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पच्चीस दोषों से रहित, अष्टांग सम्यग्दर्शनम्।
अर्हन्त आगम गुरुवरों का, मैं करों नित अर्चनम्।।6।। ओं ह्रीं श्री जगदापविनाशनहेतवे शुद्धसम्यक्त्वामलतरखण्डोज्झितनिदानबन्धनाय कृतेज्याय
श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
द्वादशांग जिनेन्द्रवाणी, ज्ञान-दोष-विवर्जितम्।
सम्यगविभूषित आत्मज्योति, को करों मैं वन्दनम्।।7।। ओं ह्रीं श्री जगदापविनाशनहेतवे सम्यग्ज्ञानामलतरखण्डोज्झितनिदानबन्धनाय कृतेज्याय
श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गुप्तियाँ त्रय समिति पांचों, और पंच महाव्रतम्।
तेरह प्रकार चरित्र सम्यक्, का करों मैं पूजनम्।।8। ओं ह्रीं श्री जगदापविनाशनहेतवे सम्यक्चारित्रामलतरखण्डोज्झितनिदानबन्धनाय कृतेज्याय
श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ज्ञानावारक पंचप्रकृति हैं, प्रभु ने सर्व विनाशी।
शान्तिजिनेश दया के सागर, पूजों पद अविनाशी॥9॥ ओं ह्रीं ज्ञानावरणमहाबन्धबन्धनकृते सति तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रवनिवारकाय
श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शनावारक कर्म प्रकृति नव, प्रभु ने सर्व विनाशी।
शान्तिजिनेश दया के सागर, पूजों पद अविनाशी।।10॥ ओं ह्रीं दर्शनावरणकर्मबन्धनकृते सति तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रवनिवारकाय
श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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