Book Title: Vichar Ratnakar
Author(s): Kirtivijay, Dansuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ वधिः कार्या, अवधिमध्ये तूग्राहणिकां विनापि शीघ्रं देयमन्यथा देवद्रव्योपभोगदोषप्रसक्तिः, तद्रव्यचिन्तकैरुद्ग्राहणिकापि शीघ्रमभग्नतया स्वद्रव्यवद्देवद्रव्येऽपि कार्या" | " तथान्त्यावस्थायां पित्रादीनां यन्मान्यते तत्सावधानत्वे गुरुश्राद्धादिबहुसमक्षमेव वाच्यम्:यन्भवन्निमित्तमियहिनमध्ये इयद्वययिष्यामि तदनुमोदना भवद्भिः कार्या । तदपि सद्यः सर्वज्ञातं व्ययितव्यम् । स्वनाम्ना व्यये तु स्तैन्यादिदोषः" इत्यादयोऽनेके उपयोगिनो विषयाः प्रपञ्चिता इति । स्तम्भननगरे पूज्यपाद-प्राचार्य्यदेवश्रीमद्विजयदानसूरीश्वरसाम्राज्यवर्ती-अनुयोगाचार्य आषाढ कृष्णद्वितीयायां वीर संवत् २४५३ श्रीमत्प्रेमविजयगणिवरविनेयाणुर्जम्बृविजयः Jain Education Intalna For Private & Personel Use Only alww.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 416