Book Title: Yogshastra
Author(s): Yashobhadravijay
Publisher: Vijayvallabh Mission

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Page 5
________________ समर्पणम् जिन्होंने अनेक उपसर्गों को सहन करके जैन नेतर जातियों में धर्म का प्रचार किया, जिन को अमृतवाणी में समन्वय की अजस्र धारा प्रवहमान है, जिनके कमयुग्म में रह कर मुझे जैसे पामर प्राणी को भी संयम, त्याग, सहिष्णुता को विकसित करने का अवसर प्राप्त हुआ, जिन की कृपा दृष्टि से मेरा कल्याण-पथ सदैव प्रशस्त होता रहा, - ऐसे परम श्रद्धेय, युव-प्रतिबोधक सर्व-धर्मसमन्वयी आचार्यदेव भीमद् विजय जनक चन्द्र सूरीश्वर जी महाराज के पावन कर कमलों में सविनय सादर, समाक्ति समर्पित पादपद्मरेणु यशोभद्र विजय (३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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