Book Title: Vasudevhindi Sar
Author(s): Veerchand Prabhudas Pandit
Publisher: Ishvarlal Keshavlal Shah

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीज्ञासुओने त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र पर्व नवमांना पहेला त्रग सर्ग वाचवा भलामण करीए छीए. केमके वसुदेवना चरित्रने लगतो भाग श्रीहेमचंद्राचार्य तेज मुळ ग्रंथमाथी उद्धर्यो छे. केमके तेओएज त्रीजा सर्गने से लख्यु छ के-"इतिश्री त्रिपष्टि नवमे पर्वणि वसुदेवहीण्डि पर्ण नाम तृतीयः सर्गः समाप्तः" वसुदेव प्रवासे नीकळ्या पछीथी रोहि गीता स्वयंवर मंडप सुधीनो भाग आ प्रस्तुत प्रथमां बिलकुल नथी. ते भाग बहु विस्तृत होवाथी छोडी दीयो हशे. वसुदेवन! चरित्र उपरांत श्रीकृष्ण अने श्रीनेमिनाथ प्रभुनां पण चरित्रो तेमा ( वसुदेवहिंडीमां) छे. एम आ लघु ग्रंथथी आपणे जाणी शकीशु. नाभेयनेमिद्विसंधानना कर्ता श्रीहेमचन्द्राचार्य (वादि देवसूरिना गच्छना मुनिचंद्रसूरिना शिष्य) श्रीनेमिनाथ प्रभुना चरित्रनो उद्धार " हरिवंश शास्त्रमांधी " कर्यानु लखे छे. अने मारा धारवा प्रमागे कलिकाल सर्पज्ञ श्रीहेन वद्रा वार्य पण एक प्रसंगे हरिवंश शाखनी स्तुति करे छे. ते हरिवंश शास्त्र कयुं हशे ? कदाच आ“वमृदेवहिंडी" तो नहीं होग? वसुदेवहिंदी प्राकुतभाषामां छे. भाषानो संस्कार प्रौढ छे, गद्य प्रसन्न अने गंभीर छे. शब्दालंकार स्वाभाविक छे. रचनाशैली कंइक जैन आगमोने अनुसरती होय तेम जणाय छे. हुं समजु छु. के संस्कृत अने प्राकृत भाषाना मध्यम बोधवाला एक गुजराती वाचकने सरस्वतीचंद्र वांचतां जे छुट अने आनंद मळतो जाय तेवीज रीते आमां मळी शके तेम छे. रचनानी क्लिष्टता कोइपण ठेकाणे नहीं होय एम मारुं धारयुं छे. कादंबरी, तिलकजरीना गद्यो कोइ ठेकाणे वाचकने कठीण जणाय पण आ गद्य तो उपमिति भवमपश्च जेवं मधुरं अने सरळ छे. एकंदर रीते साहित्यना उच्चकोटीना ग्रंथने लगतां तमाम गुणो आ ग्रंथमा छे. तेथीज ए जैनसाहित्यने शोभाप्रद छे एटलुंज नहीं पण हिंदुस्थानना तमाम उत्तम प्राचीन साहित्य प्रथोमां ते पोतार्नु नाम रजीस्टर करावे तेम छे. नमुनो जोबा जेन कोन्फरन्स हेरल्ड ता. १-१-१९१७ नुं जोवा वाचकोने भलामण करीए छीए. For Private and Personal Use Only

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