Book Title: Viveksar Author(s): Shravak Hiralal Hansraj Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 7
________________ - ताना श्रावकोनी पिकाण राखीजे पण जिनव चनविराधवानी कांई डर राखीनथी तेऊपर ए क गाथा ॥ गच्छनाभेदबहुनयणनीहालतांतत्वनी बातकरतानलाजे । उदरत्नरणादिनिजकाजकरतां थकां । मोहनडिआकलीकालराजे ॥ इति आनं दघनबचन । एथकी विचारियेतो आचार्यों ये जेगच्छ थाप्याने ते केवल पोतानी वली पोताना परिवारनी आजीविका चलाबा सारू जुदा जुदा गच्छथापी बाडावारीलीधाबे पण आपणानाइयो कांई विचारतानथी तेमांपण केटला आचार्यों ये जेवो नरमाव्यो तेवोकोईये नरमाव्यो नथीते केम जे सज पोतपोताना मनमां समबे जेनीप जोषणपर्व नाद्रपद छ ५ नो परापुरवे तेनूखं डन करी चौथनो स्थापन कस्यो वली परकी परा पुरवे पूनम तथा अमावसनीले तेने तोडीने चौद सनी ठेरावी पण आपणनाइयो विचारकरो जे शाचायोंये ठेव कस्यो तेथी अगाऊ कोई बुझिमा न नहीथया हसे घणा केवली तथा पूर्वधर थईग या तेमां कोईये एतिथीनो खंडन कस्खोनही वली कोई सिद्धांतमा वली प्रकरणोमां पण एतिथिनो खंझन कस्यो नथी आतो आचार्योंयें मतबादथी खोटो नरमाव्योछे मोंढाथी एम बोलेछ जे श्रीका लिकाचार्यजीयें चौथनो संवत्सरीपर्व थाप्यो तेप ण स्यांकारणथी ते जाणताहसे पण हठ मंकता नPage Navigation
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