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पडतो ॥३०७॥ सुप्पणिहिअजोगी पुण न लिप्पई पुव्वभणिअदोसेहिं। निहाइअकम्माई सुक्कतणाई जहा अग्गी ॥३०८॥ तम्हा उ अप्पसत्यं पणिहाणं उज्झिऊण समणेणं । पणिहाणमि पसत्थे भणिओ आयारपणिहित्ति ॥ ३०९॥ इद आयारपणिहीअज्झयणं ८॥ विणयस्स समाहीए निक्खेवो होइ दोहवि चउको । दवविणयंमि तिणिसो सुवणमिवेवमाईणि ॥ ३१०॥ लोगोवयारविणओ अत्यनिमित्तं च कामहेउंचाभयविणय मुक्सविणो विणओ खलु पंचहा होइ॥३११ ॥ अब्भुट्ठाणं अंजलि आसणदाणं अतिहिपूआ य । लोगोवयारविणओ देवयपूआ य विहवेणं ॥ ३१२॥ अम्भासवित्तिछंदाणुवत्तणं देसकालदाणं च। अम्भुट्टाणं अंजलि आसणदाणं च अत्थकए॥३१३॥ एमेव कामविणओ भए अनेअवमाणुपुबीए । मोक्खंमिऽवि पंचविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥३१४॥ दंसणनाणचरित्ते तवे अ तह ओवयारिए चेव । एसो अ मोक्खविणओ पंचविदो होइ नायचो॥३१५॥ दब्वाण सवभावा उवइट्ठा जे जहा जिणवरेहिं । ते तह सद्दहइ नरो दसणविणओ हवइ तम्हा ॥ ३१६॥ नाणं सिक्खइ नाणं गुणेइ नाणेण कणइ किच्चाई। नाणी नवं न बंधइ नाणविणीओ हवइ तम्हा ॥३१७॥ अट्टविहं कम्मचर्य जम्हा रित्तं करेइ जयमाणो। नवमन्नं च न बंधइ चरित्तविणओ हवइ तम्हा ॥ ३१८ ॥ अवणेइ तवेण तमं उवणेइ अ सम्गमोक्खमप्पाणं । तवविणयनिच्छियमई तवोविणीओ हवइ तम्हा ॥ ३१९॥ अह ओवयारिओ पुण दुविहो विणओ समासओ होइ । पडिरूवजोगजुंजण तह य अणासायणाविणओ॥३२०॥ पडिरूवो खलू विणओ काइअजोए य वाइ माणसिओ। अट्ट चउविह दुविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥३२१॥ अम्भुट्टाणं अंजलि आसणदाणं अभिग्गह किई अ।सुस्सूसणमणुगच्छण संसाबण काय अट्ट. विहो ॥३२२॥ हिअमिअअफरुसवाई अणुवीईभासि वाइओ विणओ। अकुसलचित्तनिरोहो कुसलमणउदीरणा चेव ॥३२३॥ पडिरूवो खलु विणओ पराणुअत्तिमइओ मुणेअब्बो। अप्पडिरूवो विणओ नायवो केवलीणं तु ॥ ३२४ ॥ एसो भे परिकहिओ विणओ पडिरूवलक्षणो तिविहो। बावन्नविहिविहाणं ति अणासायणाविणयं ॥ ३२५ ॥ तित्थगर सिद्ध कुल गण संघ किया धम्म नाण नाणीण। आयरिज थेर ओज्झा गणीणं तेरस पयाणि ॥ ३२६ ॥ अणसायणा य भत्ती बहुमाणो तहय वनसंजलणा। तित्थगराई तेरस चउम्गुणा होति चावना ॥ ३२७॥ वर्ष जेण व दवेण समाही आहियं च जं दवं । भावसमाहि चउबिह दसणनाणे तवचरित्ते ॥ ३२८॥ इइ विणयसमाहीअज्झयणं ९॥ नामंठवणसयारो दवे भावे अहोइ नायबो । दवे पसंसमाई भावे जीवो तदुवउत्तो ॥ ३२९ ॥ निदेसपसंसाए अत्थीभावे अ होइ उ सगारो । निद्देसपसंसाए अहिगारो इत्थ अज्झयणे ॥३३०॥ जे भावा दसवेआलिअम्मि करणिज वण्णि जिणेहिं । तेसिं समावणमिति (मी)जो भिक्यू भनाइ स भिक्खू ॥३३१॥ चरगमरुगाइआणं भिक्षु. जीवीण काउणमपोहं । अज्झयणगुणनिउत्तो होइ पसंसाइ उ समिक्खू ॥ ३३२ ॥ भिक्खुस्स य निक्खेवो निरुत्त एगडिआणि लिंगाणि । अगुणडिओ न भिक्खू अवयवा पंच दाराई ॥ ३३३॥ णामंठवणाभिक्ख दभिक्ख अभावभिक्खू अ । दव्यम्मि आगमाई अनोऽपि अ पजयो इणमो ॥३३४॥ भेअओ भेअणं चेव, भिदि तहेच य। एएसि तिण्डंपिअ पत्तेयपरुवणं वोच्छ ॥३३५॥ जह दारुकम्मगारो | भेअणभित्तासंजओ भिक्ख । अग्रेऽपि दवभिक्खू जे जायणगा अविरया अ॥३३६॥ गिहिणोऽवि सयारंभग उजपनं जणं विमगंता । जीवणिज दीणकिविणा ते विजा दाभिक्सति ॥ ३३७॥ मिच्छहिट्टी तसथावराण पुढवाइपिदिआईणं । निचं वहकरणरया अभयारी अ संचइआ॥ ३३८॥ दुपयचउप्पयधणधनकुवियतिअतिअपरिग्गहे निरया। सचित्तभोइ पयमाणगा अ उदिडभोई अ॥३३९॥ करणतिए जोअतिए सावज्जे आयहेउपरउभए। अट्ठाणगुपपत्ते ते विजा दबभिक्खुत्ति ॥ ३४०॥ इत्थीपरिम्गहाओ आणादाणाइभावसंगाओ। सुखतवाभावाओ कुतिस्थिआऽभचारिति ॥ ३४१॥ आगमतो उवउत्तो तरगुणसंवेजओ अ (उ) भावंमि । तस्स निरुतं भेजगभेअणभेत्तत्रएण तिहा ॥३४२॥ भेत्ताऽऽगमोवउत्तो दुविहतवो भेअणं च भेत्त । अट्ठविदं कम्मखुदं तेण निरुतं सभिक्खुत्ति ॥३४३॥ भिदंतो अजह सुहं भिक्खू जयमाणओ जई होइ । संजमचरओ चरओ भवं खिवंतो भवंतो उ ॥ ३४४ ॥ जं भिक्खमत्तवित्ती तेण व भिक्खू खवेइ जं व अणं । तवसंजमे तवस्सित्ति वापि अनोऽवि पज्जाओ॥३४५॥ तिने ताई दविए वई असंते अदंत विरए अ। मुणि तावस पनवगुजु भिक्खू बुद्दे जइ विऊ अ॥३४६॥ पब्वाइए अणगारे पासंडी चरग बंभणे चेव । परिवायगे असमणे निरगंथे संजए मुत्ते ॥ ३४७॥साहू लूहे अतहा तीरट्टी होइ चेव नायत्रो। नामाणि एवमाईणि हॉति तवसंजमरयाणं ॥३४८॥ संवेगो निवेओ विसयविवेगो सुसीलसंसग्यो। आराहणा तवो नाणदंसणचरित्तविणओ अ॥३४९॥ खंती अमहवऽजव विमत्तया तह अदीणय तितिक्खा। आवस्सगपरिसुदी अ होति भिक्खुस्स लिंगाई॥३५०॥ अज्झयणगुणी भिक्खू न सेस इइ णो पइन को हेऊ । अगुणत्ता इइ हेऊ को दिटुंतो? सुवण्णमिव ॥ ३५१॥ विसघाइ रसायण मंगलत्थ चिणिए पयाहिणावते । गुरुए अडज्मऽकुत्थे अट्ट सुवण्णे गुणा भणिआ॥३५२॥ चउकारणपरिसुद्धं कसछेअणतावतालणाए अ। जं तं विसघाइरसायणाइगुणसंजुअं होइ ॥३५३॥ तं कसिणगुणोवेनं होइ सुवणं न सेसयं जुत्ती।नहि नामरूवमेत्तेण एवमगुणो हवइ भिक्खू ॥३५४॥ जुत्तीसुवण्णगं पुण सुवण्णवणं तु जइवि कीरिजा।न हु दोइ तं सुवणं सेसेहि गुणेहिंऽसंतहि ॥३५५॥ जे अज्झयणे भणिआ मिक्सुगुणा तेहि होइ सो मिक्स् । चण्णेण जवसुवण्णगं व संते गुणनिहिंमि॥३५६॥ जो मिक्खू गुणरहिओ भिक्खं गिव्हइ न होइ सो भिक्खू । वण्णेण जुत्तिसुवण्णगं व असई गुणनिहिम्मि ॥३५७॥ उदिवकर्य भुंजइ उकायपमंदओ परं कुणइ । पचक्खं च जलगए जो पियइ कह नु सो भिक्खू ? ॥३५८॥ तम्हा जे अजायणे मिक्सुगुणा तेहि होइ सो भिक्खू । तेहि असउत्तरगणेहि होइ सो भाविअतरो उ ॥ ३५९॥ इइ सभिक्खूअज्झयणं १० ॥ दव्वे खेत्ते काले भावम्मि अ चूलिआय निक्खेवो । तं पुण उत्तरतंतं सुअगदिअत्थं तु संगहणी॥३६० ॥ दवे सञ्चित्ताई कुकुडचूडामणीमऊ३ श्रीदशवकालिक नियुक्ति
मुनि दीपरनसागर
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