Book Title: Vasudevhindi Sar
Author(s): Veerchand Prabhudas Pandit
Publisher: Ishvarlal Keshavlal Shah

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ अर्हम् ॥ श्री वसुदेवहिण्डीसार प्रकरणम् । तेणं कालेणं तेणं समएणं वलदेसे कोसंबीनयरी, संमुद्दो राया अति । तद वीरियकुविदो, | तस्स नारिया वणमाला रूवस्सिणी; रएणा अवहरिया। वीरियो तबिरहे विलवमाणो बालतव|| स्सी जायो । अएणया तीए सहियो उलोयगयो वीरियं तवस्सिं तारिस अवत्थंतरगयं ददण है| हा ! किमकऊ कयं ? श्य विहिं वेरगरसेण मणुस्साऊ बझे, ऊवरिं विज्जू निवमिया, हरिवासे | || मिहुणयं जायं । वीरयोवि कालगो सोहम्मे कप्पे तिपलिउवमहिई किविसियो देवो जायो। | पुवनववेरं समरिऊण तं मिहुणं हरिवासाउ साहरश् । चंपाए रायहाणिए श्कागवंसे चंदकित्ती| राया अपुत्तो । वोच्छिणे निवकंखिएहिं नयरलोएहिं तं मिहुणं रज्जे वियं । नामेण हरिराया | हरिणीदेवी जाया । तम्मि हरिवंसे रायाणो असंखिज्जा जाया।तो वसुरगणा महुरा निवेसिया। For Private and Personal Use Only

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