Book Title: Vastupal Prashasti Sangraha
Author(s): Punyavijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 116
________________ विभिएर रेवतगिरिधनु। अहिणवु नेमिजिणिंद तिणि भवणु कराविउ, निम्मलु चंदरु बिंबे नियंनाउं लिहाविउ । थोरविक्खंभवायंभरमाउलं, ललियपुत्तलियकलसकुलसंकुलं । मंडपु दंड घणुतुंगतरतोरणं, धवलिय बज्झि रुणझणिरिकिंकिणिघणं । इक्कारसयसहीउ पंचासीय वच्छरि, नेमिभुयणु उद्धरिउ साजणि नरसेहरि मालवमंडलगुहमुहमंडणु, भावडसाहु दालिधुखंडणु । ऑमलसार सोवन्नु तिणि कारिउ, किरि गयणंगण सूरु अवयारिउ । अवरसिहर वरकलस झलहलइ मणोहर, नेमिभुयणि तिणि दिठुइ दुह गलइ निरंतर ॥१०॥ ॥ द्वितीयं कडवं ॥ दिसि उत्तर कसमीरदेसु नेमिहि उम्माहिय । अजिउ रतन दुइ बंधैं गरुय संघाहिव आविय ॥१॥ हरसवसिण घणकलस भरिवि ति न्हवणु करंतह । गलिउ लेव सु नेमिबिंब जलधार पडतह ॥ २ ॥ संघाहिवु संघेण सहिउ नियमणि संतविउ । हा हा ! धिगु धिगु! महं विमलकुलगंजणु आविउ ॥३॥ सामियसीमलधीरचरण मह सरणि भवंतरि । इम परिहरि आहार नियमु लइउ संघधुरंधरि ॥ ४ ॥ एकवीसि उपवासि तामु अंबिकदेवि आविय । पभणइ संपसन्न देवि जय जय सद्दाविय ॥५॥ उद्देविणु सिरिनेमिबिंबु तुलिउ तुरंतउ । पच्छलु ममैं जो रसि वच्छ ! तुं भवणि वलंतउ ॥ ६ ॥ णइवि अवि.........कंचणं.........बलाणइ। .........बिंबु मणिमउ तहिं आणइ ॥ ७॥ पढमभवणि देहलिहि छुडि पुडि आरोविउ । संघाहिवि हरिसेण ताम दिसि पच्छलु जोइउ ॥ ८ ॥ ठिउ निच्चलु देहलिहि देवु सिरिनेमिकुमारो । कुसुमवुट्टि मिल्हेवि देवि किउ जइजड्कारो ॥ ९॥ वइसाहीपुन्निमह पुन्नवंतिण जिणु थप्पिउ । पच्छिमदिसि निम्मविउ भवणु भवदुहतरुकप्पिउ ॥१०॥ न्हवण-विलेवणतणीय वंछ भवियणजण पूरिय । संघाहिव सिरिअजित-रतनु नियदेसि पेराइय ॥११॥ सयल वित्ति कलिकालि कालकलसे जाणवि छाहिउ । झलहलंति मणिबिंबकंति अंबिकुरुं आइय । ॥ १२ ॥ समुद्दविजय-सिवदेविपुत्तु जायवकुलमंडणु । जरासिंधदलमलणु मयणभडमाणविहंडणु ॥ १३ ॥ राइमईमणहरणु रमणु सिवरमणि मणोहरु । पुन्नवंत पणमंति नेमिजिणु सोहगुसुंदरु ॥ १४ ॥ वस्तपालि वर मंति भुयणु कारिउ रिसहेसरु । अट्ठावय-सम्मेयसिहरवरमंडपु मणहरु ॥ १५ ॥ कउडिजक्खु मरुदेवि दुह वि तुंगु पासाइउ । धम्मिय सिरु धुणंति देव वलिवि पलोइउ ॥ १६ ॥ तेजपालि निम्मविउ तत्थ तिहुयणजणरंजणु । कल्याणउतउतुंगु भुयणु लंघिउ गयणंगणु ॥ १७ ॥ १ निज नाम ॥ २ दारिद्रखण्डनः दारिद्रने दूर करनार ॥ ३ नेमिनाथना मंदिरनो आमलसारो ॥ ४ बन्धु भाई ॥ ५ सामियसामल नेमिनाथ भगवान् ॥ ६ मुप्रसन्ना ॥ ७ निषेधार्थक अव्यय ॥ ८ बलानक-मंदिरनो एक भाग ॥ ९परागताः पाछा आध्या ॥:१० कल्याणकत्रयतुंगं भवन-नेमिनाथ भगवानना दीक्षा केवलज्ञान अने निर्वाण ए त्रण कल्याणकने लगतुं विशाळ मंदिर ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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