Book Title: Vidhan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ भूम्यादिषु प्रवेशादि मंत्रतंत्रादिवाचिकां। चूलिकां स्थलजातां वै यजेऽहं सज्जलादिभिः।। ऊँ ह्रीं द्विकोटि नवलक्षनवाशीति सहस्र द्विशतपदप्रमाणाय स्थलगतचूलिकायै केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।2। मायारूपेन्द्रजालादि मंत्रतंत्रादि बोधिकां। मायाख्यां चूलिकां सारां यजेऽहं सज्जलादिभिः।। ___ऊँ ह्रीं द्विकोटि नवलक्षनवाशीतिसहस्रद्विशतपदप्रमाणाय मायागतचूलिकायै केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।3। सिंहव्याघ्रादिरूपाणां मंत्रतंत्रादिदेशिकां। चूलिकां रूपजातां च यजेऽहं सज्जलादिभिः।। ऊँ ह्रीं द्विकोटि नवलक्षनवाशीतिसहस्र द्विशतपदप्रमाणाय रूपगतचूलिकायै केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।4। आकाशयानमंत्रादि सूचिकाख्यगतां वरां। चूलिकां दृष्टिवादाङ्गां यजेऽहं सज्जलादिभिः।। ॐ ह्रीं द्विकोटि नवलक्षनवाशीतिसहस्र द्विशतपदप्रमाणाय आकाशगतचूलिकायै केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। दृष्टिवादं वरं चाङ्गं षट्-विंशति सुभेदगं। तीर्थनाथमुखोत्पन्नं भव्याय चास्तु सौख्यद।। ऊँ ह्रीं जलगत मायागत रूपगताकाशगत पञ्चचूलिकाभ्यः पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।6। अथ अंगबाह्य प्रकीर्णक पूजा अङ्गबाह्यं श्रुतं शेषं सामायिकादिसूचकम्। समतादिकरं ग्रन्थ, यजेऽहं सज्जलादिभिः।। ॐ ह्रीं अष्टकोट्यै कलक्षाष्टसहस्रै कशतपञ्चसप्ततिवर्ण प्रमाणाय अंगबाह्य श्रुतज्ञानाय केवलज्ञानादिविभूतये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 12

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