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सव्वेसिंपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामेत्ता । तं सव्वनयवियुद्धं जं चरणगुणडिओ साहू ॥ १५१ ॥ दुमपुष्पियनिज्जत्ती समासओ वण्णिया विभासाए। जिणचउदसपुच्ची वित्थरेण कइयंति से अहं ॥ १५२ ॥ दुमपुष्पियनिज्जत्ती संमत्ता १ ॥ सामन्नपुव्वगस्स उ निक्खेयो होइ नामनिष्फण्णे । सामण्णस्स चउको तेरसगो पुव्वयस्स भवे ॥ १५३ ॥ समणस्स उ निक्खेवो चउकओ छोइ आणुपुब्बीए । दब्बे सरीभविओ भावेण उ संजओ समणो ॥ १५४ ॥ जह मम न पियं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । न हणइ न इणावेइ य सममणई तेण सो समणो ॥ १५५ ॥ नत्थि य सि कोइ वेसो पियो व सव्र्व्वसु चैव जीवेसु। एएण होइ समणो एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ॥ १५६ ॥ तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ न होइ पावमणो। सयणे य जणे य समो समो य माणावमाणेसु ॥ १५७ ॥ उरगगिरिजलणसागरनहयलतरुगणसमो य जो होइ । भमरमिगधरणिजलरुहरविपत्रणसमो जओ समणो ॥ १५८ ॥ विसतिणिसवायवंजुलकणियारुप्पलसमेण समणेणं । भ्रमरुंदुरुन डकुकुडअद्दागसमेण होयव्वं ॥ १ ॥ ( प्रक्षिप्ता ) पव्वइए अणगारे पासंडे चरग तात्रसे भिक्खु । परिवाइए य समणे निग्गंथे संजए मुत्ते ॥ १५९ ॥ तिने ताई दविए मुणी य खंते य दन्त विरए य। लूहे तीरहेऽविय हवंति समणस्स नामाई ॥ १६० ॥ णामं ठवणा दविए खेत्ते काल दिसि तावखेत्ते य। पद्मवग पुव्व वत्थू पाहुड अइपाहुडे भावे ॥ १६१ ॥ नामंठवणाकामा दव्यकामा य भावकामा य। एसो खलु कामाणं निक्खेवो चउविहो होइ ॥ १६२ ॥ सदरस रुवगंधा फासा उदयंकरा य जे दव्वा दुविहा य भावकामा इच्छाकामा मयणकामा ॥ १६३ ॥ इच्छा पसत्थअपसत्थिगा य मयणंमि वेयउवओगो। तेहऽहिगारो तस्स उ वयंति धीरा निरुत्तमिणं ॥ १६४॥ विमयसुहेसु पसतं अनुजणं कामरागपडिवद्धं । उक्कामयंति जीवं धम्माओ तेण ते कामा ॥ १६५ ॥ अनंपिय से नामं कामा रोगत्ति पंडिया विंति कामे पत्येमाणो रोगे पत्थेइ खलु जंतू ॥ १६६ ॥ णामपर्य ठवणपयं दव्यपयं चैव होइ भावपयं । एक्केकंपिय एत्तो णेगविहं होइ नायव्वं ॥ १६७ ॥ आउट्टिमउक्किनं उण्णेज्जं पीलिमं च रंगं च गंधिमवेढिमपूरिमवाइमसंघाइमच्छेजे ॥ १६८ ॥ भावपयंपि य दुविहं अवराह्यं च नो य अवराहं । नोअवराहं दुविहं माउग नोमाउगं चैव ॥ १६९ ॥ नोमाउगंपि दुविहं गहियं च पइन्नयं च बोद्धव्यं । गहियं चउप्पयारं पन्नगं होइ णेगविहं ॥ १७० ॥ गजं पजं गेयं चुण्णं च चव्विहं तु गहियपयं । तिसमुद्वाणं सव्वं इइ बेंति सलक्खणा कइणो ॥ १७१ ॥ महुरं देउनिजुत्तं गहियमपायं विरामसंजुत्तं । अपरिमियं चऽवसाणे कव्वं गज्जंति नायव्वं ॥ १७२ ॥ पजं तु होइ तिविदं सम मदसमं च नाम विसमं च । पायेहि" अक्खरेहि" य एव विहिष्णू कई बेति ॥ १७३ ॥ वंतिसमं तालसमं वण्णसमं गहसमं लयसमं च । कव्वं तु होइ गेयं पंचविहं गीयसनाए ॥ १७४ ॥ अत्थबहुलं महत्वं हेउनिया ओवसग्गगंभीरं । बहुपायमवोच्छिन्नं गमणयसुद्धं च चुण्णपयं ॥ १७५ ॥ इंदियविसयकसाया परीसहा वेयणा य उवसग्गा। एए अवराहपया जत्थ विसीयंति दुम्मेहा ॥ १७६ ॥ अट्टारस उ सहस्सा सीलंगाणं जिणेहिं पन्नत्ता । तेसि पडिरक्खणट्टा अवराहपए उ वज्जेजा ॥ १७७॥ जोए करणे सन्ना इदिय भोमाह समणधम्मे य। सीलिंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स निप्फत्ती ॥ १७८ ॥ सामण्णपुच्चयनिज्जुनी समत्ता २ ॥ नामंठवणादविए खेत्ते काले पहाण पर भावे। एएसि महंताणं पडिवक्ले खुट्टया होंति ॥ १७९ ॥ पखुट्टएण पगयं आयारस्स उ चउक्कनिक्खेवो । नामं ठवणा दविए भावायारे य बोद्धव्वे ॥ १८०॥ नामणधावणवासणसिक्खावणसुकरणाविरोहीणि । दव्वाणि जाणि लोए दव्वायारं वियाणाहि ॥ १८१ ॥ दंसणनाणचरिते तवआयारे य वीरियायारे। एसो भावायारो पंचविहो होइ नायव्वो ॥ १८२ ॥ निस्संकिय निकंखिय निव्वितिमिच्छा अमूढदिट्ठी अ । उववृह थिरीकरणे वच्छल पभावणे अट्ट ॥ १८३॥ अइसेसइडियायरियवाइधम्म कहीखमगनेमित्ती विज्जारायागणसंमया य तित्थं पभाविति ॥ १८४ ॥ काले विणये बहुमाणे उवहाणे तह य अनिण्हवणे वंजणअत्थतदुभए अट्ठविहो नाणमायारो ॥ १८५ ॥ पणिहाणजोगजुत्तो पंचदि समिईहि" तिहि य गुत्तीहिं। एस चरित्तायारो अट्टविहो होइ नायव्वो ॥ १८६॥ चारसविम्मिवि तवे सम्भितरबाहिरे कुसलदिट्टे। अगिलाइ अणाजीवी नायव्वो सो तवायारो ॥ १८७॥ अणिगृहियचलविरिओ परकमइ जो जहुत्तमाउत्तो। जुंजइ अ जहाथामं नायब्वो वीरियायारो ॥१८८॥ अत्थकहा कामकहा धम्मकहा चैव मीसिया य कहा । एतो एकेकावि य णेगविदा होइ नायव्वा ॥ १८९॥ विज्जा सिप्पमुवाओ अणिवेओ संचओ अ दक्खत्तं । सामं दंडो भेओ उवप्पयाणं च अत्थकहा ॥ १९०॥ सत्थाहसुओ दक्खत्तणेण सेट्टीसुओ य रुवेणं बुद्धीएं अमचसुओ जीवइ पुनेहिं रायसुओ ॥ १९१ ॥ दक्खत्तणयं पुरिसस्स पंचगं सइगमाहु सुंदेरं । बुद्धी पुण साहस्सा सयसाहस्साई पुन्नाई ॥ १९२॥ रूवं वओ य वेसो दक्खतं सिक्खियं च विसएसुं। दिहं सुयमणुभूयं च संथवो चैव कामकहा ॥ १९३॥ धम्मका बोद्धव्वा चउब्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता। अक्खेवणि विक्खेवणि संवेगे चेव निव्वे ॥ १९४॥ आयारे ववहारे पन्नत्ती चैव दिद्वीवाए अ एसा चउव्विद्दा खलु कहा उ अक्वेवणी होइ ॥ १९५॥ विज्जा चरणं च तवो पुरिसकारो य समिइगुत्तीओ उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ अक्खेवणीइ रसो ॥ १९६ ॥ कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा। मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया ॥ १९७॥ जा ससमयकजा खलु होइ कहा लोगवेयसंजुत्ता। परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी नाम ॥ १९८ ॥ जा ससमयेण पुवि अक्खाया तं भेज परसमए। परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ॥ १९९॥ आयपरसरीरगया इहलोए चैव तद्दय परलोए। एसा चउव्विहा खलु कहा उ संवेयणी होइ ॥ २००॥ वीरिय विउब्वणिड्डी नाणचरणदंसणाण तह इड्डी । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो ॥ २०१ ॥ पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिजए जत्थ । इह य परत्थ य लोए कहा उ णिव्वेयणी नाम् ॥ २०२ ॥ थोपि पमायकयं कम्मं साहिज्जई जहिं नियमा पउरासुहपरिणामं कहाइ निब्वेयणीइ रसो ॥ २०३ ॥ सिद्धी य देवलोगो सुकुलुप्पत्ती य होइ संवेगो । नरगो तिरिक्खजोणी कुमाणुसत्तं च निव्वेओ ॥ २०४॥ १२६० श्री दशवेकालिक नियुक्ति
मुनि दीपरत्नसागर