Book Title: Vyakhya Pragnapti Sutra
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 2
________________ 167 - व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र श्लोकप्रमाण है। व्याख्याप्रज्ञप्ति का प्राकृन नाम लियाहपणणनि' है। कहीं कहीं इसका नाम 'विवाहपण्णनि' या 'विवाहपण्यत्ति भी प्राप्त होता है। वृत्तिकार अभयदेवसूरि ने 'वियाहपण्णत्ति नाम को सर्वाधिक महत्त्व देकर इसकी व्याख्या चार प्रकार से की है। इसमें एक है-- “वि-विविधा जीवाजीवादिप्रचुरतरपदार्थविषयाः, आ–अभिविधिना कथंचिन्निखिलज्ञेयव्याप्त्या मर्यादया वा, ख्या--ख्यानानि भगवतो महावीरस्य गौतमादीन विनेयान् प्रति प्रश्नितपदार्थप्रतिपादनानि व्याख्या: ता: प्रज्ञाप्यन्ते, भगवता सुधर्मस्वामिना जम्बूनामान्मभि यस्याम्। अर्थात् गौतमादि शिष्यों को उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों का भगवान महावीर के द्वारा जीव, अजीव आदि विषयों पर उत्तम विधि से जिस शास्त्र में विशद उत्तर दिए गए और जिन्हें सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी को बताया--वह व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र है। ___ भगवान ने इस सूत्र में क्लिष्ट से क्लिष्ट प्रश्नों का सरलरीति से ग्राह्य समाधान प्रस्तुत किया है। समवायांग सूत्र के अनुसार इसमें "द्रव्य, गुणः, क्षेत्र, काल, पर्याय, प्रदेश, परिणाम, यथा--. अस्तिभाव, अनुगम, निक्षेप, नय, प्रमाण, सुनिपुण उपक्रमों के विविध प्रकार, लोकालोक के प्रकाशक, विस्तृत संसार-समुद्र से पार उतारने में समर्थ, इन्द्रों द्वारा संपूजित भव्य जनों के हृदयों को अभिनन्दित करने वाले, तमोरज का विध्वंसन करने वाले, सुदृष्ट दीपकस्वरूप, ईहा, मति और बुद्धि को बढ़ाने वाले- ३६ हजार व्याकरणों (उत्तरों) को प्रतिपादित करने से यह व्याख्याप्रज्ञप्ति शिष्यों के लिए हितकारक और गुणों के महान् अर्थ से परिपूर्ण है। इसकी वाचनाएँ परिमित हैं एवं संग्रहणियाँ संरख्यात हैं। सौ से अधिक अध्ययन हैं, १० हजार उद्देशन काल हैं, १० हजार समद्देशनकाल हैं, पद-गणना की अपेक्षा ८४ हजार पट हैं।" नन्दीसूत्र में २ लाख ८८ हजार पदाग्र कहे हैं। भगवती सूत्र के प्रारम्भ में नमस्कार मन्त्र का मंगल उल्लेख करते हुए अर्थात् अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं को नमस्कार करने के पश्चात् ब्राह्मीलिगि एवं 'श्रुत' को भी नमन किया गया है। मंगलाचरण का यह रूप भगवनीसूत्र में ही दृष्टिगोचर होता है। इससे इस सूत्र की विशिष्टता प्रकट होती है। भण्डारी पदमचन्द्र जी महाराज के शिष्य श्री अमरमुनि जी ने भगवतीसूत्र की विषयवस्तु को १० खण्डों में विभक्त किया है- १. आचारखण्ड २. द्रव्यखण्ड ३. सिद्धान्तखण्ड ४. परलोकखण्ड ५. भूगोल ६. खगोल ७. गणितशास्त्र ८. गर्भशास्त्र ९.चरित्रखण्ड १०. विविध । आचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी ने आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर से प्रकाशित व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के चतुर्थ खण्ड में ९४ पृष्ठों की प्रस्तावना लिखते हुए भगवतीस्त्र में चर्चित निम्नांकित विषयों पर विशेष प्रकाश डाला हैं, जिससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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