Book Title: Vyavahar Sutra Pithika
Author(s): Malaygiri
Publisher: 

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृतीयो विभागः। श्री व्यव- तदेतदुमयं दर्शयति-- हारसूत्रस्य / बारस दस नव चेव य सत्तेव जहन्नगाइं ठाणाइं / वीसठारस सत्तरस, पन्नरठाणाण बोधव्वा // 309 // पीठिका द्वादश दश नव सप्तेत्यमूनि जघन्यानि स्थानानि बोधव्यानि / जघन्यतो येषां विंशत्याद्यपेक्षयामीपां स्तोकत्वात् केषां | नंतरः। | स्थाने इत्याह-विंशत्यष्टादशसप्तदश पञ्चदशस्थानानां स्थाने इदमुक्तं भवति,-विंशतिस्थानानामष्टकापहारे द्वादश स्था नानि / अष्टादशानामष्टकापहारे दश / सप्तदशानामष्टकापहारे नव / पञ्चदशानामष्टकापहारे सप्तेति // पुणरवि जे अवसेसा मासा जहिं पि च्छन्हमासाणं / उवरिं झोसेउणं, छम्मासा सेस दायव्वा // 310 // ___अष्टकापहारे कृते सति पुनरपि षण्णां मासानामुपरि येऽवशेषा मासा वर्तन्ते जेहिं जेहिं पीत्यादि अनुग्रहकृत्स्नविषयमेतत् यैरपि च दिवसासवा पूर्व प्रस्थापितानां षण्णां मासानामुपरि गच्छति तत्सर्व स्थापनारोपणाप्रकारेण झोषयित्वा षण्मासाः शेषा दातव्याः, / अनुग्रहचित्तायां पूर्व प्रस्थापितषण्मासोद्व्यूढदिवसैः सह परिपूर्णीकृत्य षण्मासाः शेषा दातव्या / निरनुग्रहकृत्स्नचिन्तायां परिपूर्णाः षण्मासाः शेषा देयाः, / झोषस्तु पूर्वप्रस्थापितषण्मासविषय इति // छहिं दिवसेहिं गएहिं, छण्हं मासाण होति पक्खेवो। छहिं चेव य सेसेहिं छण्हं मासाण पक्खेवो॥३११॥ सूत्रे तृतीया सप्तम्यर्थे / ततोऽयमर्थः / षट्सु दिवसेषु गतेषु षण्मासानां भवति प्रक्षेपः / इयमत्र भावना-ये ते प्रस्था For Private and Personal Use Only

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