Book Title: Vidhan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
श्रुतपूजापराभक्त्या अवध्याकूतपर्ययकेवलज्ञानमाप्नोति यत्रभावेषु रञ्जिताः।।
इतित्रिषु ज्ञानेषु पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्।। एवं स्तुतं श्रुतं नित्यं त्रैलोक्यसौख्यसागरं। ज्ञानायाऽस्तु च भव्यानां त्रिभुवनादिकीर्त्तये।।
ऊँ ह्रीं वस्तुप्राभृतकानुयोगेभ्यः पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
अथ जाप्यमंत्र
ॐ ह्रीं श्रीद्वादशाङ्गश्रुताय नमः। जाप्य 108 दीयते।। ऊँ ह्री वदवद वाग्वादिनि! भगवति! सरस्वति! ह्रीं नमः।
अथ जयमाला नानानन्दमयं प्रमोदसुकरं चिद्रूपभावोद्धरं। ज्ञानं विश्वशरीरिभावकथकं कर्मरिनिर्वाहकम्।। श्री सर्वज्ञ विकासितं गणधरै। सेव्यं परं मुक्तिदम्। भक्त्या संविभजामि तत् त्रिभुवने कीर्ति प्रमोदावहम्।। विकासित भव्यसुयोगिचरित्र ! क्रियाभरभूषितपुण्यपवित्र ! जयामरसेवितबोधविकाश ! समुज्ज्वलमुक्तिद पापविनाश ! सुजीवपदार्थ विकाशनचण्ड ! परोन्नतकर्म सुरूपकदण्ड ! जयामरसेवितबोधविकाश ! समुज्ज्वलमुक्तिदपापविनाश!! सुभावपदार्थविकाशनचण्ड ! परोन्नति कर्मसुरूपकरण्ड ! जयामरसेवितबोधविकाश ! समुज्ज्वलमुक्तिदपापविनाश!! मुनीशसुपर्य्यनुयोगसुभोग ! जिनेशविभूति विवादनयोग ! जयामरसेवितबोधविकाश ! समुज्ज्वलमुक्तिदपापविनाश!! उपासकमार्गसमुज्ज्वलचन्द्र ! द्विपञ्चयतीश्वरवाद महेन्द्र !! जयामरसेवितबोधविकाश ! समुज्ज्वलमुक्तिद पापविनाश!!
15

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 1409