Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ ( ९ ) दिनदिन वृद्धि पामेवे ते अमनेतो पांचमां तेम बठा यारानी निसाणीज मालूम पडेबे । नगवंते बेप्र कारनो धर्म कह्यो एक गृहिधर्म वीजो साधु ध र्म जे गृही धर्म तेमां यथेच्छ हिंसा १ प्रदत्तादा ननो त्याग २ स्वदार संतोष इत्यादि कह्यो । जे सा धुधर्म ते सर्व प्राणातिपातादि त्यागरूपले जेसाधु धर्म पालना समर्थ नहोय तेहने श्रावकधर्म अंगी कार कर कह्योबे जेसाधुधर्म पालीसके तेहने सा धुधर्म अंगीकार करवो कह्यो । जेबेहुं पालवासम र्थ नई ते केवल जिनेंद्रना कह्या जीवाजीवादि प दार्थने सांचा सरदहीने अविरत सम्पक दृष्टी केहवा यवे । पण एना उपासक तेमउपदेष्टा तो सार रहित सिकता जेम बे । साधुधर्म ने श्रावकधर्म बेऊंथी च्युत । एक कहलावत । पांपोतेनूबतो लेहूबे जजमान ॥ तेसत्यवे एलोकोमां अविरत सम्यकूदृष्टी पणो पणनथीजेमांटे विपरीत सरदहणावे | के कोई जती साधुने बांदणो नई १ तेम व्रत पचखाण लेणो नई २ वली यतीनी प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा बांद णी नई ३ तेम श्रावकना हातनी प्रतिष्ठित एक महा वीर स्वामीनी प्रतिमा वांदणी ४ । २३ तीर्थंकरनी प्रतिमा वांदणी नई | जेहनो शासनबे तेहनीज प्र तिमा वांदणी ५ ॥ जदि जावहोयतो पूजा करवी नाव नहोयतो पूजा करबी नई ६ ॥ तेम जती साधु ने वांदवो एहमां अनेक ग्रंथना प्रमाणबे नेवांद

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