Book Title: Vasudevhindi Sar
Author(s): Veerchand Prabhudas Pandit
Publisher: Ishvarlal Keshavlal Shah

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ तं गहियं । रुहा य सा सवं कहिये । चिंतियं च मे गुणा वक्रेहिं अवगुणरूवा कया। तन मे अब न8 है। व्यं। अन वसुदेवो देवगुटिकए रूवंतरं काऊण, बाहिं गंतूण नयरऽवारे अणाहमयगं जालिऊण एगं पत्तयं लहिऊण दुवारे बई। 'गुरूणं सुद्धसहावो ऊत्तनागरेहिं मलिज ति निवे पणं काऊग व-| सुदेवो अग्गिं अग्गज' श्य खंने पत्तं बंधिऊण दुतं बंजणवेसं काऊण वसुदेवो चलिउ ॥ ____ अह मग्गमाश्णो कावि अंबा नियपुत्ती तरुणा जुवइ ससुरकुलाउ कुलघरं नियइ रहमारूढा। & सा तं असरूवं दणं अंबं नण। अम्मो! एस बनणदारगो सुकुमारो परिस्संतो, रहे आरोव।। है जहावीसंतो सुहं जाण'। तीए तहा कयं। पत्ता सगामं। सूरबमणवेलाएब मजिय जगिन जल है। घरं गज। तत्थ सोरीपुरागयलोगमुहा एवं सुयं-रएणोअश्वबहो लहुलायरो वसुदेवो अग्गिं पविठो, || सव्वे जायवा कंदमाणा कोठगनिमित्तिएण वारिय रखिया' श्य सोऊण कम्मेण विजयखेडं नयरं पत्तो। तत्थ सुगीवरएको सामा विजयसेवा वे पुत्तिया समग्गकलाजुत्ता वसुदेवेण जिया, ते RSSHRSHISHASHISHASHREHRSHAN For Private and Personal Use Only

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