Book Title: Vyakhya Pragnapti Sutra
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ 1170 .. जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङका शतक १२ उद्देशक २ में जयन्तो श्राविका ने भगवान से जो जिज्ञासा की,उसके समाधान भी पठनीय हैं, उदाहरणार्थजयन्ती- भगवन् ! जीवों का सुप्त रहना अच्छा है या जागृन रहना अच्छा? भगवान्- जयन्ती! कुछ जीवों का सुप्त रहना अच्छा है तथा कुछ का जामृत रहना अच्छा है। जयन्ती- भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि कुछ जीवों का सप्त रहना अच्छा है तथा कुछ का जागृत रहना अच्छा? भगवान्– जयन्ती! जो अधार्मिक, अधर्मानुसर्ता, अधर्मिष्ठ, अधर्म का कथन करने वाले, अधर्मावलोकनकर्ता, अधर्म में आसक्त, अधर्माचरणकर्ता और अधर्म से ही आजीविका करने वाले जीव है, उन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है, क्योंकि वे जीव सुप्त रहने हैं तो अनेक प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख, शोक और परिताप देने में प्रवृत्त नहीं होते। वे जीव सोये रहते हैं तो अपने को दूसरे को और स्व–पर को अनेक अधार्मिक प्रपंचों में नहीं फंसाते। इसलिए उन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है। जयन्ती! जो धार्मिक हैं, धर्मानुसारी, धर्मप्रिय, धर्म का कथन करने वाले, धर्म के अवलोकनकर्ता, धर्मानुरक्त, धर्माचरण और धर्म से ही अपनी आजीविका करने वाले जीव हैं, उन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है, क्योंकि ये जीव जाग्रत हों तो बहुत से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख, शोक और परिताप देने में प्रवृत्त नहीं होते। ऐसे धर्मिष्ट जीव जागृत रहते हुए स्वयं को, दूसरे को और स्व–पर को धार्मिक कार्यों में लगाते हैं। ये व जागृत रहते हुए धर्मजागरणा में अपने को जागृत रखते हैं। । इसलिए इन जीवों का जागृत रहना अच्छा है। इसी कारण से, हे जयन्ती। ऐसा कहा जाता है कि कई जीवों का सुप्त रहना अच्छा है और कई जीवों का जागृत रहना अच्छा है। प्रथम शतक के नवम उद्देशक में प्राणातिपात, भृषावाद आदि १८ पापों को संसार बढ़ाने वाला तथा इनसे विरमण को संसार घटाने वाला बताया गया है, यथा गौतम- भन्ते! जीव संसार को परिमित कैसे करते हैं? भगवान् - गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य के विरमण से जीव _संसार को परिमित करते हैं। आज का विज्ञान त्रसकायिक एवं वनस्पतिकायिक जीवों में तो श्वसन क्रिया स्वीकार करता है, किन्तु पृथ्वीकायिक आदि अन्य एकेन्द्रिय जीवों के संबंध में मौन है। भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक १ के श्वासोच्छ्वास पट में पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीवों में श्वसनक्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12