Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 8
________________ विविध पूजन संग्रह सं पा मकान की मजबूती नींव पर निर्भर है. शरीर की मजबूती आत्मा पर निर्भर है, वैसे मुक्ति के अभिलाषीओं को पूजन-भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है। "विविध पूजन संग्रह" नामक प्रत का द्वितीय आवृत्ति आपके हाथ में समर्पण करते असीम आनन्द हो रहा है। अनेक विद्याओं के धनि लंकापति रावण ने अष्टापद पर भक्ति करते हुए उत्कृष्ट भावों के कारण ही तीर्थंकर गोत्र कर्म का उपार्जन किया था । वर्तमान में भी अनेकानेक जीव परमात्मा-गुरु और सम्यग्दृष्टि-देव-देवी के महापूजनों द्वारा अनेक दुःखमय जीव पंचम आरे में भक्ति द्वारा स्वद्रव्य से पूजन करके आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर रहे है। मैं स्वयं वर्ष में २५० दिन से ज्यादा पूजन-प्रतिष्ठा-अंजनशलाका विधानों में रत रहता हूँ। साथ में चि. विरल-भाणेज कुणाल मिलन होते हुए भी - सभी को सन्तोष नहीं दे सकते । वर्ष में अनेकानेक आचार्य भगवंतों-पू. साधु साध्वीजी भगवन्त और अनेक श्रेष्ठिवर्यों - चाहे भेरुतारक वाले ताराचंदजी, बोरीजवाले मुकेशभाई, धानेराभुवन ट्रस्टी चन्द्रकान्तभाई, सेलोवाले घीसुभाई, मोन्टेक्षवाले | रमणभाई, मंडारवाले भंवरभाई, दिल्ही-मानसरोवर गार्डन मन्दिर, लुधीयाना, समाधिमन्दिर, वालकेश्वर - जयेशभाई, नागेश्वर ह्रींकार धाम तीर्थ के ट्रस्टी कल्याणभाई, धानेरा पद्मावती मन्दिर निर्माता ॥ सेवन्तीभाई, चेन्नईवाले शान्तीभाई एस. देवराज. वाले एवं नाकोडा दरबार वाले मनोजभाई आदि एवं संपादकीय कलम से ॥ ७ ॥ लम For Personal Private Use Only

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