Book Title: Vastupal Prashasti Sangraha
Author(s): Punyavijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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१०० श्रीविजयसेनसूरिविरचित
[पञ्चदशं पल्लव-फुल्ल-फलुल्लसिय, रेहइ तहि वणराइ । तहि उजिलतलि धम्मियह, उल्लंटु अंगि न माइ ॥ १९ ॥ बोलावी संघह तणीय, कालमेघंतर पंथि । मेल्हविय तहिं दिढ धणीय, वस्तुपाल वरमंति ।। २० ॥
॥प्रथमं कडवं ॥
॥४
॥
दुविहि गुजरदेसे रिउरायविहंडणु, कुमरपालु भूपाल जिणसासणमंडणु । तेण संठाविओ सुरठदंडाहिवो, अंबओ सिरिसिरिमालकुलसंभवो । पाज सुविसाल तिणि नैठिय, अंतरे धवल पुणु पैरव भराविय धनु सु धवलह भाउ जिणि पाग पयासिय, बारविसोत्तरवरसे जसु जस दिसि वासिय । जिम जिम चडइं तडि कडणि गिरनारह, तिम तिम ऊडई जण भवण संसारह ।। जिम जिम सेउँ जलु अंगि पलोट्टए, तिम तिम कलिमलु सयलु ओहट्टए ॥२॥ जिम जिम वायइ वाउ तहि निज्झरसीयलु, तिम तिम भवदुहदाहो तक्खणि तुट्टइ निश्चल । कोइलकलयलो मोरकेकारवो, सुम्मए महुयर महुरु गुंजारवो । पाज चदंतह सावयालोयणी, लापारामु दिसि दीसए दाहिणी
॥ ३॥ जलदजालवबाले नीझरणि रमाउलु, रेहइ उजिलसिहरु अलि-कजलसामलु ।। बहलवुहु धातुरसभेउणी, जत्थ उलदलइ सोवन्नमइ मेउणी । जत्थ दिप्पंति दिवोसही सुंदरा, गुहिर वर गरुय गंभीर गिरिकंदरा जाइ कुंदु विहसंतो जं कुसुमिहि संकलु, दीसइ दस दिसि दिवसो किरि तारामंडलु । मिलियनवलवलिदलकुसुमझलहालिया, ललियसुरमहिवलयचलणतलतालिया । गलियथलकमलमयरंदजलकोमला, विउल सिलवट्ट सोहंति तहिं संमैला मणहरघणवणगहणे रसिर हसिय किंनरा, गेउ मुहुरु गायतो सिरिनेमिजिणेसरा । जत्थ सिरिनेमिजिणु अच्छए अच्छरा, असुरसुरउरगकिंनरयविज्जाहरा । मउडमणिकिरणपिंजरिय गिरियसेहरा, हरसि आवंति बहुभत्तिभरनिब्भरा सामियनेमिकुमारपयपंकयलंछिउ, धेर धूल वि जिण धन्न मन पूरइ वंछिउ । जो भवकोडाकोड्डि................, अन्नु सोवन्नु घणु दाणु जउ दिज्जए । सेवउ जडकम्मघणगंठि जउ तिजए, तउ उजिंतसिहरु पाविजए । जम्मणु जोवणु] जीविय तसु तहिं कयत्थू, जे नर उर्जितसिहरु पेक्खइ वरतित्थू । आसि गुरजरधरय जेण अमरेसरु, सिरिजयसिंघदेउ पवरु पुहवीसरु । हणवि सोरठु तिणि राउ षंगारउ, ठविउ साजणु दंडाहिवं सारउ
॥ ८ ॥
१ऊलट-शुभ भावना ॥ २ पद्याम्पहाड उपर चडवा माटे पगथीयां बांधेलो रस्तो || ३ निष्ठिता-तैयार करावी ॥४प्रपा-पाणीनी परब ॥ ५ स्वेदजल-परसेवो ॥ ६ सुम्मए-आयते-संभळायले ॥ ७ श्यामला काळी ॥ ८ हर्षेण हरखे ॥ ९ पृथ्वी अने धूळ पण ॥
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