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गमेऽपि सरणओ गेहगवक्खेहिं पुरिसोच ॥ ३८॥ न उ इंदियाई उवलद्धिमंति विगएमु विसयसंभरणा । जह गेहगवक्खेहिं जो अणुसरिया स उक्लदा ॥ ३९ ॥ संपयममुत्तदार अइंदियत्ता अछेयभेयत्ता । कबाडचिरहो वा अणाहपरिणामभाषाओ॥४०॥छउमत्थाणवलंभा तहेव सम्वनुषयणओ चेव । लोयाइपसिद्धीओ जीवोऽमत्तोत्ति नायब्यो ॥४१॥ णिचोत्ति दारमहणा णिचो अविणासि सासओ जीची। भावत्ते सइ जम्माभावाउ नहं व विनेओ ॥४२॥ संसाराओ आलोयगाउ तह पञ्चभिन्नभावाओ।खणभंगविघायत्यं भणिअं तेलोकदंसीहि ॥४३॥ लोगे वेए समए निचो जीवो विभासओ अम्हं । इहरा संसाराई सव्वंपि न जुजए तस्स ॥४४॥ कारणअविभागाओ कारणअविणासओ य जीवस्स । निचत्तं विन्नेयं आगासपडाणुमाणाओ ॥४५॥ हेउप्पभयो बंधो जम्माणतरहयस्स नो जुत्तो। ततोगविरहओ खलु चोराइघडाणुमाणाओ ॥४६॥(भाष्यम्) पंधस्स पचयाओ स बजाई बंधपचया जीवो। एगंतखणिय तह निचवायघायथमिममुत्तं ॥१॥ पंधस्स पचया खलु मिच्छत्तं अविरई फसाया उ। जेण पमाओ लेसा चोराइघडाणुमाणाओ॥२॥ अत्यविभावा निचोऽणिचो जीवो खकुंभओवम्मा। सवियाराणुवलंभा अविणासी पुग्गलो णेओ॥३॥ (प्र०)अविणासी खलु जीवो विगारऽणुवलंभओ जहाऽऽगास। उवलम्भंति विगारा कुंभाइविणासिदशाणं ॥४॥ (भाष्यम्) निरामयाऽमयभावा चालकयाणुसरणादुवत्थाणा। सुत्ताईहिं अगहणा जाईसरणा थणमिलासा ॥२२७॥ रोगस्सामयसना पालकयं जं जुवाऽणुसंभरह। जं कयमनमि भवे तस्सेवऽन्नत्थुवत्थाणा ॥४८॥ णिचो अणिदियत्ता खणिओ नवि होइ जाइसंभरणा । थणअभिलासा य वहा अमओ नउ मिम्मउन पडो॥४९॥ (भाष्यम् ) सवन्नुवदिद्वत्ता सकम्मफलभोयणा अमुतना। जीवस्स सिद्धमेवं निबत्तममुत्तमन्नत्तं ॥२२८॥ कत्तत्ति दारमहुणा सकम्मफलभोइणो जओ जीवा । वाणियकिसीवला इव कविलमयनिसेहणं एवं ॥५०॥पावित्ति दारमहुणा देहबाबी मओऽग्गिउण्हं व। जीवा नउ सव्वगओ देहे लिंगोचलंभाओ॥५१॥ अहुणा गुणित्ति दारं होइ गुणेहिं गुणित्ति विन्नेओ। ते भोगजोगउवओगमाइ रुवाइ व घडस्म ॥५२॥ उईगइत्ति अहुणा अगुरुलहुत्ता सभावउड़गई। दिटुंत लाउएक एरंडफलाइएहि च ॥५३ ॥ अमओ य होइ जीवो कारणविरहा जहेव आगासं । समयं च होअनिचं मिम्मयघडतंतुमाईये ॥५४॥ साफतवारमहणा निचानिय परिणामिजीवम्मि। होइ तय कम्माण इहरेगसभावओज्जुनं ॥५५॥जीवस्स उपरिमाणं वित्थरओ जाव लोगमेत्तं तु। ओगाहणा य सुहमा तस्स पएसा असंखेजा ॥५६॥ पत्येण पकलएण पजह कोड मिणेज सम्बधन्नाई। एवं मवि. जमाणा हवंति लोगा अर्णता उ ॥५७॥ (भाष्यम्) णामं ठवणसरीरे गई णिकायऽस्थिकाय दविए य। माउग पजव संगह भारे तद्द भावकाए य ॥२२९।। इत्थं पुण अहिगारो निकायकाएण होइ सुमि। उचारिअत्थसदिसाण कित्तणं सेसगाणंपि ॥२३० ॥ दर्ष सत्थग्गिविसं नेहंबिलखारलोणमाईयं । भावो उ दुप्पउत्तो वाया काओ अविरई अ॥२३१॥ किंची सकायसत्वं किंची परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दवसत्थं भावे अस्संजमो सत्य ॥२३२॥ पीए जोणिभूए जीवो बुकमइ सोय असो वा। जोऽपि य मूले जीवो सोऽवि य पत्ते पटमयाए॥२३३॥ विद्धस्थाऽविद्वत्था जोणी जीवाण होइ नाया। तत्थ अविइत्याए बुकमई सो य असोया ॥५८॥ जो पुण मूले जीवो सो निवत्तेइ जा पढमपत्तं । कंदाइ जाच पीयं सेसं अन्ने पकुव्वंति ॥ ५९॥ सेसं सुत्तफासं काए काए अहकर्म ध्या। अज्झयणस्था पंच य एगरणपयवंजणविसुद्धा ॥६०॥ (भाष्यम्) सीयालं भंगसयं पचक्खाणंमि जस्स उबलदं । सो खलु पञ्चक्खाणे कुसलो सेसा अकुसला उ॥१॥(प.) जीवाजीवाभिगमो आयारी चेव धम्मपनत्नी। तत्तो चरितधम्मो चरणे धम्मे अ एगट्ठा॥२३४ ॥ इइ छज्जीवणियाज्झयणं ४॥मूलगुणा वक्खाया उत्तरगुणअवसरेण आयायं । पिंडज्झयणमियाणि निक्सेचे नामनिष्फळे ॥६१॥ (भाष्यम)। पिंडो अ एसणा य दुपयं नामं तु तस्स नायव । चाउचाउनिक्खेवेहि परुवणा तस्स कायना ॥२३५॥ नामंठवणापिंडो दवे भावे अ होइ नायवो। गुडओयणाइ दवे भावे कोहाइया पाउरो ॥२३६॥ पिडि संघाए जम्दा ते उइया संघया | य संसारे। संघाययंति जीवं कम्मेणऽट्ठपगारेण ॥२३७॥ दवेसणा उ तिविहा सचित्ताचित्तमीसदशाणं । दुपयचउप्पयअपया नरगयकरिसावणदुमाणं ॥२३८भावेसणा उ दुविदा पसत्य अपसत्थगा य नाया। नाणाईण पसत्था अपसस्था कोइमाईणं ॥ २३९ ॥ भावस्सुवगारित्ता एत्यं दधेसणाइ अहिगारो। तीइ पुण अत्यजुत्ती वत्तवा पिंडनिजुत्ती ॥२४०॥ पिण्डेसणा य सबा संखेवेणोयरइ नवसु कोडीसु। न हणेइ न पयइ न किणइ कारावणअणुमईदिनव ॥२४१॥ सा नवहा दुह कीरइ उम्गमकोडी विसोहिकोडी आछसु पढमा ओयरह कीयतियम्मी विसोही उ॥२४२॥ कोडीकरणं दुविहं उम्गमकोडी विमोहिकोडी अ। उग्गमकोडी छकं विसोहिकोडी अणेगविहा॥६२॥ (भाष्यम् ) कम्मदेसिअचरमतिग पूइयं मीस चरिमपाहुडिआ। अज्झोयर अविसोही विसोहिकोडी भवे सेसा ॥ २४३ ॥ नव चेवट्टारमगा सत्तावीसा तहेब चउपना । नउई दो चेव सया सत्तरिया हुंति कोडीणं ॥ २४४ ॥ रागाई मिच्छाई रागाई समणधम्म नाणाई । नव नव सत्तावीसा नव नउईए य गुणगारा ॥ २४५॥ इद पिंडेसणाज्झयणं ५ ॥ जो पुषि
उदिट्टो आयारो सो अहीणमहरित्तो । सचेव य होइ कहा आयारकहाएँ महईए ॥२४६॥ धम्मो बावीसविहो अगारधम्मोऽणगारधम्मो अ। पढमो अवारसविहो दसहा पण पीयओ होइ ॥ २४७ ॥ पंच य FA अणुष्वयाई गुणवयाई च होति तिन्नेव । सिक्खापयाई चाउरो गिहिधम्मो बारसविदो अ॥२४८॥खंती अमहवऽजब मुत्ति तव संजमे अबोवे। सचं सोयं आकिंचणं च बंभं च जधम्मो ॥२४५॥ धम्मो दिएसुवइट्ठो अत्यस्स चउचिहो उ निक्खेवो। ओहेण छविहऽत्यो चउसद्दिविहो विभागेणं ॥२५०॥ धन्नाणि रयण थावर दुपय चउप्पय तहेव कुविअं च । ओहेण उविहऽत्यो एसो धीरेहिं पन्नत्तो॥२५१॥
चवीसा चउवीसा लिग दुग दसहा अणेगविह एव । सवेसिपि इमेसि विभागमहयं पवक्खामि ॥२५२॥ धन्नाई चउवीसं जव? गोहुम२ सालि३ वीहि४ सट्ठी अ५। कोदव६ अणुया ७ कंगूट गलगः निल १० १३६८३६१-श्री दर्शवकालिकनियुक्ति
मुनि दीपरतसागर