Book Title: Aagam Manjusha N 42 Dasveyaliy Nijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा दसवेयालिय-निज्जुत्ति * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com. M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदशकालिकनियेक्तिः-सिद्धिगइसुवगयाण कम्मविसुद्धाण सम्वसिद्धाणं । नमिऊणं दसयालियनिजुति कित्तइस्सामि ॥१॥ आईमावसाणे काउं मंगलपरिग्गहं विहिणा। नामाइमंगलंपिअ चउब्विहं पन्नवेऊणं ॥२॥ सुअनाणे अणुओएणऽहिगयं सो चउब्विहो होइ। चरणकरणाणुओए धम्म गणिए य दविए य॥३॥ अपुहुत्तपुहुत्ताई निहिसिउं इत्य होइ अहिगारा। चरणकरणाणुओगेण तस्स दारा का इमे हुँति॥४॥ निक्खेवे१गट्ठरनिरुत्तिविही४ पवित्ती५ य केण वा६ ? कस्स७? तद्दार टभेय९लक्खण१० तदरिहपरिसा११ य सुत्तत्थो१२॥५॥ एयाइपरूवेट कप्पे वणियगुणेण गुरुणा उ।अणुओगो दस वेयालियस्स विहिणा कहेयब्बो॥६॥ दसकालियंतिनाम संखाए कालओय निदेसो।दसकालियसुअखंचं अज्झयणुहेस निक्खिविउं ।। नाम ठवणा दविए माउयपयसंगहिकए चेवा पजव भावे य तहा सत्तेए इक्कगा होति ॥८॥ नाम ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे अाएसो खलु निक्खेवो दसगस्स य छविहो होइ॥९॥ चाला किडा मंदा बला य पंना य हायणि पर्वचा। पञ्भारमुम्मुही साइणी य दसमी य काल दसा ॥१०॥ दव्वे अद् अहाउअ उवकमे देसकालकाले अ। तह् य पमाणे वंने भावे पगयं तु भावेण ॥११॥ सामाइयऽणुक्कमओ बनेउं विगयपोरिसीए ऊ। निजूढं किल सिजंभवेण दसकालियं तेणं A॥१२॥ जेण व जं व पडुच्चा जत्तो जावंति जह य ते ठविया । सो तं च तओ ताणि य तहा य कमसो कहेयध्वं ॥१३॥ सेजंभवं गणधरं जिणपडिमादसणेण पडिबुद्धं । मणगपियरं दसकालियस्स निजूहगं वंदे॥१४॥मणगं पडुच सेजंभवेण निहिया दसऽज्झयणा । वेयालियाइ ठविया तम्हा दसकालियं णामं ॥१५॥आयप्पवायपुव्वा निजूदा होइ धम्मपनत्ती। कम्मप्पवायपुब्वा पिंडस्स उ एसणा तिविहा ॥१६॥ सचप्पवायपुव्या निजूढा होइ वक्कसुद्धी उ। अवसेसा निजूढा नवमस्स उ तइयवत्थूओ ॥१७॥ वीओऽविअ आएसो गणिपिडगाओ दुवालसंगाओ।एअंकिर णिजूढं मणगस्स अणुगाहट्ठाए॥१८॥ दुमपुफियाइया खलु दस अज्झयणा सभिक्खुयं जाव।अहिगारेऽवि य एत्तो वोच्छं पत्तेयमेकेके॥१९॥ पढमे धम्मपसंसा सो य इहेब जिणसासणम्मित्ति । बिइए पिईएँ सका काउंजे एस धम्मोत्ति ॥२०॥ तइए आयारकहा सुझ्यिा आयसंजमोवाओ। तह जीवसंजमोऽविय होइ चउत्थंमि अज्झयणे ॥२१॥ भिक्खविसोही तक्संजमस्स गुणकारिया उ पंचमए।छट्टे आयारकहा महई जोग्गा महयणस्स ॥२२॥ वयणविभत्ती पुण सत्तमम्मि पणिहाणमट्ठमे भणियं । णवमे विणओ दसमे समाणियं एस भिक्खुत्ति ॥२३॥ दो अज्झयणा चूलिय विसीययंते थिरीकरणमेगं । बिइए विवित्तचरिया असीयणगुणाइरेगफला | ॥२४॥ दसकालिअस्स एसो पिंडत्थो वण्णिओ समासेणं । एत्तो एकेकं पुण अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥२५॥ पढमज्झयणं दुमपुफियंति चत्तारि तस्स दाराई। वण्णेउवकमाई धम्मपसंसाइ अहिगारो॥२६॥ | ओहो जं सामन्नं सुआभिहाणं चउविहं तं च । अज्झयणं अज्झीणं आय ज्झवणा य पत्तेअं॥२७॥ नामाइचउम्भेयं वण्णेऊणं सुआणुसारेणं। दुमपुष्फि आओजा चउसुपि कमेण भावेसुं ॥२८॥ अज्झप्पस्साणयणं कम्माणं अवचओ उवचिआणं । अणुवचओ अ नवाणं तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥२९॥ अहिगम्मति व अत्था इमेण अहिगं च नयणमिच्छति । अहिगं च साहु गच्छह तम्हा अज्झयणमि च्छंति॥३०॥ जह दीवा दीवसयं पहप्पई सो अदिप्पई दीवो। दीवसमा आयरिया दिपंति परं च दीवति ॥३॥ नाणस्स देसणस्सऽवि चरणस्स य जेण आगमो होई। सो होइ भावआओ आओ लाहोत्ति A निदिट्टो ॥३२॥ अट्टविहं कम्मरयं पोराणं जं खवेइ जोगेहिं । एयं भावजावणं नेअव्वं आणुपुव्वीए ॥३३॥णामदुमो ठवणदुमो दब्वदुमो चेव होइ भावदुमो। एमेव य पुष्फस्सवि चउब्बिहो होइ निक्खेवो ॥३४॥ दुमा य पायवा रुक्खा, अगमा विडिमा तरू। कुहा महील्हा वच्छा, रोवगा रंजगावि अ॥३५॥ पुष्पाणि अ कुसुमाणि अ फुडाणि तहेव होति पसवाणि । सुमणाणि असुहुमाणि अ पुष्फाणं हॉति एगट्टा ॥३६॥ दुमपुष्फिआ य आहारएसणा गोअरे तया उंछे। मेस जलूगा सप्पे वणऽक्खइसुगोलपुत्तुदए॥३७॥ कत्थइ पुच्छह सीसो कहिंचऽपुट्ठा कहंति आयरिया। सीसाणं तु हियट्ठा विपुलतरागं तु पुच्छाए ॥३८॥ णामंठवणाधम्मो दब्वधम्मो अभावधम्मो अ। एएसिं नाणत्तं वुच्छामि अहाणुपुवीए ॥ ३९ ॥ दव्वं च अस्थिकायप्पयारधम्मो अमावधम्मो अ । दबस्स पजवा जे ते धम्मा तस्स दव्वस्स॥४०॥धम्मस्थिकायधम्मो पयारधम्मो य विसयधम्मो य। लोइयकुप्पाक्यणिअलोगुत्तर लोगऽणेगविहो॥४१॥ गम्मपसुदेसरजे पुरखरगामगणगोविराईणं । सावज्जो उ कुवित्थियधम्मो न जिणेहि 14 उपसत्यो ॥ ४२ ॥ दुविहो लोगुत्तरिओ सुअधम्मो खलु चरित्तधम्मो अ। सुअधम्मो सझाओ चरित्तधम्मो समणधम्मो ॥४३॥ दव्वे भावेऽवि अमंगलाई दव्वमि पुण्णकलसाई। धम्मो उ भावमंगलमेत्तो ९३६३ श्री दशकालिक नियुक्ति मुनि दीपरनसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३६४ Do********** सिद्धित्तिकाऊ ॥ ४४ ॥ हिंसाए पडिवक्खो होइ अहिंसा चउव्विा सा उ। दब्वे भावे अ तहा अहिंसऽजीवाइवाओत्ति ॥ ४५ ॥ पुढविदगअगणिमारुयवणस्सईचितिचउपणिदिअज्जीवे । पेहोपेह पमजणपरिट्ठवणमणोवईकाए ॥ ४६ ॥ अणसणमूणोअरिआ वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ ४७ ॥ पायच्छित्तं विणओ वेयावचं तहेव सज्झाओ। झाणं उस्सग्गोऽविअ अभितरओ तवो होइ ॥ ४८ ॥ जिणवयणं सिद्धं चेव भण्णए कत्थई उदाहरणं । आसज्ज उ सोयारं हेऊऽवि कहिंचि भण्णेजा ॥ ४९ ॥ कत्थइ पंचावयवं दसहा वा सव्वहा न पडिसिद्धं । न य पुण सव्वं भण्णइ हंदी सवियारमक्खायं ॥५०॥ तत्थाहरणं दुविहं चउब्विहं होइ एकमेकं तु । हेऊ चउव्यिहो खलु तेण उ साहिज्जए अत्थो ॥५१॥ नायमुदाहरणंतिय दितोयम निदरिसणं तद्द य एगहं तं दुविहं चउब्विहं चैव नायव्वं ॥ ५२ ॥ चरिअं च कप्पिअं वा दुविहं तत्तो चउव्विहेकैकं । आहरणे तदेसे तदोसे चेववनासे ॥ ५३ ॥ चउहा खलु आहरणं होई अवाओ उवाय ठवणा य तहय पडुपन्नविणासमेव पढमं चउविगप्पं ॥ ५४ ॥ दव्वावाए दोन्नि उ वाणिअगा भायरो घणनिमित्तं । वहपरिणएकमेकं दहंमि मच्छेण निव्वेओ ॥ ५५ ॥ खेत्तंमि अवक्रमणं दसारखग्गस्स होइ अवरेणं । दीवायणो अ काले भावे मंडुकिआखवओ ॥ ५६ ॥ सिक्खगअसिक्खगाणं संवेगथिरट्टयाइ दोष्टंपि । दव्वाईया एवं दंसिजंते अवाया उ ॥ ५७ ॥ दविअं कारणगहिअं विगिंचिअन्वमसिवाइखेत्तं च । बारसहिं एस्सकालो कोहाइविवेग भावम्मि ॥ ५८ ॥ दव्यादिएहिं निचो एगतेणेव जेसिं अप्पा उ होइ अभावो तेसिं सुहदुहसंसारमोक्खाणं ॥ ५९ ॥ सुहदुक्खसंपओगो न विजई निच्चवायपक्खमि । एगंतुच्छेअंमि अ सुहदुक्खविगप्पणमजुत्तं ॥ ६० ॥ एमेव चडविगप्पो होइ उवाओऽवि तत्थ दव्वंमि धातुव्वाओ पढमो नंगलकुलिएहिं खेत्तं तु ॥ ६१ ॥ कालो अ नालियाइहिं होइ भावमि पंडिओ अभओ । चोरनिमित्तं नहिअ ( चोरस्स कए नहिं ) वडकुमारं परिकहेइ ।। ६२ ।। एवं तु इहं आया पञ्चक्खं अणुवलम्भमाणोऽवि । सुहदुक्खमाइएहिं गिज्झइ हेऊहि अस्थित्ति ॥ ६३॥ जह वस्साओ हस्थि गामा नगरं तु पाउसा सरयं। ओदइयाउ उवसमं संकंती देवदतस्स ॥ ६४॥ एवं सउ जीवस्सवि दव्वाईसंकमं पडुच्चा उ। अत्थित्तं साहिज्जइ पञ्चक्खेणं परोक्खपि ॥ ६५ ॥ एवं सउ जीवस्सवि दब्वाईसंकमं पडुच्चा उ। परिणामो साहिज्जइ पञ्चक्खेणं परोक्खेत्ति ॥६६॥ ठवणाकम्मं एकं दिट्टंतो तत्थ पुंडरीयं तु । अहवाऽवि सन्नढकणहिंगुसिवकयं उदाहरणं ॥ ६७ ॥ सब्वभिचारं हेतुं सहसा वोत्तुं तमेव अन्नेहिं । उवबृहइ सप्पसरं सामत्थं चऽप्पणो नाउं ॥ ६८ ॥ होति पडुपन्नविणासणंमि गंधब्विया उदाहरणं। सीसोऽवि कत्थवि जइ अज्झोवज्जिज्ज तो गुरुणा ॥ ६९ ॥ वारेयव्वु उवायेण जड़वा वाऊलिओ वदेजाहि । सव्वेऽवि नत्थि भावा किं पुण जीवो ? स वोत्तब्बो ॥ ७० ॥ जं भणसि नत्थि भावा वयणमिणं अस्थि नत्थि ? जइ अस्थि एवं पइन्नाहाणी असओ णु निसेहए को णु ? ॥ ७१ ॥ णो य विवक्खापुच्वो सद्दोऽजीवुग्भवोत्ति न य सावि। जमजीवस्स उ सिद्धो पडिसेहधणीउ तो जीवो ॥ ७२ ॥ आहरणं तदेसे चउहा अणुसट्टि तह उवालंभो । पुच्छा निस्सावयणं होइ सुभद्दाऽणुसडीए ॥ ७३ ॥ साहुकारपुरोगं जह सा अणुसासिया पुरजणेणं । वेयावचाईसुवि एव जयंतेऽणुव्हेज्जा ॥ ७४ ॥ जेसिंपि अत्थि आया वत्तच्वा तेऽवि अम्हवि स अस्थि । किंतु अकत्ता न भवइ वेययई जेण सुहदुक्खं ॥ ७५ ॥ उवलम्भम्मि मिगावइ नाहियवाईवि एव वत्तव्यो। नत्थित्ति कुवित्राणं आयाऽभावे सह अजुत्त ॥ ७६ ॥ अस्थित्ति जा वियका अहवा नत्थित्ति जं कुविन्नाणं । अचंताभावे पोग्गलस्स एयं चित्र न जुत्तं ॥ ७७ ॥ पुच्छाइ कोणिओ खलु निस्सावयणमि गोयमस्सामी नाहियवाइं पुच्छे जीवत्थित्तं अणिच्छंतं ॥ ७८ ॥ केणंति नत्थि आया ? जेण परोक्खोत्ति तव कुविन्नाणं। होइ परोक्खं तम्हा नत्थित्ति निसेहए को णु ? ॥ ७९ ॥ अनावएसओ नाहियवाई जेसि नत्थि जीवो उ। दाणाइफलं तेसिं न विजई चउह तदोसं ॥ ८० ॥ पढमं अहम्मजुत्तं पडिलोमं अत्तणो उवन्नासं दुरुवणियं तु चउत्थं अहम्मजुत्तंमि नलदामो ॥ ८१ ॥ पडिलोमे जह अभओ पजोयं हरइ अवहिओ संतो। गोविंदवायगोऽविय जह परपक्वं नियत्तेइ ॥ ८२ ॥ अत्तउवनासंमि य तलागभेयंमि पिंगलो थवई । अणिमिसगिण्हण भिक्खुग दुरु (हु) वणीए उदाहरणं ॥ ८३ ॥ चत्तारि उवन्नासे तव्वत्थुग अन्नवत्थुगे चेव । पडिणिभए हेउम्मि य होति इणमो उदाहरणा ॥ ८४ ॥ तब्वत्थुर्यमि पुरिसो सव्वं भमिऊण साहइ अपुच्वं । तयञ्जनवत्थुगंमिवि अभत्ते होइ एगतं ॥ ८५ ॥ तुज्झ पिया मह पिउणो धारेह अणूणयं सयसहस्सं (पडिनिभंमि) । किं नु जवा किते ? जेण मुहाए न लब्भंति ॥ ८६ ॥ अहवावि इमो हेऊ विन्नेओ तत्थिमो चउविअप्पो जावग थावग बंसग लसग हेऊ चउत्थो उ ॥ ८७ ॥ उन्मामिगा अ महिला जावगहे उंमि उंटलिंडाई । लोगस्स मज्झजाणण थावगहेऊ उदाहरणं ॥ ८८ ॥ सा सगडतित्तिरी वंसगंमि हेउम्मि होइ नायव्वा । तउसग वंसग रूसगद्दे उम्मि य मोयओ य पुणो ॥ ८९ ॥ धम्मो गुणा अहिंसाइया उ ते परममंगल पद्मा । देवावि लोगपुज्जा पणमंति सुधम्ममिइ हेऊ ॥ ९० ॥ दितो अरहंता अणगारा य बहवो उ जिणसीसा । वत्तणुवत्ते नज्जइ जं नरवइणोऽवि पणमंति ॥ ९१ ॥ उवसंहारो देवा जह तह रायावि पणमइ सुधम्मं । तम्हा धम्मो मंगलमुक्किट्टमिई निगमणं च ॥ ९२ ॥ त्रिपन्ना जिणसासणंमि साहंति साहवो धम्मं । हेऊ जम्हा सम्भाविएसुऽहिंसाइस जयंति ॥ ९३ ॥ जह जिणसासणनिरया धम्मं पार्लेति साहवो सुद्धं । न कुतित्थिएस एवं दीसइ परिवालणोवाओ ॥ ९४ ॥ तेसुवि य धम्मसदो धम्मं निययं च ते पसंसंति। नणु भणिओ सावज्जो कुतिस्थिधम्मो जिणवरेहिं ॥ ९५ ॥ जो तेसु धम्मसदो सो उचयारेण निच्छएण इहं । जह सीहसह सीहे पाहण्णुवयारओऽण्णत्थ ॥ ९६ ॥ एस पइन्नासुद्धी हेऊ अहिंसाइएस पंचसुवि। सम्भावेण जयंती हेउविसुद्धी इमा तत्थ ॥ १ ॥ जं भत्तपाणउवगरणवसहिसयणासणाइस जयंति। फासूयअ कयअकारियऽणणुमयाणुदिद्वभोई य ॥ २ ॥ अप्फासुयकयकारियअणुमयउद्दिट्टभोइणो हंदि । तसधावरहिंसाए जणा अकुसला उ लिप्यंति ॥ ३ ॥ एसा हे उविसुद्धी दिहंतो तस्स चैव य विसुद्धी। इह ते भणिया २३६५ श्री दर्शवेकालिक नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर KAK Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३६५ apretkaputk उ फुडा सुत्तष्फासे उ इयमन्ना ॥ ४ ॥ (भाष्यम्) जह भमरोत्ति य एत्थं दिडंतो होइ आहरणदेसे। चंदमुहि दारिगेयं सोमत्तऽवहारण ण सेसं ॥ ९७ ॥ एवं भमराहरणे अणिययवित्तित्तणं न सेसाणं । गहणं | दिट्टंतविसुद्धि सुत्तभणिया इमा वन्ना ॥ ९८ ॥ एत्थ य भणिज्ज कोई समणाणं कीरए सुविहियाणं । पागोवजीविणोत्ति य लिप्यंवारं भदोसेणं ॥ ९९ ॥ बासइ न तणस्स कए न तणं वडूइ कए मयकुलाणं । न य रुक्खा सयसाला कुन्ति कए महुयराणं ॥ १०० ॥ अग्मिम्मि हवी हूयइ आइचो तेण पीणिओ संतो। वरिसइ पयाहियाए तेणोसहिओ परोहति ॥ १०१ ॥ किं दुम्भिक्खं जायई जइ एवं? अह भवे दुरिहं तु । किं जायइ सव्वत्था दुब्मिक्खं अह भवे इंदो१ ॥ १०२ ॥ वासइ तो किं विग्धं निग्धायाईहिं जायए तस्स ? अह वासइ उउसमए न वासई तो तणट्टाए ॥१०३॥ किंच दुमा पुण्कंति भ्रमराणं कारणा अहासमयं । मा भमरमहुयरिगणा किलामएजा अणाहारा ॥ १०४॥ कस्सइ बुद्धी एसा वित्ती उवकप्पिआ पयावइणा। सत्ताणं तेण दुमा पुष्पंति महुयरिगणट्टा ॥ १०५ ॥ तं न भवइ जेण दुमा नामागोयस्स विहियस्स । उदरणं पुप्फफलं निवत्तयंति इमं चनं ॥ १०६ ॥ अस्थि बहू वणखंडा भमरा जत्थ न उर्वेति न वसंति । तत्थऽवि पुष्पंति दुमा पगई एसा दुमगणाणं ॥ १०७ ॥ जइ पगई कीस पुणो सव्वं कालं न देति पुष्फफलं। जं काले पुष्फफलं दयंति ? गुरुराह अत एव ॥ १०८ ॥ पगई एस दुमाणं जं उउसमयम्मि आगए संते। पुण्कंति पायवगणा फलं च कालेण बंधति ॥ १०९ ॥ किंनु गिदी रंधंति समणाणं कारणा अहासमयं । मा समणा भगवंतो किलामएजा अणाहारा ॥ ११० ॥ समणऽणुकंपनिमित्तं पुष्णनिमित्तं च गिहनिवासी उ। कोइ भणिजा पागं करेंति सो भण्णइ न जम्हा ॥ १११ ॥ कंतारे दुब्भिक्रखे आयंके वा महइ समुप्पन्ने। रतिं समणसुविहिया सव्वाहारं न भुंजंति ॥ ११२ ॥ अह कीस पुण गिहत्वा रत्ति आयरतरेण रंधति । समणेहिं सुविहिएहिं चउव्विहाहारविरएहिं ? ॥ ११३ ॥ अस्थि बहुगामनगरा समणा जत्थ न उर्वेति न वसंति। तत्थवि रंधंति गिही पगई एसा गिहत्थाणं ॥ ११४ ॥ पगई एस गिद्दिणो जं गिहिणो गामनगरनिगमेसुं । रंधति अप्पणो परियणस्स कालेण अट्टाए । ११५ ॥ तत्थ समणा तवस्सी परकडपरनिट्टियं विगयधूमं । आहारं एसंती जोगाणं साहणट्टाए ॥ ११६ ॥ नवकोडीपरिसुद्धं उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं छट्टाणरक्खणट्टा अहिंसअणुपालणट्टाए ॥१॥ ( प्रक्षिमा ) दितसुद्धि एसा उवसंहारो य सुत्तनिधिट्टो । संती विज्जतित्ति य संतिं सिद्धिं च (व) साहेति ॥११७॥ धारेइ तं तु दव्यं तं दव्वविहंगमं वियाणाहि । भावे विहंगमो पुण गुणसन्नासिद्धिओ दुविहो ॥११८॥ विहमागासं भण्णइ गुणसिद्धी तप्पइडिओ लोगो । तेण उ विहंगमो सो भावत्थो वा गई दुविहा ॥ ११९ ॥ भावगई कम्मगई भावगई पप्प अत्थिकाया उ । सव्वे विहंगमा खलु कम्मगईए इमे भेया ॥ १२० ॥ गिगई चलणगई कम्मगई उ समासओ दुविहा । तदुदयवेययजीवा विहंगमा पप्प विहगगई ॥ १२१ ॥ चलणं कम्मगई खलु पहुच संसारिणो भवे जीवा पोग्गलदब्बाई वा विहंगमा एस गुणसिद्धी ॥ १२२ ॥ सन्नासिद्धिं पप्पा विहंगमा होति पक्खिणो सव्वे । इहई पुण अहिगारो विहासगमणेहिं भमरेहिं ॥ १२३ ॥ दाणेत्ति दत्तगिण्हण भत्ते भज सेव फासुगेण्हणया। एसणतिगंमि निरया उवसंहारस्स सुद्धि इमा ॥ १२४ ॥ अवि भमरमहुय - रिगणा अविदिन्न आवियंति कुसुमरसं । समणा पुण भगवन्तो नादिनं भोत्तुमिच्छति ॥ १२५॥ अस्संजएहिं भ्रमरेहिं जइ समा संजया खलु भवंति। एवं उवमं किम्चा नूणं अस्संजया समणा ॥ १२६ ॥ उवमा खलु एस कया पुव्वृत्ता देसलक्खणोवणया । अणिययवित्तिनिमित्तं अहिंसअणुपालणट्टाए ॥ १२७ ॥ जह दुमगणा उ तह नगरजणवया पयणपायणसहावा । जह भमरा तह मुणिणो नवरि अदत्तं न भुजति ॥ १२८ ॥ कुसुमे सहावफुले आहारंति भमरा जह तहा उ । भत्तं सहावसिद्धं समणसुविहिया गवेति ॥ १२९ ॥ उपसंहारो भमरा जह तद् समणावि अवहजीवित्ति दंतत्ति पुण पर्यमि नायव्वं वक्कसेसमिणं ॥ १३० ॥ जह इत्थ चैव इरियाइएस सव्वंमि दिक्खियपयारे। तसथावरभूयहियं जयंति सम्भावियं साहू ॥ १३१ ॥ उवसंहारविमुद्धी एस समत्ता उ निगमणं तेणं । वृचंति साहृणोत्ति य जेणं ते महयरसमाणा ॥१३२॥ तम्हा दयाइगुणसुट्टिएहिं भमरोव्व अवहवित्तीहिं। साहूहिं साहिउत्ति य उकिटं मंगलं धम्मो ॥ १३३ ॥ निगमणसुद्धी तित्यंतरावि धम्मत्थमुजया विहरे। भण्णइ कायाणं ते जयणं न मुणंति न करेंति ॥ १३४॥ न ये उग्गमाइसुद्धं मुंजंति महयरा वऽणुवरोहिं नेव य तिगुत्तिगुत्ता जह साहू निचकालंपि ॥ १३५ ॥ कार्य वायं च मणं च इंदियाई च पंच दमयंति धारैति बंभचेरं संजमयंती कसाए य ॥ १३६ ॥ जं च तवे उज्जुत्ता तेसिं साहुलक्खणं पुण्णं । तो साहुणोति भण्णति साहवो निगमणं चेयं ॥१३७॥ ते उ पद्म विभत्ती हेउ विभत्ती विवक्ख पडिसेहो। दिट्टंतो आसंका तप्पडिसेहो निगमणं च ॥ १३८ ॥ धम्मो मंगलमुकिहंति पन्ना अत्तवयणनिद्देसो । सो य इहेव जिणमये नन्नत्थ पद्मपविभत्ती ॥१३९॥ सुरपूइओत्ति हेऊ धम्मट्ठाणे ठिया उ जं परमे। हेउविभक्त्ती निरुवद्दि जियाण अवहेण य जयंति ॥ १४० ॥ जिणचयणपट्ठेऽवि हु ससुराईए अधम्मदणोऽवि मंगलबुद्धीइ जणो पणमइ आईदुयविवक्खो ॥ १४१ ॥ विइयदुयस्स विवक्खो सुरेहि" पुजति जण्णजाईवि । बुद्धाईवि सुरणया वृचन्ते णायपडिवक्खो ॥ १४२ ॥ एवं तु अवयवाणं चउण्ड पडिवक्खु पंचमोऽवयवो। एतो छट्टोऽवयवो विवक्खपडिसेह तं वोच्छं ॥ १४३ ॥ सायं संमत्त पुमं हासं रद्द आउनामगोअसुदं । धम्मफलं आइदुगे विवक्सपडिसेह मो एसो ॥ १४४ ॥ अजिइंदिय सोवहिया वहगा जइ तेऽवि नाम पुजंति । अग्गीवि होज सीओ हेउविभत्तीण पडिसेहो ॥ १४५ ॥ बुद्धाई उपयारे प्याठाणं जिणा उ सम्भावं । दिते पडिसेहो उट्ठो एसो अवयवो उ ।। १४६ ।। अरिहंतमग्गगामी दिहंतो साहुणोऽवि समचित्ता । पागरएस गिहीसु एसंते अवहमाणा उ ॥ १४७ ॥ तत्थ भवे आसंका उद्दिस्स जइवि कीरए पागो। तेण व विसमं नायं वासतणा तस्स पडिसेद्दे ॥ १४८ ॥ तम्हा उ सुरनराणं पुजत्ता मंगलं सया धम्मो दसमो एस अवयवो पइनहेऊ पुणोवयणं ॥ १४९ ॥ णायंमि गिव्हियन्वे अगिण्डियव्वंमि चेव अत्यंमि जइयव्वमेव इइ जो उचएसो सो नओ नाम ॥ १५० ॥ १३६६ श्री दशवेकालिक नियुक्ति 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३६६ 1 सव्वेसिंपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामेत्ता । तं सव्वनयवियुद्धं जं चरणगुणडिओ साहू ॥ १५१ ॥ दुमपुष्पियनिज्जत्ती समासओ वण्णिया विभासाए। जिणचउदसपुच्ची वित्थरेण कइयंति से अहं ॥ १५२ ॥ दुमपुष्पियनिज्जत्ती संमत्ता १ ॥ सामन्नपुव्वगस्स उ निक्खेयो होइ नामनिष्फण्णे । सामण्णस्स चउको तेरसगो पुव्वयस्स भवे ॥ १५३ ॥ समणस्स उ निक्खेवो चउकओ छोइ आणुपुब्बीए । दब्बे सरीभविओ भावेण उ संजओ समणो ॥ १५४ ॥ जह मम न पियं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । न हणइ न इणावेइ य सममणई तेण सो समणो ॥ १५५ ॥ नत्थि य सि कोइ वेसो पियो व सव्र्व्वसु चैव जीवेसु। एएण होइ समणो एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ॥ १५६ ॥ तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ न होइ पावमणो। सयणे य जणे य समो समो य माणावमाणेसु ॥ १५७ ॥ उरगगिरिजलणसागरनहयलतरुगणसमो य जो होइ । भमरमिगधरणिजलरुहरविपत्रणसमो जओ समणो ॥ १५८ ॥ विसतिणिसवायवंजुलकणियारुप्पलसमेण समणेणं । भ्रमरुंदुरुन डकुकुडअद्दागसमेण होयव्वं ॥ १ ॥ ( प्रक्षिप्ता ) पव्वइए अणगारे पासंडे चरग तात्रसे भिक्खु । परिवाइए य समणे निग्गंथे संजए मुत्ते ॥ १५९ ॥ तिने ताई दविए मुणी य खंते य दन्त विरए य। लूहे तीरहेऽविय हवंति समणस्स नामाई ॥ १६० ॥ णामं ठवणा दविए खेत्ते काल दिसि तावखेत्ते य। पद्मवग पुव्व वत्थू पाहुड अइपाहुडे भावे ॥ १६१ ॥ नामंठवणाकामा दव्यकामा य भावकामा य। एसो खलु कामाणं निक्खेवो चउविहो होइ ॥ १६२ ॥ सदरस रुवगंधा फासा उदयंकरा य जे दव्वा दुविहा य भावकामा इच्छाकामा मयणकामा ॥ १६३ ॥ इच्छा पसत्थअपसत्थिगा य मयणंमि वेयउवओगो। तेहऽहिगारो तस्स उ वयंति धीरा निरुत्तमिणं ॥ १६४॥ विमयसुहेसु पसतं अनुजणं कामरागपडिवद्धं । उक्कामयंति जीवं धम्माओ तेण ते कामा ॥ १६५ ॥ अनंपिय से नामं कामा रोगत्ति पंडिया विंति कामे पत्येमाणो रोगे पत्थेइ खलु जंतू ॥ १६६ ॥ णामपर्य ठवणपयं दव्यपयं चैव होइ भावपयं । एक्केकंपिय एत्तो णेगविहं होइ नायव्वं ॥ १६७ ॥ आउट्टिमउक्किनं उण्णेज्जं पीलिमं च रंगं च गंधिमवेढिमपूरिमवाइमसंघाइमच्छेजे ॥ १६८ ॥ भावपयंपि य दुविहं अवराह्यं च नो य अवराहं । नोअवराहं दुविहं माउग नोमाउगं चैव ॥ १६९ ॥ नोमाउगंपि दुविहं गहियं च पइन्नयं च बोद्धव्यं । गहियं चउप्पयारं पन्नगं होइ णेगविहं ॥ १७० ॥ गजं पजं गेयं चुण्णं च चव्विहं तु गहियपयं । तिसमुद्वाणं सव्वं इइ बेंति सलक्खणा कइणो ॥ १७१ ॥ महुरं देउनिजुत्तं गहियमपायं विरामसंजुत्तं । अपरिमियं चऽवसाणे कव्वं गज्जंति नायव्वं ॥ १७२ ॥ पजं तु होइ तिविदं सम मदसमं च नाम विसमं च । पायेहि" अक्खरेहि" य एव विहिष्णू कई बेति ॥ १७३ ॥ वंतिसमं तालसमं वण्णसमं गहसमं लयसमं च । कव्वं तु होइ गेयं पंचविहं गीयसनाए ॥ १७४ ॥ अत्थबहुलं महत्वं हेउनिया ओवसग्गगंभीरं । बहुपायमवोच्छिन्नं गमणयसुद्धं च चुण्णपयं ॥ १७५ ॥ इंदियविसयकसाया परीसहा वेयणा य उवसग्गा। एए अवराहपया जत्थ विसीयंति दुम्मेहा ॥ १७६ ॥ अट्टारस उ सहस्सा सीलंगाणं जिणेहिं पन्नत्ता । तेसि पडिरक्खणट्टा अवराहपए उ वज्जेजा ॥ १७७॥ जोए करणे सन्ना इदिय भोमाह समणधम्मे य। सीलिंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स निप्फत्ती ॥ १७८ ॥ सामण्णपुच्चयनिज्जुनी समत्ता २ ॥ नामंठवणादविए खेत्ते काले पहाण पर भावे। एएसि महंताणं पडिवक्ले खुट्टया होंति ॥ १७९ ॥ पखुट्टएण पगयं आयारस्स उ चउक्कनिक्खेवो । नामं ठवणा दविए भावायारे य बोद्धव्वे ॥ १८०॥ नामणधावणवासणसिक्खावणसुकरणाविरोहीणि । दव्वाणि जाणि लोए दव्वायारं वियाणाहि ॥ १८१ ॥ दंसणनाणचरिते तवआयारे य वीरियायारे। एसो भावायारो पंचविहो होइ नायव्वो ॥ १८२ ॥ निस्संकिय निकंखिय निव्वितिमिच्छा अमूढदिट्ठी अ । उववृह थिरीकरणे वच्छल पभावणे अट्ट ॥ १८३॥ अइसेसइडियायरियवाइधम्म कहीखमगनेमित्ती विज्जारायागणसंमया य तित्थं पभाविति ॥ १८४ ॥ काले विणये बहुमाणे उवहाणे तह य अनिण्हवणे वंजणअत्थतदुभए अट्ठविहो नाणमायारो ॥ १८५ ॥ पणिहाणजोगजुत्तो पंचदि समिईहि" तिहि य गुत्तीहिं। एस चरित्तायारो अट्टविहो होइ नायव्वो ॥ १८६॥ चारसविम्मिवि तवे सम्भितरबाहिरे कुसलदिट्टे। अगिलाइ अणाजीवी नायव्वो सो तवायारो ॥ १८७॥ अणिगृहियचलविरिओ परकमइ जो जहुत्तमाउत्तो। जुंजइ अ जहाथामं नायब्वो वीरियायारो ॥१८८॥ अत्थकहा कामकहा धम्मकहा चैव मीसिया य कहा । एतो एकेकावि य णेगविदा होइ नायव्वा ॥ १८९॥ विज्जा सिप्पमुवाओ अणिवेओ संचओ अ दक्खत्तं । सामं दंडो भेओ उवप्पयाणं च अत्थकहा ॥ १९०॥ सत्थाहसुओ दक्खत्तणेण सेट्टीसुओ य रुवेणं बुद्धीएं अमचसुओ जीवइ पुनेहिं रायसुओ ॥ १९१ ॥ दक्खत्तणयं पुरिसस्स पंचगं सइगमाहु सुंदेरं । बुद्धी पुण साहस्सा सयसाहस्साई पुन्नाई ॥ १९२॥ रूवं वओ य वेसो दक्खतं सिक्खियं च विसएसुं। दिहं सुयमणुभूयं च संथवो चैव कामकहा ॥ १९३॥ धम्मका बोद्धव्वा चउब्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता। अक्खेवणि विक्खेवणि संवेगे चेव निव्वे ॥ १९४॥ आयारे ववहारे पन्नत्ती चैव दिद्वीवाए अ एसा चउव्विद्दा खलु कहा उ अक्वेवणी होइ ॥ १९५॥ विज्जा चरणं च तवो पुरिसकारो य समिइगुत्तीओ उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ अक्खेवणीइ रसो ॥ १९६ ॥ कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा। मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया ॥ १९७॥ जा ससमयकजा खलु होइ कहा लोगवेयसंजुत्ता। परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी नाम ॥ १९८ ॥ जा ससमयेण पुवि अक्खाया तं भेज परसमए। परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ॥ १९९॥ आयपरसरीरगया इहलोए चैव तद्दय परलोए। एसा चउव्विहा खलु कहा उ संवेयणी होइ ॥ २००॥ वीरिय विउब्वणिड्डी नाणचरणदंसणाण तह इड्डी । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो ॥ २०१ ॥ पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिजए जत्थ । इह य परत्थ य लोए कहा उ णिव्वेयणी नाम् ॥ २०२ ॥ थोपि पमायकयं कम्मं साहिज्जई जहिं नियमा पउरासुहपरिणामं कहाइ निब्वेयणीइ रसो ॥ २०३ ॥ सिद्धी य देवलोगो सुकुलुप्पत्ती य होइ संवेगो । नरगो तिरिक्खजोणी कुमाणुसत्तं च निव्वेओ ॥ २०४॥ १२६० श्री दशवेकालिक नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेणइयस्स पढमया कहा उ अक्खेवणी कहेयव्या।तो ससमयगहियत्थे कहिज विक्खेवणी पच्छा ॥२०५॥ अक्खेवणिअक्खित्ता जे जीवा ते लभन्ति संमत्तं । विक्खेवणीऍ भज गाढतरागं च मिच्छन्नं ॥२०६॥ धम्मो अत्यो कामो उवइस्सइ जत्थ सुत्तकब्बेसुं। लोगे वेये समए सा उ कहा मीसिया णाम ॥२०७॥ इस्थिकहा भत्तकहा रायकहा चोरजणवयकहा यानडनट्टजालमुट्ठियकहा उ एसा भवे विकहा ॥२०८॥ एया चेव कहाओ पन्नवगपरूवर्ग समासज । अकहा कहा य विकहा हविज पुरिसंतरं पप्प ॥२०९॥ मिच्छत्तं वेयन्तो जं अन्नाणी कहं परिकहेइ । लिंगत्थो व गिही वा सा अकहा देसिया समए ॥२१॥ तवसंजमगुणधारी जं चरणरया कहंति सम्भावं। सबजगजीवहियं सा उ कहा देसिया समए॥२११॥जो संजओ पमत्तो रागहोसवसगओ परिकहेद।सा उ विकहा पवयणे पण्णता धीरपुरिसेहिं ॥२१॥ सिंगाररसुत्तइया मोहकवियफॅफुगा सहासिति । जं सुणमाणस्स कहं समणेण ण सा कहेयचा ॥२१३॥ समणेण कहेयव्वा तवनियमकहा विरागसंजुत्ता । जं सोऊण मणुस्सो वचद संवेगनिब्बेयं ॥२१४॥ अस्थमहंतीवि कहा अपरिकिलेसबद्दला कहेयच्या। हंदि महया चडगरत्तणेण अत्थं कहा हणइ॥२१५ाखेतं कालं परिसं सामत्थं चऽप्पणो बियाणेत्ता समणेण उअणवजा पगयंमि कहा कडेयव्या॥२१६॥ तइयज्झयणनिजुत्ती संमत्ता ३ ॥ जीवाहारो भण्णइ आयारो तेणिमं तु आयायं । छज्जीवणियज्झयणं तस्सऽहिगारा इमे होंति ॥५॥ (भाष्यम्) जीवाजीवादिगमो चरित्तधम्मो तहेब जयणा य । उवएसो धम्मफलं छज्जीवणियाइ अहिगारा ॥२१७॥ छजीवणियाए खल निक्खेवो होइ नामनिफने। एएसिं तिण्डंपि उ पत्तेय परूवर्ण वोच्छं ॥२१८॥णामं ठवणा दपिए माउगपय संगहेकए चेव । पजव भावे य तहा सत्तेए एकगा होति ॥२१९॥ नाम ठवणा दविए खेने काले तहेव भावे । एसो उ छकगस्सा निक्खेवो उचिहो होइ ॥२२० ॥ जीवस्स उ निक्खेवो परूवणा लक्षणं च अस्थिनं । अनामतनं निध कारगो देहवावित्तं ॥२२१॥ गुणि उडगइत्ते या निम्मय साफलता य परिमाणे । जीवस्स तिविह कालम्मि परिक्खा होइ कायव्वा ॥२२२॥ दो दारगाहाओ॥ नामंठवणाजीवो दव्यजीवो य भावजीवो य॥ ओह भवग्गहणम्मि य तम्भवजीवे य भावम्मि ॥२२३ ॥ नामंठवण गयाओ दब्वे गुणपज्जवेहि रहिउत्ति । तिविहो य होइ भावे ओहे भव तम्भवे चेव ॥६॥ संते आउयकम्मे धरई तस्सेव जीवई उदए। तम्सेव निजराए मओनि सिद्धो नयमएणं ॥ ७॥ जेण य धरइ भवगओ जीवो जेण य भवाउ संकमई। जाणाहितं भवाउं चउव्विह तम्भवे दुविहं ॥८॥ निक्खेवोत्ति गयं ॥ विद्दा य हुँति जीवा सुहमा तह बायरा य लोगम्मि । मुहुमा य सव्वलोए दो चेव य वायरविहाणा ॥९॥ सुहुमा य सब्बलोए परियावना भवंति नायवा। दो चेव बायराण पजत्तियरे अनायवा ॥१॥ परुवणादारं गयंति ॥ लक्षणमियाणि दारं चिधं हेऊ अकारणं लिंगं । लक्खणमिइ जीवस्स उ आयाणाई इमं तं च॥११॥(भाष्यम्) आयाणे परिभोगे जोगुवओगे कसाय लेसा य। आणापाणू इंदिय बंधोदयनिजरा चेव ॥२२४॥ चित्तं चेयण सन्ना विनाणं धारणा य बुद्धी अ। ईहा मई वियका जीवस्स उ लक्खणा एए॥ २२५ ॥ लक्विजइत्ति नज्जइ पञ्चक्खियरो बजेण जो अस्थो । तं तस्स लक्खणं खलु धूमुण्हाइव्व अग्गिस्स ॥१२॥ अयगार कर परसू अम्गि सुवण्णे अ खीर नर वासी । आद्दारो दिट्ठता आयाणाईण जहसंखं ॥१३॥ देहिंदियाइरित्तो आया खलु गज्झगाहगपओगा । संडासा अयपिंडो अययाराइव्य विनेओ ॥ १४॥ देहो मभोनिओं खलु भोजना ओयणाइथालं व । अन्नप्पओगिता खलु जोगा परसुव्व करणत्ता ॥१५॥ उवओगा नाभायो अग्गिव्व सलक्खणापरिचागा। सकसाया णाभावो पज्जयगमणा सुवणं व॥१६॥ लेसाओ Sणाभावो परिणमणमभावओ य खीरं व । उस्सासा णाभावो समसम्भावा खउच्च नरो॥१७॥ अक्खाणेयाणि परत्थगाणि वासाइवेह करणत्ता । गहवेयगनिजरओ कम्मस्सऽनो जहाऽऽहारो ॥ १८॥ चित्तं तिकालविसयं चेयण पञ्चक्ख सन्नमणुसरणं। विण्णाणऽणेगमेयं कालमसंखेयरं धरणा ॥ १९॥ अत्थस्स ऊह चुही ईहा चेट्ठस्थ अवगमो उमई । संभावणत्थ तका गुणपचक्या घडोव्वऽस्थि॥२०॥ जम्हा चित्तासईया जीवस्स गुणा हवंति पञ्चक्खा। गुणपचक्खत्तणओ घटुव्य जीवो अओ अस्थि॥२१॥अस्थित्ति दारमहुणा जीवस्सइ अस्थि विजए(न चेयणो)नियमा। लोआययमयघायस्थमुच्चए तस्थिमो हेऊ ॥२२॥ जो चिंतेइ सरीरे नस्थि अहं स एव होइ जीवोत्ति। न हु जीवमि असंते संसयउप्पायओ अनो॥२३॥ जीवस्स एस धम्मो जा ईहा अस्थि नस्थि वा जीवो? । खाणुमणुस्साणुगया जह ईहा देवदत्तस्स ॥२४॥ सिद्ध जीवस्स अस्थित्तं. सद्दादेवाणुमीयए। नासओ भुवि भावस्स, सद्दो हवइ केवलो ॥२५॥ अस्थित्ति निविगप्पो जीवो नियमाउ सहओ सिद्धी । कम्हा? सुद्धपयत्ता घडखरसिंगाणुमाणाओ॥२६॥ चोयग-सुद्धपयत्ता सिद्धी जइ एवं सुण्णसुद्धि अम्हंपि । तं न भवइ संतेणं जं सुन्नं सुन्नगेहं व ॥२७॥ मिच्छा भवेउ सनत्था, जे केई पारलोइया। कत्ता चेवोपभोत्ता य, जइ जीवो न विजइ ॥२८॥ पाणिदया तबनियमा बंभं दिक्खा य इंदियनिरोहो। सत्रं निरत्थयमेयं, जइ जीवोन विजइ ॥२९॥ लोइया वेड्या चेव, तहा सामाइया विऊ। निच्चो जीवो पिहो देहा, इइ सवे ववस्थिया ॥३०॥ लोए अच्छेज्जऽभेजो वेए सपरिसददगसियालो । समएऽज्जऽहमासि गओ तिविहो दिवाइसंसारो ॥३१॥ अस्थि सरीरविहाया पइनिययागारयाइभावाओ। कुंभस्स जह कुलालो सो मुनो कम्मजोगाओ॥३२॥ करिसण जहा बाऊ, गिज्झई कायसंसिओ।नाणाईहिं तहा जीवो, गिज्झई कायसंसिओ॥३३॥अणिदियगुणं जीवं, दुग्नेयं मंसचक्खुणा । सिद्धा पासंति सञ्चबू, नाणसिद्धाय साहुणो॥३४॥ अत्तवयणं नु मत्थं विट्ठा य तओ अइंदियाणंपि। सिद्धी गहणाईणं तहेव जीवस्स विनेया ॥३५॥ अण्णत्तममत्तत्तं निबत्तं चेव भण्णए समयं । कारणआविभागाईहेऊहि इमाहिं गाहाहि ॥३६॥ (भाष्य) कारण विभाग कारणविणास बंधस्स पचयाभावा । | विरुदस्स य अत्थस्सापाउम्भावाविणासा य ॥२२६॥अनत्ति दारमहुणा अचो देहा गिहाउ पुरिसोव्य ।तजीवतस्सरीरियमयघायत्थं इमं भणियं ॥३॥ देहिंदियाइरित्तो आया खल तदुवलदअत्याणं । तचि. ९३६७ ।।१३६८ श्री दर्शवकालिक नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमेऽपि सरणओ गेहगवक्खेहिं पुरिसोच ॥ ३८॥ न उ इंदियाई उवलद्धिमंति विगएमु विसयसंभरणा । जह गेहगवक्खेहिं जो अणुसरिया स उक्लदा ॥ ३९ ॥ संपयममुत्तदार अइंदियत्ता अछेयभेयत्ता । कबाडचिरहो वा अणाहपरिणामभाषाओ॥४०॥छउमत्थाणवलंभा तहेव सम्वनुषयणओ चेव । लोयाइपसिद्धीओ जीवोऽमत्तोत्ति नायब्यो ॥४१॥ णिचोत्ति दारमहणा णिचो अविणासि सासओ जीची। भावत्ते सइ जम्माभावाउ नहं व विनेओ ॥४२॥ संसाराओ आलोयगाउ तह पञ्चभिन्नभावाओ।खणभंगविघायत्यं भणिअं तेलोकदंसीहि ॥४३॥ लोगे वेए समए निचो जीवो विभासओ अम्हं । इहरा संसाराई सव्वंपि न जुजए तस्स ॥४४॥ कारणअविभागाओ कारणअविणासओ य जीवस्स । निचत्तं विन्नेयं आगासपडाणुमाणाओ ॥४५॥ हेउप्पभयो बंधो जम्माणतरहयस्स नो जुत्तो। ततोगविरहओ खलु चोराइघडाणुमाणाओ ॥४६॥(भाष्यम्) पंधस्स पचयाओ स बजाई बंधपचया जीवो। एगंतखणिय तह निचवायघायथमिममुत्तं ॥१॥ पंधस्स पचया खलु मिच्छत्तं अविरई फसाया उ। जेण पमाओ लेसा चोराइघडाणुमाणाओ॥२॥ अत्यविभावा निचोऽणिचो जीवो खकुंभओवम्मा। सवियाराणुवलंभा अविणासी पुग्गलो णेओ॥३॥ (प्र०)अविणासी खलु जीवो विगारऽणुवलंभओ जहाऽऽगास। उवलम्भंति विगारा कुंभाइविणासिदशाणं ॥४॥ (भाष्यम्) निरामयाऽमयभावा चालकयाणुसरणादुवत्थाणा। सुत्ताईहिं अगहणा जाईसरणा थणमिलासा ॥२२७॥ रोगस्सामयसना पालकयं जं जुवाऽणुसंभरह। जं कयमनमि भवे तस्सेवऽन्नत्थुवत्थाणा ॥४८॥ णिचो अणिदियत्ता खणिओ नवि होइ जाइसंभरणा । थणअभिलासा य वहा अमओ नउ मिम्मउन पडो॥४९॥ (भाष्यम् ) सवन्नुवदिद्वत्ता सकम्मफलभोयणा अमुतना। जीवस्स सिद्धमेवं निबत्तममुत्तमन्नत्तं ॥२२८॥ कत्तत्ति दारमहुणा सकम्मफलभोइणो जओ जीवा । वाणियकिसीवला इव कविलमयनिसेहणं एवं ॥५०॥पावित्ति दारमहुणा देहबाबी मओऽग्गिउण्हं व। जीवा नउ सव्वगओ देहे लिंगोचलंभाओ॥५१॥ अहुणा गुणित्ति दारं होइ गुणेहिं गुणित्ति विन्नेओ। ते भोगजोगउवओगमाइ रुवाइ व घडस्म ॥५२॥ उईगइत्ति अहुणा अगुरुलहुत्ता सभावउड़गई। दिटुंत लाउएक एरंडफलाइएहि च ॥५३ ॥ अमओ य होइ जीवो कारणविरहा जहेव आगासं । समयं च होअनिचं मिम्मयघडतंतुमाईये ॥५४॥ साफतवारमहणा निचानिय परिणामिजीवम्मि। होइ तय कम्माण इहरेगसभावओज्जुनं ॥५५॥जीवस्स उपरिमाणं वित्थरओ जाव लोगमेत्तं तु। ओगाहणा य सुहमा तस्स पएसा असंखेजा ॥५६॥ पत्येण पकलएण पजह कोड मिणेज सम्बधन्नाई। एवं मवि. जमाणा हवंति लोगा अर्णता उ ॥५७॥ (भाष्यम्) णामं ठवणसरीरे गई णिकायऽस्थिकाय दविए य। माउग पजव संगह भारे तद्द भावकाए य ॥२२९।। इत्थं पुण अहिगारो निकायकाएण होइ सुमि। उचारिअत्थसदिसाण कित्तणं सेसगाणंपि ॥२३० ॥ दर्ष सत्थग्गिविसं नेहंबिलखारलोणमाईयं । भावो उ दुप्पउत्तो वाया काओ अविरई अ॥२३१॥ किंची सकायसत्वं किंची परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दवसत्थं भावे अस्संजमो सत्य ॥२३२॥ पीए जोणिभूए जीवो बुकमइ सोय असो वा। जोऽपि य मूले जीवो सोऽवि य पत्ते पटमयाए॥२३३॥ विद्धस्थाऽविद्वत्था जोणी जीवाण होइ नाया। तत्थ अविइत्याए बुकमई सो य असोया ॥५८॥ जो पुण मूले जीवो सो निवत्तेइ जा पढमपत्तं । कंदाइ जाच पीयं सेसं अन्ने पकुव्वंति ॥ ५९॥ सेसं सुत्तफासं काए काए अहकर्म ध्या। अज्झयणस्था पंच य एगरणपयवंजणविसुद्धा ॥६०॥ (भाष्यम्) सीयालं भंगसयं पचक्खाणंमि जस्स उबलदं । सो खलु पञ्चक्खाणे कुसलो सेसा अकुसला उ॥१॥(प.) जीवाजीवाभिगमो आयारी चेव धम्मपनत्नी। तत्तो चरितधम्मो चरणे धम्मे अ एगट्ठा॥२३४ ॥ इइ छज्जीवणियाज्झयणं ४॥मूलगुणा वक्खाया उत्तरगुणअवसरेण आयायं । पिंडज्झयणमियाणि निक्सेचे नामनिष्फळे ॥६१॥ (भाष्यम)। पिंडो अ एसणा य दुपयं नामं तु तस्स नायव । चाउचाउनिक्खेवेहि परुवणा तस्स कायना ॥२३५॥ नामंठवणापिंडो दवे भावे अ होइ नायवो। गुडओयणाइ दवे भावे कोहाइया पाउरो ॥२३६॥ पिडि संघाए जम्दा ते उइया संघया | य संसारे। संघाययंति जीवं कम्मेणऽट्ठपगारेण ॥२३७॥ दवेसणा उ तिविहा सचित्ताचित्तमीसदशाणं । दुपयचउप्पयअपया नरगयकरिसावणदुमाणं ॥२३८भावेसणा उ दुविदा पसत्य अपसत्थगा य नाया। नाणाईण पसत्था अपसस्था कोइमाईणं ॥ २३९ ॥ भावस्सुवगारित्ता एत्यं दधेसणाइ अहिगारो। तीइ पुण अत्यजुत्ती वत्तवा पिंडनिजुत्ती ॥२४०॥ पिण्डेसणा य सबा संखेवेणोयरइ नवसु कोडीसु। न हणेइ न पयइ न किणइ कारावणअणुमईदिनव ॥२४१॥ सा नवहा दुह कीरइ उम्गमकोडी विसोहिकोडी आछसु पढमा ओयरह कीयतियम्मी विसोही उ॥२४२॥ कोडीकरणं दुविहं उम्गमकोडी विमोहिकोडी अ। उग्गमकोडी छकं विसोहिकोडी अणेगविहा॥६२॥ (भाष्यम् ) कम्मदेसिअचरमतिग पूइयं मीस चरिमपाहुडिआ। अज्झोयर अविसोही विसोहिकोडी भवे सेसा ॥ २४३ ॥ नव चेवट्टारमगा सत्तावीसा तहेब चउपना । नउई दो चेव सया सत्तरिया हुंति कोडीणं ॥ २४४ ॥ रागाई मिच्छाई रागाई समणधम्म नाणाई । नव नव सत्तावीसा नव नउईए य गुणगारा ॥ २४५॥ इद पिंडेसणाज्झयणं ५ ॥ जो पुषि उदिट्टो आयारो सो अहीणमहरित्तो । सचेव य होइ कहा आयारकहाएँ महईए ॥२४६॥ धम्मो बावीसविहो अगारधम्मोऽणगारधम्मो अ। पढमो अवारसविहो दसहा पण पीयओ होइ ॥ २४७ ॥ पंच य FA अणुष्वयाई गुणवयाई च होति तिन्नेव । सिक्खापयाई चाउरो गिहिधम्मो बारसविदो अ॥२४८॥खंती अमहवऽजब मुत्ति तव संजमे अबोवे। सचं सोयं आकिंचणं च बंभं च जधम्मो ॥२४५॥ धम्मो दिएसुवइट्ठो अत्यस्स चउचिहो उ निक्खेवो। ओहेण छविहऽत्यो चउसद्दिविहो विभागेणं ॥२५०॥ धन्नाणि रयण थावर दुपय चउप्पय तहेव कुविअं च । ओहेण उविहऽत्यो एसो धीरेहिं पन्नत्तो॥२५१॥ चवीसा चउवीसा लिग दुग दसहा अणेगविह एव । सवेसिपि इमेसि विभागमहयं पवक्खामि ॥२५२॥ धन्नाई चउवीसं जव? गोहुम२ सालि३ वीहि४ सट्ठी अ५। कोदव६ अणुया ७ कंगूट गलगः निल १० १३६८३६१-श्री दर्शवकालिकनियुक्ति मुनि दीपरतसागर Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुग्ग११ मासा१२ य ॥ २५३ ॥ अयसि१३ हरिमन्ध१४ तिउडग१५ निष्फाव१६ सिलिंद१७ रायमासा१८ य । इक्खू१९ मसूर२० तुवरी२१ कुलत्थ२२ तह धनग२३ कलाया२४ ॥ २५४ ॥ रयणाणि चवीसं सुवण्णतउतपरययलोहाई । सीसगहिरण्णपासाणवइरमणिमोत्तिअपवालं ॥ २५५ ॥ संखो तिणिसागुरुचंदणाणि वत्थामिलाणि कट्ठाणि । तह चम्मदंतवाला गंधा दबोसहाई च ॥ २५६ ॥ भूमी घरा य तस्मण तिविहं पुण थावर मुणे । चकारवडमाणुस दुविहं पुण होई' दुपयं तु ॥२५७॥ गावी महिसी उट्ठा (हा) अयएलगआसआसतरगा अ। घोडग गदह हत्थी चउप्पर्य होइ दसहा उ ॥२५८॥ नाणाबिहोवगरणं णेगविदं कुष्पलक्खणं दोह। एसो अत्यो भणिओ छविह चउसट्टिमेओ उ॥ २५९ ॥ कामो चउवीसविहो संपत्तो खल तहा असंपत्तो। संपत्तो चउदसहा दसहा पुण होजसंपत्तो॥२६० ॥ तत्य असंपत्तो अत्य१ चिंतारतह सद३ संसरणमेव४। विकवय५ लजनासो६ पमाय ७ उम्माय८ तम्भावो९॥२६शामरणं१० च होई दसमो संपत्तंपिअ समासओ वोच्छं। दिट्ठीए संपाओ दिट्टीसेवा य१ संभासोर ॥२६२॥ हसिअ३ ललिअ४ उवगदिअ दंत नहनिवायचंचणंद होइ। आलिंगण९ मायाणं१० कर११ सेवण १२ संग१३ किवा१४ अ॥२६३ ॥ धम्मो अत्यो कामो तिते पिडिया पडिसवना । जिणवयणं उत्तिन्ना असवत्ता होंति नायबा ॥२६४ ॥ जिणवयणमि परिणए अवत्थविहिआणुठाणओ धम्मो । सच्छासयप्पयोगा अत्यो वीसंभओ कामो ॥ २६५ ॥ धम्मस्स फलं मोक्सो सासयमउलं सिर्व अणाचाहं। तमभिप्पेया साहू तम्हा धम्मत्थकामत्ति ॥ २६६ ॥ परलोग मुत्तिमग्गो नत्थि हु मोक्खोत्ति चिंति अविहिनू । सो अस्थि अवितहो जिणमयंमि पवरो न अन्नत्थ॥ २६७॥अट्ठारस ठाणाई आयारकहाएं जाई भणियाई। तेसिं अनतरागं सेवंतुन होइ सो समणो॥२६८॥ वयछकं कायछकं, अकप्पो गिहिभायण। पलियंक निसेजा य, सिणाणं सोहवजणं ॥२६९॥ इइ धम्मस्थकामज्झयणं ६॥ निस्खेवो अ (उ) चउको बके दवं तु भासदचाई। भाव भासासदो तस्स य एगट्ठिया इणमो ॥२७०॥ वकं वयणं च गिरा सरस्सई भारही अगोवाणी। भासा पन्नवणी देसणी अ वयजोग जोगे अ॥२७१॥ दवे तिविहा अगहणे अ निसिरणे तह भवे पराघाए । भावे दवे अ सुए चरित्तमाराहणी चेव ॥२७२ ॥ आराहणी उ दवे सच्चा मोसा विराहणा होइ । सच्चामोसा मीसा असचमोसा य पडिसेहा ॥ २७३ ॥ जणवय सम्मय ठवणा नामे स्वे पडुबसचे अ । ववहार भाव जोगे इसमे ओवम्मसच्चे अ॥२७४ ॥ कोहे माणे माया लोभे पेने तहेव दोसे अ। हास भये अक्खाइय उवघाए निस्सिआ दसमा॥२७५॥ उप्पन्नविगयमीसग जीवमजीवे अ जीवाजीये। तहणतमीसगा खल परित्त अद्धा य अबदा ॥ २७६ ॥ आमंतणि आणवणी जायणि तद्द पुच्छणी अ पनवणी । पञ्चक्खाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा अ॥ २७७ ॥ अणभिग्गहिआ भासा भासा अ अभिग्गहंमि बोदवा । संसयकरणी भासा वायड अवायडा चेव ॥२७८॥ सवावि असा दुविहा पज्जत्ता खलु तहा अपजत्ता। पढमा दो पजत्ता उवरिष्ठा दो अपजत्ता ॥२७९॥ सुअधम्मे पुण तिविहा सचा मोसा असचमोसा अ। सम्मदिट्टी उ सुओवउत्तु सो भासई सचं ॥२८० ॥ सम्मदिट्टी उ सुअंमि अणुवउत्तो अहेउगं चेव । जं भासइ सा मोसा मिच्छादिट्ठीवि अ तहेव ॥२८१॥ हबद उ असचमोसा सुअंमि उपण्डिए तिनाणमि । जं उवउत्तो भासइ एत्तो वोच्छं चरित्तम्मि ॥२८२॥ पढमविइआ चरित्ते भासा दो चेव होंति नायवा । सचरित्तस्स उ भासा सचा मोसा उइयरस्स ॥२८३॥ णामंठवणासुद्धी दशसुद्धी अभावसुद्दी अ। एएसि पत्तेअंपावणा होइ कायचा ॥२८४॥ तिविहा उदवसुदी तबादेसओ पहाणे अ। तदवगमाएसो अणण्णमीसा हवइ सुद्धी ॥२८५॥ वण्णरसगंधफासे समणण्णा सा पहाणओ सुद्धी तत्व उसुकिल महरा उसमया चेव उकोसा ॥२८६॥ एमवभावसुद्धी तब्भावाएसओ पहाणे अतिब्भावगमाएसो अणण्णमीसा हवइ सुद्धी ॥२८७॥दसणनाणचरित्ते तवोबिसुजी पहाणमाएसो। जम्हा उ विसुदमलो तेण विसुद्धो हवइ सुदो ॥२८८॥ जं वकं वयमाणस्स संजमो सुज्झई न पुण हिंसा । न य अत्तकलसभावो तेण इदं वकसुदित्ति ॥२८९॥ बयणविभतीकुसलस्स संजमंमी समुजुयमइस्स। दुभासिएण हुजा हु विराहणा तत्थ जइअव्वं ॥२९०॥ वयणविभत्तिअकुसलो वओगयं बहुविहं अयाणतो। जइविन भासइ किंची न चेव ययगुत्तयं पत्तो ॥२९॥ वयणविभत्नीकुसलो वओगयं बहुविहं वियाणंतो। दिवसंपि भासमाणो तहावि वयगुत्तयं पत्तो॥२९२॥ पुर्व बुद्धीइ पेहिता, पच्छा वयमुयाहरे। अक्सुओ व नेतारं, बुद्धिमन्नेउ ते गिरा ॥ २९३॥ इइ सबकसुदीअज्झयणं ७॥ जो पुचिं उदिडो आयारो सो अहीणमइरित्तो। दुविहो अहोइ पणिही दवे भावे जनायब्बो॥२९४॥ दब्बे निहाणमाई मायपउत्ताणि चेव दब्बाणि। भाबिंदिअनोइंदिअ दुविहो उ पसत्य अपसत्यो॥२९५॥ सदेसु अरुवेस अ गंधेसु रसेसु तह य फासेसु । नवि रजइ नवि दुस्सइ एसा खलु इंदिअपणिही ॥२९६ ॥ सोइंदिअरस्सीहि उ मुक्काहिं सद्दमुच्छिओ जीयो । आइअइ अणाउनो सहगुणसमुट्टिए दोसे ॥२९॥ जह एसो सहेसुं एसेव कमो उ सेसएहिपि। चउहिपि इंदिएहिं रूचे गंधे रसे फासे ॥२९८॥ जस्स खलु दुष्पणिदिआणि इंदिआई तवं चरंतस्स।सो हीरइ असहीणेहिं सारही वा तुरंगहि ॥२९९॥ कोहं माणं मायं लोहं च महब्भयाणि चत्तारि । जो ऊंभइ सुद्धपा एसो नोइंदिअपणिही ॥३०॥ जस्सविज दुप्पणिहिआ हॉति कसाया तवं चरंतस्म । सो चालतवस्मीविय गयण्डाणपरिस्ममं कुणइ ॥३०१॥ सामन्नमणुचरंतस्स कसाया जस्स उकडा होति । मन्नामि उच्छुफरलं व निष्फलं तस्स सामन्नं ॥३०२॥ एसो दुविहो पणिही सुद्धो जइ दोसु तस्स तेसि च । एत्तो पसत्यमपमस्थ लवणमज्झत्थनिष्फन्नं ॥३०॥ मायागारवसहिओ इंदियनाईदिएहि अपसत्थो। धम्मत्था अ पसत्थो इंदियनोइंदियपणिही ॥३०४॥ अट्ठविहं कम्मरयं बंधइ अपसत्यपणिहिमाउत्तो। तं चेव खयेह पुणो पसन्धपणिही समाउत्तो ॥३०५॥ दंसणनाणचरित्ताणि संजमो तस्स साहणडाए । पणिही पउंजियचो अणायणाई च वजाइं ॥३०६॥ दुष्पणिहिअजोगी पुण लंछिज्जइ संजमं अयाणतो । बीसत्यनिसटुंगोव्य कंटहाड़े जह ९३६९२७ श्रीदर्शवकालिक नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडतो ॥३०७॥ सुप्पणिहिअजोगी पुण न लिप्पई पुव्वभणिअदोसेहिं। निहाइअकम्माई सुक्कतणाई जहा अग्गी ॥३०८॥ तम्हा उ अप्पसत्यं पणिहाणं उज्झिऊण समणेणं । पणिहाणमि पसत्थे भणिओ आयारपणिहित्ति ॥ ३०९॥ इद आयारपणिहीअज्झयणं ८॥ विणयस्स समाहीए निक्खेवो होइ दोहवि चउको । दवविणयंमि तिणिसो सुवणमिवेवमाईणि ॥ ३१०॥ लोगोवयारविणओ अत्यनिमित्तं च कामहेउंचाभयविणय मुक्सविणो विणओ खलु पंचहा होइ॥३११ ॥ अब्भुट्ठाणं अंजलि आसणदाणं अतिहिपूआ य । लोगोवयारविणओ देवयपूआ य विहवेणं ॥ ३१२॥ अम्भासवित्तिछंदाणुवत्तणं देसकालदाणं च। अम्भुट्टाणं अंजलि आसणदाणं च अत्थकए॥३१३॥ एमेव कामविणओ भए अनेअवमाणुपुबीए । मोक्खंमिऽवि पंचविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥३१४॥ दंसणनाणचरित्ते तवे अ तह ओवयारिए चेव । एसो अ मोक्खविणओ पंचविदो होइ नायचो॥३१५॥ दब्वाण सवभावा उवइट्ठा जे जहा जिणवरेहिं । ते तह सद्दहइ नरो दसणविणओ हवइ तम्हा ॥ ३१६॥ नाणं सिक्खइ नाणं गुणेइ नाणेण कणइ किच्चाई। नाणी नवं न बंधइ नाणविणीओ हवइ तम्हा ॥३१७॥ अट्टविहं कम्मचर्य जम्हा रित्तं करेइ जयमाणो। नवमन्नं च न बंधइ चरित्तविणओ हवइ तम्हा ॥ ३१८ ॥ अवणेइ तवेण तमं उवणेइ अ सम्गमोक्खमप्पाणं । तवविणयनिच्छियमई तवोविणीओ हवइ तम्हा ॥ ३१९॥ अह ओवयारिओ पुण दुविहो विणओ समासओ होइ । पडिरूवजोगजुंजण तह य अणासायणाविणओ॥३२०॥ पडिरूवो खलू विणओ काइअजोए य वाइ माणसिओ। अट्ट चउविह दुविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥३२१॥ अम्भुट्टाणं अंजलि आसणदाणं अभिग्गह किई अ।सुस्सूसणमणुगच्छण संसाबण काय अट्ट. विहो ॥३२२॥ हिअमिअअफरुसवाई अणुवीईभासि वाइओ विणओ। अकुसलचित्तनिरोहो कुसलमणउदीरणा चेव ॥३२३॥ पडिरूवो खलु विणओ पराणुअत्तिमइओ मुणेअब्बो। अप्पडिरूवो विणओ नायवो केवलीणं तु ॥ ३२४ ॥ एसो भे परिकहिओ विणओ पडिरूवलक्षणो तिविहो। बावन्नविहिविहाणं ति अणासायणाविणयं ॥ ३२५ ॥ तित्थगर सिद्ध कुल गण संघ किया धम्म नाण नाणीण। आयरिज थेर ओज्झा गणीणं तेरस पयाणि ॥ ३२६ ॥ अणसायणा य भत्ती बहुमाणो तहय वनसंजलणा। तित्थगराई तेरस चउम्गुणा होति चावना ॥ ३२७॥ वर्ष जेण व दवेण समाही आहियं च जं दवं । भावसमाहि चउबिह दसणनाणे तवचरित्ते ॥ ३२८॥ इइ विणयसमाहीअज्झयणं ९॥ नामंठवणसयारो दवे भावे अहोइ नायबो । दवे पसंसमाई भावे जीवो तदुवउत्तो ॥ ३२९ ॥ निदेसपसंसाए अत्थीभावे अ होइ उ सगारो । निद्देसपसंसाए अहिगारो इत्थ अज्झयणे ॥३३०॥ जे भावा दसवेआलिअम्मि करणिज वण्णि जिणेहिं । तेसिं समावणमिति (मी)जो भिक्यू भनाइ स भिक्खू ॥३३१॥ चरगमरुगाइआणं भिक्षु. जीवीण काउणमपोहं । अज्झयणगुणनिउत्तो होइ पसंसाइ उ समिक्खू ॥ ३३२ ॥ भिक्खुस्स य निक्खेवो निरुत्त एगडिआणि लिंगाणि । अगुणडिओ न भिक्खू अवयवा पंच दाराई ॥ ३३३॥ णामंठवणाभिक्ख दभिक्ख अभावभिक्खू अ । दव्यम्मि आगमाई अनोऽपि अ पजयो इणमो ॥३३४॥ भेअओ भेअणं चेव, भिदि तहेच य। एएसि तिण्डंपिअ पत्तेयपरुवणं वोच्छ ॥३३५॥ जह दारुकम्मगारो | भेअणभित्तासंजओ भिक्ख । अग्रेऽपि दवभिक्खू जे जायणगा अविरया अ॥३३६॥ गिहिणोऽवि सयारंभग उजपनं जणं विमगंता । जीवणिज दीणकिविणा ते विजा दाभिक्सति ॥ ३३७॥ मिच्छहिट्टी तसथावराण पुढवाइपिदिआईणं । निचं वहकरणरया अभयारी अ संचइआ॥ ३३८॥ दुपयचउप्पयधणधनकुवियतिअतिअपरिग्गहे निरया। सचित्तभोइ पयमाणगा अ उदिडभोई अ॥३३९॥ करणतिए जोअतिए सावज्जे आयहेउपरउभए। अट्ठाणगुपपत्ते ते विजा दबभिक्खुत्ति ॥ ३४०॥ इत्थीपरिम्गहाओ आणादाणाइभावसंगाओ। सुखतवाभावाओ कुतिस्थिआऽभचारिति ॥ ३४१॥ आगमतो उवउत्तो तरगुणसंवेजओ अ (उ) भावंमि । तस्स निरुतं भेजगभेअणभेत्तत्रएण तिहा ॥३४२॥ भेत्ताऽऽगमोवउत्तो दुविहतवो भेअणं च भेत्त । अट्ठविदं कम्मखुदं तेण निरुतं सभिक्खुत्ति ॥३४३॥ भिदंतो अजह सुहं भिक्खू जयमाणओ जई होइ । संजमचरओ चरओ भवं खिवंतो भवंतो उ ॥ ३४४ ॥ जं भिक्खमत्तवित्ती तेण व भिक्खू खवेइ जं व अणं । तवसंजमे तवस्सित्ति वापि अनोऽवि पज्जाओ॥३४५॥ तिने ताई दविए वई असंते अदंत विरए अ। मुणि तावस पनवगुजु भिक्खू बुद्दे जइ विऊ अ॥३४६॥ पब्वाइए अणगारे पासंडी चरग बंभणे चेव । परिवायगे असमणे निरगंथे संजए मुत्ते ॥ ३४७॥साहू लूहे अतहा तीरट्टी होइ चेव नायत्रो। नामाणि एवमाईणि हॉति तवसंजमरयाणं ॥३४८॥ संवेगो निवेओ विसयविवेगो सुसीलसंसग्यो। आराहणा तवो नाणदंसणचरित्तविणओ अ॥३४९॥ खंती अमहवऽजव विमत्तया तह अदीणय तितिक्खा। आवस्सगपरिसुदी अ होति भिक्खुस्स लिंगाई॥३५०॥ अज्झयणगुणी भिक्खू न सेस इइ णो पइन को हेऊ । अगुणत्ता इइ हेऊ को दिटुंतो? सुवण्णमिव ॥ ३५१॥ विसघाइ रसायण मंगलत्थ चिणिए पयाहिणावते । गुरुए अडज्मऽकुत्थे अट्ट सुवण्णे गुणा भणिआ॥३५२॥ चउकारणपरिसुद्धं कसछेअणतावतालणाए अ। जं तं विसघाइरसायणाइगुणसंजुअं होइ ॥३५३॥ तं कसिणगुणोवेनं होइ सुवणं न सेसयं जुत्ती।नहि नामरूवमेत्तेण एवमगुणो हवइ भिक्खू ॥३५४॥ जुत्तीसुवण्णगं पुण सुवण्णवणं तु जइवि कीरिजा।न हु दोइ तं सुवणं सेसेहि गुणेहिंऽसंतहि ॥३५५॥ जे अज्झयणे भणिआ मिक्सुगुणा तेहि होइ सो मिक्स् । चण्णेण जवसुवण्णगं व संते गुणनिहिंमि॥३५६॥ जो मिक्खू गुणरहिओ भिक्खं गिव्हइ न होइ सो भिक्खू । वण्णेण जुत्तिसुवण्णगं व असई गुणनिहिम्मि ॥३५७॥ उदिवकर्य भुंजइ उकायपमंदओ परं कुणइ । पचक्खं च जलगए जो पियइ कह नु सो भिक्खू ? ॥३५८॥ तम्हा जे अजायणे मिक्सुगुणा तेहि होइ सो भिक्खू । तेहि असउत्तरगणेहि होइ सो भाविअतरो उ ॥ ३५९॥ इइ सभिक्खूअज्झयणं १० ॥ दव्वे खेत्ते काले भावम्मि अ चूलिआय निक्खेवो । तं पुण उत्तरतंतं सुअगदिअत्थं तु संगहणी॥३६० ॥ दवे सञ्चित्ताई कुकुडचूडामणीमऊ३ श्रीदशवकालिक नियुक्ति मुनि दीपरनसागर ९३901 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राई / खेतमि लोगनिकुड मंदरचूडा अ कृडाई // 361 // अइरित्त अहिगमासा अहिगा संवच्छरा अ कालंमि / भावे खओवसमिए इमा उ चूडा मुणेअत्रा // 362 // दब्वे दुहा उ कम्मे नोकम्मरई अ महदवाई। 18| भावरई नस्सेब उ उदए एमेव अरईवि॥ 363 // चकं तु पुष्वभणि धम्मे रइकारगाणि वक्काणि / जेणमिमीए तेणं रइक्कसा हवइ चूडा // 364 // जह नाम आउरस्सिह सीवणारेजेसु कीरमाणेसु। जंतणमपत्थकुच्छाऽऽमदोसविरई हिअकरी उ॥३६५॥ अट्टविहकम्मरोगाउरस्स जीअस्स तह तिगिच्छाए। धम्मे रई अधम्मे अरई गुणकारिणी होइ // 366 // सज्झायसंजमतवे वेयावच्चे अ झाणजांगे / जो रमइ नो रमइ अस्संजमम्मि सो वचई सिद्धिं // 367 // तम्हा धम्मे रइकारगाणि अरइकारगाणि उ (य) अहम्मे / ठाणाणि ताणि जाणे जाई भणिआई अज्झयणे // 368 // 01 // अहिगारो पवना चउविहो पिइअलिअज्झयणे। सेसाणं दाराणं अहक्कम फासणा होइ // 63 // (भाष्यम्) दब्वे सरीर भविओ भावेण य संजओ इहं तस्स / उम्गहिआ पग्गहिआ विहारचरिआ मुणेअव्वा // 369 // अणिएवं पहरिकं अण्णायं सामुआणि उंछं। अप्पोवही अकलहो विद्दारचरिया इसिपसत्था // 370 // छहिं मासेहिं अहीअं अज्झयणमिणं तु अजमणगेणं / उम्मासा परिआओ अह कालगओ समाहीए // 371 // आणंदर्भसुपायं कासी सिजंभवा तहिं थेरा। जसभहस्स य पृच्छा कहणा अ विजालणा संघ।।३७२।। इति दशवैकालिकनियुक्तिः श्रीभद्रबाहुस्वामिभिः कृता समाता // श्रीसिद्धक्षेत्रीयश्रीवर्धमानजैनागममंदिर रनमायानामियमादायकारिता शोधिता च तपोगच्छीयाचार्यानन्दसागरेण // श्रीवीरस्य संवत् 2467 आषाढकृष्णकादश्यां शनिवासरे। मुनि दीपरत्नसागर