Book Title: Vasudevhindi Sar
Author(s): Veerchand Prabhudas Pandit
Publisher: Ishvarlal Keshavlal Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org PATORARY ADDAATYAT श्री हेमचन्द्राचार्यग्रन्थावली ग्रन्थाङ्कः ४ श्रीवसुदेवहिण्डीसारः श्रीमत्पंन्यास श्रीनीति विजयमहा राजसमुपदिष्ट-पट्टनस्थ फोफलियावाडाना शा. मणिलाल हिराचन्द इस्मेाहयिन पट्टनस्थायाः श्रीहेमचन्द्राचार्यसभायाः सेक्रेटरी-शा. मणीलाल रतनचन्द इत्यनेन प्रकाशितः श्रावक पण्डित वीरचन्द्र- प्रभुदासाभ्यां संशोधितश्च इश्वरलाल केशवलाल - माणेकलाल माधवलालाभ्यां अहम्मदाबाद - 'ढीकवाचोकी' समीपस्थ शान्तिविजय प्रीन्टगाख्ये निमुद्रणयन्त्रालये मुद्रितः संवत् १९७४. प्रत ३०० मूल्यमाणकद्वयम् . For Private and Personal Use Only सन १९१७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3D RCHCREA प्रस्तावना. आ वसुदेव हिंडीसारनी एक प्रत अमने श्री पाटणना शा. हालाभाइ मगनभाइनी देखरेख नीचेना फोफलीयावाडाना भंडारमाथी मळी आवी छे प्रत सामान्यतः अशुद्ध छे. श्लोक प्रमाण लगभग अढीसें सुधार्नु छ. वसुदेव हिंडो ग्रंथ वस्तुतः भारतीय साहित्य ग्रंथ रत्नोमांचें एक रत्न छे, छतां जैन समुदायमांज तेनी घणी सारी प्रतिष्ठा छे; तेथी तेना विषयनी जीज्ञासा अनेक व्यक्तिआना हृदयमा उद्भवेली छे, संपूर्ण रीते ते जिज्ञासा शांत करवी ए एक भगीरथ प्रयत्न छे; केमके तेने माटे सोटी साधनसामग्रीनी जरुर छे, छतां आ ग्रंथ हाथ लागवाथी ग्रंथना विषयनी सामान्यरूपरेखा जीज्ञासुओने आश्वासन आपी शके तेम छे, जो के बसुदेवहिंडी ग्रंथना विस्तारनो विचार करता 'आ पुस्तक घणुज संक्षेपमा रच्युं छे' एम तो कहे ज पडशे. एटले एकन ग्रंथ मान चोवीश--पचीशहजार श्लोक प्रमाण उपरनुं छे. त्यारे बीजानुं बसे अढीसे श्लोकनुं प्रमाण छे. आ वमुवहिंडीसारना कर्ता कोण छे ? क्या अने क्यारे सारोद्धार कर्यो ? ते कंइ निश्चित थइ शक्युं नथी. मात्र ग्रंथने अंते एटलुंज नाम मळे छे के " श्री गुगनिधान मूरि भाटे टुंकामां कथा कही" पण कोगे कही ? ते जाणी शकातुं नथी. केमके आ बाबतनो स्पष्ट के अस्पष्ट उल्लेख प्रतमां कयों नथी, अने आवा सामान्य ग्रंथने माटे बाह्य साधनो खोळवा ए निष्फळ प्रयत्न छअर्थात् बहार पण साधनो होवानो असंभव छे. ग्रंथ उपरथी एटलुं तो जाणी शकाय छे के त्रणसें चारसें वर्षथी वधारे प्राचीन तो नथीज. टीपमा प्र० महाराजश्री कांतिविजयजी महाराजे " वसुदेव हिंडो आलापक" नाम राख्युं छे. प्रथन अंते “वसुदेव हिंदी कहा समत्ता" एवा शब्दो छे. अमे “ वसुदेव हिंडीसार" नाम राख्यु छे. S EX For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसुदेव हिंडी. आ अपूर्व ग्रंथ भारतवर्षना साहित्य मंथरत्नोमांनुं एक रत्न छे. पिशाचभाषामां गुणाइय कविए नरवाहन राजाना चारित्रयी प्रथित एक बृहद्कथाः रचो छे. आ ग्रंथ पण श्री संत्रासमणीए वमुदेवना चरित्रधी प्रश्रित प्राकृतभाषा लम्भकमयी रचेल गृहस्था छे. गाय कविनी वृहत्कथा हालमां अप्राप्य छे, अने वमुदेवाहंडीनो केटोक भाग हाल मळी आवे छे. पाटण, राधापुर, अने अनदावाद विगेरेना पुस्तक भंडारोमा जे भाग मळी आवे छे. ते त्रण खंड छे. अने श्लोकनुं प्रमाण कुल पचीसेक हजार छे. ग्रंथ जोवाथी मालूम पडी शके के केटलो भाग अधुरो रहे छे ? संभळाय छे के कुल लंभक एकसोने सीत्तेर हता. तेमांना हाल केटला प्राप्य छे अने केटला नथी ते पण ग्रंथ जोवाधीज बनी शके तेधुं छे. श्रीजा खंडना कर्ता ग्रंथावळीमां बीजा आचार्य लख्या छे, अने ते बहु प्राचीन नधी; पण अर्वाचीन छे. तो प्रश्न ए उठे छे के बीजा आचार्य से ग्रंथ लख्यो छे, ते एकज विषयनो स्वतंत्र ग्रंथ छे ? के मुळ ग्रंथकारे अधुरो राखेला पुरो कर्यो छे ? के कोइपण खंडित थयेल ग्रंथने करीबी अखंड कर्यो छे ? तेमां बीजो पक्ष संभवतो नथी. १ लम्भाद्दिकताद्भुताश्री नरवाहनदत्तादिचरितवद् वृहत्कथा । तथा च--- "लम्भाकिताना विद्याभाषामयी महाविषथा । नरवाहनत्तदेश्वरित व बृहत्कथा भवति ॥ १ ॥ " काव्यानुशासन अने विवेक । बृहत्कथा] ए नाम अमुक बनुं नथी. पण काव्ययोनी अनुक जातिनुं छे. लक्षगान्तर्गत लोकमा पिशाचभाषामयत्व ए अन्य तत्समभाषाओनुं उपलक्षण है. तेजश्रीहेमचंद्राचायें स्वकृत लक्षगमां भावानो नियम सूचव्यो नधी, मात्र कोइना श्लोकमा छे. संशोधक. For Private and Personal Use Only 2 *य कुर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir उपरनी शंकाओनु समाधान अने जैन ग्रंथावळीमां वतावेल संदिग्बतार्नु समाधान ग्रंथो जोवाथी बनी शके तेम हतुं.परंतु लंबायली वर्ग कातुने लीये भंडारोमाथी पुस्तको भेळवबा अशक्य हता, अने ग्राहकोनी मांगणी उपराउपर आवी, तेथी ग्रंथने उतावळो बहार पाडबानी फरज पडी आधी विशेष निर्णयो करी शकया नधी. कोइ प्रसंगे ए बाबत हाथ धरीशं. चोथो खंड होवानो संभव छे. अने ते थोडाज बखतमा एटले सो बसो वर्षमाज अदृश्य रह्यो होय एम जणाय छे. केमके अमदाबाद डे लाना उपाश्रयना भंडारनी टीपमा " वसुदेवहींडी चोथो खंड" एम वाचवामां आव्यु. पुस्तक काढतां ते कोइ चर्चानो ग्रंथ हतो. तेना छे घटना भागमा कोइक प्रसंगने अनुसरी प्रमाण तरीके प्राकृत वे चार लाइनोनो फकरो टांकी " इति वसुदेव हिंडी चतुर्थखण्डे " ए लखेल हतु. तेथी एटलं तो समजाय छे के ते चर्चाना ग्रंथनी उत्पत्ति काले चतुर्थ खंडनी विद्यमानता अवश्य | होगी जोइए, अने ते चर्चीनो ग्रंथ बसो अढीसो वपंथी बवारे प्राचीन नथी. नरवाहन चरित्रवाली बृहत्कथामा जेम नरवाहन राजानो प्रवास विगेरे छे. अने बीजी पण मनोरंजक अवान्तर कथाओ छे. || ते प्रमाणे । वसुदेवहिंदी (वसुदेवनी प्रवास) मां पण छे. कोइ कोइ वस्तुओ अला प्रबंध रचना माटे एवी तो बंधवस्ती छे के हज जो कालीदास जेवा कविओ होय तो तेमांनी वस्तुओने जेटली खिलववी होय तेटली खोलवी शकायतेम छे.वसुदेवना प्रबासमा एवा अद्भूत बनावो अवे छ के-बांचतां बांचता वाचकने खूब दूर सूधी खेंची जइ उत्तरोत्तर रसमा वृद्धि करी आश्चर्य उपर आश्चर्यमां हूबाडे छे. आवी अद्भूत कथा मुळ ग्रंथमाथी बांची आनंद मेळवबार्नु सौभाग्य एकाद वे व्यक्ति शिवाय प्रात थर्बु अशक्य छे, पण ते चरित्र जाणवाना १ टीप करनारनी भुल हती. संशोधक. For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीज्ञासुओने त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र पर्व नवमांना पहेला त्रग सर्ग वाचवा भलामण करीए छीए. केमके वसुदेवना चरित्रने लगतो भाग श्रीहेमचंद्राचार्य तेज मुळ ग्रंथमाथी उद्धर्यो छे. केमके तेओएज त्रीजा सर्गने से लख्यु छ के-"इतिश्री त्रिपष्टि नवमे पर्वणि वसुदेवहीण्डि पर्ण नाम तृतीयः सर्गः समाप्तः" वसुदेव प्रवासे नीकळ्या पछीथी रोहि गीता स्वयंवर मंडप सुधीनो भाग आ प्रस्तुत प्रथमां बिलकुल नथी. ते भाग बहु विस्तृत होवाथी छोडी दीयो हशे. वसुदेवन! चरित्र उपरांत श्रीकृष्ण अने श्रीनेमिनाथ प्रभुनां पण चरित्रो तेमा ( वसुदेवहिंडीमां) छे. एम आ लघु ग्रंथथी आपणे जाणी शकीशु. नाभेयनेमिद्विसंधानना कर्ता श्रीहेमचन्द्राचार्य (वादि देवसूरिना गच्छना मुनिचंद्रसूरिना शिष्य) श्रीनेमिनाथ प्रभुना चरित्रनो उद्धार " हरिवंश शास्त्रमांधी " कर्यानु लखे छे. अने मारा धारवा प्रमागे कलिकाल सर्पज्ञ श्रीहेन वद्रा वार्य पण एक प्रसंगे हरिवंश शाखनी स्तुति करे छे. ते हरिवंश शास्त्र कयुं हशे ? कदाच आ“वमृदेवहिंडी" तो नहीं होग? वसुदेवहिंदी प्राकुतभाषामां छे. भाषानो संस्कार प्रौढ छे, गद्य प्रसन्न अने गंभीर छे. शब्दालंकार स्वाभाविक छे. रचनाशैली कंइक जैन आगमोने अनुसरती होय तेम जणाय छे. हुं समजु छु. के संस्कृत अने प्राकृत भाषाना मध्यम बोधवाला एक गुजराती वाचकने सरस्वतीचंद्र वांचतां जे छुट अने आनंद मळतो जाय तेवीज रीते आमां मळी शके तेम छे. रचनानी क्लिष्टता कोइपण ठेकाणे नहीं होय एम मारुं धारयुं छे. कादंबरी, तिलकजरीना गद्यो कोइ ठेकाणे वाचकने कठीण जणाय पण आ गद्य तो उपमिति भवमपश्च जेवं मधुरं अने सरळ छे. एकंदर रीते साहित्यना उच्चकोटीना ग्रंथने लगतां तमाम गुणो आ ग्रंथमा छे. तेथीज ए जैनसाहित्यने शोभाप्रद छे एटलुंज नहीं पण हिंदुस्थानना तमाम उत्तम प्राचीन साहित्य प्रथोमां ते पोतार्नु नाम रजीस्टर करावे तेम छे. नमुनो जोबा जेन कोन्फरन्स हेरल्ड ता. १-१-१९१७ नुं जोवा वाचकोने भलामण करीए छीए. For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ ग्रंथ छपायाथी इतिहास, भाषा, जैन आचार विचार विगेरे अनेक बाबतोनो प्रकाश पडे तेम छे. कोइ सभा या संस्था आ ग्रंथने गमे तेटला खर्चना भोगे बहार पडावे तो हवे तेम करवानो प्रसंग आवी गयो छे. जो के आवो ग्रंथ तो क्यारनोये बहार पडेलज होय, पण हालना वखतमां जैनसमाजमा साहित्यना कम शोखने लीधे हजु बहार पड़ी शक्यो नबी. केमके ज्यारे वेदानुयायि दर्शनोने लगता ग्रंथो छपाइ गया, तेनी अनेक आवृत्तिओ थइ गइ, भाषान्तरो अने विवेचनो पण थइ गया, त्यारे अमारी जैनसमाजमा हजु हवे केटलाक मुळ ग्रंथो छपाचवा हाथ धरवामां आवे छे. केटला बधा साहित्यनी अभिवृद्धिमा आपणे पाछळ छीए ? भाषानो संस्कार अने रचना शैली जोता रचनानो काळ इ. स. त्रीजो चोथो सैको होवो जोइए. छतां काळनिर्णय अने कर्तानो प्रामाणिक इतिहास शोधी काढवा अमे बहुश्रुतोने विनंति करीए छीए. कथानायक जगजाहेर श्रीकृष्गना पीता अने श्रीनेमिनाथ प्रभुना काका वसुदेव छे. वसुदेव पण कोइ गुप्त व्यक्ति नथी. | महाभारतादिकमां पण तेनी वर्णना थयेल छे. मारी समज प्रमाणे महाभारतमा आई विस्तारथी चरित्र नहीं आप्यु होय. जो श्रीकृष्ण अने श्रीनभिनाय प्रभु खास तिहासिक व्यक्तिओ छे तो वसुदेव पण तिहासिक व्यक्ति छे. हलना वखतमा असंभवि जणाता केटलाक बनायो तेओना चरित्रमाथी मळे छे. तेनुं कारण ए पण छे के असंभवि ठराबवामां पण मोटी भूल थाय छे. छेवट बधो दृष्टिओ दूर करीने रचनाहरिबी तपासीए तो पण संकलना बहुज खुबीवाळी लागशे. वछुदेव ते वखतना तमाम पुरुषो करतां घणांज सुंदर हता. अने तेनु सौभाग्य अद्भूत हतुं. तेथीज तेने 'जगवल्लभ'नु बिरुद | हतुं. ते शिवाय एक आर्य महापुरुषने छाजतां बीजा पण अनेक गुणो तेमां हता. तेना पुत्र श्रीकृष्ण पण तेवां होय तेमां शु आश्चर्य ? For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ता. १०-१०-१९१७. आश्चर्य तो मात्र एटलुंज के आवा पिताने मनुष्य तरीके वर्णव्या अने तेना पुत्रने इश्वर के इश्वरावतार तरीके वर्णव्या. पण शी विशेपता छे ? ते समजी शकातुं नथी. केमके जे जे अन्य गुणो श्रीकृष्णमांथी मळी आवशे ते वधा गुणो बीजाओ मां पण मळी आव कदाच सामान्य बुद्धीथी मनुष्योए मनुष्य मां संभवता संपूर्ण उच्च गुणाश्रय इश्वर कल्पी तेनुं रूपक योज्यु हशे ? आ बाबतनो विचार साक्षरवर्गे करवो जोइए. श्रीकृष्ण पण बीजाओनी माफक उच्चकोटीना मनुष्य हता ए वातमां अमे बेमत नथी. अस्तु. बीजी प्रतनो अभाव, अने एक पण वळी सामान्यतः अशुद्ध, तेथी शोधतां मुश्केली पडे एजाणीतुंज छे. अने तेथी के दृष्टि दोषथी कोइ स्खलना जणाय तो सज्जन पुरुषों सुधारी लेशो. एज विनंति. पाटग. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ली० संशोधको. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ अर्हम् ॥ श्री वसुदेवहिण्डीसार प्रकरणम् । तेणं कालेणं तेणं समएणं वलदेसे कोसंबीनयरी, संमुद्दो राया अति । तद वीरियकुविदो, | तस्स नारिया वणमाला रूवस्सिणी; रएणा अवहरिया। वीरियो तबिरहे विलवमाणो बालतव|| स्सी जायो । अएणया तीए सहियो उलोयगयो वीरियं तवस्सिं तारिस अवत्थंतरगयं ददण है| हा ! किमकऊ कयं ? श्य विहिं वेरगरसेण मणुस्साऊ बझे, ऊवरिं विज्जू निवमिया, हरिवासे | || मिहुणयं जायं । वीरयोवि कालगो सोहम्मे कप्पे तिपलिउवमहिई किविसियो देवो जायो। | पुवनववेरं समरिऊण तं मिहुणं हरिवासाउ साहरश् । चंपाए रायहाणिए श्कागवंसे चंदकित्ती| राया अपुत्तो । वोच्छिणे निवकंखिएहिं नयरलोएहिं तं मिहुणं रज्जे वियं । नामेण हरिराया | हरिणीदेवी जाया । तम्मि हरिवंसे रायाणो असंखिज्जा जाया।तो वसुरगणा महुरा निवेसिया। For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हीडीसार ॥ १ ॥ तयो कम्मेण सुमित्तमुणिसुव्वयसिरिकांतपमुहअसंस्किज्जा रायाणो जाया । तम्मि वंसे जगराया महड्डियो जाओ । तम्मि जऽवंसे सोरी सुवीयरो य उवे लायरो जाया । सोरिणा महुरारज्जं | है सुवीररायस्स दाऊण, सोरीपुरं गविऊण, रज्जं पाले। तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरीयपुरे नयरे अंधकविएिहसुया सम्मुद्दविजय-अकोह-थिमिय-सायर-हिमवं-अयल-धरण-पूरण--अनिचंद--वसुदेव श्यनामा जाया। कुंती मुद्दी दुवे पुत्तिया । तस्थ समुदविजयो रज्जं पालेश, अएणे जुवरायाणो।। श्यन य महुराए नयरीए नोजविएिहसुयो जग्गसेणो राया रज्जं पालेश् । अएणया रएणा! मासोपवासमेगं तावसं दणं पारणे सघरे निमंतियो, मज्झएणे स आगन । रणो सूलरोगेण वीसरियो। तन पच्छा तावसियो बियं मासकवणमारो । तरस पारणे पुणरवि रएणा खामिऊण | निमंतियो। परचकागमणे राया विग्गो जाओ। तेण पुणरवि वीसरियो । कोहवसेणं नियाणं कयं । 'मे तवप्पहावाउ नवंतरे अस्स कव्हेज हो'श्य मरिऊण धारणीदेवीए गब्ने समुप्पन्नो। For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ROSCARBONUARMA नीसे पश्मंसासाणमोहलो जान । पहाणेहिं केणोवारण पूरिन । पुएणदिएणेहिं सा सुयं पसूया । | कंसयपेमा मज्के नामंकियमुदियाजुयलजुत्तपत्तियसहिक पुत्तं निख्खिविऊण जणानईए पख्ख|| विया । सूरोदये सोरियपुरे गया । पहाए समुद्देण दिछा । गहिऊं पुत्तोअत्तत्ताउ । कंसनामेण तत्थ | सो वढ । सो य पुत्वजम्मतवतेयसो उग्गतवो जायो ।बाला य कुट्टे । तयो समुद्दरसवणिएण | समुद्दविजयस्स रमो समप्पियो । रमा य सरिसवयवसुदेवस्स सेवयन्नेण कायो। सो य वसुदेवेण सह कलासंगहं करे। । श्याणि जरासंधेण पमिवासुदेवेण यो पेसियो। तेण रमस्स पुरयो कहियो आएसो-'वेय. पिवयस्समीवे सिवपुरे दुस्सहं सिंहरहनिवं बंधिऊण आणेसि । तयो जीवजसं ऽहिलं वंबियनयरं पयच्छामित्ति(व) सोऊण वसुदेवेण राया विणवियो 'देव! विसजंदा'तयो बहुपरिवारो कंस| सहियो विसजओ । तत्य गंतूण कंसेण वशे सिंहरहो। पच्चाउ नग्गं से बलं । लजयो य तं | चित्तूण कमेण वसुदेवो सपुरमागयो। रमा कहियं रहो य “ कुमर ! सुणह, कोहगनिमित्तियो For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 561 वमु० ॥२॥ पुच्चियो 'जीवजसा केरीसी?' तेण कहियं-'उन्नयकुलसंहारिणी' ता असं ते कुमारीए” कंसेण यहांडीसार सिंहरदो बशे। तो राणा भणियं-'जशवि एवं कहं रायसुया वाणियदारगस्स दिजिहि ?' वसु| देवेण नणियं--'हे देव ! एयस्स परक्कमो वणियसरिसो न दीसइ'। तो राणा सद्दावियो रस-टू वाणियगो। 'कहेश दारयजप्पत्ती' तेण जहाड़ियं कहियं-'एस कंसमंजूसगयो लाहो' तेण य जग्गसेणनामंकियमुद्दा अप्पिया । तं ददणसव्वे समुद्दविजयपमुहाहरिसिया ।कंसोरायगिहंनीन। रणा तुहिण जीवजस्सा दिमा महुरानयरं च । तन कंसो ससेणो महुरिं आगंतुण पियरं बंधिऊण | रज्जं पाल। ___अह सोरीपुरिए वसुदेवो जोवणस्स उदए निचं रमण]लिलं बाहिं वच्च। तस्स सोहगमो. हिया पोरजुवईएमन अविद्या । सव्वघरकज्जाइं चश्त्ता वसुदेवमणुगति। श्याणि पोरजणेडिं विणविज राया। तयणु रमा वसुदेवो घरे छाविन। अन्नया य सिवादेवीए चेमी करे चंदणरसन्नरियं कच्चोलयं दाऊण निवं पश्पेसिया। वसुदेवण ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ तं गहियं । रुहा य सा सवं कहिये । चिंतियं च मे गुणा वक्रेहिं अवगुणरूवा कया। तन मे अब न8 है। व्यं। अन वसुदेवो देवगुटिकए रूवंतरं काऊण, बाहिं गंतूण नयरऽवारे अणाहमयगं जालिऊण एगं पत्तयं लहिऊण दुवारे बई। 'गुरूणं सुद्धसहावो ऊत्तनागरेहिं मलिज ति निवे पणं काऊग व-| सुदेवो अग्गिं अग्गज' श्य खंने पत्तं बंधिऊण दुतं बंजणवेसं काऊण वसुदेवो चलिउ ॥ ____ अह मग्गमाश्णो कावि अंबा नियपुत्ती तरुणा जुवइ ससुरकुलाउ कुलघरं नियइ रहमारूढा। & सा तं असरूवं दणं अंबं नण। अम्मो! एस बनणदारगो सुकुमारो परिस्संतो, रहे आरोव।। है जहावीसंतो सुहं जाण'। तीए तहा कयं। पत्ता सगामं। सूरबमणवेलाएब मजिय जगिन जल है। घरं गज। तत्थ सोरीपुरागयलोगमुहा एवं सुयं-रएणोअश्वबहो लहुलायरो वसुदेवो अग्गिं पविठो, || सव्वे जायवा कंदमाणा कोठगनिमित्तिएण वारिय रखिया' श्य सोऊण कम्मेण विजयखेडं नयरं पत्तो। तत्थ सुगीवरएको सामा विजयसेवा वे पुत्तिया समग्गकलाजुत्ता वसुदेवेण जिया, ते RSSHRSHISHASHISHASHREHRSHAN For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वसु० ॥ ३ ॥ www.kobatirth.org परिणीया य । तत्थ विजयसेणाए ठाकूरनामनंदणो जाउ । एवं योग विज्जादरनरवरप्पमुदायं सयसदस्ससंखा कन्ना वाससए परिणीया जहा वसुदेवहिंमीए तहा नेयवं । अन्नया कत्थवि कयदेवयाए वसुदेवो मलिन - 'अरिठपुरे रुहिरनिवसूया रोहिणी सयंत्ररे तव दत्ता, तुमं तत्थ वच्चह, महो कयणीउ । वसुदेवो तत्थ याग । सयंवरे जरासंध - समुद्द विजयप्पमुद्दा बहवो रायाणो मिलिया । तत्थ रोहिणो वरमालं गदाय समेया । तेसिं रायाएं को वि तीसे न रोयए । यह तुरियवा मज्जत्थो कयवेसंतरो वसुदेवो, फुरुरकरगनं पदं वाएर यतः - एवं आगष्ठ मं कुरंगरकी कह मिश्जय विलोयए । वारूवो जत्ताहं तुमं संगं समन्छन । १ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं सोउण रोमंचियसरीरा रोहिणी वसुदेवकंठे वरमालं निवेस | तयारिमाणं मज्जे कलकलो जाओ 'अजाणयाण्या तूरीवरो वरिज, यों श्रज्जुंत न सहामो' इय जणिक दंतं व For Private and Personal Use Only हींडीसार ॥ ३ ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RAKHARADUCARO कायन रायाणो जरासिंघेण उठाविया तूरी विणासत्थं । वसुदेवेण गगणहिएण सव्वबलेण जुज्कमाणेण सव्वे निजिया। पचाउ उस्सहं जाणिऊण रमा समुहविजयनिवोपेसिन, स जुईसज्जियो जा- न परंपरं जुइं लग्गं । वसुदेवेण सस्करो बाणो निस्किवियो, “अहुणा वसुदेवो तुम्ह पणम ।" ||8| समुदविजयएण श्राकारिऊण महानंदेण बाहाह थालिंगन । “व! वाससयं कत्थ चिज ।” वसुदेवेण सव्वं कहियं । सव्वे जायवा सुयणा रायाणोविय हरिसिया । तत्थ रोहिणी परिणीया। समुद्दविजयाश्या सव्वे सोरीपुरमागया। तयो पला वसुदेवो पुव्वोऊढा सव्वाश्थीन नियनियगणान गहिऊण विज्जाहरविरचिय विमाणहिज सोरी पुरमागज । तज सव्वे दसदसारा सुहं सु|हणं चिठति । इजय ललियजीवो महासुकान चश्त्ता वसदेवनज्काए रोहिणीए जयरिउवयरिज।। गय-उदहि-रवि-ससि समणा दिछा। समए सुयं पसूया, रामनाम दिएणं । कमेण सव्वकला सिख्खिया। श्रणया कंसो महुरा नयरीज वसुदेवमिलणे श्रागयो, सव्वे इस्थिया दंसिया, कैसेण नंदिया; PROGRECRUCIDCHODAECRECORDCREDG - For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसु० RKONKANCAREL A कहियं च । मेयकावईए नयरीए मम पियवा देवको नाम राया, तस्स देवकी देवकन्नोवमा हाँडीसार सुया अस्थि। तं परिणय॥अउ जुवे चलिया। मग्गे नारउ मिलिल । तेहिं अच्चिउ । 'रम्मं ' | नणिऊणं नारएण देवकी वसुदेवोवरि उकंठिया कया । पछाउ ते गया । देवकनिवेण सकारिया, | 8 सम्माणिया । पहाज निवेण वसुदेवस्स देवकी दिला॥ करमोयणे बहुकणयादि गोकोमोसंजुयं गोकुलनाहं नंदं च अप्पियं । पठान कंसो देवकीसहियं वसुदेवं गदिऊण महुराए धागज । सोच्छवं पवेसिन अ । वसुदेवो रम्मावासे गविन अ । पुत्वगहियवन कंसलहुनायो अश्मुत्तो रिसी| है पारणे तत्थ आगन। तया कंसन्नज्काए जीवजसाए देवकी खंधे निवेसिऊण नच्चतीए अश्मुत्तो | दिछो । देवईमद्दलंवायया(?)एवं कंठे लगिऊण मुणी कयहिन । तेण कहिथं "हेथ्ययाणि जस्साए | मत्थए निवेसिऊण नच्चसि, तीसे सत्तमो गप्नो तव प्पपियरहंता नविस्स" । ३२ वज्जसन्निहं वयं सोऊण गयदप्पाहं कएह(?)मोइए रहपएसे कंसपासं गंतूण सव्वं लवियं । कसेण चिंतियं। 'मु. णिवयं न नहा हवइ' । एवं सामवयणो होऊण, वसुदेवं पासं गंतूण, 'अपुत्तोहं,' २ दीण HEREKASHISHRSHASHISHES REGUL 4 ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वय बोत्तण 'देवकीए सत्तमो गानो मम देया'। सरलमणसा च पमिवज्जा । पहाज देव कीए सव्वं कहियं । 'तुज्जे कंसेण बलिया'नवियव्वं हव श्च॥ श्यन नदिलपुरे नागसिही नो अस्थि । तस्स सुलसा साविया मयवा हव। हा | गमेसी आराहिन । पयमीनूज । 'पुत्तजीवा होमि' तेण कहियं । “तुम मयवहासि । तव पुत्ता न जीवंति । देवकीए गन्ना कंसेण हंतु जाश्या | अहं तवाणुकंपणछाए ते पुत्ता जम्ममत्तेण तुज्ज समीवे । तव पुत्ता तत्र" एवं कहिऊण देवो गलतं तहा कयं । देवकीपुत्ता सुलसाघरंमि पवति, सुलसामयगप्ना देवकीपासे मुत्ता । ते कंसेण सव्वे हणिया । अन्ने कोवि न जाण। श्य य गंगदत्तजीवे महासुक्ककप्पा चश्त्ता देवकीगब्ने समुप्पलो। तदा गय-सीह-रवि-- ज्जय-विमाण--पुरसर अग्गिसमणा दिछा। हरिसेण गब्नंधारए । कंसेण देवकजयंणं रकिया। सावणसियठमीए निसीहसमए सा पुत्तरयणं पसूया । पुव्वपुलदेवाणुनावउ कंसनिउत्ता पुरिसा जवजुत्तविसमुछिया श्व सवे जाया । वसुदेवं आकारेऊण कहियं । " केणोवाए पुत्तरयण चिठश, ACCRACCHOCHORSCORRECORMOREOGRESEf For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वमु० ॥५॥ RECRECCANCAREICALCREASEARCHECRECIC तहा कायव्वं ।” वसुदेवो तं वावं गहिऊण, पुरिसोवरिपयं मुत्तूण पयोलिं पत्तो । देवया अष्ठहिं , दहीडीसार दीवेहिं मग्गे उद्योयं काऊण 'वसहरूवेण पयोली उग्घामिया । तया कठपंजरविएण उग्गसेण-15 निवेण नणियं । कोत्थि ? वसुदेवेण कहियं । तुम्ह पंजरं जय (?)। बालो दंसिनास हरिसिन जाउ।। पन्छाउ जउणानश् उत्तरिऊण गोकुले नंदघरं गउ । नंदनज्जाए जसोयाए बालो सम्मपिन । तीसे बालिया वसुदेवेण गहिया । पनाऊ वलिऊ तं देवकोए दाऊग वसुदेवो सगणं गऊ ॥ अन कंसपुरिसा बुक्ष। किं जायं? किं जायं? २ पुकारं कुरवाणा तत्थागया । बालिया दत्ता, सा तेहिं कंसस्स समप्पिया। "एसा वराकणी कहं मे घाणी, साथिणी मानूया" शनि|न्ननासपुडं काऊण पछाप्पिया. अह कएहनामपुत्तरयणं देवयाहिं रकमाणं गोउले नंदघरेणं सुई सुहेणं वळूछ । अएणया देवर किंचिय कारणं उप्पामेऊण गोनले पुत्तं दर्दु जाय। तं बालं नीलुप्पलकंतसरीरं हियानंद ददुण परमो जाया. ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अएणयातत्थ सुप्पनहपुत्तिसुयणपूयणा(शकुनीपुतनै पियवरेण कएहं वणासि यागया। कण्हेण , हणिया। तत्थबालकीमाए वट्टयमाणेण बहुअवयाउ वहिन । श्याणि वसुदेवेण सोरीपुराउ निय पुत्तं राममाकारितण कण्हस्कणत्थं गोउले मुको । तत्थ सव्वेसि रकं कर । श्यउय सोरीपुरे समुद्दविजयस्स रएणो लारियाए सिवाए नेमिजिणेसरो पुत्तो जान, महुराए वसुदेवजुवणे वक्षावणिया है एया।तत्थ उबवो जाउ। तत्थागएणं कंसेण सा बालिया दिहा। चितियं च “एसा देवईए सत्तमो गनो” इन चिंतिकण सन्नयो जाओ । सत्थकुसलो कोवि निमित्ति पुच्छिन । "मम कालो सहावेण नविस्स? अहवा कोवि हरिस्स?" नेमित्तिएण कहियं । “जो कोवि तव अरिष्वस्सहं, केसीयतुरगयं च, खरमेसाजय हणिस्स। अहवरं जो सारंगं घासं थारोवश्स्स। अएणयो कालोनागं नाहश्स्स। अवरं तव चाणूरमोडियमवं जो हणिस्स। जो नगरदुवारे चंपकपमुत्त रगयंदो यमहरं करिस्स। जस्सकंठे सच्चन्नामा वरमालं निवस। स तव हंता" कंसोनयाजलो जाज । तं कंसो अरिं जाणेऊं अरिज्वसहं केसीकिसोरतुरगोयं गोऊले मोए । ते गोऊलं जब For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वसु० ॥ ६ ॥ ह www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दवं कुव्वाणा कण्हेण हणिया । तऊ कंसेण सारंगधणूसं मंमावियं कहियं च । “जोकोविध आरोवय तस्स सच्चनामा वरइ " अऊ वसुदेवनज्जामयणवेग्गापुतो यणादिट्ठी कुमरो सोरीपुरान रदं रोविना मदुराए आगन | गोडले रयणी इक्कता ॥ पहाए कहेण सह कंसस - नाम म ग || करण धणुं यारोवियं ॥ सच्चनामाए तस्स कंठे वरमाला खिविया ॥ | सकहो अणादिट्ठी पठाउ वलिउ ॥ कहं गोनले मुत्तूण सोरीपुरं गल ॥ कंसेण न दिठो वेरी ॥ या कंसे चाणूरमोहियमल्ल जुज्कोछवो मंनि ॥ कहे रामं पइ कहियं ॥ " मल्लजुज्जं विलोएइ " " एवं होट " ति रामेण जसोया वाइया ॥ “नएहनीरं करेह " तीसे वीसरियं ॥ "न एसा तव माया, तव मम पिया वसुदेवो जगवलहो, मम माया रोहिणी, तब माया | देवई कंसनयान तुमं प्रत्य वारि ॥" सव्वं वर्त्ततं कहियं ॥ कण्हो सरोसो जान ॥ जनुणाजले कालीनागं नाहेऊं महुराडुबारे समेया ॥ तत्थ चंपकपनमुत्तरगयंदा डुएदेहिं हणिया ॥ पठाउ | खरमेसा हणिया ॥ कंसघरे सनामज्जमि चाणूरमोडियमला जुज्जावसरे रामेण कण्हेण य For Private and Personal Use Only होडीसार ॥ ६ ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir 15 उवे हणिया तन पछा महामंवहिन कंसो मंचान अहोमिनाए पामिऊण कण्हेण हणिन | सवत्य कोलाहल कलकलो य जान सवोविं लोगो पिलिका नग्गसेणनिवं कठपंजरान निकासिऊण पट्टे गविन वसुदेवाश्या तत्थ सव्वे मिलिया कंसमयकज्जं करेंति त जीवजसा महारोसानला जाया जरासिंधपासं गया रोयंतीए सव्वं कहियं जामेयमरणं सोनण अइसरोसो निवो जान महुरान सव्वे जायवा सोरोपुरमागया।सवे एगत्थ मिलिया ।समुद्दविजयस्स रणो नबंगे रामकएहा निवेसिया । सचे तत्थ चिति नग्गसेणेण सच्च नामा कएहस्स दत्ता॥ इन्य जरासिंधेण सोमको समुद्दविजयं पश् पेसियो । “जेहिं मे जामाश्कंसो मारिज, ते रामकिएहा गोवालिया पेसिया” । एवं कहियं । सवेहिं जायज्विकुमारेहिं हकिउ । “अह्माणं कंसेण बनाया मारिया । एगकंसो हणिन"। तज्जिन संतो सोमयन जरासंधपासं गउ । चनगु वुत्तं । महारोसानलेण समग्गदलसहिन कालयकुमरो पेसिन । एयावयाए समुद्द विजयपमुहेहिं कोन पुछिन । " जरासंधनयाज कहं चिठस्सेइ" । तेण वुत्तं । “तुह्माणं घणोदए नविस्त । अहुणा पछिमसमुद्द पश् वच्चह" | पहा अधारसकुलकोमी जायवा चलिया। ल For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुब० हांडीसार ॥ ७ ॥ CHANNECTE बीदेवयप्पहावान सवे पछिमदिसं पत्ता । पान कालयकुमारा लबीए वश्या मिसं काऊण ह- णिया। कम्यं सव्वं पना वलियं । अह कएहेण समुदतीरं उववासतियं काऊग सुत्थिअलवणाहिवो आराहिन । पयमीनूजय । “जिण्णा बारवईनयरी पयमोकायव्या, जहा चितामो” तेण सोहमिंदवयणेण बालसजा| यणायामा नवजोअणवित्थिए णा अणेगगढमढमंदिरपायारपमुहधणधन्नपूरिया बारवई नयरी | दत्ता । तत्थ सव्वजायवनिवेहिं कएहस्त पट्टानिसेचं काऊग रज्जं दत्तं । अएणे सत्वे जायवः | निवा लोगा य जहाहाणं निवेसिया। तत्थ रामकए हा सुहं सुहेणं रज्जंपालन्ति । तत्थ समुद्दविजयाश्दसदसारो जग्गसेणनिवपमुहा बहुजायवरायाणो, सिरिनभिजिणवइंसिरिकए हबलनदानहासिलागपुरिसा य, तहा पन्मुन्नसंबरहनेमिपमुहा महाउदंतकुमारा सयलहम्सा | अएणेवि बप्प- | नकुलकोमोजायवा संति । अणेगगणनायग-दंगनायगराईसर-तलवर-मांमिय-कोमंत्रिय-मंति-- महामंति--सिट्रि- सेणावश्--सत्थवाहसंपरिवमो कएहो महाराया वसुदेवो सबलकमयजुत्तो माणुस्सयं संपयं मुंज्माणो विहर। ROCRACANCHAR ॥ ७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SARASWASARA श्यन जवणदीवववहरिणो रयणकंबलिपमुहवाथूणि गहीऊण वारवनयरीए मज्कं मळणं | होऊण रायगिहं पत्ता । तत्थ जरासंधनिवघरे वत्थूण गहीकण पवेसिया । जीवजस्साए पुरो रयणकंबलाइं दिसेजण लख्खमचं कहियं । " श्यमलं किंशतया बुतं । पठान तेहिं लविलं। || “बारवईए रमयरामालंनूयं” । तीए कहियं “का बारवई ? वलमाणं तेहिं सव्वं जायवसरूवं कः || * एहरायरज्जगवणाई य वुत्तं । पुत्रवेरसवं संनरिऊण पुणो (जरासंधं ) कहियं । महारोसा- | है। उलेण समग्गकमयं गहिऊण चलिन । कण्हेणावि तं सोकण सब्बलनियदलं पयविजण सम्मुहो चलिन। परोप्परं महासंगाम संवबरं जाव जायं । पहान कण्हवासुदेवेण चक्करयणेण जरारि | पमिवासदेवो दणिज । गगणठिएहिं देवविज्काहरेहिं पुप्फवुहिं काऊण नवमो 'वासुदेवो समुप्पन्नो,' २ जयजयारवो कन । अइनरहरज्जं बारवईए नयरीए सुहं सुहेणं पालइ । यन य सिवादेवीए नेमि प३ वुत्तं । “बाहिं कहिं न वच्चह"। पठान नीसरिऊण कएहनवणसीहवारे पवेसिकण नहसालं नेमि पविठो। तस्त रकपालचारुकरहेण सत्थाइ दंसियाणि । ताई हिंसयसत्थाई जाणिकण पच्छान पंचजम संखं कोहलान पूरे । महानायवसेण नू For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीसार सुब // 8 // मिकंपेण वारवईमज्के कोलाहलो जाउ / तमउपसुहं जाणिकण कराउ संखं मुच्चइ / बाहिं नी- सन / वासुदेवो चिहणसीहासणं कंपश्एणं कंपियो / तं संखनायं सुच्चा रामेण सह तब आगन। बाहुमोडणकीमाए ज्वे कराहनेमिजिणा लग्गा // नेमिजिणेण कएहवाहुदंमं कमलमिव नामियं / है| कएहेण नेमिबाहुमोझे बहु विक्कमो को पुणो वज्ज व अनम्मो जान / 'हालकुं' श्य बोत्तूण कएहो मोश्च / पलान चलिन / सश्चरे गन। करदो बलनदेण सह लच्छोदेवया घरे गंतूण आलोवइ / लबीदेवयावयणाज नेमिजिणो चरमो देहो जान | जग्गसेणनिवधूया राश्नई करणा कएहण जाश्या / पाणिग्गहण सव्यरिविहिं परिवरित नेमिजिणो तोरणमागन / पसूयवाम दहण | सव्वपसुसमूहं मोएऊणं गयंदं वानिकण संवच्छरिदाणं दाऊण सव्वरिद्विहिं परिवरिन बारवर नयरीए मऊ मळणं निग्गच्छ / 2 अहियारो कहिन // // संखेवेण सिरिगुणनिहाणसूरोणं कए कहा कहिया इति * वसुदेवहिएमी' कथा सार समाप्ता // For Private and Personal Use Only