Book Title: Yogdarshan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlal Sanghavi

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Page 15
________________ (१२) योगसूत्र वृत्तिके अधिकारी तीन प्रकारके हो सकते हैं। पहले 'विशिष्ट विद्वान् । दूसरे संस्कृत भाषाको साधारण जाननेवाले 'किन्तु दर्शनप्रेमी। तीसरे संस्कृत भाषाको विल्कुल नहीं जाननेवाले किन्तु दर्शनविद्याकी रुचिवाले। पहले प्रकारके अधिकारी तो हिंदी सारके सिवाय ही मूल ग्रन्थ देख सकेगे उनके 'लिए यह सार नहीं है। दूसरे प्रकारके अधिकारीको मूल ग्रन्थ सुगम हो सके और तीसरे प्रकारके अधिकारीको मूल वस्तु मात्र सुगम हो सके इस दृष्टि से वृत्तिका सार लिखा गया है। योगविंशिका गाथाबद्ध स्वतन्त्र ग्रन्थ है। उसका विषय योग (चारित्र) है और उस पर परिपूर्ण समर्थ टीका है इस ‘लिए इसका सार लिखनेकी पद्धति भिन्न है। प्रत्येक गाथाका नंबरवार भावानुसारी अर्थ लिखकर उसके नीचे खुलासेके तौर ‘पर टीकाका उपयोगी अंश लेकर सार लिखा गया है। प्राकृत, संस्कृत कम जाननेपर या बिल्कुल नहीं जानने पर भी जो जैन .योगके जिज्ञासु हैं उनको न तो बुद्धि पर बोझ ही पडे और न वस्तु ही अज्ञात रहे इस दृष्टिसे अर्थात् वैसे अधिकारिओंको विशेष उपयोगी होसके इस खयालसे यह सार लिखा गया है। __दोनों सार विशेष उपयोगी होसके इस दृष्टिसे हमने समय और श्रमकी परवा न करके सारको विशेष उपयोगी बनानेकी चेष्टा की है, फिर भी रुचिभेद या अन्य किसी कारणसे जिसको कुछ भी कमी जान पडे वह हमें सूचित करे या स्वयं उस कमीको दूर करनेकी चेष्टा करे। आभार प्रदर्शन - आँखोंसे लाचार होनेके कारण पढने, "लिखने आदिका मेरा सब काम पराश्रित है, अतएव उत्साह होने पर भी यह कभी सम्भव नहीं कि योग्य सहायकोंके अभावमे प्रस्तुत पुस्तक मुझसे तैयार हो पाती। पाठक! आप इस

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