Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ पाठ३ | सात तत्त्व सम्यग्दृष्टि (चौथे गुणस्थानवर्ती) जघन्य अंतरात्मा हैं। उक्त दोनों की मध्यदशावर्ती देशव्रती श्रावक और मुनिराज (पाँचवें से ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती) मध्यम अंतरात्मा हैं। प्रभाकर - अंतरात्मा बनने से लाभ क्या है ? योगीन्दु देव - यही अंतरात्मा गृहस्थावस्था त्यागकर शुद्धोपयोग रूप मुनि-अवस्था धारण कर निज स्वभाव साधन द्वारा परमात्म-पद प्राप्त करता है अर्थात् परमात्मा बन जाता है और इसके अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख और अनंत वीर्य प्रकट हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि यही अंतरात्मा अपने पुरुषार्थ द्वारा आगे बढकर परमात्मा बनता है। प्रभाकर - परमात्मा बनने से क्या लाभ है ? योगीन्दु देव - प्रत्येक आत्मा सुखी होना चाहता है। परमात्मा पूर्ण निराकुल होने से अनंत सुखी हैं। परमात्मा दो प्रकार के होते हैं - (१) सकल परमात्मा (२) निकल परमात्मा। ___चार घातिया कर्मों का अभाव करनेवाले श्री अरहंत भगवान को शरीर सहित होने से सकल परमात्मा कहते हैं और कर्मों से रहित सिद्ध भगवान को शरीररहित होने से निकल परमात्मा कहते हैं। बहिरात्मा संसारमार्गी होने से बहिरात्मपन सर्वथा हेय है। अंतरात्मा मुक्तिमार्ग का पथिक है, अत: अंतरात्मपन कथंचित् उपादेय है तथा परमात्मपन अतीन्द्रिय सुखमय होने से सर्वथा उपादेय है। अत: सबको पुरुषार्थपूर्वक बहिरात्मपन छोड़कर अंतरात्मा बनकर परमात्मा बनने की भावना करनी चाहिए। आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी (व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) तत्त्वार्थसूत्रकरिं, गृद्धपिच्छोपलक्षितम् । वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ।। कम से कम लिखकर अधिक से अधिक प्रसिद्धि पानेवाले आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र से जैन समाज जितना अधिक परिचित है, उनके जीवन परिचय के संबंध में उतना ही अपरिचित है। ये कुन्दकुन्दाचार्य के पट्ट शिष्य थे तथा विक्रम की प्रथम शताब्दी के अन्तिम काल में तथा द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत-भूमि को पवित्र कर रहे थे। आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी उन गौरवशाली आचार्यों में हैं, जिन्हें समग्र आचार्य परम्परा में पूर्ण प्रामाणिकता और सम्मान प्राप्त है। जो महत्त्व वैदिकों में गीता का ईसाइयों में बाइबिल का और मुसलमानों में कुरान का माना जाता है, वही महत्त्व जैन परम्परा में गृद्धपिच्छ उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र को प्राप्त है। इसका दूसरा नाम मोक्षशास्त्र भी है। यह संस्कृत भाषा का सर्वप्रथम जैन ग्रन्थ है। यह ग्रन्थराज जैन समाज द्वारा संचालित सभी परीक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रमों में निर्धारित है और सारे भारतवर्ष के जैन विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। प्रस्तुत अंश तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर लिखा गया है। प्रश्न १. आत्मा किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? बहिरात्मा का स्वरूप लिखिए। २. अंतरात्मा का लक्षण और भेद स्पष्ट कीजिए। ३. परमात्मा किसे कहते हैं ? सकल व निकल परमात्मा को स्पष्ट कीजिए। ४. मुनिराज योगीन्दु के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये। (९) (१०)

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