Book Title: Vichar Ratnakar
Author(s): Kirtivijay, Dansuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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वि. र. १
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अर्हम्. ॥ श्रीपरमात्मने नमः ॥
श्रेष्ठि- देवचन्द्र लालभाई - जैनपुस्तकोद्धार - ग्रन्थाङ्के— श्रीकीर्त्तिविजयोपाध्यायविरचितः -
श्रीविचाररत्नाकरः ॥
॥ अथ प्रथमस्तरङ्गः ॥
स जयति जिनवीरः क्षीरपूराच्छ कीर्त्तिर्भवति भुवनमान्यो यत्प्रसत्तेर्नरोऽपि ।
अथ किमिव न शक्यं दिव्यशक्तेर्घटोऽपि श्रयति जननुतां यत्कामकुम्भप्रतिष्ठाम् ॥ १ ॥ | जीया सुर्जिन शासनोन तिकराः श्रीहीरसूरीश्वराः, सिद्धान्तोद्धयः समाश्रिततटा रत्नार्थिभिर्धीवरैः । शिष्टाभीष्टर साश्रया घनजना येभ्यो निपीतामृताः, गर्जन्तोऽप्यजडाशयाः प्रतिदिशं प्रीतिं समातन्वते ॥ २ ॥
| तेषामच्छस्वयशः परिमलपरिकलितसकलभुवनानाम् । हृदि गोत्रमन्त्रमित्रं निधाय कामितफलवदान्यम् ॥ ३ ॥ अङ्गोपाङ्गाद्या गमतद्विवृतिप्रकरणादिदृष्टानाम् ।
रचयामि विचाराणां निचयं ग्रन्थेऽत्र रुचिराणाम् ॥ ४ ॥ त्रिभिर्विशेषकम्.
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