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प्रस्तावना. आ वसुदेव हिंडीसारनी एक प्रत अमने श्री पाटणना शा. हालाभाइ मगनभाइनी देखरेख नीचेना फोफलीयावाडाना भंडारमाथी मळी आवी छे प्रत सामान्यतः अशुद्ध छे. श्लोक प्रमाण लगभग अढीसें सुधार्नु छ.
वसुदेव हिंडो ग्रंथ वस्तुतः भारतीय साहित्य ग्रंथ रत्नोमांचें एक रत्न छे, छतां जैन समुदायमांज तेनी घणी सारी प्रतिष्ठा छे; तेथी तेना विषयनी जीज्ञासा अनेक व्यक्तिआना हृदयमा उद्भवेली छे, संपूर्ण रीते ते जिज्ञासा शांत करवी ए एक भगीरथ प्रयत्न छे; केमके तेने माटे सोटी साधनसामग्रीनी जरुर छे, छतां आ ग्रंथ हाथ लागवाथी ग्रंथना विषयनी सामान्यरूपरेखा जीज्ञासुओने आश्वासन आपी शके तेम छे, जो के बसुदेवहिंडी ग्रंथना विस्तारनो विचार करता 'आ पुस्तक घणुज संक्षेपमा रच्युं छे' एम तो कहे ज पडशे. एटले एकन ग्रंथ मान चोवीश--पचीशहजार श्लोक प्रमाण उपरनुं छे. त्यारे बीजानुं बसे अढीसे श्लोकनुं प्रमाण छे.
आ वमुवहिंडीसारना कर्ता कोण छे ? क्या अने क्यारे सारोद्धार कर्यो ? ते कंइ निश्चित थइ शक्युं नथी. मात्र ग्रंथने अंते एटलुंज नाम मळे छे के " श्री गुगनिधान मूरि भाटे टुंकामां कथा कही" पण कोगे कही ? ते जाणी शकातुं नथी. केमके आ बाबतनो स्पष्ट के अस्पष्ट उल्लेख प्रतमां कयों नथी, अने आवा सामान्य ग्रंथने माटे बाह्य साधनो खोळवा ए निष्फळ प्रयत्न छअर्थात् बहार पण साधनो होवानो असंभव छे. ग्रंथ उपरथी एटलुं तो जाणी शकाय छे के त्रणसें चारसें वर्षथी वधारे प्राचीन तो नथीज.
टीपमा प्र० महाराजश्री कांतिविजयजी महाराजे " वसुदेव हिंडो आलापक" नाम राख्युं छे. प्रथन अंते “वसुदेव हिंदी कहा समत्ता" एवा शब्दो छे. अमे “ वसुदेव हिंडीसार" नाम राख्यु छे.
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