Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
(१० >
वाथी तेम पूजासत्कारथी पुण्य थायले सूत्रोंमां ते म ग्रंथोमां साधुने बांदवानी तेम पूजासत्कारनो घणो फल लख्यो । जदि कोई एम केसे कि ग्रासम यमां चारित्रियासाधुनथी ए केहबो उचितनथी केम के धनेश्वरसूरिजी यें सत्रुंजयमहातममां लख्युंबे जे यादृशंतादृशं वापि दृष्ट्वावेषधरंमुनिं गृहीगौतमव नक्त्या पूजयेत्पुण्यकाम्यया ॥ १ ॥ एहवचनथी जे टला जगवानना वेषधारी साधुबे तेसर्वे गौतमने तुल्य वांदवा पूजवा योग्यबे भक्तियें पुण्यनी इच्छा करी ॥ एकह्यांथी एमालूम थायले जे चारित्रसहित तेम चारित्र रहित नी परीक्षा मे बनस्थ क रीसकता नथी एचारित्रियो ए चारित्रियो बेए तो ज्ञानी जाणे । एहमां बे दृष्टांत जे प्रसन्नचंद्र राजऋषीने मननो परिणाम कोण जाणतो हतो के एसमयमां मरसे तो नरकमां जासे श्रेणिकादि क सर्वे एहवूं केहवा लाग्या के एमुनिराज घणीं उग्र तपस्या करेके घोमाथी उतरीने वांद्यो । ए मंगारक मुनिराजने सर्वे जाणता हता के एच्छा चार्य बे ने श्रुतकेवली तेहने ५०० शिष्य हता परंतु भद्रबाहु स्वामीने पूग्रांथी मालुम थयूं केए अंगारक नव्यशूकर ने ५०० एना शिष्यहा थी के एमाटे पाचार्य पदथी च्युतकरी दीधो ॥ ए माटे चारित्रादिगुणीबे वा नथी एनी परीक्षा तेम वांदो नवदवो एकहत्रो घणो अनुचित ठहरसे

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 237