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अथ जयमाला- दोहा
जिनवाणी को नमन कर, भक्ति हृदय में धार । गाऊं आरति धवल की, अल्पबुद्धि अनुसार
(राग - चैबाला)
हे धवल तुम्हारे शब्दों में कैसा माधुर्य भरा भारी। तेरी प्राकृतमय रचना से स्वाभाविकता दिखती सारी।टेक। धरसे गुरु के शिष्यों ने, की सूत्रों में रचना सारी। उन भूतबली अरु पुष्पदंत की, कृतियां हैं अति सुखकारी।। सहसा स्मृति सुश्रुत पंचमि की, हो आती है अति सुखकारी। पावन दिन की पुण्य स्मृति से, करमन प्राभृत रचना भारी॥ जिनवाणी सागर की कणिका, अकलंक इंदु सी तमहारी। 3। कर्मों का फंदा दिखलाकर, उलझन सुलझादी दुखकारी। सुन सुन श्रद्धा दृढ़ हो जाती, भय भाग गये भारी भारी। 4 । विज्ञान का गहन खजाना है, वैज्ञानिक जानत यह सारी । रेडियो विचारा कुछ नहिं है, जब शब्दपति सुन ली भारी । 5 । श्री वीरसेन स्वामी ने इसकी, टीका की है अति भारी। श्री आर्यनन्दि अरु चन्द्रसेन भी, हुए मुनि सब सुखकारी ।6। सूर्यनन्दि अरु वीरनन्दि से, हुए यतीश्वर मनहारी। गुणनन्दि और वसुनन्दी से, हो गए मुनीश्वर अघहारी । 7।
सूरनन्दि सिद्धान्त देव के चरणों की है बलिहारी। शुभचंद्र आर्य गुणसागर थे, जिन दिग्दिगंत कीरति धारी।8। नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रि ने गाई इसकी बलिहारी । इससे शुभ सार खींच करके, वह गोम्मटसार रचा भारी। 9। इसकी महिमा कैसे गावें, हैं थक जाते ज्ञानी भारी । हम सबकी श्रद्धा है तुम में, तेरी गोदी की बलिहारी । 10
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