Book Title: Yogshastra
Author(s): Yashobhadravijay
Publisher: Vijayvallabh Mission

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Page 9
________________ काव्य शास्त्रविनोदेन, कालो गच्छतिधीमताम् ॥ व्यसनेन ही मूर्खाणां, निद्रया कलहेन वा ॥ साहित्य सङगीत कला विहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः । तणं न खादन्नपि जीवमानः, तद् भागधेयं परमं पशूनाम् ॥ बुद्धिमानों का समय काव्य शास्त्र रचना आदि में व्यतीत होता है । इस के विपरीत मर्खजनों का समय सप्त-व्यसन प्रमाद तथा कलहादि में ही जाता है। सच कहा है कि सङ्गीत, साहित्य, कला आदि ज्ञानरहित मानव पुच्छ और शृग बिना का पश हो है । मानव तृण नहीं खाता है, फिर भी जीता है तो समझना चाहिए कि यह पशुओं का अहोभाग्य है । इस से हम भी शिक्षा लें कि सुन्दर-सुन्दर रचनाओं में तथा ज्ञान, ध्यान, तप एवं स्वाध्याय में दिल लगा कर स्व-पर कल्याण करें। मुनि श्री यशोभद्र विजय जी के द्वारा 'योग शास्त्र' के प्रथम भाग का विवेचन प्रकाशित किया जा रहा है, यह ज्ञात कर अत्यन्त हर्ष हो रहा है। . लेखक मुनिवर्य ज्ञान ध्यान के द्वारा सुपाठ्य ग्रंथों की रचना करते रहें, तथा समाज को नित्य नवीन मार्गदर्शन देते रहें, यही शुभकामना है। आचार्य इन्द्रदिन्न सूरि बम्बई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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