Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ - रीन शास्त्रनो सिहांत त्याग करीने हठकरेबे तेक रो पण पंचमीना पालनवाला ऊपरे द्वेष करवोउ चित नथी जोवामां आवेनावनगर तथा पाली ताणा विगेरे गणा गामोमां एहवा द्वेष राखेके जेश्रावक ३६० दाडामा १ पैसानी नीलोत्री नई लेतो हसे तंपण नाद्रघासुद ५ नादिने नीलोत्री जरूर लसे एटलूंजनथी द्वेषना आवेशथी पंचमी ना पालनाराना मंदिर पासेथी खुली हाथें लेईव टावसे एहवा द्वेषे धर्मक्रिया करे ते किम तरे ते विचारी जुवो । वली पखी कोने कहिये ते नानो बालक पण जाणेजे जेपद परो थाय तेने पखीक हिये ते बूबता चउदसमां पखी करवी तेपण केव ल मतवाद नासेबे पण विचार करियेतो आचा ोयें वली पीलाकपडावाला साधूयें आपणा ना इयोंने नरमायामां कमती कस्यो नथी गुजरा तमां मोटी पूजानणावे तारे दालसाकन्नात सुद्धा नैवेद्य धरावे पण तेमां लानबे के हाणीने तेज्ञानी जाणे । वली मारी हीणबद्धी प्रमाणे तो जेटलो पी लाकपडावालामांथी केटला साधये आपणा नाइ योने नरमाब्योबे वली हाल पण नरमावे ते टलो सपेदकपडावाला भरमाबता नथी केमके तेतो यथा र्थ कहेजे जे अमारामां साधुपणो बे वा नथी ते ज्ञानी जाणे पणजे अमे करिये जे ते करसोतो बू डसो पण जेम कहिये तेकरसो तो तरसो अनेपी

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 237