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उ फुडा सुत्तष्फासे उ इयमन्ना ॥ ४ ॥ (भाष्यम्) जह भमरोत्ति य एत्थं दिडंतो होइ आहरणदेसे। चंदमुहि दारिगेयं सोमत्तऽवहारण ण सेसं ॥ ९७ ॥ एवं भमराहरणे अणिययवित्तित्तणं न सेसाणं । गहणं | दिट्टंतविसुद्धि सुत्तभणिया इमा वन्ना ॥ ९८ ॥ एत्थ य भणिज्ज कोई समणाणं कीरए सुविहियाणं । पागोवजीविणोत्ति य लिप्यंवारं भदोसेणं ॥ ९९ ॥ बासइ न तणस्स कए न तणं वडूइ कए मयकुलाणं । न य रुक्खा सयसाला कुन्ति कए महुयराणं ॥ १०० ॥ अग्मिम्मि हवी हूयइ आइचो तेण पीणिओ संतो। वरिसइ पयाहियाए तेणोसहिओ परोहति ॥ १०१ ॥ किं दुम्भिक्खं जायई जइ एवं? अह भवे दुरिहं तु । किं जायइ सव्वत्था दुब्मिक्खं अह भवे इंदो१ ॥ १०२ ॥ वासइ तो किं विग्धं निग्धायाईहिं जायए तस्स ? अह वासइ उउसमए न वासई तो तणट्टाए ॥१०३॥ किंच दुमा पुण्कंति भ्रमराणं कारणा अहासमयं । मा भमरमहुयरिगणा किलामएजा अणाहारा ॥ १०४॥ कस्सइ बुद्धी एसा वित्ती उवकप्पिआ पयावइणा। सत्ताणं तेण दुमा पुष्पंति महुयरिगणट्टा ॥ १०५ ॥ तं न भवइ जेण दुमा नामागोयस्स
विहियस्स । उदरणं पुप्फफलं निवत्तयंति इमं चनं ॥ १०६ ॥ अस्थि बहू वणखंडा भमरा जत्थ न उर्वेति न वसंति । तत्थऽवि पुष्पंति दुमा पगई एसा दुमगणाणं ॥ १०७ ॥ जइ पगई कीस पुणो सव्वं कालं न देति पुष्फफलं। जं काले पुष्फफलं दयंति ? गुरुराह अत एव ॥ १०८ ॥ पगई एस दुमाणं जं उउसमयम्मि आगए संते। पुण्कंति पायवगणा फलं च कालेण बंधति ॥ १०९ ॥ किंनु गिदी रंधंति समणाणं कारणा अहासमयं । मा समणा भगवंतो किलामएजा अणाहारा ॥ ११० ॥ समणऽणुकंपनिमित्तं पुष्णनिमित्तं च गिहनिवासी उ। कोइ भणिजा पागं करेंति सो भण्णइ न जम्हा ॥ १११ ॥ कंतारे दुब्भिक्रखे आयंके वा महइ समुप्पन्ने। रतिं समणसुविहिया सव्वाहारं न भुंजंति ॥ ११२ ॥ अह कीस पुण गिहत्वा रत्ति आयरतरेण रंधति । समणेहिं सुविहिएहिं चउव्विहाहारविरएहिं ? ॥ ११३ ॥ अस्थि बहुगामनगरा समणा जत्थ न उर्वेति न वसंति। तत्थवि रंधंति गिही पगई एसा गिहत्थाणं ॥ ११४ ॥ पगई एस गिद्दिणो जं गिहिणो गामनगरनिगमेसुं । रंधति अप्पणो परियणस्स कालेण अट्टाए । ११५ ॥ तत्थ समणा तवस्सी परकडपरनिट्टियं विगयधूमं । आहारं एसंती जोगाणं साहणट्टाए ॥ ११६ ॥ नवकोडीपरिसुद्धं उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं छट्टाणरक्खणट्टा अहिंसअणुपालणट्टाए ॥१॥ ( प्रक्षिमा ) दितसुद्धि एसा उवसंहारो य सुत्तनिधिट्टो । संती विज्जतित्ति य संतिं सिद्धिं च (व) साहेति ॥११७॥ धारेइ तं तु दव्यं तं दव्वविहंगमं वियाणाहि । भावे विहंगमो पुण गुणसन्नासिद्धिओ दुविहो ॥११८॥ विहमागासं भण्णइ गुणसिद्धी तप्पइडिओ लोगो । तेण उ विहंगमो सो भावत्थो वा गई दुविहा ॥ ११९ ॥ भावगई कम्मगई भावगई पप्प अत्थिकाया उ । सव्वे विहंगमा खलु कम्मगईए इमे भेया ॥ १२० ॥ गिगई चलणगई कम्मगई उ समासओ दुविहा । तदुदयवेययजीवा विहंगमा पप्प विहगगई ॥ १२१ ॥ चलणं कम्मगई खलु पहुच संसारिणो भवे जीवा पोग्गलदब्बाई वा विहंगमा एस गुणसिद्धी ॥ १२२ ॥ सन्नासिद्धिं पप्पा विहंगमा होति पक्खिणो सव्वे । इहई पुण अहिगारो विहासगमणेहिं भमरेहिं ॥ १२३ ॥ दाणेत्ति दत्तगिण्हण भत्ते भज सेव फासुगेण्हणया। एसणतिगंमि निरया उवसंहारस्स सुद्धि इमा ॥ १२४ ॥ अवि भमरमहुय - रिगणा अविदिन्न आवियंति कुसुमरसं । समणा पुण भगवन्तो नादिनं भोत्तुमिच्छति ॥ १२५॥ अस्संजएहिं भ्रमरेहिं जइ समा संजया खलु भवंति। एवं उवमं किम्चा नूणं अस्संजया समणा ॥ १२६ ॥ उवमा खलु एस कया पुव्वृत्ता देसलक्खणोवणया । अणिययवित्तिनिमित्तं अहिंसअणुपालणट्टाए ॥ १२७ ॥ जह दुमगणा उ तह नगरजणवया पयणपायणसहावा । जह भमरा तह मुणिणो नवरि अदत्तं न भुजति ॥ १२८ ॥ कुसुमे सहावफुले आहारंति भमरा जह तहा उ । भत्तं सहावसिद्धं समणसुविहिया गवेति ॥ १२९ ॥ उपसंहारो भमरा जह तद् समणावि अवहजीवित्ति दंतत्ति पुण पर्यमि नायव्वं वक्कसेसमिणं ॥ १३० ॥ जह इत्थ चैव इरियाइएस सव्वंमि दिक्खियपयारे। तसथावरभूयहियं जयंति सम्भावियं साहू ॥ १३१ ॥ उवसंहारविमुद्धी एस समत्ता उ निगमणं तेणं । वृचंति साहृणोत्ति य जेणं ते महयरसमाणा ॥१३२॥ तम्हा दयाइगुणसुट्टिएहिं भमरोव्व अवहवित्तीहिं। साहूहिं साहिउत्ति य उकिटं मंगलं धम्मो ॥ १३३ ॥ निगमणसुद्धी तित्यंतरावि धम्मत्थमुजया विहरे। भण्णइ कायाणं ते जयणं न मुणंति न करेंति ॥ १३४॥ न ये उग्गमाइसुद्धं मुंजंति महयरा वऽणुवरोहिं नेव य तिगुत्तिगुत्ता जह साहू निचकालंपि ॥ १३५ ॥ कार्य वायं च मणं च इंदियाई च पंच दमयंति धारैति बंभचेरं संजमयंती कसाए य ॥ १३६ ॥ जं च तवे उज्जुत्ता तेसिं साहुलक्खणं पुण्णं । तो साहुणोति भण्णति साहवो निगमणं चेयं ॥१३७॥ ते उ पद्म विभत्ती हेउ विभत्ती विवक्ख पडिसेहो। दिट्टंतो आसंका तप्पडिसेहो निगमणं च ॥ १३८ ॥ धम्मो मंगलमुकिहंति पन्ना अत्तवयणनिद्देसो । सो य इहेव जिणमये नन्नत्थ पद्मपविभत्ती ॥१३९॥ सुरपूइओत्ति हेऊ धम्मट्ठाणे ठिया उ जं परमे। हेउविभक्त्ती निरुवद्दि जियाण अवहेण य जयंति ॥ १४० ॥ जिणचयणपट्ठेऽवि हु ससुराईए अधम्मदणोऽवि मंगलबुद्धीइ जणो पणमइ आईदुयविवक्खो ॥ १४१ ॥ विइयदुयस्स विवक्खो सुरेहि" पुजति जण्णजाईवि । बुद्धाईवि सुरणया वृचन्ते णायपडिवक्खो ॥ १४२ ॥ एवं तु अवयवाणं चउण्ड पडिवक्खु पंचमोऽवयवो। एतो छट्टोऽवयवो विवक्खपडिसेह तं वोच्छं ॥ १४३ ॥ सायं संमत्त पुमं हासं रद्द आउनामगोअसुदं । धम्मफलं आइदुगे विवक्सपडिसेह मो एसो ॥ १४४ ॥ अजिइंदिय सोवहिया वहगा जइ तेऽवि नाम पुजंति । अग्गीवि होज सीओ हेउविभत्तीण पडिसेहो ॥ १४५ ॥ बुद्धाई उपयारे प्याठाणं जिणा उ सम्भावं । दिते पडिसेहो उट्ठो एसो अवयवो उ ।। १४६ ।। अरिहंतमग्गगामी दिहंतो साहुणोऽवि समचित्ता । पागरएस गिहीसु एसंते अवहमाणा उ ॥ १४७ ॥ तत्थ भवे आसंका उद्दिस्स जइवि कीरए पागो। तेण व विसमं नायं वासतणा तस्स पडिसेद्दे ॥ १४८ ॥ तम्हा उ सुरनराणं पुजत्ता मंगलं सया धम्मो दसमो एस अवयवो पइनहेऊ पुणोवयणं ॥ १४९ ॥ णायंमि गिव्हियन्वे अगिण्डियव्वंमि चेव अत्यंमि जइयव्वमेव इइ जो उचएसो सो नओ नाम ॥ १५० ॥ १३६६ श्री दशवेकालिक नियुक्ति
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मुनि दीपरत्नसागर