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आ ग्रंथ छपायाथी इतिहास, भाषा, जैन आचार विचार विगेरे अनेक बाबतोनो प्रकाश पडे तेम छे. कोइ सभा या संस्था आ ग्रंथने गमे तेटला खर्चना भोगे बहार पडावे तो हवे तेम करवानो प्रसंग आवी गयो छे. जो के आवो ग्रंथ तो क्यारनोये बहार पडेलज होय, पण हालना वखतमां जैनसमाजमा साहित्यना कम शोखने लीधे हजु बहार पड़ी शक्यो नबी. केमके ज्यारे वेदानुयायि दर्शनोने लगता ग्रंथो छपाइ गया, तेनी अनेक आवृत्तिओ थइ गइ, भाषान्तरो अने विवेचनो पण थइ गया, त्यारे अमारी जैनसमाजमा हजु हवे केटलाक मुळ ग्रंथो छपाचवा हाथ धरवामां आवे छे. केटला बधा साहित्यनी अभिवृद्धिमा आपणे पाछळ छीए ?
भाषानो संस्कार अने रचना शैली जोता रचनानो काळ इ. स. त्रीजो चोथो सैको होवो जोइए. छतां काळनिर्णय अने कर्तानो प्रामाणिक इतिहास शोधी काढवा अमे बहुश्रुतोने विनंति करीए छीए.
कथानायक जगजाहेर श्रीकृष्गना पीता अने श्रीनेमिनाथ प्रभुना काका वसुदेव छे. वसुदेव पण कोइ गुप्त व्यक्ति नथी. | महाभारतादिकमां पण तेनी वर्णना थयेल छे. मारी समज प्रमाणे महाभारतमा आई विस्तारथी चरित्र नहीं आप्यु होय. जो श्रीकृष्ण अने श्रीनभिनाय प्रभु खास तिहासिक व्यक्तिओ छे तो वसुदेव पण तिहासिक व्यक्ति छे. हलना वखतमा असंभवि जणाता केटलाक बनायो तेओना चरित्रमाथी मळे छे. तेनुं कारण ए पण छे के असंभवि ठराबवामां पण मोटी भूल थाय छे. छेवट बधो दृष्टिओ दूर करीने रचनाहरिबी तपासीए तो पण संकलना बहुज खुबीवाळी लागशे.
वछुदेव ते वखतना तमाम पुरुषो करतां घणांज सुंदर हता. अने तेनु सौभाग्य अद्भूत हतुं. तेथीज तेने 'जगवल्लभ'नु बिरुद | हतुं. ते शिवाय एक आर्य महापुरुषने छाजतां बीजा पण अनेक गुणो तेमां हता. तेना पुत्र श्रीकृष्ण पण तेवां होय तेमां शु आश्चर्य ?
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