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वेणइयस्स पढमया कहा उ अक्खेवणी कहेयव्या।तो ससमयगहियत्थे कहिज विक्खेवणी पच्छा ॥२०५॥ अक्खेवणिअक्खित्ता जे जीवा ते लभन्ति संमत्तं । विक्खेवणीऍ भज गाढतरागं च मिच्छन्नं ॥२०६॥ धम्मो अत्यो कामो उवइस्सइ जत्थ सुत्तकब्बेसुं। लोगे वेये समए सा उ कहा मीसिया णाम ॥२०७॥ इस्थिकहा भत्तकहा रायकहा चोरजणवयकहा यानडनट्टजालमुट्ठियकहा उ एसा भवे विकहा ॥२०८॥ एया चेव कहाओ पन्नवगपरूवर्ग समासज । अकहा कहा य विकहा हविज पुरिसंतरं पप्प ॥२०९॥ मिच्छत्तं वेयन्तो जं अन्नाणी कहं परिकहेइ । लिंगत्थो व गिही वा सा अकहा देसिया समए ॥२१॥ तवसंजमगुणधारी जं चरणरया कहंति सम्भावं। सबजगजीवहियं सा उ कहा देसिया समए॥२११॥जो संजओ पमत्तो रागहोसवसगओ परिकहेद।सा उ विकहा पवयणे पण्णता धीरपुरिसेहिं ॥२१॥ सिंगाररसुत्तइया मोहकवियफॅफुगा सहासिति । जं सुणमाणस्स कहं समणेण ण सा कहेयचा ॥२१३॥ समणेण कहेयव्वा तवनियमकहा विरागसंजुत्ता । जं सोऊण मणुस्सो वचद संवेगनिब्बेयं ॥२१४॥ अस्थमहंतीवि कहा अपरिकिलेसबद्दला कहेयच्या। हंदि महया चडगरत्तणेण अत्थं कहा हणइ॥२१५ाखेतं कालं परिसं सामत्थं चऽप्पणो बियाणेत्ता समणेण उअणवजा पगयंमि कहा कडेयव्या॥२१६॥ तइयज्झयणनिजुत्ती संमत्ता ३ ॥ जीवाहारो भण्णइ आयारो तेणिमं तु आयायं । छज्जीवणियज्झयणं तस्सऽहिगारा इमे होंति ॥५॥ (भाष्यम्) जीवाजीवादिगमो चरित्तधम्मो तहेब जयणा य । उवएसो धम्मफलं छज्जीवणियाइ अहिगारा ॥२१७॥ छजीवणियाए खल निक्खेवो होइ नामनिफने। एएसिं तिण्डंपि उ पत्तेय परूवर्ण वोच्छं ॥२१८॥णामं ठवणा दपिए माउगपय संगहेकए चेव । पजव भावे य तहा सत्तेए एकगा होति ॥२१९॥ नाम ठवणा दविए खेने काले तहेव भावे । एसो उ छकगस्सा निक्खेवो उचिहो होइ ॥२२० ॥ जीवस्स उ निक्खेवो परूवणा लक्षणं च अस्थिनं । अनामतनं निध कारगो देहवावित्तं ॥२२१॥ गुणि उडगइत्ते या निम्मय साफलता य परिमाणे । जीवस्स तिविह कालम्मि परिक्खा होइ कायव्वा ॥२२२॥ दो दारगाहाओ॥ नामंठवणाजीवो दव्यजीवो य भावजीवो य॥ ओह भवग्गहणम्मि य तम्भवजीवे य भावम्मि ॥२२३ ॥ नामंठवण गयाओ दब्वे गुणपज्जवेहि रहिउत्ति । तिविहो य होइ भावे ओहे भव तम्भवे चेव ॥६॥ संते आउयकम्मे धरई तस्सेव जीवई उदए। तम्सेव निजराए मओनि सिद्धो नयमएणं ॥ ७॥ जेण य धरइ भवगओ जीवो जेण य भवाउ संकमई। जाणाहितं भवाउं चउव्विह तम्भवे दुविहं ॥८॥ निक्खेवोत्ति गयं ॥ विद्दा य हुँति जीवा सुहमा तह बायरा य लोगम्मि । मुहुमा य सव्वलोए दो चेव य वायरविहाणा ॥९॥ सुहुमा य सब्बलोए परियावना भवंति नायवा। दो चेव बायराण पजत्तियरे अनायवा ॥१॥ परुवणादारं गयंति ॥ लक्षणमियाणि दारं चिधं हेऊ अकारणं लिंगं । लक्खणमिइ जीवस्स उ आयाणाई इमं तं च॥११॥(भाष्यम्) आयाणे परिभोगे जोगुवओगे कसाय लेसा य। आणापाणू इंदिय बंधोदयनिजरा चेव ॥२२४॥ चित्तं चेयण सन्ना विनाणं धारणा य बुद्धी अ। ईहा मई वियका जीवस्स उ लक्खणा एए॥ २२५ ॥ लक्विजइत्ति नज्जइ पञ्चक्खियरो बजेण जो अस्थो । तं तस्स लक्खणं खलु धूमुण्हाइव्व अग्गिस्स ॥१२॥ अयगार कर परसू अम्गि सुवण्णे अ खीर नर वासी । आद्दारो दिट्ठता आयाणाईण जहसंखं ॥१३॥ देहिंदियाइरित्तो आया खलु गज्झगाहगपओगा । संडासा अयपिंडो अययाराइव्य विनेओ ॥ १४॥ देहो
मभोनिओं खलु भोजना ओयणाइथालं व । अन्नप्पओगिता खलु जोगा परसुव्व करणत्ता ॥१५॥ उवओगा नाभायो अग्गिव्व सलक्खणापरिचागा। सकसाया णाभावो पज्जयगमणा सुवणं व॥१६॥ लेसाओ Sणाभावो परिणमणमभावओ य खीरं व । उस्सासा णाभावो समसम्भावा खउच्च नरो॥१७॥ अक्खाणेयाणि परत्थगाणि वासाइवेह करणत्ता । गहवेयगनिजरओ कम्मस्सऽनो जहाऽऽहारो ॥ १८॥ चित्तं
तिकालविसयं चेयण पञ्चक्ख सन्नमणुसरणं। विण्णाणऽणेगमेयं कालमसंखेयरं धरणा ॥ १९॥ अत्थस्स ऊह चुही ईहा चेट्ठस्थ अवगमो उमई । संभावणत्थ तका गुणपचक्या घडोव्वऽस्थि॥२०॥ जम्हा चित्तासईया जीवस्स गुणा हवंति पञ्चक्खा। गुणपचक्खत्तणओ घटुव्य जीवो अओ अस्थि॥२१॥अस्थित्ति दारमहुणा जीवस्सइ अस्थि विजए(न चेयणो)नियमा। लोआययमयघायस्थमुच्चए तस्थिमो हेऊ ॥२२॥ जो
चिंतेइ सरीरे नस्थि अहं स एव होइ जीवोत्ति। न हु जीवमि असंते संसयउप्पायओ अनो॥२३॥ जीवस्स एस धम्मो जा ईहा अस्थि नस्थि वा जीवो? । खाणुमणुस्साणुगया जह ईहा देवदत्तस्स ॥२४॥ सिद्ध जीवस्स अस्थित्तं. सद्दादेवाणुमीयए। नासओ भुवि भावस्स, सद्दो हवइ केवलो ॥२५॥ अस्थित्ति निविगप्पो जीवो नियमाउ सहओ सिद्धी । कम्हा? सुद्धपयत्ता घडखरसिंगाणुमाणाओ॥२६॥ चोयग-सुद्धपयत्ता सिद्धी जइ एवं सुण्णसुद्धि अम्हंपि । तं न भवइ संतेणं जं सुन्नं सुन्नगेहं व ॥२७॥ मिच्छा भवेउ सनत्था, जे केई पारलोइया। कत्ता चेवोपभोत्ता य, जइ जीवो न विजइ ॥२८॥ पाणिदया तबनियमा बंभं दिक्खा य इंदियनिरोहो। सत्रं निरत्थयमेयं, जइ जीवोन विजइ ॥२९॥ लोइया वेड्या चेव, तहा सामाइया विऊ। निच्चो जीवो पिहो देहा, इइ सवे ववस्थिया ॥३०॥ लोए अच्छेज्जऽभेजो वेए सपरिसददगसियालो । समएऽज्जऽहमासि गओ तिविहो दिवाइसंसारो ॥३१॥ अस्थि सरीरविहाया पइनिययागारयाइभावाओ। कुंभस्स जह कुलालो सो मुनो कम्मजोगाओ॥३२॥ करिसण जहा बाऊ, गिज्झई कायसंसिओ।नाणाईहिं तहा जीवो, गिज्झई कायसंसिओ॥३३॥अणिदियगुणं जीवं, दुग्नेयं मंसचक्खुणा । सिद्धा पासंति सञ्चबू, नाणसिद्धाय साहुणो॥३४॥ अत्तवयणं नु मत्थं विट्ठा य तओ अइंदियाणंपि। सिद्धी गहणाईणं तहेव जीवस्स विनेया ॥३५॥ अण्णत्तममत्तत्तं निबत्तं चेव भण्णए समयं । कारणआविभागाईहेऊहि इमाहिं गाहाहि ॥३६॥ (भाष्य) कारण विभाग कारणविणास बंधस्स पचयाभावा ।
| विरुदस्स य अत्थस्सापाउम्भावाविणासा य ॥२२६॥अनत्ति दारमहुणा अचो देहा गिहाउ पुरिसोव्य ।तजीवतस्सरीरियमयघायत्थं इमं भणियं ॥३॥ देहिंदियाइरित्तो आया खल तदुवलदअत्याणं । तचि. ९३६७ ।।१३६८ श्री दर्शवकालिक नियुक्ति
मुनि दीपरत्नसागर