'इत्थीपरिण्णा' पढमो उद्देसओ २४७. जे मातरं च पितरं च, विप्पजहाय पुव्वसंयोगं । एगे सहिते चरिस्सामि, आरतमेहुणे विवित्तेसी || १ || २४८. सुहुमेण तं परक्कम्म, छन्नपदेण इत्थिओ मंदा । उवायं पि ताओ जाणिसु, जह लिस्संति भिक्खुणो एगे ||२|| श्री आगमगुणमंजूषा ६० 5555555555555 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HO954555555555554 (२) सूयगडो प.सु.४-अ. इन्धिपरिणा उ-१.२ [७] 555555555555555525C HOLIC$乐乐乐乐乐乐明明明明明明乐明明明明明 55555555 织乐乐乐乐明听听听听听听乐听听听听听听听听听听乐纸F6C २४९. पासे भिसं निसीयंति, अभिक्खणं पोसवत्थ परिहिति । कार्य अहे वि दंसेंति, बाहुमुद्धट्ट कक्खमणुवज्जे ।।३।। २५०. सयणा-ऽऽसणेण जोगे(ग्गे)ण, इत्थीओ, एगता निमंतेति । एताणि चेव से जाणे, पासाणि विरूवरूवाणि ॥४॥२५१. नो तासु चक्खुसंधेज्जा, नो विय साहसं समभिजाणे । नो संद्धियं पि विहरेज्जा, एवमप्पा सुरक्खिओ होइ॥५॥ २५२. आमंतिय ओसवियं वा, भिक्खं आतसा निमंतेति । एताणि चेव से जाणे, सद्दाणि विरूवरूवाणि ।।६।। २५३. मणबंधणेहिं णेगेहिं, कलुणविणीयमुवगसित्ताणं । अदु मंजुलाई भासंति, आणवयंति भिन्नकहाहिं||७॥२५४. सीहं जहा व कुणिमेणं,णिब्भयमेगचरं पासेणं । एवित्थिया उबंधंति, संवुडं एगतियमणगारं ॥८॥२५५. अह तत्थ पुणो नमयंति, रहकारु व्व णेमि आणुपुव्वीए। बद्धे मिए व पासेणं, फंदंते वि ण मुवती ताहे ।।९।। २५६. अह सेऽणुतप्पती पच्छा, भोच्चा पायसं व विसमिस्सं । एवं विवेगमायाए, संवासो न कप्पती दविए ॥१०॥ २५७. तम्हा उ वज्जए इत्थी, विसलित्तं व कंटगं णच्चा। ओए कुलाणि वसवत्ती, आघाति ण से वि णिग्गंथे ।।११।। २५८. जे एयं उंछं अणुगिद्धा, अण्णयरा हु ते कुसीलाणं । सुतवस्सिए वि से भिक्खू, णो विहरे सह णमित्थीसु ॥१२॥ २५९. अवि धूयराहिं सुण्हाहिं, धातीहिं अदुव दासीहिं। महतीहिं वा कुमारीहिं, संथवं से णेव कुज्जा अणगारे ॥१३॥ २६०. अदुणातिणं व सुहिणं वा, अप्पियं दट्ट एगता होति । गिद्धा सत्ता कामेहि, रक्खण-पोसणे मणुस्सोऽसि ।।१४।। २६१. समणं पि दट्ठदासीणं, तत्थ वि ताव एगे कुप्पंति । अदुवा भोयणेहिं णत्थेहि, इत्थीदोससंकिणो होति ।।१५।। २६२. कुव्वंति संथवं ताहिं, पन्भट्ठा समाहिजोगेहिं । तम्हा समणा ण समेति, आतहिताय सण्णिसेज्जाओ ।।१६।। २६३. बहवे गिहाइं अवहट्ट, मिस्सीभावं पत्थुता एगे। धुवमग्गमेव पवदंति, वायावीरियं कुसीलाणं ।।१७|| २६४. सुद्धं रवति परिसाए, अह रहस्सम्मि दुक्कडं करेति । जाणंति है यणं तहावेदा, माइल्ले महासढेऽयं ति ॥१८॥२६५. सय दुक्कडं च न वयइ, आइट्ठो वि पकत्थती बाले । वेयाणुवीइ मा कासी, चोइज्जतो गिलाइ से भुज्जो।।१९।। २६६. उसिया वि इत्थिपोसेसु, पुरिसा इत्थिवेदखेतण्णा । पण्णासमन्निता वेगे, णारीण वसं उवकसंति ॥२०॥ २६७. अवि हत्थ-पादछेदाए, अदुवा वद्धमंस उक्तते ॥ । अवि तेयसाऽभितवणाई, तच्छिय खारसिंचणाइं च ॥२१॥ २६८. अदु कण्ण-णासियाछेज्ज, कंठच्छेदणं तितिक्खंति । इति एत्थ पावसंतत्ता, न य बेति पुणो न काहिं ति ।।२२।। २६९. सुतमेतमेवमेगेसिं, इत्थीवेदे वि हु सुअक्खायं । एवं पिता वदित्ताणं, अदुवा कम्मुणा अवकरेति ॥२३॥ २७०. अन्नं मणेण चिंतेति, अन्नं वायाइ कम्मुणा अन्नं । तम्हा ण सद्दहे भिक्खू, बहुमायाओ इथिओ णच्चा ।।२४।। २७१. जुवती समणं बूया उ, चित्तलंकारवत्थगाणि परिहेत्ता। विरता चरिस्स हं लूहं, धम्ममाइक्ख णे भयंतारो॥२५॥ २७२. अदु साविया पवादेण, अहगं साधम्मिणी य समणाणं । जतुकुंभे जहा उवज्जोती, संवासे विदू वि सीएज्जा ॥२६॥ २७३. जतुकुंभे जोतिसुवगूढे, आसुऽभितत्ते णासमुपयाति । एवित्थियाहिं अणगारा, संवासेण णासमुवयंति ।।२७।। २७४. कुव्वंति पावगं कम्मं, पुट्ठा वेगे एवमाहंसु नाहं करेमि पावं ति, अंकेसाइणी ममेस त्ति ॥२८॥२७५. बालस्स मंदयं बितियं, जंच कडं अवजाणई भुज्जो। दुगुणं करेइसे पावं, पूयणकामए विसण्णेसी ॥२९॥ २७६. संलोकणिज्जमणगारं, आयगतं णिमंत णे? णाऽऽहंसु । वत्थं व ताति ! पातं वा, अन्नं पाणगं पडिग्गाहे ॥३०॥ २७७. णीवारमेय बुज्झेज्जा, णो इच्छे अगारमागंतुं । बद्धे य विसयपासेहिं, मोहमागच्छती पुणो मंदे||३१|| त्ति बेमि ।★★★ा इत्थिपरिणाए पढमो उद्देसओ सम्मत्तो।। बीओ उद्देसओ* ★ ★ २७८. ओजे सदा ण रज्जेज्जा, भोगकामी पुणो विरज्जेज्जा । भोगे समणाण सुणेहा, जह जंति भिक्खुणो एगे ॥१॥ २७९. अह तं तु भेदमावन्नं, मुच्छितं भिक्खुं काममतिवढें । पलिभिदियाण तो पच्छा, पादुद्धट्ट मुद्धि पहणंति ।।२।। २८०. जइ केसियाए मए भिक्खू, णो विहरे सह णमित्थीए। केसाणि वि हं लुचिस्सं, नऽन्नत्थ मए चरिज्जासि ॥३॥२८१. अह णं से होति उवलद्धो, तो पेसंति तहाभूतेहिं । लाउच्छेदं पेहाहिं, वग्गुफलाइं आहराहि त्ति ॥४॥२८२. दारूणि सागपागाए, पज्जोओ वा भविस्सती रातो। पाताणि य मे रयावेहि, एहि य ता मे पट्टि उम्मद्दे ।।५।। २८३. वत्थाणि य मे पडिलेहेहि, अन्नपाणं च आहराहि त्ति । गंधं च रओहरणं च, कासवगं च समणुजाणाहि ॥६॥ २८४. अदु अंजणिं अलंकारं, कुक्कुहयं च मे पयच्छाहि । लोद्धं च लोद्धकुसुमं च, वेणुपलासियं च गुलियं च ॥७॥२८५. कुटुं फ अगुरुं तगलं च, संपिट्ठ समं उसीरेण । तेल्लं मुहं भिलिंजाए, वेणुफलाइं सन्निधाणाए ||८|| २८६. नंदीचुण्णगाई पहराहि, छत्तोवाहणं च जाणाहि । सत्थं च सूवच्छेयाए, आणीलं च वत्थयं रयावेहि ॥९॥ २७८. सुफणिं च सागपागाए, आमलगाई दगाहरणं च । तिलगकरणिमंजणसलागं, घिसु मे विधूणयं विजाणाहि reOFFFF$$$$$$$$55555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ६१5555555555555555555555 #F OR 55555555555555 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOROF n ) सूयगो प.स.४ अ. सत्य परिषणा उ-२/प-अ. नरयविभक्ति उ१ ८] 5555555555555555OXOg BC%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ॥१०॥ २८८. संडासगं च फणिहं च, सीहलिपासगं च आणाहि । आदंसगं पयच्छाहि, दंतपक्खालणं पवेसेहि ॥११।। २८९. पूयफल तंबोलं च, सूईसुत्तगं च 5 जाणाहि। कोसं च मोयमेहाए, सुप्पुक्खलगं च खारगलणं च ॥१२॥ २९०. चंदालगं च करगं च, वच्चघरगं च आउसो खणाहि। सरपादगं च जाताए, गोरहगं च ॥ सामणेराए ।।१३।। २९१. घडिगं च सडिडिमयं च, चेलगोलं कुमारभूताए । वासं समभियावन्नं, आवसहं च जाण भत्तं च ॥१४॥ २९२. आसंदियं च नवसुत्तं, पाउल्लाई संकमट्ठाए। अदु पुत्तदोहलट्ठाए, आणप्पा हवंति दासा वा ॥१५॥ २९३. जाते फले समुप्पन्ने, गेण्हसुवा णं अहवा जहाहि । अह पुत्तपोसिणो एगे, भारवहा हवंति उट्टा वा ॥१६॥२९४. राओ वि उठ्ठिया संता, दारगं संठवेति धाती वा । सुहिरीमणा वि ते संता, वत्थधुवा हवंति हंसा वा ॥१७॥ २९५. एवं बहुहिं कयपुव्वं, भोगत्थाए जेऽभियावन्ना । दासे मिए व पेस्से वा, पसुभूते वा से ण वा केइ ॥१८॥२९६. एयं खु तासु विण्णप्पं, संथवं संवासं च चएज्जा । तज्जातिया इमे कामा, वज्जकरा य एवमक्खाता ॥१९|| २९७. एवं भयं ण सेयाए, इति से अप्पगं निलंभित्ता । णो इत्यिं णो पसु भिक्खू, णो सयपाणिणा णिलिज्जेज्जा ॥२०॥ २९८. सुविसुद्धलेस्से मेधावी, परकिरियं च वज्जते णाणी । मणसा वयसा कायेणं, सव्वफाससहे अणगारे॥२१॥ २९९. इच्चेवमाहु से वीरे, धूतरए धूयमोहे से भिक्खू । तम्हा अज्झत्यविसुद्धे, सुविमुक्के आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ॥२२॥त्ति बेमि । ॥ इत्थीपरिण्णा सम्मत्ता चउत्थमज्झयणं ॥ ५ पंचम अज्झयणं 'णिरयविभत्ती' पढमो उद्देसओ ३००. पुच्छिस्स हं केवलियं महेसिं, कहऽभितावा णरगा पुरत्था। अजाणतो मे मुणि बूहि जाणं, कहं णु बाला णरगं उवेति ॥१॥३०१. एवं मए पुढे महाणुभागे, इणमब्बवी कासवे आसुपण्णे। पवेदइस्सं दुहमट्ठदुग्गं, आदीणियं दुक्कडियं पुरत्था॥२॥३०२. जे केइ बाला इह जीवियट्ठी, पावाई कम्माइं करेति रुद्दा । ते घोररूवे तिमिसंधयारे, तिव्वाभितावे नरए पडंति ।।३।। ३०३. तिव्वं तसे पाणिणो धावरे य, जे हिंसती आयसुहं पडुच्चा । जे लूसए होति अदत्तहारी, ण सिक्खती सेयवियस्स किंचि ॥४|| ३०४. पागब्भि पाणे बहुणं तिवाती, अणिव्वुडे घातमुवेति बाले। णिहो णिसं गच्छति अंतकाले, अहो सिर कट्ट उवेति दुग्गं ।।५।। ३०५. हण छिंदह भिंदह णं दहह, सद्दे सुणेत्ता परधम्मियाणं । ते नारगा ऊ भयभिन्नसण्णा, कंखंति के नाम दिसं वयामो ।।६।। ३०६. इंगालरासिं जलियं सजोति, ततोवमं भूमि अणोक्कमंता । ते डज्झमाणा कलुणं थणंति, अरहस्सरा तत्थ चिरद्वितीया ||७|| ३०७. जइ ते सुता वेतरणीऽभिदुग्गा, निसितो जहा खुर इव तिक्खसोता । तरंति ते वेयरणिं भिदुग्गं, उसुचोदिता सत्तिसु हम्ममाणा ।।८।। ३०८. कोलेहिं विज्झंति असाहुकम्मा, नावं उते सतिविप्पहूणा | अन्ने त्थ सूलाहिं तिसूलियाहिं, दीहाहिं विभ्रूण अहे करेति ॥९॥ ३०९. केसिंच बंधित्तु गले सिलाओ, उदगंसि बोलेति महालयंसि । कलंबुयावालुय मुम्मुरे य, लोलेति पच्चंति या तत्थ अन्ने ॥१०॥ ३१०. असूरियं नाम महब्मितावं, अंधंतमं दुप्पतरं महंतं । उड्डे अहे य तिरियं दिसासु, समाहितो जत्थऽगणी झियाति॥११|| ३११. जंसि गुहाए जलणेऽतियट्टे, अजाणओ डज्झति लुत्तपण्णे । सया य कलुणं पुण घम्मठाणं, गाढोवणीयं अतिदुक्खधम्म ||१२|| ३१२. चत्तारि अगणीओ समारभित्ता, जहिं कूरकम्माऽभितवेति बालं । ते तत्थ चिटुंतऽभितप्पमाणा, मच्छा व जीवंतुवजोतिपत्ता ॥१३॥ ३१३. संतच्छणं नाम महब्भितावं, ते नारगा जत्थ असाहुकम्मा । हत्थेहि पाएहि य बंधिऊणं, फलगं व तच्छंति कुहाडहत्था ||१४|| ३१४. रुहिरे पुणो वच्चसमूसियंगे, भिन्नुत्तमंगे परियत्तयंता। पयंतिणं णेरइए फुरते, सजीवमच्छे व अओकवल्ले ॥१५॥३१५. णो चेव ते तत्थ मसीभवंति, ण मिज्जती तिव्वभिवेदणाए। तमाणुभागं अणुवेदयंता, दक्खंति दक्खी इह दुक्कडेणं ॥१६|| ३१६. तहिं च ते लोलणसंपगाढे, गाढं सुतत्तं अगणिं वयंति । न तत्थ सातं लभतीऽभिदुग्गे, अरहिताभितावा तह वि तवेति म ॥१७॥ ३१७. से सुव्वती नगरवहे व सद्दे,दुहोवणीताण पदाण तत्थ । उदिण्णकम्माण उदिण्णकम्मा, पुणो पुणो ते सरहं दुहेति ॥१८॥ ३१८. पाणेहि णं पाव विजोजयंति, तंभे पवक्खामि जहातहेणं । दंडेहिं तत्था सरयंति बाला, सव्वेहिं दंडेहिं पुराकएहिं।।१९।। ३१९. ते हम्ममाणा णरए पडंति, पुण्णे दुरूवस्स महब्भितावे ते तत्थ चिट्ठती दुरूवभक्खी, तुटुंति कम्मोवगता किमीहिं ।।२०।। ३२०. सदा कसिणं पुण घम्मठाणं, गाढोवणीयं अतिदुक्खधम्मं । अंदूसु पक्खिप्प विहत्तु देह, वेहेण सीसं सेऽभितावयंति ।।२१।। ३२१. छिदति बालस्स खुरेण नक्कं, उढे वि छिंदंति दुवे विकण्णे। जिब्भं विणिक्कस्स विहत्थिमेत्तं, तिक्खाहिं सूलाहिं तिवातयंतिम २ ॥२२ ३२२. ते तिप्पमाणा तलसंपुड व्व, रातिदियं जत्थ थणंति बाला। गलंति ते सोणितपूयमंसं, पज्जोविता खारपदिद्धितंगा ।।२३|| जइ ते सुता लोहितपूयपाती, xer.055555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ६२ 5555555555555555555555555 HOROR 95听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ro95555555555555555 (२) सूयगड़ी प.सु.प.अ./ नरयविभक्ति उ-१-२/६ अ महापरित्यता [९]5555555555555$eoर GIR945555 HOLIC%研所乐乐明明明明明明玩玩乐乐乐乐所乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听GO बालागणीतेयगुणा परेण । कुंभी महंताधियपोरुसीया, समूसितालोहितपूयपुण्णा ।।२४।। ३२४. पक्खिप्प तासुंपपयंति बाले, अट्टस्सर ते कलुणं रसंते। तण्हाइता ते तउतंबतत्तं, पज्जिज्जमाणऽट्टतरं रसंति ॥२५।। ३२५. अप्पेण अप्पं इह वंचइत्ता, भवाहमे पुव्व सते सहस्से। चिट्ठति तत्था बहुकूरकम्मा, जहा कडे कम्मे तहा सि भारे ।।२६।। ३२६. समज्जिणित्ता कलुसं अणज्जा, इटेहि कंतेहि य विप्पहूणा । ते दुब्भिगंधे कसिणे य फासे, कम्मोवगा कुणिमे आवसंति ॥२७॥*** नरगविभत्तीए पढमो उद्देसओ सम्मत्तो॥ बीओ उद्देसओ ★ ★ ★ ३२७. अहावरं सासयदुक्खधम्म, तं भे पवक्खामि जहातहेणं । बाला जहा दुक्कडकम्मकारी, वेदेति कम्माइं पुरेकडाइं ॥१॥ ३२८. हत्थेहि पाएहि य बंधिऊणं, उदरं विकत्तंति खुरासिएहिं । गेण्हेतु बालस्स विहन्न देहं, वद्धं थिरं पिट्ठतो उद्धरंति ।।२।। ३२९. बाहू पकत्तंति य मूलतो से, थूलं वियासं मुहे आडहंति। रहंसि जुत्तं सरयंति बालं, आरुस्स विझंति तुदेण पढे ॥३॥ ३३०. अयं व तत्तं जलितं सजोति, ततोवमं भूमि अणोक्कमंता। ते डज्झमाणा कलुणं थणंति, उसुचोदिता तत्तजुगेसु जुत्ता ॥४॥ ३३१, बाला बला भूमि अणोक्कमंता, पविज्जलं लोहपहं व तत्तं । जंसीऽभिदुग्गंसि पवज्जमाणा, पेसे व दंडेहिं पुरा करेति ।।५।। ३३२. ते संपगाढंसि पवजमाणा, सिलाहिं हम्मंतिऽभिपातिणीहिं । संतावणी नाम चिरद्वितीया, संतप्पति जत्थ असाहुकम्मा ||६|| ३३३. कंदूसु पक्खिप्प पयंति बालं, ततो विडड्डा पुणरुप्पतंति । ते उड्ढकाएहिं पखज्जमाणा, अवरेहिं खज्जति सणप्फएहिं ।।७।। ३३४. समूसितं नाम विधूमठाणं, जं सोगतत्ता कलुणं थणंति । अहो सिरं कट्ट विगतिऊणं, अयं व सत्थेहिं समोसवेति ।।८।। ३३५. समूसिया तत्थ विसूणितंगा, पक्खीहिं खजति अयोमुहेहिं । संजीवणी नाम चिरद्वितीया, जंसि पया हम्मति पावचेता ।।९।। ३३६. तिक्खाहिं सूलाहिं भितावयंति, वसोवगं सोअरियं वलद्धं । ते सूलविद्धा कलुणं थणंति, एगंतदुक्खं दुहओ गिलाणा ॥१०॥ ३३७. सदा जलं ठाण निहं महंतं, जंसी जलंती अगणी अकट्ठा। चिटुंती तत्था बहुकूरकम्मा, अरहस्सरा केइ चिरद्वितीया ॥११॥३३८. चिता महंतीउ समारभित्ता, छुन्भंति ते तं कलुणं रसंतं । आवट्टति तत्थ असाहुकम्मा, सप्पि जहा पतितं जोतिमज्झे, ॥१२॥ ३३९. सदा कसिणं पुण घम्मठाणं, गाढोवणीयं अतिदुक्खधम्मं । हत्थेहिं पाएहि य बंधिऊणं, सत्तुं व दंडेहिं समारभंति ।।१३।। ३४०. भंति बालस्स वहेण पट्ठि, सीसं पि भिदति अयोधणेहिं । ते भिन्नदेहा व फलगावतट्ठा, तत्ताहिं आराहिं णियोजयंति ।।१४।। ३४१. अभिमुंजिया रुद्द असाहुकम्मा, उसुचोदिता हत्थिवहं वहति । एगं दुरुहित्तु दुए तयो वा, आरुस्स विज्झंति ककाणओ से।।१५।। ३४२. बाला बला भूमि अणोक्कमंता, पविज्जलं कंटइलं महंतं । विबद्ध तप्पेहिं विवण्णचित्ते, समीरिया कोट्ट बलि करेति ॥१६।। ३४३. वेतालिए नाम महब्भितावे, एगायते पव्वतमंतलिक्खे । हम्मति तत्था बहुकूरकम्मा, परं सहस्साण मुहुत्तगाणं ।।१७।। ३४४. संबाहिया दुक्कडिणो थणंति, अहो य रातो परितप्पमाणा । एगंतकूडे नरए महंते, कूडेण तत्था विसमे हृता उ ॥१८॥ ३४५. भंजंति णं पुव्वमरी सरोसं, समुग्गरे ते मुसले गहेतुं । ते भिन्नदेहारुहिरं वमंता, ओमुद्धगा धरणितले पडंति ॥१९|| ३४६. अणासिता नाम महासियाला, पगब्मिणो तत्थ सयायकोवा । खज्जति तत्था बहुकूरकम्मा, अदूरया संकलियाहिं बद्धा ।।२०।। ३४७. सदाजला नाम नदी भिदुग्गा, पविज्जला लोहविलीणतत्ता । जंसी भिदुग्गंसि पवज्जमाणा, एगाइयाऽणुक्कमणं करेति ॥२१॥ ३४८. एयाइं फासाइं फुसंति बालं, निरंतरं तत्थ चिरद्वितीयं । ण हम्ममाणस्स तु होति ताणं, एगो सयं पच्चणुहोति दुक्खं ।।२२।। ३४९. जं जारिसं पुव्वमकासि कम्म, तहेव आगच्छति संपराए । एगंतदुक्खं भवमज्जिणित्ता, वेदेति दुक्खी तमणंतदुक्खं ॥२३॥ ३५०. एताणि सोच्वा णरगाणि धीरे, न हिंसते कंचण सव्वलोए। एगंतदिट्ठी अपरिग्गहे उ, बुज्झिज्ज लोगस्स वसं न गच्छे ।।२४।। ३५१. एवं तिरिक्खे मणुयामरेसुं, चतुरंतऽणतं तदणुविवागं। स सव्वमेयं इति वेदयित्ता, कंखेज कालं धुवमाचरंतो।।२५|| त्ति बेमि★★★॥नरगविभत्ती सम्मत्ता । छ8 अज्झयणं 'महावीरत्थवोक ३५२. पुच्छिंसु णं समणा माहणा य, अगारिणो य परतित्थिया य । से के इणेगंतहिय धम्ममाहु, अणेलिसं साधुसमिक्खयाए ॥१॥ ३५३. कहं च णाणं कह दंसणं से, सीलं कहं नातसुतस्स आसी। जाणासि णं भिक्खु जहातहेणं, अहासुतं ब्रूहि जहा णिसंतं ॥२॥ ३५४. खेयण्णए से कुसले आसुपन्ने, अणतणाणी य अणंतदंसी जसंसिणो चक्खुपहे ठियस्स,जाणाहि धम्मं च धिइं च पेहा ।।३।। ३५५. उर्ल्ड अहे य तिरियं दिसासु, तसा यजेथावर जे य पाणा। से णिच्चणिच्चेहि समिक्ख पण्णे, दीवे व धम्म समियं उदाहु ।।४।। ३५६. से सव्वदंसी अभिभूय णाणी,निरामगंधे धिइमं ठितप्पा । अणुत्तरे सव्वजगंसि विज्जं, गंथातीते अभए अणाऊ ।।५।। ३५७. 55555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ६३ 5555555555555555555555555OOR 555555555555555555555555555555555QExams Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO55555555595 रायगडा ५.सु.अ./७ अ.कुसालपारभासय [१०] 出功$$ $ $ $$$ OR955555555555555555555555555555555555555555555555setog से भूतिपण्णे अणिएयचारी, ओहंतरे धीरे अणंतचक्खू । अणुत्तरं तप्पति सूरिए वा, वइरोयणिदे व तमं पगासे॥६॥ ३५८. अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं, णेता मुणी कासवे आसुपण्णे । इंदे व देवाण महाणुभावे, सहस्सनेता दिवि णं विसिटे ॥७॥ ३५९. से पण्णसा अक्खये सागरे वा, महोदधी वा वि अणंतपारे । अणाइले वा अकसायि मुक्के, सक्के व देवाहिपती जुतीमं ।।८।। ३६०. से वीरिएणं पडिपुण्णवीरिए, सुदंसणे वा णगसव्वसेटे । सुरालए वा वि मुदागरे से, विरायतेऽणेगगुणोववेते ॥९॥ ३६१. सयं सहस्साण उ जोयणाणं, तिगंडे से पंडगवेजयंते। से जोयणे णवणवते सहस्से, उड्ढुस्सिते हेढ़ सहस्समेगं ॥१०॥ ३६२. पुढे णभे चिट्ठति भूमिए ठिते, जं सूरिया अणुपरियट्टयंति । से हेमवण्णे बहुणंदणे य, जंसी रतिं वेदयंती महिंदा ॥११|| ३६३. से पव्वते सद्दमहप्पगासे, विरायती कंचणमट्ठवण्णे । अणुत्तरे गिरिसुय पव्वदुग्गे, गिरीवरे से जलिते व भोमे।।१२।। ३६४. महीय मज्झम्मि ठिते णगिदे, पण्णायते सूरिय सुद्धलेस्से। एवं सिरीए उस भूरिवण्णे, मणोरमे जोयति अच्चिमाली ॥१३।। ३६५. सुदंसणस्सेस जसो गिरिस्स, पवुच्चती महतो पव्वतस्स । एतोवमे समणे नायपुत्ते, जाती-जसो-दंसण-णाणसीले ॥१४|| ३६६. गिरिवरे वा निसहाऽऽयताणं, रुयगे व सेढे वलयायताणं । ततोवमे से जगभूतिपण्णे, मुणीण मज्झे तमुदाहु पण्णे ।।१५।। ३६७. अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं झियाई। सुसुक्कसुक्कं अपगंडसुक्वं, संखेंदु वेगंतवदातसुक्कं ॥१६।। ३६८. अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता। सिद्धिं गतिं साइमणंत पत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेणं ||१७|| ३६९. रुक्खेसु णाते जह सामली वा, जंसी रतिं वेतयंती सुवण्णा। वणेसु या नंदणमाहु सेटे, णाणेण सीलेण य भूतिपन्ने ।।१८।। ३७०. थणियं व सद्दाण अणुत्तरे तु, चंदो व ताराण महाणुभागे। गंधेसुया चंदणमाहु सेटे, सेटे मुणीणं अपडिण्णमाहु ॥१९॥ ३७१. जहा सयंभू उदहीण सेटे, णागेसुई या धरणिंदमाहु सेढे । खोतोदए वा रसवेजयंते, तवोवहाणे मुणिवेजयंते ॥२०॥ ३७२. हत्थीसु एरावणमाहु णाते, सीहे मियाणं सलिलाण गंगा। पक्खीसुया गरुले वेणुदेवे, णिव्वाणवादीणिह णायपुत्ते ॥२१॥ ३७३. जोहेसु णाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु । खत्तीण सेढे जह दंतवक्के, इसीण सेढे तह वद्धमाणे ॥२२॥ ३७४. दाणाण सेढे अभयप्पदाणं, सच्चेसु या अणवज्जं वदंति। तवेसु या उत्तमबंभचेरं, लोउत्तमे समणे नायपुत्ते ॥२३॥ ३७५. ठितीण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुधम्मा व सभाण सेट्ठा । निव्वाणसेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि णाणी॥२४॥ ३७६. पुढोवमे धुणति विगतगेहि, न सन्निहिं कुव्वति आसुपण्णे । तरितुं समुई व महाभवोघं, अभयंकरे वीरे अणंतचक्खू ।।२५।। ३७७. कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्थदोसा । एताणि वंता अरहा महेसी, ण कुव्वति पावं ण कारवेती ।।२६।। ३७८. किरियाकिरियं वेणझ्याणुवायं, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं । से सव्ववायं इति वेयइत्ता, उवट्ठिते संजम दीहरायं ||२७|| ३७९. से वारिया इत्थि सराइभत्तं, उवहाणवं दुक्खखयट्ठयाए। लोगं विदित्ता आरं परं च, सव्वं पभू वारिय सव्ववारं ॥२८॥ ३८०. सोच्चा य धम्म अरहतभासियं, समाहितं अट्ठपओवसुद्धं । तं सद्दहता य जणा अणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति ॥२९।। त्ति बेमि । ★ ★ ★महावीरत्थतो सम्मत्तो। षष्ठमध्ययनं समाप्तम्॥ ज सत्तमं अज्झयणं 'कुसीलपरिभासियं ३८१. पुढवी य आऊ अगणी य वाऊ, तण-रुक्ख-बीया य तसा य पाणा । जे अंडया जे य जराउ पाणा, संसेयया जे रसयाभिधाणा ॥१॥ ३८२. एताइं कायाइं पवेदियाई, एतेसुजाण पडिलेह सायं । एतेहिं कायेहि य आयदंडे, एतेसु या विप्परियासुविति ॥२॥ ३८३. जातीवहं अणुपरियट्टमाणे, तस-थावरेहिं विणिघायमेति । से जाति-जाती बहुकूरकम्मे, जं कुव्वती मिज्जति तेण बाले ॥३।। ३८४. अस्सिं च लोगे अदुवा परत्था, सतग्गसो वा तह अन्नहा वा । संसारमावन्न परं परं ते, बंधंति वेयंति य दुणियाई ॥४॥ ३८५. जे मायरं च पियरं च हेच्चा, समणव्वदे अगणि समारभेज्जा। अहाहु से लोगे कुसीलधम्मे, भूताई जे हिंसति आतसाते ।।५।। ३८६. उज्जालओ पाण तिवातएज्जा, निव्वावओ अगणि तिवातइज्जा । तम्हा उ मेहावि समिक्ख धम्म, ण पंडिते अगणि समारभेज्जा ॥६॥ ३८७. पुढवी वि जीवा आऊ वि जीवा, पाणा य संपातिम संपयंति । संसेदया कठ्ठसमस्सिता य, एते दहे अगणि समारभंते ॥७॥ ३८८. हरिताणि भूताणि विलंबगाणि,आहारदेहाई पुढो सिताई । जे छिंदती आतसुहं पडुच्चा, पागब्भि पाणे बहुणं तिवाती ॥८॥ ३८९. जाति च वुढिंच विणासयंते, बीयादि अस्संजय आयदंडे । अहाहु से लोए अणज्जधम्मे, बीयाति जे हिंसति आयसाते ।।९।। ३९०. गब्भाइ मिज्जति बुया-ऽबुयाणा, णरा परे पंचसिहा कुमारा । जुवाणगा मज्झिम थेरगा य, चयंतिं ते आउखए पलीणा ॥१०॥ ३९१. संबुज्झहा जंतवो माणुसत्तं, दटुं भयं बालिसेणं अलंभो। एगंतदुक्खे Ter555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ६४ 55555555555555555555 oxx Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in Education International 2013 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ★सूयांगसूत्रः जियाही, याचाहीअज्ञानी , नियतबाही, म १२३वाही, દેહાત્મવાદી, આત્મસ્વૈતવાદી, અકલવાદી, જગકર્તુત્વવાદી, વૈરારિોકવાઠી, અનુષ્ઠાનવાદી વિગેરેના વાદોન નું વિસ્તૃત વર્ણન કરી ને મતોનું યુક્તિપૂર્વક ખંડન કરી સ્યાદ્વાદ સિદ્ધાંતનું સ્થાપન કરેલ છે. * सूयगडांग सूत्र: क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, नियतवादी, अकारकवादी, देहात्मवादी, आत्मद्वैतवादी, अफलवादी, जगत्कर्तृत्ववादी, वैराशिकवादी, अनुष्ठानवादी इत्यादीके वादों का वर्णन करके उस मतों का युक्तिपूर्वक खंडन करके स्याद्वाद सिद्धांत की स्थापना की है। * Suyagadanga-sātra: Il depicts the theories and useless life-goal of the holders of ritualism, non-ritualism, agnosticism, destinism, non-relativity, body as a soul, souldualism, resultlessness, universaldoership,trinity. performism, etc. JainEducation international201003 For rate & Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KGROF# 555555 (२) सूयगडो प.सु. ७ अ./८ अ. बीरियं [११] 5555步步步步步步步历历万岁 明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐明乐乐乐乐乐 जरिते व लोए, सकम्मुणा विप्परियासुवेति ॥११|| ३९२. इहेगे मूढा पवदंति मोक्खं, आहारसंपज्जणवज्जणेणं । एगे य सीतोदगसेवणेणं, हुतेण एगे पवदंति मोक्खं 5 ॥१२॥ ३९३. पाओसिणाणादिसु णत्थि मोक्खो, खारस्स लोणस्स अणासएणं । ते मज्ज मंसं लसुणं च भोच्चा, अन्नत्थ वासं परिकप्पयंति॥१३|| ३९४. उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पातं उदगं फुसंता। उदगस्स फासेण सिया य सिद्धि, सिज्झिसुपाणा बहवे दगंसि ॥१४।। ३९५. मच्छा य कुम्माय सिरीसिवाय, मग्गू य उट्टा दगरक्खसा य । अट्ठाणमेयं कुसला वदंति, उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति ॥१५|| ३९६. उदगं जती कम्ममलं हरेज्जा, एवं सुहं इच्छामेत्तता वा । अंधव्व णेयारमणुस्सरित्ता, पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा ॥१६|| ३९७. पावाइं कम्माइं पकुव्वतो हि, सिओदगं तु जइ तं हरेज्जा । सिज्झिसु एगे दगसत्तघाती, मुसं वयंते जलसिद्धिमाहु ।।१७।। ३९८. हुतेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पातं अगणिं फुसंता । एवं सिया सिद्धि हवेज्ज तम्हा, अगणिं फुसंताण कुकम्मिणं पि।।१८।। ३९९. अपरिक्ख दि8 ण हु एव सिद्धी, एहिति ते घातमबुज्झमाणा । भूतेहिं जाण पडिलेह सातं, विज्जं गहाय तस-थावरेहिं|१९|| ४००. थणंति लुप्पंति तसंति कम्मी, पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू । तम्हा विदू विरते आयगुत्ते, द8 तसे य पडिसाहरेज्जा ।।२०।। ४०१. जे धम्मलद्धं वि णिहाय भुंजे, वियडेण साहट्ट य जो सिणाति । म जो धावति लूसयती व वत्थं, अहाहु से णागणियस्स दूरे॥२१॥४०२. कम्मं परिण्णाय दणंसि धीरे, वियडेण जीवेज्ज य आदिमोक्खं । से बीय-कंदाति अ जमाणे, विरते सिणाणादिसु इत्थियासु ॥२२।। ४०३. जे मातरं च पियरं च हेच्चा, गारं तहा पुत्त पसुं धणं च । कुलाई जे धावति साउगाई, अहाऽऽहु से सामणियस्स दूरे ॥ ||२३|| ४०४. कुलाई जे धावति सादुगाई, आघाति धम्म उदराणुगिद्धे । अहाहु से आयरियाण सतंसे, जे लावइज्जा असणस्स हेउं ॥२४॥ ४०५. निक्खम्म दीणे परभोयणम्मि, मुहमंगलि ओदरियाणुगिद्धे । नीवारगिद्धे व महावराहे, अदूर एवेहति घातमेव ॥२५॥ ४०६. अन्नस्स पाणस्सिहलोइयस्स, अणुप्पियं भासति सेवमाणे। पासत्थयं चेव कुसीलयं च, निस्सारए होति जहा पुलाए ॥२६|| ४०७. अण्णातपिंडेणऽधियासएज्जा, नो पूयणं तवसा आवहेज्जा । सद्देहिं रूवेहिं असज्जमाणे, सव्वेहिं कामेहिं विणीय गेहिं ।।२७।। ४०८. सव्वाइं संगाई अइच्च धीरे, सव्वाई दुक्खाइं तितिक्खमाणे । अखिले अगिद्धे अणिएयचारी, अभयंकरे भिक्खू अणाविलप्पा ॥२८॥ भारस्स जाता मुणि भुंजएज्जा, कंखेज पावस्स विग भिक्खू । दुक्खेण पुढे धुयमातिएज्जा, संगामसीसे व परं दमेज्जा ॥२९॥ ४१०. अवि हम्ममाणे फलगावतट्ठी, समागमं कंखति अंतगस्स । णिय कम्मण पवंचुवेति, अक्खक्खए वा सगडं ति बेमि ॥३०॥ ***॥ कुसीलपरिभासियं सम्मत्तं । सप्तममध्ययनं समाप्तम् ।। ८ अट्ठमं अज्झयणं 'वीरियं' ४११. दुहा चेयं सुयक्खायं, वीरियं ति पवुच्चति । किं नु वीरस्स वीरत्तं, केण वीरो त्ति वुच्चति ॥१॥४१२. कम्ममेगे पवेदेति, अकम्म वा वि सुव्वता । एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, जेहिं दिस्संति मच्चिया ॥२॥ ४१३. पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमायं तहाऽवरं । तब्भावादेसतो वा वि, बालं पंडितमेव वा ॥३॥ ४१४. सत्थमेगे सुसिक्खंति, अतिवायाय पाणिणं । एगे मंते अहिज्जति, पाणभूयविहेडिणो॥४॥४१५. माइणो कट्ट मायाओ, कामभोगे समारभे। हंता छेत्ता पकत्तित्ता, आयसायाणुगामिणो ।।५।। ४१६. मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो। आरतो परतो यावि, दुहा विय असंजता।।६।।४१७. वेराई कुव्वती वेरी, ततो वेरेहिं रज्जती। पावोवगा य आरंभा, दुक्खफासाय अंतसो॥७॥४१८.संपरागं णियच्छंति, अत्तदुक्कडकारिणो । रोग-दोसस्सिया बाला, पावं कुव्वंति ते बहुं ||८|| ४१९. एतं सकम्मविरियं, बालाणं तु पवेदितं । एत्तो अकम्मविरियं पंडियाणं सुणेह मे ॥९॥ ४२०. दविए बंधणुम्मुक्के, सव्वतो छिण्णबंधणे । पणोल्ल पावगं कम्म, सल्लं कंतति अंतसो ॥१०॥ ४२१. णेयाउयं सुयक्खातं, उवादाय समीहते । मुज्जो भुज्जो दुहावासं, असुभत्तं तहा तहा॥११॥ ४२२. ठाणी विविहठाणाणि, चइस्संति न संसओ। अणीतिते अयं वासे, णायएहिय सुहीहि य॥१२।। ४२३. एवमायाय मेहावी, अप्पणो गिद्धिमुद्धरे। आरियं उवसंपज्ने सव्वधम्ममकोवियं ॥१३॥ ४२४. सहसम्मुइए णच्चा, धम्मसारं सुणेत्तु वा। समुवट्टिते अणगारे, पच्चक्खायपावए॥१४॥ ४२५. जं किंचुवक्कम जाणे, आउक्खेमस्स अप्पणो। तस्सेव अंतरा खिप्प, सिक्खं सिक्खेज पंडिते ॥१५॥ ४२६. जहा कुम्मे सअंगाई, सए देहे समाहरे । एवं पावाई मेधावी, अज्झप्पेण समाहरे॥१६॥ ४२७. साहरे हत्थ-पादे य, मणं सव्वेंदियाणि य। पावगं च परीणाम, भासादोसं च तारिसं ॥१७॥ ४२८. अणु माणं च मायं च, तं परिण्णाय पंडिए । सातागारवणिहुते, उवसंतेऽणिहे चरे ॥१८॥ ४२९. पाणे य णाइवातेज्जा, अदिण्णं पि य णोदिए । सादियं ण मुसं बूया, एस धम्मे वुसीमतो rver.c45555555555555555555555# श्री आगमगुणमंजूषा ६५ 5555555555555555555555533OOK 明明明明明明明听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听FQ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR9555555555555555 (२) सूयगडो प.सु.८ अ./९ अ. धम्मो [१२] 55555555555520 555555555 听听听听听听乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明5 ॥१९|| ४३०. अतिक्कम ति वायाए, मणसा विण पत्थए । सव्वतो संवुडे दंते, आयाणं सुसमाहरे ॥२०॥ ४३१. कडं च कज्जमाणं च, आगमेस्सं च पावगं । सव्वं तं णाणुजाणंति, आतगुत्ता जिइंदिया ॥२१॥ ४३२. जे याऽबुद्धा महानागा, वीरा असम्मत्तदंसिणो। असुद्धं तेसि परक्कंतं, सफलं होइ सव्वसो ।।२२।। ४३३. जे य बुद्धा महानागा. वीरा सम्मत्तदंसिणो। सुद्धं तेसिं परक्वंतं, अफलं होति सव्वसो॥२३|| ४३४. तेसिं पि तवोऽसुद्धो, निक्खंता जे महाकुला। जं नेवऽन्ने वियाणंति, न सिलोगं पवेदए ।॥२४॥ ४३५. अप्पपिंडासि पाणासि, अप्पं भासेज सुव्वते । खंतेऽभिनिव्वुडे दंते, वीतगेही सदा जते ॥२५॥ ४३६. झाणजोगं समाहट्ट, कायं विउसेज्ज सव्वसो। तितिक्खं परमं णच्चा, आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ॥२६||त्ति बेमि। *** वीरियं सम्मत्तं । अष्टममध्ययनं समाप्तम् ।। नवमं अज्झयणं 'धम्मे ऊ४३७. कतरे धम्मे अक्खाते माहणेण मतीमता। अंजु धम्मं अहातच्चं जिणाणं तं सुणेह मे ॥१॥ माहणा खत्तिया वेस्सा, चंडाला अदु बोक्कसा । एसिया वेसिया सुद्दा, जे या आरंभणिस्सिता ॥२॥ ४३९. परिग्गहे निविट्ठाणं, वेरं तेसिं पवड्डई । आरंभसंभिया कामा, न ते दुक्खविमोयगा ।।३।। ४४०. आघातकिच्चमाधातुं नायओ विसएसिणो । अन्ने हरंति तं वित्तं, कम्मी कम्मेहिं कच्चति ||४|| ४४१. माता पिता ण्हुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । णालं ते तव ताणाए, लुप्पंतस्स सकम्मुणा ॥५॥ ४४२. एयम8 सपेहाए, परमट्ठाणुगामियं । निम्ममो निरहंकारो, चरे भिक्खू जिणाहितं ॥६॥ ४४३. चेच्चा वित्तं च पुत्ते य, णायओ य परिग्गहं । चेच्चाण अंतगं सोयं निरवेक्खो परिव्वए ।।७।। ४४४. पुढवाऽऽऊ अगणि वाउ तण रुक्ख सबीयगा। अंडया पोय-जराऊ-रस-संसेयउब्भिया ||८|| ४४५. एतेहिं छहिं काएहिं, तं विजं परिजाणिया। मणसा कायवक्केणं, णारंभी ण परिग्गही ।।९।। ४४६. मुसावायं बहिद्धं च, उग्गहं च अजाइयं । सत्थादाणाइं लोगंसि, तं विजं परिजाणिया ।।१०|| ४४७. पलिउंचणं च भयणं च, थंडिल्लुस्सयणाणि य । धूणाऽऽदाणाइं लोगंसि, तं विज्नं परिजाणिया ||११|| ४४८. धोयणं रयणं चेव, वत्थीकम्म विरेयणं । वमणंजण पलिमंथं, तं विजं परिजाणिया ॥१२॥ ४४९. गंध मल्ल सिणाणं च, दंतपक्खालणं तहा। परिग्गहित्थिक कम्मं च, तं विज्नं परिजाणिया॥१३॥ ४५०. उद्देसियं कीतगडं, पामिच्चं चेव आहडं । पूति अणेसणिज्जं च, तं विज्जं परिजाणिया॥१४॥ ४५१. आसूणिमक्खिरागं च, गिद्धवघायकम्मगं । उच्छोलणं च कक्कं च, तं विज्जं परिजाणिया ।।१५।। ४५२. संपसारी कयकिरिओ, पसिणायतणाणि य । सागारियपिंडं च, तं विजं है परिजाणिया ।।१६।। ४५३. अट्ठापदं ण सिक्खेज्जा, वेधादीयं च णो वदे। हत्थकम्मं विवादं च, तं विजं परिजाणिया॥१७।। ४५४. पाणहाओ य छत्तं च, णालियं वालवीयणं । परकिरियं अन्नमन्नं च, तं विज्नं परिजाणिया ।।१८।। ४५५. उच्चारं पासवणं, हरितेसुण करे मुणी । वियडेण वा वि साहट्ट, णायमेज्ज कयाइ वि ॥१९॥ ४५६. परमत्ते अन्नपाणं च, ण भुजेज्ज कयाइ वि । परवत्थमचेलो वि, तं विज्नं परिजाणिया ॥२०॥ ४५७. आसंदी पलियंके य, णिसिज्जं च गिहतरे। संपुच्छणं च सरणं च, तं विजं परिजाणिया॥२१||४५८. जसं कित्तिं सिलोगं च, जा य वंदणपूयणा । सव्वलोयंसि जे कामा, तं विज्जं परिजाणिया ॥२२॥४५९. जेणेहं णिव्वहे भिक्खू, अन्न-पाणं तहाविहं । अणुप्पदाणमन्नेसिं, तं विज्जं परिजाणिया॥२३।। ४६०. एवं उदाहु निग्गंथे, महावीरे महामुणी । अणंतणाणदंसी से, धम्म देसितवं सुतं |२४|| ४६१. भासमाणो न भासेज्जा, णेय वंफेज मम्मयं । मातिट्ठाणं विवज्जेज्जा, अणुविति वियागरे।।२५।। ४६२. तत्थिमा ततिया भासा, जं वदित्ताऽणुतप्पती। जं छन्नं तं न वत्तव्वं, एसा आणा नियंठिया ॥२६।। ४६३. होलावायं सहीवायं, गोतावायं च नो वदे । तुमं तुमं ति अमणुण्णं, सव्वसो तं ण वत्तए ॥२७|| ४६४. अकुसीले सया भिक्खू, णो य संसग्गियं भए। सुहरूवा तत्थुवस्सग्गा, पडिबुज्झेज ते विदू ।।२८।। ४६५. णण्णत्थ अंतराएणं, परगेहे ण णिसीयए। गामकुमारियं किहुं, नातिवेलं हसे मुणी ||२९|| ४६६. अणुस्सुओ उरालेसु, जयमाणो परिव्वए। चरियाए अप्पमत्तो, पुट्ठो तत्थऽहियासते ||३०|| ४६७. हम्ममाणो न कुप्पेज्जा, वुच्चमाणो न संजले। सुमणो अहियासेज्जा, ण य कोलाहलं करे॥३१|| ४६८. लद्धे कामेण पत्थेज्जा, विवेगे एसमाहिए। आरियाई सिक्खेज्जा, बुद्धाणं अंतिए सया ||३२|| ४६९. सुस्सूसमाणो उवासेज्जा, सुप्पण्णं सुतवस्सियं । वीराजे अत्तपण्णेसी, धितिमंता जितिदिया ||३३।। ४७०. गिहे दीवमपस्संता, पुरिसादाणिया नरा । ते वीरा बंधणुम्मुक्का, नावकंखंति जीवितं ॥३४|| ४७१. अगिद्धे सद्द-फासेसु, आरंभेसु अणिस्सिते । सव्वेतं समयातीतं, जमेतं लवितं बहुं ||३५|| ४७२. अतिमाणं च मायं च, तं परिणाय पंडिते। गारवाणि य सव्वाणि, निव्वाणं संधए मुणि॥३६||त्ति बेमि★★★|| धम्मो सम्मत्तो। नवममध्ययनं समाप्तम् words5555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ६६ 5555555555555555555555555#FOOK OT明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐03 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MO.95555555555555559 (२) सूयगडी प.सु.५ अ./१० अ.समाही/११ अ. मग [१३] 1555555555555555FOXOS १० दसमं अज्झयणं समाही' ४७३. आघं मइमं अणुवीति धम्म, अंजू समाहिं तमिणं सुणेह। अपडिण्णे भिक्खूतु समाहिपत्ते, अणियाणभूतेसु परिव्वएज्जा ॥१|| ४७४. उड्ढढं अहे य तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा । हत्थेहि पाएहि य संजमेत्ता, अदिण्णमन्नेसु य नो गहेज्जा ।।२।। ४७५. सुअक्खातधम्मे वितिगिच्छतिण्णे, लाढे चरे आयतुले पयासु। आयं न कुज्जा इह जीवियट्ठी, चयं न कुज्जा सुतवस्सि भिक्खू ॥३।। ४७६. सव्विदियऽभिनिव्वुडे पयासु, चरे मुणी सव्वतो विप्पमुक्के । पासाहि पाणे य पुढो वि सत्ते, दुक्खेण अट्टे परिपच्चमाणे ॥४॥ ४७७. एतेसुबाले य पकुव्वमाणे, आवट्टती कम्मसु पावएसु। अतिवाततो कीरति पावकम्म, निउंजमाणे उकरेति कम्मं ॥५॥ ४७८. आदीणभोई वि करेति पावं, मंतातु एगंतसमाहिमाहु। बुद्धे समाहीय रते विवेगे, पाणातिपाता विरते ठितप्पा ।।६।। ४७९. सव्वं जगं तू समयाणुपेही, पियमप्पियं कस्सइ नो करेजा। उट्ठाय दीणे तु पुणो विसण्णे, संपूयणं चेव सिलोयकामी ||७|| ४८०. आहाकडं चेव निकाममीणे, निकामसारी य विसण्णमेसी। इत्थीसु सत्ते य पुढो य बाले, परिग्गहं चेव पकुव्वमाणे ||८॥ ४८१. वेराणुगिद्धे णिचयं करेति, इतो चुते से दुहमट्ठदुग्गं । तम्हा तु मेधावि समिक्ख धम्म, चरे मुणी सव्वतो विप्पमुक्के ॥९|| ४८२. आयं न कुज्जा इह जीवितट्ठी, असज्जमाणो य परिव्वएज्जा। णिसम्मभासी जय विणीय गिद्धिं, हिंसण्णितं वा ण कह करेज्जा ॥१०|| ४८३. आहाकडं वा ण णिकामएज्जा, णिकामयंते य ण संथवेज्जा । धुणे उरालं अणुवेहमाणे, चेच्चाण सोयं अणपेक्खमाणे ॥११॥ ४८४. एगत्तमेव अभिपत्थएज्जा, एवं पमोक्खो ण मुसं ति पास । एसप्पमोक्खो अमुसे वरे वी अकोहणे सच्चरते तवस्सी ॥१२॥ ४८५. इत्थीसुया आरत मेहुणा उ, परिग्गहं चेव अकुव्वमाणे । उच्चावएसु विसएसु ताई, णिस्संसयं भिक्खू समाहिपत्ते ॥१३॥ ४८६. अरति रतिं च अभिभूय भिक्खू, 4 तणाइफासं तह सीतफासं। उण्हं च दंसं च हियासएज्जा, सुन्भिं च दुब्भिं च तितिक्खएज्जा ।।१४।। ४८७. गुत्तो वईए य समाहिपत्ते, लेसं समाहट्ट परिवएज्जा । गिहं न छाए ण वि छावएज्जा, संमिस्सभावं पजहे पयासु ॥१५॥ ४८८. जे केइ लोगंसि उ अकिरियाया, अण्णेण पुट्ठा धुतमादिसति । आरंभसत्ता गढिता य लोए, धम्म न याणंति विमोक्खहेउं ॥१६।। ४८९. पुढो य छंदा इह माणवा उ, किरियाकिरीणं च पुढो य वायं । जायस्स बालस्स पकुव्व देहं, पवडती वेरमसंजतस्स ॥१७॥ ४९०. आउक्खयं चेव अबुज्झमाणे, ममाति से साहसकारि मंदे। अहो य रातो परितप्पमाणे, अट्टे सुमूढे अजरामर व्व ।।१८।। ४९१. जहाहि वित्तं पसवो य सव्वे, जे बांधवा जे य पिता य मित्ता। लालप्पती सो वि य एइ मोहं, अन्ने जणा तं सि हरति वित्तं ॥१९|| ४९२. सीहं जहा खुद्दमिगा चरंता, दूरे चरंती परिसंकमाणा । एवं तु मेधावि समिक्ख धम्म, दूरेण पावं परिवज्जएज्जा ||२०|| ४९३. संबुज्झमाणे तुणरे मतीमं, पावातो अप्पाण निवट्टएज्जा। हिंसप्पसूताई दुहाई मंता, वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ॥२१॥ ४९४. मुस न बूया मुणि अत्तगामी, णिव्वाणमेयं कसिणं समाहिं । सयं न कुज्जा न वि कारवेज्जा, करेंतमन्नं पि य नाणुजाणे ।।२२।। ४९५. सुद्धे सिया जाए न दूसएज्जा, अमुच्छिते ण य अज्झोववण्णे । धितिमं विमुक्के ण य पूयणट्ठी, न सिलोयकामी य परिव्वएज्जा।।२३।। ४९६. निक्खम्म गेहाउ निरावकंखी, कायं विओसज्ज नियाणछिण्णे । नो जीवितं नो मरणाभिकंखी, चरेज्ज भिक्खू वलया विमुक्के ।।२४।। त्ति बेमि । समाही सम्मत्ता । दशममध्ययनं ॥ समाप्तम् ॥ ११ एगारसमं अज्झयणं मग्गे ४९७. कयरे मग्गे अक्खाते, माहणेण मतीमता। जं मग्गं उज्जु पावित्ता, ओहं तरति दुत्तरं ॥१॥ ४९८. तं मग्गं अणुत्तरं सुद्धं, सव्वदुक्खविमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू, तंणे बूहि महामुणी ॥२।। ४९९. जइणे केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा। तेसिं तु कतरं मग्गं, आइक्खेज्ज कहाहि णे ॥३।। ५००. जइ वो केइ पुच्छिज्जा,देवा अदुव माणुसा। तेसिमं पडिसाहेज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥४॥ ५०१. अणुपुव्वेण महाघोरं कासवेण पवेदियं । जमादाय इओ पुव्वं, समुदं व ववहारिणो॥५॥ ५०२. अतरिसुतरतेगे, तरिस्संति अणागता । तं सोच्चा पडिवक्खामि, जंतवो तं सुणेह मे ।।६।। ५०३. पुढवीजीवा पुढो सत्ता, आउजीवा तहागणी । वाउजीवा पुढो सत्ता, तण रुक्ख सबीयगा ||७|| ५०४. अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया। के इत्ताव ताव जीवकाए, नावरे विज्जती काए ।।८॥ ५०५. सव्वाहि अणुजुत्तीहिं, मतिमं पडिलेहिया । सव्वे अकंतदुक्खा य, अतो सव्वे न हिंसया ।।९।। ५०६. एयं खु णाणिणो सारं, जं न हिंसति कंचणं । अहिंसा समयं चेव, एतावंतं विजाणिया॥१०॥ ५०७. उड्डे अहे तिरियं च, जे केइ तस-थावरा । सव्वत्थ विरतिं विज्जा, संति निव्वाणमाहियं ॥११॥ ५०८. पभू दोसे निराकिच्चा, ण विरुज्झेज केणति । मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो ॥१२॥ ५०९. संवुड़े से महापण्णे, धीरे ROOFF#5555555555555555555 श्री आगमगणमंजूषा ६७ 545555555555555555555555555OR CO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐听听 卐555555555555555559 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGROmanan 555555555 (२) सूयगडो प.सु. ११.अ./१२-अ.समोसरण [१४] - 5555555555555550xong FeXO 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 दत्तेसणं चरे। एसणासमिए णिच्चं, वज्जयंते अणेसणं ।।१३।। ५१०. भूयाई समारंभ, समुद्दिस्स यजं कडं । तारिसं तु ण गेण्हेज्जा, अन्नं पाणं सुसंजते॥१४॥५११. पूतिकम्मंण सेवेज्जा, एस धम्मे वुसीमतो । जं किंचि अभिकंखेज्जा, सव्वसो तं ण कप्पते ॥१५॥ ५१२. हणंतं नाणुजाणेज्जा, आतगुत्ते जिइंदिए । ठाणाई संति सड्डीणं, गामेसु णगरेसु वा ।।१६।। ५१३. तहा गिरं समारंभ, अत्थि पुण्णं ति नो वदे। अहवा णत्थि पुण्णं ति, एवमेयं महब्भयं ।।१७।। ५१४. दाणट्ठयाए जे पाणा, के हम्मति तस-थावरा। तेसिंसारक्खणट्ठाए, तम्हा अस्थि त्तिणो वए।।१८।। ५१५. जेसिंतं उवकप्पेति, अण्ण-पाणं तहाविहं । तेसिं लाभंतरायं ति, तम्हा णत्थि त्ति णो वदे ॥१९॥ ५१६. जे य दाणं पसंसंति, वहमिच्छंति पाणेणं । जे य णं पडिसेहंति, वित्तिच्छेयं करेंति ते ॥२०॥ ५१७. दुहओ वि ते ण भासंति, अत्थि वा नत्थि वा पुणो । आयं रयस्स हेच्वाणं, णिव्वाणं पाउणंति ते॥२१५१८. णिव्वाणं परमं बुद्धा, णक्खत्ताण व चंदिमा। तम्हा सया जते दंते, निव्वाणं संधते मुणी ।।२२।। ५१९. वुज्झमाणाण पाणाणं, कच्चंताण सकम्मुणा । आधाति साहु तं दीवं, पतिढेसा पवुच्चती ॥२३॥ ५२०. आयगुत्ते सया दंते, छिण्णसोए अणासवे । जे धम्म सुद्धमक्खाति, पडिपुण्णमणेलिसं ॥२४॥ ५२१. तमेव अविजाणंता, अबुद्धा बुद्धमाणिणो । बुद्धा मोत्ति य मण्णंता, अंतए ते समाहिए॥२५।। ५२२. ते य बीओदगं चेव, तमुहिस्सा य जं कडं । भोच्चा झाणं झियायंति, अखेतण्णा असमाहिता ॥२६।। ५२३. जहा ढंका य कंका य, कुलला मग्गुका सिही । मच्छेसणं झियायंति, झाणं ते कलुसाधमं ॥२७|| ५२४. एवं तु समणा एगे, मिच्छद्दिट्ठी अणारिया। विसएसणं झियायंति, कंका वा कलुसाहमा ॥२८॥ ५२५. सुद्धं मग्गं विराहित्ता, इहमेगे उ दुम्मती । उम्मग्गगता दुक्खं, घंतमेसंति ते तधा ।।२९।। ५२६. जहा आसाविणिं नावं, जातिअंधे दुरूहिया । इच्छती पारमागंतुं, अंतरा य विसीयती है ॥३०॥ ५२७. एवं तु समणा एगे, मिच्छद्दिट्ठी अणारिया। सोयं कसिणमावण्णा, आगंतारो महब्भयं ॥३१॥ ५२८. इमं च धम्ममादाय, कासवेण पवेदितं । तरे सोयं महाघोरं, अत्तत्ताए परिव्वए ॥३२॥ ५२९. विरते गामधम्मेहिं, जे केइ जगती जगा । तेसिं अत्तुवमायाए, थाम कुव्वं परिव्वए ।।३३।। ५३०. अतिमाणं च मायं च, तं परिण्णाय पंडिते । सव्वमेयं निराकिच्चा, निव्वाणं संघए मुणी॥३४॥ ५३१. संधते साहुधम्मं च, पावं धम्म णिराकरे । उवधाणवीरिए भिक्खू, कोहं माणं न पत्थए ॥३५॥ ५३२. जे य बुद्धा अतिक्कंता, जे य बुद्धा अणागता। संति तेसिं पतिट्ठाणं, भूयाणं जगती जहा ॥३६।। ५३३. अह णं वतमावण्णं, फासा उच्चावया फुसे । ण तेसु विणिहाणेज्जा, वातेणेव महागिरी ||३७|| ५३४. संवुडे से महापण्णे, धीरे दत्तेसणं चरे। निव्वुडे कालमाकंखी, एवं केवलिणो मयं ॥३८॥ त्ति बेमि।★★★|| मग्गो समत्तो एकादशमध्ययनम्बारसमं अज्झयणं 'समोसरणं' ५३५. चत्तारि समोसरणाणिमाणि, पावादुया जाइं पुढो वयंति । किरियं अकिरियं विणयं ति तइयं, अण्णाणमाहंसु चउत्थमेव ।।१।। ५३६. अण्णाणिया ता कुसला वि संता, असंथुया णो वितिगिछतिण्णा । अकोविया आहु अकोवियाए, अणाणुवीयीति मुसं वदंति ॥२|| ५३७. सच्चं असच्चं इति चिंतयंता, असाहु साहु त्ति उदाहरंता । जेमे जणा वेणइया अणेगे, पुट्ठा वि भावं विणइंसु नाम ।।३।। ५३८. अणोवसंखा इति ते उदाहु, अढे स ओभासति अम्ह एवं । लवावसंकी य अणागतेहिं, णो किरियमाहंसु अकिरियआया ||४|| ५३९. सम्मिस्सभावं सगिरा गिहीते, से मुम्मुई होति अणाणुवादी । इमं दुपक्खं इममेगपक्खं, आहंसु छलायतणं च कम्मं ।।५।। ५४०. ते एवमक्खंति अबुज्झमाणा विरूवरूवाणि अकिरियाता । जमादिदित्ता बहवो मणूसा, भमंति संसारमणोवतग्गं ।।६।। ५४१. णाइच्चो उदेति ण अत्थमेति, ण चंदिमा वड्ती हायती वा। सलिला ण संदंति ण वंति वाया, वंझे ॥ णियते कसिणे हुलोए॥७॥ ५४२. जहा य अंधे सह जोतिणा वि, रूवाई णो पस्सति हीणनेत्ते । संतं पि ते एवमकिरियआता, किरियं ण पस्संति निरुद्धपण्णा ।।८।। ५४३. संवच्छरं सुविणं लक्खणं च, निमित्तं देहं उप्पाइयं च । अटुंगमेतं बहवे अहित्ता, लोगंसि जाणंति अणागताई ॥९॥ ५४४. केई निमित्ता तहिया भवंति, केसिचि तं विप्पडिएति णाणं। ते विज्जभावं अणहिज्जमाणा, आहंसु विज्जापलिमोक्खमेव ||१०|| ५४५. ते एवमक्खंति समेच्च लोगं, तहा तहा समणा माहणा य। सयंकडं णण्णकडं च दुक्खं, आहेसु विज्जाचरणं पमोक्खं ॥११|| ५४६. ते चक्खु लोगंसिह णायगा तु, मग्गाऽणुभासंति हितं पयाणं । तहा तहा सासयमाहुलोए, जंसी पया माणव ! संपगाढा ।।१२।। ५४७. जे रक्खसाया जमलोइयाया, जे या सुरा गंधव्वा य काया। आगासगामी य पुढोसिया य, पुणो पुणो विप्परियासुवेति ॥ २ ॥१३॥ ५४८. जमाहु ओहं सलिलं अपारगं जाणाहि णं भवगहणं दुमोक्खं । जंसी विसन्ना विसयंगणाहिं, दुहतो वि लोयं अणुसंचरंति ॥१४॥ ५४९. ण कम्मुणा yerros55 5 5555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-६८०5555555555555555555555GORK 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明 0555555 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K6666666666 (२) सूयगडी प.सु. १२.अ./ १३ अ. आहर्त्तायं १४. गंधी [१५] फफफफफफफफफफफ कम्म खवेति बाला, अकम्मुणा उ कम्म खवेति धीरा । मेधाविणो लोभमयावतीता, संतोसिणो णो पकरेति पावं ॥ १५ ॥ ५५०. ते तीत उप्पण्ण-मणागताई, लोगस्स जाणंति तहागता । णेतारो अण्णेसि अणण्णणेया, बुद्धा हु ते अंतकडा भवंति |||१६|| ५५१. ते णेव कुव्वंति ण कारवेति, भूताभिसंकाए दुगुंछमाणा । सया जता विप्पणमंति धीरा, विण्णत्तिधी (वी) रा य भवंति एगे ||१७|| ५५२. डहरे य पाणे बुड्ढे य पाणे, ते आततो पासति सव्वलोए । उवेहती लोगमिणं महंत, बुद्धऽप्पमत्तेसु परिव्वएज्जा ।।१८।। ५५३. जे आततो परतो यावि णच्चा, अलमप्पणो होति अलं परेसिं । तं जोतिभूतं च सता (सतता ? ) ऽऽवसेज्जा, जे पादुकुज्जा अणुवीय धम्मं ।। १९।। ५५४. अत्ताण जो जाणति जो य लोगं, आगई च जो जाणइऽणागडं च। जो सासयं जाणइ असासयं च, जाती मरणं च जणोववातं ||२०|| ५५५. अहो वि सत्ताण विउट्टणं च, जो आसवं जाणति संवरं च । दुक्खं च जो जाणति निज्जरं च, सो भासितुमरिहति किरियवाद || २१ || ५५६. सद्देसु रूवेसु असज्जमाणे, गंधेसु रसेसु अदुस्समाणे । जो जीवियं णो मरणाभिकखी, आदाणगुत्ते वलयाविमुक्के ॥२२॥ त्ति बेमि।★★★ | समोसरणं सम्मत्तं 1555 द्वादशमध्ययनं समाप्तम् ।। १३ तेरसमं अज्झयणं 'आहत्तहियं' 55 ५५७. आहत्तहियं तु पवेयइस्सं, नाणप्पकारं पुरिसस्स जातं । सतो य धम्मं असतो य सीलं, संतिं असंतिं करिस्सामि पाउं ॥ १॥ ५५८. अहो य रातो य समुट्ठितेहिं, तहागतेहिं पडिलब्भ धम्मं । समाहिमाघातमझोसयंता, सत्थारमेव फरुसं वयंति ||२|| ५५९. विसोहियं ते अणुकाहयंते, जे आतभावेण वियागरेज्जा । अट्ठाणिए होति बहूगुणाणं, जे णाणसंकाए मुसं वदेज्जा ||३|| ५६०. जे यावि पुट्ठा पलिउंचयंति, आदाणमट्टं खलु वंचयंति। असाहुणो ते इह साधुमाणी, मायण्णि एसिति अणंतघंतं ||४|| ५६१. जे कोहणे होति जगट्टभासी, विओसियं जे उ उदीरएज्जा । अंधे व से दंडपहं गहाय, अविओसिए घासति पावकम्मी ||५|| ५६२. जे विग्गहीए अन्नायभासी, न से समे होति अझंझपत्ते। ओवायकारी य हिरीमणे य, एगंतदिट्ठी य अमाइरूवे ||६|| ५६३. से पेसले सुहुमे पुरिसजाते, जच्चण्णिए चेव सुउज्जुयारे । बहुं पि अणुसासिते जे तहच्चा, समे हु से होति अझंझपत्ते ||७|| ५६४. जे आवि अप्पं वसुमं ति मंता, संखाय वादं अपरिच्छ कुज्ना । तवेण वा हं सहिते त्ति मंता, अण्णं जणं पस्सति बिंबभूतं ॥ ८॥। ५६५. एगंतकूडेण तु से पलेति, ण विज्जती मोणपदंसि गोते । जे माणणद्वेण विउक्कसेज्जा, वसुमण्णतरेण अबुज्झमाणे ||९|| ५६६. जे माहणे जातिए खत्तिए वा, तह उग्गपुत्ते तह लेच्छती वा । जे पव्वइते परदत्तभोइ, गोत्ते ण जे थब्भति माणबद्धे ||१०|| ५६७. ण तस्स जाती व कुलं व ताणं, णण्णत्थ विज्जा-चरणं सुचिण्णं । णिक्खम्म जे सेवतिऽगारिकम्मं, से पार होति विमोयणाए ॥११॥ ५६८. णिक्किंचणे भिक्खू सुलूहजीवी, जे गारवं होति सिलोयगामी। आजीवमेयं तु अबुज्झमाणे, पुणो पुणो विप्परियासुवेति ||१२|| ५६९. जे भासवं भिक्खु सुसाधुवादी, पडिहाणवं होति विसारए य । आगाढपण्णे सुविभावितप्पा, अण्णं जणं पण्णसा परिभवेज्जा | १३ || ५७०. एवं ण से होति समाहिपत्ते, जे पण्णसा भिक्खु विउक्कसेज्जा । अहवा वि जे लाभमयावलित्ते, अण्णं जणं खिसति बालपण्णे ||१४|| ५७१. पण्णामयं चेव तवोमयं च, णिण्णामए गोयमयं च भिक्खू । आजीवगं चेव चउत्थमाहु, से पंडिते उत्तमपोग्गले से ||१५|| ५७२. एताई मदाई विगिंच धीरे, ण ताणि सेवंति सुधीरधम्मा । ते सव्वगोत्तावगता महेसी, उच्चं अगोत्तं च गतिं वयंति ॥ १६ ॥ ५७३. भिक्खू मुयच्चा तह दिट्ठधम्मे, गामं च (व?) णगरं च (व?) अणुप्पविस्सा। से एसणं जाणमणेसणं. च, अण्णस्स पाणस्स अणाणुगिद्धे ||१७|| ५७४ अरतिं रतिं च अभिभूय भिक्खू, बहूजणे वा तह एगचारी । एगंतमोणेण वियागरेज्जा, एगस्स जंतो गतिरागति य ।। १८ ।। ५७५. सयं समेच्चा अदुवा वि सोच्चा, भासेज्ज धम्मं हितदं पयाणं । जे गरहिया सणियाणप्पओगा, ण ताणि सेवंति सुधीरधम्मा || १९|| ५७६. केसिचि तक्काइ अबुज्झ भावं, खुहुं पि गच्छेज्ज असद्दहाणे । आयुस्स कालातियारं वघातं, लद्धाणुमाणे य परेसु अट्ठे ||२०|| ५७७. कम्मं च छंदं च विविंच धीरे, विणएज्ज उ सव्वतो आयभावं । रूवेहिं लुप्पंति भयावहेहिं, विज्जं गहाय तसथावरेहिं ॥ २१ ॥ ५७८. न पूयणं चेव सिलोयकामी, पियमप्पियं कस्सति णो कहेज्जा | सव्वे अण परिवज्जयंते, अणाउले या अकसाइ भिक्खू || २२|| ५७९. आहत्तहियं समुपेहमाणे सव्वेहिं पाणेहिं निहाय दंडं । नो जीवियं नो मरणाभिकंखी, परिव्वज्जा वलयाविमुक्के ||२३|| ★★★ । आहत्तहितं सम्मत्तं । त्रयोदशमध्ययनम् । १४ चउद्दसमं अज्झयणं 'गंथो' फ५८०. गंथं विहाय इह सिक्खमाणो, उट्ठाय सुबंभचेरं वसेज्जा । ओवायकारी विणयं सुसिक्खे, जे छेए विप्पमादं नकुज्जा || १ || ५८१. जहा दियापोतमपत्तजातं, सावासगा पविउं मण्णमाणं । तमचाइयं 555 श्री आगमगुणमंजुषा - ६९ 55 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४- अ. गंथो / १-पू. अ. जमतीतं [ १६ ] ॐॐॐॐॐॐॐ (२) सूयगडो प.सु. तरुणमपत्तजातं, ढंकादि अव्वत्तगमं हरेज्जा ||२|| ५८२. एवं तु सेहं पि अपुट्ठधम्मं, निस्सारियं वुसिमं मण्णमाणा । दियस्स छावं व अपत्तजातं हरिंसु णं पावधम्मा अणेगे ॥३॥ ५८३. ओसाणमिच्छे मणुए समाहिं, अणोसिते णंतकरे ति णच्चा । ओभासमाणो दवियस्स वित्तं, ण णिक्कसे बहिता आसुपण्णे ॥४॥ ५८४. जे ठाणओ या सणासणे या परक्कमे यावि सुसाधुजुत्ते । समितीसु गुत्तीसु य आयपण्णे, वियागरेंते य पुढो वदेज्जा ॥५॥ ५८५. सद्दाणि सोच्चा अदु भेरवाणि, अणासवे तेसु परिव्वज्जा । निद्दं च भिक्खू न पमाय कुज्जा, कहंकहं पी वितिगिच्छति ||६|| ५८६. डहरेण वुडेणऽणुसासिते ऊ, रातिणिएणावि समव्वएणं । सम्मं तगं थिरतो णाभिगच्छे, णिज्जंतए वा वि अपारए से ।।७।। ५८७. विउट्ठितेणं समयाणुसट्टे, डहरेण वुड्ढेण व चोतिते तु । अच्चुट्ठिताए घडदासिए वा, अगारिणं वा समयाणुसट्टे ।।८।। ५८८. ण तेसु कुज्झे ण य पव्वज्जा, ण यावि किंचि फरुसं वदेज्जा । तहा करिस्सं ति पडिस्सुणेज्जा, सेयं खु मेयं ण पमाद कुज्जा ।। ९ ।। ५८९. वर्णसि मूढस् जहा अमूढा, मग्गाणुसासंति हितं पयाणं । तेणावि मज्झं इणमेव सेयं, जं मे बुहा सम्मऽणुसासयति ॥ १०॥ ५९०. अह तेण मूढेण अमूढगस्स, कायव्व पूया सविसेसजुत्ता । एतोवमं तत्थ उदाहु वीरे, अणुगम्म अत्थं उवणेति सम्मं ॥ ११ ॥ ५९१. या जहा अंधकारंसि राओ, मग्गं ण जाणाइ अपस्समाणे । से सूरियस्स अब्भुग्गमेणं, मग्गं विजाणाति पगासियंसि ॥ १२ ॥ ५९२. एवं तु सेहे वि अपुट्ठधम्मे, धम्मं न जाणाति अबुज्झमाणे । से कोविए जिणवयणेण पच्छा, सूरोदए पासति चक्खुणेव ||१३|| ५९३. उड्डुं अहे य तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा । सया जते तेसु परिव्वज्जा, मणप्पदोसं अविकंपमाणे ||१४|| ५९४. कालेण पुच्छे समियं पयासु, आइक्खमाणो दवियस्स वित्तं । तं सोयकारी य पुढो पवेसे, संखा इमं केवलियं समाहिं ॥ १५॥ ५९५. अस्सिं सुठिच्चा तिविहेण तायी, एतेसु या संति निरोहमाहु। ते एवमक्खंति तिलोगदंसी, ण भुज्जमेतं ति पमायसंगं ॥ १६ ।। ५९६. णिसम्म से भिक्खु समीहमट्टं, पडिभाणवं होति विसारते या। आया वोदाण मोणं, उवेच्च सुद्धेण उवेति मोक्खं ||१७|| ५९७. संखाय धम्मं च वियागरेति, बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति । ते पारगा दोण्ह वि मोयणाए, संसोधितं पण्हमुदाहरति ॥१८॥। ५९८. नो छादते नो वि य लूसएज्जा, माणं ण सेवेज्ज पगासणं च । ण यावि पण्णे परिहास कुज्जा, ण याऽऽसिसावाद वियागरेज्जा ॥ १९ ॥ ५९९. भूताभिसंकाए दुगुंछमाणो, ण णिव्वहे मंतपदेण गोत्तं । ण किंचि मिच्छे मणुओ पयासु, असाहुधम्माणि ण संवदेना ||२०|| ६००. हासं पि णो संधये पावधम्मे, ओए तहियं फरुसं वियाणे । नो तुच्छए नो व विकंथतिज्जा, अणाइले या अकसाइ भिक्खू ॥ २१॥ ६०१. संकेज्न याऽसंकितभाव भिक्खू, विभज्जवादं च वियागना । भासादुगंधम्म समुट्ठितेहिं, वियागरेज्जा समया सुपण्णे ||२२|| ६०२. अणुगच्छमाणे वितहं भिजाणे, तहा तहा साहु अकक्कसेणं । ण कत्थत भ विहिंसज्जा, निरुद्वगं वा वि न दीहएज्जा | २३ || ६०३. समालवेज्जा पडिपुण्णभासी, निसामिया समिया अट्ठदंसी। आणाए सुद्धं वयणं भिऊंजे, भिसंधए पावविवेग भिक्खू ||२४|| ६०४. अहाबुइयाई सुसिक्खएज्जा, जएज्ज या णातिवेलं वदेज्जा से दिट्टिमं दिट्ठि ण लूसएज्जा, से जाणति भासिउं तं समाहिं ॥ २५॥ ६०५. अलूसए णोपच्छण्णभासी, णो सुत्तमत्थं च करेज्ज ताई । सत्थारभत्ती अणुवीति वायं, सुयं च सम्मं पडिवातएज्जा ॥ २६|| ६०६. से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च, धम्मं च जे विंदति तत्थ तत्थ । आदेज्जवक्के कुसले वियत्ते, से अरिहति भासिउं तं समाहिं ॥ २७॥ ति बेमि । ★ ★ ★ ॥ चतुर्दशमध्ययनं समाप्तम् । १५ पण्णरसमं अज्झयणं 'जमतीतं' 5755 ६०७. जमतीतं पडुप्पण्णं, आगमिस्सं च णायगो । सव्वं मण्णति तं ताती, दंसणावरणंत ॥१॥ ६०८. अंतए वितिगिंछाए, से जाणति अणेलिसं । अणेलिसस्स अक्खाया, ण से होति तहिं तहिं ॥ २ ॥ ६०९. तहिं तहिं सुयक्खायं, से य सच्चे सुयाहिए। सदा सच्चेण संपण्णे, मेत्तिं भूतेहिं कप्प ॥३॥ ६१०. भूतेहिं न विरुज्झेज्जा, एस धम्मे वुसीमओ । वुसीमं जगं परिण्णाय, अस्सिं जीवितभावणा ॥४॥ ६११. भावणाजोगसुद्धप्पा, जले णावा व आहिया । नावा व तीरसंपत्ता, सव्वदुक्खा तिउट्टति ||५|| ६१२. तिउट्टति तु मेधावी, जाणं लोगंसि पावगं । तिउट्टंति पावकम्माणि, नवं कम्ममकुव्वओ || ६ || ६१३. अकुव्वतो णवं नत्थि, कम्मं नाम विजाणइ । विन्नाय से महावीरे, जेण जाति ण मिज्जती ॥ ७ ॥ ६१४. न मिज्जति महावीरे, जस्स नत्थि पुरेकडं । वाऊ व जालमच्चेति, पिया लोगंसि इत्थिओ ||८|| ६१५. इत्थिओ जे ण सेवंति, आदिमोक्खा हु ते जणा । ते जणा बंधणुम्मुक्का, नावकखंति जीवितं ॥ ९ ॥ ६१६. जीवितं पिट्ठतो किच्चा, अंतं पार्वति कम्मुणा । कम्मुणा संमुहीभूया, जे मग्गमणुसासति ||१०|| ६१७. अणुसासणं पुढो पाणे, वसुमं पूयणासते । अणासते जते दंते, दढे आरयमेहुणे ॥११॥ श्री आगमगुणमंजूषा ७० प्र 19 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR95$$$$$$$$$$$555 (२) सूयगडो प.सु. १५.अ./१६-अ. गाहा / बीओ सुयक्खंधो? अ. पोंडरीयं १७5 5 55555555Foxoy 155555555#FOLXOK 乐乐乐乐纸步步步乐乐乐听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明乐乐乐乐乐$$$6C ६१८. णीवारे य न लीएज्जा, छिन्नसोते अणाइले। अणाइले सया दंते, संधि पत्ते अणेलिसं ||१२|| ६१९. अणेलिसस्स खेतण्णे, ण विरुज्झेज केणइ । मणसा वयसा चेव, कायसा चेव चक्खुमं ।।१३।। ६२०. से हु चक्खू मणुस्साणं, जे कंखाए तु अंतए। अंतेण खुरो वहती, चक्कं अंतेण लोट्टति ।।१४।। ६२१. अंताणि धीरा सेवंति, तेण अंतकरा इहं । इह माणुस्सए ठाणे, धम्ममाराहिउं णरा ।।१५।। ६२२. निहितट्ठा व देवा वा, उत्तरीए इमं सुतं । सुतं च मेतमेगेसिं, अमणुस्सेसु णो तहा ॥१६॥ ६२३. अंतं करेति दुक्खाणं, इहमेगेसि आहितं । आधायं पुण एगेसिं, दुल्लभेऽयं समुस्सए ।।१७।। ६२४. इतो विद्धंसमाणस्स, पुणो संबोहि दुल्लभा । दुल्लभा उ तहच्चा णं, जे धम्मट्ठ वियागरे॥१८।। ६२५. जे धम्म सुद्धमक्खंति, पडिपुण्णमणेलिस। अणेलिसस्स जं ठाणं, तस्स जम्मकहा कुतो ।।१९।। ६२६. कुतो कताइ मेधावी, उप्पज्जति तहागता। तहागता य अपडिण्णा, चक्खू लोगस्सऽणुत्तरा ||२०|| ६२७. अणुत्तरे य ठाणे से, कासवेण पवेदिते । जं किच्या णिव्वुडा एगे, निढे पावंति पंडिया ॥२१॥ ६२८. पंडिए वीरियं लर्बु, निग्घायाय पवत्तगं । धुणे पुव्वकडं कम्मं, नवं चावि न कुव्वति ॥२२॥ ६२९. न कुव्वती महावीरे, अणुपुव्वकर्ड रयं । रयसा संमुहीभूते, कम्मं हेच्चाण जंमतं ।।२३।। ६३०. जं मतं सव्वसाहणं, तं मयं सल्लकत्तणं । साहइत्ताण तं तिण्णा, देवा वा अभविंसु ते॥२४॥ ६३१. अभविंसुपुरा वीरा, आगमिस्सा वि सुव्वता। दुण्णिबोहस्स मग्गस्स, अंतं पादुकरा तिण्ण॥२५||त्ति बेमि।|जमतीतं सम्मत्तं पञ्चदशमध्ययनम् १६ सोलसमं अज्झयणं 'गाहा' ६३२. अहाह भगवं एवं से दंते दविए वोसट्ठकाए ति वच्चे माहणे त्ति वा १ समणे ति वा २, भिक्खू ति वा ३, णिग्गंथे ति वा ४।६३३. पडिआह भंते ! कहं दंते दविए वोसट्ठकाए ति वच्चे माहणे ति वा समणे ति वा भिक्खू ति वा णिग्गंथे ति वा ? तं नो बूहि महामुणी ! ६३४. इति विरतसव्वपावकम्मे पेज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरतिरति-मायामोस-मिच्छादसणसल्ले विरए समिते सहिते सदा जते णो कुज्झे + णो माणी माहणे ति वच्चे । ६३५. एत्थ वि समणे अणिस्सिते अणिदाणे आदाणं च अतिवायं च मुसावायं च बहिद्धं च कोहं च माणं च मायं च लोभं च पेज्जं च दोसं + च इच्चेवं जतो जतो आदाणातो अप्पणो पदोसहेतुं ततो तओ आदाणातो पुव्वं पडिविरते विरते पाणाइवायाओ दंते दविए वोसट्ठकाए समणे त्ति वच्चे । ६३६. एत्थ है वि भिक्खू अणुन्नए नावणए णामए दंते दविए वोसट्ठकाए संविधुणीय विरूवरूवे परीसहोवसग्गे अज्झप्पजोगसुद्धादाणे उवट्ठिते ठितप्पा संखाए परदत्तभोई भिक्खु त्ति वच्चे । ६३७. एत्थ वि णिग्गंथे एगे एगविऊ बुद्धे संछिण्णसोते सुसंजते सुसमिते सुसामाइए आयवायपत्ते य विदू दुहतो वि सोयपलिच्छिण्णे णो पूया-सक्कारलाभट्ठी धम्मट्ठी धम्मविदू णियागपडिवण्णे समियं चरे दंते दविए वोसट्ठकाए निग्गंथे त्ति वच्चे । से एवमेव जाणह जमहं भयंतारो त्ति बेमि । ★ ★ ★|| गाथा षोडशमध्ययनं समाप्तम्।।। पढमो सुयक्खंधो सम्मत्तो॥★★★ । बीओ सुयक्खंधो पढमं अज्झयणं पोंडरीयं नमः श्रुतदेवतायै ।। ६३८. सुयं मे आउसंतेण भगवता एवमक्खायं इह खलु पोंडरीए णाम अज्झयणे, तस्स णं अयमढे पण्णते से जहाणामए पोक्खरणी सिया बहुउदगा बहुसेया बहुपुक्खला लट्ठा पुंडरीगिणी पासादिया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। तीसेणं पुक्खरणीए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरिया बुझ्या अणुपुव्वट्ठिया ऊसिया रुइला वण्णमंता गंधमंता रसमंता फासमंता पासादीया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा । तीसे णं पुक्खरणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपोंडरीए बुइए अणुपुवट्ठिए ऊसिते रुइले वण्णमंते गंधमते रसमंते फासमंते पासादीए दरिसणिए अभिरूवे पडिरूवे । सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरणीए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपुंडरीया बुझ्या अणुपुव्वट्ठिता जाव पडिरूवा । सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरणीए बहुमज्झदेसभागे एगे महं पउमवरपोंडरीए बुइते अणुपुव्वट्ठिते जाव पडिरूवे । ६३९. अह पुरिसे पुरत्थिमातो दिसातो आगम्म तं पुक्खरणी तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं 5 ॐ अणुपुवट्टितं ऊसियं जाव पडिरूवं । तएणं से पुरिसे एवं वदासी अहमंसिपुरिसे खेत्तण्णे कुसले पंडिते वियते मेधावी अबाले मग्गत्थे मग्गविदू मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खेस्सामि त्ति कट्ट इति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमेतं पुक्खरणिं जाव जावं च णं अभिक्कमे ताव तावं चणं महंते उदए, महंते सेए, पहीणे म तीरं, अप्पत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे पढमे पुरिसज्जाए । ६४०. अहावरे दोच्चे पुरिसज्जाए । अह पुरिसे दक्खिणातो दिसातो आगम्म तं पुक्खरिणीं तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वहितं जाव पडिरूवं, तं च एत्थ एगं पुरिसजातं Tech #555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ७१ 555555555555555555555FFOROR GO步听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐所用乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐历2C Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听G5CM FIGH9555555555555555 रश सूयगडों बी. अ. १.अ. पोंडरीय [१८] . पासति पहीणं तीरं, अपत्तं पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णं । तए णं से पुरिसे तं पुरिसं एवं वदासी अहोणं इमे पुरिसे अखेयण्णे अकुसले अपंडिते अवियत्ते अमेहावी बाले णो मग्गत्थे णो मग्गविऊ णो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू जं णं एस पुरिसे 'खेयन्ने कुसले जाव पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खेस्सामि', णो य खलु एतं पउमवरपोंडरीयं एवं उन्निक्खेयव्वं जहाणं एस पुरिसे मन्ने। अहमंसि पुरिसे खेयपणे कुसले पंडिए वियत्ते मेहावी अबाले मग्गत्थे मग्गविऊ मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खिस्सामि त्ति कट्ट इति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरणिं, जाव जावं च णं अभिक्कमे ताव तावं च णं महंते उदए महंते सेए, पहीणे तीरं, अप्पत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, जतरा सेयंसि विसण्णे दोच्चे पुरिसजाते । ६४१. अहावरे तच्चे पुरिसजाते। अह पुरिसे पच्चत्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरणिं तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपुंडरीयं अणुपुवट्ठियं जाव पडिरूवं, ते तत्थ दोण्णि पुरिसज्जाते पासति पहीणे तीरं, अप्पत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, जाव सेयंसि निसण्णे। तते णं से पुरिसे एवं वदासी अहोणं इमे पुरिसा अखेत्तन्ना अकुसला अपंडिया अवियत्ता अमेहावी बाला णो मग्गत्था णो मग्गविऊ णो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, जं णं एते पुरिसा एवं मण्णे 'अम्हेतं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खेस्सामो', णो य खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उण्णिक्खेतव्वं जहा णं एए पुरिसा मण्णे । अहमंसि पुरिसे खेतन्ने कुसले पंडिते वियत्ते मेहावी अबाले मग्गथे मग्गविऊ मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीय उण्णिक्खेस्सामि इति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरणिं, जाव जावं च णं अभिक्कमे ताव तावं च णं महंते उदए महंते सेए जाव अंतरा सेयंसि निसण्णे तच्चे पुरिसजाए । ६४२. अहावरे चउत्थे पुरिसजाए। अह पुरिसे उत्तरातो दिसातो आगम्म तं पुक्खरणिं तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वहितं जाव पडिरूवं । ते तत्थ तिण्णि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं अप्पत्ते जाव सेयंसि निसण्णे। ततेणं से पुरिसेएवं वदासी अहोणं इमे पुरिसा अखेत्तण्णाजावणो मग्गस्सगतिपरक्कमण्णू, जण्णं एते पुरिसा एवं मण्णे अम्हेतं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामो। णो खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उण्णिक्खेयव्वं जहा णं एते पुरिसा मण्णे । अहमंसि पुरिसे खेयण्णे जाव मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामि इति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरणिं, जाव जावं चणं अभिक्कमे ताव तावं च णं महंते उदए महंते सेते जाव विसण्णे चउत्थे पुरिसजाए। ६४३. अह भिक्खूलूहे तीरट्ठी खेयण्णे कुसले पंडिते वियत्ते मेहावी अबाले मग्गत्थे मग्गविदू मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू अन्न्तरीओ दिसाओ अणुदिसाओ वा आगम्म तं पुक्खरणीं तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्या पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं जाव पडिरूवं, ते य चत्तारि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं अप्पत्ते जाव अंतरापोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे। तते णं से भिक्खूएवं वदासी अहोणं इमे पुरिसा अखेतण्णा जावणो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू जंणं एते पुरिसा एवं मन्ने 'अम्हेयं पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खिस्सामो', णो य खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उन्निक्खेतव्वं जहाणं एते पुरिसा मन्ने, अहमंसी भिक्खू लूहे तीरट्ठी खेयण्णे जाव मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खिस्सामि त्ति कट्ट इति वच्चा से भिक्खूणो अभिक्कमेतं पुक्खरणिं, तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा सदं कुज्जा उप्पताहि खलु भो पउमवरपोंडरीया ! उप्पताहि खलु भो पउमवरपोंडरीया ! अह से उप्पतिते पउमवरपोंडरीए । ६४४. किट्टिते णाते समणाउसो ! अढे पुण से जाणितव्वे भवति । भंते ! त्ति समणं भगवं महावीरं निग्गंथा य निग्गंथीओ य वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी किट्टिते नाए समणाउसो ! अटुं पुण से ण जाणामो, समणाउसो ! त्ति समणे भगवं महावीरे ते य बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतित्ता एवं वदासी हंता समणाउसो ! आइक्खामि विभावेमि किट्टेमि पवेदेमि सअटुं सहेउं सनिमित्तं भुज्जो भुज्जो उवदंसेमि । ६४५. से बेमि लोयं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! सा पुक्खरणी बुइता, कम्मं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से उदए बुइते, कामभोगा य खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो! से सेए बुइते, जण-जाणवयं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! ते बहवे पउमवरपुंडरीया बुइता, रायाणं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो! से एगे महं पउमवरपोंडरीए बुइते, अन्नउत्थिया य खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो! ते चत्तारि पुरिसजाता बुइता, धम्मं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो! से भिक्खू बुइते, धम्मतित्थं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से तीरे बुइए, धम्मकहं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से सद्दे बुइते, नेव्वाणं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से उप्पाते बुइते, एवमेयं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से एवमेयं बुइतं। ६४६. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं MeroS 4 श्री आगमगुणमजूषा - ७२55555555555555OOR Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROR955555555555555 (२) सूयगडो बी. सु. १-अ. पोंडरीयं [१९] OPCs步步听听听听听听听听听听听听听国乐 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 वा दाहिणं वा संति एगतिया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेण लोगं तं उववन्ना, तंजहा आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता म वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे । तेसिं च णं महं एगे राया भवति महाहिमवंतमलयमंदरमहिंदसारे अच्चंतविसुद्धरायकुलवंसप्पसूते निरंतररायलक्खणविरातियंगमंगे बहुजणबहुमाणपूतिते सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुदिए मुद्धाभिसित्ते माउंपिउंसुजाए दयप्पत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिदै जणवदपिया जणवदपुरोहिते सेउकरे केउकरे णरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसआसीविसे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते वित्थिण्णविउलभवण-सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहणाइण्णे बहुधण-बहुजातरूव-रयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउरभत्त-पाणे बहुदासी-दास-गो-महिसगवेलगप्प-भूते पडिपुण्णकोस-कोट्ठागाराउहधरे बलवं दुब्बलपच्चामिते ओहयकंटकं निहयकंटकं मलियकंटकं उद्धियकंटकं अकंटयं ओहयसत्तू निहयसत्तू मलियसत्तू उद्धियसत्तू निज्जियसत्तू पराइयसत्तू ववगयदुब्भिक्खमारिभयविप्पमुक्कं रायवण्णओ जहा उववाइए जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसासेमाणे विहरति । ६४७. तस्स णं रण्णो परिसा भवति उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता इक्खागा इक्खागपुत्ता नाया नायपुत्ता कोरव्वा कोरव्वपुत्ता भट्टा भट्टपुत्ता माहणा माहणपुत्तालेच्छई लेच्छइपुत्ता पसत्थारो पसत्थपुत्ता सेणावती सेणावतिपुत्ता। तेसिं च णं एगतिए सड्डी भवति, कामं तं समणा य माहणा य पहारेंसु गमणाए, तत्थऽन्नतरेणं धम्मेणं पण्णत्तारो वयमेतेणं धम्मेणं पण्णवइस्सामो, से एवमायाणह भयंतारो जहा मे एस धम्मे सुयक्खाते सुपण्णत्ते भवति । ६४८. तंजहा उखु पादतला अहे केसग्गमत्थया तिरियं तयपरियंते जीवे, एस आयपज्नवे कसिणे, एस जीवे जीवति, एस मए णो जीवति, सरीरे चरमाणे चरती, विट्ठम्मि य णो चरति, एतंतं जीवितं भवति, आदहणाए परेहिं णिज्जति, अगणिझामिते सरीरे कवोतवण्णाणि अट्ठीणि भवंति, आसंदीपंचमा पुरिसा गाम पच्चागच्छंति । एवं असतो असंविज्जमाणे । ६४९. जेसि तं सुयक्खायं भवति 'अन्नो भवति जीवो अन्नं सरीरं' तम्हा ते एवं नो विप्पडिवेदेति अयमाउसो! आता दीहे ति वा हस्से ति वा परिमंडले ति वा वट्टे ति वा तंसे ति वा चउरंसे ति वा छलंसे ति वा अट्ठसे ति वा आयते ति वा किण्हे ति वाणीले ति वा लोहिते ति वा हालिद्दे ति वा सुक्किले ति वा सुब्भिगंधे ति वा दुब्भिगंधे ति वा तित्ते ति वा कडुए ति वा कसाए ति वा अंबिले ति वा महुरे ति वा कक्खडे ति वा मउए ति वा गरुए ति वा लहुए ति वा सिते ति वा उसिणे ति वा णिद्धे ति वा लुक्खे ति वा । एवमसतो असंविज्जमाणे । ६५०. जेसिं तं सुयक्खायं भवति 'अन्नो जीवो अन्नं सरीरं', तम्हा ते णो एवं उवलभंति १ से जहानामए केइ पुरिसे कोसीतो असिं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा. अयमाउसो ! असी, अयं कोसीए, एवमेव णत्थि केइ अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेंति अयमाउसो! आता, अयं सरीरे। २ से जहाणामए केइ पुरिसे मुंजाओ इसीयं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो! मुंजो, अयं इसीया, एवामेव नत्थि केति उवदंसेत्तारो अयमाउसो! आता, इदं सरीरं। ३ से जहाणामए केति पुरिसे मंसाओ अट्ठि अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्ना अयमाउसो! मंसै, अयं अट्ठी, एवामेव नत्थि केति उवदंसेत्तारो अयमाउसो! आया, इदे सरीरं।' ४ से जहानामए केति पुरिसे करतलाओ आमलकं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो! करतले, अयं आमलए, एवामेव णत्थि केति उदंसेत्तारो अयमाउसो ! आया, इदं सरीरं। ५ से जहानामए केइ पुरिसे दहीओणवणीयं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो ! नवनीतं, अयं उदसी, एवामेव नत्थि केति उवदंसेत्तारो जाव सरीरं। ६ से जहानामए केति पुरिसे तिलेहितो तेल्लं अभिनिव्वदे॒त्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो! तेल्ले, अयं पिण्णाए, एवामेव जाव सरीरं। ७ से जहानामए केइ पुरिसे उक्खूतो खोतरसं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो ! खोतरसे, अयं चोए, एवमेव जाव सरीरं। ८ से जहानामए केइ पुरिसे अरणीतो अग्गिं अभिनिव्वदे॒त्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो! अरणी, अयं अग्गी, एवामेव जाव सरीरं । एवं असतो असंविज्जमाणे । जेसिं तं सुयक्खातं भवति तं० 'अन्नो जीवो अन्नं सरीरं' तम्हा तं मिच्छा। ६५१. से हंता हणह खणह छणह दहह पयह आलुपह विलुपह सहसक्कारेह विपरामुसह, एत्ताव ताव जीवे, णत्थि परलोए, ते णो एवं 5 विप्पडिवेदेति, तं० किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुक्कडे ति वा दुक्कडे ति वा कल्लाणे ति वा पावए ति वा साहू ति वा असाहू ति वा सिद्धी ति वा असिद्धी ति वा निरए प्रति वा अनिरए ति वा । एवं ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाई समारंभंति भोयणाए। ६५२. एवं पेगे पागब्भिया निक्खम्म मामगं धम्म र पण्णवेति तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साधु सुयक्खाते समणे ति वा माहणे ति वा कामं खलु आउसो! तुमं पूययामो, तंजहा असणेण वा पाणेण वा (555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा : ७३ 5555555555555555555555555FORORS Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0555555555555 (२) सूयगडो बी. सु. १-अ. पोंडरीयं [२०] HOR5555555555555555555555555555555555555555555555FOLOfY खाइमेण वा साइमेण वा वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणेण वा, तत्थेगे पूयणाए समाउट्टिंसु, तत्थेगे पूयणाए निगामइंसु। ६५३. पुव्वामेव तेसिंणायं भवति समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता अपसूपरदत्तभोइणो भिक्खुणोपावं कम्मंणो करिस्सामो समुट्ठाएते अप्पणा अप्पडिविरया भवंति, सयमाझ्यंति अन्ने वि आदियाति अन्नं पिआतियंतं समणुजाणंति. एवामेव ते इत्थिकामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिता अज्झोववन्ना लुद्धारागदोसत्ता, ते णो अप्पाणं समुच्छेदेति, नो परं समुच्छेदेति, नो अण्णाइं पाणाइं भूताइं जीवाइं सत्ताई समुच्छेदेति, पहीणा पुव्वसंयोगं, आयरियं मग्गं असंपत्ता, इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा, इति पढमे पुरिसज्जाते तज्जीव-तस्सरीरिए आहिते। ६५४. अहावरे दोच्चे पुरिसज्जाते पंचमहब्भूतिए त्ति आहिज्जति । इह खलु पाईणं वा ४ संतेगतीया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोयं उववण्णा, तंजहा आरिया वेगे एवं जाव दुरूवा वेगे। तेसिंच णं महं एगे राया भवती महया० एवं चेव णिरवसेसं जाव सेणावतिपुत्ता। तेसिंच णं एगतीए सड्डी भवति, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसुगमणाए। तत्थऽण्णयरेणं धम्मेणं पन्नतारो वयमिमेणं धम्मेणं पन्नवइस्सामो, से एवमायाणह भयंतारो! जहा मे एस धम्मे सुअक्खाए सुपण्णत्ते भवति ६५५. इह खलु पंच महन्भूता जेहिं नो कज्जति किरिया ति वा अकिरिया ति वा सुकडे ति वा दुक्कडे ति वा कल्लाणे ति वा पावए ति वा साहू ति वा असाहू ति वा सिद्धी ति वा असिद्धी ति वा णिरए ति वा अणिरए ति वा अवि यंतसो तणमातमवि। ६५६. तं च पदुद्देसेणं पुढोभूतसमवातं जाणेज्जा, तंजहा पुढवी एगे महब्भूते, आऊ दोच्चे महब्भूते, तेऊ तच्चे महब्भूते, वाऊ चउत्थे महब्भूते, आगासे पंचमे महब्भूते। इच्चेते पंच महब्भूता अणिम्मिता अण्णिम्मेया अकडा णो कित्तिमा णो कडगा अणादिया अणिधणा अवंझा अपुरोहिता सता सासता । ६५७. आयछट्ठा पुण एगे एवमाहु सतो णत्थि विणासो, असतो णत्थि संभवो। एताव ताव जीवकाए, एताव ताव अस्थिकाए, एताव ताव सव्वलोए, एतं मुहं लोगस्स करणयाए, अवि यंतसो तणमातमवि। से किणं किणावेमाणे, हणं घातमाणे, पयं पयावेमाणे, अवि अंतसो पुरिसमवि विक्किणित्ता घायइत्ता, एत्थ वि जाणाहि णत्थि एत्थ दोसो। ६५८. ते णो एतं विप्पडिवेदेति, तंजहा किरिया ति वा जाव अणिरए ति वा । एवामेव ते विरूवरूवेहि कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाइं समारंभंति भोयणाए। एवामेव ते अणारिया विप्पडिवण्णा तं सद्दहमाणा पत्तियमाणा जाव इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा । दोच्चे पुरिसज्जाए पंचमहब्भूतिए ति आहिते। ६५९. अहावरे तच्चे पुरिसज्जाते ईसरकारणिए त्ति आहिज्जइ । इह खलु पादीणं वा ४ संतेगतिया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोयं उववन्ना, तंजहा आरिया वेगे जावई तेसिं च णं महंते एगे राया भवति जाव सेणावतिपुत्ता । तेसिं च णं एगतीए सड्डी भवति, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसु गमणाए जाव जहा मे एस धम्मे सुअक्खाए सुपण्णत्ते भवति । ६६०. इह खलु धम्मा पुरिसादीया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिसपज्जोइता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति ए । १ से जहानामए गंडे सिया सरीरे जाते सरीरे वुड्ढे सरीरे अभिसमण्णागते सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । २ से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे अभि संवुड्डा सरीरे अभिसमण्णागता सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति। ३ से जहाणामए वम्मिए सिया पुढवीजाते पुढवीसंवुड्ढे पुढवीअभिसमण्णागते पुढवीमेव अभिभूय चिठ्ठति एवमेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव अभिभूय चिट्ठति। ४ से जहाणामए रुक्खे सिया पुढवीजाते पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णागते पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि पुरिसाइया जाव अभिभूय चिट्ठति । ५ से जहानामए पुक्खरणी सिया पुढविजाता जाव पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । ६ से जहाणामए उदगपोक्खले सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति। ७ सजहाणामए उदगबुब्बुए # सिंया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति एवमेव धम्मा वि पुरिसाईया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । ६६१. जं पि य इमं समणाणं णिग्गंथाणं उद्दिढें ॥ वियंजियं दुवालसंगं गणिपिडगं, तंजहा आयारो जाव दिट्ठिवातो, सव्वमेयं मिच्छा, ण एतं तहितं, ण एयं आहत्तहितं । इमं सच्चं, इमं तहितं, इमं आहत्तहितं, ते एवं सण्णं कुव्वंति, ते एवं सण्णं संठवेति, ते एवं सण्णं सोवट्ठवयंति, तमेवं ते तज्जातियं दुक्खं णातिउटुंति सउणी पंजरं जहा । ६६२. ते णो एतं विप्पडिवेदेति तंजहा किरिया इ वा जाव अणिरए ति वा एवामेव ते विरूवरूवेहि कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाई कामभोगाइं समारभित्ता भोयणाए एवामेव ते अणारिया विप्पडिवण्णा, xexc555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-७४55555555555555555555555555OOK MOS场听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听FO Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FROO55555555555555 (२) सूयगडो बी.सु. १-अ. पोंडरीयं २१] 55555555555555 FRICS तं सद्दहमाणा जाव इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा । तच्चे पुरिसज्जाते इस्सरकारणिए त्ति आहिते । ६६३. अहावरे चउत्थे पुरिसजाते णियतिवातिए ति आहिज्जति । इह खलु पाईणं वा ४ तहेव जाव सेणावतिपुत्ता वा, तेसिंच णं एगतिए सड्ढी भवति, कामं तं समणा य माहणा य संपहारिंसुगमणाए जाव जहा मे एस धम्मे सुअक्खाते सुपण्णत्ते भवति। ६६४. इह खलु दुवे पुरिसा भवंति एगे पुरिसे किरियमाइक्खति, एगे पुरिसे णोकिरियमाइक्खति। जे य पुरिसे किरियमाइक्खइ, जे यपुरिसे णोकिरियमाइक्खइ, दो वि ते पुरिसा तुल्ला एगट्ठा कारणमावन्ना । बाले पुण एवं विप्पडिवेदेति कारणमावन्ने, तं० जोऽहमंसी दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पिड्डामि वा परितप्पामि वा अहं तमकासी, परो वा जं दुक्खति वा सोयइ वा जूरइ वा तिप्पइ वा पिड(ड्ड)इ वा परितप्पइ वा परो एतमकासि, एवं से बाले सकारणं वा परकारणं वा एवं विप्पडिवेदेति कारणमावन्ने । मेधावी पुण एवं विप्पडिवेदेति कारणमावन्ने अहमंसि दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पिडा(ड्डा)मि वा परितप्पामि वा, णो अहमेतमकासि परो वा जं दुक्खति वा जाव परितप्पति वा नो परो एयमकासि । एवं से मेहावी सकारणं वा परकारणं वा एवं विप्पडिवेदेति कारणमावन्ने । ६६५. से बेमि पाईणं वा ४ जे तसथावरा पाणा ते एवं संघायमावति, ते एवं परियागमावजंति, ते एवं विवेगमावति, ते एवं विहाणमागच्छंति, ते एवं संगइ यंति, उवेहाए णो एयं विप्पडिवेदेति, तंजहा किरिया ति वा जाव णिरए ति वा अणिरए ति वा । एवं ते विरूवरूवेहि कम्मसमारंभेहिं विरूवरुवाइं कामभोगाइं समारभंति भोयणाए । एवामेव ते अणारिया विप्पडिवण्णा तं सद्दहमाणा जाव इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा । चउत्थे पुरिसजाते णियइवाइए त्ति आहिए। ६६६. इच्चेते चत्तारि पुरिसजाता णाणापन्ना णाणाछंदा णाणासीला णाणादिट्ठी णाणारुई णाणारंभा णाणज्झवसाणसंजुत्ता पहीणपुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता, इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा । ६६७. से बेमि पाईणं वा ४ संतेगतिया मणुस्सा भवंति तं जहा आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिंचणं खेत्त-वत्थूणि परिग्गहियाणि भवंति, तंजहा अप्पयरा वा भुज्जतरा वा । तेसिंचर्ण जण-जाणवयाइं परिग्गहियाई भवंति, तंजहा अप्पयरा वा भुज्जयरा वा । तहप्पकारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिता, सतो वा वि एगे णायओ य उवकरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता, असतो वा वि एगे नायओ य उवकरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता । ६६८.जे ते सतो वा असतो वा णायओ य उवकरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता पुव्वामेव तेहिं णातं भवति, तंजहा इह खलु पुरिसे अण्णमण्णं ममट्ठाए एवं विप्पडिवेदेति, तंजहा खेत्तं मे, वत्थु मे, हिरण्णं मे, सुवण्णं मे, धणं मे, धण्णं मे, कंसं मे, दूसंमे, विपुल धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्त-रयण-संतसार सावतेयं मे, सद्दामे, रूवा मे, गंधा मे, रसा मे, फासा मे, एते खलु मे कामभोगा, अहमविएतेसिं। ६६९. से मेहावी पुव्वामेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा, तंजहा इह खलु मम अण्णयरे दुक्खे रोगायके समुप्पज्जेज्जा अणिढे अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे णो सुहे, सेहता भयंतारो कामभोगा ! इमं मम अण्णतरं दुक्खं रोगायकं परियाइयह अणि8 अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं णो सुहं, नाहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पिड्डामि वा परितप्पामि वा, इमाओ मे अण्णतरातो दुक्खातो रोगायंकातो पडिमोयह अणिट्ठातो अकंतातो अप्पियाओ असुहाओ अमणुन्नाओ अमणामाओ दुक्खाओ णो सुहातो। एवामेव नो लद्धपुव्वं भवति । ६७०. इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा सरणाए वा, पुरिसे वा एगता पुव्विं कामभोगे विप्पजहति, कामभोगा वा एगता पुव्विं पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खलु कामभोगा अन्नो अहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं कामभोगेहिं मुच्छामो? इति संखाए णं वयं कामभोगे विप्पजहिस्सामो। ६७१. से मेहावी जाणेज्जा बाहिरगमेतं, इणमेव उवणीततरागं, तंजहा माता मे, पिता मे, भाया मे, भज्जा मे, भगिणी मे, पुत्ता मे, धूता मे, नत्ता मे, सुण्हा मे, पेसा मे, सुही मे, सयण-संगंथ-संथुता मे, एते खलु मे णायओ, अहमवि एतेसि। ६७२. से मेहावी पुव्वामेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा इह खलु मम अण्णतरे दुक्खे रोगातके समुप्पज्जेज्जा अणिढे जाव दुक्खे नो सुहे,' से हंता भयंतारोणायओ इमं ममऽण्णतरं दुक्खं रोगायकं परिआदियध अणि8 जाव नो सुह, मा हं दुक्खामि वा जाव परितप्पामि वा, इमातो में अन्नयरातो दुक्खातो भी रोगायंकातो पडिमोएह अणिट्ठाओ जाव नो सुहातो। एवामेव णो लद्धपुव्वं भवति । ६७३. तेसिंवा वि भयंताराणं मम णाययाणं अण्णयरे दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा Morc5555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - ७५55555555555555555555555555 GTOR 50听听听听听听听听听听听听听听听听听听货明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听明明明明明明C Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सूयगडी बी. सु. १- अ. पोडरीय [२२] अणिट्ठे जाव नो सुहे, से हंता अहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं अण्णतरं दुक्खं रोगातंकं परियाइयामि अणिट्टं जाव णो सुहं, मा मे दुक्खंतु वा जाव परितप्पंतु वा, इमाओ णं अण्णतरातो दुक्खातो रोगातंकातो परिमोएमि अणिट्ठातो जाव नो सुहातो। एवामेव णो लद्धपुव्वं भवति । ६७४ . अण्णस्स दुक्खं अण्णो नो परियाइयति, अन्नेण कडं कम्मं अन्नो नो पडिसंवेदेति, पत्तेयं जायति, पत्तेयं मरइ, पत्तेयं चयति, पत्तेयं उववज्जति, पत्तेयं झंझा, पत्तेयं सण्णा, पत्तेयं मण्णा, एवं विष्णू, वेदणा, इति खलु णातिसंयोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा, पुरिसो वा एगता पुव्विं णातिसंयोगे विप्पजहति, नातिसंयोगा वा एगता पुव्विं पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खलु णातिसंयोगा अन्नो अहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं णातिसंयोगेहिं मुच्छामो ? इति संखाए णं वयं णातिसंजोगे विप्पजहिस्सामो । ६७५. से मेहावी जाणेज्जा बाहिरगमेतं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहा हत्था मे, पाया मे, बाहा मे, ऊरू मे, सीसं मे, उदरं मे, सीलं मे, आउं मे, बलं मे, वण्णो मे, तया मे, छाया मे, सोयं मे, चक्खुं मे, घाणं मे, जिब्भा मे, फासा मे, ममाति । जंसि वयातो परिजूरति तंजहा आऊओ बलाओ वण्णाओ तताओ छाताओ सोताओ जाव फासाओ, सुसंधीता संधी विधी भवति, वलितरंगे गाते भवति, किण्हा केसा पलिता भवंति, तंजहा जं पि य इमं सरीरगं उरालं आहारोवचियं एतं पि य मे अणुपुव्वेणं विप्पजहियव्वं भविस्सति । ६७६. एयं संखाए से भिक्खू भिक्खायरियाए समुट्ठिते दुहतो लोगं जाणेज्जा, तंजहा जीवा चेव अजीवा चेव, तसा चेव थावरा चेव । ६७७ १ इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणमाहणा सारंभा सपरिग्गहा, जे इमे तस थावरा पाणा ते सयं समारंभंति, अण्णेण वि समारंभावेति, अण्णं पि समारंभंतं समणुजाणंति । २ इह खलु गारत्था सारंमा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणमाहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा ते सयं चैव परिगिण्हंति, अण्णेण वि परिगिण्हावेंति, अण्णं पि परिगिण्हंतं समणुजाणंति । ३ इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, अहं खलु अणारंभे अपरिग्गहे । जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा-माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, एतेसिं चेव निस्साए बंभचेरं चरिस्सामो, कस्स णं तं हेउं ? जहा पुव्वं तहा अवरं, जहा अवरं तहा पुव्वं । अंजू चेते अणुवरया अणुवट्ठिता पुणरवि तारिसगा चेव । ६७८. जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समण-माहणा सारंभा सपरिग्गहा, दुहतो पावाई इति संखाए दोहिं वि अंतेहिं अदिस्समाणे इति भिक्खू रीएज्जा से बेमि- पाइणं वा ४ । एवं से परिण्णातकम्मे, एवं से विवेयकम्मे, एवं से वियंतकारए भवतीति मक्खातं । ६७९. तत्थ खलु भगवता छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तंजहा पुढविकायिया जावतकाया । से जहानामए मम अस्सायं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्टीण वा लेलूण वा कवालेण वा आउडिज्जमाणस्स वा हम्ममाणस्स वा तज्जिज्जमाणस्स वा ताडिज्जमाणस्स वा परिताविज्जमाणस्स वा किलामिज्जमाणस्स वा उद्दविज्जमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमातमवि हिंसाकरं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा जाव सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा आउडिज्जमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिज्जमाणा ताडिज्जमाणा वा परियाविज्जमाणा वा किलामिज्जमांणा वा उद्दविज्जमाणा वा जाव लोमुक्खणणमातमवि हिंसाकरं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति । एवं णच्चा सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, पण परिघेत्तव्वा, न परितावेयव्वा, पण उद्दवेयव्वा । ६८०. से बेमि जेय अतीता जे य पडुप्पणा जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंता सव्वे ते एवमाइक्खंति, एवं भासेति, एवं पण्णवेति, एवं परुवेति सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा, एस धम्मे धुवे णितिए सासते, समेच्च लोगं खेतन्नेहिं पवेदिते । ६८१. एवं से भिक्खू विरते पाणातिवातातो जाव विरते परिग्गहातो! णो दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेज्जा, णो अंजणं, णो वमणं, णो धूमं तं (णो धूमणेत्तं) पि आविए । ६८२. से भिक्खू अकिरिए अलूसए अकोहे अमाणे अमाए अलोभे उवसंते परिनिव्वुडे । णो आसंसं पुरतो करेज्जा इमेण मे दिट्ठेण वा सुएण वा मुण वा विण्णाएण वा इमेण वा सुचरियतव-नियम-बंभचेरवासेणं इमेण वा जायामातावुत्तिएणं धम्मेण इतो चुते पेच्चा देवे सिया, कामभोगा वसवत्ती, सिद्धे वा अदुक्खमसुभे, एत्थ वि सिया, एत्थ वि णो सिया । ६८३. से भिक्खू सद्देहिं अमुच्छिए, रूवेहिं अमुच्छिए, गंधेहिं अमुच्छिए, रसेहिं अमुच्छिए, फासेहिं अमुच्छिए, विरए कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायातो अरतीरतीओ मायामोसाओ मिच्छादंसणसल्लाओ, इति से महता आदाणातो उवसंते उवद्विते पडिविरते। ६८४. से भिक्खू जे इमे तस धावरा पाणा भवंति ते णो सयं समारभति, णो वऽण्णेहिं समारभावेति, अण्णे 5 श्री आगमगुणमंजूषा ६ নএরএএরএএএএ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOLC%%%%%%%$ $ $$ $明 (२) सूयगडो बी.सु. १-अ. पोंडरीयं/२.अ. किरीयाठाणं [२३] 55555$$$$$$$$$$ OR 1555555555555555555555sexog 乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐OP समारभंते वि न समणुजाणइ, इति से महता आदाणातो उवसंते उवहिते पडिविरते । ६८५. से भिक्खू जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा ते णो सयं परिगिण्हति, नेवऽण्णेण परिगिण्हावेति, अण्णं परिगिण्हतं पिण समणुजाणइ, इति से महया आदाणातो उवसंते उवहिते पडिविरते । ६८६. से भिक्खू जं पि य इमं संपराइयं कम्मं कज्जइ णो तं सयं करेति, नेवऽन्नेणं कारवेति, अन्नं पि करेंतं णाणुजाणति, इति से महता आदाणातो उवसंते उवहिते पडिविरते। ६८७. से भिक्खू जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारंभ समुद्दिस्स कीतं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्टद्देसियं चेतियं सिता तं णो सयं भुंजइ, णो वऽन्नेणं भुंजावेति, अन्नं पि भुजंतं ण समणुजाणइ, इति से महता आदाणातो उवसंते उवट्ठिते पडिविरते से भिक्खू । ६८८. अह पुणेवं जाणेज्जा, तं० विज्जति तेसिं परक्कमे जस्सट्ठाते चेतितं सिया, तंजहा अप्पणो से, पुत्ताणं, धूयाणं, सुण्हाणं, धाईणं, णाईणं, राईणं, दासाणं, दासीणं, कम्मकराणं, कम्मकरीणं, आदेसाए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पातरासाए, सण्णिधिसंणिचए कज्जति इहमेगेसिं माणावाणं भोयणाए । तत्थ भिक्खू परकड-परणिट्ठितं उग्गमुप्पायणेसणासुद्धं सत्थातीतं सत्थपरिणामितं अविहिसितं एसियं वेसियं सामुदाणियं पण्णमसणं कारणट्ठा पमाणजुत्तं अक्खोवंजणवणलेवणभूयं संजमजातामातावुत्तियं बिलमिव पन्नगभूतेणं अप्पाणेणं आहारं आहारेज्जा, तंजहा अन्नं अन्नकाले, पाणं पाणकाले, वत्थं वत्थकाले, लेणं लेणकाले, सयणं सयणकाले । ६८९. से मिक्खू मातण्णे अण्णतरं दिसं वा अणुदिसं वा पडिवण्णे धम्म आइक्खे विभए किट्टे उवट्ठितेसु वा अणुवट्टितेसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए संतिविरतिं उवसमं निव्वाणं सोयवियं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणतिवातियं सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूताणं जाव सत्ताणं अणुवीइ किट्टए धम्मं । ६९०. से भिक्खू धम्म किट्टमाणे णो अन्नस्स हेउं धम्म आइक्खेज्जा, णो पाणस्स हेउं धम्म आइक्खेजा, णो वत्थस्स हेउं धम्मंआइक्खेज्जा, णो लेणस्स हेउं धम्म आइक्खेजा, णो सयणस्स हेउं धम्म आइक्खेज्जा, णो अन्नेसिं विरूवरूवाणं कामभोगाणं हेउं धम्ममाइक्खेज्जा, अगिलाए धम्ममाइक्खिज्जा, णण्णत्थ कम्मणिज्जरठ्ठताए धम्म आइक्ज्ज्जा । ६९१. इह खलु तस्स भिक्खुस्स अंतियं धम्म सोच्चा णिसम्म उट्ठाय वीरा अस्सिं धम्मे समुट्ठिता, जे ते तस्स भिक्खुस्स 'अंतियं धम्म सोच्चा णिसम्म सम्म उट्ठाणेणं उट्ठाय वीरा अस्सिं धम्मे समुट्ठिता, ते एवं सव्वोवगता, ते एवं सव्वोवरता, ते एवं सव्वोवसंता, ते एवं सव्वत्ताए परिनिव्वुड त्ति बेमि । ६९२. एवं से भिक्खू धम्मट्ठी धम्मविदू नियागपडिवण्णे, से जहेयं बुतियं, अदुवा पत्ते पउमवरपोंडरीयं अदुवा अपत्ते पउमवरपोंडरीयं । ६९३. एवं से भिक्खूपरिण्णातकम्मे परिण्णायसंगे परिण्णायगिहवासे उवसंते समिते सहिए सदा जते । सेयं वयणिज्जे तंजहा समणे ति वा माहणे ति वा खंते ति वा दंते ति वा गुत्ते ति वा मुत्ते ति वा इसी ति वा मुणी ति वा कती ति वा विदू ति वा भिक्खू ति वा लूहे ति वा तीरट्ठी ति वा चरणकरणपारविदु त्ति बेमि | || ★★★ बितियसुयक्खंधस्सपोंडरीयं पढमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ २बीयं अज्झयणं 'किरियाठाणं फ६९४. सुतं मे आउसंतेणं भगवता एवमक्खातंइह खलु किरियाठाणे णाम अज्झयणे, तस्सणं अयमढे इह खलु संजूहेणं दुवे ठाणा एवमाहिज्जति, तंजहा धम्मे चेव अधम्मे चेव, उवसंते चेव अणुवसंते चेव । तत्थ णं जे से पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे तस्सणं अयमढे इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोता वेगेणीयागोता वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिंच णं इमं एतारूवं दंडसमादाणं संपेहाए, तंजहा जेरइएसु तिरिक्खजोणिएसु माणुसेसु देवेसुजे यावन्ने तहप्पगारा पाणा विण्णू वेयणं वेदेति तेसिं पि य णं इमाइं तेरस किरियाठाणाइं भवंतीति अक्खाताई, तंजहा अट्ठादंडे १ अणट्ठादंडे २ हिंसादंडे ३ अकम्हादंडे ४ दिट्ठिविपरियासियादंडे ५ मोसवत्तिए ६ अदिन्नादाणवत्तिए७ अज्झत्थिए ८ माणवत्तिए ९ मित्तदोसवत्तिए १० मायावत्तिए ११ लोभवत्तिए १२ इरियावहिए १३ । ६९५. पढमे दंडसमादाणे अट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिज्जत्ति, से जहानामए केइ पुरिसे आतहेउं वा णाइहेउं वा अगारहेउं वाई परिवारहेउं वा मित्तहेउं वा णागहेउं णा भूतहेउं वा जक्खहेउं वा तं दंडं तस-थावरेहिं पाणेहि सयमेव णिसिरति, अण्णेण वि णिसिरावेति, अण्णं पि णिसिरंतं समणुजाणति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे ति आहिज्जति, पढमे दंडसमादाणे अट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिते । ६९६. (१) अहावरे दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडसवत्तिएत्ति आहिजति, से जहानामए केइ पुरिसे जे इमे तसा पाणा भवंति ते णो अच्चाए णो अजिणाए णो मंसाए णो सोणियाए एवं हिययाए पित्ताए वसाए mero5455555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ७0555555555555 55555555557OK 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听20 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Xx555555555555555 (२) सूयगडो बी. सु. २-अ. किरीयाठाणं २४) OFFFFFFFFFFFFFF开五 MICF历乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 听听听乐乐乐乐乐乐听听乐乐听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩5C पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए णहाए ण्हारुणीए अट्ठीए अट्ठिमिजाए, णो हिसिंसु मे त्ति, णो हिंसंति मे त्ति णो हिंसिस्संति मे त्ति, णो पुत्तपोसणयाए णो पसुपोसणयाए णो अगारपरिवूहणताए णो समणमाहणवत्तियहेउं, णोतस्स सरीरगस्स किंचि वि परियादित्ता भवति, सेहंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता उज्झिउं बाले वेरस्स आभागी भवति, अणट्ठादंडे। (२) से जहाणामए केइ पुरिसे जे इमे थावरा पाणा भवंति, तंजहा इक्कडा इ वा कढिणा इ वा जंतुगा इ वा परगा इ वा मोरका इ वा तणा इ वा कुसा इ वा कुच्चक्का इ वा पव्वगा ति वा पलालए इ वा, ते णो पुत्तपोसणयाए णो पसुपोसणयाए णो अगारपोसणयाए णो समणमाहणपोसणयाए, णो तस्स सरीरगस्स किंचि वि परियादित्ता भवति, से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता उज्झिउं बाले वेरस्स आभागी भवति, अणट्ठादंडे। (३) से जहाणामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा दगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा णूमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा तणाई ऊसविय ऊसविय सयमेव अगणिकायं णिसिरति, अण्णेण वि अगणिकायं णिसिरावेति, अण्णं पि अगणिकायं णिसिरंतं समणुजाणति, अणट्ठादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजे त्ति आहिज्जत्ति, दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिते। ६९७. अहावरे तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिए त्ति आहिज्जति । से जहाणामए केइ पुरिसे ममं वा ममि वा अन्नं वा अन्निं वा हिसिसु वा हिंसइ वा हिसिस्सइ वा तं दंडं तस-थावरेहिं पाणेहिं सयमेव णिसिरति, अण्णेण वि णिसिरावेति, अन्नं पि णिसिरंतं समणुजाणति, हिंसादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जइ, तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिए 5 त्ति आहिते । ६९८. (१) अहावरे चउत्थे दंडसमादाणे अकस्माद् दंडवत्तिए त्ति आहिज्जत्ति, से जहाणामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा म मियवित्तिए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वधाए उसुं आयामेत्ता णं णिसिरेज्जा, से मियं वहिस्सामि त्ति कट्ट तित्तिरं वा वट्टगं वा चडगं वा लावगं वा कवोतगं वा कविं वा कविंजलं वा विधित्ता भवति, इति खलु से अण्णस्स अट्ठाए अण्णं फुसइ, अकस्माइंडे । (२) से जहाणामए केइ पुरिसे सालीणि वा वीहीणि वा कोद्दवाणि वा कंगूणि वा परगाणि वा रालाणि वा णिलिज्जमाणे अन्नयरस्स तणस्स वहाए सत्थं णिसिरेज्जा, से सामगं मयणगं मुगुंदगं वीहिरूसितं कालेसुतं तणं छिदिस्सामि त्ति कट्ट सालिं वा वीहिं वा कोद्दवं वा कंगुं वा परगं वा रालयं वा छिदित्ता भवइ, इति खलु से अन्नस्स अट्ठाए अन्नं फुसति, अकस्मात् दंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ने त्ति आहिज्जति, चउत्थे दंडसमादाणे अकस्मात् दंडवत्तिए त्ति आहिते। ६९९. (१) अहावरे पंचमे दंडसमादाणे दिट्ठीविप्परियासियादंडे त्ति आहिज्नति, से जहाणामए केइ पुरिसे माईहिं वा पिईहिं वा भातीहिं वा भगिणीहिं वा भज्जाहिं वा पुत्तेहिं वा धूताहिं वा सुण्हाहिं वा सद्धिं संवसमाणे मित्तं अमित्तमिति मन्नमाणे मिते हयपुव्वे भवति, दिट्ठीविप्परियासियादंडे। (२) से जहा वा केइ पुरिसे गामघायंसि वा णगरघायंसि वा खेड० कब्बड० मडंबघातंसि वा दोणमुहघायंसि वा पट्टणघायंसि वा आसमघातंसिवा सन्निवेसघायंसि वा निगमघायंसि वा रायहाणिघायंसि वा अतेणं तेणमिति मन्नमाणे अतेणे हयपुव्वे भवइ, दिट्ठीविपरियासियादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जति, पंचमे दंडसमादाणे दिट्ठीविप्परियासियादंडे त्ति आहिते। ७००. अहावरे छठे किरियाठाणे मोसवत्तिए त्ति आहिज्जति, से जहानामए केइ पुरिसे आयहेउं वा नायहेउं वा अगारहेउं वा परिवारहेउं वा सयमेव मुसं वयति, अण्णेण वि मुसं वदावेति, मुसं वयंतं पि अण्णं समणुजाणति, एवं खलु सस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्नति, छठे किरियाठाणे मोसवत्तिए त्ति आहिते। ७०१. अहावरे सत्तमे किरियाठाणे अदिण्णादाणवत्तिए त्ति आहिज्जति से जहाणामए केइ पुरिसे आयहेउं वा जाव परिवारहेउं वा सयमेव अदिण्णं आदियति, अण्णेण वि अदिण्णं आदियावेति, अदिण्णं आदियंतं अण्णं समणुजाणति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जति, सत्तमे किरियाठाणे अदिण्णादाणवत्तिए त्ति आहिते । ७०२. अहावरे अट्ठमे किरियाठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिज्जति, से जहाणामए केइ पुरिसे, से णत्थि णं केइ किंचि विसंवादेति, सयमेव हीणे दीणे दुढे दुम्मणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविढे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगते भूमिगतदिट्ठीए झियाति, तस्सणं अज्झत्थिया असंसइया चत्तारिठाणा एवमाहिज्जति, तं० कोहे माणे माया लोभे,अज्झत्थमेव कोह-माण-माया-लोहा, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे ति आहिज्जति, अट्ठमे किरियाठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिते। १७०३. अहावरे णवमे किरियाठाणे माणवत्तिए त्ति आहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे जातिमदेण वा कुलमदेण वा बलमदेण वा रूवमएण वा तवमएण वा सुयमदेण ROYCEF #555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ७८ 5555555555555555555555555FOLOR G乐听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听圳明乐听听听听听听听听听听听听听听CC及 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0666666666666666 फफफफफफफफफफफफफफु (२) सूयगडी बी. सु. २- अ. किरीयाठाण [२५] वा लाभमदेण वा इस्सरियमदेण वा पण्णामदेण वा अन्नतरेण वा मदट्ठाणेणं मत्ते समाणे परं हीलेति निंदति खिंसति गरहति परिभवइ अवमण्णेति, इत्तरिए अयमंसि अप्पाणं समुक्कसे, देहा चुए कम्मबितिए अवसे पयाति, तंजहा गब्भातो गब्धं, जम्मातो जम्मं, मारातो मारं णरगाओ णरगं, चंडे थद्धे चवले माणी यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जति, णवमे किरियाठाणे माणवत्तिए त्ति आहिते । ७०४. अहावरे इसमे किरियाठाणे मित्तदोसवत्तिए नि आहिज्जति, से जहाणामए केइ पुरिसे मातीहिं वा पितीहिं वा भाईहिं वा भगिणीहिं वा भज्जाहिं वा पुत्तेहिं वा धूयाहिं वा सुण्हाहिं वा सद्धिं संवसमाणे तेसिं अन्नतरंसि अहालहु अवराहंसि सयमेव गरुयं दंडं वत्तेति, तंजहा सीतोदगवियडंसि वा कायं ओबोलित्ता भवति, उसिणोदगवियडेण वा कार्य ओसिंचित्ता भवति. अगणिकाएण वा कार्य भवति त्वा वेत्तेण वा णेत्तेण वा तया वा कसेण वा छिवाए वा लयाए वा पासाई उहालेत्ता भवति, दंडेण वा अट्टीण वा मुलीण वा लेलूण वा कवालेण वा कार्य आउट्टित्ता भवति, तहप्पकारे पुरिसजाते संवसमाणे दुम्मणा भवंति, पवसमाणे सुमणा भवंति, तहप्पकारे पुरिसजाते दंडपासी दंडगुरुए दंडपुरक्खडे अहिए इमंसि लोगंसि अहिते परंसि लोगंसि संजलणे कोहणे पिट्ठिमंसि यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जति, दसमे किरियाठाणे मित्तदोसवत्तिए त्ति आहिते । ७०५. अहावरे एक्कारसमे किरियाठाणे मायावत्तिए त्ति आहिज्जति, जे इमे भवंति गूढायारा तमोकासिया उलूगपत्तलहुया पव्वयगुरुया, ते आरिया वि संता अणारियाओ भासाओ विउज्जंति, अन्नहा संतं अप्पाणं अन्ना मन्नंति, अन्नं पुट्ठा अन्नं वागरेति, अन्नं आइक्खियव्वं अन्नं आइक्खति । से जहाणामए केइ पुरिसे अंतोसल्ले तं सल्लं णो सयं णीहरति, णो अन्त्रेण णीहरावेति, णो पडिविद्धंसेति, एवामेव निण्हवेति, अविउट्टमाणे अंतो अंतो रियाति, एवामेव माई मा आलोएति णो पडिक्कमति णो जिंदति णो गरहति णो विउट्टति णो विसोहति णो अकरणयाए अब्भुट्ठेति णो अहारिहं तवोकम्मं पायच्छितं पडिवज्जति, मायी अस्सिं लोए पच्चायाइ, मायी परंसि लोए पच्चायाति, निंदं गहाय पसंसते, णिच्चरति, ण नियट्टति, णिसिरिय दंडं छाएति, मायी असमाहडसुहलेसे यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जइ, एक्कारसमे किरियाठाणे मायावत्तिए त्ति आहिते । ७०६. अहावरे बारसमे किरियाठाणे लोभवत्तिए त्ति आहिज्जति, तंजहा जे इमे भवंति आरण्णिया आवसहिया गामंतिया कण्हुईराहस्सिया, णो बहुसंजया, णो बहुपडिविरया सव्वपाण-भूत जीव सत्तेहिं, ते अप्पणा सच्चामोसाइं एवं विरंजंति- अहं ण हंतव्वो अन्ने हंतव्वा, अहं ण अज्जावेतव्वो अन्ने अज्जावेयव्वा, अहं ण परिघेत्तव्वो अन्ने परिघेत्तव्वा, अहं ण परितावेयव्वो अन्ने परितावेयव्वा, अहं पण उवेयव्वो अन्ने उद्दवेयव्वा, एवामेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिता गरहिता अज्झोववण्णा जाव वासाइं चउपंचमाई छद्दसमाई अप्पयरो वा भुज्जयरो वा भुंजित्तु भोगभोगाई कालमासे कालं किच्चा अन्नतरेसु आसुरिएस किब्बिसिएस ठाणेसु उववत्तारो भवंति, ततो विप्पमुच्चमाणा भुज्जो भुज्जो एलमुयत्ताए तमूयत्ताए जाइमूयत्ताए पच्चायंति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जति, दुवालसमे किरियाठाणे लोभवतिए त्ति आहिते । इच्चेताई दुवालस किरियाठाणाई दविएणं समणेणं वा माहणेणं वा सम्मं सुपरिजाणियव्ववाइं भवंति। ७०७. अहावरे तेरसमे किरियाठाणे इरियावहिए त्ति आहिज्जति, इह खलु अत्तत्ताए संवुडस्स अणगारस्स इरियासमियस्स भासासमियस्स एसणासमियस्स आयणभंडमत्तणिक्खेणासमियस्स उच्चार पासवण खेल-सिंघाण जल्लपारिद्वावणिया-समियस्स मणसमियस्स वइसमियस्स कायसमियस्स मणगुत्तस्स वइगुत्तस्स कायगुत्तस्स गुत्तस्स गुत्तिदियस्स गुत्तबंभचारिस्स आउत्तं गच्छमाणस्स आउत्तं चिट्ठमाणस्स आउत्तं णिसीयमाणस्स आउत्तं तुयट्टमाणस्स आउत्तं भुंजमाणस्स आउत्तं भासमाणस्स आउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा णिक्खिवमाणस्स वा जाव चक्खुपम्हणिवातमवि अत्थि वेमाया सुहुमा किरिया इरियावहिया नामं कज्जति, सा पढमसमए बद्धा पुट्ठा, बितीयसमए वेदिता, तनियसमए णिज्जिण्णा, सा बा पुट्ठा उदीरिया वेदिया णिज्जिण्णा सेयकाले अकम्मं चावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे त्ति आहिज्जति तेरसमे किरियाठाणे इरियावहिए त्ति आहिते । सेबे जे अतीता जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंता सव्वे ते एताइं चेव तेरस किरियाठाणाई भासिसु वा भासंति वा भासिस्संति वा पण्णविंसु वा पण्णवेति वा पण्णविस्संति वा, एवं चेव तेरसमं किरियाठाणं सेविंसु वा सेवंति वा सेविस्संति वा । ७०८. अदुत्तरं च णं पुरिसविजयविभंगमाइक्खिस्सामि । इह खलु नाणापण्णाणं नाणाछंदाणं नाणासीलाणं नाणादिट्ठीणं नाणारुईणं नाणारंभाणं नाणाज्झवसाणसंजुत्ताणं नाणाविहं पावसुयज्झयणं एवं भवति, तंजहा भोम्मं 666666666666 श्री आगमगुणमंजूषा on Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明格 AGRO5555555555555555 (२) सूयगडो बी. सु. २-अ. किरीयाठाणं [२६] 555555555552 उप्पायं सुविणं अंतलिक्खं अंगं सरलक्खणं वंजणं इत्थिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं मिढलक्खणं कुक्कडलक्खणं तित्तिरलक्खणं वट्टगलक्खणं लावगलक्खणं चक्कलक्खणं छत्तलक्खणं चम्मलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्खणं मणिलक्खणं कागिणिलक्खणं सुभगाकरं दुब्भगाकरं गब्भकरं मोहणकरं आहव्वणिं पागसासणिं दव्वहोमं खत्तियविजं चंदचरियं सूरचरियं सुक्कचरियं बहस्सइचरियं उक्कापायं दिसीदाहं मियचक्कं वायसपरिमंडलं पंसुवुद्धिं केसवुद्धिं मंसवुद्धिं रुहिरवुद्धिं वेतालिं अद्धवेतालिं ओसोवणिं तालुगघाडणिं सोवागिं साबरिं दामिलिं कालिगिं गोरिं गंधारिं ओवतणिं उप्पतणिं जंभणिं थंभणिं लेसणिं आमयकरणिं विसल्लकरणिं पक्कमणिं अंतद्धाणिं आयमणिं एवमादिआओ विज्जाओ अन्नस्स हेउं पउंजंति, पाणस्स हेउं पउंजंति, वत्थस्स हेउं पउंजंति, लेणस्स हेउं पउंजंति, सयणस्स हेउं पउंजंति, अन्नेसिं वा विरूवरूवाणं कामभोगाण हेउं पउंजंति, तेरिच्छे ते विज्ज सेवंति, अणारिया विप्पडिवन्ना ते कालमासे कालं किच्चा अण्णतराइं आसुरियाई किब्बिसियाई ठाणाइं उववत्तारो भवंति, ततो वि विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलमूयताए तमअंधयाए पच्चायति । ७०९. से एगतिओ आयहेउं वा णायहेउं वा अगारहेउं वा परिवारहेउं वा नायगं वा सहवासियं वा णिस्साए अदुवा अणुगामिए १, अदुवा उवचरए २, अदुवा पाडिपहिए ३, अदुवा संधिच्छेदए ४, अदुवा गंठिच्छेदए ५, अदुवा उरब्भिए ६, अदुवा सोवरिए ७, अदुवा वागुरिए ८, अदुवा साउणिए ९, अदुवा मच्छिए १०, अदुवा गोपालए ११, अदुवा गोघायए १२, अदुवा सोणइए १३, अदुवा सोवणियंतिए १४ । से एगतिओ अणुगामियभावं पंडिसंधाय तमेव अणुगमियाणुगमिय हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति १ । से एगतिओ उवचरगभावं पडिसंधाय तमेव उवचरित २ हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइता भवति २। से एगतिओ पाडिपहियभावं पडिसंधाय तमेव पडिपहे ठिच्चा हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेति, इति से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति ३ । से एगतिओ संधिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव संधि छेत्ता भेत्ता जाव इति से महता पावेहि कम्मेहि अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति ४ । से एगतिओ गंठिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव गंठिं छेत्ता भेत्ता जाव इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अप्पाणं उव्वक्खाइत्ता भवति ५। से एगतिओ उरब्भियभावं पडिसंधाय उरब्भ वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति ६ । एसो अभिलावो सव्वत्थ । से एगतिओ सोयरियभावं पडिसंधाय महिसं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति ७। से एगतिओ वागुरियभावं पडिसंधाय मिगं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति ८ । से एगतिओ साउणियभावं पडिसंधाय सउणिं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति ९ । से एगतिओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति १० । से एगतिओ गोघातगभावं पडिसंधाय गोणं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति ११ । से एगतिओ गोपालगभावं पडिसंधाय तमेव गोणं वा परिजविय परिजविय हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति १२। से एगतिओ सोवणियभावं पडिसंधाय सुणगं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति १३ । से एगतिओ सोवणियंतियभावं पडिसंधाय मणुस्सं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव आहारं आहारेति, इति से महता पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति १४।७१०. से एगतिओ परिसामज्झातो उठ्ठित्ता अहमेयं हंछामि त्ति कट्ट तित्तिरं वा वट्टगं वा लावगं वा कवोयगं वा कविं वा कविंजलं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति । से एगतिओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीणं वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएणं सस्साई झामेति, अण्णेण वि अगणिकाएणं सस्साइं झामावेति, अगणिकाएणं सस्साइं झामतं पि अण्णं समणुजाणति, इति से महता पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति । से एगतिओ केणइ आयाणेणं विरूद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पेति, अण्णेण वि कप्पावेति, कप्पंतं पि अण्णं समणुजाणति, इति से महया जाव भवति।से एगतिओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीणं वा गाहावतिपुत्ताणं वा उट्टसालाओ वा गोणसालाओ वा घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कंटगबोदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेति, अण्णेण वि झामावेति, झामेंतं पि अन्नं समणुजाणइ, इति से महया जाव भवति । से एगतिओ केणइ PROICEFFFFF55555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ८०55555555555555555555555555FGAON UGO乐乐玩乐乐听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐听听乐乐乐乐乐乐CE Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明纸纸听听听听听乐OS AGR95555555555555559 (२) सूयगडो बी. सु. २-अ. किरीयाठाणं [२७] 55555555%%%%8C% आयाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीणं वा गाहावतिपुत्ताणं वा कुंडलं वा गुणं वा मणिं वा मोत्तियं वा सयमेव अवहरति, अन्नेण वि अवहरावेति, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणति, इति से महया जाव भवति । से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं समणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दंडगं वा भंडगं वा मत्तगं वा लट्टिगं वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगंवा चम्मगंवा चम्मच्छेदणगं वा चम्मकोसं वा सयमेव अवहरति जाव समणुजाणति इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवति । से एगतिओ णो वितिगिंछइ, तं० गाहावतीण वा गाहावतिपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएणं ओसहीओ झामेति जाव अण्णं पि झामेंतं समणुजाणति इति से मया जाव भवति । से एगतिओ णो वितिगिंछति, तं० गाहावतीण वा गाहावतिपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पेति, अण्णेण वि कप्पावेति, अण्णं पि कप्त समणुजाणति। से एगतिओ णो वितिगिछति, तं० गाहावतीण वा गाहावतिपुत्ताण वा उट्टसालाओ वा जाव गद्दभसालाओ वा कंटकबोदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेति जाव समणुजाणति । से एगतिओ णो वितिगिछति, तं० गाहावतीण वा गाहावतिपुत्ताण वा कोण्डलं वा जाव मोत्तियं वा सयमेव अवहरति जाव समणुजाणति । से एगतिओ णो वितिगिंछति, तं०। समणाण वा माहणाण वा दंडगं वा जाव चम्मच्छेदणगं वा सयमेव अवहरति जाव समणुजाणति, इति से महता जाव उवक्खाइत्ता भवति । से एगतिओ समणं वा माहणं वा दिस्सा णाणाविधेहिं पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति, अद्वा णं अच्छराए अप्फालेत्ता भवति, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवति, कालेण वि से अणुपविट्ठस्स असणं वा पाणं वा जाव णो दवावेत्ता भवति, जे इमे भवंति वोण्णमंता भारोक्ता अलसगा वसलगा किमणगा समणगा पव्वयंती ते इणमेव जीवितं धिज्जीवितं संपडिबूहंति, नाइं ते पारलोइ य स्स अट्ठस्स किंचि वि सिलिस्संति, ते दुक्खंति ते सोयंति ते जूरंति ते तिप्पंति ते पिट्ट(९)ति ते परितप्पंति ते दुक्खणसोयण-जूरण-तिप्पण-पिट्ट(ड्ड)ण-परित-प्पण-वह-बंधणपरिकिलेसातो अपडिविरता भवंति, ते महता आरंभेणं ते महया समारंभेणं ते महता आरंभसमारंभेणं विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजित्तारो भवंति, तंजहा अन्नं अन्नकाले, पाणं पाणकाले, वत्थं वत्थकाले, लेणं लेणकाले, सयणं सयणकाले, सपुव्वावरं च णं ण्हाते कतबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सिरसा पहाते कंठेमालकडे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पितमालामउली पडिबद्धसरीरे वग्घारियसोणिसुत्तगमल्लदामकलावे अहतवत्थपरिहिते चंदणोक्खित्तगायसरीरे महतिमहालियाए कूडागारसालाए महतिमहालयंसि सीहासणंसि इत्थीगुम्मसंपरिवुडे सव्वरातिएणं जोइणा झियायमाणेणं महताहतनट्ट-गीत-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइतरवेणं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अवुत्ता चेव अब्भुट्टेति, भण देवाणुप्पिया ! किं करेमो ? किं आहरेमो ? किं उवणेमो ? किं आवि ट्ठवेमो ! किं भे हियइच्छितं ? किं भे आसगस्स सदइ ? तमेव पासित्ता अणारिया एवं वदंति- देवे खलु अयं पुरिसे, देवसिणाए खलु अयं पुरिसे, उवजीवणिज्जे खलु अयं पुरिसे, अण्णे विणं उवजीवंति, तमेव पासित्ता आरिया वदंति- अभिक्कंतकूरकम्मे खलु अयं पुरिसे अतिधुन्ने अतिआतरक्खे दाहिणगामिए नेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लभबोहिए यावि भविस्सइ । इच्चेयस्स ठाणस्स उद्विता वेगे अभिगिझंति, अणुट्ठिता वेगे अभिगिज्झंति, अभिझंझाउरा अभिगिज्झंति, एस ठाणे अणारिए अकेवले अप्पडिपुण्णे अणेआउए असंसुद्धे असल्लगत्तणे असिद्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अनिव्वाणमग्गे अणिज्जाणमग्गे असव्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू । एस खलु पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिते।७११. अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जति-इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे ह्रस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे, तेसिं च णं खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाणि भवंति, एसो आलावगो तहा णेतव्वो जहा पोंडरीए जाव सव्वोवसंता सव्वताए परिनिव्वुड त्ति बेमि । एस ठाणे आरिए केवले जाव सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्म साहू, दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिते । ७१२. अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मिस्सगस्स विभंगे एवमाहिज्जति-जे इमे भवंति आरण्णिया गामणियंतिया कण्हुइराहस्सिता जाव ततो विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलमयत्ताए तमूयत्ताए पच्चायंति, एस ठाणे अणारिए अकेवले जाव असव्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू, एस खलु तच्चस्स ठाणस्स मिस्सगस्स विभंगे एवमाहिते।७१३. अहावरे xoros श्री आगमगुणभंजूषा - 7555555555555555555555 FOTO 9$乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐明乐乐乐乐 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सूयगडो बी. सु. २-अ. किरीयाठाणं [२८] 55555555555520 בנות 步步勇当当当当当 听听听听听听听听听乐乐乐乐 乐乐 乐乐 पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जति-इह खलु पाईणं वा ४ संतेगतिया मणुस्सा भवंति महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया अधम्माणुया अधम्मिट्ठा अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मलज्जणा अधम्मसीलसमुदायारा अधम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति । हण छिंद भिंद विगत्तगा लोहितपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहसिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-सातिसंपओग-बहुला दुस्सीला दुव्वता दुप्पडियाणंदा असाधू सव्वातो पाणातिवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए जाव सव्वातो परिग्गहातो अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वातो कोहातो जाव मिच्छादसणसल्लातो अप्पडिविरया, सव्वातोण्हाणुम्मद्दण-वण्णग-विलेवण-सद्द-परिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकारातो अप्पडिविरता जावज्जीवाए, सव्वातो सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लिसीय-संदमाणिया-सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहण-भोग-भोयणपवित्थरविहितो अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वातो कय-विक्कय-मास-ऽद्धमास-रूवगसंववहाराओ अप्पडिविरता जावज्जीवाए,सव्वातो हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धण्ण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवालाओ अप्पडिविरया, सव्वातो कूडतुल-कूडमाणाओ अप्पडिविरया,सव्वातो आरंभसमारंभातो अप्पडिविरया सव्वातो करण-कारावणातो अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वातो पयण-पयावणातो अप्पडिविरया, सव्वातो कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह-बंधपरिकिलेसातो अप्पडिविरताजावज्जीवाए, जे यावऽण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा जे अणारिएहिं कज्जति ततो वि अप्पडिविरता जावज्जीवाए। सेजहाणामए केइ पुरिसे कलम-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-पलिमंथगमादिएहिं ॐ अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजति, एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाते तित्तिर-वट्टग-लावग-कवोत-कविंजल-मिय-महिस-वराह-गाह-गोह-कुम्म-सिरीसिवमादिएहिं अयते ॐ कूरे मिच्छादंडं पउंजति । जा वि य से बाहिरिया परिसा भवति, तंजहा दासे ति वा पेसे ति वा भयए ति वा भाइल्ले ति वा कम्मकरए ति वा भोगपुरिसे ति वा तेसिं पि यणं अन्नयरंसि अहालहुसगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दंडं निव्वत्तेइ, तंजहा इमं दंडेह, इमं मुंडेह, इमं तज्नेह, इमं तालेह, इमं अंदुयबंधणं करेह, इमं नियलबंधणं करेह, इमं हडिबंधणं करेह, इमं चारगबंधणं करेह, इमं नियलजुयलसंकोडियमोडियं करेह, इमं हत्थच्छिण्णयं करेह, इमं पायच्छिण्णयं करेह, इमं कण्णच्छिण्णयं करेह, सीस-मुहच्छिण्णयं करेह, इमं नक्क-उट्ठच्छिण्णयं करेह, वेगच्छ च्छिण्णयं करेह, हिययुप्पाडिययं करेह, इमं णयणुप्पाडिययं करेह, इमं दसणुप्पाडिययं करेह, इमं वसणुप्पाडिययं करेह, जिब्भुप्पाडिययं करेह, ओलंबितयं करेह, उल्लंबिययं करेह, घंसियं करेह, घोलियं करेह, सूलाइअयं करेह, सूलाभिषणयं करेह, खारवत्तियं करेह, वन्भवत्तियं करेह, दब्भवत्तियं करेह, सीहपुच्छियगं करेह, वसहपुच्छियगं कडग्गिदड्ढयं कागणिमंसखावितयं भत्तपाणनिरूद्धयं करेह, इमं जावज्जीवं वहबंधणं करेह, इमं अण्णतरेणं असुभेणं कुमारेणं मारेह । जा वि य से अब्भितरिया परिसा भवति, तंजहा माता ती वा पिता ती वा भाया ती वा भगिणी ति ॐ वा भज्जा ति वा पुत्ता इ वा धूता इ वा सुण्हा ति वा, तेसिं पि य णं अन्नयरंसि अहालहुसगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दंडं वत्तेति, सीओदगवियडंसि ओबोलेत्ता भवति जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिते परंसि लोगंसि, ते दुक्खंति सोयंति जूरंति तिप्पंति पिटुंति परितप्पंति ते दुक्खण-सोयण-जूरण-तिप्पण-पिट्ट (ड)णपरितप्पण-वह-बंधणपरिकिलेसातो अपडिविरया भवंति । एवामेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिता अज्झोववन्ना जाव वासाइं चउपंचमाइं छहसमाई वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं भुंजित्तु भोगभोगाई पसवित्ता वेरायतणाइं संचिणित्ता बहूणि कूराणि कम्माइं उस्सण्णं संभारकडेण कम्मुणा से जहाणामए अयगोले ति वा सेलगोले ति वा उदगंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमतिवतित्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाते वज्जबहुले धुन्नबहुले पंकबहुले वेरबहुले अप्पत्तियबहुले दंभबहुले णियडिबहुले साइबहुले अयसबहुले उस्सण्णं तसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमतिवतित्ता अहे णरगतलपतिट्ठाणे भवति । ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधकारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्त-जोतिसपहा मेद-वसा-मंस-रुहिरॐ पूयपडलचिक्खल्ल-लित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा णरगा, असुभा णरएसु वेदणाओ, नो चेवणं नरएसुनेरइया णिहायंति वा पयलायंति वा सायं वा रतिं वा धितिं वा मतिं वा उवलभंति, ते णं तत्थ उज्जलं विपुलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं तिव्वं दुरहियासं णिरयवेदणं पच्चणुभवमाणा विहरंति । से जहाणामते रुक्खे सिया पव्वतग्गे जाते मूले छिन्ने अग्गे गरुए जतो निन्नं जतो विसमं जतो दुग्गं ततो पवडति, ROOFFFFFF55555555555555555| श्री आगमगुणमंजूषा - ८२ 55555555555555555555555FFOLOR [55555555555SFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFQE SS55555555 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐॐॐॐॐॐॐॐ (२) सूयगडो बी. सु. २-अ, किरीयाठाणं [२९] एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाते गब्भातो गब्भं, जम्मातो जम्मं, माराओ मारं, णरगातो णरगं, दुक्खातो दुक्खं, दाहिणगामिए णेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लभबोहिए यावि भवति, एस ठाणे अणारिए अकेवले जाव असव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू । पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिते । ७१४. अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु पाईणं वा ४ संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्मागा धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वता सुप्पडियाणंदा सुसाहू सव्वातो पाणातिवायातो पडिविरता जावज्जीवाए जाव जे यावऽण्णे तप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा कज्नंति ततो वि पडिविरता जावज्जीवाए। से जहानामए अणगारा भगवंतो इरियासमिता भासासमिता एसणासमिता आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिता उच्चार पासवण खेल-सिंघाण जल्लपारिट्ठावणियासमिता मणसमिता वइसमिता कायसमिता त्वत्तायता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभचारी अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिव्वुडा अणासवा अगंथा छिन्नसोता निरुवलेवा कंसपाई व मुक्कतोया, संखो इव णिरंगणा, जीवो इव अप्पडिहयगती, गगणतलं पि व निरालंबणा, वायुरिव अपडिबद्धा, सारदसलिलं व सुद्धहियया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, कुम्मो इव गुत्तिदिया, विहग इव विप्पमुक्का, खग्गविसाणं व एगजाया, भारंडपक्खी व अप्पमत्ता, कुंजरो इव सोंडीरा, वसभो इव जातत्थामा, सीहो इव दुद्धरिसा, मंदरो इव अप्पकंपा, सागरो इव गंभीरा, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, जच्चकणगं व जातरूवा, वसुंधरा इव सव्वफासविसहा, सुहुतहुयासणो विव तेयसा जलता । णत्थि णं तेसिं भगवंताणं कत्थइ पडिबंधे भवति, से य पडिबंधे चउव्विहे पण्णत्ते, तंजहा अंडए ति वा पोयए इ वा उग्गह (हि) ए ति वा पग्गह (हि) एति वा, जणं जण्णं दिसं इच्छंति तण्णं तण्णं दिसं अप्पडिबद्धा सुइब्भूया लहुब्भूया अणुप्पग्गंथा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति । तेसिं णं भगवंताणं इमा एतारूवा जायामायावित्ती होत्था, तंजहा चउत्थे भत्ते, छट्ठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवालसमे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउम्मासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिए भत्ते, अदुत्तरं च णं उक्खित्तचरगा णिक्खित्तचरगा उक्खित्तणिक्खित्तचरगा अंतरगा पंतचरगा लूहचरगा समुदाणचरगा संसठ्ठचरगा असंसट्ठचरगा तज्जातसंसठ्ठचरगा दिट्ठलाभिया अदिट्ठलाभिया पुट्ठलाभिया अपुट्ठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अण्णातचरगा अन्नगिलातचरगा ओवणिहिता संखादत्तिया परिमितपिंडवातिया सुद्धेसणिया अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा लूहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी पुरिमड्डिया आयंबिलिया निव्विगतिया अमज्ज-मंसासिणो णो णियामरसभोई ठाणादीता पडिमट्ठादी णेसज्जिया वीरासणिया दंडायतिया लगंडसाईणो आयावगा अवाउडा अकंडुया अणिगुहा धुतकेस-मंसु-रोम नहा सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्का चिठ्ठति । ते णं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता आबाहंसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खाइंति, बहूई भत्ताइं पच्चक्खित्ता बहूई भत्ता असणाएं छेदेति, बहूणि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरति नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणगे अदंतवणंगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्ध-माणावमाणणाओ हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जंति तमहं आराहेति, तमहं आराहित्ता चरमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं अणंतं अणुत्तरं निव्वाघातं निरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाण-दंसणं समुप्पाडेति, समुप्पाडित्ता ततो पंच्छा सिज्झंति बुज्झति मुच्वंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति, एगच्चा पुण एगे गंतारो भवंति, अवरे पुण पुव्वकम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोपसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा महिड्ढीएस महज्जुतिएसु महापरक्कमेसु महाजसेसु महब्बलेसु महाणुभावेसु महासोक्खेसु, ते णं तत्थ देवा भवंति महिड्डिया महज्जुतिया जाव महासुक्खा हारविराइतवच्छा कडगतुडितथंभितभुया सं (अं १)गयकुंडलमट्टगंडतलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिता कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा भासरबोंदी पलंबवणमालाधरा दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं सघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुतीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा गतिकल्लाणा ठितिकल्लाणा आगमेस्सभद्दया वि भवंति, एस MOON श्री आगमगुणमंजूषा - YOK MORO Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रश सूयगडो वी. सु. २.अ. किरीयाठाणं ३०] 勇勇乐乐当当当当当当当当当 .. CO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 55555555555555555555555555$$$$$$$$$$$$SSION ठाणे आरिए जाव सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साधू । दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिते। ७१५. अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जति इह खलु पाईणं वा ४ संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा साहू, एगच्चातो पाणातिवायातो पडिविरता जावज्जीवाए एगच्चातो अप्पडिविरता, जाव जे यावऽण्णे तहप्पकारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा कज्जति ततो वि एगच्चातो पडिविरता एगच्चातो अप्पडिविरता। से जहाणामए समणोवासगा भवंति अभिगयजीवाऽजीवा उवलद्धपुण्ण-पावा आसव-संवर-वेयण-णिज्जर-किरिया-ऽहिकरण-बंध-मोक्खकुसला असहिज्जदेवा-ऽसुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नरकिंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगादीएहिं देवगणेहिं निग्गंथातो पावयणातो अणतिक्कमणिज्जा इणमो निग्गंथे पावयणे निस्संकिता निक्कंखिता निव्वितिगिंछा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगतट्ठा अट्ठिमिंजपेम्माणुरागरत्ता 'अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अटे, अयं परमटे, सेसे अणद्वे' ऊसितफलिहा अवंगुतदुवारा अचियत्तंतेउरघरपवेसा चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं पडिलाभेमाणा बहूहि सीलव्वत-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहापरिग्गहितेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणा विहरंति । ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता आबाधंसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खाईति, बहूइं भत्ताइं पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेति, बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा महिड्डिएसु महज्जुतिएसु जाव महासुक्खेसु, सेसं तहेव जाव एस ठाणे आरिए जाव एगंतसम्म साहू। तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिए। ७१६. अविरतिं पडुच्च बाले आहिज्जति, विरतिं पडुच्च पंडिते आहिज्जति, विरताविरतिं पडुच्च बालपंडिते अहिज्जइ, तत्थ णं जा सा सव्वतो अविरती एस ठाणे आरंभट्ठाणे अणारिए जाव असव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू, तत्थ तत्थ णं जा सा सव्वतो विरती एस ठाणे अणारंभठ्ठाणे, एस ठाणे आरिए जाव सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्म साहू, तत्थ णं जा सा सव्वतो विरताविरती एस ठाणे आरंभाणारंभट्ठाणे, एस ठाणे आरिए जाव सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्म साहू। ७१७. एवामेव समणुगम्ममाणा समणुगाहिज्जमाणा इमेहिं चेव दोहिं ठाणेहिं समोयरंति, तंजहा धम्मे चेव अधम्मे चेव, उवसंते चेव अणुवसंते चेव । तत्थ णं जे से पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिते, तस्स णं इमाइं तिणि तेवठ्ठाइं पावाइयसताई भवंतीति अक्खाताई, तंजहा किरियावादीणं अकिरियावादीणं अण्णाणियवादीणं वेणइयवादीणं, ते वि निव्वाणमाहंसु, ते विपलिमोक्खमाहंसु, ते विलवंति सावगा, ते वि लवंति सावइत्तारो। ७१८. ते सव्वे पावाइया आदिकरा धम्माणं नाणापण्णा नाणाछंदा नाणासीला नाणादिट्ठी नाणारुई नाणारंभा नाणाज्झवसाणसंजुत्ता एगं महं मंडलिबंधं किच्चा सव्वे एगओ चिट्ठति, पुरिसे य सागणियाणं इंगालाणं पातिं बहुपडिपुण्णं अयोमएणं संडासएणं गहाय ते सव्वे पावाइए आइगरे धम्माणं नाणापण्णे जाव नाणाज्झवसाणसंजुत्ते एवं वदासी है भो पावाइया आदियरा धम्माणं णाणापण्णा जावऽज्झवसाणसंजुत्ता ! इमं ता तुब्भे सागणियाणं इंगालाणं पाति बहुपडिपुण्णं गहाय मुहत्तगं मुहुत्तगं पाणिणा धरेह, णो य हुसंडासगं संसारियं कुज्जा, णो य हु अग्गिथंभणियं कुज्जा, णो य हु साहम्मियवेयावडियं कुज्जा, णो य हु परधम्मियवेयावडियं कुज्जा, उज्जुया णियागपडिवन्ना अमायं कुव्वमाणा पाणिं पसारेह, इति वच्चा से पुरिसे तेसिं पावादियाणं तं सागणियाणं इंगालाणं पातिं बहुपडिपुण्णं अओमतेणं संडासतेणं गहाय पाणिंसु णिसिरति, तते णं ते पावादिया आदिगरा धम्माणं नाणापन्ना जाव नाणाज्झवसाणसंजुत्ता पाणिं पडिसाहरेति, तते णं से पुरिसे ते सव्वे पावादिए आदिगरे धम्माणं जाव नाणाज्झवसाणसंजुत्ते एवं वदासीहं भो पावादिया आदियरा धम्माणं जाव णाणाज्झवसाणसंजुत्ता ! कम्हा णं तुब्भे पाणिं पडिसाहरह ?, पाणी नो डज्झेज्जा, दड्ढे किं भविस्सइ ?, दुक्खं, दुक्खं ति मण्णमाणा पडिसाहरह, एस तुला, एसपमाणे, एस समोसरणे, पत्तेयं तुला, पत्तेयं पमाणे, पत्तेयं समोसरणे । ७१९. तत्थ णं जे ते समणा माहणा एवमाइक्खंति जावेवं परूवेति 'सव्वे पाणा जाव सत्ता हंतव्वा अज्जावेतव्वा परिघेत्तवा र परितावेयव्वा किलामेतव्वा उद्दवेतव्वा,' ते आगंतुं छेयाए, ते आगंतुं भेयाए, ते आगंतुं जाति-जरा-मरण-जोणिजम्मण-संसार-पुणब्भव-गब्भवासKeros5555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - 255555555555555555555555555SOOR GTO乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRORS5555555555 (२) सूयगडो बी. सु. २.अ./३.अ. आहारपरिण्णा [३१] %%%%%%%%%%% 2 C 乐乐乐乐听听乐乐乐 乐乐乐乐乐乐华乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听F भवपवंचकलंकलीभागिणो भविस्संति, ते बहूणं दंडणाणं बहूणं मुंडणाणं तज्जणाणं तालणाणं अंदुबंधणाणं जाव घोलणाणं माइमरणाणं पितिमरणाणं भाइमरणाणं भगिणिमरणाणं भज्जामरणाणं पुत्तमरणाणं धूयमरणाणं सुण्हामरणाणं दारिदाणं दोहग्गाणं अप्पियसंवासाणं पियविप्पओगाणं बहूणं दुक्खदोमणसाणं आभागिणो म भविस्संति, अणादियं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं भुज्जो भुज्जो अणुपरियट्टिस्संति, ते नो सिन्झिस्संति नो बुज्झिस्संति जाव नो सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति, एस तुला, एस पमाणे, एस समोसरणे, पत्तेयं तुला, पत्तेयं पमाणे, पत्तेयं समोसरणे । ७२०, तत्थ णं जे ते समण-माहण एवं आइक्खंति जाव परूवेति सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिघेत्तव्वा ण उद्दवेयव्वा, ते णो आगंतुं छेयाए, ते णो आगंतुं भेयाए, ते णो आगंतुं जाइजरा-मरण-जोणिजम्मण-संसार-पुणब्भव-गब्भवास-भवपवंचकलंकलीभागिणो भविस्संति, ते णो बहूणं दंडणाणं जाव णो बहूणं दुक्खदोमणसाणं आभागिणो भविस्संति, अणातियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं भुज्जो भुज्जो णो अणुपरियट्टिसंति, ते सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति । ७२१. इच्चेतेहिं बारसहि किरियाठाणेहिं वट्टमाणा जीवा नो सिज्झिंसु नो बुज्झिसु जाव नो सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा करेति वा करिस्संति वा। ॥ एतम्मि चेव तेरसमे किरियाठाणे वट्टमाणा जीवा सिज्झिंसु बुझिसु मुच्चिंसु परिणिव्वाइंसु सव्वदुक्खाणं अंतं करिंसु वा करेति वा करिस्संति वा । एवं से भिक्खू आतट्ठी आतहिते आतगुत्ते आयजोगी आतपरक्कमे आयरक्खिते आयाणुकंपए आयनिप्फेडए आयाणमेव पडिसाहरेज्जासि त्ति बेमि ।* *॥ किरियाठाणं बितियं अज्झयणं सम्मत्तं तइयं अज्झयणं आहारपरिण्णा' ७२२. सुयं मे आउसंतेणं भगवता एवमक्खातं-इह खलु आहारपरिण्णा कृ णाम अज्झयणे, तस्स णं अयमढे-इह खलु पाईणं वा ४ सव्वातो सव्वावंति लोगंसि चत्तारि बीयकाया एवमाहिज्जंति, तंजहा अग्गबीया मूलबीया पोरबीया खंधबीया। ७२३ १ तेसिंचणं अहाबीएणं अहावगासेणं इह एगतिया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा तज्जोणिया तस्संभव्वा तव्वकम्मा कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवकम्म(वक्कमा) णाणाविहजोणियासु पुढवीसु रुक्खत्ताए विउम॒ति । ते जीवा तासिंणाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सतिसरीरं नाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति, परिविद्धत्थं तं सरीरगंपुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं सव्वप्पणताए आहारे(रें ?)ति । अवरे वि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा नाणावण्णा नाणागंधा नाणारसा नाणाफासा नाणासंठाणसंठिया नाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विता ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंतीति मक्खायं। २ अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा तज्जोणिया तस्संभवा तवक्कमा कम्मोवगा कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खत्ताए विउटृति ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेंति पुढवीसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं, णाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति, परिविद्धत्थं तं सरीरगंपुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं सव्वप्पणाए आहारं आहारेति । अवरे वियणं तेसि रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा नाणावण्णा नाणागंधा नाणारसा नाणाफासा नाणासंठाणसंठिया नाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विता, ते जीवा कम्मोववन्ना भवंतीति मक्खायं । ३ अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कम्मा(मा)कम्मोवगा कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा सक्खजोणिएसु रुक्खेसु रुक्खत्ताए विउटुंति, ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाण रुक्खाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउ० तेउ० वाउ० वणस्सतिसरीरं, नाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति परिविद्धत्थं तं सरीरगं पुव्वाहारितं तयाहारियं विपरिणय सारूविकर्ड संतं । अवरे वि य 5 णं तेसिं रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा जाव ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंतीति मक्खायं । ४ अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा तज्जोणिया तस्संभवा तवक्कमा कम्मोवगा कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कम्मा(मा) रुक्खजोणिएसुरुक्खेसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए 5 सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउदृति, ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउ० तेउ० वाउ० वणस्सति०, नाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति, परिविद्धत्थं तं सरीरगं जाव सारूविकडं संतं, अवरे वि य णं तेसिंध Mero55 5555 श्री आगमगुणमजूषा - ८५ 1555555555555555555555554OTO GO乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$$乐乐明乐明明明明明明明明明明明明明5C Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सूयगडो बी. सु. ३- अ. आहारपरिण्णा [३२] रुक्खजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं जाव बीयाणं सरीरा नाणावण्णा नाणागंधा जाव नाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया, ते जीवा कम्मो वगा भवतीति मक्खायं । ७२४ १ अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा तज्जोणिया तस्संभवा तवक्कमा कम्मोवगा कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं अज्झोरुहित्ताते विउट्टंति, ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव सारूविकडं संतं, अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं । २ अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता अज्झोरुहजोणिया अज्झोरुहसंभवा जाव कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएसु अज्झोरुहेसु अज्झोरुहत्ताए विउट्टंति, ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति, पुढविसरीरं जाव सारूविकडं संतं, अवरे वि य णं तेसिं अज्झोरुहजोणियाणं अज्झोरुहाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । ३ अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता अज्झोरुहजोणिया अज्झोरुहसंभवा जाव कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा अज्झोरुहजोणिएसु अज्झोरुहेसु अज्झोरुहित्ताए विउट्टंति, ते जीवा तेसिं अज्झोरुहजोणियाणं अज्झोरुहाणं सिणेहमाहारेति ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव सारूविकडं संतं, अवरे वि य णं तेसिं अज्झोरुहजोणियाणं अज्झोरुहाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । ४ अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता अज्झोरुहजोणिया अज्झोरुहसंभवा जाव कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा अज्झोरुहजोणिएसु अज्झोरुहेसु मूलत्ताए जाव बीयत्ताए विउट्टंति, ते जीवा तेसिं अज्झोरुहजोणियाणं अज्झोरुहाणं सिणेहमाहारेंति जाव अवरे वि य णं तेसिं अज्झोरुहजोणियाणं मूलाणं जाव बीयाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं । ७२५१ अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता पुढविणा पुढविसंभवा जाव णाणाविहजोणियासु पुढवीसु तणत्ताए विउट्टंति, ते जीवा तेसिं नाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेति जाव ते जीवा कम्मोववन्ना भवंती मक्खायं । २ एवं पुढविजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउट्टंति जाव मक्खायं । ३ एवं तणजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउट्टंति जाव मक्खायं । ४ एवं तणजोणिएसु तसु मूलत्ता जाव बीयत्ताए विउट्टंति, ते जीवा जाव एवमक्खायं । ७२६. एवं ओसहीण वि चत्तारि आलावगा ४ । ७२७. एवं हरियाण वि चत्तारि आलावगा ४ । ७२८. अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा जाव कम्मनियाणेणं तत्थवक्कमा नाणाविहजोणियासु पुढवीसु आयत्ताए वायत्ताए कायत्ताए कुहणत्ताए कंदुकत्ताए उव्वेहलियत्ताए निव्वेहलियत्ताए सछत्ताए सज्झत्ताए छत्तगत्ताए वासाणियत्ताए कूरत्ताए विउट्टंति, ते जीवा तेसिं नाणाविहजोणियाणं पुढवणं ★ सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं आयाणं जाव कुराणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खातं, एक्को चेव आलावगो १, सेसा तिण्णि नत्थि । ७२९. अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा जाव कम्मनियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएसु उदसु रुक्खत्ताए विउति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं, जहा पुढविजोणियाणं रुक्खाणं चत्तारि गमा ४ अज्झोरुहाण वि तहेव ४, तणाणं ओसहीणं हरियाणं चत्तारि आलावगा भाणियव्वा एक्क्के ४,४,४, ।७३०. अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा जाव कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए अवगत्ताए पणगत्ताए सेवालत्ताए कलंबुगत्ताए हढत्ताए कसेरुयत्ताए कच्छ०भाणियत्ताए उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमुदत्ताए नलिणत्ताए सुभग०सोगंधियत्ताए पोंडरिय० महापोंडरिय० सयपत्त०सहस्सपत्त० एवं कल्हार० कोकणत० अरविंदत्ताए तामरसत्ताए भिस० भिसमुणाल०पुक्खलत्ताए पुक्खलत्थिभगत्ताए विउट्टंति, ते जीवा तेसिं नाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं जाव पुक्खलत्थिभगाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं, एक्को चेव आलावगो १ । ७३१. १ अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता तेहिं चेव पुढविजोणिएहिं रुक्खेहिं, रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं, रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं ३, रुक्खजोणिएहिं अज्झोरूहेहिं, अज्झोरूहजोणिएहिं अज्झोरुहेहिं, अज्झोरूहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं ३, पुढविजोणिएहिं तणेहिं, तणजोणिएहिं तणेहिं, तणजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं ३, एवं ओसहीहिं तिण्णि आलावगा ३, एवं हरिएहिं वि तिण्णि आलावगा ३, पुढविजोणिएहिं आएहिं काएहिं जाव कूरेहिं १, उदगजोणिएहिं रुक्खेहिं, रुक्खजोणिएहिं, रूक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं ३ MOTOR श्री आगमणमंजूषा ८६ ॐॐॐॐॐॐ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RO (२) सूयगडो बी. सु. ३- अ. आहारपरिण्णा [३३] 2 एवं अज्झोरुहेहिं वि तिण्णि ३, तणेहिं वि तिण्णि आलावगा ३, ओसहीहिं वि तिण्णि ३, हरितेहिं वि तिण्णि ३, उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलत्थि भएहिं १ तसपाणत्ताए विउट्टंति । २ ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं . ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्झोरुहाणं तणाणं ओसहीणं हरियाणं मूलाणं जाव बीयाणं आयाणं कायाणं जाव कुराणं उदगाणं अवगाणं जाव पुक्खलत्थिभगाणं सिणेहमाहारेति । ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाणं कायजोणियाणं जाव कूरजोणियाणं उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं जाव पुक्खलत्थिभगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं । ७३२. अहावेरं पुरक्खायं णाणाविहाणं मणुस्साणं, तंजहा कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं आरियाणं मिलक्खूणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावकासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणीए एत्थ णं मेहुणवत्तिए नामं . संयोगे समुप्पज्जति, ते दुहतो वि सिणेहं संचिणंति, संचिणित्ता तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउट्टंति, ते जीवा मातुओयं पितुसुक्कं तं तदुभयं संसट्टं कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेति, ततो पच्छा जं से माता णाणाविहाओ रसविहीओ (विगईओ) आहारमाहारेति ततो एगदेसेणं ओयमाहारेति, अणुपुव्वेणं वुड्ढा पलिपागमणुचिन्ना ततो कायातो अभिनिव्वट्टमाणा इत्थिं पेगता जणयंति पुरिसं वेगता जणयंति णपुंसगं पेगता जणयंति, ते जीवा डहरा समाणा मातुंरवीरं सप्पिं आहारेति, अणुपुव्वेणं वुड्ढा ओयणं कुम्मासं तस थावरे य पाणे, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव सारूविकडं संतं, अवरे वि य णं तेसिं णाणाविहाणं मणुस्साणं कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं आरियाणं मिलक्खूणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं । ७३३. अहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं जलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा मच्छाणं जाव सुंसुमाराणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्म० तहेव जाव ततो एगदेसेणं ओयमाहारेति, अणुपुव्वेणं वुड्ढा पलिपागमणुचिण्णा ततो कायातो अभिनिव्वट्टमाणा अंडं पेगता जणयंति, पोयं वेगता जणयंति, से अंडे उब्भिज्ज़माणे इत्थं या जणयंति पुरिसं पेगया जणयंति नपुंसगं पेगया जणयंति, ते जीवा डहरा समाणा आउसिणेहमाहारेति अणुपुव्वेणं वुड्ढा वणस्सतिकायं तस थावरे य पाणे, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं णाणाविहाणं जलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छाणं जाव सुंसुमाराणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । ७३४. अहावरं पुरक्खातं नाणाविहाणं चउप्पयथलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा एगखुराणं दुखुराणं गंडीपदाणं सणप्फयाणं, तेसिं चणं अहाब अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्म० जाव मेहुणपत्तिए नामं संजोगे समुप्पज्जति, ते दुहतो सिणेहं संचिणंति, संचिणित्ता तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए जाव विउट्टंति, ते जीवा माउं ओयं पिडं सुक्कं एवं जहा मणुस्साणं जाव इत्थिं पेगता जणयंति पुरिसं पि नपुंसगं पि, ते जीवा डहरा समाणा मातुंखीरं सप्पिं आहारेति अणुपुब्वेणं वुड्डा वणस्सतिकायं तस्थावरे य पाणे, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेवि य णं तेसिं णाणाविहाणं चउप्पयथलचरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं एगखुराणं जाव सणप्फयाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । ७३५. अहावरं पुरक्खायं नाणाविहाणं उरपरिसप्पथलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा अहीणं अयगराणं आसालियाणं महोरगाणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिस० जाव एत्थ णं मेहुण० एतं चेव, नाणत्तं अंडं पेगता जणयंति, पोयं पेगता जणयंति, से अंडे उब्भिज्जमाणे इत्थिं पेगता जणयंति पुरिसं पि नपुंसगं पि, ते जीवा डहरा समाणा वाउकायमाहारेति अणुपुव्वेणं वुड्डा वणस्सतिकायं तस थावरे य पाणे, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेवि य णं तेसिं णाणाविहाणं उरपरिसप्पथलचरतिरिक्खपंचिंदिय० अहीणं जाव महोरगाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खातं । ७३६. अहावरं पुरक्खायं नाणाविहाणं भुयपरिसप्पथलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा गोहाणं नउलाणं सेहाणं सरडाणं सल्लाणं सरथाणं खोराणं घरकोइलियाणं विस्संभराणं मूसगाणं मंगुसाणं पयलाइयाणं विरालियाणं जोहाणं चाउप्पाईयाणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य जहा उरपरिसप्पाणं तहा भाणियव्वं जाव सारूविकडं संतं, अवरे वि य णं तेसिं नाणाविहाणं भुयपरिसप्पपंचिदियथलयरतिरिक्खाणं तं० गोहाणं जाव मक्खातं । ७३७. अहावरं पुरक्खातं णाणाविहाणं MOTOR श्री आगमगुणमंजूषा - ८७ फ्र Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साम man annnnnnn (२) सूयगडो बी. सु. ३-अ. आहारपरिण्णा [३४] OTO乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐长乐乐乐乐%贝听听乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明FGC खहचरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा चम्मपक्खीणं लोभपक्खीणं समुग्गपक्खीणं विततपक्खीणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए जहा ॐ उरपरिसप्पाणं, नाणत्तं ते जीवा डहरगा समाणा माउंगाउसिणं आहारेति अणुपुव्वेणं वुड्डा वणस्सतिकायं तस-थावरे य पाणे, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वियणं तेसिंनाणाविहाणं खहचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं चम्मपक्खीणं जाव मक्खातं। ७३८. अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता नाणाविहजोणिया नाणाविहसंभवा नाणाविहवक्कमा तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा कम्मोवगा कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा नाणाविहाण तस-थावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा ॥ अचित्तेसु वा अणुसूयत्ताए विउटुंति, ते जीवा तेसिंनाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं तस-थावरजोणियाणं अणुसूयाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खातं । एवं दुरूवसंभवत्ताए । एवं खुरुदुगत्ताए । अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता नाणाविह० जाव कम्म० खुरुदुगत्ताए वक्कमंति। ७३९. अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता नाणाविहजोणिया जाव कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा नाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा, तं सरीरगं वातसंसिद्धं वातसंगहितं वा वातपरिगतं उर्ल्ड वातेसु उड्डभागी भवइ अहे वातेसु अहेभागी भवइ तिरियं वाएसु तिरियभागी भवइ, तंजहा ओसा हिमए महिया करए हरतणुए सुद्धोदए । ते जीवा तेसिं नाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि यणं तेसिंतस-थावरजोणियाणं ओसाणं जाव सुद्धोदगाणं सरीराणाणावण्णा जाव मक्खातं। ७४०. अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता उदगजोणिया जाव कम्मनियाणेणं तत्थवक्कमा तस-थावरजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउद्भृति, ते जीवा तेसिंतस-थावरजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वियणं तेसिंतस-थावरजोणियाणं उदगाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । ७४१. अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता उदगजोणियाणं जाव कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउटृति, ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खातं । ७४२. अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता , उदगजोणिया जाव कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु उदगेसु तसपाणत्ताए विउटृति, ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सिहेणमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खातं । ७४३. अहावरं पुरक्खातं इहेगतिया सत्ता नाणाविहजोणिया जाव कम्मनियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा अगणिकायत्ताए विउटुंति, ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वियणं तेसिंतस-थावरजोणियाणं अगणीणं सरीराणाणावण्णा जाव मक्खातं । सेसा तिण्णि आलावगा जहा उदगाणं । ७४४. अहावरं पुरक्खायं-इहेगतिया सत्ता नाणाविहजोणिया जाव कम्मणिदाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा वाउक्कायत्ताए विउद॒ति, जहा अगणीणं तहा भाणियव्वा चत्तारि गमा । ७४५. अहावरं पुरक्खातंइहेगतिया सत्ता णाणाविहजोणिया जाव कम्मनिदाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं तस-थावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पुढवित्ताए सक्करत्ताए वालुयत्ताए, इमाओ गाहाओ अणुगंतव्वाओ पुढवी य सक्करा वालुगा य उवले सिला य लोणूसे । अय तउय तंब सीसग रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥१॥ हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजण पवाले । अब्भपडलऽब्भवालुय बादरकाए मणिविहाणा ||२|| गोमेज्जए य रुपए अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले भुयमोयग इंदणीले य॥३|| चंदण गेरुय हंसगब्भ पुलए सोगंधिए य बोधव्वे | चंदप्पभ वेरुलिए जलकंते सूरकंते य ॥४॥ एताओ एतेसु भाणियव्वाओ गाहासु (गाहाओ) जाव सूरकंतत्ताए विउद्भृति, ते जीवा तेसिंणाणाविधाणं तस-थावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरे वि य णं तेसिं तस-थावरजोणियाणं पुढवीणं जाव सूरकंताणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खातं, सेसा तिण्णि आलावगा जहा उदगाणं । ७४६. अहावरं पुरक्खातं सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता नाणाविहजोणिया नाणाविहसंभवा नाणाविहवक्कमा सरीरजोणिया सरीरसंभवा सरीरवक्कमा सरीराहारा कम्मोवगा कम्मनिदाणा म कम्मगतिया कम्मठितिया कम्मुणाचेव विप्परियासुवेति। ७४७. सेवमायाणह, सेवमायाणित्ता आहारगुत्ते समिते सहिते सदा जए त्ति बेमि। । आहारपरिणा reOFF#55555555555555555| श्री आगमगुणमंजूषा - ८८ 555555555555555555555555555575 ONO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐明明明明明明明明明明明明明明明明明坂乐 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO$$$5555555; (२) सूयगडो बी. सु. ३.अ. आहारपरिणा/8-अ. पच्चक्खाणकिरिया [३५ ERIORY ततियं अज्झयणं समत्तं ॥ ४ चउत्थं अज्झयणं 'पच्चक्खाणकिरिया' ७४७ सुयं मे आउसंतेणं भगवता एवमक्खातं-इह खलु पच्चक्खाणकिरिया नामज्झयणे, तस्स णं अयमढे आया अपच्चक्खाणी यावि भवति, आया अकिरियाकुसले यावि भवति, आया मिच्छासंठिए यावि भवति, आया एगंतदंडे यावि भवति, आया एगंतबाले यावि भवति, आया एगंतसुत्ते यावि भवति, आया अवियारमण-वयस-काय-वक्के यावि भवति, आया अप्पडिहयअपच्चक्खायपावकम्मे यावि भवति, एस खलु भगवता अक्खाते असंजते अविरते अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते, से बाले अवियारमण-वयस-काय-वक्के सुविणमविण पस्सति, पावे से कम्मे कज्जति । ७४८. तत्थ चोदए पण्णवर्ग एवं वदासि असंतएणं मणेणं पावएणं असंतियाए वतीए पावियाए असंतएणं काएणं पावएणं अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमण-वयस-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सतो पावे कम्मे नो कज्जति । कस्स णं तं हेउं ? चोदग एवं ब्रवीति अण्णयरेणं मणेणं पावएणं मणवत्तिए पावे कम्मे कज्जति, अण्णयरीए वतीए पावियाए वइवत्तिए पावे कम्मे कज्जति, अण्णयरेणं कारणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ । हणंतस्स समणक्खस्स सवियारमण-वयस-काय-वक्कस सुविणमवि पासओ एवंगुणजातीयस्स पावे कम्मे कज्जति 卐 पुणरवि चोदग एवं ब्रवीति तत्थ णं जे ते एवमाहंसु 'असंतएणं मणेणं पावएणं असंतियाए वतीए पावियाए असंतएणं कारणं पावएणं अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमण-वयस-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सतो पावे कम्मे कज्जति', जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु । ७४९. तत्थ पण्णवगे चोदगं एवं वदासी जंमए पुव्वुत्तं 'असंतएणं मणेणं पावएणं असंतियाए वतीए पावियाए असंतएणं काएणं पावएणं अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमण-वयस-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सतो पावे कम्मे कज्जति' तं सम्म । कस्स णं तं हेउं ? आचार्य आह तत्थ खलु भगवता छज्जीवनिकाया हेऊ पण्णत्ता, तंजहा पुढविकाइया जाव तसकाइया। इच्चेतेहिं छहिं जीवनिकाएहिं आया अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे, तंजहा पाणाइवाए जाव परिग्गहे, कोहे जाव मिच्छादसणसल्ले। आचार्य आह तत्थ खलु भगवता वहए दिढ़ते पण्णत्ते, से जहानामए वहए सिया गाहावतिस्स वा गाहावतिपुत्तस्स वा रण्णो वा रायपुरिसस्स वा खणं निदाए पविसिस्सामि खणं लभ्रूण वहेस्सामि पहारेमाणे, से किं नु हु नाम से वहए तस्स वा गाहावतिस्स तस्स वा गाहावतिपुत्तस्स तस्स वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स खणं निदाए पविसिस्सामि खणं लखूण वहेस्सामि पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूत्ते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे भवति ? एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरे चोयए हंता भवति। आचार्य आह-जहा से वहए तस्स वा गाहावतिस्स तस्स वा गाहावतिपुत्तस्स तस्स वारण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लभ्रूण वहेस्सामीति पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे, एवामेव बाले वि सव्वेसिंपाणाणं जाव सत्ताणं दिया वा रातो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे, तं० पाणाइवाते जाव मिच्छादसणसल्ले, एवं खलु भगवता अक्खाए अस्संजते अविरते अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते यावि भवति, से बाले अवियारमण-वयस-काय-वक्के सुविणमवि ण पस्सति, पावे य से कम्मे कज्जति । जहा से वहए तस्स वा गाहावतिस्स जाव तस्स वा रायपुरिसस्स पत्तेयं पत्तेयं चित्त समादाए दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे भवति, एवामेव बाले सव्वेसिंपाणाणं जाव सव्वेसिं सत्ताणं पत्तेयं पत्तेयं चित्त समादाए दिया वा रातो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते जाव चित्तदंडे भवइ । ७५०.णो इणढे समढे चोदकः । इह खलु बहवे पाणा जे इमेणं सरीरसमुस्सएणं णो दिट्ठा वा नो सुया वा नाभिमता वा विण्णाया वा जेसिंणो पत्तेयं पत्तेयं चित्त समादाए दिया वा रातो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविओवातचित्तदंडे, तं० पाणातिवाए जाव मिच्छादसणसल्ले।७५१. आचार्य आह तत्थ खलु ॐ भगवता दुवे दिलृता पण्णत्ता, तं० सन्निदिद्रुते य असण्णिदिद्रुते य। १ से किं तं सण्णिदिटुंते ? सण्णिदिटुंते जे इमे सण्णिपंचिदिया पज्जत्तगाएतेसिंणं छज्जीवनिकाए का पडुच्च तं० पुढविकायं जाव तसकायं, से एगतिओ पुढविकाएण किच्चं करेति वि कारवेति वि, तस्स णं एवं भवति एवं खलु अहं पुढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि, णो चेव णं से एवं भवति इमेण वा इमेण वा, से य तेणं पुढविकाएणं किच्चं करेइ वा कारवेइ वा, से य तातो पुढ विकायातो Mo# 55555555554 श्री आगमगुणमंजूषा 555555555555555555555555555IOR TCC乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听 SO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听智 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G.395555555555555555 (२) सूयगडो बी. सु. ४-अ. पच्चक्रवाणकिरिया / पृ.अ. अणायार सुन [३६) 5555555555555ONOR OLO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐明明明明明明明明玩乐乐玩玩乐乐乐明乐乐玩乐F3C असंजयअविरयअपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे यावि भवति, एवं जाव तसकायातो त्ति भाणियव्वं, से एगतिओ छहिं जीवनिकाएहिं किच्चं करेति वि कारवेति वि, म तस्स णं एवं भवति एवं खलु छहिं जीवनिकाएहिं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि, णो चेव णं से एवं भवति इमेहिं वा इमेहिं वा, से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं जाव कारवेति वि. से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं असंजयअविरयअपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे, नं० पाणातिवाते जाव मिच्छादसणसल्ले, एस खलु भगवता अक्खाते असंजते अविरते अपडियपच्चक्खायपावकम्मे सुविणमवि अपस्सतो पावे य कम्मे से कज्जति, सेत्तं सण्णिदिलुतेणं। २ से किं तं असण्णिदिटुंते? असण्णिदिट्ठते जे इमे असण्णिणो पाणा, तं०-पुढविकाइया जाव वणस्सतिकाइया छट्ठा वेगतिया तसा पाणा, जेसिंणो तक्का ति वा सण्णा ति वा पण्णा इ वा मणो ति वा वई ति वा सयं वा करणाए अण्णेहिं वा कारवेत्तए करेंतं वा समणुजाणित्तए ते वि णं बाला सव्वेसिं पाणाणं जाव सव्वेसिं सत्ताणं दिया वा रातो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूता मिच्छासंठिता निच्चं पसढविओवातचित्तदंडा, तं० पाणातिवाते जाव मिच्छादसणसल्ले, इच्चेवं जाण, णो चेव मणो णो चेव वई पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणताए सोयणताए जूरणताए तिप्पणताए पिट्टणताए परितप्पणताए ते दुक्खण सोयण जाव परितप्पण-वह-बंधणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरता भवंति । इति खलु ते असण्णिणो वि संता अहोनिसं पाणातिवाते उवक्खाइज्जति जाव अहोनिसं परिग्गहे उवक्खाइज्जति जाव मिच्छादसणसल्ले उवक्खाइज्जति । ७५२. सव्वजोणिया वि खलु सत्ता सण्णिणो होच्चा असण्णिणो होति, असण्णिणो होच्चा सण्णिणो होति, होज सण्णी अदुवा असण्णी, तत्थ से अविविचिया अविधूणिया असमुच्छिया अणणुताविया सण्णिकायाओ सण्णिकायं संकमंति १, सण्णिकायाओ वा असण्णिकायं संकमंति २, असण्णिकायाओ वा सण्णिकायं संकमंति ३, असण्णिकायाओ वा असण्णिकायं संकमंति ४ । जे ते सण्णी वा असण्णी वा सव्वे ते मिच्छायारा निच्चं पसढविओवातचित्तदंडा, तं० पाणातिवाते जाव मिच्छादसणसल्ले । एवं खलु भगवता अक्खाते असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते, से बाले अवियारमण-वयस-काय-वक्के, सुविणमवि अपासओ पावे य से कम्मे कज्जति। ७५३. चोदक: से किं कुव्वं किं कारवं कहं संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे भवति ?। आचार्य आह तत्थ खलु भगवता छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तंजहा पुढविकाइया जाव तसकाइया, से जहानामए मम अस्सातं डंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा आतोडिज्जमाणस्स वा जाव उद्दविज्जमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमातमवि विहिंसक्कारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा आतोडिज्जमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिज्जमाणा वा तालिज्जमाणा वा जाव उद्दविज्जमाणा वा जाव लोमुक्खणणमातमवि विहिंसक्कारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति, एवं णच्या सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता ण हतव्वा जाव ण उद्दवेयव्वा, एस धम्मे धुवे णितिए सासते समेच्च लोगं खेत्तण्णेहिं पवेदिते । एवं से भिक्खू विरते पाणातिवातातो जाव मिच्छादसणसल्लातो। से भिक्खूणो दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेज्जा, नो अंजणं, णो वमणं, णो धूवणित्तिं पि आइते । से भिक्खू अकिरिए अलूसए अकोहे अमाणे जाव अलोभे उवसंते परिनिव्वुडे । एस खलु भगवता अक्खाते संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे अकिरिए संवुडे एगंतपंडिते यावि भवति त्ति बेमि।★ ★ ★ापच्चक्खाणकिरिया णाम चउत्थमज्झयणं समत्तं ५पंचमं अज्झयणं 'अणायारसुतं' ७५४. आदाय बंभचेरंच, आसुपण्णे इमं वयिं । अस्सिं धम्मे अणायारं, नायरेज्ज कयाइ वि ॥१॥७५५. अणादीयं परिण्णाय, अणवदग्गे ति वा पुणो। सासतमसासते यावि, इति दिढिन धारए॥२॥७५६. एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारोण विज्जती। एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए ।।३।। ७५७. समुच्छिज्जिहिति सत्थारो, सव्वे पाणा अणेलिसा । गंठीगा व भविस्संति, सासयं ति च णो वदे ।।४।७५८. एएहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारोण विज्जई । एएहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणई ॥५|| ७५९. जे केति खुड्डगा पाणा, अदुवा संति महालया। सरिसं तेहिं वेरं ति, असरिसं ति य णो वदे ॥ ॥६||७६०. एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारोण विज्जती। एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए ||७|| ७६१. अहाकडाई भुंजंति, अण्णमण्णे सकम्मुणा। उवलित्ते ति जाणेज्जा, अणुवलिते ति वा पुणो ।।८।। ७६२. एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारोण विज्जती । एतेहिं दोहिं ठाणेहि, अणायारं तु जाणए|९|| ७६३. जमिदं उरालमाहारं, कम्मगं च तमेव य । सव्वत्थ वीरियं अत्थि, णत्थि सव्वत्थ वीरियं ॥१०॥ ७६४. एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारोण विज्जती । एतेहिं दोहिं ठाणेहि, अणायारं तु जाणए xerOF##$$$ 5 श्री आगमगुणमंजूषा -१० 5 4 55555555555555OOR Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सूयगडो बी. सु. प. अ. अणावारसुतं / ६-अ, अद्दइज्जं [३७] ||११|| ७६५. णत्थि लोए अलोए वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि लोए अलोए वा, एवं सण्णं निवेस ॥ १२॥ ७६६. णत्थि जीवा अजीवा वा, णेवं सण्णं निवेस ए | अत्थि जीवा अजीवा वा, एवं सण्णं निवेसए॥ १३ ॥ ७६७. णत्थि धम्मे अधम्मे वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि धम्मे अधम्मे वा, एवं सण्णं निवेसए ॥१४॥ ७६८. णत्थि बंधे व मोक्खे वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि बंधे व मोक्खे वा, एवं सण्णं निवेस ॥ १५ ॥ ७६९. णत्थि पुण्णे व पावे वा, णेवं सण्णं निवेसए। अत्थि पुण्णे व पावे वा, एवं सण्णं निवेस ॥ १६ ॥ ७७० णत्थि आसवे संवरे वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि आसवे संवरे वा, एवं सण्णं निवेस ||१७|| ७७१. णत्थि वेणा निज्जरा वा, वं सण्णं निवेसए । अत्थि वेयणा निज्जरा वा, एवं सण्णं निवेस ||१८|| ७७२. नत्थि किरिया अकिरिया वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि किरिया अकिरिया वा, एवं सण्णं निवेस ||१९|| ७७३. नत्थि कोहे व माणे वा, णेवं सण्णं निवेसए। अत्थि कोहे व माणे वा, एवं सण्णं निवेसए ||२०|| ७७४. नत्थि माया व लोभे वा, वं सण्णं निवेसए। अत्थि माया व लोभे वा, एवं सण्णं निवेस ॥ २१॥ ७७५. णत्थि पेज्जे व दोसे वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि पेज्जे व दोसे वा, एवं सण्णं निवेस ||२२|| ७७६. णत्थि चाउरंते संसारे, णेवं सण्णं निवेसए। अत्थि चाउरंते संसारे, एवं सण्णं निवेस ॥ २३ ॥ ७७७. णत्थि देवो व देवी वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि देवो व देवी वा, एवं सण्णं निवेस ||२४|| ७७८. नत्थि सिद्धी असिद्धी वा णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि सिद्धी असिद्धी वा, एवं सण्णं निवेस ए ||२५|| ७७९. नत्थि सिद्धी नियं ठाणं, णेवं सण्णं निवेसए। अत्थि सिद्धी नियं ठाणं, एवं सण्णं निवेसए ||२६|| ७८० नत्थि साहू असाहू वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि साहू असाहू वा, एवं सण्णं निवेस ॥ २७॥ ७८१. नत्थि कल्लाणे पावे वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि कल्लाणे पावे वा, एवं सण्णं निवेस ॥ २८ ॥ ७८२. कल्ला पाव वा वि, ववहारो ण विज्जई। जं वेरं तं न जाणंति, समणा बालपंडिया ||२९|| ७८३. असेसं अक्खयं वा वि, सव्वदुक्खे त्ति वा पुणो । वज्झा पाणा न ज्झत्ति, इति वायं न नीसरे ||३०|| ७८४. दीसंति समियाचारा, भिक्खुणो साहुजीविणो। एए मिच्छोवजीवि त्ति, इति दिट्ठि न धारए ||३१|| ७८५. दक्खिणाए पडिलंभो, अत्थि नत्थि त्ति वा पुणो । ण वियागरेज्ज मेहावी, संतिमग्गं च वूहए ॥ ३२॥ ७८६. इच्चेतेहिं ठाणेहिं, जिणदिट्ठेहिं संजए। धारयंते उ अप्पाणं, आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ||३३|| त्ति बेमि ॥ ★★★ । अणायारसुयं सम्मत्तं । पञ्चमाध्ययनं समाप्तम् 1555 ६ छवं अज्झयणं 'अइज्नं' ७८७. पुराकडं अद्द ! इमं सुणेह, एगंतचारी समणे पुरासी । से भिक्खुणो उवणेत्ता अणेगे, आइक्खतेण्डं पुढो वित्थरेणं ॥ १॥ ७८८. साऽऽजीविया पट्ठवियाऽथिरेणं, सभागतो गणतो भिक्खुमज्झे। आइक्खमाणो बहुजण्णमत्थं, न संधयाती अवरेण पुव्वं ॥ २॥ ७८९. एगंतमेव अदुवा वि इण्हिं, दो वऽण्णमण्णं न समेति जम्हा । पुव्विं च इण्डिं च अणागतं वा, एगंतमेव पडिसंधयाति || ३ || ७९०. समेच्च लोगं तस थावराणं, खेमंकरे समणे माहणे वा । आइक्खमाणो वि सहस्समज्झे, एगंतयं सारयति तहच्चे ||४|| ७९१. धम्मं कहेंतस्स उ णत्थि दोसो, खंतस्स दंतस्स जितेंदियस्स । भासाय दोसे य विवज्जगस्स, गुणे य भासाय णिसेवगस्स ॥ ५ ॥ ७९२. महव्वते पंच अणुव्वते य, तहेव पंचासव संवरे य। विरतिं इह स्सामणियम्मि पण्णे, लवावसक्की समणे त्ति बेमि ||६|| ७९३. सीओदगं सेवउ बीयकार्य, आहाय hi तह इत्थियाओ । एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे, तवस्सिणो णोऽहिसमेति पावं ||७|| ७९४. सीतोदगं वा तह बीयकायं, आहाय कम्मं तह इत्थियाओ। एयाई जाणं पडिसेवमाणा, अगारिणो अस्समणा भवंति ||८|| ७९५. सिया य बीओदग इत्थियाओ, पडिसेवमाणा समणा भवंति । अगारिणो वि समणा भवंतु, सेवंति जं ते वि तहप्पगारं ॥ ९ ॥ ७९६. जे यावि बीओदगभोति भिक्खू भिक्खं विहं जायति जीवियट्ठी । ते णातिसंजोगमवि प्पहाय, काओवगाऽणंतकरा भवंति ||१०|| ७९७. इमं वयं तु तुम पाउकुव्वं, पावाइणो गरहसि सव्व एव । पावाइणो उ पुढो किट्टयंता, सयं सयं दिट्ठि करेति पाउं ॥ ११॥ ७९८ ते अण्णमण्णस्स वि गरहमाणा, अक्खति उ समणा माहणा य। सतो य अत्थी असतो य णत्थी, गरहामो दिट्ठि ण गरहामो किंचि ॥ १२॥ ७९९. ण किंचि रूवेणऽभिधारयामो, सं दिट्ठिमग्गं तु करेमो पाउं । मग्गे इमे किट्टिते आरिएहिं, अणुत्तरे सप्पुरिसेहिं अंजू ॥ १३॥ ८००. उड्डुं अहे य तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा। भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणा, णो गरहति वुसिमं किंचि लोए ॥१४॥ ८०१. आगंतागारे आरामागारे, समणे उ भीते ण उवेति वासं । दक्खा हु संती बहवे मणूसा, ऊणातिरित्ता य लवालवा य ॥ १५ ॥ ८०२. मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता, सुत्तेहि अत्थेहि य निच्छयण्णू । पुच्छिंसु मा णे अणगार एगे, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ ॥ १६ ॥ ८०३. नाकामकिच्चा ण 666666666666666666 •4••\49 ? फ्र பிச்*5**555555555****5சிதசிச்த Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOhm555555 (२) सूयगडो बी. सु. ६.अ. अहइज्ज [३८] 5555555555552 OEC%乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐 य बालकिच्चा, रायाभिओगेण कुतो भएणं । वियागरेज्जा पसिणं न वावि, सकामकिच्चेणिह आरियाणं ।।१७|| ८०४. गंता व तत्था अदुवा अगंता, वियागरेज्जा । समियाऽऽसुप्पणे। अणारिया दंसणतो परित्ता, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ ।।१८।। ८०५. पण्णं जहा वणिए उदयट्ठि, आयस्स हेउं पगरेति संगं । तउवमे समणे नायपुत्ते, इच्चेव मे होति मती वियक्का ॥१९॥ ८०६. नवं न कुज्जा विहुणे पुराणं, चिच्चाऽमई तायति साह एवं । एत्तावया बंभवति त्ति वुत्ते, तस्सोदयट्ठी समणे त्ति बेमि ||२०|| ८०७. समारभंते वणिया भूयगामं, परिग्गहं चेव ममायमीणा । ते णातिसंजोगमविप्पहाय, आयस्स हेउं पकरेति संगं ।।२१।। ८०८. वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा, ते भोयणट्ठा वणिया वयंति । वयं तु कामेसु अज्झोववन्ना, अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥२२।। ८०९. आरंभयं चेव परिग्गहं च, अविउस्सिया णिस्सिय आयदंडा । तेसिं च से उदए जं वयासी, चउरंतणंताय दुहाय णेह ||२३|| ८१०. णेगंत णच्वंतिय उदये से, वयंति ते दो विगुणोदयंमि । से उदए सातिमणंतपत्ते तमुद्दयं साहति ताइ णाती।।२४।। ८११. अहिंसयं सव्वपयाणुकंपी, धम्मे ठितं कम्मविवेगहेउं । तमायदंडेहिं समायरंता, अबोहिए ते पडिरूवमेयं ॥२५॥ ८१२. पिण्णागपिंडीमवि विद्ध सूले, केई पएज्जा पुरिसे इमे त्ति । अलाउयं वावि कुमारए त्ति, स लिप्पती पाणवहेण अम्हं ।।२६।। ८१३. अहवा वि विभ्रूण मिलक्खु सूले, पिन्नागबुद्धीए णरं पएज्जा । कुमारगं वा वि अलाउए त्ति, न लिप्पती पाणवहेण अम्हं ।।२७।। ८१४. पुरिसं व वेभ्रूण कुमारकं वा, सूलंमि केई पए जाततेए। पिण्णायपिंडी सतिमारुहेत्ता, बुद्धाण तं कप्पति पारणाए ॥२८।। ८१५. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णितिए भिक्खुगाणं । ते पुण्णखधं सुमहऽज्जिणित्ता, भवंति आरोप्प महंतसत्ता ।।२९।। ८१६. अजोगरूवं इह संजयाणं, पावं तु पाणाण पसज्झ काउं। अबोहिए दोण्ह वितं असाहु, वयंति जे यावि म पडिस्सुणंति ॥३०॥ ८१७. उर्ख अहे य तिरिय दिसासु, विण्णाय लिंगं तस-थावराणं । भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे, वदे करेज्जा व कुओ विहऽत्थी ॥३१।। ८१८. पुरिसे त्ति विण्णत्ति ण एवमत्थि, अणारिए से पुरिसे तहा हु। को संभवो? पिन्नगपिडियाए, वाया विएसा वुझ्या असच्चा ॥३२।। ८१९. वायाभिओगेण जया हेज्जा, णो तारिसं वायमुदाहरेज्जा । अट्ठाणमेयं वयणं गुणाणं, जे दिक्खिते बूय मुरालमेतं ॥३३॥ ८२०. लद्धे अहढे अहो एव तुब्भे, जीवाणुभागे सुविचितिए य । पुव्वं समुदं अवरं च पुढे, ओलोइए पाणितले ठिते वा ||३४|| ८२१.जीवाणुभागं सुविचिंतयंता, आहारिया अण्णविहीए सोही। न वियागरे छन्नपओपजीवी, एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं ।।३५।। ८२२. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए नितिए भिक्खुयाणं । असंजए लोहियपाणि से ऊ, णिगच्छती गरहमिहेव लोए॥३६॥ ८२३. थूलं उरन्भं इह मारियाणं, उद्दिट्ठभत्तं च पकप्पइत्ता । तं लोणतेल्लेण उवक्खडेत्ता, सपिप्पलीयं पकरेति मंसं ॥३७।। ८२४. तं भुंजमाणा पिसितं पभूतं, न उवलिप्पामो वयं रएणं । इच्चेवमाहंसु अणज्जधम्मा, अणारिया बाल रसेसु गिद्धा ॥३८।। ८२५.जे याविभुंजंति तहप्पगारं, सेवंति ते पावमजाणमाणा। मणं न एयं कुसला करेति, वाया वि एसा बुइता तु मिच्छा ।।३९।। ८२६. सव्वेसि जीवाण दयट्ठयाए, सावज्जदोसं परिवज्जयंता । तस्संकिणो इसिणो नायपुत्ता, उद्दिट्ठभत्तं परिवज्जयंति ॥४०॥ ८२७. भूताभिसंकाए दुगुंछमाणा, सव्वेसि पाणाणमिहायदंडं । तम्हा ण भुंजंति तहप्पकारं, एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं ॥४१|| ८२८. निग्गंथधम्मम्मि इमा समाही, अस्सिं सुठिच्चा अणिहे चरेज्जा । बुद्धे मुणी सीलगुणोववेते इच्चत्थतं पाउणती सिलोगं ॥४२।। ८२९. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णितिए माहणाणं । ते पुण्णखंधं सुमहऽज्जिणित्ता, भवंति देवा इति वेयवाओ॥४३।। ८३०. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णितिए कुलालयाणं। से गच्छति लोलुवसंपगाढे, तिव्वाभितावी णरगाभिसेवी ॥४४।। ८३१. दयावरं धम्म दुगुंछमाणे वहावहं धम्म पसंसमाणे । एगं पि जे भोययती असीलं, णिवो(णिधो)णिसं जाति कतो ऽ सुरेहिं ? ||४५|| ८३२. दुहतो वि धम्मम्मि समुट्ठिया मो, अस्सिं सुठिच्चा तह एसकालं । आयारसीले वूइए ऽ ह नाणे, ण संपरायंसि विसेसमत्थि ।।४६।। ८३३. अव्वत्तरूवं पुरिसं महंतं, सणातणं अक्खयमव्वयं च । सव्वेसु भूतेसु वि सव्वतो सो, चंदो व्व ताराहिं समत्तरूवो ॥४७॥ ८३४. एवं न मिज्जति न संसरंति, न माहणा खत्तिय वेस पेस्सा । कीडा य पक्खी य सिरीसिवा य, नरा य सव्वे तह देवलोगा ||४८।। ८३५. लोयं अजाणित्तिह # केवलेणं, कहेंति जे धम्ममजाणमाणा । नाति अप्पाण परं च णट्ठा, संसार घोरम्मि अणोरपारे ||४९।। ८३६. लोयं विजाणंतिह केवलेणं, पुण्णेण णाणेण र समाहिजुत्ता। धम्मं समत्तं च कति जे उ, तारेति अप्पाण परं च तिण्णा ।।५०।। ८३७. जे गरहितं ठाणमिहावसंति, जे याविलोए चरणोववेया । उदाहडं तं तु समं TO.C55555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा -९२ 5555555555555555555555555FOROR SQ纲听听听听听听听听明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听2a Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOROS (२) सूयगडो बी. सु. ६-अ. / ७ अ. णालंदइज्ज [३९] मतीए, अहाउसो विप्परियासमेव ॥ ५१॥ ८३८. सवंच्छरेणावि य एगमेगं, बाणेण मारेउ महागयं तु । सेसाण जीवाण दयट्टयाए, वासं वयं वित्ति पकप्पयामो ॥५२॥ ८३९. संवच्छरेणावि य एगमेगं, पाणं हणंता अणियत्तदोसा । सेसाण जीवाण वहे ण लग्गा, सिया य थोवं गिहिणो वि तम्हा ॥५३॥ ८४०. संवच्छरेणावि य एगमेगं, पाणं हणंते समणव्वतेसु । आयाहिते से पुरिसे अणज्जे, न तारिसा केवलिणो भवंति ॥५४॥ ८४१. बुद्धस्स आणाए इमं समाहिं, अस्सिं सुठिच्चा तिविहेण ताती । तरिउं समुद्दं व महाभवोघं आयाणवं धम्ममुदाहरेज्जासि ||५५|| त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ अद्दइज्जं समत्तं ॥ ७ सत्तमं अज्झयणं 'णालंदइज्जं' 555 ८४२. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था, रिद्धित्थिमितसमिद्धे जाव पडिरूवे । तस्सं णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं नालंदा नामं बाहिरिया होत्या अणेगभवणसयसन्निविट्ठा जाव पडिरूवा । ८४३. तत्थ णं नालंदाए बाहिरियाए लेए नामं गाहावती होत्था, अड्डे दित्ते वित्ते वित्थिण्णविपुलभवणसयणासणजाणवाहणाइण्णे बहुधण- बहुजातरूवरजते आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डितपउरभत्तपाणे बहुदासी दास - गो-महिसगवेलगप्पभूते बहुजणस्स अपरिभूते यावि होत्था । से णं लेए गाहावती समणो वासए यावि होत्था अभिगतजीवा ऽजीवे जाव विहरति । ८४४. तस्स णं यस्स गाहावतिस्स नालंदा बाहिरियाए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए एत्थ णं सेसदविया नाम उदगसाला होत्था अणेगखंभसयसन्निविट्ठा पासादीया जाव पडिरूवा । तीसे गं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं हत्थिजामे नामं वणसंडे होत्था किण्हे, वण्णओ वणसंडस्स । ८४५. तस्सिं च णं गिहपदेसंसि भगवं गोतमे विहरति, भगवं च णं अहे आरामंसि । अहे णं उदए पेढालपुत्ते पासावच्चिज्जे नियंठे मेतज्जे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोतमें तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता भगवं गोतमं एवं वदासी आउसंतो गोयमा ! अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियव्वे, तं च मे आउसो ! अहादरिसियमेव वियागरेहि। सवायं भगवं गोतमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वदासी अवियाई आउसो ! सोच्चा निसम्म जाणिस्सामो । ८४६. १ सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वदासी - आउसंतो गोतमा ! अत्थि खलु कुमारपुत्तिया नाम समणा निग्गंथा तुब्भागं पवयणं पवयमाणा गाहावतिं समणोवासगं एवं पच्चक्खावेति नन्नत्थ अभिजोएणं गाहावतीचोरग्गहणविमोक्खणयाए तसेहिं पाणेहिं निहाय दंडं । एवण्हं पच्चक्खंताणं दुपच्चक्खायं भवति, एवण्हं पच्चक्खावेमाणाणं दुपच्चक्खावियं भवइ एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अतियरंति सयं पइण्णं, कस्स णं तं हेउं ? संसारिया खलु पाणा, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसावि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरकायातो विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जंति, तसकायातो विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जंति, तेसि च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं घत्तं । २ एवण्हं पच्चक्खंताणं सुपच्चक्खातं भवति, एव पच्चक्खावे माणाणं सुपच्चक्खावियं भवति, एवं ते परं पच्चक्खावे माणा णातियरंति सयं पतिण्णं, णण्णत्थ अभिओगेणं गाहावतीचोरग्गहणविमोक्खणताएं तसभूतेहिं पाणेहिं णिहाय दंडं । एवमेव सति भासापरक्कमे विज्जमाणे जे ते कोहा वा लोभा वा परं पच्चक्खावेति, अयं पिणो दे किं णो णेआउ भवति, अवियाई आउसो गोयमा ! तुब्भं पि एव एतं रोयति ? ८४७. सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वदासी-नो खलु आउसो उदगा ! अम्हं एवं एवं रोयति, जे ते समणा वा माहणा वा एवमाइक्खति जाव परूवेति नो खलु ते समणा वा निग्गंथा वा भासं भासंति, अणुतावियं खलु ते भासं भासंति, अब्भाइक्खंति खलु ते समणे समणोवासए, जेहिं वि अन्नेहिं पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमयंति ताणि वि ते अब्भाइक्खंति, कस्स णं तं हेतुं ? संसारिया खलु पाणा, तसा विपाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जंति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जंति, तेसिं च णं तसकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं अघत्तं । ८४८. सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वदासी कयरे खलु आउसंतो गोतमा ! तुब्भे वयह तसपाणा तसा आउमण्णहा ? सवायं भगवं गोतमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वदासी आउसंतो उदगा ! जे तुब्भे वयह तसभूता पाणा तसभूता पाणा ते वयं वयामो तसा पाणा तसा पाणा, जे वयं वयामो तसा पाणा तसा पाणा ते तुब्भे वयह तसभूता पाणा तसभूता पाणा, एते संति दुवे ठाणा तुल्ला एगट्ठा, किमाउसो ! इमे सुप्पणीयतराए भवति तसभूता पाणा तसभूता पाणा, इमे भे दुप्पणीयतराए भवति तसा पाणा तसा पाणा ? भो एगमाउसो ! पडिकोसह, एक्वं अभिनंदह, अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति । ८४९. भगवं च णं उदाहु संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवति नो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगारातो LOK श्री आगमगुणमंजूषा १३ फ्र Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २) सूयगडा बा.सु.७-अ.णालदइज्ज ४० C}明明听听听听听听听听听听听乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明垢FC अणगारियं पव्वइत्तए, वयं णं अणुपुव्वेणं गुत्तस्स लिसिस्सामो, ते एवं संखं सावेति, ते एवं संखं ठवयंति, ते एवं संखं सोवट्ठावयंति नन्नत्थ अभिजोएणं गाहावतीचोरग्गहणविमोक्खणयाए तसेहिं पाणेहिं निहाय दंडं, तं पि तेसिं कुसलमेव भवति । ८५०. तसा वि वुच्वंति तसा तससंभारकडेण कम्मुणा, णामं च णं अब्भुवगतं भवति, तसाउयं च णं पलिक्खीणं भवति, तसकायद्वितीया ते ततो आउयं विप्पजहंति, ते तओ आउयं विप्पजहित्ता थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि वुच्चंति थावरा थावरसंभारकडेणं कम्मुणा, णामं च णं अब्भुवगतं भवति, थावराउं च णं पलिक्खीणं भवति, थावरकायद्वितीया ते ततो आउगं विप्पजहंति, ते ततो आउगं विप्पजहिता भुज्जो परलोइयत्ताए पच्चायंति, ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया ते चिरद्वितीया। ८५१. सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वदासी आउसंतो गोतमा ! नत्थि णं से केइ परियाए जण्णं समणोवासगस्स एगपाणातिवायविरए वि दंडे निक्खित्ते, कस्स णं तं हेतुं ? संसारिया खलु पाणा, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरकायातो विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जति, तसकायातो विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जति, तेसिं च णं थावरकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं घत्तं । ८५२. सवायं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं एवं वदासी णो खलु आउसो ! अस्माकं वत्तव्वएणं, तुब्भं चेव अणुप्पवादेणं अत्थिणं से परियाए जंमि समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूतेहिं सव्वजीवहिं सव्वसत्तेहिं दंडे निक्खित्ते, कस्सणं है तं हेतुं ? संसारिया खलु पाणा, तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसकायातो विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जति, तेसिंचणं तसकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं अघत्तं, ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिझ्या, ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवति, ते अप्पतरागा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवति, इति से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जण्णं तुब्भे वा अन्नो वा एवं वदह णत्थि णं से केइ परियाए जम्मि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते, अयं पिभे देसे णो णेयाउए भवति । ८५३. भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा, आउसंतो नियंठा ! इह खलु संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवति जे इमे मुंडा भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वइया एसिं च णं आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, जे इमे अगारमावसंति एतेसि णं आमरणंताए दंडे णो णिक्खित्ते, केई च णं समणा जाव वासाइं चउपंचमाई छ।समाई अप्पतरो वा भुज्जतरो वा देसं दूतिज्जित्ता अगारं वएज्जा ? हंता वएज्जा । तस्स णं तं गारत्थं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे भग्गे भवति ? णेति । एवामेव समणोवासगस्स वि तसेहिं पाणेहिं दंडे णिक्खित्ते, थावरेहिं पाणेहिं दंडे नो णिक्खित्ते, तस्स णं तं थावरकायं वहेमाणस्स से पच्चक्खाणे णो भग्गे भवति, से एवमायाणह णियंठा!, सेवमायाणियव्वं । ८५४. भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा आउसंतो नियंठा ! इह खलु गाहावती वा गाहावतिपुत्तो वा तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म धम्मसवणवत्तियं उवसंकमज्जा?, हंता, उवसंकमज्जा। तेसिंचणं तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे ?, हंता आइक्खियव्वे, किं ते तहप्पगारं धम्म सोच्चा निसम्म एवं वदेज्ना इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं सं -सुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं, एत्थं ठिया जीवा सिझंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति, तमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा निसीयामो तहा तुयट्टामो तहा भुंजामो तहा भासामो तहऽब्भुट्ठामो उट्ठाए उठूइत्ता पाणाणं जाव सत्ताणं संजमेणं संजमामो ति वदेज्जा ? हंता वदेज्जा। किं ते तहप्पगारा कप्पंति पव्वावित्तए ? हंता कप्पंति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति मुंडावेत्तए ? हंता कप्पंति। किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्खावेत्तए ? हंता कप्पंति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति उवट्ठावेत्तए ? हंता कप्पंति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्खावेत्तए ? हंता कप्पंति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति उवट्ठावेत्तए ? हंता कप्पंति । तेसिं च णं तहप्पगाराणं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते ? हंता णिक्खित्ते । सेणं ' एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणा जाव वासाइं चउप्पंचमाइं छद्दसमाणि वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा देसं दूइज्जित्ता अगारं वएज्जा ? हंता वएज्जा । तस्सणं सव्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते ? णेति । सेजेसे जीवे जस्स परेणं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते, सेज्जेसे जीवे जस्स आरेणं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते, सेजेसे जीवे जस्स इदाणिं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवति, परेणं अस्संजए आरेणं संजते, इयाणिं अस्संजते, torOSESEEFFFFFFFFF| श्री आगमगुणमंजूषा - ९४ E F F55555555555FOOK GO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐垢乐乐乐坊乐坊乐乐乐乐Q网 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NORO (२) सूयगडो बी. सु. ७.अ. णालंदइजं [४१] अस्संजयस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवति, से एवमायाणह णियंठा !, से एवमायाणितव्वं । ८५५. भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छितव्वा आउसंतो णियंठा ! इह खलु परिव्वाया वा परिव्वाइयाओ वा अन्नयरेहिंतो तित्थाययणेहिंतो आगम्म धम्मसवणवत्तियं उवसंकमेज्जा ? हंता उवसंकमेज्जा । किं तेसिं तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे ? हंता आइक्खियव्वे । तं चेव जाव उवट्ठावेत्तए। किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभुज्जित्तए ? हंता कप्पंति । ते णं एयारूवेणं विहारेण विहरमाणा तहेव जावा वएज्जा। ते णं तहप्पगारा कप्पंति संभुज्जित्तए ? नो तिणट्टे समट्ठे, सेज्जेसे जीवे जे परेणं नो कप्पति संभुज्जित्तए, सेजे (जे) से जीवे आरे कप्पति संभुज्जित्तए, सेजे (ज्जे) से जीवे जे इदाणि णो कप्पति संभुज्जित्तए, परेण अस्समणे, आरेणं समणे, इदाणिं अस्समणे, अस्समणेणं सद्धिं णो पति समणाणं णिग्गंथाणं संभुज्जित्तए, सेवमायाणह णियंठा !, से एवमायाणितव्वं । ८५६. भगवं च णं उदाहु संतेगतिया समणोवासगा भवंति, तेसिं च णं एवं त्वं भवति णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वइत्तए, वयं णं चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसधं सम्मं अणुपालेमाणा विहरिस्सामो, थूलगं पाणातिवायं पच्चाइक्खिस्सामो, एवं थूलगं मुसावादं धूलगं अदिण्णादाणं धूलगं मेहुणं थूलगं परिग्गहं पच्चाइक्खिस्सामो, इच्छापरिमाणं करिस्सामो, दुविहं तिविहेणं, मा खलु मम अट्ठाए किंचि वि करेह वा कारावेह वा, तत्थ वि पच्चाइक्खिस्सामो, ते अभोच्चा अपेच्चा असिणाइत्ता आसंदि पंच्चोरुभित्ता, ते तहा कालगता किं वत्तव्वं सिया ? सम्मं कालगत त्ति वत्तव्वं सिया । ते पाणा वि वुच्वंति, ते तसा वि बुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया, ते बहुतरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवति, ते अप्पयरागा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवति, इति से महयाओ० जण्णं तुब्भे वयह तं चेव जाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति । ८५७. भगवं च णं. उदाहु संतेगतिया समणोवासगा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवति, णो खलु वयं संचा मुंडा भवित्ता अगाराओ जाव पव्वइत्तए, णो खलु वयं संचाएमो चाउद्दसमुद्दिद्वपुण्णमासिणीसु जाव अणुपालेमाणा विहरित्तए, वयं णं अपच्छिममारणंतियसंलेहणाझूसणाझूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया कालं अणवकंखमाणा विहरिस्सामो, सव्वं पाणातिवायं पच्चाइक्खिस्सामो जाव सव्वं परिग्गहं पच्चाइक्खिस्सामो तिविहं तिविहेणं, मा खलु मम अट्ठाए किंचि वि जाव आसंदिपेढियाओ पच्चोरुहित्ता ते तहा कालगया किं वत्तव्वं सिया ? समणा कालगता इति त्वं सिया । ते पाणा वि वुच्चति जाव अयं पि भे देसे नो नेयाउए भवति । ८५८. भगवं च णं उदाहु संतेगतिया मणुस्सा भवंति महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अहमियाजा दुप्पडियाणंदा जाव सव्वातो परिग्गहातोअप्पडिविरता जावज्जीवाए, जेहिं समणोवासगस्स आदाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते; ते ततो आउगं विप्पजहंति, ते चइत्ता भुज्जो सगमादाए दुग्गइगामिणो भवंति, ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरडिइया, ते बहुतरगा पाणा हिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवति, ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवति, आदाणसो इती से महताउ० जं णं तुब्भे वयह जाव अयं पि देणो या भवति । ८५९. भगवं च णं उयाहु संतेगतिया मणुस्सा भवंति अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुआ जाव सव्वाओ परिग्गहातो पडिविरया जावज्जीवा जेहिं समणोवासगस्स आदाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते ततो आउगं विप्पजहंति, ते ततो भुज्जो सगमादाए सोग्गतिगामिणो भवंति, ते पाणा विवच्छंति जाव णो णेयाउए भवति । ८६०. भगवं च णं उदाहु संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्मा एगच्चातो परिग्रहातो अप्पडिविरया जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता भुज्जो सगमादाए सोग्गतिगामिणो भवंति, ते पाणा वि वच्वंति जाव णो णेयाउए भवति । ८६१. भगवं च णं उदाहु संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तं० आरण्णिया आवसहिया गामणियंतिया कण्हुइरहस्सिया जेहिं समणोवासगस्स आयणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, णो बहुसंजया णो बहुपडिविरता पाण-भूत जीव- सत्तेहिं, ते अप्पणा सच्चामोसाई एवं विप्पडिवेदेति अहं ण हंतव्वे अण्णे हंतव्वा जाव कालमासे कालं किच्चा अण्णयराइं आसुरियाई किब्बिसाई जाव उववत्तारो हवंति, ततो विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलमूयत्ताए तमोरूवत्ताए पच्चायंति, ते पाणा वि दुच्चंति जाव णो णेयाउए भवति । ८६२. भगवं च णं उदाहु संतेगतिया पाणा दीहाउया जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो जाव णिक्खित्ते, ते पच्छामेव कालं करेति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पंच्चायंति, ते पाणा विवुच्वंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरद्वितीया, ते श्री आगमगुणमंजूषा १५ COO Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GO步步步步五步步五步步步15% ररासूयगडाबा, सु.७-अ.णालदइज्ज [२] #5555555555 GO乐乐听听听听听听听乐乐乐坊乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 दीहाउया, ते बहुतरगा पाणा जेहिं समाणोवासगस्स आयण सो जाव णो णेयाउए भवति । ८६३. भगवं च णं उदाहु संतेगतिया पाणा समाउआ जेहिं । समणोवासगस्स आयाणसो जाव णिक्खित्ते, ते सममेव कालं करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायंति, ते पाणा वि वुच्चंति , ते तसा वि वुच्चंति , ते महाकाया, ते समाउया, ते बहुतर गा जाव णो णेयाउए भवति । ८६४. भगवं च णं उदाहु संतेगतिआ पाणा अप्पाउया जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए डंडे जाव णिक्खित्ते , ते पुव्वामेव कालं करेति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायंति, ते पाणा वि वुच्चंति , ते तसा वि वुच्चंति , ते महा काया , ते अप्पाउया, ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स पच्चक्खायं भवति, ते अप्पा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवति, इती से महया जाव णो णेआउए भवति । ८६५. भगवं चणं उदाहुसंतेगतिया समणोवासगा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तंपुव्वं भवति-णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता जाव पव्वइत्तए, णो खलु वयं संचाएमो चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसधं अणुपालेत्तए णो खलु वयं संचाएमो अपच्छिम जाव विहरित्तए, वयं णं सामाइयं देसावकासियं पुरत्था पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं एत्ताव ताव सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते सव्वपाण-भूय-जीव-सत्तेहिं खेमंकरे अहमंसि। १ तत्थ आरेणं जे तसा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते तेसु पच्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ, ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंती, ते महाकाया, ते चिरद्वितीया जाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति। २ तत्थ आरेणं जे तसा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो जाव दंडे णिक्खित्ते ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते तेसु पच्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते चिरट्ठिइया जाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति। ३ तत्थ जे ते आरेणं तसा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ परेणं जे तस-थावरपाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते तेसु पच्चायति, तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खातं भवति, ते पाणा वि जाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति। ४ तत्थ जे ते आरेणं ॥ थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए णिक्खित्ते ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणंजे तसा पाणा जेहिंसमणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते तेसुपच्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खातं भवति, ते पाणा विजाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति। ५ तत्थ जेते आरेणं थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्टाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए णिक्खित्ते, ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए णिक्खित्ते तेसु पच्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवति ते पाणा वि जाव अयं पि भे देसे णोणेयाउए भवति। ६ तत्थ जे ते आरेणं थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणठ्ठाए णिक्खित्ते ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ परेणं चेव जे तस-थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते तेसु पच्चायति तेसु समणोवासगस्स सुपच्चक्खातं भवति, ते पाणा वि जाव अयं पि भे देसे णोणेयाउए भवति । ७ तत्थ जे ते परेणं तस-थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते ते ततो आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं जे तसा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते तेसु पच्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवति, ते पाणा विजाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति। ८ तत्थ जे ते परेणं तस-थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते ते ततो आउं विप्पजहंति, ॐ विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं जे थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते तेसु पच्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवति ,ते पाणा वि जाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति। ९ तत्थ जे ते परेणं तसथावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते ते ततो ॐ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता ते तत्थ परेणं चेव जे तस-थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते तेसुपच्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स २ सुपच्चक्खायं भवति, ते पाणा वि जाव अयं पि भे देसे णो णेयाउए भवति । ८६६. भगवं च णं उदाहु ण एतं भूयं ण एतं भव्वं ण एतं भविस्सं जण्णं तसा पाणा ROSOFFE5555555555555FFFFFFFFश्री आगमगुणमंजूषा - ९६ FFFFFFFFFFFFFFF555555555FORY 听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐观 555%%%%%%% Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOTO55555555555555 (2) सयगडो बी. सु. ७-अ. णालंदइज्ज 43] COAC乐圳乐乐乐$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$听听听听听听听听55 वोच्छिज्जिस्संति थावरा पाणा भविस्संति, थावरा पाणा वोच्छिज्जिस्संति तसा पाणा भविस्संति, अवोच्छिण्णेहिं तस-थावरेहिं पाणेहिं जण्णं तुम्मे वा अण्णो वा एवं वदह णत्थिणं से केइ परियाए जाव णोणेयाउए भवति। 867. भगवं चणं उदाहु आउसंतो उदगा! जे खलु समणं वा माणं वा परिभासति मे तिमण्णति आगमेत्ताणाणं आगमेत्ता दसणं आगमेत्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए से खलु परलोगपलिमंथत्ताए चिट्ठइ, जे खलु समणं वा माहणं वा णो परिभासति मे त्ति मण्णति आगमेत्ता णाणं आगमेत्ता दसणं आगमेत्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए से खलु परलोगविसुद्धीए चिट्ठति / 868. तते णं से उदगे पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमीणे जामेव दिसंपाउब्भूते तामेव दिसं संपहारेत्थ गमणाए। 869. भगवं चणं उदाहु आउसंतो उदगा! जे खलु तहाभूतस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म अप्पणो चेव सुहुमाए पडिलेहाए अणुत्तरं जोयक्खेमपयं लंभिते समाणे सो वि ताव तं आढाति परिजाणति वंदति नमंसति सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पज्जुवासति / 870. तते णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वदासी एतेसिणं भंते ! पदाणं पुब्विं अण्णाणयाए असवणयाए अबोहीए अणभिगमेणं अदिट्ठाणं असुयाणं अमुयाणं अविण्णायाणं अणिगूढाणं अव्वोगडाणं अव्वोच्छिण्णाणं अणिसट्ठाणं अणिजूढाणं अणुवधारियाणं एयमद्वं णो सद्दहितं णो पत्तियं णो रोइयं, एतेसि णं भंते ! पदाणं एण्हिं जाणयाए सवणयाए बोहीए जाव उवधारियाणं एयमद्वं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि एवमेयं जहाणं तुब्भे वदह / 871. ततेणं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वदासी सद्दहाहिणं अज्जो!, पत्तियाहि णं अज्जो ! रोएहिणं अज्जो!, एवमेयं जहाणं अम्हे वदामो। 872. ततेणं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वदासी इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अंतिए चाउज्जामातो धम्मातो पंचमहळुवतियं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। 873. तए णं भगवं गोतमे उदयं पेढालपुत्तं गहाय जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं म पयाहिणं करेति, तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता वंदति नमंसति, वंदिता नमंसित्ता एवं वदासी इच्छामिणं भंते ! तुब्भं अंतियं चाउज्जामातो धम्मातो पंचमहव्वतियं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि। ततेणं से उदए पेढालपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए चाउज्जामातो धम्मातो पंचमहव्वतियं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति त्ति बेमि / / नालंदइज्ज सम्मत्तं // // समत्ता महज्झयणा // // समत्तो सूयगडबीयसुयखंधो।।। समत्तं बीयं सूयगडगंध G乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F5555TO se 4 5955555555555555555 श्री आगमगुणमन्षा 955555555555555555555555555OK