Book Title: Vastupal Prashasti Sangraha
Author(s): Punyavijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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पञ्चदशं परिशिष्टम्
श्रीविजयसेनसूरिविरचित
रेवंतगिरिरासु ।
परमेसर तित्थेसरह, पयपंकय पणमेवि । भणिसु रासु रेवंतगिरे, अंबिकदेवि सुमरेवि ॥१॥ गामागर पुर वण वहण, सरि सरवरि सुपएसु । देवभूमि दिसि पच्छिमह, मणहरु सोरठदेसु ॥ २ ॥ जिणु तहिं मंडेल मंडणउ, मरगयमउडमहंतु । निम्मल सामल सिहरभरे, रेहँइ गिरि रेवंतु ॥ ३ ।। तसु "सिरि सामिउ सामलउ, सोहगसुंदर सारु। जाइवनिम्मलकुलतिलउ, निवसइ नेमिकुमारु ॥ ४ ॥ तसु मुह दंसणु दसदिसि वि, देसदेसंतरु संघ । आवइ भावरसालमणउ, हलि [हलि] रंगतरंग ॥ ५ ॥ पोरुयाडकुलमंडणउ, नंदणु आसाराय । वस्तुपाल वर मंति तहिं, तेजपालु दुइ भाय ॥ ६॥ गुरजरधरधुरि धवलकि, वीरधवलदेवराजि । बिहु बंधवि अवयारियउ, सू [स]मू दूसम माझि ॥ ७ ॥
नायलगच्छह मंडणउ, विजयसेणरिराउ ।
उवएसिहि बिहु नरपवरे, धम्मि धरिउ दिदु भाउ तेजपालि गिरनारतले, तेजलपुरु नियनामि । कारिउ गढ-मढ-पर्वपवरु, मणहरु घरि आरामि ॥९॥
तहिं पुरि सोहिउ पासजिणु, आसारायविहारु ।
निम्मिउ नामिहि निजजणणि, कुमरसरोवर फारु तहि नयरह पुरवदिसिहि, उग्गसेण गढदुग्गु। आदिजिणेसरपमुहजिणमंदिरि भरिउ समग्गु ॥ ११ ॥
बाहिरि गढ दाहिणदिसिहि, चउरियवेहिविसालु । लाडुकलहहियओरडीय, तडि पसु ठाइ कराल
॥ १२ ॥ तहि नयरह उत्तरदिसिहि, साल-थंभसंभार । मंडण महिमंडल........, मंडप दसह उयार ॥ १३ ॥ जोइउ जोइउ भवियण, पेमि गिरिहि दुयारि । दामोदरु हरि पंचमउ, सुवन्नरेहनइ पारि ॥१४॥ अगुण अंजण अंबिलीय, अंबाडय अंकुल्लु । उंबरु अंबरु आमलीय, अगरु असोय अहल्ल ॥ १५ ॥ करवर करपट करणतर, करवंदी करवीरा । कुडा कडाह कयंब कड, करब कदलि कंपीर ॥ १६ ॥ वेयलु वंजलु बउल वडो, वेडस वरण विडंग । वासंती वीरिणि विरह, वंसियालि वण चंग ॥ १७ ॥ सीसमि सिंबलि सिरसमि, सिंधुवारि सिरखंडा । सरल सार साहार सय, सागु सिगु सिणदंड ॥ १८ ॥
१ वहण झरणं ॥ २ मंडल-देश ॥३ राजते शोभे छे ॥ ४ सिरि-मस्तक-शिखर ॥ ५ प्रपा पाणीनी परब ॥ ६ स्फार प्रधान ॥
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