Book Title: Vidhan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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अथ प्रत्येकपूजा आद्यं प्रकीर्णकं सारं सामायिकाभिधानकं। यति श्रावकभेदानां समताकालसूचक।1। ऊँ ह्रीं प्रथमप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।
द्वादशस्तवनं नाम द्वितीयं च प्रकीर्णक। वर्णातिशयचिन्हादि कथकं च जिनेशिना।2। ऊँ ह्रीं द्वितीयप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अयं निर्वपामीति स्वाहा।2। __वन्दनाशब्दसंयुक्तं तृतीयं च प्रकीर्णकं। अर्हदादिकपूज्यानां वन्दनाभेददीपकं।। ॐ ह्रीं तृतीयप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।3।
प्रतिक्रमणसंज्ञं च चतुर्थं च प्रकीर्णक। दिनादि सप्तभेदानां प्रतिक्रमणदेशक।। ऊँ ह्रीं चतुर्थप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
वैनेयिकाभिधं ज्ञेयं पञ्चमं च प्रकीर्णकं। दर्शनज्ञानचारित्र तपसां विनयाख्यक।। ऊँ ह्रीं पञ्चमप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
कृतिकाभिधं ज्ञेयं षष्ठं सुष्ठु प्रकीर्णकं। दीक्षाङ्गीकारभेदादिक्रियासूचनतत्परं।। ऊँ ह्रीं षष्ठप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।6।
दशवैकालिकं नाम सप्तमं वै प्रकीर्णकं। जिनोक्तपिण्डशुद्ध्यादि पुण्याचरणसूचक।। ऊँ ह्रीं सप्तमप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।7।
उत्तराध्ययनमाख्यं हि चाष्टमं सुप्रकीर्णक। नानोपसर्गदुःखादेः सहनफलभाषकं।। ऊँ ह्रीं अष्ठमप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।8।
व्यवहारान्तकल्पादि नामकं नवमं बहिः। प्रकीर्णकस्यत्यादेः प्रायश्चित्तप्ररूपकं।। ऊँ ह्रीं नवमप्रकीर्णकपूजानिमित्ताय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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