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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वसु० ॥ ६ ॥ ह www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दवं कुव्वाणा कण्हेण हणिया । तऊ कंसेण सारंगधणूसं मंमावियं कहियं च । “जोकोविध आरोवय तस्स सच्चनामा वरइ " अऊ वसुदेवनज्जामयणवेग्गापुतो यणादिट्ठी कुमरो सोरीपुरान रदं रोविना मदुराए आगन | गोडले रयणी इक्कता ॥ पहाए कहेण सह कंसस - नाम म ग || करण धणुं यारोवियं ॥ सच्चनामाए तस्स कंठे वरमाला खिविया ॥ | सकहो अणादिट्ठी पठाउ वलिउ ॥ कहं गोनले मुत्तूण सोरीपुरं गल ॥ कंसेण न दिठो वेरी ॥ या कंसे चाणूरमोहियमल्ल जुज्कोछवो मंनि ॥ कहे रामं पइ कहियं ॥ " मल्लजुज्जं विलोएइ " " एवं होट " ति रामेण जसोया वाइया ॥ “नएहनीरं करेह " तीसे वीसरियं ॥ "न एसा तव माया, तव मम पिया वसुदेवो जगवलहो, मम माया रोहिणी, तब माया | देवई कंसनयान तुमं प्रत्य वारि ॥" सव्वं वर्त्ततं कहियं ॥ कण्हो सरोसो जान ॥ जनुणाजले कालीनागं नाहेऊं महुराडुबारे समेया ॥ तत्थ चंपकपनमुत्तरगयंदा डुएदेहिं हणिया ॥ पठाउ | खरमेसा हणिया ॥ कंसघरे सनामज्जमि चाणूरमोडियमला जुज्जावसरे रामेण कण्हेण य For Private and Personal Use Only होडीसार ॥ ६ ॥
SR No.020880
Book TitleVasudevhindi Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeerchand Prabhudas Pandit
PublisherIshvarlal Keshavlal Shah
Publication Year1917
Total Pages24
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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