Book Title: Vyakhya Pragnapti Sutra
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 4
________________ | व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र प्रश्न का समाधान इस प्रकार है हे स्कन्दकः मैंने चार प्रकार का लोक बताया है-द्रव्यलोक. क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक । उन चारों में से द्रव्य से लोक एक है और अन्त वाला है, क्षेत्र से लोक असंख्यात कोटाकोटि योजन तक लम्बा-. ..चौड़ा और असंख्य कोटाकोटि योजन की परिधि वाला है तथा वह अन्तसहित है। काल से ऐसा कोई काल नहीं था जिसमें लोक नहीं था, ऐसा कोई काल नहीं है, जिसमें लोक नहीं है, ऐसा कोई काल नहीं होगा, जिसमें लोक न होगा। लोक सदा था, सदा है और सदा रहेगा। लोक ध्रुव, नियत. शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है, उसका अन्त नहीं है। भाव से लोक अनन्त वर्णपर्याय रूप गन्धर्यायरूप, रसपर्यायरूप और स्पर्शपर्यायरूप है। इसी प्रकार अनन्त संस्थानपर्यायरूप अनन्त गुरुलघुपर्यायरूप एवं अनन्त अगुरुलघुपर्यायरूप है; उसका अन्त नहीं है। इस प्रकार हे स्कन्दक! द्रव्यलोक अन्तसहित है, क्षेत्र लोक अन्न सहित है, काल लोक अन्तरहित है और भावलोक भी अन्तरहित है। (शतक २ उद्देशक १ ) इसी प्रकार तीर्थंकर महावीर ने जीव, सिद्धि एवं सिद्ध को द्रव्य एवं क्षेत्र से सान्त तथा काल एवं भाव से अन्तरहित बताया है। मरण के दो प्रकार बताये हैं- बालमरण एवं पण्डितमरण । बालमरण से मरने वाला जीव संसार बढ़ाता है तथा पण्डितमरण से मरने वाला जीव संसार घटाता है। गौतमस्वामी एवं भगवान महावीर के प्रश्नोत्तर द्रष्टव्य हैं ( शतक २. उद्देशक ५) गौतम - भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन की पर्युपासना करने वाले को पर्युपासना का क्या फल मिलता है ? भगवान - गौतम ! श्रवण रूप (धर्म श्रवण रूप) फल मिलता है। गौतम - भगवन् ! उस श्रवण का क्या फल होना है ? भगवान - गौतम! श्रवण का फल ज्ञान है । गौतम - भगवन् ! ज्ञान का फल क्या है ? भगवान- गौतम! ज्ञान का फल विज्ञान (हेय, ज्ञेय एवं उपादेय का विवेचन) है। गौतम - भगवन् ! विज्ञान का फल क्या है ? भगवान- गौतम! विज्ञान का फल प्रत्याख्यान (हेय का त्याग ) है । गौतम - भगवन् ! प्रत्याख्यान का फल क्या है ? भगवान— गौतम! प्रत्याख्यान का फल संयम (संवर) है। गौतम - भगवन् ! संयम का फल क्या है ? भगवान - गौतम! संयम का फल अनास्रव है। 169 इसी प्रकार अनास्रव का फल तप एवं तप का फल कर्म-निर्जरा बताया गया है। यह प्रतिपादन ज्ञान एवं क्रिया के एक रूप को प्रस्तुत करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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